Author name: Prasanna

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 9 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़.

प्रश्न-अभ्यास

( पाठ्यपुस्तक से)

मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
1. आज धर्म के नाम पर क्या-क्या हो रहा है?
2. धर्म के व्यापार को रोकने के लिए क्या उद्योग होने चाहिए?
3. लेखक के अनुसार स्वाधीनता आंदोलन का कौन-सा दिन सबसे बुरा था?
4. साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में क्या बात अच्छी तरह घर कर बैठी है?
5. धर्म के स्पष्ट चिह्न क्या हैं?
उत्तर

  1. आज धर्म के नाम पर नेता, आतंकवादी और धूर्त, लोगों का शोषण करते हैं। धर्म के नाम पर दंगे-फसाद किए जाते हैं और नाना प्रकार के उत्पात किए जाते हैं।
  2. धर्म के नाम पर व्यापार को रोकने के लिए हमें दृढ़ता से धार्मिक उन्माद का विरोध करना होगा। हमें ऐसे लोगों की धूर्तता के जाल में नहीं उलझना चाहिए। अपनी बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए। इन धूर्त लोगों का आसन ऊँचा करने से बचना चाहिए।
  3. लेखक के अनुसार स्वाधीनता आंदोलन का वह सबसे बुरा दिन था जिस दिन स्वाधीनता के लिए मुल्ला, मौलवियों व धर्माचार्यों को आवश्यकता से अधिक महत्त्व दिया गया। ऐसा करने पर हमने स्वाधीनता के आंदोलन में अपना एक कदम पीछे कर दिया। उसी पाप का फल हमें आज तक भुगतना पड़ रहा है।
  4. साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में यह बात अच्छी तरह से घर करके बैठ गई है कि धर्म के सम्मान की रक्षा के लिए प्राण दे देना उचित है। साधारण आदमी धर्म के तत्त्वों को नहीं समझते पर धर्म के नाम पर भड़क जाते हैं।
  5. धर्म के दो स्पष्ट चिह्न हैं-शुद्ध आचरण और सदाचार।

लिखित

प्रश्न (क)
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
1. चलते-पुरज़े लोग धर्म के नाम पर क्या करते हैं?
2. चालाक लोग साधारण आदमी की किस अवस्था का लाभ उठाते हैं?
3. आनेवाला समय किस प्रकार के धर्म को टिकने नहीं देगा?
4. कौन-सा कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा?
5. पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धन लोगों में क्या अंतर है?
6. कौन-से लोग धार्मिक लोगों से अधिक अच्छे हैं?
उत्तर
1. चलते-पुरजे लोग धर्म के नाम पर मूर्ख लोगों की शक्तियों और उत्साह का दुरुपयोग करते हैं। उन्हीं मूर्खा के आधार पर वे अपना बड़प्पन और नेतृत्व कायम रखना चाहते हैं। ये लोग दूसरों को अपनी चतुराई से दबाते हैं और अपनी मनमानी करते हैं। मनचाही कामनाओं को पूरा करवाते हैं। स्वयं कुछ करें या न करें परंतु दूसरों की शक्ति उनकी कामनाओं को पूरा करने में सहायक होती है। उनकी जीवनचर्या इसी चतुराई के आधार पर चलती है।

2. चालाक लोग साधारण आदमी की धर्म के प्रति निष्ठा का लाभ उठाते हैं। साधारण आदमी को धर्म के बारे में अधिक नहीं जानता। वे लोग उसकी अज्ञानता का लाभ उठाकर उसकी शक्तियों और उत्साहों का शोषण करते हैं। साधारण आदमी उन लोगों के भड़काने एवं बहकावे में आ जाता है और चालाक आदमी अनेक प्रकार से अपने स्वार्थों की पूर्ति करता है। वह आस्थावान धार्मिक लोगों को मरने-मारने के लिए छोड़ देता है। इस प्रकार चालाक आदमी का काम बन जाता है। और वह अपना नेतृत्व और बड़प्पन कायम करने में सफ़ल हो जाता है।

3. वे लोग जो धर्म की आड़ लेकर लोगों को आपस में लड़वाते हैं, आनेवाला समय उन्हें टिकने नहीं देता। जन साधारण की समझ में आ गया है कि बेईमानी करने और दूसरों को दुःख पहुँचाने की आजादी धर्म नहीं है। जहाँ धार्मिक नेता लोगों की भावनाओं से खेलता है। ऐसा धर्म शीघ्र नष्ट हो जाएगा।

4. कुछ लोग धर्म की आड़ लेकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने की कोशिश करते हैं, ऐसे लोगों की कुटिल चालों को देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति धर्म की मानने के लिए स्वतंत्र है। उसका मन जिस प्रकार करेगा वह उसी प्रकार पूजा-अर्चना करेगा। उसकी स्वाधीनता को कुचलने का प्रयास व जबरदस्ती उसे धर्म
को मानने से रोकने का प्रयास देश की स्वाधीनता के विरुद्ध कार्य है।

5. पाश्चात्य देशों में धनी लोगों की ऊँची-ऊँची इमारतें गरीब लोगों का मजाक बनाती हैं। उसके अतिरिक्त उनके पास सभी सुख-सुविधाएँ हैं। गरीब लोगों का शोषण करके ये लोग धनी बने हैं। धन का मार्ग दिखाकर ये निर्धन लोगों को वश में करते हैं। फिर मनमाना धन पैदा करने के लिए उन्हें दबाते हैं क्योंकि गरीब लोगों को रोटी के लिए लगातार संघर्ष करनापड़ता है। इतना परिश्रम करने के बाद भी इन्हें झोंपड़ियों में जीवन बिताना पड़ता है। इसी कारण साम्यवाद और बोल्शेविज्म का जन्म हुआ।

6. वे लोग जो ईश्वर को नहीं मानते या किसी मजहब को नहीं मानते परंतु उनका आचरण अच्छा है और लोगों के सुख-दुख का ख्याल रखते हैं, अपनी स्वार्थ सिद्ध के लिए दूसरों को उकसाते नहीं है, इस प्रकार के लोग धार्मिक लोगों से कहीं अच्छे माने गए हैं। ये लोग किसी धर्म को नहीं मानते। दूसरों की मूर्खता और पवित्र भावना का मजाक नहीं उड़ाते।

प्रश्न (ख)
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
1. धर्म और ईमान के नाम पर किए जानेवाले भीषण व्यापार को कैसे रोका जा सकता है?
2. ‘बुधि पर मार’ के संबंध में लेखक के क्या विचार हैं?
3. लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना कैसी होनी चाहिए?
4. महात्मा गाँधी के धर्म-संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
5. सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना क्यों आवश्यक है?
उत्तर
1. धर्म और ईमान के नाम पर किए जानेवाले भीषण व्यापार को रोकने के लिए हमें साहस और दृढ़ता से काम लेना होगा। हमें उन धूर्त लोगों का पर्दाफाश करना होगा जो धर्म और ईमान के नाम पर दंगे-फसाद करवाते हैं। लोगों को आपस में लड़वाते हैं। स्वार्थ पूर्ति के लिए आम आदमी के प्राण ले लिए जाते हैं। हमें धर्म के वास्तविक रूप को समझना होगा। धर्म के नाम पर हो रहे ढोंग व आडंबरों से स्वयं को बचाना होगा।

2. बुधि पर मार से लेखक का अर्थ है लोगों की बुधि में ऐसे विचार भरना जिससे वे गुमराह हो जाएँ। इससे उनके सोचने-समझने की शक्ति नष्ट हो जाती है। लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ भड़काया जाता है। उनके मन में दूसरे धर्म के विरुद्ध गलत धारणा भरी जाती है और सामान्य लोगों को धर्म-ईमान और आत्मा के नाम पर आपस में लड़वा देते हैं।

3. लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना पवित्र आचरण से परिपूर्ण होनी चाहिए। शुद्ध आचरण और मनुष्यता के गुणों वाली होनी चाहिए। पशुत्व को समाप्त कर मनुष्यता फैलाने वाली होनी चाहिए। धर्म की भावना ईश्वर और आत्मा में पवित्र संबंध स्थापित करनेवाली होनी चाहिए। कल्याण की भावना होनी चाहिए न कि दूसरों को भड़काने वाली।

4. महात्मा गाँधी धर्म को सर्वोच्च स्थान देते थे। धर्म के बिना वे एक कदम भी चलने को तैयार नहीं थे। उनका धर्म शुद्ध पवित्र भावनाओं से परिपूर्ण था, जिसमें कल्याण की भावनाएँ निहित थीं। वह सत्य, और अहिंसा को ही परम धर्म मानते थे। उनके अनुसार धर्म उदारता की रक्षा करता है इसलिए महात्मा गाँधी के अनुसार धर्म में केवल ऊँचे और उदार विचारों का ही स्थान होना चाहिए।

5. सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि आनेवाले समय में हमें शुद्ध आचरण और सदाचार के बल पर ही जीवन जीना होगा। अपने स्वार्थ को छोड़कर जन कल्याण की भावना को मन में लाना होगा। यदि हम अपने आचरण को नहीं सुधारेंगे तो हमारे द्वारा रखे गए रोजे, नमाज, पूजा आदि व्यर्थ हो जाएँगे।
जन कल्याण हेतु आचरण में शुद्धता अति आवश्यक है।

प्रश्न (ग)
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-
1. उबल पड़नेवाला साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बूझता, और दूसरे लोग उसे जिधर भी जोत देते हैं, उधर जुत जाता है।
2. यहाँ पर बुधि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा को स्थान अपने लिए लेना, और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना।।
3. अब तो, आपका पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपको आचरण होगी।
4. तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो!
उत्तर
1. आशय-इस कथन का आशय है कि साधारण आदमी धर्म के बारे में कुछ नहीं जानता। उसमें सोचने-विचारने की
अधिक शक्ति नहीं होती। वह अपने धर्म-संप्रदाय के प्रति अंधी श्रद्धा रखता है। वह तो धर्म के नाम पर जान लेने और देने को तैयार रहता है। छोटे से संकट की बात सुनकर क्रोधित हो उठता है। ऐसा आदमी दूसरों के हाथ की कठपुतली होता है। उसके मन में यह बात बैठा दी जाती है कि धर्म के हित में जान दे देना पुण्य का काम है। चालाक किस्म के लोग उसे अपना हित साधने के लिए निर्देशित काम में उलझा देते हैं। वह उसमें मन से जुट जाता है। अर्थात् धर्म के नाम पर जिस काम के लिए कहा जाता है वह उसी को करने लगता है। उसमें सोचने-विचारने की शक्ति नहीं होती।।

2. आशय-भारत में धार्मिक नेता लोगों की बुधि का शोषण करते हैं। धर्म के नाम पर ऐसे लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करके दूसरे लोगों की शक्ति का दुरुपयोग करते हैं। पहले वे अपने प्रति अंधी श्रद्धा उत्पन्न करते हैं। वे स्वयं को ईश्वर के रूप में प्रस्तुत करते हैं। लोग उन्हें ईश्वर और धर्म का ऊँचा प्रतीक मान बैठते हैं जब लोगों की श्रद्धा उनपर जम जाती है तो वे ईमान, धर्म, ईश्वर या आत्मा का नाम लेकर उन्हें दूसरे धर्म वालों से लड़वाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। इस प्रकार साधारण लोगों का दुरुपयोग कर उनका शोषण करते हैं।

3. आशय-इस सूक्ति का अर्थ है-धर्म ईश्वर की प्राप्ति का सीधा मार्ग है। यह आत्मा व परमात्मा के मिलन की कड़ी है। पूजा-पाठ को ढोंग, आडंबर और धूर्तता समझा जाता है। भले ही पाँचों वक्त नमाज पढ़ी जाए। दूसरों को गलत मार्ग का अनुसरण करने के लिए प्रेरित कर स्वार्थ सिद्ध किया जाए अपना आचरण न सुधारा जाए तो रोजा, नमाज, पूजा सब व्यर्थ हो जाएगा। यदि हमारा आचरण शुद्ध है तो धर्म का वास्तविक मूल्य सिद्ध होता है। मनुष्य की कसौटी उसकी मनुष्यता है न कि धर्म। धर्म तो शुद्ध आचरण और सदाचार का एक मार्ग है जिस पर चलकर ईश्वर की साधना की जा सकती है।

4. आशय-वे लोग जिन्हें नास्तिक कहा जाता है कहीं अच्छे हैं क्योंकि वे दूसरों का सुख चाहते हैं। उनके विचार अच्छे व ऊँचे हैं। उनका आचरण दूसरों के हृदय को ठेस नहीं पहुँचाता। केवल ईश्वर की पूजा-अर्चना ही ईश्वरत्व नहीं है। मानव कल्याण का मार्ग धर्म का मार्ग है। पशुत्व भावनाओं का त्याग करना होगा और आदमी बनकर आदमीयता को समझना होगा। मनुष्यत्व ही है जो धर्म की धार्मिकता को बनाए रखता है। मनुष्यता कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है। पशुता स्वार्थ की भावना को बढ़ावा देती है। ये मनुष्य को ही सोचना होगा कि वह किसे धर्म बनाए।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
उदाहरण के अनुसार शब्दों के विपरीतार्थक लिखिए-
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 7 1
उत्तर
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 7 5

प्रश्न 2.
निम्नलिखित उपसर्गों का प्रयोग करके दो-दो शब्द बनाइए-
ला, बिला, बे, बद, ना, खुश, हर, गैर
उत्तर
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 7 2

प्रश्न 3.
उदाहरण के अनुसार ‘त्व’ प्रत्यय लगाकर पाँच शब्द बनाइए
उदाहरण: देव + त्व-देवत्व
उत्तर
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 7 3

प्रश्न 4.
निम्नलिखित उदाहरण को पढ़कर पाठ में आए संयुक्त शब्दों को छाँटकर लिखिए-
उदाहरणः चलते-पुरजे
उत्तर
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 7 4
प्रश्न 5.
‘भी’ का प्रयोग करते हुए पाँच वाक्य बनाइए-
उदाहरणः आज मुझे बाजार होते हुए अस्पताल भी जाना है।
उत्तर

  1. नौकरी के लिए सिफ़ारिश ही नहीं, मेहनत भी करनी पड़ती है।
  2. मुझे अभी भी पढ़ाई करनी है।
  3. तुमने भी उसकी बात पर विश्वास कर लिया।
  4. आज बाजार से फल भी लेते आना।
  5. वह मुझसे अभी भी नाराज़ है।

योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
‘धर्म एकता का माध्यम है’-इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए-
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।

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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए
1. महादेव भाई अपना परिचय किस रूप में देते थे?
2. ‘यंग इंडिया’ साप्ताहिक में लेखों की कमी क्यों रहने लगी थी?
3. गांधी जी ने ‘यंग इंडिया’ प्रकाशित करने के विषय में क्या निश्चय किया?
4. गांधी जी से मिलने से पहले महादेव भाई कहाँ नौकरी करते थे?
5. महादेव भाई के झोलों में क्या भरा रहता था? ।
6. महादेव भाई ने गांधी जी की कौन-सी प्रसिद्ध पुस्तक का अनुवाद किया था?
7. अहमदाबाद से कौन-से दो साप्ताहिक पत्र निकलते थे?
8. महादेव भाई दिन में कितनी देर काम करते थे?
9. महादेव भाई से गांधी जी की निकटता किस वाक्य से सिद्ध होती है?
उत्तर

  1. महादेव भाई मित्रों के बीच अपने को गांधी जी का हम्माल’ और कभी-कभी अपना परिचय ‘पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर’ के रूप में देते थे जिसका अर्थ है-सभी प्रकार के काम सफलतापूर्वक करनेवाला।
  2. ‘यंग इंडिया’ साप्ताहिक में लेखों की कमी इसलिए रहने लगी क्योंकि ‘यंग इंडिया’ नामक अंग्रेजी साप्ताहिक में लिखनेवाले मुख्य लेखक ‘हार्नीमैन’ को गांधी जी का अनुयायी होने के कारण देश निकाले की सजा देकर इंग्लैंड भेज दिया गया।
  3. गांधी जी ने ‘यंग इंडिया’ प्रकाशित करने के विषय में यह निश्चय किया कि वह इस साप्ताहिक पत्र को हफ्ते में केवल दो बार प्रकाशित करेंगे, क्योंकि सत्याग्रह आंदोलन में लीन रहने के कारण गांधी जी का काम बहुत बढ़ गया था।
  4. गांधी जी से मिलने से पहले महादेव भाई सरकार के अनुवाद विभाग में नौकरी करते थे। इसके साथ-साथ उन्होंने अहमदाबाद में वकालत भी शुरू कर दी थी।
  5. महादेव भाई अपने झोलों में मासिक पत्र, समाचार-पत्र और पुस्तकें रखते थे।
  6. महादेव भाई ने गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया जो ‘यंग इंडिया’ नामक पत्र में छपता रहा।
  7. अहमदाबाद में ‘यंग इंडिया’ और ‘नवजीवन’ दो साप्ताहिक पत्र निकलते थे।
  8. महादेव भाई दिन में लगातार काम करते थे। लगातार चलनेवाली यात्राओं, विशाल समुदायों, समाजों, मुलाकातों, चर्चाओं और बातचीतों के बीच स्वयं कब खाते, कब नहाते या कब सोते किसी को इसका कोई पता नहीं चल पाता था। वे दिन में लगभग 17-18 घंटे काम करते थे।
  9. महादेव भाई से गांधी जी की निकटता भर्तृहरि के भजन की इस पंक्ति से सिद्ध होती है-‘ए रे जख्म जोगे नहि
    जशे’ यह घाव कभी योग से भरेगा नहीं। बाद के सालों में भी अपने नए कार्यकर्ता प्यारेलाल जी को कुछ कहना होता तो उस समय भी गांधी जी के मुँह से अचानक ही महादेव का नाम ही निकलता था। गांधी जी उन्हें भुला नहीं पाए थे।

लिखित

प्रश्न (क)
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए
1. गांधी जी ने महादेव को अपना वारिस कब कहा था?
2. गांधी जी से मिलने आनेवाले के लिए महादेव भाई क्या करते थे?
3. महादेव भाई की साहित्यिक देन क्या है?
4. महादेव भाई की अकाल मृत्यु का कारण क्या था?
5. महादेव भाई के लिखे नोट के विषय में गांधी जी क्या कहते थे?
उत्तर
1. महादेव गांधी जी के लिए पुत्र से भी बढ़कर थे। सन् 1917 में वे गांधी जी के पास पहुँचे थे। गांधी जी ने उनको
तत्काल ही पहचान लिया और उनको अपने उत्तराधिकारी का पद सौंप दिया। फिर सन् 1919 में जलियाँवाला बाग हत्याकांड के दिनों में पंजाब जाते हुए गांधी जी को पलवल स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया। गांधी जी ने उसी समय महादेव भाई को अपना वारिस कह दिया।

2. गांधी जी के सामने अंग्रेजों के जुल्मों और अत्याचारों की कहानियाँ पेश करने के लिए आनेवाले पीडितों के दल के दल ग्राम देवी के भावी भवन पर उमड़ते रहते थे। जो लोग गांधी जी से मिलने के लिए आते थे, उनसे पहले महादेव भाई मुलाकात कर उनकी समस्याएँ सुनते थे। फिर वे उनकी बातों की संक्षिप्त टिप्पणियाँ तैयार करके उन्हें गांधी जी के सामने पेश करते थे और आनेवालों के साथ उनकी रूबरू मुलाकात भी करवाते थे।

3. महादेव भाई देश-विदेश के अग्रगण्य समाचार-पत्र में गांधी जी की प्रतिदिन की गतिविधियों पर, टीका-टिप्पणी करते रहते थे। इन्होंने टैगोर, शरतचंद्र आदि के साहित्य का अध्ययन करना शुरू कर दिया था। महादेव जी की साहित्यिक देन यह थी कि उन्होंने गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेजी अनुवाद किया था। वे प्रतिदिन डायरी | लिखते थे। उनकी डायरी और अनगिनत अभ्यास पुस्तकें आज भी मौजूद हैं।

4. महादेव भाई वर्धा की असहनीय गर्मी में प्रतिदिन सुबह पैदल चलकर सेवाग्राम पहुँचते थे। वहाँ दिनभर काम करके शाम को पैदल वापस आते थे। आते-जाते पूरे ग्यारह मील तक उन्हें प्रतिदिन चलना पड़ता था। यह सिलसिला लंबे समय तक चला। इसका उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और यह उनकी अकाल मृत्यु का कारण बन गया।

5. महादेव भाई की लेखन प्रतिभा अद्वितीय थी। उनके समान शुद्ध और सुंदर अक्षर लिखनेवाला कहीं खोजने पर भी नहीं मिलता था। अन्य लोगों के लिखे लेखों में चाहे कमियाँ या खामियाँ मिल जाएँ किंतु महादेव की डायरी में या नोट में क्या मजाल कि कहीं कॉमा या मात्रा की गलती मिल जाए। गांधी जी अन्य लेखकों से कहते थे कि महादेव
के लिखे नोट के साथ मिलान कर लेना और लोग दाँतों तले अंगुली दबाकर रह जाते थे।

प्रश्न (ख)
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ( 50-60 शब्दों में) लिखिए
1. पंजाब में फ़ौजी शासन ने क्या कहर बरसाया?
2. महादेव जी के किन गुणों ने उन्हें सबका लाड़ला बना दिया था?
3. महादेव जी की लिखावट की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर
1. पंजाब में फ़ौजी शासन ने यह कहर बरसाया कि पंजाब के अधिकतर नेताओं को गिरफ्तार करके फौजी कानून के तहत उम्र कैद की सज़ाएँ देकर कालापानी भेज दिया। लाहौर के मुख्य राष्ट्रीय अंग्रेज़ी दैनिक पत्र ‘ट्रिब्यून’ के संपादक श्री काली राम को दस साल की जेल की सजा दी गई। लोगों पर अनगिनत अत्याचार किए गए।

2. महादेव जी गांधी जी के सहयोगी थे। उनका अधिकतर समय गांधी जी के साथ देश भ्रमण तथा उनकी प्रतिदिन की गतिविधियों में बीतने लगा। वे समय-समय पर गांधी जी की गतिविधियों पर टीका-टिप्पणी करते रहते थे। महादेव जी जो लिखते थे, वह बड़ा सुंदर व सटीक होता था। वह चाहे साधारण लेख हो या विरोधी समाचार-पत्रों की प्रतिक्रियाओं का जवाब, सभी में उनकी शिष्टाचार भरी शैली होती थी। उनके कॉलम सीधी-सादी भाषा में सुस्पष्ट व उच्च भावों से भरे होते थे। वे विरोधियों की बातों का जबाव उदार हृदय से देते थे। यही कारण था कि वे सबके लाड़ले बन गए।

3. महादेव शुद्ध व सुंदर लेख लिखते थे। पूरे भारतवर्ष में उनका कोई सानी नहीं था। वाइसराय के नाम जाने वाले गांधी जी के पत्र हमेशा महादेव की लिखाई में ही जाते थे। उन पत्रों की लिखावट देखकर वाइसराय भी लंबी साँस लेते थे। वे तेज गति से लंबी लिखाई कर सकते थे। उनकी लिखावट में कोई भी गलती नहीं होती थी। लोग टाइप करके लाई रचनाओं को महादेव की रचनाओं से मिलाकर देखते थे। उनके लिखे लेख, टिप्पणियाँ, पत्र और गांधी जी के व्याख्यान सबके सब ज्यों के त्यों प्रकाशित होते थे। बड़े-बड़े सिविलियन और गर्वनर कहा करते थे कि सारी ब्रिटिश सेवाओं में महादेव के समान अक्षर लिखनेवाला कहीं खोजने पर भी नहीं मिलता था। पढ़नेवालों को
मंत्र-मुग्ध करनेवाला था-उनका शुद्ध और सुंदर लेख।

प्रश्न (ग)
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए
1. ‘अपना परिचय उनके ‘पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर’ के रूप में देने में वे गौरवान्वित महसूस करते थे।’
2. इस पेशे में आमतौर पर स्याह को सफेद और सफेद को स्याह करना होता था।
3. देश और दुनिया को मुग्ध करके शुक्रतारे की तरह ही अचानक अस्त हो गए।
4. उन पत्रों को देख-देखकर दिल्ली और शिमला में बैठे वाइसराय लंबी साँस-उसाँस लेते रहते थे।
उतर
1. आशय-प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक गांधी जी के निजी सचिव की निष्ठा, समर्पण और उनकी प्रतिभा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि वे स्वयं को गांधी जी का निजी सचिव ही नहीं बल्कि एक ऐसा सहयोगी मित्र मानते थे, जो सदा उनके साथ रहे। वे गांधी जी के प्रत्येक गतिविधि उनका भोजन, उनके दैनिक कार्यों में हमेशा उनका साथ देते थे। इसलिए स्वयं को उनका पीर अर्थात् सलाहकार, उनका रसोइया, मशक से पानी ढोनेवाला व्यक्ति तथा सब कुछ सह लेने वाले खर के रूप में मानते थे और लोगों को अपना परिचय भी यही कहकर देते थे।

2. आशय-प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि जब महादेव भाई और उनके जिगरी दोस्त नरहरि भाई ने एक साथ वकालत की पढ़ाई की थी तब दोनों ने पढ़ाई खतम होते ही अहमदाबाद में वकालत शुरू की। लेखक का यह मत है कि वकालत के पेशे में स्याह को सफेद अर्थात् काले कारनामों को भी उत्तम करार दे दिया जाता है तथा जो सही है उसे भी दलीलों के माध्यम से गलत सिद्ध कर दिया जाता है। इस व्यवसाय में कई बार वकील अपना दिमाग लगाकर सबूतों और दलीलों के बल पर गलत को सही और सही को गलत सिद्ध कर देते हैं किंतु महादेव भाई ने हमेशा उचित और सही कार्य किए।

3. आशय-प्रस्तुत पंक्ति का यह आशय है कि जिस प्रकार नक्षत्र मंडल में तेजस्वी शुक्रतारे की दुनिया या तो शाम के समय या बड़े सवेरे केवल एक-दो घंटे के लिए देख पाती है उसी प्रकार महादेव भाई भी गांधी जी के पास आधुनिक भारत के स्वतंत्रता काल में सन् 1917 में पहुँचे। उन्होंने थोड़े से समय में ही अपनी लेखन प्रतिभा, अपने परिश्रम तथा देश के प्रति प्रेम की भावना से सारे संसार को अपनी ओर मोड़ लिया और शुक्रतारे की तरह अल्प समय में अपनी प्रतिभा से संपूर्ण विश्व को मंत्र मुग्ध करके सन् 1935 में अस्त हो गए।

 

4. आशय-प्रस्तुत पंक्ति का यह आशय है कि महादेव भाई द्वारा लिखे लेख, टिप्पणियाँ तथा पत्र अद्भुत होते थे। भारत में उनके अक्षरों का कोई सानी नहीं था। उनका शब्द चयन अनूठा था। वे इतनी शुद्ध और सुंदर भाषा में पत्र लिखते थे कि देखनेवालों के मुँह से ‘वाह’ निकल जाती थी। गांधी जी के पत्रों का लेखन महादेव जी करते थे। वे पत्र जब शिमला में बैठे वाइसराय के पास जाते थे तो वे उनकी सुंदर लिखावट देखकर दंग रह जाते थे और लंबी-लंबी साँस लेने लगते क्योंकि सारी ब्रिटिश सर्विस में महादेव के समान अक्षर लिखनेवाला कहीं खोजने पर भी नहीं मिलता था।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
‘इक’ प्रत्यय लगाकर शब्दों का निर्माण कीजिए—
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 8 1
उत्तर
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 8 2

प्रश्न 2.
नीचे दिए गए उपसर्गों का उपयुक्त प्रयोग करते हुए शब्द बनाइए-
अ, नि, अन, दुर्, वि, कु, पर, सु, अधि
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 8 3
उत्तर
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 8 1

प्रश्न 3.
निम्नलिखित मुहावरों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
आड़े हाथों लेना।
अस्त हो जाना
दाँतों तले अंगुली दबाना
मंत्र-मुग्ध करना
लोहे के चने चबाना
उत्तर
आड़े हाथों लेना-परीक्षा में कम अंक आने पर रमेश के माता-पिता ने उसे आड़े हाथों लिया।
अस्त हो जाना-आपसी ईर्ष्या-द्वेष, कलह से समाज में बड़े-बड़े घरानों की प्रसिद्धि अस्त हो जाती है।
दाँतों तले अँगुली दबाना-ताजमहल की सुंदरता देखकर पर्यटक दाँतों तले अँगुली दबा लेते हैं।
मंत्र-मुग्ध करना-स्वामी विवेकानंद की ओजस्वी वाणी भारतीयों को तो क्या विदेशियों को भी मंत्रमुग्ध कर देती थी।
लोहे के चने चबाना- भारतीय सेना का मुकाबला करना लोहे के चने चबाने के समान है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों के पर्याय लिखिए-
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 8 5
उत्तर
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 8 6

प्रश्न 5.
उदाहरण के अनुसार वाक्य बदलिए-
उदाहरणः गांधी जी ने महादेव भाई को अपना वारिस कहा था।
गांधी जी महादेव भाई को अपना वारिस कहा करते थे।
1. महादेव भाई अपना परिचय पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर’ के रूप में देते थे।
2. पीड़ितों के दल-के-दल गामदेवी के मणिभवन पर उमड़ते रहते थे।
3. दोनों साप्ताहिक अहमदाबाद से निकलते थे।
4. देश-विदेश के समाचार-पत्र गांधी जी की गतिविधियों पर टीका-टिप्पणी करते थे।
5. गांधी जी के पत्र हमेशा महादेव की लिखावट में जाते थे।
उत्तर

  1. महादेव भाई अपना परिचय ‘पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर’ के रूप में दिया करते थे।
  2. पीड़ितों के दल-के-दल गामदेवी के मणिभवन पर उमड़ा करते थे।
  3. दोनों साप्ताहिक अहमदाबाद से निकला करते थे।
  4. देश-विदेश के समाचार-पत्र गांधी जी की गतिविधियों पर टीका-टिप्पणी किया करते थे। |
  5. गांधी जी के पत्र हमेशा महादेव की लिखावट में जाया करते थे।

योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ को पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2.
जलियाँवाला बाग में कौन-सी घटना हुई थी? जानकारी एकत्रित कीजिए।
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 3.
अहमदाबाद में बापू के आश्रम के विषय में चित्रात्मक जानकारी एकत्रित कीजिए।
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 4.
सूर्योदय के 2-3 घंटे पहले पूर्व दिशा में या सूर्यास्त के 2-3 घंटे बाद पश्चिम दिशा में एक खूब चमकता हुआ ग्रह दिखाई देता है, वह शुक्र ग्रह है। छोटी दूरबीन से इसकी बदलती हुई कलाएँ देखी जा सकती हैं, जैसे चंद्र की कलाएँ।
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 5.
वीराने में जहाँ बत्तियाँ न हों वहाँ अँधोरी रात में जब आकाश में चाँद भी दिखाई न दे रहा हो तब शुक्र ग्रह (जिसे हम शुक्रतारा भी कहते हैं) के प्रकाश से अपने साए को चलते हुए देखा जा सकता है। कभी अवसर मिले तो इसे स्वयं अनुभव करके देखिए।
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
सूर्यमंडल में नौ ग्रह हैं। शुक्र सूर्य से क्रमशः दूरी के अनुसार दूसरा ग्रह है और पृथ्वी तीसरा। चित्र सहित परियोजना पुस्तिका में अन्य ग्रहों के क्रम लिखिए।
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2.
‘स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी जी का योगदान’ विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 3.
भारत के मानचित्र पर निम्न स्थानों को दर्शाएँ: अहमदाबाद, जलियाँवाला बाग (अमृतसर), कालापानी (अंडमान), दिल्ली, शिमला, बिहार,
उत्तर
प्रदेश उत्तर विद्यार्थी स्वयं करें।

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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 9 पद

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 9 पद

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
(क) पहले पद में भगवान और भक्त की जिन-जिन चीजों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख कीजिए।
(ख) पहले पद की प्रत्येक पंक्ति के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद-सौंदर्य आ गया है; जैसे-पानी, समानी आदि। इस पद में से अन्य तुकांत शब्द छाँटकर लिखिए।
(ग) पहले पद में कुछ शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबंध हैं। ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखिए
उदाहरणः दीपक बाती …….. ………. ……. ……… ……… …….
(घ) दूसरे पद में कवि ने ‘गरीब निवाजु’ किसे कहा है? स्पष्ट कीजिए।
(ङ) दूसरे पद की ‘जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(च) “रैदास’ ने अपने स्वामी को किन-किन नामों से पुकारा है?
(छ) निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए मोरा, चंद, बाती, जोति, बरै, राती, छत्रु, धरै, छोति, तुहीं, गुसईआ।
उत्तर
(क) पहले पद में भगवान और भक्त की चंदन-पानी, घन-वन-मौर, चंद्र-चकोर, दीपक-बाती, मोती-धागा, सोना-सुहागा आदि से तुलना की गई है। कवि ने अपनी भक्ति के माध्यम से प्रभु के नाम की लगन में रम जाने की इच्छा व्यक्त की है।

(ख)
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 9 4

(ग)
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 9 5

(घ) दूसरे पद में ‘गरीब निवाजु’ ईश्वर को कहा गया है। जिस व्यक्ति पर ईश्वर की कृपा होती है वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है। नीच से नीच व्यक्ति का भी उद्धार हो जाता है। ऐसे लोग जो स्पर्श दोष के कारण हाथ लगने पर अपने-आपको अपवित्र मानते हैं। ऐसे दोनों पर दया करनेवाले प्रभु ही हैं जो दुखियों के | दर्द से द्रवित हो जाते हैं।

(ङ) इस पंक्ति का आशय है कि सांसारिक लोग नीच जाति में उत्पन्न होनेवालों के प्रति स्पर्श दोष मानते हुए उन्हें अछूत मानते हैं, पर ईश्वर उन लोगों पर भी कृपा करते हैं। उनका उद्धार कर देते हैं, क्योंकि उनकी दृष्टि में भक्त की भक्ति ही श्रेष्ठ है। उसका प्रेम ही सर्वोपरि है। इसलिए प्रभु को पतित पावन, भक्त-वत्सल, दीनानाथ कहा जाता है।

(च) रैदास ने अपने स्वामी को गरीब निवाजु, लाल, गोबिंद, गुसाई, हरि, लाल आदि नामों से पुकारा है, नाम भले ही अनेक हो, परंतु दीनदयाल गरीबों का उद्धार करने वाले हैं। वे सभी पर अपना प्रेम लुटाते
बाती – बत्ती छत्रु – छत्र गुसईया – गोसाईं जोति – ज्योति धरै – धारण

(छ)
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 9 3

प्रश्न 2.
नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए
(क) जाकी अँग-अँग बास समानी
(ख) जैसे चितवत चंद चकोरा
(ग) जाकी जोति बरै दिन राती
(घ) ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै
(ङ) नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै
उत्तर
(क) इस पंक्ति का भाव यह है कि भक्त स्वयं गुणों से रहित है। वह पानी के समान रंग-गंध रहित है, लेकिन ईश्वर रूपी चंदन की समीपता पाकर धन्य हो जाता है। वह गुणों की प्राप्ति कर लेता है। जैसे पानी में घिसकर चंदन का रंग निखरता है उसी प्रकार भक्तों की भक्ति से प्रभु का महत्त्व बढ़ जाता है। भक्त और भगवान इतने समीप आ जाते हैं कि भक्त के अंग-अंग में ईश्वर की सुगंध समा जाती है। भक्त का रोम-रोम ईश्वर भक्ति से प्रसन्न हो जाता है।

(ख) भक्त हमेशा भवसागर से पार करानेवाले परमात्मा के प्रति स्वयं को अर्पित कर देना चाहता है। हर क्षण उसी के रूप-दर्शन करने की इच्छा करता है। जिस प्रकार चकोर दिन-रात चाँद को निहारना चाहता है। उसी प्रकार रैदास भी प्रभु रूपी चाँद को एकटक निहारना चाहते हैं इसलिए एक क्षण के लिए भी उनका ध्यान प्रभु भक्ति से नहीं हटता।।

(ग) जिसकी ज्योति दिन-रात जलती रहती है। अर्थात् कवि स्वयं को बत्ती और प्रभु को ऐसा दीपक मानते हैं, जिसकी ज्योति दिन-रात जलती रहती है, यानी रैदास जी दिन-रात प्रभु की भक्ति से आलोकित रहना चाहते हैं।

(घ) हे प्रभु! आपके अतिरिक्त भक्तों को इतना मान-सम्मान देनेवाला कोई और नहीं है। अर्थात् समाज में नीची जाति में उत्पन्न होने के कारण आदर-सम्मान मिलना कठिन होता है परंतु ईश्वर के यहाँ जातिगत भेद-भाव नहीं होता। वे सबके सम्मान की लाज रखते हैं। प्रभु ही सबका कल्याण करते हैं। उनके अतिरिक्त कोई ऐसा नहीं है जो गरीबों और दोनों की खोज-खबर रखता है। ईश्वर ही अछूतों को ऊँचे पद पर आसीन करते हैं।

(ङ) कवि ने ईश्वर को पतित पावन, भक्त वत्सल, दीनानाथ व उद्धारक कहा है। निम्न श्रेणी के लोगों को भी प्रभु ऊँचा कर देता है। वह अपने भक्तों पर दया करता है तथा उनका उद्धार कर देता है। उनका गोबिंद किसी से नहीं डरता। कवि ने प्रभु को नाम देकर भी उसके निराकार रूप की ही चर्चा की है। गरीबों के दु:ख-दर्द को समझनेवाला वही ईश्वर है। वहीं उन्हें पीड़ाओ से मुक्ति दिलाने वाला भी है।

प्रश्न 3.
रैदास के इन पदों का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
रैदास ने पहले पद में विविध उदाहरणों द्वारा अपनी निराकार भक्ति प्रकट की है। वे अपने प्रभु के अनन्य भक्त हैं। उनका प्रभु घट-घटवासी है। वे अपने भगवान में इस प्रकार मिल गए हैं कि उनको अलग करके देखा नहीं जा सकता। कवि ने दूसरे पद में अपने आराध्य के दीनदयाल व सर्वगुण संपन्न रूप का गुणगान किया है जो ऊँच-नीच का भेद-भाव नहीं जानता तथा किसी भी कुल–गोत्र में उत्पन्न अपने भक्त को सहज भाव से अपना कर उसे दुनिया में सम्मान दिलाता है या उसे सांसारिक बंधनों से मुक्त कर अपने चरणों में स्थान देता है। नामदेव, कबीर, सधना आदि निम्न जाति में उत्पन्न भक्तों को समाज में उच्च स्थान दिलाने तथा उनका उद्धार करने का
उदाहरण देकर कवि ने अपने कथन को प्रमाणित किया है।

योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
भक्त कवि कबीर, गुरु नानक, नामदेव और मीराबाई की रचनाओं का संकलन कीजिए।
उत्तर
स्वयं करें।

प्रश्न 2.
पाठ में आए दोनों पदों को याद कीजिए और कक्षा में गाकर सुनाइए।
उत्तर
छात्र स्मरण कर कक्षा में सुनाएँ।

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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 10 दोहे

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
(क) प्रेम का धागा टूटने पर पहले की भाँति क्यों नहीं हो पाता?
(ख) हमें अपना दु:ख दूसरों पर क्यों नहीं प्रकट करना चाहिए? अपने मन की व्यथा दूसरों से कहने पर उनका व्यवहार कैसा हो जाता है?
(ग) रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य क्यों कहा है?
(घ) एक को साधने से सब कैसे सध जाता है?
(ङ) जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी क्यों नहीं कर पाता?
(च) अवध नरेश को चित्रकूट क्यों जाना पड़ा?
(छ) ‘नट’ किस कला में सिद्ध होने के कारण ऊपर चढ़ जाता है?
(ज) ‘मोती, मानुष, चून’ के संदर्भ में पानी के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(क) प्रेम आपसी लगाव और विश्वास के कारण होता है। यदि एक बार यह लगाव या विश्वास टूट जाए तो फिर उसमें पहले जैसा भाव नहीं रहता। मन में दरार आ जाती है। जिस प्रकार सामान्य धागा टूटने पर उसे जब जोड़ते हैं तो उसमें गाँठ पड़ जाती है। इसी प्रकार प्रेम का धागा भी टूटने पर पहले के समान नहीं हो पाता।

(ख) हमें अपना दु:ख दूसरों के सामने नहीं करना प्रकट चाहिए, क्योंकि दूसरा उसका मजाक उड़ाता है। हमें अपना दु:ख अपने मन में ही रखना चाहिए। अपने मन की व्यथा दूसरों से कहने पर उनका व्यवहार परिहास पूर्ण हो जाता है।

(ग) रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य इसलिए कहा है क्योंकि सागर का जल खारा होता है, वह किसी की प्यास नहीं बुझा सकता जबकि पंक जल धन्य है जिसे पीकर छोटे-छोटे जीवों की प्यास तृप्त हो जाती है इसलिए कवि ने ऐसा कहा है।

(घ) एक पर अटूट विश्वास करके उसकी सेवा करने से सब कार्य सफल हो जाते हैं तथा इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता। एक को साधने से सब कार्य उसी प्रकार सिद्ध हो जाते हैं जिस प्रकार जड़ को सींचने से फल, फूल आदि मिलते हैं। उसी प्रकार परमात्मा को साधने से अन्य सब कार्य कुशलतापूर्वक संपन्न हो जाते हैं।

(ङ) जलहीन कमल की रक्षा सूर्य इसलिए नहीं कर पाता क्योंकि जल से ही कमल की प्यास बुझती है, वह खिलता है और जीवन पाता है। कमल की संपत्ति जल है। अपनी संपत्ति नष्ट होने पर दूसरा व्यक्ति साथ | नहीं दे सकता।

(च) अवध नरेश श्री रामचंद्र अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए जब चौदह वर्ष वनवास र थे तब वे चित्रकूट जैसे रमणीय वन में रुके थे। कवि विपदा पड़ने पर ईश्वर की शरण में जाने की बात कह रहे हैं क्योंकि मुसीबत में वन भी राजभवन दिखाई देता है।

(छ) नट कुंडली को समेटकर झट से ऊपर चढ़े जाने की कला में सिद्धहस्त होता है।

(ज) जिस प्रकार मोती का पानी उतर जाता है। अर्थात् उसकी चमक समाप्त हो जाती है तो पका कोई महत्त्व
नहीं रह जाता। मनुष्य का पानी उतरने से आशय मनुष्य का मान-सम्मान समाप्त हो जाता है। चून’ पानी से ही गुँथा जाता है। सूखा आटा पानी के बिना किसी का पेट भरने में सहायक नहीं। इस प्रकार मोती, मनुष्य और चून के लिए पानी का अपना विशेष महत्त्व है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए
(क) टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।
(ख) सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।
(ग) रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।
(घ) दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
(ङ) नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
(च) जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।
(छ) पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।।
उत्तर
(क) प्रेम ऐसे धागे के समान है, जो टूटने पर फिर नहीं मिलता। यदि वह मिल भी जाए तो उसमें गाँठ अवश्य पड़ जाती है। आशय यह है कि प्रेम भाव नष्ट हो जाए तो फिर प्रयास करने पर भी संबंध मधुर नहीं हो पाते।

(ख) लोग दूसरों के कष्ट सुनकर प्रसन्न ही होते हैं। वे कष्टों को बाँटने को तैयार नहीं होते।

(ग) रहीम कहते हैं कि यदि जड़ को ही सींचा जाए तो फल-फूल अपने आप खिल उठते हैं। उसी भाँति यदि मनुष्य परमात्मा का ध्यान कर लें तो सांसारिक सुख अपने-आप प्राप्त हो जाते हैं।

(घ) दोहा ऐसा छंद है जिसमें अक्षर तो बहुत कम होते हैं किंतु उनका अर्थ बहुत गहरा और व्यापक होता है।

(ङ) रीझने पर हिरण अपने प्राण तक दे देता है और मनुष्य प्रेम सहित धन का दान कर देता है। आशय यह है कि प्रसन्न मनोदशा में मनुष्य उदार हो जाता है।

(च) हर वस्तु का स्थान और महत्त्व अपनी जगह है। बड़ी वस्तु अपनी जगह काम आती है और छोटी वस्तु अपनी जगह। जहाँ सुई काम आती है, वहाँ तलवार कुछ नहीं कर सकती। आशय यह है कि छोटी वस्तुओं का स्थान भी बड़ी वस्तुओं से कम नहीं है। इसी प्रकार छोटे लोगों का स्थान बड़े लोगों से किसी प्रकार भी कम नहीं है।

(छ) पानी के बिना आटा काम नहीं आ सकता। चमक के बिना मोती बेकार है और आत्मसम्मान के बिना मनुष्य का जीवन व्यर्थ है। आशय यह है कि जीवन में आत्मगौरव का बहुत महत्त्व है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित भाव को पाठ में किन पंक्तियों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है.
(क) जिस पर बिपदा पड़ती है वही इस देश में आता है।
(ख) कोई लाख कोशिश करे पर बिगड़ी बात फिर बन नहीं सकती।
(ग) पानी के बिना सब सूना है अतः पानी अवश्य रखना चाहिए।
उत्तर
       (क) जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस।
(ख) बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
(ग) रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।

प्रश्न 4.
उदाहरण के आधार पर पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए-
उदाहरणः कोय – कोई, जे – जो ज्यों
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 10 1
उत्तर
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 10 2

योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
‘सुई की जगह तलवार काम नहीं आती’ तथा ‘बिन पानी सब सून’ इन विषयों पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2.
‘चित्रकूट’ किस राज्य में स्थित है, जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।

परियोजना कार्य

• नीति संबंधी अन्य कवियों के दोहे/कविता एकत्र कीजिए और उन दोहों/कविताओं को चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।

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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

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प्रश्न-अभ्यास
( पाठ्यपुस्तक से)

साखियाँ

प्रश्न 1.
‘मानसरोवर’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
मानसरोवर से कवि का आशय है-मन रूपी पवित्र सरोवर, जिसमें मनुष्य को स्वच्छ विचाररूपी जल भरा है। इस स्वच्छ जल में जीवात्मा रूप हंस, प्रभु-भक्ति में लीन होकर स्वच्छंद रूप से मुक्तिरूपी मुक्ताफल चुगते हैं। वे मानसरोवर छोड़कर अन्यत्र जाना भी नहीं चाहते हैं।

प्रश्न 2.
कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसोटी बताई है?
उत्तर:
कवि के अनुसार सच्चे प्रेमी की कसौटी यह है कि उससे मिलने पर मन की सारी मलिनता नष्ट हो जाती है। पाप धुल जाते हैं।

प्रश्न 3.
तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्त्व दिया है?
उत्तर:
तीसरे दोहे में कवि ने सांप्रदायिकता एवं भेदभाव रहित सच्चे ज्ञान की प्राप्ति को महत्त्व दिया है। संसार के लोग सांसारिकता में फँसकर सच्चे ज्ञान और उसकी महिमा से अनजान रहते हैं। मनुष्य इस ज्ञान को खोजने था पाने की जगह अन्य वस्तुओं की प्राप्ति में अपना समय बेकार में नष्ट करता रहता है।

प्रश्न 4.
इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है?
उत्तर:
कबीर के अनुसार, सच्चा संत वह है जो सांप्रदायिक भेदभाव, तर्क-वितर्क और वैर-विरोध के झगड़े में न पड़कर निश्छल भाव से प्रभु की भक्ति में लीन रहता है।

प्रश्न 5.
अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने किस तरह की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है?
उत्तर:
अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने निम्नलिखित संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है-

  1. मुसलमान काबा को अपना पवित्र तीर्थस्थल मानते हैं और हिंदू काशी को पावन स्थल मानते हैं और वहाँ अपने आराध्य का वास मानते हुए राम-रहीम में अंतर करते हैं जबकि यह मनुष्य का किया गया बँटवारा है।
  2. ऊँचे कुल में जन्म लेने से ही व्यक्ति महान नहीं बन जाता है। उसे अच्छे कर्म ही महान बनाते हैं। व्यक्ति की धारणा यह है कि ऊँची जाति या कुल में पैदा होने से ही वह महान बन गया है। वास्तव में व्यक्ति अपने कर्मों से महान बनता है।

प्रश्न 6.
किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मों से? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कर्मों से होती है, न कि ऊँचे कुल से। आज तक हजारों राजा पैदा हुए और मर गए। परंतु लोग जिन्हें जानते हैं, वे हैं-राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर आदि। इन्हें इसलिए जाना गया क्योंकि ये केवल कुल से ऊँचे नहीं थे, बल्कि इन्होंने ऊँचे कर्म किए। इनके विपरीत कबीर, सूर, तुलसी बहुत सामान्य घरों से थे। इन्हें बचपन में ठोकरें भी खानी पड़ीं। परंतु फिर भी वे अपने श्रेष्ठ कर्मों के आधार पर संसार भर में प्रसिद्ध हो गए। इसलिए हम कह सकते हैं कि महत्त्व ऊँचे कर्मों का होता है, कुल का नहीं।

प्रश्न 7.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि। स्वान रूप संसार है, भैंकन दे झख मारि।
उत्तर:
काव्य-सौंदर्य
भाव-सौंदर्य – ज्ञान का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए कबीर कहते हैं कि मनुष्य को ज्ञान रूपी हाथी की सवारी सहज गलीची डालकर करना चाहिए। ऐसा कहते हुए यदि कुत्ता रूपी संसार उसकी आलोचना करता है तो मनुष्य को उसकी परवाह नहीं करना चाहिए। अर्थात् मनुष्य को ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। ऐसा करते हुए उसे आलोचना की परवाह नहीं करना चाहिए।
शिल्प-सौंदर्य-

  1. सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग है। इसमें ‘हस्ती’, ‘स्वान’, ‘ज्ञान’ आदि तत्सम शब्दों का प्रयोग है।
  2. तुकांत युक्त इस रचना में स्वर मैत्री अलंकार है।
  3. रचना में भक्ति रस की प्रधानता है।

सबद (पद)

प्रश्न 8.
मनुष्य ईश्वर को कहाँ-कहाँ हूँढ़ता फिरता है?
उत्तर:
मनुष्य ईश्वर को मंदिर, मसजिद, काबा, कैलाश, योग, वैराग्य तथा विविध पूजा पद्धतियों में ढूँढता फिरता है। कोई अपने देवता के मंदिर में जाता है, कोई मसजिद में जाता है। कोई उसे अपने तीर्थ स्थलों में खोजता है। कोई योग साधना या संन्यास में परमात्मा को खोजता है। कोई अन्य किसी साधना पद्धति को अपनाकर ईश्वर को खोजता है।

प्रश्न 9.
कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है?
उत्तर:
कबीर ने ईश्वर की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है-

  1. मनुष्य मंदिर, मस्जिद में पूजा-अर्चना करके, नमाज पढ़कर ईश्वर को प्राप्त करना चाहता है किंतु इससे ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती।
  2. मनुष्य विभिन्न देवालयों तथा धार्मिक स्थानों की यात्रा करता है, पर इससे ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती है।
  3. मनुष्य योग, वैराग्य जैसी क्रियाएँ करके ईश्वर को पाना चाहता है, पर यह व्यर्थ
  4. मनुष्य दिखावटी या आडंबरपूर्ण भक्ति करता है, परंतु इससे ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती है।

प्रश्न 10.
कबीर ने ईश्वर को ‘सब स्वाँसों की स्वाँस में क्यों कहा है?
उत्तर:
कबीर के अनुसार, ईश्वर घट-घट में व्याप्त है। वह साँस-साँस में समाया हुआ है। वह हर प्राणी के मन में विराजमान है।

प्रश्न 11.
कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से क्यों की?
उत्तर:
कबीर दास ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न करके आँधी से इसलिए की है क्योंकिसामान्य हवा धीरे-धीरे चलकर आसपास की वस्तुओं को प्रभावित नहीं कर पाती है। जबकि आँधी तेज गति से चलकर वस्तुओं की स्थिति में परिवर्तन कर देती है। इससे छोटी-छोटी वस्तुएँ, कूड़ा-करकटे, पत्तियाँ, घास-फूस उड़कर कहीं दूर चली जाती है। इसी प्रकार ज्ञान की आँधी आने से मनुष्य के मन पर पड़ा अज्ञान का पर्दा उड़ जाता है। मोह-माया, स्वार्थ आदि जैसी बुराइयाँ उड़कर कहीं दूर चली जाती हैं। शरीर से कपट रूपी कूड़ा-करकट उड़ जाता है। उसको मन सांसारिक बंधनों से मुक्त हो प्रभु की भक्ति में लीन हो जाता है।

प्रश्न 12.
ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
ज्ञान की आँधी के आने से भक्त के मन के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। उसके मन के भ्रम दूर हो जाते हैं। माया, मोह, स्वार्थ, धन, तृष्णा, कुबुद्धि आदि विकार समाप्त हो जाते हैं। इसके बाद उसके शुद्ध मन में भक्ति और प्रेम की वर्षा होती है जिससे जीवन में आनंद ही आनंद छा जाता है।

प्रश्न 13.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) हिति चित्त की वै बूंनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
(ख) आँधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।
उत्तर:
(क) यहाँ ज्ञान की आँधी के कारण मनुष्य मन पर पड़े प्रभाव के फलस्वरूप मनुष्य के स्वार्थ रूपी दोनों खंभे टूट गए, तथा मोह रूपी बल्ली भी गिर गई। इससे उसका कामना रूपी छप्पर नीचे गिर गया। उसके मन की बुराइयाँ नष्ट हो गईं। उसका मन साफ हो गया।
(ख) ज्ञान की आँधी के बाद मन प्रभु की भक्ति में रम जाता है। प्रभु भक्ति रूपी ज्ञान की वर्षा के कारण मन प्रेम रूपी जल से भीग जाता है और वह आनंदित हो जाता है। अर्थात् ज्ञान की प्राप्ति के बाद उसका मन शुद्ध हो जाता है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 14.
संकलित साखियों और पदों के आधार पर कबीर के धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 15.
निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए-

  1. पखापखी,
  2. अनत,
  3. जोग,
  4. जुगति,
  5. वैराग,
  6. निरपख

उत्तर:
        तद्भव शब्द                     तत्सम शब्द

  1. पखापखी                         पक्ष-विपक्ष
  2. अनत                              अनंत
  3. जोग                                योग
  4. जुगति                              युक्ति
  5. वैराग                               वैराग्य
  6. निरपख                            निरपेक्ष/निष्पक्ष

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Treasure Trove Poems Workbook Answers The Heart Of A Tree

Treasure Trove Poems and Short Stories Workbook Answers

Treasure Trove Poems Workbook Answers The Heart Of A Tree

The Heart Of A Tree Questions and Answers

Read the extract given below and answer the questions that follow :

1. What does he plant who plants a tree?
He plants a friend of sun and sky;
He plants the flag of breezes free;
The shaft of beauty, towering high;
He plants a home to heaven anigh;
For song and mother-croon of bird
In hushed and happy twilight heard-
The treble of heaven’s harmony-
These things he plants who plants a tree.

Question 1.
What does the poet mean by the personal pronoun ‘he’?
Answer:
In poet’s own words, the personal pronoun ‘he’ has been used here for the person who plants a tree. This pronoun does not actually mean any particular person, but anyone who plants a tree. This word therefore suggests anyone who adopts this as a practice.

Question 2.
What does the poet suggest when he says that a person who plants a tree, plants ‘a friend of sun and sky’ and ‘the flag of breezes free’?
Answer:
The poet uses these phrases for a tree planted by someone. Here, the poet wants to say that a tree is usually high enough to appear to be talking to the sky in all its brightness. The tree also directly receives the warmth and heat of the sunrays falling on it. Similarly, when the breezes or winds blow, we can notice their impact on the tree in the movement of its leaves and branches. This indirectly suggests the feelings of excitement and joy which we experience ourselves when we meet our friends after long time. Thus, the poet tries to establish an indirect connection between a tree planted by someone and some of the most significant components of Nature.

Question 3.
What is the phrase ‘The shaft of beauty, towering high’ used for?
Answer:
In the stanza given here, this phrase denotes the stem of a tree that is beautiful and goes up vertically showing its height. The stem becomes longer and denser as a tree grows up and matures. Moreover, it’s on the stem that twigs and branches grow with a lot of leaves, fruits and flowers. Thus, as the poet aptly observes, the stem not only accounts for the beauty of a tree, but also its height that makes it a veritable representative of vast and bounteous nature.

Question 4.
Based on the poet’s description here, what type Of tree is the poet referring to? Do you see such trees in your surroundings?
Answer:
The description of the tree given by the poet indicates that it must be a very tall and dense tree with many branches. Such trees are usually very old. In our surroundings, we see quite a few such trees, but they are becoming rarer now. A number of trees have been cut down or felled to accommodate concrete structures due to which we are deprived of their benefits.

Question 5.
What does the phrase ‘The treble of heaven’s harmony’ signify here?
Answer:
In this stanza, the poet speaks of three major advantages of planting a tree, which connect it to nature in a unique way. Firstly, it acts as a friend of sun and sky, due to its height and exposure to sunrays falling on it. Secondly, it acts as though it were a flag of the winds touching and stirring it occasionally. Thirdly, it offers shelter to birds that sing and croon in its lap with their families reflecting a sense of security and joy. Due to this, the tree appears to be a perfect messenger of ‘heaven’ as it is instrumental in bringing harmony on earth. The phrase The treble of heaven’s harmony’ precisely suggests the great significance of all that the tree does for the humankind.

2. What does he plant who plants a tree?
He plants cool shade and tender rain.
And seed and bud of days to be,
And years that fade and flush again;
He plants the glory of the plain;
He plants the forest’s heritage;
The harvest of a coming age;
The joy that unborn eyes shall see-
These things he plants who plants a tree.

Question 1.
Why does the poet equate the planting of a tree with the planting of ‘cool shade and tender rain’?
Answer:
As this stanza suggests, the tree that the poet refers to must be a huge tree with several branches laden full of twigs and leaves. A tree like this offers a shade to the comfort of wayfarers and passers-by. Moreover, when the raindrops fall on it, they lose their intensity and swiftness before touching the ground. Though these advantages may not be evident when someone plants a tree, they Eire revealed when the latter grows in size, volume and spread with the passage of time. That is why the poet feels that the planting of a tree is the same as planting ‘cool shade and tender rain’.

Question 2.
What does the phrase ‘seed and bud of days to be’ suggest here?
Answer:
The poet here speaks with the foresight of a visionary, capable of seeing the bright side of future due to the benefits that the planting of a tree may offer to the generations to follow. As the tree grows in size, and starts bearing flowers and fruits, its seeds and buds ‘will become visible in future.

Question 3.
Which phrases used in this stanza reflect that the poet has a futuristic perception of the tree that he is talking about?
Answer:
These phrases are ‘seed and bud of days to be’, ‘forest’s heritage’, the harvest of a coming age’ and ‘the joy that unborn eyes shall see’. Use of words like ‘seed’ and ‘bud’ in the first phrase clearly indicate that the poet sees in a tree the possibility of having many such trees in future, which will grow from them. As the number of trees will grow, they will give birth to a forest and will be thus seen as a heritage by the forthcoming generations. The third phrase suggests that future men and women will reap the benefits of the natural resources growing out of the tree.

Question 4.
Do you think that the poet’s perception of the benefits of planting a tree is realistic? Why?
Answer:
The poet’s perception is realistic to a large extent. No doubt, if a tree is planted in favourable climatic conditions and is looked after with a positive intent, it can be advantageous on all counts, for generations of people. However, in an age when a large quantum of natural resources is spoilt for material comfort and pleasure, and people are not keen to devote time to rearing trees, the poet’s perception sounds very idealistic.

Question 5.
How do trees account for the forest wealth of a nation?
Answer:
Trees account for the forest wealth of a nation by ensuring plenty harvest in the days to come. This is reinforced by the poet’s use of the phrase ‘the forest’s heritage’ for a tree. The poet wants to say that trees, besides keeping our environment healthy and clean, also yield a number of products such as fruits, flowers and other things that are good for health and are also beneficial from economic point of view.

3. What does he plant who plants a tree?
He plants, in sap and leaf and wood,
In love of home and loyalty
And far-cast thought of civic good-
His blessings on the neighborhood
Who in the hollow of His hand
Holds all the growth of all our land-
A nation’s growth from sea to sea
Stirs in his heart who plants a tree.

Question 1.
How does a person, who plants a tree, serve his nation?
Answer:
By planting a tree, a person contributes to the growth of his society. His contribution may not be as direct as that of a physician who treats his ailing compatriots, or a teacher who directs his pupils towards the task of nation building, but it’s still no less important. The practice of planting a tree keeps the social ambiance in good and healthy shape, and affects its future positively. That is how the person, who plants a tree, contributes his mite to the task of nation building.

Question 2.
Which fundamental values have been highlighted in this stanza? How is the practice of planting a tree responsible for promoting them?
Answer:
As the poet says, the person who plants a tree loves the humankind. This is because he is aware of the fact that the tree, he is planting is beneficial for everyone. Thus, it also suggests that he is a person who really cares for the growth of his kinsfolk and social surroundings. Due to his love for this practice, he also spreads the message of social peace, harmony and brotherhood.

Furthermore, the practice also suggests his concern for his nation’s growth, highlighting his patriotic character and spirit.

Question 3.
Briefly explain the concluding lines of this stanza. What does the poet want to say here?
Answer:
The concluding lines of the stanza highlights the significance of planting a tree as a great service to the nation. The poet feels that the man who plants a tree is, like a true patriot, who is genuinely concerned about the growth of his nation. As he is quite familiar with the advantages offered by a tree, he is able to link them with his nation’s growth which is his prime concern. This implies that it’s his love for his nation that actually propels and motivates him to adopt this practice.

Question 4.
How can this poem help in making a person as a good citizen?
Answer:
A person who plants trees becomes good citizen of his country because, by planting a tree, he brings joy and blessings to the neighbourhood. It suggests that the practice of planting trees reflects the humanistic idea of common good that would be a boon for man in general and the nation in particular.

Question 5.
Describe the alliteration been used by the poet in the last five lines of this stanza with example.
Answer:
In the last five lines of this stanza, the poet has used the literary device or figure of speech- alliteration. Alliteration signifies the occurrence of several words in a row having the same first consonant sound or similar sounding letter. Such words either come successively or one after the other, or they may be close together in a line or sentence. In the 6th and 7thlines, we have words like ‘hollow’, ‘His’, ‘hand’ and ‘hold’ all of which start with ‘h’.

Similarly, in the last two lines, we see the phrase ‘sea to sea’ followed by ‘stir’ with the same consonant sound ‘s’ in the beginning.

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