Author name: Prasanna

CBSE Class 12 Hindi विभिन्न माध्यमों के लिए पत्रकारीय लेखन और उसके विविध आयाम

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CBSE Class 12 Hindi विभिन्न माध्यमों के लिए पत्रकारीय लेखन और उसके विविध आयाम

पाठ से जनसंचार माध्यम

प्रश्न 1.
विभिन्न जनसंचार माध्यमों के वर्तमान प्रचलित रूप कौन-से हैं? इनके लिए लेखन के कौन-कौन से तरीके हैं?
उत्तर:
विभिन्न जनसंचार माध्यमों के वर्तमान प्रचलित रूप निम्नलिखित हैं-
1. प्रिंट माध्यम-समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ।
2. इलेक्ट्रॉनिक माध्यम-रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा, इंटरनेट ।

इनके लिए लेखन अलग-अलग तरीकों द्वारा किया जाता है। समाचार-पत्र और पत्र-पत्रिकाओं में लिखने की शैली अलग होती है जबकि रेडियो और टेलीविज़न के लिए अलग शैली होती है। माध्यम अलग-अलग होने के कारण उनकी आवश्यकताएँ भी अलग-अलग होती हैं। विभिन्न जनसंचार माध्यमों के लेखन के अलग-अलग तरीकों को जानना एवं समझना अत्यंत आवश्यक है।

इन माध्यमों के लेखन के समय बोलने, लिखने के साथ-साथ पाठकों, श्रोताओं और दर्शकों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाता है। हम रोज़ाना समाचार-पत्र पढ़कर टी० वी० देखकर और रेडियो सुनकर तथा साथ ही कभी-कभी इंटरनेट पर समाचार पढ़कर अथवा देखकर ही इस बात पर विचार कर सकते हैं कि जनसंचार के इन सभी प्रमुख माध्यमों में समाचार लेखन और प्रस्तुति में क्या अंतर है। अवश्य ही, इन सभी माध्यमों में समाचारों की लेखन-शैली, भाषा और प्रस्तुति में कई अंतर हैं। इंटरनेट पर पढ़ने, सुनने और देखने तीनों की सुविधा होती है। समाचार-पत्र केवल छपे हुए शब्दों का माध्यम है, रेडियो बोले हुए शब्दों का माध्यम है। टी० वी० पर आप देख भी सकते हैं।

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प्रश्न 2.
जनसंचार माध्यमों में प्रिंट माध्यम का क्या महत्व है?”
उत्तर:
प्रिंट अर्थात मुद्रित माध्यम जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे प्राचीन है। वास्तव में आधुनिक युग का आरंभ ही मुद्रण अर्थात छपाई के आविष्कार से हुआ। वैसे तो मुद्रण का आरंभ चीन से हुआ लेकिन इसके आविष्कार का श्रेय जर्मनी के गुटेनबर्ग को जाता है। छापाखाना अर्थात प्रेस के आविष्कार से जनता को काफ़ी लाभ हुआ। यूरोप में पुनर्जागरण के ‘रेनेसां’ के आरंभ में छापेखाने की महत्वपूर्ण भूमिका थी। भारत में प्रथम छापाखाना सन 1556 में गोवा में स्थापित हुआ।

इसकी स्थापना मिशनरियों ने धर्मप्रचार की पुस्तकें छापने के लिए की थी। इसके पश्चात मुद्रण तकनीक में ज्यादा बदलाव आया है और मुद्रित माध्यमों का विस्तार व्यापक रूप से हुआ है। मुद्रित माध्यमों के अंतर्गत समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि आते हैं, जिनका हमारे दैनिक जीवन में बहुत महत्व है। मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता उसमें छपे हुए शब्दों के स्थायित्व में है, जिसे आराम से धीरे-धीरे पढ़ सकते हैं।

समझ में न आने पर उसे दोबारा तब तक पढ़ सकते हैं, जब तक वह हमारी समझ में न आए। समाचार-पत्र अथवा पत्रिका पढ़ते समय यह आवश्यक नहीं कि उसे पहले पृष्ठ और पहली खबर से ही पढ़ना शुरू किया जाए। मुद्रित माध्यमों के स्थायित्व का एक लाभ यह है कि इसे लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। मुद्रित माध्यमों की दूसरी बड़ी विशेषता लिखित भाषा का विस्तार है। लिखित समाचार में भाषा, व्याकरण, वर्तनी और शब्दों का उपयुक्त प्रयोग किया जाता है। लिखे हुए को प्रकाशित करने तथा ज्यादा लोगों तक पहुँचाने के लिए प्रचलित लिखित भाषा का होना आवश्यक है, जिससे उसे अधिक लोग समझ सकें।

मुद्रित माध्यम की तीसरी विशेषता इसका चिंतन-विचार और विश्लेषण है, जिसके द्वारा गूढ़ एवं गंभीर बातें लिखी जा सकती हैं। साक्षरों के लिए मुद्रित माध्यम बहुत महत्वपूर्ण होते हैं किंतु निरक्षरों के लिए मुद्रित माध्यम व्यर्थ हैं। मुद्रित माध्यमों के लेखकों को – अपने पाठकों के भाषा-ज्ञान के साथ-साथ शैक्षिक ज्ञान एवं योग्यता का ध्यान रखना पड़ता है। मुद्रित माध्यम रेडियो, टेलीविजन एवं इंटरनेट की तरह तुरंत घटी घटनाओं को संचालित नहीं कर सकते। ये एक निश्चित समय पर प्रकाशित होती हैं। जिस घंटे में एक बार या साप्ताहिक पत्रिका सप्ताह में एक बार प्रकाशित होती है। कुछ अपवादों को छोड़कर समय-सीमा समाप्त होने के पश्चात कोई भी सामग्री प्रकाशन के लिए स्वीकार नहीं की जाती।

अत: मुद्रित माध्यमों के लेखकों एवं पत्रकारों को प्रकाशन की सीमा का ध्यान रखना पड़ता है। मुद्रित माध्यम के अंतर्गत छपनेवाले आलेख में सभी गलतियों और अशुद्धियों को दूर करके प्रकाशित किया जाता है। समाचार-पत्र अथवा पत्रिका में यह प्रयास किया जाता है कि कोई गलती या अशुद्धि प्रकाशित न हो जाए। इसके लिए समाचार-पत्र और पत्रिकाओं में संपादक के साथ एक पूरी संपादकीय टीम होती है, जिसका मुख्य उत्तर:दायित्व प्रकाशन के लिए जा रही सामग्री को गलतियों और अशुद्धियों से रहित प्रकाशित करने योग्य बनाना है।

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प्रश्न 3.
मुद्रित माध्यम की अपेक्षा रेडियो पर समाचार सुनने में क्या अंतर है?
उत्तर:
रेडियो श्रव्य माध्यम है। ध्वनि, स्वर और शब्दों के मेल के कारण रेडियो को श्रोताओं द्वारा संचालित माध्यम माना जाता है। इस कारण
रेडियो पत्रकारों को अपने श्रोताओं का पूरा ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि समाचार-पत्रों के पाठकों को अपनी पसंद से अपनी इच्छा से .. कभी भी और कहीं भी समाचार पढ़ने को मिल सकते हैं। लेकिन रेडियो के श्रोता को यह सुविधा प्राप्त नहीं होती। वह समाचार-पत्रों की तरह रेडियो समाचार बुलेटिन को कभी भी और कहीं से भी नहीं सुन सकता।

उसे बुलेटिन के प्रसारण समय का इंतज़ार करने के पश्चात शुरू से लेकर अंत तक सभी समाचारों को सुनना पड़ेगा। इस दौरान न तो वह इधर-उधर आ-जा सकता है और न ही वह शब्दकोश में अर्थ ढूँढ़ सकता है क्योंकि ऐसा करने पर बुलेटिन आगे निकल जाएगा। सकता है कि रेडियो में समाचार-पत्रों की तरह पिछले समाचार दोबारा सनने की सविधा नहीं होती। रेडियो एक रेखीय (लीनियर) माध्यम है। रेडियो की तरह दूरदर्शन भी एक रेखीय माध्यम है, जिसमें शब्दों और ध्वनियों की तुलना में दृश्यों एवं तस्वीरों का अधिक महत्व है।

प्रश्न 4.
रेडियो समाचार की संरचना किस पर आधारित होती है?
उत्तर::
रेडियो के लिए समाचार लेखन समाचार-पत्रों से भिन्न होते हैं। दोनों की प्रकृति अलग-अलग होती है। रेडियो समाचार की संरचना समाचार-पत्रों या टेलीविज़न की तरह उलटा पिरामिड (इंवर्टेड पिरामिड) शैली पर आधारित होती है। समाचार लेखन की सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण शैली उलटा पिरामिड-शैली है। 90 प्रतिशत समाचार या कहानियाँ इस शैली में लिखी जाती हैं। उलटा पिरामिडं-शैली में खबर के अत्यंत महत्वपूर्ण तथ्य को सबसे पहले लिखा जाता है। तत्पश्चात कम महत्वपूर्ण तथ्यों या खबरों को लिखा जाता है। इस शैली में कहानी की तरह क्लाइमेक्स अंत की जगह खबर के आरंभ में आ जाता है। इस शैली में कोई निष्कर्ष नहीं होता है।

उलटा पिरामिड-शैली के अंतर्गत समाचार को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-इंट्रो, बॉडी और समापन। समाचार में इंट्रो या लीड को हिंदी में मुखड़ा कहा जाता है। इसमें समाचार के मूल तत्व को आरंभ की दो-तीन पंक्तियों में लिखा जाता है। यह समाचार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। तत्पश्चात बॉडी में समाचार के विस्तृत तत्वों को घटते हुए क्रम में लिखते हैं। उलटा पिरामिड-शैली में कोई अंतर नहीं होता। आवश्यकता पड़ने पर समय और जगह की कमी को देखते हुए अंतिम पंक्तियों या अनुच्छेद को काटकर छोटा किया जा सकता है और समाचार को समाप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
रेडियो के लिए समाचार-लेखन की बुनियादी बातों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रेडियो के लिए समाचार लिखते समय कुछ बातें सदा मन में रखी जानी चाहिए। यह एक ऐसा माध्यम है जो केवल श्रव्यता पर आधारित है और समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए है। इसका प्रयोग शिक्षित-अशिक्षित सभी करते हैं।

(क) साफ़-सुथरी और टंकित कॉपी-रेडियो समाचार पढ़ने वाले वाचक या वाचिका को जो समाचार कॉपी दी जाती है, वह बिलकुल साफ़-साफ़ टंकित (Typed) होनी चाहिए ताकि वाचक/वाचिका को उसे पढ़ने में कोई दिक्कत न हो। यदि समाचार कॉपी टंकित और साफ़-सुथरी नहीं है तो उसे पढ़ने के दौरान वाचक/वाचिका के अटकने या ग़लत पढ़ने का खतरा रहता है। इससे श्रोता का ध्यान बँटता है और वह भ्रमित होता है। प्रसारण के लिए तैयार की गई कॉपी कंप्यूटर पर ट्रिपल स्पेस में टाइप किया जाना चाहिए। कॉपी के दोनों ओर पर्याप्त हाशिया छोड़ा जाना चाहिए। एक पंक्ति में अधिकतम 12-13 शब्द होने चाहिए।

पंक्ति के आखिर में कोई शब्द विभाजित नहीं होना चाहिए और पृष्ठ के आखिर में कोई लाइन अधूरी नहीं होनी चाहिए। समाचार कॉपी में कठिन और लंबे शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। उच्चारण में कठिन, संक्षिप्ताक्षर, अंक आदि नहीं लिखे जाने चाहिए। एक से दस तक के अंकों को शब्दों में तथा 11 से 999 तक अंकों में लिखा जाना चाहिए लेकिन लिखने की बजाए उन्चास लाख बारह हजार तीन सौ चालीस लिखा जाना चाहिए। ऐसा करने से वाचक/वाचिका को पढ़ने में कठिनाई नहीं आती।

समाचार लिखने वाले को न र और .जैसे संकेतों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। उसे इनके लिए प्रतिशत, रुपया और डॉलर शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। उसे दशमलव को उसके नज़दीकी पूर्णांक में लिखना चाहिए। वित्तीय संख्याओं को उनके नजदीकी पूर्णांक के साथ लिखना चाहिए। वैसे रेडियो समाचारों में आँकड़ों और संख्याओं का प्रयोग कम-से-कम करना चाहिए। रेडियो समाचार कभी भी संख्या से शुरू नहीं होना चाहिए। तिथियों को उसी प्रकार लिखना चाहिए जैसे हम बोलचाल में इस्तेमाल करते हैं।

(ख) डेडलाइन, संदर्भ और संक्षिप्ताक्षर का प्रयोग-रेडियो समाचार में अखबारों की तरह डेडलाइन अलग से नहीं होनी चाहिए बल्कि वह समाचार में ही गुंथी होनी चाहिए। उसमें आज, आज सुबह, आज दोपहर, आज शाम, बैठक कल होगी, कल हुई बैठक, इसी सप्ताह, अगले सप्ताह, पिछले सप्ताह, इस महीने, अगले महीने, इस साल, अगले साल, अगले सोमवार, पिछले रविवार आदि का इस्तेमाल करना चाहिए। संक्षिप्तकारों से सदा बचना चाहिए। बहुत प्रचलित संक्षिप्त अक्षरों का प्रयोग थोड़ा-बहुत किया जा सकता है जैसे–यू० एन० ओ०, सार्क, यूनिसेफ़, डब्ल्यू० टी० ओ०, एच० डी० एफ० सी०,आई० सी० आई० सी० आई बैंक आदि।

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प्रश्न 6.
टेलीविज़न का जनसंचार माध्यम में क्या महत्व है?
उत्तर:
टेलीविज़न जनसंचार माध्यमों में देखने और सुनने का माध्यम है। टेलीविज़न के लिए खबर या स्क्रिप्ट लिखते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शब्द परदे पर दिखाई देने वाले दृश्य के अनुकूल हों। दूरदर्शन स्क्रिप्ट लेखन प्रिंट और रेडियो माध्यम से भिन्न है। इसके द्वारा कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक समाचार बताया जाता है। दूरदर्शन के लिए समाचार दृश्यों के आधार पर लिखे जाते हैं। कैमरे से लिए गए शॉट्स को आधार बनाकर समाचार तैयार किए जाते हैं।

दूरदर्शन पर समाचार दो तरह से.पेश किए जाते हैं। इसका प्रारंभिक हिस्सा, जिसमें मुख्य समाचार होते हैं, रीडर या एंकर दृश्यों के बिना समाचार पढ़ता है। दूसरे हिस्से में पर्दे पर एंकर के स्थान पर समाचार से संबंधित दृश्य प्रस्तुत किए जाते हैं। अतः दूरदर्शन पर समाचार दो हिस्सों में विभाजित होते हैं। समाचार के साथ-साथ दृश्य प्रस्तुत होने के कारण दूरदर्शन (टेलीविज़न) का जनसंचार माध्यमों में महत्वपूर्ण स्थान है।

प्रश्न 7.
दूरदर्शन (टी०वी०) पर प्रसारित होनेवाली खबरों के विभिन्न चरण कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
किसी भी दूरदर्शन चैनल पर समाचार देने का मूल आधार लगभग वैसा ही होता है जैसा प्रिंट या रेडियो पत्रकारिता के क्षेत्र में होता है। वह आधार होता है सबसे पहले सूचना देना। दूरदर्शन में ये सूचनाएँ कई चरणों से होती हुई दर्शकों तक पहुँचती हैं, ये चरण निम्न हैं-

फ्लैश या ब्रेकिंग न्यूज – सर्वप्रथम कोई बड़ी खबर महत्वपूर्ण फ्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में उसी क्षण दर्शकों तक पहुँचाई जाती है। इसमें कम-से-कम शब्दों में महत्वपूर्ण समाचार दिया जाता है।

ड्राई एंकर – इसमें एंकर खबर के बारे में दर्शकों को कहाँ, क्या, कब और कैसे घटित दृश्यों को सीधे-सीधे बताता है। खबर के दृश्य मज़र न आने तक एंकर दर्शकों को रिपोर्टर से मिलाआनकारी पर आधारित सूचनाएँ पहुँचाता है।

फोन – इन-तत्पश्चात समाचार विस्तृत होते हैं और एकर रिपोर्टर से फोन के माध्यम से सूचनाएँ एकत्र करके दर्शकों तक पहुँचाई जाती है। रिपोर्टर घटना वाली जगह पर उपस्थित होता है और वहाँ से ज्यादा-से-ज्यादा जानकारियाँ लेकर दर्शकों को बताता है। एंकर विजुअल-घटना के दृश्य या विजुअल मिल जाने पर खबर लिखी जाती है। इस खबर की शुरुआत भी प्रारंभिक सूचना से होती है और बाद में इन विषयों पर प्राप्त दृश्य प्रस्तुत किए जाते हैं।

एंकर-बाइट-बाइट अर्थात कथन । दूरदर्शन पत्रकारिता में इसका बहुत महत्व है। दूरदर्शन में किसी भी समाचार को पुष्ट करने के लिए उससे संबंधित बाइट दिखाए जाते हैं। किसी घटना की सूचना और दृश्य से संबंधित व्यक्तियों का कथन दिखा और सुनाकर समाचार को प्रामाणिकता प्राप्त होती है।

लाइव-लाइव अर्थात किसी समाचार का घटना स्थल से सीधा प्रसारण। सभी चैनल इसी कोशिश में रहते हैं कि किसी भी घटित बड़ी घटना के दृश्य उसी समय दर्शकों तक सीधे प्रसारित किए जाएँ। इसके बारे में उस स्थान पर उपस्थित रिपोर्टर और कैमरामैन ओ० बी० वैन के माध्यम से घटना के बारे में सीधे दर्शकों को दिखाते और बताते हैं।

एंकर पैकेज-पैकेज किसी भी समाचार को संपूर्णता के साथ पेश करने का एक माध्यम है। इसमें संबंधित घटना के दृश्य, इससे जुड़े लोगों की बाइट, ग्राफ़िक्स के जरिए जरूरी सूचनाएँ आदि आते हैं। टेलीविज़न समाचार लेखन इन सभी चरणों को ध्यान में रखकर किया जाता है। आवश्यकता के अनुसार वाक्यों का प्रयोग किया जाता है। शब्द दृश्यों को जोड़ने का काम करते हैं और निहित अर्थों को सामने लाते हैं, जिससे खबर के सारे आशय प्रकट हो सकें।

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प्रश्न 8.
रेडियो और टेलीविज़न समाचार की भाषा और शैली के लिए अनिवार्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
रेडियो और टेलीविज़न का संबंध देश के हर स्तर के व्यक्ति से है। इनके श्रोता और दर्शक पढ़े-लिखे लोगों से निरक्षर तक और मध्यम वर्ग से लेकर किसान-मजदूर तक सभी हैं। रेडियो और टी० वी० को इन सभी की आवश्यकताओं को पूरा करना होता है इसलिए इनकी भाषा-शैली ऐसी होनी चाहिए जो सभी वर्गों और सभी स्तरों को सरलता से समझ आ सकती हो। साथ ही साथ र भाषा के स्तर और गरिमा के साथ भी कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए।

रेडियो और टेलीविज़न के समाचारों में भाषा और शैली संबंधी अग्रलिखित विशेषताएँ अनिवार्य रूप से होनी चाहिए बताता है आदि साइटें भी अच्छी हैं। ‘रीडिफ़ डॉटकॉम’, ‘इंडिया इंफोला इन’, ‘सिफ़ी’ जैसी कुछ साइटें भी हैं। ‘रीडिफ़ कुछ गंभीरता से काम कर रही है इसलिए इसे अच्छा कहा जा सकता है। वेबसाइट पर विशुद्ध पत्रकारिता आरंभ करने का श्रेय तहलका डॉटकॉम को जाता है।

(i) भाषा अति सरल होनी चाहिए।
(ii) वाक्य छोटे, सीधे और स्पष्ट लिखे जाने चाहिए।
(iii) भाषा में प्रवाहमयता होनी चाहिए।
(iv) भ्रामक शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
(v) तथा, एवं, अथवा, व, किंतु, परंतु, यथा आदि शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। इनकी जगह और, या, लेकिन आदि शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
(vi) गैर ज़रूरी विशेषणों, समासिक और तत्सम शब्दों, उपमाओं आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
(vii) मुहावरों का अधिक प्रयोग नहीं करना चाहिए।
(viii) एक वाक्य में एक ही बात कहनी चाहिए।
(ix) वाक्यों में कुछ टूटता या छूटता हुआ प्रभाव नहीं होना चाहिए।
(x) प्रचलित और सहज शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 9.
विभिन्न जनसंचार माध्यमों में इंटरनेट की क्या भूमिका है?
उत्तर:
इंटरनेट पत्रकारिता को ऑनलाइन पत्रकारिता, साइबर पत्रकारिता, वेब पत्रकारिता आदि नामों से भी जाना जाता है। जिन लोगों को चौबीसों घंटे इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है या जो लोग इंटरनेट के अभ्यासी हैं उन्हें अब कागज़ पर छपे हुए अखबार ताजे नहीं लगते। भारत में कंप्यूटर साक्षरता की दर दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। प्रत्येक वर्ष 50-55 फीसदी की रफ्तार से इंटरनेट कनेक्शनों की संख्या बढ़ती जा रही है। इंटरनेट पर एक ही क्षण में हम एक साथ कई खबरें पढ़ सकते हैं। .. इंटरनेट एक प्रकार का औजार है। इसे हम सूचना, मनोरंजन, ज्ञान, व्यक्तिगत और सार्वजनिक संवादों के आदान-प्रदान के लिए प्रयोग कर सकते हैं।

इंटरनेट जहाँ सूचनाओं के आदान-प्रदान का साधन है वहीं वह अश्लीलता, दुष्प्रचार और गंदगी फैलाने का भी माध्यम है। इंटरनेट पर पत्रकारिता का रूप प्रचलित हो चुका है। यह रूप औजार के तौर पर इस्तेमाल होता है अर्थात खबरों के संप्रेषण के लिए इंटरनेट का उपयोग होता है। रिपोर्टर अपनी खबर को एक जगह से दूसरी जगह ई-मेल के जरिए भेजता है। वह इसका प्रयोग समाचारों के संकलन, खबरों के सत्यापन और पुष्टिकरण के लिए भी करता है। इंटरनेट के माध्यम से चंद मिनटों में विश्वव्यापी जाल के भीतर से कोई भी पिछली पृष्ठभूमि खोजी जा सकती है। समय के साथ-साथ इसके शब्दकोश में वृद्धि होती जा रही है।

पहले एक मिनट में 80 शब्द एक जगह से दूसरी जगह भेजे जा सकते थे परंतु आज एक सेकिंड में 56 किलोबाइट अर्थात लगभग 70 हज़ार शब्द भेजे जा सकते हैं।

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प्रश्न 10.
इंटरनेट पत्रकारिता क्या है? इसके स्वरूप और इतिहास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इंटरनेट पर समाचार-पत्रों को प्रकाशित करना एवं समाचारों का आदान-प्रदान करना ही इंटरनेट पत्रकारिता है। इंटरनेट पर किसी भी रूप में समाचारों, लेखों, चर्चाओं, परिचर्चाओं, वाद-विवादों, फ़ीचर, झलकियों, डायरियों के माध्यम से अपने समय की धड़कनों को महसूस करना और दर्ज करना ही इंटरनेट पत्रकारिता है। प्रकाशन समूह और निजी कंपनियाँ इंटरनेट पत्रकारिता से जुड़ी हुई हैं। इं सूचनाओं को तत्काल उपलब्ध कराता है।

विश्व-स्तर पर इंटरनेट पत्रकारिता इस समय तीसरे दौर में है। पहला दौर 1982 से 1992 तक तथा दूसरा दौर 1993 से 2001 तक चला। तीसरा दौर 2002 से अब तक है। प्रारंभ में इंटरनेट का प्रयोग धरातल पर था। बड़े प्रकाशन । समूह समाचार-पत्रों की उपस्थिति सुपर इन्फार्मेशन हाइवे पर चाहते थे। .. .। इस दौरान कुछ चर्चित कंपनियाँ जैसे ए० ओ० एल० यानी अमेरिका ऑन लाइन सामने आई। यह दौर प्रयोगों का दौर था।

वास्तव में इंटरनेट पत्रकारिता की शुरुआत 1983 से 2002 के बीच हुई। इस समय में तकनीकी स्तर पर इंटरनेट का बहुत विकास हुआ। इसी बीच नई वेब भाषा एच० टी० एम० एल० (हाइपर टेक्स्ट मार्डअप लैंग्वेज) आई, इंटरनेट ई-मेल आया, इंटरनेट एक्सप्लोरर और नेटस्केप नाम से ब्राउजर ने इंटरनेट को सुविधा संपन्न और तेज रफ्तार बना दिया। न्यू मीडिया के नाम पर डॉटकॉम कंपनियाँ संपर्क में आईं।

इंटरनेट और डॉटकॉम चर्चा का विषय बन गए। इससे जनता रातों-रात अमीर बनने के सपने देखने लगी। जितनी तेजी के साथ ये कंपनियाँ उभरीं उतनी ही तेजी के साथ ये कंपनियाँ गिरी भी। सन 1996 से 2002 के बीच अमेरिका के पाँच लाख लोगों को डॉटकॉम की नौकरियों से धक्का लगा। विषय-सामग्री और पर्याप्त आर्थिक आधार की कमी के कारण लगभग डॉटकॉम कंपनियाँ बंद हो गईं। बड़े प्रकाशन समूहों ने इस दौरान स्वयं को नहीं गिरने दिया। जनसंचार के क्षेत्र में चाहे परिस्थितियाँ जैसी भी हों, सूचनाओं के आदान-प्रदान करने में इंटरनेट किसी से कम नहीं इसका महत्व हमेशा बना ही रहेगा। वास्तव में इंटरनेट पत्रकारिता का 2002 से शुरू हुआ तीसरा दौर ही वास्तविक अर्थों में टिकाऊ हो सकता है।

प्रश्न 11.
भारत में इंटरनेट पत्रकारिता विषय पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारत में इंटरनेट का आरंभ 1993 माना जा सकता है जब यहाँ इस क्षेत्र में अनेक प्रयोग किए गए। सन 2003 में इसका दूसरा दौर शुरू हुआ। डॉटकॉम का तूफ़ान आया पर जल्दी ही निकल गया। आज पत्रकारिता की दृष्टि से ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘हिंदू’, ‘ट्रिब्यून’, ‘स्टेट्समैन’, ‘पॉयनियर’, ‘इंडिया टुडे’, ‘आई० बी० एन०’, ‘जी न्यूज़,’ ‘आज तक’, ‘आउटलुक’ आदि साइटें भी अच्छी हैं। ‘रीडिफ़ डॉटकॉम’, ‘इंडिया इंफोला इन’, ‘सिफ़ी’ जैसी कुछ साइटें भी हैं। ‘रीडिफ़ कुछ गंभीरता से काम कर रही है इसलिए इसे अच्छा कहा जा सकता है। वेबसाइट पर विशुद्ध पत्रकारिता आरंभ करने का श्रेय तहलका डॉटकॉम को जाता है।

प्रश्न 12.
हिंदी नेट संसार पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
हिंदी में नेट पत्रकारिता का आरंभ ‘वेब दुनिया’ के साथ हुआ था। इंदौर के नई दुनिया समूह से प्रारंभ पोर्टल हिंदी का संपूर्ण पोर्टल है। हिंदी के समाचार-पत्र-‘हिंदुस्तान’, ‘जागरण’, ‘अमर उजाला’ ‘नई दुनिया’, ‘भास्कर’, ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘प्रभात खबर’, ‘राष्ट्रीय सहारा’ आदि ने वेब संस्करण आरंभ किए हैं, पर इस क्षेत्र में ‘बी० बी० सी०’ हिंदी की सर्वश्रेष्ठ साइट है।

हिंदी वेब पत्रिकाएँ चल रही हैं, अनुभति, अभिव्यक्ति, हिंदी नेस्ट, सराय आदि प्रशंसनीय काम कर रही हैं। सभी मंत्रालयों, विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों और बैंकों ने हिंदी अनुभाग आरंभ किए हैं। इससे हिंदी की ऑन लाइन पत्रकारिता का मार्ग तैयार हो रहा है। वास्तव में हिंदी की वेब पत्रकारिता अभी अपने शैशव काल में ही है। इसमें सबसे बड़ी समस्या हिंदी के फ़ॉन्ट की है। हमारे पास कोई ‘की-बोर्ड’ नहीं है। डायनमिक फ़ॉन्ट की अनुपलब्धता के कारण हिंदी की अधिकतर साइट्स खुलती ही नहीं हैं। इस समस्या से निपटने के लिए की-बोर्ड का मानकीकरण और बेलगाम फ़ॉन्ट पर नियंत्रण आवश्यक है।

पाठ से संवाद

प्रश्न  1.
नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर: के लिए चार-चार विकल्प दिए गए हैं। सटीक विकल्प पर / का निशान लगाइए __
CBSE Class 12 Hindi विभिन्न माध्यमों के लिए पत्रकारीय लेखन और उसके विविध आयाम 1

CBSE Class 12 Hindi विभिन्न माध्यमों के लिए पत्रकारीय लेखन और उसके विविध आयाम

प्रश्न  2.
विभिन्न जनसंचार माध्यमों-प्रिंट, रेडियो, टेलीविज़न, इंटरनेट से जुड़ी पाँच-पाँच खूबियों और खामियों को लिखते हुए एक तालिका तैयार करें।
उत्तर:
CBSE Class 12 Hindi विभिन्न माध्यमों के लिए पत्रकारीय लेखन और उसके विविध आयाम 2
CBSE Class 12 Hindi विभिन्न माध्यमों के लिए पत्रकारीय लेखन और उसके विविध आयाम 3
CBSE Class 12 Hindi विभिन्न माध्यमों के लिए पत्रकारीय लेखन और उसके विविध आयाम 4

प्रश्न 3.
इंटरनेट पत्रकारिता सूचनाओं को तत्काल उपलब्ध कराता है, परंतु इसके साथ ही उसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इंटरनेट आज की पत्रकारिता का मुख्य आधार बन चुका है पर वह समाज के सारे वर्गों को अनेक आधारों पर विकृत भी कर रहा है। इसमें दुनिया भर के सभी अच्छे-बुरे कार्य साफ़-स्पष्ट और विस्तारपूर्वक देखे-सुने जा सकते हैं। इसके कारण कच्ची बुद्धि का युवा वर्ग तेज़ी से अश्लीलता और नग्नता की दिशा में आगे बढ़ रहा है। उसके संस्कार विकृत होने लगे हैं। इससे अपराध जगत को नई दिशा प्राप्त हो रही है। अपराधी और आतंकवादी सरलता से सलाह-मशवरा कर दुनिया के किसी भी कोने में आतंक फैलाने का कार्य कर रहे हैं। काले धन का लेन-देन सरल हो गया है, पुस्तकीय ज्ञान की चोरी होने लगी है।

प्रश्न 4.
श्रोताओं या पाठकों को बाँधकर रखने की दृष्टि से प्रिंट माध्यम, रेडियो और टी० वी० में से सबसे सशक्त माध्यम कौन है? पक्ष-विपक्ष में तर्क दें।
उत्तर:
प्रिंट माध्यम, रेडियो और टी० वी० में से सबसे सशक्त माध्यम टी० वी० है। इसके लिए साक्षर होने की भी आवश्यकता नहीं है। यह दृश्य-श्रव्य आधार पर टिका हुआ है। मानव मन पर जितना प्रभाव देखने से पड़ता है, उतना प्रभाव सुनने या पढ़ने से नहीं पड़ता। यह पल-पल की घटना को दिखा देता है। यह मानव को वैसा ही करने को उकसाता है जैसा यह स्क्रीन पर दिखाता है। इसके लिए किसी शब्दकोश या विचार-विमर्श की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। इसका संप्रेषण अधिक प्रभावी होता है।

प्रश्न 5.
पाठ में दिए गए चित्रों को ध्यान से देखें और इसके आधार पर टी० वी० के लिए तीन अर्थपूर्ण संक्षिप्त स्क्रिप्ट लिखें।
उत्तर:
(i) पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यटकों की भीड़ तो लगी ही रहती है। वे वहाँ की झीलों को निहारते हैं। झीलों में नौका विहार करते हैं। जिस वातावरण में रहकर आनंद प्राप्त करते हैं, उसकी स्वच्छता का ज़रा भी ध्यान नहीं रखते। वे नौका में झील की सैर करते हुए पानी में ही गंदगी फेंकते रहते हैं। वे कागज़ के टुकड़े, पॉलीथीन, खाने के टुकड़े आदि इधर-उधर बिखराते रहते हैं। वे यह भी नहीं सोचते कि यदि वे स्वयं साफ़-स्वच्छ झील के जल में नौका विहार करना चाहते हैं तो औरों के लिए गंदगी क्यों फैलाते हैं।

(ii) जल हमारा जीवन है। इसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते। पर हम हैं कि जब तक यह हमें आसानी से मिलता रहता है हम । परवाह नहीं करते। घर, गली, मुहल्ले, स्कूल, कॉलेज, आदि में व्यर्थ बहता पानी अकसर दिखाई दे जाता है। लोग जल प्राप्त करने के लिए नल खोलते हैं पर जल ले लेने के बाद उसे बंद करना भूल जाते हैं। वे सोच लेते हैं कि उनका इसमें क्या रखना चाहिए कि जल राष्टीय संपत्ति से भी बढ़कर है। यह हमें जीवन प्रदान करता है। इसके बिना हम जी नहीं सकते। इसे व्यर्थ बहने से रोकना चाहिए। ऐसा करना अति आवश्यक है।

(iii) कितना बोझ है पुस्तकों का इन छोटे-छोटे बच्चों के कंधों पर। किसी भी स्कूल के पास पल-भर खड़े होकर देखो। जितना भार बच्चे का अपना नहीं होता, शायद उससे अधिक बोझ उनकी पीठ पर लदा होता है-पुस्तकों के रूप में। बच्चों की पढ़ाई का आरंभ तो खेल-कूद से होना चाहिए, न कि भारी-भरकम पुस्तकों के बोझ से। अनेक विकसित देश तो उनकी पढ़ाई खिलौनों, नाचने, गाने, और खेलने-कूदने से आरंभ करते हैं पर हमारे देश में स्कूल की शिक्षा के नाम पर उन्हें पुस्तकें ही परोसी जाती हैं। – इससे उनके मन में भय उत्पन्न होता है। उनके शारीरिक विकास की राह में रुकावट पैदा होती है। सरकार को ऐसी शिक्षा नीति बनानी चाहिए कि छोटे बच्चों के कंधे पर टँगा बस्ता कुछ हल्का हो।

पाठ से पत्रकारीय लेखन

प्रश्न 1.
पत्रकारीय लेखन क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न तरीके अपनाते हैं, जिसे पत्रकारीय लेखन कहते हैं। पत्रकारों के द्वारा यह कार्य प्राय: तीन तरीके से किया जाता है-पूर्णकालिक, अंशकालिक और फ्रीलांसर। पूर्णकालिक पत्रकार किसी समाचार संगठन से जुड़कर नियंत्रित वेतन प्राप्त करता है। अंशकालिक पत्रकार (स्ट्रिंगर) किसी समाचार संगठन के लिए निश्चित मानदेय पर काम करता है।

फ्रीलांसर पत्रकार किसी विशेष समाचार संगठन से नहीं होता। वह भुगतान के आधार पर अलग-अलग अख़बारों के लिए लिखता है। पत्रकारीय लेखन का संबंध विभिन्न घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों से होता है। यह कार्य कविता, कहानी, उपन्यास आदि के द्वारा पूरी तरह से संभव नहीं हो सकता क्योंकि इसमें तात्कालिकता और पाठकों की रुचियों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। पत्रकारीय लेखन में इस बात को सदा ध्यान में रखना चाहिए कि वह विशाल समुदाय के लिए लिख रहा है। उसे सदा सीधी-सादी और आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करना चाहिए। उसे कभी भी लंबे-लंबे वाक्य नहीं . लिखने चाहिए। उसे किसी भी अवस्था में अनावश्यक विशेषणों और उपमाओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

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प्रश्न 2.
समाचार कैसे लिखा जाता है?
उत्तर:
प्रायः संवाददाता या रिपोर्टर अख़बारों के लिए समाचार लिखते हैं। उनके द्वारा समाचार एक विशेष शैली में लिखे जाते हैं। अख़बारों में
अधिकतर सबसे महत्वपूर्ण तथ्य और जानकारियाँ सबसे पहले पैराग्राफ में लिखी जाती हैं। इसके बाद कम महत्वपूर्ण बातें तब तक दी जाती हैं जब तक समाचार खत्म नहीं हो जाता। इसे उलटा पिरामिड शैली कहते हैं।
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उलटा पिरामिड में समाचार का ढाँचा यह तरीका सबसे अधिक लोकप्रिय और उपयोगी माना जाता है। यह शैली कहानी-लेखन से उलटी है। इस शैली का आरंभ 19वीं शताब्दी में हुआ था पर इसका विकास अमेरिका के गृहयुद्ध में हुआ था।

प्रश्न 3.
अच्छे लेखन के लिए ध्यान में रखी जाने वाली महत्वपूर्ण बातों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अच्छे लेखन के लिए निम्नलिखित महत्वपूर्ण बातें ध्यान में रखनी चाहिए
(i) छोटे वाक्य लिखने चाहिए। मिश्र और संयुक्त वाक्य की तुलना में सरल वाक्य-संरचना को महत्व देना चाहिए।
(ii) सामान्य बोलचाल की भाषा और शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। अनावश्यक शब्दों के इस्तेमाल से बचना चाहिए।
(iii) शब्दों का सार्थक प्रयोग करना चाहिए।
(iv) अच्छा लिखने के लिए जाने-माने लेखकों की रचनाएँ ध्यान से पढ़नी चाहिए।
(v) लेखन में विविधता लाने के लिए छोटे वाक्यों के साथ-साथ कुछ मध्यम आकार के और कुछ बड़े वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए। इसके साथ-साथ मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग भी करना चाहिए।
(vi) अपने लिखे को दोबारा ज़रूर पढ़ना चाहिए और गलतियों के साथ-साथ अनावश्यक चीज़ों को हटा देना चाहिए।
(vii) लेखन में कसावट बहुत ज़रूरी है।
(viii) लिखते हुए यह ध्यान रखिए कि आपका उद्देश्य अपनी भावनाओं, विचारों और तथ्यों को प्रकट करना है न कि दूसरे को प्रभावित करना।
(ix) आपको पूरी दुनिया से लेकर अपने आसपास घटने वाली घटनाओं, समाज और पर्यावरण पर गहरी निगाह रखनी चाहिए। उन्हें इस तरह से देखना चाहिए कि अपने लेखन के लिए आप उससे विचारबिंदु निकाल सकें।
(x) आपमें तथ्यों को जुटाने और किसी विषय पर बारीकी से विचार करने का धैर्य होना चाहिए।

प्रश्न 4.
पत्रकारीय लेखन की परिभाषा लिखिए। यह कितने प्रकार के होते हैं? पत्रकार कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर:
समाचार-पत्र अथवा जनसंचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाते हैं। पाठकों को जागरूक और शिक्षित बनाने और उनका मनोरंजन करने के लिए लेखन के जिन विभिन्न रूपों का प्रयोग किया जाता है उन्हें पत्रकारीय लेखन कहते हैं। पत्रकार मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं
(i) पूर्णकालिक पत्रकार-पूर्णकालिक पत्रकार से तात्पर्य किसी समाचार संगठन में काम करने वाले नियमित वेतन-भोगी कर्मचारी से है।
(ii) अंशकालिक पत्रकार-अंशकालिक पत्रकार वह होता है जो किसी समाचार संगठन के लिए निश्चित मानदेय पर काम करता है।
(iii) फ्रीलांसर अर्थात स्वतंत्र पत्रकार-फ्रीलांसर पत्रकार किसी महत्वपूर्ण समाचार-पत्र से संबंधित नहीं होता। बल्कि वह समाचार-पत्रों में भुगतान के आधार पर लेख लिखता है।

प्रश्न 5.
समाचार-लेखन से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
समाचार-लेखन पत्रकारीय लेखन का जाना-पहचाना रूप है। साधारणतया समाचार-पत्रों में समाचार पूर्णकालिक और अंशकालिक पत्रकारों द्वारा लिखे जाते हैं, जिन्हें संवाददाता अथवा रिपोर्टर भी कहते हैंकासमाचार-पत्रों में प्रकाशित अधिकतर समाचारों के लिए एक विधि अपनाई जाती है। इन समाचारों में किसी भी समस्या, विचार तथा घटनाओं के महत्वपूर्ण तथ्य सूचना और उससे संबंधितासारी जानकारी को आरंभ में वाक्य खंडों में लिखा जाता है। उसके पश्चात वाक्य खंडों में से महत्वपूर्ण तथ्य और सूचना को प्रकाशित किया जाता है। इस प्रकार लिखे समाचार पाठकों तक पहुँचते हैं।

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प्रश्न  6.
उलटा पिरामिड-शैली से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उलटा पिरामिड-शैली समाचार लेखन की शैलियों में से एक है। यह शैली समाचार लेखन की विशेष शैली है जो सबसे लोक प्रसिद्ध उपयोगी और बुनियादी है। यह शैली कहानी अथवा कथा लेखन की शैली के बिलकुल विपरीत है। इसमें क्लाइमेक्स अंत में आता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य अथवा सूचना पिरामिड के नीचे के भाग में नहीं होते, अपितु इस शैली में पिरामिड को उलट दिया जाता है इसलिए इसे उलटा पिरामिड-शैली कहा जाता है।

उलटा पिरामिड-शैली को 19वीं शताब्दी के मध्य में प्रयोग में लाया गया था। परंतु इसका पूर्णतया विकास अमेरिका में गृहयुद्ध के अंतर्गत हुआ। इस दौरान संवाददाता अपनी खबरें टेलीग्राफ़, संदेशों के माध्यम से भेजते थे, जिसकी सेवाएँ महँगी होने के साथ-साथ अनियमित तथा दुर्लभ थीं। कई बार तकनीकी कारणों के कारण संवाददाताओं को किसी घटना का समाचार कहानी की तरह विस्तार से न देकर संक्षेप में देना पड़ता था। इस प्रकार उलटा पिरामिड-शैली विकसित हुई। धीरे-धीरे यह शैली लेखन की स्टैंडर्ड शैली बन गई। इस प्रकार इस शैली से लेखन एवं संपादन कार्य सुविधापूर्वक होने लगा।

प्रश्न 7.
समाचार लेखन के छह ककारों के बारे में संक्षेप में बताओ।
उत्तर:
किसी भी समाचार को लिखने के लिए छह प्रश्नों का उत्तर: आवश्यक माना जाता है। क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहाँ हुआ, कब हुआ, कैसे और क्यों हुआ? इन्हीं छह प्रश्नों का दूसरा नाम ककार है। इन्हीं छह ककारों को ध्यान में रखकर ही किसी घटना, समस्या और विचार आदि से संबंधित खबर लिखी जाती है। समाचार के आरंभ में जब पैराग्राफ़ लिखना शुरू किया जाता है तब शुरू की दो-तीन पंक्तियों में ‘क्या’, ‘कौन’, ‘कब’ और ‘कहाँ’? इन तीन या चार ककारों को आधार बनाकर समाचार लिखा जाता है।

उसके पश्चात समाचार के मध्य में और समापन से पूर्व ‘कैसे’ और ‘क्यों’ जैसे ककारों का उत्तर: दिया जाता है। इस तरह इन छह ककारों को ध्यान में रखकर समाचार लिखा जाता है। पहले चार ककारों का प्रयोग सूचना और तथ्यों के लिए किया जाता है। परंतु ‘कैसे’ और ‘क्यों’ ककारों द्वारा विवरणात्मक, व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक पहलुओं पर बल दिया जाता है। इस प्रकार समाचार लेखन की पूरी प्रक्रिया में इन छह ककारों का विशेष महत्व है।

प्रश्न 8.
फ़ीचर से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
समाचार-पत्रों में समाचारों के अतिरिक्त प्रकाशित होने वाले पत्रकारीय लेखन के फ़ीचर सबसे महत्वपूर्ण हैं। समाचार और फ़ीचर में पर्याप्त अंतर होता है। फ़ीचर का मुख्य लक्ष्य पाठकों को सूचना देने, उन्हें शिक्षित करने के साथ-साथ उनका मनोरंजन करना होता है। फ़ीचर पाठकों को उसी समय घटित घटनाओं से परिचित नहीं कराता, जबकि समाचार पाठकों को तात्कालिक घटनाओं से परिचित कराता है। फ़ीचर लेखन की शैली समाचार-लेखन की शैली से भी भिन्न होती है।

समाचार लिखते समय रिपोर्टर वस्तुनिष्ठता और तथ्यों की शुद्धता पर बल देता है। उसमें अपने विचारों को प्रकट करने का अवसर नहीं होता। लेकिन फ़ीचर में लेखक अपने विचार, भावनाएँ तथा दृष्टिकोण को व्यक्त कर सकता है। … फ़ीचर लेखन में उलटा पिरामिड शैली के स्थान पर कथात्मक शैली का प्रयोग होता है। फ़ीचर लेखन की भाषा समाचारों की अपेक्षा सरल, आकर्षक, रूपात्मक तथा मन को मोह लेने वाली होती है। फ़ीचर में समाचारों की अपेक्षा कम शब्दों का प्रयोग होता है। फ़ीचर समाचार रिपोर्ट से प्रायः दीर्घ होते हैं। समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं में 250 शब्दों से लेकर 2000 शब्दों तक के फ़ीचर प्रकाशित होते हैं।

एक आकर्षक, रोचक एवं अच्छे फ़ीचर के साथ पोस्टर, रेखांकन, ग्राफ़िक्स का होना आवश्यक है। फ़ीचर का विषय हलका एवं गंभीर कुछ भी हो सकता है। फ़ीचर एक पाठशाला के परिचय से लेकर किसी शैक्षणिक यात्रा पर भी केंद्रित हो सकता है। फ़ीचर एक ऐसा नुस्खा है जो ज्यादातर विषय एवं मुद्दे को ध्यान में रखकर उसे प्रस्तुत करते हुए दिया जाता है। फ़ीचर की इन्हीं विशेषताओं के कारण कुछ समाचारों को भी फ़ीचर शैली में प्रस्तुत किया जाता है।

प्रश्न 9.
विचारपरक लेखन की श्रेणी में किन-किन सामग्रियों का अध्ययन किया जाता है?
उत्तर:
समाचार-पत्रों में समाचार और फ़ीचर के अतिरिक्त विचारपरक सामग्री भी प्रकाशित होती है। कई समाचार-पत्रों की पहचान उनके वैचारिक तत्वों से होती है। समाचार-पत्रों में प्रकाशित होने वाले विचारात्मक लेखों से ही उस समाचार की पहचान होती है। समाचार-पत्रों में संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले लेख, टिप्पणियाँ, संपादकीय लेखन और स्तंभ लेखन इसी श्रेणी में आते हैं।

लेख-सभी समाचार-पत्रों में संपादकीय पृष्ठ पर सार्वजनिक मुद्दों पर वरिष्ठ पत्रकारों और उनके विषयों के विशेषज्ञों से संबंधित लेख प्रकाशित किए जाते हैं। प्रकाशित लेखों में किसी विषय या मुद्दे पर विस्तारपूर्वक चर्चा होती है। लेख में लेखकों के विचारों को महत्व दिया जाता है।

लेकिन ये विचार तथ्यों और सूचनाओं पर आधारित होने चाहिए। लेखक तथ्यों और सूचनाओं के विश्लेषण और तों के माध्यम से अपनी सलाह प्रस्तुत करता है। लेख लिखने के लिए काफ़ी तैयारी की आवश्यकता होती है। लेखक को किसी विषय पर लेख लिखने से पहले दूसरे लेखकों और पत्रकारों के विचार को ध्यान में रखकर लिखना चाहिए। हर लेखक की शैली निजी होती है। समाचार-पत्र और पत्रिकाओं में लेख लिखते समय शुरुआत ऐसे विषयों के साथ करनी चाहिए जिसके बारे में हमें अच्छी जानकारी हो। लेख का एक प्रारंभ, मध्य और अंत होता है। लेख का प्रारंभ आकर्षक बनाने के लिए किसी विषय के सबसे ताजा प्रसंग या घटनाक्रम का सबसे पहले विवरण करना चाहिए।

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उसके पश्चात उससे जुड़े अन्य पहलुओं को प्रस्तुत करना चाहिए। इस तरह लेख के अंतर्गत तथ्यों की सहायता से विश्लेषण करते हुए हम अपना मत प्रकट कर सकते हैं। टिप्पणियाँ-विचारपरक लेखन के अंतर्गत भिन्न-भिन्न टिप्पणियाँ भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका द्वारा समाचार-पत्रों की छवि को बढ़ाती रहती हैं। संपादकीय लेखन-संपादकीय लेखन को समाचार-पत्र की अपनी आवाज़ माना जाता है। संपादकीय के माध्यम से समाचार-पत्र किसी घटना, समस्या या मुद्दे के प्रति अपने विचार प्रकट करते हैं।

संपादकीय किसी विशेष व्यक्ति के विचार से संबंधित नहीं होता इसलिए इसे बिना किसी नाम के छापा जाता है। संपादकीय लिखने का उत्तर:दायित्व उस समाचार-पत्रों में काम करने वाले संपादक और उनके सहयोगियों का होता है।

विशेषकर समाचार-पत्रों में सहायक संपादक, संपादकीय लिखते हैं। किसी भी बाहरी लेखक या पत्रकार को संपादकीय लिखने की अनुमति नहीं होती। हिंदी के समाचार पत्रों में किन्हीं में तीन, किन्हीं में दो और किन्हीं में केवल एक संपादकीय प्रकाशित होता है। स्तंभ-लेखन-स्तंभ-लेखन विचारपरक लेखन का प्रमुख रूप है। जिन लेखकों की लेखन-शैली विकसित हो जाती है, उन लेखकों की लोकप्रियता को देखकर समाचार-पत्र उन्हें नियमित स्तंभ लिखने का उत्तर:दायित्व दे देते हैं।

स्तंभ का विषय और उनमें विचार लेखक अपनी इच्छानुसार चुन अथवा व्यक्त कर सकता है। स्तंभ में लेखक के विचार अभिव्यक्त होते हैं। स्तंभ की पहचान लेखकों के नाम पर स्तंभ इतने प्रसिद्ध हो जाते हैं कि समाचार-पत्र उनके कारण ही पहचाने जाते हैं। नए लेखकों की अपेक्षा पुराने लेखकों को स्तंभ लिखने का मौका ज्यादा मिलता है। स्तंभ जनमत के लिए दर्पण का कार्य करता है।

प्रश्न 10.
संपादक के नाम पत्र किस प्रकार लिखा जाता है?
उत्तर:
समाचार-पत्रों के संपादकीय पृष्ठ पर और पत्रिकाओं की शुरुआत में संपादक के नाम पाठकों के पत्र प्रकाशित किए जाते हैं। सभी समाचार-पत्रों का एक स्थायी स्तंभ होता है। यह पाठकों का निजी स्तंभ होता है। इस स्तंभ के माध्यम से समाचार-पत्र के पाठक विभिन्न मुद्दों पर अपने मत व्यक्त करने के साथ-साथ जन-समस्याओं को भी उठाते हैं। यह स्तंभ जनमत के लिए दर्पण का कार्य करता है। परंतु कई बार समाचार-पत्र पाठकों द्वारा व्यक्त किए गए विचारों से सहमत नहीं होते। यह स्तंभ नए लेखकों के लिए लेखन की
शुरुआत करने का अच्छा अवसर प्रदान करता है।

प्रश्न 11.
समाचार-लेखन में साक्षात्कार/इंटरव्यू की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाचार माध्यमों में साक्षात्कार का बहुत महत्व है। पत्रकार साक्षात्कार के माध्यम से ही समाचार, फ़ीचर, विशेष रिपोर्ट तथा दूसरे कई तरह के पत्रकारीय लेखन के लिए कच्ची सामग्री एकत्रित करते हैं। पत्रकारीय साक्षात्कार और सामान्य बोलचाल में यह अंतर होता है कि साक्षात्कार में एक पत्रकार किसी अन्य व्यक्ति से तथ्य, उसकी राय तथा भावनाएँ जानने के लिए प्रश्न पूछता है। एक सफल साक्षात्कार के लिए केवल ज्ञान का होना ज़रूरी नहीं, ज्ञान के साथ-साथ संवेदनशीलता, कूटनीति, धैर्य और साहस जैसे गुण भी होने चाहिए। एक अच्छे और कुशल साक्षात्कार के लिए आवश्यक है कि जिस विषय और जिस व्यक्ति के साथ साक्षात्कार करना हो उसके बारे में पर्याप्त जानकारी हो।

साक्षात्कार से क्या निकालना है इसके बारे में स्पष्ट रहना आवश्यक है। प्रश्न केवल वही पूछे जाने चाहिए जो समाचार-पत्र के एक आम पाठक के मन में हो सकते हैं। साक्षात्कार की अगर रिकार्डिंग करना संभव हो तो अच्छा है नहीं तो साक्षात्कार के समय नोट्स लेते रह सकते हैं। साक्षात्कार को लिखते समय दो तरीकों में से कोई भी एक तरीका सुविधानुसार अपनाया जा सकता है। साक्षात्कार को प्रश्न और फिर उत्तर: के रूप में लिखा जा सकता है या फिर उसे एक आलेख की तरह भी लिखा . जा सकता है।

प्रश्न 12.
विशेष रिपोर्ट किस प्रकार लिखी जाती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पत्र-पत्रिकाओं और अखबारों में प्राय: विशेष रिपोर्ट दिखाई देती हैं जो गहरी छानबीन, विश्लेषण और व्याख्या का परिणाम होती हैं।
इन्हें किसी विशेष समस्या, मुद्दे या घटना की छानबीन के बाद लिखा जाता है। यह लेखन-कार्य तथ्यों पर पूरी तरह से आधारित होता है। खोजी रिपोर्ट, इन-डेप्थ रिपोर्ट, विश्लेषणात्मक रिपोर्ट और विवरणात्मक रिपोर्ट में विशेष तथ्यों को सामने लाया जाता है, जो पहले उपलब्ध नहीं थे।

खोजी रिपोर्ट में प्राय:-भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को उजागर किया जाता है। इन-डेप्थ रिपोर्ट में किसी घटना, समस्या या मुद्दे को सामने लाया जाता है। विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में किसी घटना या समस्या से जुड़ी तथ्यात्मक व्याख्या की जाती है और विवरणात्मक रिपोर्ट में किसी घटना का बारीक और विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया जाता है। किसी भी विशेष रिपोर्ट के लेखन में निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान दिया जाना आवश्यक है

(क) विशेष रिपोर्ट का लेखन-कार्य उलटा पिरामिड-शैली में किया जाता है।
(ख) कभी-कभी रिपोर्ट को फ़ीचर-शैली में भी लिखा जाता है।
(ग) बहुत विस्तृत रिपोर्ट में उलटा पिरामिड और फ़ीचर शैली को कभी-कभी आपस में मिला लिया जाता है।
(घ) कई बार लंबी रिपोर्ट को शृंखलाबद्ध करके कई दिन छापा जाता है।
(ङ) रिपोर्ट की भाषा सरल, सहज और आम बोलचाल की होती है।

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पाठ से संवाद

प्रश्न 1.
किसे क्या कहते हैं?
(क) सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना को सबसे ऊपर रखना और उसके बाद घटते हुए महत्वक्रम में सूचनाएँ देना…
(ख) समाचार के अंतर्गत किसी घटना का नवीनतम और महत्वपूर्ण पहलू…..
(ग) किसी समाचार के अंतर्गत उसका विस्तार, पृष्ठभूमि, विवरण आदि देना…
(घ) ऐसा सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन; जिसके माध्यम से सूचनाओं के साथ-साथ मनोरंजन पर भी ध्यान ……. दिया जाता है… .
(ङ) किसी घटना, समस्या या मुद्दे की गहन छानबीन और विश्लेषण…
(च) वह लेख, जिसमें किसी मुद्दे के प्रति समाचार-पत्र की अपनी राय प्रकट होती है….
उत्तर:
(क) उलटा पिरामिड में समाचार का ढाँचा
(ख) क्लाईमेक्स
(ग) छह ककार
(घ) फ़ीचर
(ङ) विशेष रिपोर्ट
(च) संपादकीय

प्रश्न 2.
नीचे दिए गए समाचार के अंश को ध्यानपूर्वक पढ़िए
शांति का संदेश लेकर आए फ़जलुर्रहमान
पाकिस्तान में विपक्ष के नेता मौलाना फ़जलुर्रहमान ने अपनी भारत-यात्रा के दौरान कहा कि वह शांति व भाईचारे का संदेश लेकर आए – हैं। यहाँ दारुलउलूम पहुँचने पर पत्रकार सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि दोनों देशों के संबंधों में निरंतर सुधार हो रहा है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से गत सप्ताह नई दिल्ली में हुई वार्ता के संदर्भ में एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सरकार ने कश्मीर समस्या के समाधान के लिए 9 प्रस्ताव दिए हैं।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन पर विचार करने का आश्वासन दिया है। कश्मीर समस्या के संबंध में मौलाना साहब ने आशावादी रवैया अपनाते हुए कहा कि 50 वर्षों की इतनी बड़ी जटिल समस्या का एक-दो वार्ता में हल होना संभव नहीं है। लेकिन इस समस्या का समाधान अवश्य निकलेगा। प्रधानमंत्री के प्रस्तावित पाकिस्तान दौरे की बाबत उनका कहना था कि निकट भविष्य में यह संभव है और हम लोग उनका ऐतिहासिक स्वागत करेंगे। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के रिश्ते बहुत मज़बूत हुए हैं और प्रथम बार सीमाएँ खुली हैं, व्यापार बढ़ा है तथा बसों का आवागमन आरंभ हुआ है। (हिंदुस्तान से साभार)

(क) दिए गए समाचार में से ककार ढूँढ़कर लिखिए, जो ककार नहीं हैं उन्हें बताइए।
(ख) उपर्युक्त उदाहरण के आधार पर निम्नलिखित बिंदुओं को स्पष्ट कीजिए
• इंट्रो
• बॉडी
• सनातन
अभिव्यक्ति और माध्यम
(ग) उपर्युक्त उदाहरण का गौर से अवलोकन कीजिए और बताइए कि ये कौन-सी पिरामीड-शैली में है, और क्यों?
उत्तर:
(क) दिए गए समाचार में सभी छह ककार-क्या, कौन, कहाँ, कब, क्यों, कैसे-विद्यमान हैं।
क्या-शांति और भाईचारे का संदेश। ..
कौन-पाकिस्तान के विपक्ष के नेता मौलाना फ़जलुर्रहमान।
कहाँ-दारुलउलूम के पत्रकार सम्मेलन में।
कब-भारत यात्रा के दौरान।
क्यों-दोनों देशों के संबंधों में सुधार के लिए।
कैसे-शांति प्रस्तावों से।

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(ख)

  • इंट्रो-पाकिस्तान के विपक्ष के नेता मौलाना फ़जलुर्रहमान की भारत यात्रा पर शांति और भाईचारे का संदेश लेकर आना।
  • बॉडी-दोनों देशों के बीच संबंधों में निरंतर सुधार, पाकिस्तान सरकार का प्रस्ताव और आशावादी रवैया तथा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का उन पर विचार का आश्वासन।
  • समापन-दोनों देशों के मज़बूत रिश्तों के प्रति आशावान। …

(ग) यह उदाहरण उलटा पिरामिड-शैली में है। इसका आरंभ पाकिस्तान के विपक्ष के नेता के भारत आगमन से हुआ। जो मुखड़े के रूप में है। पाकिस्तान सरकार के कश्मीर समस्या के समाधान के लिए 9 प्रस्तावों पर विचार करने का आश्वासन और मौलाना साहब का आशावादी रवैया समाचार की बॉडी है। व्यापार बढ़ने और बसों के आवागमन के साधन को समापन कहेंगे।

प्रश्न 3.
एक दिन के किन्हीं तीन समाचार-पत्रों को पढ़िए और दिए गए बिंदुओं के संदर्भ में उनका तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
(क) सूचनाओं का केंद्र/मुख्य आकर्षण
(ख) समाचार का पृष्ठ एवं स्थान
(ग) समाचार की प्रस्तुति
(घ) समाचार की भाषा-शैली
उत्तर:
रविवार के दैनिक भास्कर, पंजाब केसरी और दैनिक जागरण को पढ़ा। उनका प्रश्नानुसार तुलनात्मक अध्ययन किया और निम्नलिखित निष्कर्ष पर पहुंचा।

(क) सूचनाओं का केंद्र/मुख्य आकर्षण
(i) दैनिक भास्कर-इसमें राजनीति, खेलकूद, धर्म-संस्कृति, मनोरंजन आदि विषयों को प्रस्तुत किया गया है। नगर से जुड़े तथा फ़िल्मी जगत से संबंधित विशेष आकर्षणों को इसमें स्थान दिया गया है।
(ii) पंजाब केसरी-इसमें राजनीति, समाज, खेलकूद, मनोरंजन, विश्व अवलोकन आदि को केंद्र में रखा गया है। नगर से जुड़े समाचार तथा फ़िल्मी जगत को स्थान दिया गया है। बच्चों के मनोरंजन की ओर ध्यान दिया गया है।
(iii) दैनिक जागरण-राजनीति, समाज, खेलकूद, मनोरंजन, यात्रा के साथ-साथ राज्य संबंधी समाचारों को केंद्र में रखा गया है। नगर से संबंधित समाचार हैं। संपादकीय पृष्ठ पर सजगता और ज्ञान-बोध को प्रमुखता दी गई है।

(ख) सूचनाओं का पृष्ठ एवं स्थान
(i) दैनिक भास्कर-सूचनाओं का केंद्र पृष्ठ 1, 4, 5, 10 और 14 हैं। पृष्ठ 12 और 13 खेल-समाचारों की सूचना के केंद्र हैं। इसके मुख्य आकर्षण वूल्मर हत्याकांड पर रचित रिपोर्ट, रामनवमी पर प्रस्तुत पृष्ठ, नॉलेज और स्टाइल पृष्ठ हैं। इसके अतिरिक्त रस रंग है। नगर से संबंधित सूचनाएँ और खबरें देने के लिए चार पृष्ठ का पत्र है।

(ii) पंजाब केसरी-सूचनाओं का केंद्र पृष्ठ 1, 3, 5, 7 और 14 हैं। पृष्ठ 12 और 13 खेल-समाचारों से भरे हुए हैं। राज्य समाचार, विश्व आलोकन, कारोबार और दर्पण से संबंधित पृष्ठ आकर्षक हैं। इसके अतिरिक्त रविवारीय अंक तथा जिंदगी है। नगर से संबंधित चार पृष्ठ का समाचार-पत्र है।

(iii) दैनिक जागरण-सूचनाओं का केंद्र पृष्ठ 1, 2, 5, 7, 9 और 10 हैं। पृष्ठ 12, 13, 14 पर खेल-समाचार हैं। पृष्ठ 3 पर राज्य से संबंधित समाचार है। पृष्ठ 7 राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समाचारों से संबंधित है, पृष्ठ 10 अर्थजगत से संबंधित है और इसमें पृष्ठ 11 पर भरोसा है। इसके अतिरिक्त ‘जागरण सिटी’ और ‘यात्रा’ से संबंधित 8 पृष्ठ अतिरिक्त हैं।

(ग) समाचार की प्रस्तुति-तीनों समाचार-पत्रों में समाचार प्रस्तुति सहज-स्वाभाविक रूप से की गई है। उनमें कोई विशेष अंतर नहीं है। सभी की तथ्यात्मकता के लिए रंग-बिरंगे चित्रों का प्रयोग किया गया है। सभी ने विभिन्न एजेंसियों से समाचार प्राप्त किए हैं और अपने-अपने संवाददाताओं से प्राप्त समाचारों को प्रकाशित किया है।

(घ) तीनों समाचार-पत्रों में खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है। तद्भव शब्दों के साथ तत्सम शब्दावली का प्रयोग है पर वे शब्द कठिन नहीं हैं। वाक्य बहुत लंबे-लंबे नहीं हैं। उनमें गतिशीलता है। भाषा-शैली भारी-भरकम नहीं है।

प्रश्न 4.
अपने विद्यालय और मुहल्ले के आसपास की समस्याओं पर नजर डालें; जैसे पानी की कमी, बिजली की कटौती, खराब सड़कें, सफ़ाई की दुर्व्यवस्था। इनमें से किन्हीं दो विषयों पर रिपोर्ट तैयार करें और अपने शहर के अख़बार में भेजें।
उत्तर:
(क) पानी की कमी-जून का महीना है। सूर्य देवता दिन-भर आसमान से धूप बरसाते हैं और नगर में जनता पानी के लिए तरस रही है। पूरा सप्ताह बीत गया है कि नगर के किसी भी क्षेत्र में चौबीस घंटे में दो घंटे से अधिक पानी नलों से नहीं टपका। . जब एक-दो घंटों के लिए पानी आता भी है वह इतना कम होता है कि सारे दिन की आवश्यकता के लिए उसे इकट्ठा ही नहीं किया जा सकता। संपन्न और मध्यवर्गीय लोगों ने बिजली की मोटरें लगवा रखी हैं। सारा पानी तो वे ही खींच लेती हैं। पीने के लिए भी पानी प्राप्त नहीं हो पाता। कुछ बस्तियों ने निगम में टैंकरों से पानी भिजवाना आरंभ अवश्य किया है पर वहाँ भी एक अनार सौ बीमार वाली बात हो रही है। हाँ, इतना अवश्य है कि पीने के लिए एक-दो बाल्टी पानी मिल जाता है। इतनी गर्मी में नहाना भी कठिन हो गया है। घरों में लगे पौधे तो सूख ही गए हैं।

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(ख) बिजली की कटौती-आजकल इतनी गर्मी है कि दोपहर के समय घर से बाहर पैर निकालना भी कठिन लगता है और ऊपर से बिजली की भारी कटौती ने नाक में दम कर दिया है। रात भर बिजली नहीं आती। टपटप गिरता पसीना और मच्छरों की धूं-धूं से सारा नगर परेशान है। दिन भर परिश्रम करने वाले लोग कुछ घंटे सोकर थकान दूर करना चाहते हैं। पर बिजली की .. कटौती के कारण वे ऐसा कर नहीं पाते। जिन लोगों ने इंवर्टर लगाए हुए हैं वे भी कुछ घंटे बाद दाएँ-बाएँ देखने के लिए मजबूर.. हो जाते हैं। क्योंकि बिजली के लंबे कट के कारण बेकार हो जाते हैं। ए० सी० और कूलर तो दिखावे के लिए ही रह गए हैं। फ्रिज न चल पाने के कारण रसोई का बहुत-सा सामान रोज ही खराब हो जाता है। रात के समय सड़कें और गलियाँ अंधकार में डूबी रहती हैं। इससे दुर्घटनाएँ तो होती ही हैं साथ ही चोरियों की संख्या बढ़ गई है।

(ग) खराब सड़कें-कहने को तो हमारे नगर को राज्य के सबसे सुंदर नगरों में गिना जाता है पर वह तब तक ही सुंदर है जब तक जाए। हमारे नगर की 80% सड़कें टूटी-फूटी हैं। रेलवे रोड पर तो इतने गहरे गड्ढे हैं कि उनमें ट्रक-बस तक उछल जाते हैं। उन्हें भी धीमी गति से चलना पड़ता है। स्कूटर-मोटरसाइकिल वाले तो वहाँ प्राय: गिरते ही रहते हैं। पता नहीं, कितने बेचारे अब तक इस कारण जख्मी होकर अपना इलाज करवा रहे हैं। बारिश आ जाने के बाद इन गड्ढों में पानी भर जाता है तब तो समस्या और भी बढ़ जाती है। पता ही नहीं लगता कि कहाँ सड़क टूटी हुई और कहाँ नहीं। हमारे नगर की सड़कें तो बिलकुल चंद्रमा की सतह जैसी गड्ढों से भरी हुई हैं। कॉर्पोरेशन इसे हर वर्ष दिखावे के लिए ठीक कराती है, इसके गड्ढों को भरवाती है जो एक-डेढ़ महीने बाद पहले जैसे ही हो जाते हैं। पता नहीं राज्य सरकार कब जागेगी और हमारी सड़कों को फिर से बनवाएगी।

(घ) सफ़ाई की दुर्व्यवस्था-मैं जिस सरकारी विद्यालय में पढ़ती हूँ वहाँ शायद सफ़ाई हुए महीनों बीत चुके हैं। कहते हैं कि हमारे स्कूल में दो सफाई कर्मचारी हैं पर मैंने तो उन्हें कभी नहीं देखा। पता नहीं वे कब आते हैं, कब सफ़ाई करते हैं? विद्यालय में एक छोटा-सा शौचालय है जिससे उठने वाली दुर्गंध विद्यालय के मैदान में दूर तक सदा फैली रहती है। शौचालय में नाक को बंद करके पाँव रखना भी साहस का काम लगता है। वहाँ जाने की ज़रा भी इच्छा नहीं होती पर मजबूरी में कभी-कभी जाना ही पड़ता है। वहाँ जाने पर तो मितली-सी होती है। विद्यालय के सारे कमरे गंदे हैं। छतें और दीवारें मकड़ी के जालों से भरे हैं।

सभी जगह धूल की मोटी परत जमी हुई है। जब हम अपनी अध्यापिका से सफ़ाई के बारे में कहती हैं तो झट से कहती हैं-‘यह मेरा काम नहीं है। तुम पढ़ो। उस तरफ मत ध्यान दो।’ पर हम क्या करें? गंदगी में हमारा मन बैठने को नहीं करता। सफ़ाई में भगवान बसते हैं। हमारे विद्यालय से तो भगवान कोसों दूर रहते होंगे। पता नहीं हमारे प्रधानाध्यापक का ध्यान इस ओर कब जाएगा?

प्रश्न 5.
किसी क्षेत्र विशेष से जुड़े व्यक्ति से साक्षात्कार करने के लिए प्रश्न-सूची तैयार कीजिए, जैसे
• संगीत/नृत्य
• चित्रकला
• शिक्षा
• अभिनय
• साहित्य
• खेल
उत्तर:
एक साहित्यकार से साक्षात्कार करने के लिए प्रश्नों की सूची-..
(i) आप साहित्य किसे मानते हैं ?
(ii) आप साहित्य की किस विधा से जुड़कर अपने भाव व्यक्त करते हैं ?
(iii) कविता क्या है?
(iv) आपने कविता को ही अन्य विधाओं की अपेक्षा अधिक महत्व क्यों दिया?
(v) आपकी कविता के सामान्य रूप से विषय कौन-कौन से होते हैं ?
(vi) क्या आप फरमाइशी कविता भी लिखते हैं ?
(vii) फ़रमाइशी कविता लिखने में क्या कठिनाइयाँ आती हैं ?
(viii) आप छंदरहित कविता ही क्यों लिखते हैं ?
(ix) पुरानी कविता से आपकी कविता किस आधार पर भिन्न है ? ….
(x) क्या प्रकृति ने आपकी कविता को प्रभावित किया है ?
(xi) प्रकृति का कौन-सा रूप आपको सबसे अधिक प्रभावित करता है?
(xi) आप अपनी कविता से समाज को क्या देना चाहते हैं ?
(xiii) क्या आपको कोई सरकारी/गैर-सरकारीपुरस्कार प्राप्त हुआ है ?
(xiv) आपकी कितनी पुस्तकें अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं ?
(xv) आप अपने पाठकों को क्या संदेश देना चाहेंगे?

प्रश्न 6.
आप अख़बार के मुख पृष्ठ पर कौन-से छह समाचार शीर्षक सुर्खियाँ (हेडलाइन) देखना चाहेंगे? उन्हें लिखिए।
उत्तर: :
(i) राजनीति-देश के नेता भ्रष्टाचार से बहुत दूर।
(ii) समाज-कल्याण-पूँजीपतियों ने जिम्मा उठाया अनाथ बच्चों के पालन-पोषण का।
(iii) मानवीयता-आतंकवादी ने मौत के मुंह से बचाया एक बच्चे को।
(iv) खेलकूद-भारत विश्व क्रिकेट कप के फाइनल में।
(v) समाज की समस्याएँ-देश से बेरोजगारी की समस्या समाप्त।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: एक-दो पंक्तियों में दीजिए

प्रश्न 1.
मुद्रण माध्यम के अंतर्गत कौन-कौन से माध्यम आते हैं ?
उत्तर:
मुद्रण माध्यम के अंतर्गत समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि आते हैं।

प्रश्न 2.
फ्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ का क्या आशय है?
उत्तर::
जब कोई विशेष समाचार सबसे पहले दर्शकों तक पहुँचाया जाता है तो उसे फ्लैश अथवा ब्रेकिंग न्यूज़ कहते हैं।

प्रश्न: 3.
ड्राई एंकर क्या है?
उत्तर:
ड्राई एंकर वह होता है जो समाचार के दृश्य नज़र नहीं आने तक दर्शकों को रिपोर्टर से मिली जानकारी के आधार पर समाचार

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प्रश्न 4.
फोन-इन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
एंकर का घटनास्थल पर उपस्थित रिपोर्टर से फ़ोन के माध्यम से घटित घटनाओं की जानकारी दर्शकों तक पहुँचाना फ़ोन-इन कहलाता है।

प्रश्न 5.
लाइव से क्या आशय है?
उत्तर:
किसी समाचार का घटनास्थल से दूरदर्शन पर सीधा प्रसारण लाइव कहलाता है।

प्रश्न 6.
जनसंचार के प्रमुख माध्यम कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
जनसंचार के प्रमुख माध्यम समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ

प्रश्न 7.
इंटरनेट पर समाचार से संबंधित क्या सुविधाएँ उपलब्ध हैं ?
उत्तर:
इंटरनेट पर समाचार पढ़ने, सुनने और देखने की तीनों सुविधाएँ उपलब्ध हैं।

प्रश्न 8.
मुद्रित माध्यमों की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
मुद्रित माध्यमों को सुरक्षित रख सकते हैं। इन्हें जब चाहे और जैसे चाहे पढ़ा जा सकता है। इनसे लिखित भाषा का विस्तार होता है। इसमें गूढ़ और गंभीर विषयों पर लिखा जा सकता है।

प्रश्न 9.
रेडियो कैसा जनसंचार माध्यम है ? इसमें किसका मेल होता है?
उत्तर:
रेडियो श्रव्य माध्यम है। इसमें ध्वनि, स्वर और शब्दों का मेल होता है।

प्रश्न 10.
रेडियो समाचार-लेखन के लिए आवश्यक बिंदु क्या हैं?
उत्तर::
रेडियो समाचार की समाचार कॉपी साफ़-सुथरी और टंकित होनी चाहिए।

प्रश्न 11.
दूरदर्शन जनसंचार का कैसा माध्यम है ?
उत्तर:
दूरदर्शन जनसंचार माध्यमों में देखने और सुनने का माध्यम है।

प्रश्न 12.
रेडियो और दूरदर्शन समाचार की भाषा-शैली कैसी होनी चाहिए?
उत्तर:
तर भाषा अत्यंत सरल होनी चाहिए। वाक्य छोटे, सीधे और स्पष्ट हों। भाषा प्रवाहमयी तथा भ्रामक शब्दों से रहित हो। एक वाक्य में एक
बात कही जाए। मुहावरों, सामाजिक भाषा, अप्रचलित शब्दों, आलंकारिक शब्दावली आदि प्रयोगों से बचना चा

प्रश्न 13.
इंटरनेट पत्रकारिता को अन्य किन नामों से जाना जाता है?
उत्तर:
इंटरनेट पत्रकारिता को ऑन लाइन पत्रकारिता, साइबर पत्रकारिता तथा वेब पत्रकारिता के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 14.
इंटरनेट पत्रकारिता क्या है?
उत्तर:
इंटरनेट पर समाचार-पत्रों को प्रकाशित करना तथा समाचारों का आदान-प्रदान करना इंटरनेट पत्रकारिता कहलाता है।

प्रश्न 15.
इंटरनेट पत्रकारिता के कितने दौर हुए हैं?
उत्तर:
इंटरनेट पत्रकारिता के तीन दौर हुए हैं। पहला दौर 1982 से 1992 तक, दूसरा दौर 1993 से 2001 तक और तीसरा और 2002 से शुरू हुआ है।

प्रश्न 16.
भारत में इंटरनेट का आरंभ कब हुआ था?
उत्तर:
भारत में इंटरनेट का आरंभ सन 1993 में हुआ था।

प्रश्न 17.
वेबसाइट पर विशुद्ध इंटरनेट पत्रकारिता आरंभ करने का श्रेय भारत में किसे दिया जाता है?
उत्तर:
भारत में इंटरनेट पर विशुद्ध पत्रकारिता आरंभ करने का श्रेय ‘तहलका डॉट काम’ को दिया जाता है।

प्रर 18.
इंटरनेट पत्रकारिता आजकल बहुत लोकप्रिय क्यों है?
उत्तर:
इंटरनेट पत्रकारिता से न केवल समाचारों का संप्रेषण, पुष्टि, सत्यापन होता है बल्कि समाचारों के बैकग्राउंडर तैयार करने में तत्काल सहायता मिलती है। इसलिए यह आजकल बहुत लोकप्रिय है।

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प्रश्न 19.
पत्रकारीय लेखन में किस बात का सबसे अधिक ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
पत्रकारीय लेखन आम लोगों को ध्यान में रखकर सीधी-सादी आम बोलचाल की भाषा में होना चाहिए।

प्रश्न 20.
उलटा पिरामिड-शैली क्या है?
उत्तर:
इसमें सबसे पहले महत्वपूर्ण तथ्य तथा जानकारियाँ दी जाती हैं तथा बाद में कम महत्वपूर्ण बातें देकर समाप्त कर दिया जाता है। इसकी सूरत उलटे पिरामिड जैसी होने के कारण इसे उलटा पिरामिड-शैली कहते हैं।

प्रश्न 21.
पूर्णकालिक पत्रकार किसे कहते हैं?
उत्तर:
पूर्णकालिक पत्रकार किसी समाचार-संगठन में काम करने वाला नियमित वेतन भोगी कर्मचारी होता है।

प्रश्न 22.
अंशकालिक पत्रकार किसे कहते हैं? (C.B.S.E., 2018)
उत्तर:
अंशकालिक पत्रकार वह होता है जो किसी समाचार-संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय के आधार पर काम करता है।

प्रश्न 23.
फ्रीलांसर पत्रकार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
फ्रीलांसर पत्रकार किसी समाचार-पत्र से संब

प्रश्न 24.
समाचार-लेखन के कितने ककार हैं? उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
समाचार-लेखन के छह ककार हैं। ये हैं-क्या, कौन, कब, कहाँ, कैसे और क्यों।

प्रश्न 25.
विचारपरक लेखन में क्या-क्या आता है?
उत्तर:
विचारपरक लेखन में लेख, टिप्पणियों, संपादकीय तथा स्तंभ लेखन आता है।

प्रश्न 26.
उलटा पिरामिड में समाचार का ढाँचा कैसा होता है?
उत्तर:
इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य अथवा सूचना को सबसे पहले लिखा जाता है और इसके बाद घटते हुए महत्वक्रम में लिखा जाता है।

प्रश्न 27.
‘क्लाईमेक्स’ का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
समाचार के अंतर्गत किसी घटना का नवीनतम और महत्वपूर्ण पक्ष क्लाईमेक्स कहलाता है।

प्रश्न 28.
फ़ीचर किसे कहते हैं ?
उत्तर:
किसीसुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन को फ़ीचर कहते हैं, जिसके माध्यम से सूचनाओं के साथ-साथ मनोरंजन पर भी ध्यान दिया जाता है।

प्रश्न 29.
विशेष रिपोर्ट क्या होती है?
उत्तर:
किसी घटना, समस्या या मुद्दे की गहन छानबीन और विश्लेषण को विशेष रिपोर्ट कहते हैं।

प्रश्न 30.
संपादकीय क्या है?
उत्तर:
वह लेख जिसमें किसी मुद्दे के प्रति समाचार-पत्र की अपनी राय प्रकट होती है, संपादकीय कहलाता है।

प्रश्न 31.
विशेष लेखन क्या है?
उत्तर:
किसी विशेष विषय पर सामान्य लेखन से डटकर लिखा गया लेख विशेष लेखन कहलाता है।

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प्रश्न 32.
बीट रिपोर्टिंग क्या होती है ?
उत्तर:
जो संवाददाता केवल अपने क्षेत्र विशेष से संबंधित रिपोर्टों को भेजता है, वह बीट रिपोर्टिंग कहलाती है।

प्रश्न 33.
व्यापार-कारोबार की रिपोर्टिंग की भाषा कैसी होनी चाहिए?
उत्तर:
व्यापार-कारोबार से संबंधित रिपोर्टिंग में व्यापार जगत में प्रचलित शब्दावली का प्रयोग होना चाहिए।

प्रश्न 34.
समाचार-पत्रों में विशेष लेखन के क्षेत्र कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
समाचार-पत्रों में विशेष लेखन के क्षेत्र व्यापार जगत, खेल, विज्ञान, कृषि, मनोरंजन, शिक्षा, स्वास्थ्य, अपराध, कानून आदि हैं।

प्रश्न 35.
समाचार-पत्रों के लिए सूचनाएँ प्राप्त करने के स्त्रोत कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
समाचार-पत्रों के लिए सूचनाएँ विभिन्न मंत्रालयों, प्रेस कॉफ्रेंसों, विज्ञप्तियों, साक्षात्कारों, सर्वे, जाँच-समितियों, संबंधित विभागों, इंटरनेट, विशिष्ट व्यक्तियों, संस्थाओं आदि से प्राप्त की जाती हैं।

प्रश्न 36.
भारत में विज्ञान के क्षेत्र में कौन-सी संस्थाएँ कार्य कर रही हैं ?
उत्तर:
भारत में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन, नेशनल रिसर्च डेवल्पमेंट कार्पोरेशन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, भाभा परमाणु संस्थान, राष्टीय भौतिकी शोध संस्थान आदि संस्थाएं विज्ञान के क्षेत्र में काम कर रही हैं।

प्रश्न 37.
पर्यावरण से संबंधित पत्रिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
पर्यावरण एबस्ट्रेक्ट, डाउन टू अर्थ, नेशनल ज्योग्रॉफ़ी।

प्रश्न 38.
खोजी पत्रकारिता से क्या आशय है ?
उत्तर:
खोजी पत्रकारिता में पत्रकार मौलिक शोध और छानबीन के द्वारा ऐसी सूचनाएँ तथा तथ्य उजागर करता है जो सार्वजनिक रूप
से पहले उपलब्ध नहीं थे।

प्रश्न 39.
भारत में पहली छापाखाना कहाँ और कब खुला था?
उत्तर:
भारत में पहला छापाखाना गोआ में सन 1556 ई० में खुला था।

प्रश्न 40.
पत्रकारीय लेखन में पत्रकार को किन दो बातों से बचना चाहिए?
उत्तर:
पत्रकारीय लेखन में पत्रकार को कभी भी लंबे-लंबे वाक्य नहीं लिखने चाहिए। उसे किसी भी अवस्था में अनावश्यक विशेषणों और उपमाओं का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए।

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प्रश्न 41.
मुद्रण का प्रारंभ कहाँ से माना जाता है?
उत्तर:
मुद्रण का प्रारंभ चीन से माना जाता है।

प्रश्न 42.
वर्तमान छापेखाने के आविष्कार का श्रेय किसे है?
उत्तर:
वर्तमान छापेखाने का श्रेय जर्मनी के गुटेनबर्ग को है।

प्रश्न 43.
जनसंचार का मुद्रित माध्यम किनके लिए किसी काम का नहीं है?
उत्तर:
निरक्षरों के लिए जनसंचार का मुद्रित माध्यम किसी काम का नहीं है।

प्रश्न 44.
साप्ताहिक पत्रिका सप्ताह में कितनी बार प्रकाशित होती है?
उत्तर:
साप्ताहिक पत्रिका सप्ताह में एक बार प्रकाशित होती है।

प्रश्न 45.
रेडियो में क्या सुविधा नहीं है?
उत्तर:
रेडियो में अखबार की तरह पीछे लौटकर सुनने की सुविधा नहीं है।

प्रश्न 46.
आजकल टेलीप्रिंटर पर एक सेकेंड में कितने शब्द भेजे जा सकते हैं?
उत्तर:
आजकल टेलीप्रिंटर पर एक सेकेंड में 56 किलोबाइट अर्थात लगभग 70 हज़ार शब्द भेजे जा सकते हैं।

प्रश्न 47.
नई वेब भाषा को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
नई वेब भाषा को ‘एच०टी०एम०एल०’ अर्थात हाइपर टेक्स्ट मार्डअप लैंग्वेज कहते हैं।

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प्रश्न 48.
भारत की प्रमुख वेबसाइटें कौन-सी हैं?
उत्तर:
भारत की प्रमुख वेबसाइटें रीडिफ डॉटकॉम, इंडिया इंफोलाइन, सीफी, हिंदू तहलका डॉटकॉम आदि हैं।

प्रश्न 49.
हिंदी की सर्वश्रेष्ठ इंटरनेट पत्रकारिता की साइट कौन-सी है?
उत्तर:
पत्रकारिता के लिहाज से हिंदी की सर्वश्रेष्ठ इंटरनेट साइट बी०बी०सी० है।

प्रश्न 50.
इंटरनेट पर उपलब्ध हिंदी का वह कौन-सा समाचार-पत्र है जो प्रिंट रूप में नहीं है ?
उत्तर:
प्रभासाक्षी’ नामक समाचार-पत्र केवल इंटरनेट पर उपलब्ध है।

प्रश्न 51.
उलटा पिरामिड में समाचार का ढाँचा कैसा होता है?
उत्तर:
उलटे पिरामिड ढाँचे में सबसे पहले इंट्रो या मुखड़ा, फिर बाडी और अंत में समापन होता है।

प्रश्न 52.
उलटा पिरामिड-शैली का प्रयोग कब से शुरू हुआ था?
उत्तर:
उलटा पिरामिड-शैली का प्रयोग उन्नीसवीं सदी के मध्य से शुरू हुआ था।

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प्रश्न 53.
समाचार-पत्रों में छपने वाले फ़ीचरों की शब्द-संख्या कितनी होती है?
उत्तर:
समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं में छपने वाले फ़ीचरों की शब्द-संख्या 250 शब्दों से लेकर 2000 होती है।

प्रश्न 54.
एक अच्छे और रोचक फ़ीचर के साथ क्या होना आवश्यक है?
उत्तर:
एक अच्छे और रोचक फ़ीचर के साथ फोटो, रेखांकन, ग्राफिक्स आदि का होना आवश्यक है।

प्रश्न 55.
समाचार-पत्र कैसा माध्यम है?
उत्तर:
समाचार-पत्र केवल छपे हुए शब्दों का माध्यम है।

प्रश्न 56.
जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुराना माध्यम कौन-सा है ?
उत्तर:
मुद्रित माध्यम जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुराना माध्यम है।

प्रश्न 57.
यूरोप में छापेखाने की महत्वपूर्ण भूमिका कब रही?
उत्तर:
यूरोप में पुनर्जागरण के ‘रेनसां’ के आरंभ में छापेखाने की भूमिका महत्वपूर्ण रही थी।

प्रश्न 58.
मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?
उत्तर:
मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता उसमें छपे हुए शब्दों के स्थायीपन की है। इन्हें जब जैसे चाहे पढ़ सकते हैं।

प्रश्न 59.
मुद्रित माध्यम के अंतर्गत समाचार-पत्र में क्या कमियाँ हैं?
उत्तर:
इसे निरक्षर नहीं पढ़ सकते। इसमें तुरंत घटी हुई घटनाएँ प्रस्तुत नहीं की जा सकती।

प्रश्न 60.
रेडियो प्रसारण की क्या कमियाँ हैं?
उत्तर:
रेडियों पर प्रसारण के समय की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। कार्यक्रम आरंभ से सुनना पड़ता है। कार्यक्रम के दौरान कहीं जा नहीं सकते। उसी कार्यक्रम को फिर से नहीं सुन सकते।

प्रश्न 61.
समाचार-पत्रों की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
समाचार-पत्र जनता को समाचार देकर उन्हें जागरूक, शिक्षित और सचेत करते हैं। इनसे पाठकों का मनोरंजन भी होता है। ये लोकतंत्र के पहरेदार माने जाते हैं। ये जनमत जगाने का कार्य भी करते हैं।
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प्रश्न 62.
पत्रकारीय लेखन का संबंध किनसे होता है?
उत्तर:
पत्रकारीय लेखन का संबंध देश-विदेश में घटित विभिन्न घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों से होता है।

प्रश्न 63.
संपादक के नाम पत्र कौन लिखता है?
उत्तर:
संपादक के नाम पत्र समाचार-पत्र को पढ़ने वाले पाठक लिखते हैं। वे इन पत्रों में विभिन्न मुद्दों और समस्याओं पर अपने विचार व्यक्त करते हैं।

प्रश्न 64.
समाचार-पत्र में साक्षात्कार का क्या महत्व है?
उत्तर:
समाचार-पत्र में साक्षात्कार का बहुत महत्व है। साक्षात्कार के माध्यम से ही पत्रकार अपने समाचार-पत्र के लिए समाचार, फीचर, लेख, विशेष रिपोर्ट आदि तैयार कर सकता है।

प्रश्न 65.
स्तंभ-लेखन क्या है?
उत्तर:
स्तंभ लेखन विचारपरक लेखन होता है। स्तंभकार समसामयिक विषयों पर नियमित रूप से अपने समाचार-पत्र के लिए लिखते हैं।

प्रश्न 66.
बीट किसे कहते हैं?
उत्तर:
समाचार-पत्र में राजनीति, आर्थिक, खेल, अपराध, फ़िल्म, कृषि आदि से संबंधित समाचार होते हैं। जो पत्रकार जिस क्षेत्र से संबंधित समाचार लिखता है, वह उसकी बीट होती है।

प्रश्न 67.
‘डेस्क’ किसे कहते हैं ?
उत्तर:
समाचार-पत्रों में किसी विशेष लेखन के लिए कार्य करने वाले पत्रकारों के समूह के निश्चित समय को डेस्क कहते हैं, जैसे खेल डेस्क।

प्रश्न 68.
व्यापार से जुड़ी खबरों की शब्दावली कैसी होती हैं?
उत्तर:
व्यापार से जुड़ी खबरों में व्यापार जगत से संबंधित तेजड़िए, घाटा, गिरावट, आवक आदि शब्द होते हैं।

प्रश्न 69.
कारोबारी जगत की खबरें किस शैली में लिखी जाती हैं ?
उत्तर:
कारोबारी जगत की खबरें उलटा पिरामिड-शैली में लिखी जाती हैं।

प्रश्न 70.
भारत के लोकप्रिय हिंदी दैनिक समाचार-पत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
दैनिक हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, दैनिक ट्रिब्यून, पंजाब केसरी, नई दुनिया, नवभारत टाइम्स आदि।

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प्रश्न 71.
बीट से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
समाचार-पत्र या अन्य समाचार माध्यमों द्वारा अपने संवाददाता को किसी क्षेत्र या विषय यानी बीट की दैनिक रिपोर्टिंग की ज़िम्मेदारी दी जाती है। यह एक तरह के रिपोर्टर का कार्यक्षेत्र निश्चित करना है।

प्रश्न 72.
सीधा प्रसारण (लाइव) कैसा होता है ?
उत्तर:
रेडियो और टेलीविज़न में जब किसी घटना या कार्यक्रम को सीधा होते हुए दिखाया या सुनाया जाता है तो उस प्रसारण को सीधा प्रसारण (लाइव) कहते हैं। रेडियो में इसे आँखों देखा हाल भी कहते हैं जबकि टेलीविज़न के परदे पर सीधे प्रसारण के समय लाइव लिख दिया जाता है। इसका अर्थ यह है कि उस समय आप जो भी देख रहे हैं, वह बिना किसी संपादकीय काट-छाँट के सीधे आप तक पहुँच रहा है।

प्रश्न 73.
स्टिंग आपरेशन किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब किसी टेलीविजन चैनल का पत्रकार छुपे टेलीविज़न कैमरे के ज़रिए किसी गैर-कानूनी, अवैध और असामाजिक गतिविधियों को फ़िल्माता है और फिर उसे अपने चैनल पर दिखाता है तो इसे स्टिंग ऑपरेशन कहते हैं। कई बार चैनल ऐसे आपरेशनों को गोपनीय कोड दे देते हैं। जैसे आपरेशन दुर्योधन या चक्रव्यूह। हाल के वर्षों में समाचार चैनलों पर सरकारी कार्यालयों आदि में भ्रष्टाचार के खुलासे के … लिए स्टिंग आपरेशनों के प्रयोग की प्रवृत्ति बढ़ी है। .

प्रश्न 74.
सूचनाओं के विभिन्न स्रोत कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
(i) मंत्रालय के सूत्र
(ii) प्रेस कॉफ्रेंस और विज्ञप्तियाँ
(iii) साक्षात्कार
(iv) सर्वे
(v) जाँच समितियों की रिपोर्ट्स
(vi) क्षेत्र विशेष में सक्रिय संस्थाएँ और व्यक्ति
(vii) संबंधित विभागों और संगठनों से जुड़े व्यक्ति
(viii) इंटरनेट और दूसरे संचार के माध्यम
(ix) स्थायी अध्ययन प्रक्रिया

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प्रश्न 75.
विज्ञान के क्षेत्र में काम कर रही भारत की पाँच संस्थाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
(i) भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR)
(ii) मिनरल्स एंड मेटल्स कार्पोरेशन (MMTC)
(iii) रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO)
(iv) नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कार्पोरेशन (NRDC)
(v) केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (CEL)

प्रश्न 76.
पर्यावरण पर छपने वाली पत्रिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
(i) पर्यावरण एबस्ट्रेक्ट
(ii) एन्वायरो न्यूज
(iii) डाउन टू अर्थ
(iv) जू प्रिंट
(v) सैंकुचरी
(iv) नेशनल ज्योग्रॉफ़ी

प्रश्न 77.
व्यावसायिक शिक्षा के दस विभिन्न संस्थानों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(i) भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान
(ii) भारतीय प्रबंधन संस्थान
(iii) भारतीय विज्ञान संस्थान
(iv) भारतीय सूचना प्रौद्योगिक एवं प्रबंधन संस्थान
(v) भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान
(vi) राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान
(vi) मनिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलोजी
(viii) राष्ट्रीय फ़ैशन टेक्नॉलोजी संस्थान
(ix) राष्ट्रीय डिफैंस अकादमी
(x) अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान

प्रश्न 78.
अपडेटिंग से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
विभिन्न वेबसाइटों पर उपलब्ध सामग्री को समय-समय पर संशोधित और परिवर्धित किया जाता है। इसे ही अपडेटिंग कहते हैं।

प्रश्न 79.
ऑडियंस किसे कहते हैं?
उत्तर:
जनसंचार माध्यमों के साथ जुड़ा एक विशेष शब्द, जिसका प्रयोग जनसंचार माध्यमों के दर्शकों, श्रोताओं और पाठकों के लिए सामूहिक रूप से होता है।

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प्रश्न 80.
समाचार-पत्रों में ऑप-एड क्या होता है?
उत्तर:
यह समाचार-पत्रों में संपादकीय पृष्ठ के सामने प्रकाशित होने वाला वह पन्ना है जिसमें विश्लेषण, फ़ीचर, स्तंभ, साक्षात्कार, विचारपूर्ण टिप्पणियाँ आदि प्रकाशित की जाती हैं। हिंदी के बहुत कम समाचार-पत्रों में ऑप-एड पृष्ठ प्रकाशित होता है, लेकिन अंग्रेजी के हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस जैसे अखबारों में ऑप-एड पृष्ठ देखा जा सकता है।

प्रश्न 81.
डेडलाइन किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी समाचार को प्रकाशित या प्रसारित करने के लिए उसके समाचार माध्यमों तक पहुँचने की आखिरी समय-सीमा को डेडलाइन कहते हैं। अगर कोई समाचार डेडलाइन निकलने के बाद मिलता है, तो आमतौर पर उसके प्रकाशित या प्रसारित होने की संभावना कम हो जाती है।

प्रश्न 82.
न्यूज़पेग क्या होता है?
उत्तर:
न्यूज़पेग का अर्थ है ‘किसी मुद्दे पर लिखे जा रहे लेख या फ़ीचर में उस ताज़ा घटना का उल्लेख, जिसके कारण वह मुद्दा चर्चा में आ गया है। जैसे अगर आप माध्यमिक बोर्ड की परीक्षाओं में सरकारी स्कूलों के बेहतर हो रहे प्रदर्शन पर एक रिपोर्ट लिख रहे हैं तो उसका न्यूज़पेग सीबीएसई का ताज़ा परीक्षा परिणाम होगा। इसी तरह शहर में महिलाओं के खिलाफ़ बढ़ रहे अपराध पर फ़ीचर का न्यूज़पेग सबसे ताजी वह घटना होगी जिसमें किसी महिला के खिलाफ़ अपराध हुआ हो।

प्रश्न 83.
‘पीत पत्रकारिता’ किसे कहते हैं ? उत्तर: इस शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल उन्नीसवीं सदी के
उत्तर:
में अमेरिका में कुछ प्रमुख समाचार-पत्रों के बीच पाठकों को आकर्षित करने के लिए छिड़े संघर्ष के लिए किया गया था। उस समय के प्रमुख समाचारों ने पाठकों को लुभाने के लिए झूठी अफ़वाहों, व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोपों, प्रेम-संबंधों, भंडाफोड़ और फ़िल्मी गपशप को समाचार की तरह प्रकाशित किया। उसमें सनसनी फैलाने का तत्व अहम था।

प्रश्न 84.
‘पेज थ्री पत्रकारिता’ कैसी पत्रकारिता है? (C.B.S.E., 2018)
उत्तर:
पेज थ्री पत्रकारिता का तात्पर्य ऐसी पत्रकारिता से है जिसमें फ़ैशन, अमीरों की पार्टियों, महफ़िलों और जाने-माने लोगों के निजी जीवन के.. बारे में बताया जाता है। ऐसे समाचार आमतौर पर समाचार-पत्रों के पृष्ठ तीन पर प्रकाशित होते रहे हैं, इसलिए इसे ‘पेज थ्री पत्रकारिता’ कहते हैं। हालाँकि अब यह जरूरी नहीं है कि यह पृष्ठ तीन पर ही प्रकाशित होती हो लेकिन इस पत्रकारिता के तहत अब भी जोर उन्हीं विषयों पर होता है।

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प्रश्न 85.
‘फ्रीक्वेंसी मॉड्यूलेशन’ तकनीक क्या है?
उत्तर:
यह रेडियो प्रसारण की एक विशेष तकनीक है जिसमें फ्रीक्वेंसी को मॉड्यूलेट किया जाता है। रेडियो का प्रसारण दो तकनीकों के जरिए होता है जिसमें एक तकनीक एमप्लीच्यूड मॉड्यूलेशन (ए०एम०) है और दूसरा फ्रीक्वेंसी मॉड्यूलेशन (एफ०एम०)। एफ०एम० तकनीक अपेक्षाकृत नई है और इसकी प्रसारण की गुणवत्ता बहुत अच्छी मानी जाती है। लेकिन ए०एम० रेडियो की तुलना में एफ०एम० के प्रसारण का दायरा सीमित होता है।

बोर्ड परीक्षाओं में पूछे गए लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर प्रश्न

प्रश्न 86.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: संक्षेप में दीजिए– (B.S.E. A.T. 2008)
(क) ‘प्रिंट माध्यम से आप क्या समझते हैं?
(ख) ‘स्तंभ-लेखन’ का क्या तात्पर्य है?
(ग) संपादकीय में लेखक का नाम क्यों नहीं दिया जाता?
(घ) हिंदी में प्रकाशित होने वाले किन्हीं चार राष्ट्रीय समाचार-पत्रों के नाम लिखिए।
(ङ) ‘अंशकालिक संवाददाता’ किसे कहा जाता है?
उत्तर:
(क) प्रिंट माध्यम से तात्पर्य छपे हुए जनसंचार के माध्यम हैं। इसके अंतर्गत समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि आती हैं।
(ख) स्तंभ-लेखन विचारपरक लेखन होता है। इसके अंतर्गत समसामयिक विषयों पर लिखा जाता है।
(ग) संपादकीय के लेखक का नाम इसलिए नहीं दिया जाता क्योंकि वह समाचार-विशेष का विचार होता है तथा उसे समाचार-पत्र का संपादक लिखता है।
(घ) दैनिक हिंदुस्ताने, नवभारत टाइम्स, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर।
(ङ) ‘अंशकालिक संवाददाता’ वह होता है जो किसी समाचार-संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय के आधार पर काम करता है।

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प्रश्न 87.
निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर: दीजिए (Delhi 2008, Set-I)
(क) छापेखाने के आविष्कार का श्रेय किसको है?
(ख) मुद्रित माध्यमों की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ग) पत्रकारीय लेखन और साहित्यिक-सृजनात्मक लेखन का अंतर बताइए।
(घ) विशेष रिपोर्ट के दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए। (C.B.S.E. Delhi 2013, Set-III)
(ङ) संपादकीय लेखन क्या होता है?
उत्तर:
(क) छापेखाने के आविष्कार का श्रेय जर्मनी के गुटेनबर्ग को दिया जाता है।
(ख) मुद्रित माध्यमों को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। ये चिंतन, विचार तथा विश्लेषण का माध्यम होते हैं।
(ग) पत्रकारीय लेखन समाचार-पत्र, पत्रिकाओं के लिए लिखे गए समाचारों, रिपोर्टों आदि से संबंधित होता है तथा यथार्थ पर आधारित होता है। साहित्यिक-सृजनात्मक लेखन कल्पना पर आधारित अथवा वास्तविक जीवन से प्रेरित होकर लिखा गया साहित्य होता है।
(घ) विशेष रिपोर्ट के अंतर्गत आर्थिक, राजनीतिक, खेल, फ़िल्म, कृषि, कानून आदि पर आधारित रिपोर्ट आती हैं।
(ङ) वह लेख जिसमें किसी मुद्दे के प्रति समाचार-पत्र अपनी राय व्यक्त करता है, संपादकीय लेखन कहलाता है।

प्रश्न 88.
निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त दीजिए (Delhi 2008, Set-II)
उत्तर:
(क) जनसंचार के मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता क्या है ?
(ख) ‘विशेष रिपोर्ट’ के लेखन में किन बातों पर अधिक बल दिया जाता है ?
(ग) ‘उल्टा पिरामिड-शैली’ क्या होती है ?
(घ) ‘अंशकालिक पत्रकार’ से आप क्या समझते हैं ?
(ङ) समाचार और फ़ीचर के बीच के अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) जनसंचार के मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है तथा जब चाहे, जैसे चाहे, पढ़ा जा सकता है।
(ख) विशेष रिपोर्ट पूरी तरह से तथ्यों पर आधारित होती है और गहरी छानबीन, विश्लेषण तथा व्याख्या का परिणाम होती है।
(ग) इसमें पहले महत्वपूर्ण तथ्य तथा बाद में कम महत्वपूर्ण बातें दी जाती हैं।
(घ) जो पत्रकार किसी समाचार-पत्र के लिए एक निश्चित मानदेय पर काम करता है, वह अंशकालिक पत्रकार होता है।
(ङ) समाचार पाठक को केवल तत्कालीन घटनाओं से परिचित कराता है किंतु फ़ीचर तत्कालीन घटनाओं से परिचित कराने के साथ-साथ पाठकों को शिक्षित तथा मनोरंजन भी करता है। इसमें फ़ीचर लेखक का दृष्टिकोण भी स्पष्ट होता है।

प्रश्न 89.
निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर: दीजिए (Delhi 2008, Set-III)
(क) मुद्रित माध्यमों की किन्हीं दो विशेषताओं को बताइए।
(ख) पत्रकार की लेखन-शैली की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ग) ‘विशेष रिपोर्ट’ क्या होती है?
(घ) पत्रकारिता की भाषा में ‘बीट’ किसे कहते हैं ?
(ङ) ‘विशेष लेखन’ के किन्हीं तीन क्षेत्रों का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(क) मुद्रित माध्यम बहुत लंबे समय तक सुरक्षित रखे जा सकते हैं। पाठक इन्हें अपनी सुविधा के अनुसार पढ़ सकता है।
(ख) पत्रकार सदा सीधी-सादी और आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करता है। वह लंबे वाक्य नहीं लिखता। वह अनावश्यक विशेषणों आदि का भी प्रयोग नहीं करता है।
(ग) विशेष रिपोर्ट किसी विशेष समस्या, घटना अथवा मुद्दे पर लिखी जाती है। यह अत्यंत गहरी छानबीन, विश्लेषण और व्याख्या का परिणाम होती है। यह तथ्यों पर आधारित होती है।
(घ) पत्रकारिता की भाषा में ‘बीट’ उसे कहते हैं जिस विषय से संबंधित समाचार संकलन के लिए पत्रकार को नियुक्त किया जाता है। ये राजनीतिक, आर्थिक, अपराध, खेल, फ़िल्म, कृषि, विज्ञान आदि विषयों से संबंधित अलग-अलग होती हैं। किसी क्षेत्र से अपराधिक घटनाओं की रिपोर्टिंग को अपराध बीट माना जाता है।
(ङ) विशेष लेखन के अनेक क्षेत्र हैं। इनमें प्रमुख हैं आर्थिक विश्लेषण, व्यापार, शिक्षा, विदेश नीति, रक्षा, पर्यावरण, विज्ञान-प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य, मनोरंजन आदि।

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प्रश्न 90.
निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर: दीजिए
(क) मुद्रण माध्यम (प्रिंट मीडिया) के अंतर्गत आने वाले दो माध्यमों का उल्लेख कीजिए।
(ख) फ्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ का क्या आशय है?
(ग) व्यापार-कारोबार की भाषा की एक विशेषता लिखिए।
(घ) ‘अंशकालिक पत्रकार’ से आप क्या समझते हैं?
(ङ) ‘विशेषीकृत रिपोर्टिंग’ की एक प्रमुख विशेषता लिखिए।
उत्तर:
(क) मुद्रण माध्यम के अंतर्गत समाचार-पत्र और पत्रिकाएँ आती हैं।
(ख) कोई विशेष समाचार जब सबसे पहले दर्शकों तक पहुँचाया जाता है, तो उसे फ्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ कहते हैं।
(ग) व्यापार-कारोबार की भाषा में व्यापार जगत से संबंधित शब्दावली का अधिक प्रयोग होता है जो सटीक और आकर्षक होती है।
(घ) अंशकालिक पत्रकार वह होता है जो किसी समाचार संगठन के लिए निश्चित मानदेय पर काम करता है।
(ङ) विशेषीकृत रिपोर्टिंग पूरी तरह से तथ्यों पर आधारित होती है।

प्रश्न 91.
निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर: दीजिए
(क) प्रसारण के लिए तैयार की जा रही समाचार कॉपी की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ख) ‘उल्टा पिरामिड’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ग) ‘खोजी पत्रकारिता’ का क्या आशय है?
(घ) ‘फ्रीलांसर’ पत्रकार किसे कहते हैं?
(ङ) वेबसाइट पर विशुद्ध पत्रकारिता शुरू करने का श्रेय किस भारतीय वेबसाइट को जाता है?
उत्तर:
(क) प्रसारण के लिए तैयार की जा रही समाचार कॉपी की भाषा अति सरल होनी चाहिए। एक वाक्य में एक ही बात कही जानी चाहिए।
(ख) उल्टा पिरामिड समाचार-लेखन की एक शैली है। इसमें पहले इंट्रो, मध्य में बाडी तथा अंत में क्लाइमेक्स होता है।
(ग) ‘खोजी पत्रकारिता’ में पत्रकार मौलिक शोध तथा छानबीन के द्वारा ऐसी सूचनाएँ तथा तथ्य उजागर करता है जो सार्वजनिक रूप से पहले उपलब्ध नहीं होतीं।
(घ) ‘फ्रीलांसर पत्रकार’ वह होता है जो किसी भी समाचार-पत्र से अनुबंधित नहीं होता, बल्कि वह विभिन्न समाचार-पत्रों में लिखित लेख के भुगतान के आधार पर लिखता है।
(ङ) वेबसाइट पर विशुद्ध पत्रकारिता शुरू करने का श्रेय भारत में ‘तहलका डॉट कॉम’ को जाता है।

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प्रश्न 92.
निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर: दीजिए (C.B.S.E. Sample Paper, 2018)
(क) पेज थ्री पत्रकारिता’ से क्या तात्पर्य है?
(ख) स्तंभ-लेखन से क्या तात्पर्य है? (C.B.S.E. 2013, Set-III)
(ग) ‘डेड लाइन’ क्या है?
(घ) पत्रकारीय लेखन और साहित्यिक सृजनात्मक लेखन में क्या अंतर है?
(ङ) ‘फ़ीचर लेखन’ की भाषा-शैली कैसी होनी चाहिए?
उत्तर:
(क) ‘पेज थ्री’ पत्रकारिता में फ़ैशन, अमीरों की पार्टियों, महफ़िलों और जाने-माने लोगों के निजी जीवन के संबंध में बताया जाता है। ऐसे समाचार पेज थ्री पर प्रकाशित होने के कारण इसे पेज थ्री पत्रकारिता कहते हैं, पर अब सभी समाचार-पत्रों में ऐसा नहीं होता।
(ख) स्तंभ लेखन विचारपरक आलेख होता है जो जनमत के लिए कार्य करता है। इसके विषय का चयन लेखक स्वयं स्थितियों के अनुसार करता है।
(ग) किसी समाचार का प्रकाशित या प्रसारित होने के लिए पहुँचने की अंतिम समय-सीमा ‘डेड लाइन’ कहलाती है। इसके बाद मिले समाचार प्रकाशित अथवा प्रसारित नहीं किए जाते। (घ) पत्रकारीय लेखन का संबंध विभिन्न घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों से होता है तथा इसमें तात्कालिकता का ध्यान रखा जाता है। इसकी भाषा आम बोल-चाल की होती है। साहित्यिक सृजनात्मक लेखन कल्पना पर आधारित होता है तथा इसकी भाषा-शैली आलंकारिक होती है।
(ङ) फ़ीचर लेखन की भाषा-शैली सहज, सरल और आम बोलचाल की होती है। (C.B.S.E. Delhi 2009)

प्रश्न 93.
संक्षेप में उत्तर: दीजिए
(क) जनसंचार के प्रचलित माध्यमों में सबसे पुराना माध्यम क्या है ?
(ख) मुद्रित माध्यम को स्थाई माध्यम क्यों कहा गया है ?
(ग) संपादकीय’ से क्या तात्पर्य है ?
(घ) रिपोर्ट-लेखन की भाषा की दो विशेषताएँ लिखिए।
(ङ) ‘खोजी पत्रकारिता’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
(च) किन्हीं दो मुद्रित माध्यमों के नाम लिखिए।
(छ) भारत में पहला छापाखाना कहाँ और कब खुला ?
(ज) स्तंभ-लेखन’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
(क) जनसंचार के प्रचलित माध्यमों में मुद्रित माध्यम सबसे पुराना है।
(ख) मुद्रित माध्यम को स्थाई माध्यम इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें छपे हुए शब्दों में स्थायीपन होता है, जिन्हें जब चाहे तब आराम से पढ़ सकते हैं। ….
(ग) वह लेख जिसमें किसी मुद्दे पर समाचार-पत्र की अपनी राय व्यक्त होती है, संपादकीय कहलाता है।
(घ) रिपोर्ट-लेखन की भाषा सरल, सहज और आम बोलचाल की होती है।
(ङ) खोजी पत्रकारिता में पत्रकार मौलिक शोध और छानबीन के द्वारा ऐसी सूचनाओं तथा तथ्यों को उजागर करता है जो सार्वजनिक रूप  से उपलब्ध नहीं होते।
(च) समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ।
(छ) भारत में पहला छापाखाना गोवा में सन 1556 ई० में खुला था।
(ज) स्तंभ-लेखन विचारपरक लेख होता है जो जनमत के लिए दर्पण का कार्य करता है। इसके अंतर्गत किसी भी विषय पर विचार व्यक्त किए जा सकते हैं।

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CBSE Class 12 Hindi फीचर लेखन

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CBSE Class 12 Hindi फीचर लेखन

(ख) फ़ीचर लेखन

(जीवन-संदर्भो से जुड़ी घटनाओं और स्थितियों पर) फ़ीचर’ का संबंध खबरों से नहीं होता जबकि इन्हें छपने का स्थान अखबारों में ही प्राप्त होता है। ये निबंध से भिन्न होते हैं। किसी पुस्तक को पढ़कर, आँकड़े इकट्ठे करके लेख लिखे जा सकते हैं, पर ‘फ़ीचर’ लिखने के लिए अपने आँख, कान, भावों, अनुभूतियों, मनोवेगों और अन्वेषण का सहारा लेना पड़ता है। फ़ीचर बहुत लंबा नहीं होना चाहिए। लंबा, अरुचिकर और भारी फ़ीचर तो फ़ीचर की मौत है। फ़ीचर को मजेदार, दिलचस्प और दिल पकड़ होना चाहिए। लेख लिखना आसान है पर फ़ीचर लिखना उससे कठिन काम है। – ‘फ़ीचर’ एक प्रकार का गद्यगीत है जो नीरस और गंभीर नहीं हो सकता।

‘फ़ीचर’ ऐसा होना चाहिए जिसे पढ़कर पाठक का हृदय प्रसन्न हो या पढकर दिल में दःख का दरिया बहे। फ़ीचर का महत्त्व इस बात में है कि में रोचकता और असर से कहे। लेख हमें शिक्षा देता है, फ़ीचर हमारा मनोरंजन करता है। फ़ीचर में हमें अपनी मनोवृत्ति और अपनी समझ के अनुसार किसी विषय का या व्यक्ति का चित्रण करना पड़ता है। इसमें हास्य और कल्पना का विशेष हाथ रहता है। ‘फ़ीचर’ ऐतिहासिक और पौराणिक भी हो सकते हैं।

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हर वर्ष होली, दीवाली, दशहरा, मेलों, राखी आदि के अवसर पर पुरानी बातों को दुहराकर फ़ीचर लिखे जाते हैं। इनमें विचारों की एक बंधी हुई परंपरा का निर्वाह किया जाता है। फ़ीचर तो धोबी, माली, खानसामा, घरेलू नौकर, चौकीदार, रिक्शावाला, रेहड़ी वाला, चपड़ासी आदि पर भी लिखे जा सकते हैं। ‘फ़ीचर’ चाहे कैसे हों, उन्हें लिखने के लिए दिल और दिमाग दोनों का प्रयोग होना चाहिए। अच्छा आरंभ और खूबसूरत अंत करने पर फ़ीचर की सफलता निर्भर करती है।

फ़ीचर के कुछ उदाहरण

प्रश्न 1.
गुम होती चहचहाहट
उत्तर:
एक समय था जब सुबह-सवेरे नींद चिड़ियों की चहचहाहट से खुलती थी। घर के बाहर लगे शिरीष के घने पेड़ पर तथा दीवार के छेदों में चिड़िया के अनेक घोंसले थे। तरह-तरह के पक्षी रहते थे वहाँ। सुबह-सुबह उन की चहचहाहट से वातावरण संगीतमयी हो जाता था। बीच-बीच में कौवों की काँव-काँव भी सुनाई दे जाती थी पर अब तो बाहर आँगन में या छत पर भी जा कर कहीं नहीं दिखाई देते वे पक्षी जिनके मधुर कलरव को सुनते-सुनते हम बड़े हुए। मानव-सभ्यता जिन पक्षियों के साथ बढ़ रही थी उसे आज पश्चिमी सभ्यता ने हमसे दूर कर दिया। चौड़ी होती सड़कें दोनों ओर किनारे लगे पेड़ों को निगल गईं। वह प्यारी-सी भूरी सफ़ेद काली चिड़िया, जिसे ।

हम गौरैया कहा करते थे, जब अपने झुंड में एक साथ ची-ची किया करती थी तो हम उसे रोटी के टुकड़े फेंक-फेंककर अपने नाश्ते … में सहभागी बनाया करते थे और वे भी बेखटके उछल-उछल कर हमारे पास तक आ जाती थी। पता नहीं अब कहाँ खो गई-दिन भर फुर-फुर्र इधर से उधर मुँडेरों पर उड़ने वाली चिड़िया। वैज्ञानिकों का मनाना है कि जब से मोबाइल का चहुँदिश बोलबाला हुआ है तब से हमारी प्यारी गौरैया की चहचहाहट घुटकर रह गई है। मोबाइल फोन सिगनल की तरंगें वायुमंडल में यहाँ-वहाँ फैली रहती हैं जिस कारण ये नन्हें-नन्हें पक्षी स्वयं को उस वातावरण ढाल नहीं पाते। इनकी प्रजनन क्षमता कम हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप ये धीरे-धीरे सदा के लिए हमारी आँखों से ओझल होती जा रही हैं।

मुझे आज भी याद है अपने बचपन के वे दिन जब हम अपने आँगन के एक कोने में मिट्टी के कटोरे में पानी भरकर रख दिया करते थे। ढेरों चहचहाती चिड़ियाँ चोंच में पानी भर-भर कर पीया करती थीं। कोई-कोई तो पानी में घुस कर पंखों को फड़फड़ा कर डुबकियाँ भी खाती थीं। हमें तो यह देख तब अलौकिक आनंद आ जाया करता था। कभी-कभी वे मिट्टी में उलटी-सीधी होकर, पंखों . से मिट्टी उड़ा-उड़ा कर धूल स्नान किया करती थीं। बारिश के दिनों में वे आँगन में कपड़े सुखाने के लिए बाँधी प्लास्टिक की रस्सी
यों की तरह सज कर बैठ जाया करती थीं। कभी-कभी उनके साथ छोटे-छोटे बच्चे भी आया करते थे जिन्हें ये उड़ना

सिखाया करती थीं। रात को हमारी माँ हमें सोने से पहले रोज़ वही कहानी सुनाया करती थी-‘एक थी चिड़िया और एक था चिरैया, जिन में गहराआपसी प्यार था जो आपस में कभी नहीं लड़ते थे।’ अब तो वह मनोरंजक दृश्य आँखों से ओझल हो गया है। उनकी यादें ही रह गई हैं। नई पीढ़ी तो कभी-कभार चिड़िया-घर में । उन्हें देख अपने साथ आए बड़ों से पूछा करेगी-‘वह क्या है ?’ यह आज का बनावटी जीवन पता नहीं हमें अभी प्रकृति से कितना दूर ले जाएगा? शायद आने वाली पीढ़ी इस चहचहाहट को केवल मोबाइल की रिंग-टोन पर ही सुन पाएगी या फ़िल्मों में ही चिड़िया को ची-चीं करते देख पाएगी।

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प्रश्न 2.
क्यों न परहेज़ करें हम पॉलीथीन से
उत्तर:
बहुत कुछ दिया है विज्ञान ने हमें-सुख भी, दुख भी। सुविधा से भरा जीवन हमारे लिए अनिवार्यता-सी बन गई है। बाजार से सामान खरीदने के लिए हम घर से बाहर निकलते हैं। अपना पर्स तो जेब में डाल लेते हैं पर सामान घर लाने के लिए कोई थैला या टोकरी साथ लेने की सोचते भी नहीं। क्या करना है उसका? फालतू का बोझ। लौटती बार तो सामान उठाकर लाना ही है तो जाती बार बेकार का बोझा क्यों ढोएँ।

जो दुकानदार सामान देगा वह उसे किसी पॉलीथीन के थैले या लिफाफे में भी डाल देगा। हमें उसे लाने में आसानी-न तो रास्ते में फटेगा और न ही बारिश में गीला होने से गलेगा। घर आते ही हम सामान निकाल लेंगे और पॉलीथीन डस्टबिन में या घर से बाहर नाली में डाल देंगे। किसी भी छोटे कस्बे या नगर के हर मुहल्ले से प्रतिदिन सौ-दो सौ पॉलीथीन के थैले या लिफ़ाफ़े तो घर से बाहर कूड़े के रूप में जाते ही हैं। वे नालियों में बहते हुए नालों में चले जाते हैं और फिर वे बिना बाढ़ के मुहल्लों में बाढ़ का दृश्य दिखा देते हैं।

पानी में उन्हें गलना तो है नहीं। वे बहते पानी को रोक देते हैं। उनके पीछे कूड़ा इकट्ठा होता जाता है और फिर वह नालियों-नालों के किनारों से बाहर आना आरंभ हो जाता है। गंदा पानी वातावरण को प्रदूषित करता है। वह मलेरिया फैलने का कारण बनता है। हम यह सब देखते हैं, लोगों को दोष देते हैं, जिस मुहल्ले में पानी भरता है उस में रहने वालों को गँवार की उपाधि से विभूषित करते हैं और अपने घर लौट आते हैं और फिर से पॉलीथीन की थैलियाँ नाली में बिना किसी संकोच बहा देते हैं। क्यों न बहाएँ-हमारे मुहल्ले में पानी थोड़े ही भरा है।

पॉलीथीन ऐसे रसायनों से बनता है जो ज़मीन में 100 वर्ष के लिए गाड़ देने से भी नष्ट नहीं होते। पूरी शताब्दी बीत जाने पर भी पॉलीथीन को मिट्टी से ज्यों-का-त्यों निकाला जा सकता है। जरा सोचिए, धरती माता दुनिया की हर चीज़ हज़म कर लेती है पर पॉलीथीन तो उसे भी हज़म नहीं होता। पॉलीथीन धरती के स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। यह पानी की राह को अवरुद्ध करता है, खनिजों का रास्ता रोक लेता है। यह ऐसी बाधा है जो जीवन के सहज प्रवाह को रोक सकता है। यदि कोई छोटा बच्चा या मंद बुद्धि व्यक्ति अनजाने में पॉलीथीन की थैली को सिर से गर्दन तक डाल ले फिर उसे बाहर न निकाल पाए तो उसकी मृत्यु निश्चित है।

हम धर्म के नाम पर पुण्य कमाने के लिए गायों तथा अन्य पशुओं को पॉलीथीन में लिपटी रोटी-सब्जी के छिलके, फल आदि ही डाल देते हैं। वे निरीह पशु उन्हें ज्यों-का-त्यों निगल जाते हैं जिससे उनकी आँतों में अवरोध उत्पन्न हो जाता है और वे तड़प-तड़प कर मर जाते हैं। ऐसा करने से हमने पण्य कमाया या पाप? जरा सोचिए नदियों और नहरों में हम प्रायः पॉलीथीन अन्य सामग्रियों के साथ बहा देते हैं जो उचित नहीं है। सन 2005 में इसी पॉलीथीन और अवरुद्ध नालों के कारण वर्षा ऋतु में आधी मुंबई पानी में डूब गई थी।

हमें पॉलीथीन से परहेज करना चाहिए। इसके स्थान पर कागज़ और कपड़े का इस्तेमाल करना अच्छा है। रंग-बिरंगे पॉलीथीन तो वैसे भी कैंसरजनक रसायनों से बनते हैं। काले रंग के पॉलीथीन में तो सबसे अधिक हानिकारक रसायन होते हैं जो बार-बार पुराने पॉलीथीन के चक्रण से बनते हैं। अभी भी समय है कि हम पॉलीथीन के भयावह रूप से परिचित हो जाएँ और इसका उपयोग नियंत्रित रूप में ही करें।

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प्रश्न 3.
रिक्शा…..ओ रिक्शावाले
उत्तर:
बड़ी जानी-पहचानी आवाज़ है यह-‘रिक्शा….. ओ रिक्शावाले’। हर सड़क पर, हर गली-मुहल्ले में और छोटे-बड़े शहर में यह आवाज़ हमें प्रायः सुनाई दे जाती है। कुछ कम दूरी तय करने तथा छोटा-मोटा सामान ढोने के लिए सबसे उपयोगी साधन है रिक्शा-यदि हमारे अपने पास साइकिल, स्कूटर, मोटरसाइकिल, कार आदि न हो तो रिक्शा ऐसा साधन है जो, सस्ती की सस्ती और आराम का आराम। इसमें बस एक ही कष्टकारी पक्ष है कि आदमी को आदमी ढोने पड़ते हैं। रिक्शा चलाने वाले का शारीरिक कष्ट सवारियों के सुख का कारण बनता है।

भूख मनुष्य से क्या-क्या नहीं करवाती? रिक्शा चलाने वालों से बोझा खिंचवाती है। दुबले-पतले, बेकारी की मार को झेलने वाले, अपने और अपने परिवार का पेट भरने के लिए रिक्शा चलाने वाले हर राज्य के हैं पर कुछ विशेष राज्यों के मेहनती लोग अपेक्षाकृत दूसरे संपन्न राज्यों में जाकर यह कार्य बड़ी संख्या में करते हैं। वे वहाँ रहते हैं; दिन-रात मेहनत करते हैं, धन कमाते हैं, कुछ स्वयं खाते हैं और अधिक अपने घरों में रहने वाले को भेज देते हैं ताकि वहाँ उनकी रोटी चल सके। बहुत कम रिक्शावाले अपने परिवारों को अपने साथ दूसरे राज्यों में लाते हैं और सपरिवार रहते हैं। वे कमर कसकर मेहनत करते हैं पर बहुत सीधा-सादा खाना खाते हैं। फटा-पुराना पहनते हैं और पैसा बचाते हैं ताकि अपनों के कष्ट दूर कर सकें। अधिकतर रिक्शा चालकों के पास अपन रिक्शा नहीं होता। वे किराये पर रिक्शा लेकर सवारियाँ ढोते हैं और उनसे पैसे लेते हैं।

हमारी एक मानसिकता बड़ी विचित्र है। घर में जब कोई भिखारी भीख माँगने आता है तो हम अपने परलोक को सुधारने के लिए बिना मोलभाव किए उन्हें कुछ पैसे देते हैं, रोटी-सब्जी देते हैं और कभी-कभी तो पुराने कपड़े भी दे देते हैं। उन्होंने कोई परिश्रम नहीं कम्मेपन के प्रतीक हैं। कई हटे-कटटे भिखारी साध बाबा का वेश धारण कर लोगों को डराते भी हैं और पैसे भी ऐंठते हैं पर किसी भी रिक्शा में बैठने से पहले हम रिक्शा वाले से चार-पाँच कम कराने के लिए अवश्य बहस करते हैं।

उस समय हम यह नहीं सोचते कि ये उन मुफ्तखोर भिखारियों से तो लाख गुना अच्छे हैं। ये परिश्रम करके खाते हैं। यदि उन परिश्रम न करनेवालों को हमें दे सकते हैं तो इन परिश्रम करने वालों को क्यों नहीं दे सकते। सुबह-सवेरे कुछ रिक्शा चालक छोटे-छोटे बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते दिखाई देते हैं। वे बच्चों के साथ कभी बच्चे बने होते हैं . और कभी उनके अध्यापक। बच्चे ऊँचे स्वर में गाते जाते हैं, साथ में रिक्शा चलाने वाले भी गाते हैं। वे रोते बच्चों को चुप कराते हैं और शरारती बच्चों को डाँटते-डपटते हुए स्कूल तक ले जाते हैं।

रिक्शा चलाने वालों का जीवन बड़ा कठोर है। कमज़ोर शरीर और शारीरिक श्रम का सख्त काम। बरसात के दिनों में ये स्वयं तो रिमझिम बारिश अपने ऊपर झेलते हैं पर सवारियों को सूखा रखने का पूरा प्रबंध करते हैं। कुछ रिक्शा चालकों का सौंदर्य बोध उनकी रिक्शा से ही दिखाई दे जाता है। तरह-तरह की देवी-देवताओं और फ़िल्मी हस्तियों की तस्वीरें, रंग-बिरंगे प्लास्टिक के रिबन, सुंदर रंग-रोगन आदि से वे अपनी रिक्शा को सजाते-सँवारते हैं और बार-बार उसे कपड़े से साफ़ करते रहते हैं। … कभी-कभार कुछ रिक्शावाले सवारियों से झगड़ा भी कर लेते हैं। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। इससे मानसिक शांति भंग होती है और कार्य में बाधा उत्पन्न होती है।
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प्रश्न 4.
मेरे स्कूल का माली
उत्तर:
मेरे स्कूल का माली है श्रीपाल। लगभग 40-50 वर्ष का दुबला-पतला छोटे कद का श्रीपाल अपनी उम्र से कुछ बड़ा लगता है। अभावों में पला वह खानदानी माली है। कहते हैं कि उसके पिता भी हमारे स्कूल में माली थे और उनके पिता देश की स्वतंत्रता से पहले किसी राजा । के राजमहल में यही कार्य करते थे। श्रीपाल पढ़ा-लिखा तो नहीं है पर. उसे अपने काम की बहुत अच्छी समझ है। उसकी समझ का परिणाम ही तो मेरे स्कूल में चारों तरफ़ फैली हरियाली और फूलों की इंद्रधनुषी छटा है। – कोई भी ऐसा नहीं जो मेरे स्कूल में आया हो और उसने यहाँ उगे पेड़-पौधों और फूलों की प्रशंसा न की हो। श्रीपाल का सौंदर्य बोध तो बड़ी उच्च कोटि का है।

उसे रंग-योजना की अच्छी समझ है। वह फूलों की क्यारियाँ इस प्रकार तैयार करता है कि हरे-भरे घास के मैदानों में तरह-तरह के रंगों की अनूठी शोभा बरबस यह सोचने को विवश कर देती है कि कितना बड़ा खिलाड़ी है रंगों का हमारा माली जो ईश्वर के रंगों को इतनी सोच-समझ कर व्यवस्था प्रदान करता है। उसकी पेड़-पौधों की कलाकारिता स्कूल के प्रवेश द्वार से ही अपने रंग दिखाना शुरू कर देती है। चार भिन्न-भिन्न रंगों की सदाबहार झाड़ियों से उसने स्कूल का पूरा नाम ऊँचाई से नीचे की ओर ढलान पर इतने सुंदर ढंग से तैयार किया ही है कि सड़क से गुजरने वाले हर व्यक्ति की नज़र उस पर अवश्य जाती है और वह मन ही मन प्रायः लोग मानते हैं कि कैक्टस तो काँटों का झुरमुट होते हैं पर श्रीपाल ने स्कूल में कंकर-पत्थरों से रॉकरी बनाकर उस पर कैक्टस इतने सुंदर ढंग से लगाए हैं कि बस उनका कैंटीला सौंदर्य देखते ही बनता है। सौ-डेढ़ सौ से अधिक प्रकार के कैक्टस हैं उस रॉकरी में। कई तो फुटबॉल जितने गोल-मटोल और भारी-भरकम हैं। कई मोटे-मोटे तने वाले कैक्टस बड़े ही आकर्षक हैं।

हमारे स्कूल का परिसर बहुत बड़ा है और उस सारे में श्रीपाल की कला फूलों और पौधों के रूप में व्यवस्थित रूप से बिखरी हुई है। श्रीपाल की सहायता के लिए तीन माली और भी हैं पर वे सब वही करते हैं जो श्रीपाल उनसे करने के लिए कहता है। श्रीपाल बहुत मेहनती है। वह सर्दी-गर्मी, धूप-वर्षा, धुंध-आँधी आदि सब स्थितियों में खुरपा हाथ में लिए काम करता दिखाई देता है। वह परिश्रमी होने के साथ-साथ स्वभाव का बहुत अच्छा है।

उसने स्कूल के सारे विद्यार्थियों को इतने अच्छे ढंग से समझाया है कि वे स्कूल में लगे . फूलों की सराहना तो करते हैं पर उन्हें तोड़ते नहीं हैं। वैसे स्कूल प्रशासन ने भी जगह-जगह ‘फूल न तोड़ने’, ‘पौधों की रक्षा करने’ आदि की पट्टिकाएँ जगह-जगह पर लगाई हुई हैं। श्रीपाल सदा स्कूल की ड्रेस पहनता है तथा सभी से नम्रतापूर्वक बोलता है। उसे ऊँची आवाज़ में बोलते, लड़ते-झगड़ते कभी नहीं देखा। वास्तव में ही उसके कारण हमारा स्कूल फूलों की सुगंध से महकता रहता है।

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प्रश्न 5.
चाँद-तारों को छूने की तमन्ना थी कल्पना चावला की
उत्तर:
कौन नहीं चाहता चाँद-तारों को छूना? माँ की गोद में मचलता नन्हा-सां बच्चा भी चाँद को पाने की इच्छा करता है। बड़े-बूढों को भगवान चाँद-तारों के उस पार प्रतीत होते हैं। पर चाँद-तारों को पाना आसान नहीं है, बस हम तो इनकी कल्पना ही कर सकते हैं पर करनाल की कल्पना ने इस कल्पना को साकार करने का प्रयत्न किया था। भले ही वह चाँद-तारे नहीं पा सकी पर उन्हें पाने की राह पर तो आगे अवश्य बढ़ी थी। प्रायः जिस उम्र में लड़कियों की आँखों में गुड़ियों के सपने सितारों की तरह झिलमिलाते हैं, कल्पना ने आँखों में चाँद-सितारों के सपने सजाना शुरू कर दिया था। अमेरिकी एजेंसी नासा में अपने सहयोगियों के बीच केसी के नाम से प्रसिद्ध कल्पना चावला हरियाणा के

करनाल नगर के ऐसे परिवार में जन्मी जिसका कठिन परिश्रम में अटूट विश्वास था। आँखों में चाँद-सितारों पर जाने के सपने और विरासत में मिली श्रम पर आस्था के दुर्लभ संगम ने उन्हें अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की प्रथम महिला का खिताब दिला दिया। हरियाणा के नगर करनाल से कोलम्बिया का यह सफर न तो आसान था और न ही इसके लिए कोई छोटा रास्ता था। करनाल के टैगोर बाल-निकेतन स्कूल से स्कूली शिक्षा, दयाल सिंह कॉलेज से उच्च शिक्षा, पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा, टेक्सास यूनिवर्सिटी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की मास्टर्स डिग्री और कोलराडो यूनिवर्सिटी से फिलॉसफी इन एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की डॉक्टरेट की उपाधि के बीच कल्पना के कड़े संघर्ष की कल्पना की जा सकती है।

कल्पना का काम जितना चुनौती भरा था उसमें उनके पास काम के अतिरिक्त कुछ भी सोच पाने का अवसर बहुत कम था। शायद इसी कारण वह अपने हमपेशा ज्याँ पियरे हैरिसन की तरफ आकर्षित हुईं। विवाह के बाद जब कल्पना ने नासा में नौकरी की तो कैलिफोर्निया में फ्लाइंग प्रशिक्षक के तौर पर काम कर रहे हैरिसन भी अपनी नौकरी छोड़कर उनके सपनों की खातिर उनके साथ चले आए। कल्पना के मित्र बताते हैं कि शादी के बीस वर्ष बाद भी यह युगल निहायत प्रेम भरा जीवन जी रहा था और दोनों को उड़ानों से वापसी के समय रनवे पर एक-दूसरे का बेसब्री से इंतजार करते देखा जा सकता था।

कल्पना को भारतीय और रॉक संगीत का बहुत शौक था। चाय पीना, पंछियों की ओर निहारना और पूर्णमासी की रातों में खुले आकाश के नीचे घूमना जैसे शौक उनकी उपलब्धियों के साथ मिलकर उन्हें असाधारण व्यक्तियों के दर्जे में ला खड़ा करते हैं। अंतरिक्ष को अपना घर कहने वाली कल्पना अंतरिक्ष में 376 घंटे व्यतीत कर चुकी थीं। उन्होंने पृथ्वी की कुल 252 परिक्रमाएँ की थीं। जिंदगी और मौत के मात्र 16 मिनट के फासले से विधाता ने अपनी यह अमूल्य धरोहर हमसे वापस ले ली जो उसने मात्र 41 सालों के लिए हमें दी थी। टैक्सास की जमीन से दो लाख फीट की ऊँचाई पर जब अंतरिक्षयान की प्लेटें टूटकर गिरी थीं तो हमारा यह सितारा टूटा और सदा के लिए हमसे बिछुड़ गया।

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प्रश्न 6.
गायब होती रौनकें
उत्तर:
पिछले कुछ दशकों में हमारे देश में आर्थिक परिवर्तन बड़ी तेजी से हुए हैं। इसका प्रभाव जन-सामान्य पर पड़ा है। घरों के अंदर एक क्रांति आई है, जो सुख-सुविधाएँ पहले राजाओं को नसीब नहीं थीं, अब आम आदमी के बूते में हैं। औरतों के लिए तो नई तकनीक चमत्कार है क्योंकि जहाँ पुरुषों का बाहर का काम लगभग वैसा ही रहा है, औरतों का घर में काम बहुत सरल हो गया है। पर सुखों के बावजूद अब चेहरों पर से रौनक गायब हो गई है।

शहर हो या गाँव उनका प्रबंध बिगड़ रहा है। बढ़ते मकानों, बढ़ती आबादी, बढ़ते वाहनों और घरों तक सेवाएँ पहुँचाने के चक्कर में शहरों का कबाड़ा होना शुरू हो गया है। कल तक आपको अपने शहर की जो सड़क अच्छी लगती थी, जो नदी कलकल करती मोहक लगती थी, जो बाग महकता रहता था अब या तो रहा ही नहीं या खराब हो गया है। सड़कें चौड़ी होनी थीं इसलिए पटरियों और उन पर लगे पेड़ काट दिए गए। जहाँ पेड़ों की छाया और चिड़ियाँ होती थीं वहाँ बिजली, टेलीफ़ोन और तरह-तरह की तारों के गुच्छे नज़र आते हैं। बागों में घास की जगह पक्के फर्श बन गए। शहरों में मिट्टी तो ईंटों-पत्थरों के नीचे छिपती ही चली जा रही है। कंकरीट के जंगल खड़े होते जा रहे हैं। प्रकृति के नाम पर कैक्टस के गमले रह गए हैं।

अगर कोई संदर भवन थे तो वे विज्ञापन बोर्डों से ढक गए। गलियों तक में चलना दूभर हो गया क्योंकि वे स्कूटरों, साइकिलों से भरी रहती हैं। जिन शहरों में कूड़ा उठाने का सही प्रबंध नहीं वहाँ तो जीवन नर्क में रहने जैसा हो गया है। घर अच्छा तो क्या, बाहर तो गंद ही गंद। अमेरिकी आर्किटेक्ट क्रिस्टोफर चार्ल्स बेर्नीयर की तो शिकायत है कि अब मकानों को इस तरह दीवारों में बंद किया जा रहा है मानो हर कोई दूसरे से भयभीत हो। हम सब चूहे के बिलों की तरह अपने चारों ओर दीवारें खड़ी करते जा रहे हैं।

यह भय अब शहर की सड़क से घुसकर कमरों में पहुँचने लगा है। अच्छा घर भी बंद कमरों वाला होने लगा है। एअरकंडीशनर की दया से हर व्यक्ति अपने दरवाजे बंद रखता है। सड़क पर गाड़ी, बंद दफ़्तर पर शीशे के दरवाजे, दुकान में घुसने से पहले परिचय-पत्र दिखाओ यानी हर व्यक्ति अपनी ही कैद में है।

इस कैद ने ही रौनक छीनी है। मानसिक तनाव, अकेलापन लगातार बढ़ रहा है। हर शहर में लाखों लोग बिलकुल अकेले हैं। शहर का आर्किटेक्चर, उसका प्रबंध, उसकी भागदौड़ ऐसी है कि हर कोई दूसरे से अकेले मिलने से भी कतरा रहा है। यह दुनिया को कहाँ ले जाएगा-उसकी कल्पना आज नहीं की जा सकती है पर समझा जा सकता है।

इसका हल यही है कि हम बराबर चाले का हाल पूछे, उसके दुःखदर्द में सम्मिलित हों। शहर के साथ होने वाले छल का विरोध करें, घर से आजादी पाएँ। शहर आपके लिए हो, आप शहर के लिए। चलिए बराबर वाले दरवाज़े को थपथपाइए शायद मुसकराता चेहरा मिल जाए। जब तक हम स्वयं पहल नहीं करेंगे तब तक पराए हमारे अपने नहीं. हो सकते। किसी पराए को अपना बनाने के लिए हमें उन्हें अपना बनाना होगा। संवादहीनता अभिशाप है। सब से मिलो तभी गायब होती रौनकें फिर से लौटेंगी।

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प्रश्न 7.
मोर्चे पर सैनिकों के साथ एक दिन (Delhi C.B.S.E, 2016):
उत्तर:
सैनिक देश की रक्षा एवं सुरक्षा करते हैं। वे मोर्चे पर अपनी जान हथेली पर रखकर दिन-रात पहरेदारी करते हैं। सैनिकों के शौर्य . एवं वीरता को सुनकर मेरे मन में इच्छा हुई कि मैं भी इस पवित्र स्थल को जाकर देखू। मैंने मोर्चे पर सैनिकों के साथ एक दिन गुजारा।

मैं सैनिकों के शौर्य, वीरता एवं साहस को देखकर हैरान रह गया। मुझे यह देखकर अत्यंत आश्चर्य हुआ कि सैनिक किस प्रकार हँसते हँसते देश पर कुर्बान हो जाते हैं। सैनिक रात-दिन खतरों का सामना करते हैं किंतु फिर भी देशभक्ति की भावना से प्रेरित होकर वे दुश्मनों के छक्के छुड़ा देते हैं। मोर्चे पर सैनिकों के साथ एक दिन मेरे जीवन का स्वर्णिम दिन था। उस दिन मैंने निश्चय किया कि मैं भी एक सैनिक बनकर देश की रक्षा करूँगा।

प्रश्न 8.
भूकंप क्षेत्र से (Delhi C.B.S.E, 2016)
उत्तर:
गत वर्ष नेपाल में भीषण भूकंप आया था। अचानक धरती में इतनी ज्यादा कंपन हुई जिसके कारण चारों तरफ़ तबाही-ही-तबाही दिखाई दे रही थी। नेपाल ही नहीं भारत में भी कई स्थलों पर भारी नुकसान हुआ। इस भूकंप से लाखों लोग बेघर हो गए तथा हज़ारों लोग मारे गए। इससे जानमाल की भारी क्षति हुई। चारों तरफ केवल रोने-चिल्लाने की आवाजें सुनाई पड़ रही थी। अनेक लाशें मलबे के नीचे दबी-कुचली दिखाई दे रही थीं। बड़ा ही वीभत्स दृश्य वहाँ सब तरफ़ दिखाई दे रहा था। सैनिकों एवं वीर जवानों ने इस त्रासदी में लोगों की खूब सेवा की। उन्होंने घायलों को हस्पताल पहुंचाया। अनेक लोगों को मलबे के नीचे से निकाला तथा उनकी जान बचाई। उन्होंने पीड़ित लोगों तक खान-पान की वस्तुएँ पहुँचाईं।

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प्रश्न 9.
‘चुनाव प्रचार का एक दिन’ (A.I. C.B.S.E, 2016)
उत्तर:
चुनाव का बिगुल बजते ही प्रचार-प्रसार का दौर प्रारंभ हो जाता है। नेता अपने समर्थकों के साथ गली-मोहल्लों में चुनाव प्रचार हेतु निकल पड़ते हैं। नेता सफ़ेद कपड़े धारण कर गली के प्रत्येक घर में जाता है और लोगों से हाथ जोड़कर वोट देने की अपील करता है। वह किसी के साथ हाथ मिलाता है तो किसी के चरण छूकर आशीर्वाद लेता है। वह एक दिन में समर्थकों के साथ हज़ारों लोगों के घर-घर जाकर प्रचार करता है। लोगों से झठे वादे करता है।

समर्थक बडे-बडे बैनर हाथों में लेकर नेता की जय-जयकार करते हैं। नारे लगाते हैं तथा लोगों से उसकी विजय का पताका फहराने की अपील करते हैं। नेता मंच पर खड़ा होकर जब किसी सभा को संबोधित करता है तो आकर्षक मुद्रा एवं शैली में लोगों से हज़ारों वादे करता है। उनके क्षेत्र में सभी तरह की सुविधाएँ देने का वादा करता है। …. इतना ही नहीं चलते-चलते भी लोगों से हाथ जोडकर वोट देने की अपील करता है। यदि कोई उन्हें कछ बरा-भला भी कह ज शांत बने रहने का नाटक करते हैं। वे प्रायः आपे से बाहर नहीं होते। वे मीठी और सभ्य भाषा में ही बोलने की चेष्टा करते हैं।

प्रश्न 10.
भीड़भरी बस के अनुभव (A.I. C.B.S.E., 2016)
उत्तर:
मैंने गत मास दिल्ली से चंडीगढ़ बस में सफर किया। उस दिन बस में बहुत भीड़ थी। बस यात्रियों से खचाखच भरी हुई थी। बस में इतनी भीड़ थी कि पैर रखने की भी जगह नहीं थी। लोग एक-दूसरे के ऊपर गिर पड़ रहे थे। जब भी बस में ब्रेक लगते लोग … आपस में टकरा जाते थे। बीच-बीच में कई बार तो कुछ लोगों में कहासुनी भी हुई किंतु कुछ लोगों ने उन्हें समझा-बुझाकर शांत कर दिया। बस लोगों से ऐसे सटी थी कि हवा भी पार नहीं हो सकती थी। गर्मी से लोगों का बुरा हाल था। सब लोग गर्मी के कारण कराह रहे थे। मुझे गर्मी से बहुत घबराहट हो रही थी। बड़ी मुश्किल से राम-राम जपते हुए संध्या के समय हम चंडीगढ़ पहुँचे। वास्तव में भीड़ भरी बस का यह अनुभव बहुत ही कड़वा सिद्ध हुआ।

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प्रश्न 11.
स्वच्छ भारत : स्वस्थ भारत (Outside Delhi 2017)
उत्तर:
स्वच्छता स्वास्थ्य का प्रतीक है। जहाँ स्वच्छता होती है वहाँ स्वास्थ्य भी अच्छा होता है। स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत की परिकल्पना आधुनिक युग की सोच है। यदि भारत स्वच्छ रहेगा तभी भारत स्वस्थ बन पाएगा। इसके विपरीत यदि देश में चारों तरफ गंदगी, कूड़े के ढेर होंगे तो हम स्वस्थ होने की कल्पना भी नहीं कर सकते। यह अभियान देश के कोने-कोने में चलाया जा रहा है कि हमने भारत को स्वच्छ बनाना है। बुजुर्ग ही नहीं युवा वर्ग भी इस अभियान में बढ़चढ़कर भाग ले रहे. हैं।

जहाँ भी गली-मोहल्ले, गाँव, शहर, पार्क में कूड़ा-कर्कट, गंदगी मिले वहाँ स्वच्छता अभियान चलाया जाना चाहिए। जब देश का प्रत्येक आदमी आत्मिक रूप से इस अभियान से जुड़ गया तब वास्तव में यह अभियान सफल हो जाएगा। यदि हमें अपने स्वास्थ्य को ठीक रखना है तो अपने चारों तरफ के वातावरण को स्वच्छ रखना हमारा परम कर्तव्य होना चाहिए। जब …. प्रत्येक देशवासी अपने चारों ओर का वातावरण स्वच्छ बनाने में अपनी कर्मनिष्ठा से और ईमानदारी से कर्म करेगा तब भारत अवश्य ही स्वस्थ होगा। अतः यह सत्य है कि स्वच्छ भारत तो स्वस्थ भारत।

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प्रश्न 12.
‘वन रहेंगे : हम रहेंगे (Outside Delhi 2017)
उत्तर:
वन जीवन का प्रतीक है। वन है तो जीवन है। वन नहीं तो जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। वनों से हमें अनेक बहुमूल्य एवं जीवनोपयोगी वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। वनों से हमें ऑक्सीजन प्राप्त होती है। यही वातावरण को शुद्ध बनाते हैं। यदि वन नहीं रहेंगे तो हमारा जीवन भी नष्ट हो जाएगा। वनों के न रहने से जीवन भी डगमगा जाएगा। वनस्पतियाँ नष्ट हो जाएंगी। वर्षा का संतुलन बिगड़ जाएगा। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने से भयंकर परिस्थितियाँ बन जाएंगी।

नदियाँ अपने स्थान पर नहीं । रहेंगी। वातावरण का संतुलन बिगड़ जाएगा। वातावरण संतुलन बिगड़ने से जीवन का भी संतुलन बिगड़ जाएगा। यदि वातावरण ही जीवनोनुकूल न होगा तो जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वनों पर हमारा जीवन निर्भर है। यदि वन रहेंगे तो हम रहेंगे। वन नहीं रहेंगे तो हम भी नहीं रहेंगे।

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CBSE Class 12 Hindi समाचार लेखन

(क) समाचार लेखन (उल्टा पिरामिड शैली)

प्रश्न 1.
विभिन्न जनसंचार माध्यमों के लिए लेखन के कौन-कौन से तरीके हैं ?
उत्तर:
लोगों के मध्य सूचनाओं का आदान-प्रदान करने को जनसंचार कहते हैं। जनसंचार के अनेक माध्यम हैं । जैसे-समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, टेलीविज़न, इंटरनेट आदि। जनसंचार के विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन के अनेक तरीके अपनाए जाते हैं जो इस प्रकार हैं :

( क ) समाचार-पत्र और पत्रिकाएं : समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं में खबरें इकट्ठी करने का कार्य संवाददाता करते हैं। वे समाज के हर क्षेत्र से खबरें इकट्ठी करके उन्हें संपादक के पास भेजते हैं। इसके बाद संपादक इन खबरों को संपादित करके समाचार-पत्र और पत्रिकाओं में प्रकाशित करता है।

(ख) टेलीविज़न-टेलीविज़न एक दृश्य और श्रव्य का माध्यम है। इसमें एंकर खबरे देने का कार्य करते हैं जो उन्हें अनेक संवाददाताओं तथा चैनलों से प्राप्त होती हैं। इसमें एंकर खबरों को लिखकर तथा बोलकर दर्शकों तक पहुंचाता है।

(ग) रेडियो-रेडियो एक श्रव्य माध्यम है। जिस पर वाचक बोलकर सूचनाएँ संप्रेषित करता है। वाचक ही खबरों को एकत्र कर उनका संपादन करता है।

(घ) इंटरनेट- यह एक ऐसा माध्यम है जिस पर संपूर्ण संसार की सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। इस पर संसार के कोने-कोने से सूचनाएँ लिखकर भेजी जाती हैं जिन्हें कभी भी पढ़ा जा सकता है।

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प्रश्न 2.
रेडियो समाचार एवम् सामान्य समाचारों की संरचना किस पर आधारित होती है ? (HR. 2015 Set-B, 2017)
अथवा
उल्टा पिरामिड शैली से क्या आशय है ?
उत्तर:
रेडियो समाचार एवम् समाचार पत्रों के समाचारों, फ़ीचर आदि की संरचना उल्टा पिरामिड शैली पर आधारित होती है। यह समाचार लेखन की सबसे महत्त्वपूर्ण और प्रसिद्ध शैली है। नब्बे प्रतिशत समाचार अथवा कहानियाँ इसी शैली में लिखे जाते हैं। इस शैली में खबर के अत्यंत महत्त्वपूर्ण तथ्य को सर्वप्रथम लिखा जाता है। उसके बाद कम महत्त्वपूर्ण तथ्यों को लिखा जाता है। इसमें कहानी की तरह क्लाईमेक्स अंत की जगह आरंभ में होता है। इस शैली में कोई निष्कर्ष नहीं होता। उल्टा पिरामिड शैली में समाचार को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है :
(i) इंट्रो या मुखड़ा
(ii) बॉडी
(iii) समापन।
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(i) इंट्रो या मुखड़ा-समाचार में इंट्रो अथवा लीड को मुखड़ा भी कहा जाता है। इसमें समाचार के मूल तत्वों को प्रारंभ की दो-तीन पंक्तियों में लिखा जाता है। यह समाचार का महत्त्वपूर्ण अंग होता है।
(ii) बॉडी-बॉडी इंट्रो के बाद लिखा जाता है। इसमें समाचार के विस्तृत तत्व को अवरोही क्रम में लिखा जाता है।
(iii) समापन-उल्टा पिरामिड शैली में कोई अंत नहीं होता। इसमें आवश्यकता अनुसार समय और स्थान की कमी को देखते हुए
अंतिम पंक्तियों को काटकर छोटा किया जाता है। इस प्रकार समाचार का समापन होता है।

प्रश्न 3.
रेडियो के लिए समाचार लेखन की बुनियादी बातों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रेडियो समाचार उल्टा पिरामिड शैली में लिखा जाता है। रेडियो समाचार लेखन के लिए अनेक बुनियादी बातें निम्नलिखित हैं
(i) साफ़-सुथरी और टंकित कॉपी-यह रेडियो समाचार लेखन का मूलभूत आधार होती है। रेडियो समाचार की कॉपी साफ और स्पष्ट होनी चाहिए ताकि समाचार पढ़ते समय वाचक को कोई कठिनाई महसूस न हो। समाचार कॉपी कंप्यूटर पर ट्रिपल स्पेस में टाईप किया जाना चाहिए। कॉपी के दोनों तरफ पर्याप्त जगह होनी चाहिए। एक पंक्ति में अधिक-से-अधिक 12-13 शब्द होने चाहिए। पंक्ति के अंत में कोई शब्द विभाजित नहीं होना चाहिए। कठिन तथा लम्बे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। एक से दस तक के अंकों को शब्दों में लिखना चाहिए तथा 11 से 999 तक के अंकों को अंकों में ही लिखा जाना चाहिए। संकेतों की अपेक्षा प्रतिशत अथवा डॉलर शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। समाचार को कभी-भी संख्या से शुरू नहीं करना चाहिए।

(ii) डेडलाइन, संदर्भ तथा संक्षिप्ताक्षर का प्रयोग–रेडियो समाचार लेखन में डेड लाइन, संदर्भ तथा संक्षिप्त अक्षरों का पूरा ध्यान रखना चाहिए। इसमें अखबारों की तरह अलग से डेड लाइन नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसे समाचार के साथ ही जोड़ देना चाहिए। इसमें आज सुबह, आज दोपहर, आज शाम, कल सुबह, कल दोपहर, कल शाम, इस वर्ष, अगले वर्ष आदि का प्रयोग करना चाहिए। संक्षिप्त अक्षरों के प्रयोग से सदैव बचना चाहिए। केवल कुछ प्रचलित संक्षिप्त अक्षरों का ही थोड़ा-बहुत प्रयोग करना चाहिए। जैसे यू० एन० ओ०, पी० एन० बी० आदि।

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प्रश्न 4.
टेलीविजन का जनसंचार माध्यम में क्या महत्त्व है ?
अथवा
संचार माध्यमों में दूरदर्शन की भूमिका।
उत्तर:
टेलीविजन का जनसंचार माध्यम में विशेष महत्त्व है जो इस प्रकार है :
(i) टेलीविजन जनसंचार का दृश्य एवं श्रव्य माध्यम है।
(ii) इसके द्वारा हम खबरें देख भी सकते हैं और सुन भी सकते हैं।
(iii) इसमें समाचार देने के साथ-साथ उनके दृश्य भी दिखाए जाते हैं।
(iv) इसके द्वारा कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक समाचार प्रस्तुत किए जाते हैं।
(v) इसके द्वारा खबरों के साथ-साथ उनके प्रमाण भी प्रस्तुत किए जाते हैं।
(vi) इसमें वाचक के द्वारा मुख्य समाचारों को पढ़ा जाता है और उसके बाद उन समाचारों से संबंधित दृश्य प्रस्तुत किए जाते हैं।
(vii) इसके द्वारा घटनाओं का सीधा प्रसारण भी किया जाता है।

प्रश्न 5.
पत्रकारीय लेखन की परिभाषा लिखिए। यह कितने प्रकार का होता है तथा पत्रकार कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर:
पत्रकारीय लेखन की परिभाषा
समाचार-पत्र अथवा जनसंचार माध्यमों में कार्य करने वाले पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों तथा श्रोताओं तक सूचनाएं भेजने के लिए लेखन के विभिन्न तरीके अपनाते हैं जिन्हें पत्रकारीय लेखन कहते हैं।। पत्रकारीय लेखन के प्रकार-पत्रकारीय लेखन मुख्यतः तीन प्रकार से किया जाता है
(i) पूर्णकालिक लेखन
(ii) अंशकालिक लेखन
(iii) स्वतंत्र लेखन।
(i) पूर्णकालिक लेखन-इस लेखन में पत्रकार किसी समाचार संगठन के लिए नियमित रूप से नियमित वेतन प्राप्त करते हुए लिखता है।
(ii) अंशकालिक लेखन-वह लेखन जिसमें पत्रकार किसी समाचार संगठन के लिए निश्चित मानदेय के आधार पर लिखता है।
(iii) स्वतंत्र लेखन-वह लेखन जिसमें पत्रकार स्वतंत्र रूप से भुगतान के आधार पर विभिन्न समाचार-पत्रों के लिए लेख लिखता है।

पत्रकार के प्रकार-पत्रकार मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं जो इस प्रकार हैं
(i) पूर्णकालिक पत्रकार,
(ii) अंशकालिक पत्रकार
(iii) स्वतंत्र पत्रकार।
(i) पूर्णकालिक पत्रकार-जो पत्रकार किसी समाचार संगठन में नियमित रूप से नियमित वेतन प्राप्त करते हैं, उन्हें पूर्णकालिक पत्रकार कहते हैं।
(ii) अंशकालिक पत्रकार-जो पत्रकार किसी समाचार संगठन के लिए निश्चित मानदेय के आधार पर कार्य करते हैं, उन्हें अंशकालिक पत्रकार कहते हैं।
(iii) स्वतंत्र पत्रकार-जो पत्रकार किसी समाचार संगठन से न जुड़कर विभिन्न समाचार-पत्रों के लिए भुगतान के आधार पर लेख लिखते हैं, उन्हें स्वतंत्र पत्रकार कहते हैं।

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प्रश्न 6.
अच्छे लेखन के लिए ध्यान में रखी जाने वाली महत्त्वपूर्ण बातों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: अच्छे लेखन अथवा आदर्श लेखन के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए
(i) भाषा, सरल, सहज और सामान्य बोलचाल की होनी चाहिए।
(ii) वाक्य छोटे-छोटे होने चाहिए।
(iii) संयुक्त और मिश्र वाक्य की अपेक्षा सरल वाक्यों का ही प्रयोग होना चाहिए।
(iv) सार्थक शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
(v) अनावश्यक शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए।
(vi) लेखन विविधता के लिए सामान्य मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग करना चाहिए।
(vii) आदर्श लेखन के लिए सुप्रसिद्ध लेखकों की रचनाएँ पढ़नी चाहिए।
(viii) लेखन में कसावट ज़रूर होनी चाहिए।
(ix) दूसरों को प्रभावित करने की अपेक्षा अपनी भावनाओं, विचारों तथा तथ्यों को प्रकट करना ही उद्देश्य होना चाहिए।
(x) लेखन को दोबारा पढ़कर उसमें से अशुद्धियां को दूर करना चाहिए।
(xi) विश्व तथा अपने आस-पास घटित होने वाली घटनाओं, समाज और पर्यावरण पर दृष्टि अवश्य रखनी चाहिए।
(xii) लेखक में तथ्यों को जुटाने तथा किसी विषय पर गंभीरता से विचार करने का धैर्य होना चाहिए।

प्रश्न 7.
समाचार लेखन के छः ककारों का वर्णन कीजिए।
अथवा
छः ककार से क्या तात्पर्य है ? स्पष्ट कीजिए। (HR. 2010 Set-B, 2012 Set-B, 2014 Set-A)
छ: ककारों से तात्पर्य : समाचार लेखन में कब, कहाँ, कैसे, क्या, कौन, क्यों इन्हीं छ: प्रश्नों को छ: ककार कहते हैं।
इन्हीं ककारों.. के आधार पर किसी घटना, समस्या तथा विचार आदि से संबंधित खबर लिखी जाती है।
ये ककार ही समाचार लेखन का मूल आधार होते हैं ।
इसलिए समाचार लेखन में इनका बहुत महत्त्व है।
छः ककारों को हम इस प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं कब-यह समाचार लेखन का आधार होता है।
इस ककार के माध्यम से किसी घटना तथा समस्या के समय का बोध होता है।
जैसे बस दुर्घटना कब हुई ?
बस दुर्घटना सुबह 8 बजे हुई।
कहाँ- इस ककार को आधार बनाकर समाचार लिखा जाता है।
इसके माध्यम से किसी घटना और समस्या के स्थान का चित्रण किया जाता है।
जैसे बस दुर्घटना कहाँ हुई ?
बस दुर्घटना करनाल में हुई।
कैसे- इस ककार के द्वारा समाचार का विश्लेषण, वितरण तथा व्याख्या की जाती है।
क्या- यह ककार भी समाचार लेखन का आधार माना जाता है। इसके द्वारा समाचार की रूप-रेखा तैयार की जाती है।
क्यों- इस ककार के द्वारा समाचार के विवरणात्मक, व्याख्यात्मक तथा विश्लेषणात्मक पहलुओं पर प्रकाश डाला जाता है।
कौन-इस ककार को आधार बनाकर समाचार लिखा जाता है।

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प्रश्न 8.
फीचर से क्या अभिप्राय है ? फीचर और समाचार में क्या अंतर है ? …. (HR. 2013 Set-C, 2014 Set-C)
उत्तर:
फीचर से अभिप्राय-ऐसा सुव्यवस्थित, सृजनात्मक तथा आत्मनिष्ठ लेखन जिसके माध्यम से सूचनाओं के साथ-साथ मनोरंजन पर भी ध्यान दिया जाता है। उसे फीचर कहते हैं। फीचर और समाचार में निम्नलिखित अंत है-……
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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज

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श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 18

श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज Questions and Answers Class 12 Hindi Aroh Chapter 18

पाठ के साथ
Shram Vibhajan Aur Jati Pratha Question Answer Class 12 प्रश्न 1.
जाति-प्रथा को श्रम-विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के क्या तर्क ? (A.I..C.B.S.E. 2016, C.B.S.E. 2010 Set-1, 2011 Set-I, A.I.C.B.S.E. 2011, Set-III, 2012 Set-I, Outside Delhi 2017, Set-1)
उत्तर :
जाति-प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के निम्नलिखित तर्क हैं
(i) जाति-प्रथा श्रम-विभाजन के साथ-साथ श्रमिक विभाजन का रूप लिए हुए है।

(ii) श्रम-विभाजन निश्चय ही सभ्य समाज की आवश्यकता है, परंतु किसी भी सभ्य समाज में श्रम-विभाजन की व्यवस्था श्रमिकों का विभिन्न वर्गों में अस्वाभाविक विभाजन नहीं करती।

(iii) भारत की जाति-प्रथा श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन ही नहीं करती, बल्कि विभाजित विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच भी करार देती है, जो कि विश्व के किसी भी समाज में नहीं पाया जाता।

(iv) जाति-प्रथा को यदि श्रम-विभाजन मान लिया जाए तो यह स्वाभाविक विभाजन नहीं है, क्योंकि यह मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है।

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज

Shram Vibhajan Class 12 Ncert Solutions प्रश्न 2.
जाति-प्रथा भारतीय समाज में बेरोज़गारी व भुखमरी का भी एक कारण कैसे बनती रही है? क्या यह स्थिति आज भी है? (C.B.S.E. Model Q. Paper 2008)
उत्तर :
जाति-प्रथा भारतीय समाज में मनुष्य का पेशा उसके गर्भधारण या जन्म के समय ही निर्धारित कर देती है। यह पेशा उसके माता-पिता के – सामाजिक स्तर के अनुसार दिया जाता है। इसके साथ ही यह केवल पेशे का पूर्व निर्धारण ही नहीं करती, बल्कि मनुष्य को आजीवन उसी पेशे के साथ बाँध देती है। समय परिवर्तन के साथ उद्योग-धंधों, तकनीक आदि में निरंतर विकास होने के कारण प्राचीन पेशे समाज में अपर्याप्त होने लगते हैं तो आदमी बेकार हो जाता है।

वह अपने पेशे को बदलना चाहता है, लेकिन प्रतिकूल परिस्थितियाँ उसे पेशा नहीं बदलने देतीं, जिससे उसके जीवन में भुखमरी फैल जाती है। हिंदू धर्म की जाति-प्रथा किसी भी मनुष्य को पैतृक पेशे के अलावा अन्य पेशा चुनने की अनुमति प्रदान नहीं करती, चाहे उसमें वह अत्यंत कुशल ही क्यों हो। यही कारण है कि जाति-प्रथा के कारण भारतीय समाज में बेरोजगारी और भुखमरी फैलती रही है और यह स्थिति आज भी बनी हुई है।

Shram Vibhajan Class 12 प्रश्न 3.
लेखक के मत से ‘दासता’ की व्यापक परिभाषा क्या है? (Delhi C.B.S.E. 2016, Delhi C.B.S.E. 2013, Set-I, II, III, A.I. C..S.E. 2014, Set-I, II, III, C.B.S.E. Delhi 2017, Set-III, Outside Delhi 2017, Set-II)
उत्तर :
लेखक के अनुसार ‘दासता’ से अभिप्राय केवल कानूनी पराधीनता से नहीं है, बल्कि दासता में वह स्थिति भी सम्मिलित है जिससे कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों द्वारा निर्धारित व्यवहार एवं कर्तव्यों का पालन करने के लिए विवश होना पड़ता है। यह स्थिति कानूनी पराधीनता न होने पर भी पाई जा सकती है।

Class 12 Hindi Shram Vibhajan Question Answer प्रश्न 4.
शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक परंपरा की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद डॉ. आंबेडकर ‘समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैं? इसके पीछे उनके क्या तर्क हैं?
उत्तर :
शारीरिक वंश-परंपरा की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद डॉ. आंबेडकर ‘समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह इसलिए करते हैं, ताकि समाज में सब मनुष्यों के साथ समान व्यवहार किया जाए। प्रत्येक मनुष्य को समता की दृष्टि से देखा जाए। यह आग्रह करने के पीछे डॉ. आंबेडकर के निम्नलिखित तर्क हैं

(i) उत्तम व्यवहार के हक में वे लोग बाजी मार ले जाएंगे, जिन्हें उत्तम कुल, शिक्षा, पारिवारिक ख्याति, पैतृक संपदा तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठा का लाभ प्राप्त है।

(ii) समाज को यदि अपने सदस्यों से अधिकतम उपयोगिता प्राप्त करनी है तो यह संभव है कि जब समाज के सदस्यों को आरंभ’ से ही समान अवसर एवं समान व्यवहार उपलब्ध कराया जाए।

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श्रम-विभाजन और जाति प्रथा Ncert Solutions Class 12 प्रश्न 5.
सही में आंबेडकर ने भावनात्मक समत्व की मानवीय दृष्टि के लिए जातिवाद का उन्मूलन चाहा है, जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों व जीवन-सुविधाओं का तर्क दिया है। क्या इससे आप सहमत हैं?
उत्तर :
हाँ, हम इससे पूर्णत: सहमत हैं कि डॉ. आंबेडकर ने भावनात्मक समत्त्व की मानवीय दृष्टि के लिए जातिवाद का उन्मूलन चाहा है, जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों और जीवन सुविधाओं का तर्क दिया है। समाज में जब तक समता का भाव नहीं आता, तब तक जातिगत विभिन्नता समाप्त नहीं हो सकती, क्योंकि जाति-प्रथा मनुष्य का जन्म से ही पेशा निश्चित कर देती है।

अतः श्रम-विभाजन के आधार पर समाज में विभाजन बढ़ने लगता है। जाति-प्रथा के आधार पर किया गया श्रम-विभाजन रुचि पर आधारित नहीं होता। अत: भावनात्मक समता लाने के लिए जातिगत श्रम-विभाजन की अपेक्षा व्यक्तियों की क्षमता इस सीमा तक विकसित करें जिससे वह अपने पेशे का चुनाव स्वयं कर सके।

Class 12 Hindi Chapter 18 Question Answer प्रश्न 6.
आदर्श समाज के तीन तत्वों में से एक ‘भ्रातृता’ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है अथवा नहीं? आप इस भ्रातृता’ शब्द से कहाँ तक सहमत हैं? यदि नहीं तो आप क्या शब्द उचित समझेंगे?
उत्तर :
आदर्श समाज के तीन तत्वों-स्वतंत्रता, समता और भ्रातृता में से भ्रातृता को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है। केवल स्त्रियों को ही नहीं, बल्कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को उन्होंने अपने आदर्श समाज का हिस्सा बनाया है। उनके आदर्श समाज में प्रत्येक बच्चे, युवा, लड़के-लड़कियाँ, पुरुष-स्त्री सबको समता का अधिकार दिया है। हर कोई स्वतंत्र है। समाज के प्रत्येक मनुष्य में परस्पर भाईचारा है।

हर कोई बंधुत्व की भावना के बंधन में बंधा है। यहाँ प्रत्येक मनुष्य का भाईचारा दूध-पानी के मिश्रण के समान है। जैसे दूध और पानी मिलकर अलग नहीं होते, ठीक वैसे ही इस आदर्श समाज में प्रत्येक व्यक्ति परस्पर अलग नहीं हो सकता। प्रत्येक मनुष्य में अपने साथियों के प्रति श्रद्धा व सम्मान का भाव है। समाज में इतना भाईचारा है कि कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक संचारित होता है। समाज के बहुविधि हितों में सबका हिस्सा है। सब उनकी रक्षा हेतु भी सजग हैं।

पाठ के आस-पास

Shram Vibhajan Aur Jaati Pratha Question Answers Class 12 प्रश्न 1.
डॉ. आंबेडकर ने जाति-प्रथा के भीतर पेशे के मामले में लचीलापन न होने की जो बात की है-उस संदर्भ में शेखर जोशी की कहानी ‘गलता लोहा’ पर पुनर्विचार कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

Shram Vibhajan Aur Jati Pratha Class 12 Question Answer प्रश्न 2.
‘कार्य कुशलता पर जाति-प्रथा का प्रभाव विषय’ पर समूह में चर्चा कीजिए। चर्चा के दौरान उभरने वाले बिंदुओं को लिपिबद्ध कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

इन्हें भी जानें

आंबेडकर की पुस्तक ‘जातिभेद का उच्छेद’ और इस विषय में गांधी जी के साथ इनके संवाद की जानकारी प्राप्त कीजिए। हिंद स्वराज नामक पुस्तक में गांधी जी ने कैसे आदर्श समाज की कल्पना की है, उसे भी पढ़ें।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने कक्षा अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज

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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 1 सिल्वर वैडिंग

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सिल्वर वैडिंग NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 1

सिल्वर वैडिंग Questions and Answers Class 12 Hindi Vitan Chapter 1

Silver Wedding Class 12 NCERT Solutions प्रश्न 1.
यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है, लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं। ऐसा क्यों? (Delhi C.B.S.E. 2016, 2008, 2010 Set-I, C.B.S.E. Outside Delhi Set-I, II, III)
उत्तर :
यशोधर बाबू सचिवालय में सेक्शन ऑफ़िसर हैं। वे अपने काम के प्रति सचेत एवं समय के पाबंद हैं। काम के समय वे अपने सह कर्मचारियों के साथ गंभीर व्यवहार करते हैं जबकि छुट्टी के बाद उनके साथ दोस्तों की तरह व्यवहार करते हैं। ये सभी आदर्श एवं संस्कार उन्हें अपने आदर्श कृष्णानंद से मिले हैं जिन्हें यशोधर आदर से किशनदा कहकर पुकारते हैं।

किशन के संस्कारों और आपसी व्यवहार ने यशोधर बाबू को गहरा प्रभावित किया है। वे प्रत्येक बात किशनदा के नजरिए से देखते हैं। किशनदा पहाड़ से आए युवाओं की समस्याओं को समझते हैं। यशोधर बाबू भी अल्मोड़ा से आकर दिल्ली में किशनदा के घर रहे थे। जब उनकी आयु नौकरी के लिए पूरी नहीं हुई तब तक वे किशनदा के यहाँ रसोइया के रूप में कार्य करते थे। जब आयु पूरी हो गई तो किशनदा ने यशोधर बाबू को अपने नीचे नौकरी दिलवा दी। इसलिए यशोधर बाबू किशनदा की अपनी जिंदगी में अहम भूमिका मानते हैं।

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 1 सिल्वर वैडिंग

उन्हीं के नक्शे-कदम चलते हुए यशोधर बाबू ने भी किशनदा की भाँति अपना घर नहीं बनाया है। वे दिल्ली (पहाड़गंज) में किराये के मकान में रहते हैं। घर बनाने के संदर्भ में किशनदा का मानना था कि “मूर्ख लोग घर बनाते हैं जबकि सियाने उन घरों में बसते हैं। इसलिए किशनदा से प्रभावित होकर यशोधर बाबू भी घर नहीं बनवाते हैं। उन्हें यह बात बिल्कुल भी पसंद नहीं आती कि उनके बच्चे उनकी सालगिरह को ‘सिल्वर वैडिंग’ के रूप में मनाएँ। वे इस आयोजन को फिजूलखर्ची मानते हैं। उनके बच्चे यशोधर बाबू के इसी दृष्टिकोण से सहमत नहीं हैं।

दूसरी ओर यशोधर बाबू की पत्नी अपने बेटों और आधुनिक बेटी के साथ अधिक समय व्यतीत करती है। वह यशोधर बाबू के -साथ इसलिए भी सामंजस्य नहीं बिठा पाती क्योंकि उसका मानना है कि यशोधर बाबू के संस्कारों की वजह से ही वह अपने जीवन को सुखमय ढंग से व्यतीत नहीं कर सकी। जेठानियाँ और बड़े बूढ़ों के दबाव में यशोधर बाबू की पत्नी अपने आप को असहज एवं असुरक्षित महसूस करती थी।

एक बार जब यशोधर बाबू अपनी बेटी को जीन्स और बिना बाजू का टॉप पहनने से मना करते हैं तो वह उनका विरोध करते हुए कहती है-“वह सिर पर पल्लू-वल्लू मैंने कर लिया बहुत तुम्हारे कहने पर समझे, मेरी बेटी वही करेगी जो दुनिया कर रही है।” इस प्रकार कहा जा सकता है कि यशोधर बाबू अपने आदर्श किशनदा से अधिक प्रभावित हैं और आधुनिक परिवेश में बदलते जीवन मूल्यों और संस्कारों के विरुद्ध हैं जबकि उनकी पत्नी अपने बच्चों के साथ खड़ी दिखाई देती है। वह अपने बच्चों के आधुनिक दृष्टिकोण से प्रभावित है। इसलिए यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ परिवर्तित होती है लेकिन यशोधर बाबू अभी भी किशनदा के संस्कारों और परंपराओं से चिपके हुए हैं।

Silver Wedding Class 12 Hindi Ncert Solutions प्रश्न 2.
पाठ में जो हुआ होगा’ वाक्य की कितनी अर्थ छवियाँ आप खोज सकते/सकती हैं? (A.I. C.B.S.E. 2011, 2012, Set-1)
उत्तर :
पाठ में ‘जो हुआ होगा’ वाक्य का संबंध यशोधर बाबू के आदर्श किशनदा की मृत्यु से है। इस कहानी में ‘जो हुआ होगा’ वाक्य की छवि सर्वप्रथम उस समय उभरती है जब किशनदा की मृत्यु के संदर्भ में लेखक का कथन सामने आता है। जिस जगह पर किशनदा का क्वार्टर था उसके सामने यशोधर बाबू ने सोचा कि किशनदा की तरह, घर-गृहस्थी का बवाल ही न पाला होता और ‘लाइफ’ कम्यूनिटी के लिए ‘डेडीकेट’ कर दी होती। फिर वे किशनदा के बारे में सोचने लगे कि किशनदा का बुढ़ापा सुखी नहीं था।

जब सेवानिवृत्ति के छह महीने बाद उन्हें सरकारी क्वार्टर खाली करना पड़ा तब किसी साथी ने उन्हें अपने यहाँ रहने की पेशकश नहीं की जबकि उन्होंने अपने प्रत्येक साथी पर कोई-न-कोई अहसान ज़रूर किया था। स्वयं यशोधर बाबू मजबूर थे क्योंकि उनका विवाह हो चुका था और उनके क्वार्टर में अपने परिवार के बाद कोई भी जगह ऐसी नहीं बची थी कि वे क्वार्टर के किसी कोने में किशनदा को जगह दे सकते। कुछ साल किशनदा राजेंद्र नगर में किराये के मकान में रहे और फिर अपने गाँव वापस चले गए। एक साल बाद वहाँ उनकी मृत्यु हो गई थी। उनके बारे में यह कहा जाता है कि उन्हें कोई गंभीर बीमारी भी नहीं थी। बस सेवानिवृत्ति के बाद उनका चेहरा सूखता मुरझाता-सा चला गया।

जब यशोधर बाबू ने किसी एक रिश्तेदार से पूछा कि किशनदा की मृत्यु कैसे हुई तो उत्तर मिला-“जो हुआ होगा” यानी पता नहीं, क्या हुआ। इस प्रकार यशोधर बाबू यही विचार करते हैं कि जिनके बाल-बच्चे नहीं होते तो उनकी मृत्यु ‘जो हुआ होगा’ जैसी बीमारी से हो जाती है। दूसरे शब्दों में जिनके बाल-बच्चे ही नहीं होते तो वह व्यक्ति अकेलेपन के कारण स्वस्थ दिखने के बाद भी बीमार-सा हो जाता है और उसकी मृत्यु हो जाती है, इसलिए किशनदा की मृत्यु के सही कारणों का पता नहीं चल सका है। बस यशोधर बाबू यही सोचते रह गए कि किशनदा की मृत्यु कैसे हो सकती है, जिसका उत्तर किसी के पास नहीं है।

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 1 सिल्वर वैडिंग

Silver Wedding Question Answer NCERT Solutions प्रश्न 3.
‘समहाउ इंप्रापर’ वाक्यांश का प्रयोग यशोधर बाबू हर वाक्य के प्रारंभ में तकिया कलाम की तरह करते हैं। इस वाक्यांश का उनके व्यक्तित्व और कहानी के कथ्य से क्या संबंध बनता है? (C.B.S.E. Delhi 2009, 2011, Set-1)
उत्तर :
यशोधर बाबू एक मर्यादित एवं संस्कार प्रिय व्यक्ति हैं, इसलिए जब आधुनिक परिवेश में ढले लोग उनसे आधुनिकता के साथ व्यवहार करते हैं या आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार व्यवहार करते हैं तो वे ‘समहाउ इंप्रापर’ कहकर अपनी भावनाएँ व्यक्त करते हैं। यह वाक्य उनका तकिया कलाम बन गई है। यशोधर बाबू जिस कार्यालय में सेक्शन ऑफिसर हैं उसी में एक नौजवान, जिसे सहकर्मी चड्ढा कहकर पुकारते हैं, वह चौड़ी मोहरी वाली पतलून और ऊँची एड़ी वाले फैशनेबल जूते पहने हुए है।

इसकी यही आधुनिक वेशभूषा यशोधर बाबू को ‘समहाउ इंप्रापर’ मालूम होती है। नई पीढ़ी के नये लोग जो आधुनिकता के रंग में रंगे हुए हैं, यशोधर बाबू को बिल्कुल भी ठीक नहीं लगते। इन्हें ही देखकर वे ‘समहाउ इंप्रापर’ जुमले का प्रयोग करते हैं। उनके व्यक्तित्व में यह जुमला पूरी तरह फिट हो गया है। वे यदा-कदा इस वाक्य को जरूर बोलते हैं। यशोधर बाबू अपने पारिवारिक जीवन में अपने बीवी-बच्चों के साथ ठीक से तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं क्योंकि उनके दृष्टिकोण में आधुनिकता हमारे संस्कारों और मर्यादाओं को समाप्त कर देती है।

उनके बेटे और बेटियाँ अपने जीवन में स्वतंत्र हैं। उनकी बेटी जींस और बिना बाजुओं वाला टॉप पहनती है। यशोधर बाबू उसके लिए अनेक वर ढूँढ़ चुके हैं परंतु वह उन सबको अस्वीकार कर चुकी है और पिता को यह धमकी देती है अगर आपने मेरे रिश्ते की बात की तो वह मेडिकल की पढ़ाई के लिए अमेरिका चली जाएगी। यशोधर बाबू अपने बच्चों की तरक्की से खुश तो हैं परंतु उन्हें यह बात ‘समहाउ इंप्रापर’ नहीं लगती कि यह खुशहाली किस काम की जो अपनों में परायापन पैदा कर देती है।

कहानी में यशोधर बाबू का अपने बीवी-बच्चों एवं नई पीढ़ी की सोच के साथ सामंजस्य न बिठा पाना ही मुख्य कथ्य है। संपूर्ण कथ्य में यशोधर बाबू का व्यक्तित्व नई पीढ़ी की नई सोच का विरोधी है। इस प्रकार यशोधर बाबू का यह तकिया कलाम ‘समहाउ इंप्रापर’ उनके व्यक्तित्व और कहानी के कथ्य को और अधिक प्रभावशाली बना देता है।

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Silver Wedding Class 12 Question Answer NCERT Solutions प्रश्न 4.
यशाधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा का महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आपके जीवन को दिशा देने में किसका महत्वपूर्ण योगदान रहा और कैसे? (C.B.S.E. Outside Delhi 2013. Set-III
अथवा
‘किशनदा के अमिट प्रभाव के कारण यशोधर बाब वर्तमान से ताल-मेल नहीं बिठा पाते।’ सिल्वर वैडिंग के आधार पर टिप्पणी कीजिए। (C.B.S.E. 2010, Set-I, A.I.C.B.S.E. 2011. Set-I)
अथवा
यगोधर पंत पार किशनटा के प्रभाव की समीक्षा कीजिए। C.B.S.E. 2012, Set-I)
उत्तर
किशनदा यशोधर बाबू के आदर्श थे। उनकी संपूर्ण शैली किशनदा से अधिक प्रभावित है। वे किशनदा से इतने अधिक प्रभावित हैं कि अपने परिवार से भी सामंजस्य नहीं बिठा पा रहे हैं। घर में छोटी-छोटी बातों को लेकर तनाव की स्थिति उत्पन्न होना कहीं-न-कहीं विचारों में सामंजस्य की कमी को दर्शाता है। कहानी के अंत में यह तथ्य भी उजागर होता है कि यशोधर बाबू संस्कारों और मर्यादाओं से जुड़े हैं। उनका मन भारतीय परिवेश के अनुकूल सोचता है परंतु यह भी सत्य है कि वे कहीं-न-कहीं इस बात से भी खुश हैं कि उनके बच्चे उनसे अधिक सुलझे हुए हैं।

जहाँ तक मेरे जीवन को दिशा देने में किसका महत्वपूर्ण योगदान रहा है, उसके लिए तीन बातें बड़ी महत्त्वपूर्ण हैं-माता-पिता के द्वारा दिए गए संस्कार, गुरुजनों द्वारा दी गई शिक्षाएँ और आदर्श तथा साहित्य के साथ जुड़ाव व साहित्यिक वातावरण में जीवन की लालसा। सर्वप्रथम माता-पिता उसकी पाठशाला के अध्यापक होते हैं। जैसे शिक्षा और संस्कार माँ-बाप देते हैं वैसी व्यक्ति की जीवन-शैली हो जाती है। भावुकता, संवेदना और पारिवारिक भाईचारा माँ और पिता के साथ जीने वाले पारिवारिक सदस्यों से जुड़कर पैदा होता है।

माता-पिता के सानिध्य में जीकर मैं अधिक संवेदनशील एवं भावुक बना हूँ। गुरुजनों के आदर्श और शिक्षाएँ व्यक्ति को अत्यधिक प्रभावित करते हैं। चरित्रवान अध्यापक आपके चरित्र को भी प्रभावित करता है। अध्यापक के सुच्चरित्र और परिश्रमी होने से विद्यार्थी भी चरित्रवान एवं परिश्रम करने लगता है। देशप्रेम, विश्व बंधुत्व और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को याद रखना शायद मैंने गुरुजनों की शिक्षाओं और आदर्शों से जाना है। मैं साहित्य का विद्यार्थी हूँ इसलिए समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को समझता हूँ।

साहित्य और समाज में एक सुमेल होता है। साहित्य समाज से प्रभावित भी होता है और समाज को प्रभावित करता है। इसलिए मेरी साहित्यिक अभिरुचियाँ मुझे समाज के प्रति जागरूक एवं सचेत बनाती हैं। इस प्रकार, मैं ऐसा समझता हूँ कि हमें यशोधर बाबू की भाँति संवेदनशील होना चाहिए। परंपराओं और संस्कारों से जुड़ना चाहिए। माता-पिता के प्रति हमें अपने कर्तव्यों का निर्वाहन ठीक से करना चाहिए। समाज के प्रति अधिक संवेदनशील एवं कर्तव्यशील बनना चाहिए। चरित्रवान गुरुजनों की शिक्षा और संस्कारों को जीवन में उतारना चाहिए।

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 1 सिल्वर वैडिंग

सिल्वर वेडिंग पाठ के प्रश्न उत्तर NCERT Solutions प्रश्न 5.
वर्तमान समय में परिवार की संरचना, स्वरूप से जुड़े आपके अनुभव इस कहानी से कहाँ तक सामंजस्य बिठा पाते हैं ?
अथवा
पीढ़ियों के अंतराल के कारणों पर प्रकाश डालिए। क्या इस अंतराल को कुछ पाटा जा सकता है? कैसे ? (A.I.C.B.S.E. 2009, 2010, Set-1, 2011, Set-II):
अथवा
‘यशोधर पंत की पीढ़ी की विवशता यह है कि वो पुराने को अच्छा समझते हैं और वर्तमान से तालमेल नहीं बैठा पाते’- इस कथन के आधार पर समीक्षा कीजिए। (C.B.S.E. 2012, Set-III)
अथवा
‘सिल्वर वैडिंग’ के आधार पर उन जीवन-मूल्यों की सोदाहरण समीक्षा कीजिए जो समय के साथ बदल रहे हैं। (C.B.S.E. 2014, Set-I, II, III)
उत्तर :
वर्तमान समय औद्योगिक, सूचना और तकनीकी क्रांति का युग है। मशीनीकरण और सूचना तकनीक ने संपूर्ण परिवेश को प्रभावित किया है। प्रत्येक मनुष्य की संवेदनाओं और भावनाओं में परिवर्तन आया है। पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव भारतीय पारिवारिक संरचना और स्वरूप को प्रभावित कर रहा है। पुराने समय में संयुक्त परिवार का चलन अधिक था। बच्चों का उन रिश्तों के प्रति संवेदनशील होना स्वाभाविक था। एक-दूसरे के सुख-दुःख में शामिल होना अनिवार्य था।

एक-दूसरे की भावनाओं को समझना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य था, परंतु आधुनिक परिवेश में व्यक्ति केवल अपने बारे में सोचता है।प्रस्तुत कहानी ‘सिल्वर वैडिंग’ में यशोधर बाबू अपने आदर्श किशनदा से अत्यधिक प्रभावित हैं। वे अपने बीवी-बच्चों को किशनदा के आदर्शों के अनुसार चलाना चाहते हैं। वे स्वयं अपने जीवन में समय के पाबंद, संवेदनशील, पारिवारिक एवं समाज के प्रति अपने कर्तव्य को समझते हैं। जीवन के मूल्यों और रिश्ते-नातों को बनाए रखना चाहते हैं। इसके विपरीत उनके बीवी-बच्चे उनके दृष्टिकोण से अलग सोच रखते हैं। यशोधर बाबू साइकिल से दफ्तर जाते हैं परंतु उनके बच्चों का सोचना है कि आज साइकिल से दफ्तर केवल चपरासी जाते हैं जबकि यशोधर बाबू सचिवालय में सेक्शन ऑफिसर हैं।

यशोधर बाबू को स्कूटर की सवारी बेहुदा लगती है और कार खरीदने की स्थिति में वे नहीं हैं इसलिए पैदल ही ऑफिस जाते हैं। वे अपने जीजा जी का हाल-चाल पूछने के लिए अहमदाबाद जाना चाहते हैं परंतु उनका नौकरीपेशा बेटा उन्हें वहाँ जाने के लिए किराए के रुपये देने से मना कर देता है। उन्होंने अपनी पढ़ी-लिखी बेटी को सौ बार समझाया कि वह जींस और बिना बाजुओं का टॉप मत पहने परंतु उनकी बेटी ज्यादातर इसी प्रकार की वेशभूषा पहनती है।

यशोधर बाबू ने अपने विवाह में लड्डू बनवाने के लिए बैंक से दस हजार रुपए कर्जा लिया था जबकि उनके बच्चे उनकी साल गिरह के पच्चीस वर्ष होने के मौके पर ‘सिल्वर वैडिंग’ मनाते हैं तथा व्हिस्की आदि नशीले द्रव्यों का सेवन करते हैं। यशोधर बाबू को अपने परिवार की ये सभी बातें दुःखी करती हैं।

कहानी की कथा-वस्तु के अनुसार यशोधर बाबू और उनके बच्चों की सोच में पीढ़ी अंतराल आ गया है। यशोधर बाबू संस्कारों से जुड़े रहना चाहते हैं और संयुक्त परिवार की संवेदनाओं को अनुभव करते हैं जबकि उनके बच्चे अपने आप में जीना चाहते हैं। इसलिए जरूरत इस बात की है कि यशोधर बाबू को अपने बच्चों की सकारात्मक नई सोच का स्वागत करना चाहिए, परंतु यह भी अनिवार्य है कि आधुनिक पीढ़ी के बेतुके संस्कार और जीवन-मूल्यों के प्रति उदासीनता संवेदनाओं और भावनाओं को खत्म करते हैं। इसलिए शुरूआत दोनों तरफ से होनी चाहिए ताकि एक नए एवं सांस्कारिक समाज की स्थापना की जा सके।

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 1 सिल्वर वैडिंग

Silver Wedding Ncert Solutions प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किसे आप कहानी की मूल संवेदना कहेंगे कहेंगी और क्यों ?
(क) हाशिए पर धकेले जाते मानवीय मूल्य
(ख) पीढ़ी अंतराल (C.B.S.F. 2013. Set-11)
(ग) पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव।
उत्तर :
‘सिल्वर वैडिंग’ सुप्रसिद्ध कथाकार ‘मनोहर श्याम जोशी’ द्वारा रचित एक संवेदनशील कहानी है। इस कहानी में अपने आदर्श किशनदा के संस्कारों और जीवन-मूल्यों से जुड़े यशोधर बाबू और उनके आधुनिक परिवेश में बड़े हो रहे बच्चों की नई सोच में अंतर को चित्रित किया गया है। उपर्युक्त प्रश्नों में तीन मुख्य बातों को दर्शाया गया है। अगर यह कहें कि इन बातों का ही मिश्रण प्रस्तुत कहानी की मूल संवेदना है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। कहानी में यह बात पूर्णतः सत्य है कि आधुनिक पीढ़ी मानवीय मूल्यों को ताक पर रख रही है।

वह केवल अपने तरीके से सोचती है, फिर चाहे उनके परिवार के अन्य सदस्य उनसे कितने ही असंतुष्ट ही क्यों न हों। दोनों पीढ़ियों के बीच अंतराल भी मूल हो सकता है और पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भी कहीं-न-कहीं नई पीढ़ी को प्रभावित करता है। लेकिन यदि किसी एक बिंदु को ही कहानी की मूल संवेदना कहा जाए तो निश्चित रूप से पीढ़ी-अंतराल ही इस कहानी की मूल संवेदना ही है। कहानी के संपूर्ण कथानक का अगर अवलोकन किया जाए तो यह कथन अधिक संगत होगा कि यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी के पक्षधर हैं और उनके बच्चे नई पीढ़ी के प्रतिनिधि के रूप में सामने आते हैं।

यह कथन भी सही हो सकता है कि यशोधर बाबू की सोच बीवी-बच्चों की सोच से मेल नहीं खाती, परंतु कुछ बातें यशोधर बाबू केवल किशनदा के दृष्टिकोण से सोचते हैं जो समय परिवर्तन के साथ अप्रसांगिक हो गई हैं; जैसे यशोधर बाबू किशनदा से प्रभावित होकर घर नहीं बनाते जबकि उनके सभी सहकर्मियों ने अपने-अपने घर बना रखे हैं, इसलिए उनके बच्चों का यह कहना कि आपने डी० डी० ए० की स्कीम के अनुसार अपना घर क्यों नहीं बनवाया, एक प्रश्न हो सकता है। यशोधर बाबू की बेटी अभी विवाह नहीं करना चाहती है बल्कि अपना करियर बनाना चाहती है परंतु यशोधर बाबू को यह बात अखरती है।

अगर वह मेडिकल की पढ़ाई करके अपना भविष्य अधिक उज्ज्वल एवं सुरक्षित करना चाहती है तो यशोधर बाबू को बजाय इसका विरोध करने के बेटी का साथ देना चाहिए, क्योंकि जब वह जीवन में सफल हो जाएगी तो उसके लिए रिश्तों की कोई कमी नहीं रहेगी। दूसरी बात यह कि नौकरीपेशा बेटे भूषण के द्वारा पिता की ‘सिल्वर वैडिंग’ पर ऊनी डैसिंग को गिफ्ट देकर यह कहना, “आप सवेरे जब दूध लेने जाते हैं बब्बा, फटा फुलोवर पहन कर चले जाते हैं जो बहुत ही बुरा लगता है। आप इसे पहनकर जाया कीजिए।” यह बात यशोधर बाबू को और भी बुरी लगती है।

उन्हें तब और खुशी होती यदि बेटा यह कहता है कि पिता जी कल से दूध में लेकर आया करूँगा। अंततः यह कहना अधिक तर्कसंगत होगा कि पीढ़ी अंतराल के कारण यशोधर बाबू अपने अनुसार सोचते हैं जबकि उनके बच्चे नई पीढ़ी की सोच के अनुसार व्यवहार करते हैं। इसलिए इस कहानी की मूल संवेदना ‘पीढ़ी-अंतराल’ है।

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 1 सिल्वर वैडिंग

Silver Wedding Class 12 Ncert Solutions प्रश्न 7.
अपने घर और विद्यालय के आस-पास हो रहे उन बदलावों के बारे में लिखें जो सुविधाजनक और आधुनिक होते हुए भी बुजुर्गों को अच्छे नहीं लगते। अच्छा न लगने के क्या कारण होंगे?
उत्तर:
आधुनिक युग परिवर्तनशील एवं अधिक सुविधासंपन्न है। आज के युवा अपने अनुसार सोचते हैं। वे तत्काल नई जानकारियाँ चाहते हैं जिसके लिए उनके पास कंप्यूटर, इंटरनेट एवं मोबाइल जैसी आधुनिक तकनीक है। इसके माध्यम से वे कम समय में ज्यादा जानकारी एकत्र कर लेते हैं। घर से विद्यालय जाने के लिए अब उनके पास बढ़िया साइकिलें एवं मोटर-साइकिलें हैं। इनके माध्यम से उनका समय बच जाता है और वे समय पर विद्यालय और विद्यालय से घर पहुंच जाते हैं।

आज युवा लड़कों और लड़कियों के बीच का अंतर काफ़ी कम हो गया है। पुराने जमाने में लड़कियाँ लड़कों के साथ इतना घुल-मिलकर नहीं रहती थीं जैसे आज के परिवेश में रहती हैं। युवा लड़कों और लड़कियों द्वारा अंगदिखाऊ वस्त्र पहनना आज आम बात हो गई है। वे एक साथ देर रात तक पार्टियाँ कर लेते हैं। नशीले द्रव्यों और पदार्थों का सेवन कर लेते हैं। इंटरनेट के माध्यम से अश्लील चित्र
और असभ्य जानकारियाँ प्राप्त करते हैं।

ये सारी बातें उन्हें आधुनिक एवं सुविधाजनक लगती हैं। दूसरी ओर ये सभी बातें बुजुर्गों को अच्छी नहीं लगतीं। क्योंकि जब वे अपने समय में युवा थे, उस समय संचार के साधनों की कमी थी। पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण युवा अपनी भावनाओं को काबू में रखते थे। अपने से बड़ों के सामने अदब से बात करते थे और बड़ों की तरह ही सोचते थे। आज वे बड़ों की तरह नहीं सोचते। वे अपनी मर्जी के मालिक हैं। भारतीय संस्कारों और मर्यादाओं को वे बीते जमाने की बातें कहते हैं। उनकी इसी सोच को बुजुर्ग बुरा समझते हैं। आधुनिक परिवेश के युवा बड़े-बूढ़ों के साथ बहुत कम समय व्यतीत करते हैं, इसलिए सोच एवं दृष्टिकोण में अधिक अंतर आ जाता है। इसी अंतर को ‘पीढ़ी-अंतराल’ कहते हैं। इस प्रकार युवा पीढ़ी की यही नई सोच बुजुर्गों को अच्छी नहीं लगती।

Silver Wedding Class 12 Hindi NCERT Solutions प्रश्न 8.
यशोधर बाबू के बारे में आपकी क्या धारणा बनती है? दिए गए तीन कथनों में से आप जिसके समर्थन में हैं, अपने अनुभवों और सोच के आधार पर उसके लिए तर्क दीजिए
(क) यशोधर बाबू के विचार पूरी तरह से पुराने हैं और वे सहानुभूति के पात्र नहीं हैं।
(ख) यशोधर बाबू में एक तरह का वंव है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता तो है पर पुराना छोड़ता नहीं, इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की ज़रूरत है।
(ग) यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व है और नई पीढ़ी द्वारा उनके विचारों को अपनाना ही उचित है।
उत्तर :
उपर्यक्त प्रश्न में दिए गए तीन कथनों में से मैं ‘ख’ कथन के साथ यशोधर बाब के बारे में धारणा बनाता है। इस कहानी के संपूर्ण कथानक में यशोधर बाबू के अंतद्वंद्व को दर्शाया गया है। वह अपने बीवी-बच्चों के साथ जुड़ना चाहते हैं, उनके साथ हँसना चाहते हैं। वह इस बात से काफ़ी संतुष्ट हैं कि उनके सभी बच्चे अपने-अपने काम के प्रति सचेत और जागरूक हैं। उसके सभी बच्चे अपनी जिंदगी में सफल हैं और एक सही जीवन जी रहे हैं।

उनका बड़ा बेटा भूषण उनके क्वार्टर को अपना घर बना लेता है। वह इस क्वार्टर में घर की सभी चीजें जैसे फ्रिज, टी०वी०, डबलबेड और डनलप के गद्दे आदि लेकर आता है। यशोधर बाबू को यह खुशी है कि आज उसके घर में सभी सुविधाएँ हैं परंतु भूषण का यह अत्यधिक खर्च उनको अच्छा नहीं लगता। उनके बीवी-बच्चे उनकी पच्चीसवीं साल गिरह को ‘सिल्वर वैडिंग’ के रूप में मनाते हैं। यशोधर बाबू को यह सोचकर बड़ी खुशी मिलती है कि उसने जब विवाह किया था तो बैंक से कर्ज लिया था।

आज उसके बच्चे उसके लिए उपहार लाते हैं परंतु उन्हें यह बात भी बुडी लगती है कि उनकी सिल्वर वैडिंग के समय भूषण और उसके दोस्त व्हिस्की के जाम चढ़ाते हैं। यशोधर जब सवेरे दूध लेने जाते हैं तो फटा हुआ फुलोवर पहनकर जाते हैं। बच्चों को यह बात बुरी लगती है और बड़ा बेटा भूषण उन्हें ऊनी ड्रेसिंग गाउन उपहार में देता है और कहता है कि आप सुबह ठंड से बचने के लिए इसे पहनकर दूध लाया करो। यशोधर मन ही मन खुश है कि वे आज ऊनी ड्रेसिंग गाउन पहन सकते हैं, परंतु भूषण की यह बात उन्हें कचोटती है कि वह मुझे दूध लाने को कहता है जबकि उनसे ये क्यों नहीं कहा कि अब आप आराम करो और मैं सुबह दूध लेकर आया करूँगा।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि यशोधर बाबू में एक तरह का द्वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें खींचता तो है पर पुराना छोड़ता नहीं। दूसरे शब्दों में वे नयेपन से खुश तो है परंतु वे पुरानी परंपराओं और संस्कारों से जुड़े रहना चाहते हैं।

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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 4 डायरी के पन्ने

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डायरी के पन्ने NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 4

डायरी के पन्ने Questions and Answers Class 12 Hindi Vitan Chapter 4

Diary Ke Panne Class 12 Ncert Solutions प्रश्न 1.
“यह साठ लोगों की तरफ़ से बोलनेवाली एक आवाज़ है। एक ऐसी आवाज़, जो किसी संत या कवि की नहीं, बल्कि एक साधारण लड़की की है।” इल्या इहरनबर्ग की इस टिप्पणी के संदर्भ में ऐन फ्रैंक की डायरी के पठित अंशों पर विचार करें।
उत्तर :
पाठ्यक्रम में संकलित ऐन फ्रैंक की डायरी एक सशक्त रचना है। इस कृति में ऐन ने अपने अच्छे-बुरे, मीठे-कड़वे अनुभवों को व्यक्त किया है। यह डायरी ऐन फ्रैंक ने अपनी उपहार में मिली गुड़िया ‘किकी’ को संबोधित करके लिखी है। यह गुड़िया उसे अपने अच्छे दिनों में जन्मदिन के अवसर पर मिली थी। द्वितीय वर्ष (1939-1945) के समय लगभग संपूर्ण विश्व भय एवं आतंक के साये में जीने के लिए मजबूर था। जर्मनी के नाजियों ने हालैंड के यहूदियों पर अनेक पीडाजन्य अत्याचार किए।

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 4 डायरी के पन्ने

ऐन ने यह डायरी 2 जून, 1942 से लेकर 1944 की अवधि में लिखी थी। 8 जून, 1942 को लिखी एक चिट्ठी में ऐन ‘किकी’ को बताती है कि वह एक खुशनुमा दिन था। मैं दोपहर की धूप में अलसायी-सी ऊपर की मंजिल पर बैठी थी तभी यह खबर मिली कि पिता जी को ए०एस०एस० से बुलावा आया है और हम किसी भी कीमत पर पिता जी को अलग नहीं होने देना चाहते थे। अतः यह निर्णय लिया गया कि हमारा परिवार और पिता जी के बिज़नेस पार्टनर वान दान परिवार के सभी सदस्य पिता के कार्यालय के साथ सटे गोदाम में रहेंगे। हमारे साथ मिस्टर डसेल भी थे।

कुल मिलाकर हम आठ सदस्य हो गए थे। वहाँ बंद कमरों में हम केवल हँसी-मजाक या इधर-उधर की बातें कर सकते थे। कुछ ही दिनों में सभी बातें और लतीफे सभी बासी (पुराने) पड़ गए थे। फलस्वरूप अब हम केवल बोर हो सकते थे। रात के समय घर में कोई रोशनी नहीं कर सकते थे इसलिए हमें दो साल तक रातें अँधेरे में ही गुजारनी पड़ी। ऐन कहती है कि सेंधमारी, चोरी और पुलिस की धर-पकड़ की आशंका निरंतर बनी रहती थी। नाजी हम पर कभी भी हमला कर सकते थे। प्रकृति से हमारा नाता बिल्कुल कट चुका था। लंबे समय तक तहखानों की जिंदगी नरक

से भी बदतर हो चुकी थी। भूख, प्यास, शारीरिक और मानसिक यंत्रणा ने हमारा जीवन नारकीय बना दिया था। कम-से-कम मेरे शारीरिक परिवर्तन ने मुझे लगातार परेशान किया था। मेरे दिल की बात सुनने वाला कोई नहीं था। जब ऐन ने परिवार सहित अपना घर छोड़ा था, उसकी उम्र तेरह वर्ष की थी। परंतु वहीं अज्ञातवास जैसे जीवन में रहते वह पंद्रह वर्ष की हो गई थी। ऐन अपने साथ रह रहे वान दान दंपति के बेटे पीटर को प्यार करने लगती है। वह उसके लिए बेचैन रहती है। उसके पास बैठकर बातें करना चाहती है। पीटर भी ऐन को प्यार करता है परंतु इस परिस्थिति को वह अपने परिवार से अभिव्यक्त नहीं करता। ऐन चाहती है कि कोई तो हो जो उसके भावनाओं की कद्र कर उसकी भावनाओं को समझे। ऐन मन मसोस कर रह जाती है।

उस समय यूरोप में यहूदियों की जनसंख्या लगभग साठ लाख थी। संपूर्ण विश्व युद्ध के कारण यहूदी कुछ ऐन जैसा नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर थे। चारों तरफ भूख, गरीबी, बीमारी, शारीरिक एवं मानसिक यातानाएँ, डर आदि का साम्राज्य था। वे लगातार अंधेरे बंद कमरों में जीने की कोशिश कर रहे थे। यहूदी समुदाय ही एक ऐसा समुदाय था जो इस युद्ध में सबसे अधिक प्रभावित था। युद्ध समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा था और यह समुदाय नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर था।

ऐन ने केवल अपने अथवा अपने परिवार की भावनाओं को इस डायरी के माध्यम से व्यक्त नहीं किया बल्कि लगभग साठ लाख यहूदी समुदाय की दुःख-भरी जिंदगी को कलमबद्ध किया है। इसलिए इल्या इहरन बुर्ग की यह टिप्पणी कि ‘यह साठ लाख लोगों की तरफ से बोलने वाली एक आवाज़ है। एक ऐसी आवाज़ जो किसी संत या कवि की नहीं, बल्कि एक साधारण लड़की की है।’ बिलकुल सर्वमान्य एवं सत्य है। किशोरी ऐन उन साठ लाख यहूदियों का प्रतिनिधित्व करती है जिन्हें द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अमानवीय जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ा था।

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Diary Ke Panne Question Answer NCERT Solutions प्रश्न 2.
“काश, कोई तो होता जो मेरी भावनाओं को गंभीरता से समझ पाता। अफ़सोस, ऐसा व्यक्ति मुझे अब तक नहीं मिला……..” क्या आपको लगता है कि ऐन के इस कथन में उसके डायरी-लेखन का कारण छिपा है ?
अथवा
अपने पुरुष मित्र के बारे में ऐन फ्रैंक के विचारों पर प्रकाश डालिए। (C.B.S.E. 2010 Set-III. C.B.S.E. Outside Delhi 2013. Set-II)
उत्तर :
ऐन फ्रैंक परिवार की सबसे छोटी सदस्य थी। जब परिवार एक अन्य परिवार के साथ अज्ञातवास के लिए घर छोड़कर भागा था तो उस समय उसकी उम्र केवल तेरह वर्ष की थी और उसकी बड़ी बहन मार्गोट की उम्र सोलह वर्ष थी। ऐन एक किशोरी थी। उसके दिल-दिमाग की भावनाएँ निरंतर उद्वेलित होती रहती थीं। संयुक्त परिवार के सभी सात सदस्य ऐन को तुनकमिज़ाज, मूर्ख तथा अक्खड़ समझा करते थे।

मिसेज वान दान और मिस्टर डसेल उस पर हमेशा आरोपों की बौछार किया करते थे। मिस्टर डसेल उस पर अत्यधिक अनुशासन लादते थे। जब वह उसकी अनावश्यक बातों को अनसुना करती तो वे उसकी शिकायत ऐन की माँ से करते थे। माँ भी मिस्टर डसेल के साथ हो जाती। इस प्रकार की घटनाएँ ऐन के भावुक हृदय पर चोट किया करती थीं।

जब कभी भी वह नहाकर अपने बालों का कोई हेयर स्टाइल बनाकर बाहर आती तो भी उसका मजाक उड़ाया करते थे। आधे घंटे तक वह उनकी टिप्पणियों को अनसुना करती परंतु जब हृदय चीर देने वाली टीका-टिप्पणियों की हद हो जाती तो फिर वह अपने व्यवस्थित किए बालों को हाथों से पहले की तरह उलझा देती थी।

दो वर्ष के अज्ञातवास में ऐन तेरह से पंद्रह वर्ष की हो गई थी, उसमें शारीरिक परिवर्तन हो रहे थे। वह अपने साथ वान दान परिवार के इकलौते बेटे पीटर को प्यार करने लगती है। पीटर एक भला एवं समझदार लड़का है। वह भी ऐन को पसंद करता है, उसे प्यार करता है, परंतु इन परिस्थितियों में अपने प्यार को व्यक्त नहीं करता। ऐन चाहती है कि पीटर उसकी भावनाओं को समझे और उसके हृदय की आवाज़ को सुने, परंतु किसी के पास भी किशोरी ऐन की भावनाओं को समझने का समय नहीं है।

उसकी भावनाएँ सदा उसे उद्वेलित करती रहती हैं। वह कहती भी है, “काश, कोई तो होता जो मेरी भावनाओं को गंभीरता से समझ पाता।” अफसोस, ऐसा व्यक्ति मुझे अब तक नहीं मिला………” हाँ, यह कथन ऐन के डायरी लेखने का बड़ा कारण हो सकता है क्योंकि ऐन ने अपनी डायरी में अपनी भावनाओं को बखूबी व्यक्त किया है, इसलिए इस कथन में डायरी लिखने का कारण छिपा हुआ है।

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Diary Ke Panne Class 12 Question Answer NCERT Solutions प्रश्न 3.
‘प्रकृति-प्रदत्त प्रजनन-शक्ति के उपयोग का अधिकार बच्चे पैदा करें या न करें अथवा कितने बच्चे पैदा करें-इसकी स्वतंत्रता स्त्री से छीन कर हमारी विश्व-व्यवस्था ने न सिर्फ स्त्री को व्यक्तित्व-विकास के अनेक अवसरों से वंचित किया है बल्कि जनाधिक्य की समस्या भी पैदा की है।’ ऐन की डायरी 13 जून, 1944 के अंश में व्यक्त विचारों के संदर्भ में इस कथन का औचित्य ढूँढ़े।
अथवा
‘डायरी के पन्ने’ के आधार पर फ्रैंक के महिलाओं के प्रति विचारों पर प्रकाश डालिए। (A.I. C.B.S.E. 2016, C.B.S.E. 2010, 2011 Set-I, 2013 Set-I, II, III, C.B.S.E. Outside Delhi 2013 Set-I, II, III, C.B.S.E. Delhi 2017 Set-I, II, III)
उत्तर :
13 जून, 1944 के अंश में ऐन फ्रैंक समाज में स्त्री की स्थिति को लेकर चिंतित दिखाई देती है। उसके मन में इस बात को लेकर गुस्सा है कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर सम्मान और अधिकार क्यों नहीं दिया जाता है। वह मानती है कि संभवतः पुरुषों ने औरतों पर शुरू से ही इस आधार पर शासन करना शुरू कर दिया कि वे उनकी तुलना में शारीरिक रूप से ज्यादा सक्षम हैं। ऐन कहती है कि यह गलत धारणा है कि पुरुष को घर का मुखिया माना जाता है।

इस धारणा का पक्ष लेते हुए कुछ लोग कहते हैं कि पुरुष महिलाओं से अधिक सक्षम होते हैं क्योंकि वे कमाकर लाते हैं, बच्चों का पालन-पोषण करते हैं, परंतु यह भी सच्चाई है कि पुरुष वही कार्य करता है जो उसके मन को अच्छा लगता है। ऐन को लगता है कि शायद अब स्थिति बदल चुकी है। वह महिलाओं की इस बात को बेवकूफी मानती है कि वे सब कुछ सहती रहती हैं। कभी भी पुरुष के बराबर अपने आप को साबित नहीं करती हैं। ऐन का मानना है कि महिलाओं को पुरुषों से कम आँकना एक गलत प्रथा है।

अगर यह प्रथा जल्द खत्म नहीं नी जड़ें गहरी करती जाएगी। ऐन आश्वस्त है कि शिक्षा, काम और प्रगतिशीलता ने महिलाओं की आँखें खोल दी हैं। कई देश अब महिलाओं को पुरुषों के बराबर दर्जा देते हैं क्योंकि यह गलत एवं बेहूदा परंपरा है कि महिलाओं की उपेक्षा की जाए। अब महिलाएँ पूर्णतः स्वतंत्र होना चाहती हैं। ऐन इस बात से संतुष्ट नहीं है कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार मिले, बल्कि उन्हें पुरुषों के बराबर सम्मान भी मिलना चाहिए।

सारी दुनिया पुरुषों का ही सम्मान करती है, जबकि महिलाएँ सदा उपेक्षित कर दी जाती हैं। सैनिकों और युद्धवीरों का सम्मान किया जाता है, उन्हें पुरस्कृत भी किया जाता है और लोग उन्हें अमर मानते हैं। देश पर मिटने वालों की पूजा की जाती है लेकिन ऐसे लोगों की संख्या नगण्य ही है जो महिलाओं को भी सैनिकों के बराबर सम्मान देते हैं।

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 4 डायरी के पन्ने

ऐन श्री पोल दे क्रइफ की पुस्तक ‘मौत के खिलाफ़’ मनुष्य का जिक्र करते हुए कहती है कि आमतौर पर यह मान लिया जाता है कि युद्ध में लड़ने वाले सैनिक अत्यधिक दुःख, तकलीफ़, पीड़ा, बीमारी और यंत्रणा से गुजरते हैं। परंतु उसका मानना है कि इससे कहीं अधिक दर्द औरतें बच्चे को जन्म देते समय झेलती हैं। जब सैनिकों को सम्मान दिया जाता है तो फिर औरतों को क्यों नहीं। ऐन पुरुषों की इस गलत मानसिकता का पर्दाफाश करती है कि जब बच्चे को जन्म देने के बाद औरत का शरीर सौंदर्य विहीन होकर आकर्षण खो देता है पुरुष उसे एक तरफ धकिया देता है। यहाँ तक कि उसके बच्चे भी उसे छोड़ जाते हैं

और औरतें संपूर्ण जीवन में सैनिकों से भी अधिक संघर्ष करते हुए मानव जाति की निरंतरता को बनाए रखती है। इसलिए वह एक बड़े सम्मान की हकदार है जो उसे मिलना ही चाहिए। ऐन आशावादी है कि अगली सदी में औरतें अधिक सम्मान और प्रशंसा की हकदार होंगी और उनको समाज पूरा सम्मान देगा।

Dairy Ke Panne Class 12 Hindi NCERT Solutions प्रश्न 4.
“ऐन की डायरी अगर एक ऐतिहासिक दौर का जीवंत दस्तावेज़ है, तो साथ ही उसके निजी सुख-दुःख और भावनात्मक उथल-पुथल का भी। इन पृष्ठों में दोनों का फर्क मिट गया है।” इस कथन पर विचार करते हुए अपनी सहमति या असहमति तर्कपूर्वक व्यक्त करें।
अथवा
‘ऐन फ्रैंक की डायरी’ की प्रसिद्धि के कारण लिखिए। (C.B.S.E. 2010, Set-I)
अथवा
ऐन फ्रैंक की डायरी को एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज क्यों माना जाता है? (C.B.S.E. 2011, A.I. C.B.S.E. 2012, Set-1, 2014 Set-1)
उत्तर :
ऐन फ्रैंक द्वारा रचित ‘ऐन फ्रैंक की डायरी’ एक सशक्त, प्रशंसनीय और महत्वपूर्ण दस्तावेज है। द्वितीय विश्व-युद्ध 1939-45 के बीच लड़ा गया है। इस युद्ध ने संपूर्ण विश्व को झकझोर कर रख दिया था। यूरोप और एशिया महाद्वीप इस भयंकर युद्ध की लपटों में बुरी तरह झुलस गए थे। जापान के दो बड़े नगर ‘हिरोशिमा’ और ‘नागासाकी’ अमेरिका की बमबारी में अपने अस्तित्व को ही खो चुके थे। यह एक ऐतिहासिक त्रासदी थी जिसने संसार के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया था।

ऐन फ्रैंक की उम्र उस समय तेरह वर्ष की थी जब वह अपने परिवार और पारिवारिक साथियों के साथ अपने पिता के कार्यालय और गोदाम में दो वर्ष तक नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर हुई थी। इस समूह में कुल आठ सदस्य थे-ऐन के माता-पिता और सोलह वर्षीय उसकी बड़ी बहन मार्गोट । एक अन्य वान दान परिवार के तीन सदस्य पीटर और उसके माता-पिता तथा एक अन्य सदस्य मिस्टर

डसेल थे जो ऐन के पिता के साथ काम करते थे। कार्यालय में कार्यरत कुछ कर्मचारियों ने इस अज्ञातवास के समय इन आठ सदस्यों की सहायता की थी।ऐकाऔर उसके साथ रह रहे सात सदस्य दो वर्ष तक इन अंधेरे बंद कमरों में कष्टपूर्ण जीवन व्यतीत किया था। जर्मनी के नाज़ियों ने यहूदियों पर बहुत अधिक अत्याचार किए थे। यहूदी समुदाय ही एक ऐसा समुदाय था जो अत्याचारों से सबसे अधिक प्रभावित था। यह समुदाय भूख, ग़रीबी, बीमारी और शारीरिक एवं मानसिक यातनाओं से जख्मी था।

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 4 डायरी के पन्ने

ऐन अपनी डायरी में अपने मन की पीड़ा को भी व्यक्त करती है। वह इस पारिवारिक समूह की सबसे छोटी उम्र की सदस्या है। उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं देता है। सब उसे बिगडैल, अक्खड़, तुनकमिजाज एवं मूर्ख समझते हैं। उसके हृदय में उठने वाली भावनाओं की कोई कद्र नहीं करता। वह पीटर को दिल से चाहती है। वह चाहती है कि पीटर उसके साथ बैठकर बातें करे। अब ऐन की उम्र पंद्रह वर्ष की हो गई है। उसके मन में पीटर के प्रति प्यार उमड़ता है। पीटर भी उससे प्यार करता है परंतु अपने प्यार की अभिव्यक्ति नहीं करता क्योंकि जिन परिस्थितियों में यह परिवार जीवनयापन कर रहा है वहाँ प्यार को व्यक्त करने की अनुमति नहीं है।

पीटर के साथ बिताए इन भावुकता से भरे इन दो सालों के अज्ञातवास की चर्चा करते हुए ऐन कहती है “पीटर और मैंने, दोनों ने अपने चिंतनशील बरस एनेक्सी में ही बिताए हैं। हम अक्सर भविष्य, वर्तमान और अतीत की बातें करते हैं, लेकिन जैसा कि मैं तुम्हें बता चुकी हूँ, मैं असली चीज़ की कमी महसूस करती हूँ और जानती हूँ कि वह मौजूद है।” यह असली चीज़ है पीटर के प्रति प्यार। परंतु विश्वयुद्ध का समय प्यार में गोते लगाने का नहीं, बल्कि भूख, प्यास, बीमारी, ग़रीबी और अंधेरे से बाहर निकलने की कोशिश थी।

इसलिए पीटर भी ऐन के प्रति अपने प्यार को अभिव्यक्त नहीं करता है। इस प्रकार हम इस कथन से बिल्कुल सहमत हैं कि ऐन की डायरी अगर एक ऐतिहासिक दौर का जीवंत दस्तावेज़ है, तो साथ ही उनके निजी सुख-दुःख और भावनात्मक उथल-पुथल का भी है। इन पृष्ठों में दोनों का फर्क मिट गया है। ऐन की डायरी में द्वितीय विश्व-युद्ध की ऐतिहासिक घटनाएँ भी अंकित हैं और ऐन के मन में उद्वेलित भावनाओं का अतिरेक भी मौजूद है।

Diary Kya Hai Class 12th Hindi NCERT Solutions प्रश्न 5.
ऐन ने अपनी डायरी ‘किट्टी’ (एक निर्जीव गुड़िया) को संबोधित चिट्ठी की शक्ल में लिखने की ज़रूरत क्यों महसूस की होगी? (C.B.S.E. 2011, Set-I, A.I.C.B.S.E., Set-I)
उत्तर :
“ऐन फ्रैंक की डायरी’ विश्व साहित्य की एक महान कृति है। ऐन ने यह डायरी अज्ञातवास बिताए दिनों में लिखी थी। ऐन ने इस डायरी में उन चिट्ठियों को संकलित किया गया है जो उसे अपने जन्मदिन पर उपहार स्वरूप मिली ‘किट्टी’ नामक गुड़िया के नाम लिखी थी। तेरह वर्षीय ऐन एक भावुक किशोरी थी। जब वह अपने परिवार के साथ अपने पिता के कार्यकाल और गोदाम में अज्ञातवास काट रही थी, तो वह अपने समूह में सबसे छोटी उम्र की थी। सब उसकी बात को हँसी में उड़ा देते थे।

कोई भी उसकी बात पर ध्यान नहीं देता था। समूह के सभी सदस्य उसे तुनकमिजाज, अक्खड़ और मूर्ख समझते थे। वह अपने मन की बातों को किसी के साथ साझा करना चाहती थी। पंद्रह वर्ष की उम्र में वह पीटर को प्रेम करने लगती है। पीटर भी उसे प्रेम करता है, परंतु कभी अभिव्यक्त नहीं करता है। उसे तो बस एक धुन थी कि वह उन सभी आरोपों को गलत साबित करे जो उस पर लगाए गए थे। अर्थात सब उसकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया करते थे।

वह चाहती है कि कोई हो जो उसकी भावनाओं को समझे, मगर कोई भी उसकी भावनाओं की कद्र नहीं करता, इसलिए ऐन ने अपनी डायरी ‘किट्टी’ (गुड़िया) को संबोधित कर चिट्ठियों के माध्यम से मजबूरी में लिखनी पड़ी। केवल ‘किट्टी’ ही थी जो उसकी भावनाओं को लगातार आत्मसात कर सकती थी।

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नाजी दस्तावेजों के पाँच करोड़ पन्नों में ऐन फ्रैंक का नाम केवल एक बार आया है लेकिन अपने लेखन के कारण आज ऐन हजारों पनों में दर्ज है जिसका एक नमूना यह खबर भी हैनाज्ञी अभिलेखागार के दस्तावेजों में महज एक नाम के रूप में दफ़न है ऐन फ्रैंक बादरोलसेन, 26 नवंबर (एपी)। नाजी याचना शिविरों का रोंगटे खड़े करने वाला चित्रण कर दुनिया भर में मशहूर हुई ऐनी फ्रैंक का नाम हालैंड के उन हजारों लोगों की सूची में महज एक नाम के रूप में दर्ज है जो यातना शिविरों में बंद थे।

नाजी नरसंहार से जुड़े दस्तावेजों की दुनिया के सबसे बड़े अभिलेखागार की एक जीर्ण-शीर्ण फाइल में 40 नंबर के आगे लिखा हुआ है-ऐनी फ्रका ऐन की डायरी ने उसे विश्व में खास बना दिया लेकिन 1944 में सितंबर माह के किसी एक दिन वह भी बाकी लोगों की तरह एक नाम-भर थी। एक भयभीत बच्ची जिसे बाकी 1018 यहूदियों के साथ पशुओं को ढोने वाली गाड़ी में पूर्व में स्थित एक यातना शिविर के लिए रवाना कर दिया गया था।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद डच रेडक्रॉस ने वेस्टरबोर्क ट्रांजिट कैंप से यातना शिविरों में भेजे गए लोगों से संबंधित सूचनाएँ एकत्र कर इंटरनेशनल ट्रेसिंग सर्विस (आईटीचीएस) को भेजे थे। आईटीचीएस नाजी दस्तावेजों का एक ऐसा अभिलेखागार है जिसकी स्थापना युद्ध के बाद लापता हुए लोगों का पता लगाने के लिए की गई थी। इस युद्ध के समाप्त होने के छह दशक से अधिक समय के बाद अब अंतर्राष्ट्रीय रेडक्रॉस समिति विशाल आईटीएस अभिलेखागार को युद्ध में सिंदा बचे लोगों, उनके रिश्तेदारों व शोधकर्ताओं के लिए पहली बार सार्वजनिक करने जा रही है।

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लगाने और बाद में मुआवजे के दावों के संबंध में प्रमाण-पत्र जारी करने में किया जाता रहा है। लेकिन आम लोगों को इसे देखने की अनुमति नहीं दी गई है। मध्य जर्मनी के इस शहर में 25.7 किलोमीटर लंबी अलमारियों और कैबिनेटों में संग्रहित इन फाइलों में उन हतारों यातना शिविरों, बंधुआ मजदूर केंद्रों और उत्पीड़न केंद्रों से जुड़े दस्तावेजों का पूर्ण संग्रह उपलब्ध है। किसी जमाने में.बर्ड रीख के रूप में प्रसिद्ध इस शहर में कई अभिलेखागार है। प्रत्येक में युद्ध से जुड़ी त्रासदियों का लेखा-जोखा रखा गया है।

आईटीएसामानी फ्रेंक का नाम नाजी दस्तावेजों के पाँच करोड़ पत्रों में केवल एक बार आया है। वेस्टरबोर्क से 19 मई से छह सितंबर 1944 के बीच भेजे गए लोगों से जुड़ी फाइल में फ्रैंक उपनाम से दर्जनों नाम दर्ज है। इस सूची में ऐनी का नाम, जन्मतिथि, एम्सटर्डम का पता और यातना शिविर के लिए रवाना होने की तारीख दर्ज है। इन लोगों को कहाँ ले जाया गया, वह कालमें खाली छोड़ दिया गया है।

आईटीएस के प्रमुख यूडो जोस्त ने पोलैंड के यातना शिविर का जिक्र करते हुए कहा-यदि स्थान का नाम नहीं दिया गया है तो इसका मतलब यह आशविच था। ऐनी, उनकी बहन मार्गोट व उसके माता-पिता को चार अन्य यहूदियों के साथ 1944 में गिरफ्तार किया गया था। ऐनी डच नागरिक नहीं, जर्मन शरणार्थी थी। यातना शिविरों के बारे में ऐनी की डायरी 1952 में ‘ऐनी फ्रक दी डायरी ऑफ द यंग ग्ले’ शीर्षक से छपी थी। – साभार जनसत्ता 27 नवंबर, 2006.

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