Author name: Prasanna

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 24 मंत्रणा

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 24 मंत्रणा

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 24

प्रश्न 1.
तेरहवाँ वर्ष पूरा होने पर पांडवों ने क्या किया ?
उत्तर:
तेरहवाँ वर्ष पूरा होने पर पांडव प्रकट रूप में रहने लगे। आगे का कार्यक्रम तय करने के लिए उन्होंने अपने भाई-बंधुओं एवं मित्रों को बुलाने के लिए दूत भेजे।

प्रश्न 2.
विराट की सभा में सभी लोगों ने क्या निर्णय लिया ?
उत्तर:
सभी लोगों ने निर्णय लिया कि सबसे पहले किसी योग्य व्यक्ति को कौरवों के पास दूत बनाकर भेजना चाहिए। जो राज्य युधिष्ठिर से छीना गया वह उसको वापस लौटा दिया जाए।

प्रश्न 3.
सात्यकि ने बलराम के कथन के विरोध में क्या कहा ?
उत्तर:
सात्यकि का कहना था कि बलराम की बातें मुझे जरा भी न्यायोचित नहीं लगतीं। युधिष्ठिर को आग्रह करके जुआ खेलने के लिए विवश किया गया था और कपट करके उन्हें हराया गया था।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 24 मंत्रणा

प्रश्न 4.
श्रीकृष्ण के पास जाने पर अर्जुन और दुर्योधन ने किस तरह की सहायता चाही।
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने कह दिया कि एक तरफ मैं रहूँगा दूसरी तरफ मेरी सेना। परंतु मेरे पास पहले अर्जुन आया है अतः अर्जुन को ही चयन करना है कि वे क्या चाहते हैं। अर्जुन ने कहा कि मैं तो आपको ही अपने पक्ष में रखना चाहता हूँ। दुर्योधन अर्जुन के इस फैसले से बड़ा प्रसन्न हुआ क्योंकि उसको अनायास ही श्रीकृष्ण की सेना मिल गयी थी।

प्रश्न 5.
हस्तिनापुर से लौटते समय दुर्योधन का दिल बल्लियों क्यों उछलने लगा ?
उत्तर:
दुर्योधन श्रीकृष्ण की अक्षौहिणी सेना के मिल जाने से बहुत खुश था। वह सोच रहा था कि अर्जुन बड़ा मूर्ख बना। बलराम जी का स्नेह तो पहले ही मुझ पर है अब श्रीकृष्ण भी निःशस्त्र और सेवाविहीन हो गए हैं।

प्रश्न 6.
शल्य कौन थे ? दुर्योधन ने उन्हें किस प्रकार धोखा दिया ?
उत्तर:
शल्य मद्र देश के राजा व नकुल सहदेव के मामा थे। शल्य को जब पता चला कि पांडव उपप्लव्य नगर में युद्ध की तैयारी कर रहे हैं, तो वे भी भारी सेना के साथ पांडवों की सहायता के लिए निकल पड़े। दुर्योधन को जब पता चला तो उसने अपने आदमी भेजकर बीच रास्ते में उनके शिविर पर जाकर उनकी खूब सेवा की। शल्य ने उसकी सेवा से प्रभावित होकर दुर्योधन के पक्ष में युद्ध करने का निर्णय ले लिया।

प्रश्न 7.
उपप्लव्य नगर पहुँचकर शल्य ने युधिष्ठिर को क्या आश्वासन दिया ?
उत्तर:
शल्य ने युधिष्ठिर से कहा कि बेटा युधिष्ठिर मैं धोखे से दुर्योधन को वचन दे बैठा हूँ अब युद्ध तो मैं उनकी ओर से ही लढूँगा परन्तु कर्ण जब मुझे अपना सारथी बनाएगा तो अर्जुन के प्राणों की रक्षा ही होगी।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 24 मंत्रणा

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 24

तेरहवाँ वर्ष पूरा होते ही पांडव विराट की राजधानी छोड़ उसी राज्य के उपप्लव्य नगर में प्रकट रूप से रहने लगे। उन्होंने अपने मित्रों और भाई-बंधुओं को बुलाने के लिए दूत भेजे। भाई बलराम, अर्जुन की पत्नी सुभद्रा, पुत्र अभिमन्यु और कई वीरों को लेकर कृष्ण भी उपप्लव्य जा पहुंचे। उनके कई मित्र राजा अपनी कई अक्षौहिणी सेनाओं के साथ वहाँ पहुँच गए। सबसे पहले अभिमन्यु के साथ उत्तरा का विवाह किया गया। इसके बाद विराट राज्य के सभा भवन में सभी राजा मंत्रणा के लिए एकत्रित हुए। कृष्ण ने खड़े होकर कहा कि हम आज यहाँ इसलिए इकट्ठे हुए हैं कि कुछ ऐसे उपाय सोचें जो न्यायोचित हों और जिससे पांडवों तथा कौरवों दोनों का सुयश बढ़े। दुर्योधन को समझाया जाए जिससे युधिष्ठिर का राज्य वापस मिल सके। किसी को दूत बनाकर हस्तिनापुर भेजा जाए। बलराम का कहना था कि युधिष्ठिर को आग्रह करके बुलाया गया और कपट से हराया गया था। मुझे लगता है दुर्योधन बिना युद्ध के मानेगा नहीं। द्रुपद ने भी सात्यकि का समर्थन किया। शल्य, धृष्टकेतु, जयत्सेन, कैकेय आदि राजाओं के पास अभी से दूत भेज देने चाहिए साथ ही सुलह का प्रयास भी जारी रखना चाहिए। कृष्ण ने कहा कि मुझ पर और बलराम पर कौरवों और पांडवों का समान हक है। हम यहाँ उत्तरा के विवाह में शामिल होने के लिए आए हैं। उन्होंने द्रुपद से कहा कि आप हममें सबसे बड़े हैं अतः आप किसी को दूत बनाकर हस्तिनापुर भेज दें।

श्रीकृष्ण द्वारका लौट आए और विराट व द्रुपद युद्ध की तैयारियों में लग गए। दोनों ही पक्ष अपने-अपने मित्र राजाओं के पास संदेश भेजकर युद्ध की तैयारियों में लग गए। श्रीकृष्ण के पास अर्जुन स्वयं गए। जब दुर्योधन को पता चला कि श्रीकृष्ण द्वारका गए हैं तो वह भी उनके पास पहुंच गया। अर्जुन और दुर्योधन दोनों ने ही एक साथ प्रवेश किया। उस समय श्रीकृष्ण शयन कर रहे थे। दुर्योधन उनके सिरहाने खड़ा हो गया व अर्जुन पैरों की और बैठ गए। श्रीकृष्ण की नींद खुली तो उन्होंने पहले अर्जुन को और फिर दुर्योधन को देखा। दुर्योधन का कहना था कि पहले मैं आया हूँ इसलिए उसका काम पहले हो। श्रीकृष्ण ने कहा कि एक ओर मेरी सेना रहेगी और दूसरी और मैं परंतु मैं हथियार नहीं उठाऊँगा। अर्जुन छोटा है अतः इन दोनों में से अर्जुन को जो अच्छा लगे मांग ले। अर्जुन ने कहा आप शस्त्र उठाएं या न उठाएं , मैं तो आपको ही चाहता हूँ। यह सुनकर दुर्योधन के आनंद की सीमा न रही क्योंकि श्रीकृष्ण की भारी सेना उनको सहजता से ही मिल गई थी। दुर्योधन बलराम के पास गए और सारी बात बताई। बलराम ने कहा कि मैं तटस्थ रहूँगा। मेरे लिए तुम दोनों ही बराबर हो। मद्र देश के राजा को जब पता चला तो वह भी अपनी सेना के साथ उपप्लव्य की ओर रवाना हो गया। परंतु दुर्योधन ने बीच में ही उनकी सेना के पड़ाव में जाकर उनकी इतनी सेवा की कि शल्य अपने भानजों को छोड़कर दुर्योधन के पक्ष में हो गया। शल्य के उपप्लव्य नगर पहुँचने पर जब युधिष्ठिर के साथ युद्ध की चर्चा छिड़ी तो शल्य ने बताया कि किस प्रकार दुर्योधन ने धोखे से उसे अपने पक्ष में कर लिया। युधिष्ठिर ने शल्य से कहा कि मामा जी! अवसर आने पर जब कर्ण आपको अपना सारथी बनाकर अर्जुन का वध करने का प्रयत्न करेगा उस समय आप अर्जुन की मृत्यु का कारण बनोगे। शल्य ने कहा कि मैं धोखे में आकर दुर्योधन को वचन दे बैठा हूँ, पर एक बात बताए देता हूँ कि कर्ण मुझे सारथी बनाएगा तो अर्जुन के प्राणों की रक्षा ही होगी।

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Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 23 विराट का भ्रम

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 23 विराट का भ्रम

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 23

प्रश्न 1.
विराट को क्या भ्रम हो गया था ?
उत्तर:
विराट को यह भ्रम हो गया था कि उनके पुत्र उत्तर के पराक्रम के कारण ही, कौरव सेना पर विजय पाई गई है।

प्रश्न 2.
विराट ने ‘कंक’ के मुँह पर पासा क्यों मार दिया ?
उत्तर:
‘कंक’ बृहन्नला की बड़ाई कर रहा था उनके पुत्र उत्तर की नहीं। इसलिए विराट ने झंझलाहट में कंक के मुँह पर पासे मार दिये जिसके कारण उनके मुँह से खून निकलने लगा।

प्रश्न 3.
कंक ने द्वारपाल को इशारे से यह क्यों कहा कि राजकुमार को ही अंदर बुलाओ, वृहन्नला को नहीं ?
उत्तर:
कंक को डर था कि वृहन्नला के रूप में अर्जुन जब उनके मुँह से निकलने वाले खून को देखेगा तो क्रोध में आकर वह कुछ गड़बड़ कर सकता है।

प्रश्न 4.
विराट का यह भ्रम किस प्रकार दूर हुआ कि उत्तर ने लड़ाई जीती है।
उत्तर:
जब विराट अपने पुत्र की प्रशंसा कर रहे थे कि बेटा बड़े वीर हो तुम।” पिता की बात सुनकर उत्तर ने कहा-“पिता श्री मैंने कोई सेना नहीं हराई।” मैं तो लड़ा भी नहीं। उत्तर ने सारी बात बताई, राजकुमार की बात सुनकर विराट का भ्रम दूर हो गया।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 23 विराट का भ्रम

प्रश्न 5.
विराट को किस प्रकार पता चला कि ये सभी पांडव हैं ?
उत्तर:
अर्जुन ने कुमार उत्तर को पहले ही सारी बातें बता दी थीं। अब अवधि भी पूरी हो गई थी इसलिए अर्जुन ने पहले राजा विराट को और बाद में राजसभा में अपना परिचय दे दिया।

प्रश्न 6.
सभा में कोलाहल क्यों मच गया ?
उत्तर:
जब लोगों ने यह जाना कि ये सभी पांडव हैं तो उनके आश्चर्य और आनंद के कारण सभा में कोलाहल मच गया।

प्रश्न 7.
राजा विराट ने अर्जुन के सामने क्या प्रस्ताव रखा, अर्जुन ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार क्यों नहीं किया ?
उत्तर:
विराट ने अर्जुन से कहा कि वह उनकी पुत्र उत्तरा के साथ विवाह कर ले। अर्जुन ने यह कहकर कि मैं उत्तरा का गुरु रहा हूँ मैंने उसे नृत्य-गायन सिखाया अतः वह मेरे लिए पुत्री के समान है।

प्रश्न 8.
दुर्योधन का दूत पांडवों के लिए क्या समाचार लाया ?
उत्तर:
दुर्योधन के दूतों ने युधिष्ठिर से आकर कहा कि अज्ञातवास की अवधि पूरा होने से पहले ही अर्जुन पहचान लिए गए। अतः आपको बारह वर्ष और वनवास भोगना होगा। युधिष्ठिर ने कहा कि पितामह भीष्म आदि जानकारों से यह पता कर लो कि अर्जुन ने अवधि समाप्त होने पर ही गांडीव से टंकार की थी।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 23 विराट का भ्रम

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 23

त्रिगर्त राजा सुशर्मा पर विजय प्राप्त करके जब विराट नगर वापस आए तो नगरवासियों ने उनका धूमधाम से स्वागत किया। जब राजा को यह पता चला कि राजकुमार उत्तर कौरवों से लड़ने गए हैं तो वे एकदम चौंक उठे। राजा को इस प्रकार चिंतित देखकर कंक ने उन्हें दिलासा देते हुए कहा कि वृहन्नला के होते हुए चिंता करने की जरूरत नहीं है। तभी उत्तर के भेजे हुए दूतों ने आकर कहा कि कौरव सेना को तितर-बितर करके गायों को छुड़ा लिया है। विराट को यकीन नहीं हो रहा था। पुत्र की विजय की बात सुनकर विराट फूले नहीं समा रहे थे। वे प्रसन्नता के मारे पागल से हुए जा रहे थे। उन्होंने अंतःपुर में जाकर सैरंध्री से कहा कि चौपड़ की गोटें ले आओ। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं अपना आनंद कैसे व्यक्त करूँ।

राजा खेलते हुए अपने पुत्र के शौर्य की बातें कर रहे थे। कंक ने कहा कि निःसंदेह आपके पुत्र भाग्यवान हैं जो वृहन्नला उनकी सारथी बनी। वृहन्नला का नाम लेकर कंक जब कुछ और कहना चाह रहे थे तो विराट ने झुंझलाहट में कंक के मुँह पर पांसा दे मारा। चोट के कारण उनके मुँह से खून बहने लगा। तभी द्वार पर राजकुमार उत्तर वृहन्नला के साथ आ पहुंचे। कंक ने द्वारपाल को इशारे से कहा कि राजकुमार को लाओ वृहन्नला को नहीं। राजकुमार उत्तर को अर्जुन ने सभी के बारे में बता दिया था। राजकुमार ने कंक के मुँह से निकलने वाले खून के बारे में पूछा तो विराट ने सब कुछ बता दिया। विराट ने युधिष्ठिर से क्षमा मांगी। विराट ने उत्तर से कहा कि बेटा तुम तो बड़े वीर हो तो उत्तर ने कहा पिता श्री मैं तो लड़ा ही नहीं, न ही मैंने कोई सेना हराई। इसके बाद अर्जुन ने पहले विराट को फिर सारी सभा को सारी बात बता दी। आश्चर्य और आनंद के कारण सभा में कोलाहल मच गया। विराट ने राजकन्या उत्तरा से अर्जुन को विवाह करने के लिए कहा। अर्जुन ने यह कहकर मना कर दिया कि मैं उसका शिक्षक रहा हूँ मेरे लिए वह बेटी के समान है। मेरे पुत्र अभिमन्यु के साथ उसका ब्याह कर दीजिए।” इसके बाद दुर्योधन के दूतों ने आकर कहा कि अज्ञातवास पूरा होने से पहले ही अर्जुन पहचान लिए गए इसलिए तुमको बारह वर्ष और वनवास में बिताने होंगे। युधिष्ठिर ने हँसकर कहा कि दूत जाकर पितामह भीष्म से पूछे। अर्जुन तब प्रकट हुआ जब अज्ञातवास की अवधि समाप्त हो चुकी थी। तेरहवाँ वर्ष पूरा होने के बाद ही अर्जुन ने धनुष की टंकार की थी।

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