These NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant & Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 5 चित्रकूट में भरत are prepared by our highly skilled subject experts.
Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 5 Question Answers Summary चित्रकूट में भरत
Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 5
प्रश्न 1.
भरत ने ननिहाल में रात्रि में क्या सपना देखा था?
उत्तर:
भरत ने सपने में देखा कि समुद्र सूखं गया है। चंद्रमा धरती पर गिर पड़ा। वृक्ष सूख गए। एक राक्षसी पिता को खींचकर ले जा रही है। वे रथ पर बैठे हैं और रथ को गधे खींच रहे हैं।
प्रश्न 2.
भरत जब अयोध्या पहुंचे तो उन्होंने वहाँ क्या देखा?
उत्तर:
भरत जब अयोध्या पहुँचे तो उनको नगर सामान्य नहीं लगा। अनिष्ट की आशंका उनके मन में और गहरी हो गई। वहाँ की सड़कें सूनी थीं। बाग-बगीचे उदास थे। पक्षी भी कलरव नहीं कर रहे थे।
प्रश्न 3.
पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर भरत की कैसी दशा हुई? कैकेयी ने भरत को क्या समझाया?
उत्तर:
पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर भरत शोक में डूब गए। वें दहाड़ मारकर गिर पड़े और मूर्छित हो गए। कैकेयी ने भरत को उठाकर ढांढस बँधाते हुए कहा कि यशस्वी कुमार शोक नहीं करते। तुम्हारा इस प्रकार दुखी होना उचित नहीं है। यह राजगुणों के विरुद्ध है।
प्रश्न 4.
यह जानकर कि उसकी माँ के कारण ही यह सब हुआ। भरत ने अपनी माँ से क्या कहा?
उत्तर:
भरत ने क्रोधित होते हुए कैकेयी से कहा कि तुमने घोर अनर्थ किया है। तुम अपराधिनी हो। वन तुम्हें जाना चाहिए था, राम को नहीं। पिता को खोकर और भाई से बिछुड़कर मेरे लिए इस राज्य का कोई अर्थ नहीं है। तुमने पाप किया है। इतना साहस तुममें कहाँ से आया। किसने तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट की। तुम्हारा अपराध क्षमा करने के योग्य नहीं है। मैं राजपद ग्रहण नहीं करूँगा।
प्रश्न 5.
जब शत्रुघ्न को पता चला कि इस सारे घटनाक्रम की जड़ मंथरा है तो उसने क्या किया?
उत्तर:
शत्रुघ्न मंथरा को बालों से पकड़कर खींचते हुए भरत के सामने लाए। शत्रुघ्न उसे जान से मार देना चाहता था। किसी तरह भरत ने बीच-बचाव किया।
प्रश्न 6.
मुनि वशिष्ठ ने भरत से क्या आग्रह किया?
उत्तर:
वशिष्ठ अयोध्या का राजसिंहासन रिक्त नहीं देखना चाहते थे। वे खाली सिंहासन के खतरों से परिचित थे। उन्होंने सभा बुलाई और भरत -शत्रुघ्न को भी आमंत्रित किया। वशिष्ठ ने भरत से राज-काज संभालने की बात कही। भरत ने महर्षि का आग्रह अस्वीकार कर दिया। भरत बोले-मुनिवर! यह राज्य राम का है, वही इसके अधिकारी हैं। मैं राजगद्दी पर बैठने का पाप नहीं कर सकता।”
प्रश्न 7.
राम ने अपने रहने के लिए कुटिया कहाँ बनाई थी?
उत्तर:
भरद्वाज के आश्रम में पहुँचने के बाद महर्षि भरद्वाज ने उनको एक सुंदर पहाड़ी दिखाई। ‘चित्रकूट’ नामक इस स्थान पर ही राम ने अपने लिए पर्ण कुटी बनाई।
प्रश्न 8.
शृंगवेरपुर के राजा निषादराज ने जब भरत के साथ सेना देखी तो उन्हें क्या संदेह हुआ?
उत्तर:
निषादराज ने सोचा कि कहीं भरत राजमद में आकर आक्रमण करने तो नहीं आ रहा?
प्रश्न 9.
भरत द्वारा दिए गए किस समाचार को सुनकर राम सन्न रह गए?
उत्तर:
भरत ने जब पिता की मृत्यु का समाचार राम को दिया तो वे शोक में डूब गए।
प्रश्न 10.
भरत ने राम से क्या विनती की?
उत्तर:
भरत ने राम से राज-ग्रहण की विनती की। उन्होंने राम से अयोध्या लौटने का आग्रह किया। राम ने कहा कि पिता की आज्ञा का पालन अनिवार्य है। पिता की मृत्यु के बाद मैं उनका वचन नहीं तोड़ सकता।
प्रश्न 11.
राम ने वशिष्ठ एवं अन्य सभासदों को अयोध्या लौट चलने के प्रस्ताव को क्या कहकर अस्वीकार किया?
उत्तर:
राम ने कहा-“चाहे चंद्रमा अपनी जगह छोड़ दे, सूर्य पानी की तरह ठंडा हो जाए, हिमालय शीतल न रहे, समुद्र की मर्यादा भंग हो जाए; परंतु मैं पिता की आज्ञा से विरत नहीं हो सकता। मैं उन्हीं की आज्ञा से वन आया हूँ, उन्हीं की आज्ञा से भरत को राजगद्दी संभालनी चाहिए।”
प्रश्न 12.
भरत के किस आग्रह को राम ने स्वीकार कर लिया?
उत्तर:
भरत ने कहा कि आप नहीं लौटेंगे तो मैं भी खाली हाथ नहीं जाऊँगा। आप मुझे अपनी खड़ाऊँ दे दें। मैं चौदह वर्ष उन्हीं की आज्ञा से राज-काज चलाऊँगा।
Bal Ram Katha Class 6 Chapter 5 Summary
भरत अपनी ननिहाल में थे। उन्होंने एक विचित्र स्वप्न देखा कि समुद्र सूख गया है। चंद्रमा धरती पर गिर पड़ा है। वृक्ष भी सूख गए हैं। वे रथ पर बैठे हैं, जिसे गधे खींच रहे हैं। भरत अपने मित्रों से स्वप्न का वर्णन कर ही रहे थे, तभी अयोध्या से एक घुड़सवार वहाँ पहुँचा। भरत को तुरन्त अयोध्या बुलाया गया था। भरत को कैकेयराज ने विशाल सेना के साथ विदा किया। वे आठ दिन बाद अयोध्या पहुँचे। अयोध्या को देखकर उनका मन शंकित हो गया। सब कुछ सूना-सूना लग रहा था। भरत राजभवन पहुंचे तो कैकेयी ने उन्हें गले लगाते हुए महाराज के निधन का संदेश दिया। भरत यह सुनकर शोक में डूब गए।
भरत तुरंत राम के पास जाना चाहते थे। कैकेयी ने बताया कि राम को महाराज ने चौदह वर्ष का वनवास दे दिया है। लक्ष्मण और सीता भी उनके साथ गए हैं। कैकेयी ने दोनों वरदान की पूरी कथा भरत को सुनाई और कहा-अयोध्या का निष्कंटक राज्य अब तुम्हारा है। भरत ने चीखते हुए कहा-तुमने घोर अपराध किया है। वन राम को नहीं, तुम्हें जाना चाहिए था। मुझको यह राज्य नहीं चाहिए, तभी सभासद भी वहाँ आ गए। भरत ने कहा कि माँ के अपराध में मेरा कोई हाथ नहीं है। मैं राम के पास जाऊँगा और उनको मनाकर लाऊँगा। भरत स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख सके। वे मूर्छित होकर गिर पड़े। वे कौशल्या के पैरों पर गिरकर रोने लगे। कौशल्या ने भरत से कहा-पुत्र! तुम राज करो, पर मुझ पर एक दया करो कि मुझे राम के पास भिजवा दो। भरत ने कहा-माता! मैं राम का अहित कभी नहीं सोच सकता। कौशल्या ने भरत को क्षमा कर दिया।
सुबह तक शत्रुघ्न को पता चल गया कि कैकेयी के कान किसने भरे हैं। वे मंथरा को बालों से पकड़कर खींचते हुए भरत के पास लाए। भरत ने बीच-बचाव करके मंथरा को छुड़वा दिया।
मुनि वशिष्ठ अयोध्या की गद्दी को खाली नहीं रहने देना चाहते थे। उन्होंने भरत से गद्दी संभालने के लिए कहा। भरत ने वशिष्ठ के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। उसने कहा-हम वन जायेंगे और राम को वापिस लायेंगे। भरत गुरु वशिष्ठ और अन्य नगरवासियों के साथ वन की ओर चल पड़े। भरत के साथ विशाल सेना भी थी। भरत को राम के चित्रकूट आने की सूचना मिल गई थी। निषादराज विशाल सेना को देखकर कुछ शंकित से हुए। सही स्थिति का पता चलने पर उन्होंने भरत की अगवानी की। आगे घने जंगल में राम पर्णकुटी बनाकर लक्ष्मण और सीता के साथ रह रहे थे। लक्ष्मण ने देखा कि विशाल सेना चली आ रही है। सेना का ध्वज पहचानकर लक्ष्मण ने राम से कहा कि भरत हमें मारने के लिए आ रहा है। राम ने लक्ष्मण को समझाया कि वह हमसे मिलने आया होगा। लक्ष्मण राम की बात मान गए।
भरत अपनी सेना को पहाड़ी से नीचे रोककर शत्रुघ्न को साथ लेकर नंगे पाँव ऊपर चढ़े। राम एक शिला पर बैठे हुए थे। भरत दौड़कर राम के चरणों में गिर पड़े। भरत पिता की मृत्यु का समाचार देने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे। बड़ी कठिनाई से उन्होंने यह समाचार राम को दिया। राम शोक में डूब गए। राम पहाड़ी से उतरकर गुरुजनों व माताओं से मिलने नीचे उतरे। राम ने सहज भाव से कैकेयी को प्रणाम किया। कैकेयी मन ही मन पश्चाताप कर रही थी। अगले दिन भरत ने राम से अयोध्या लौटने का आग्रह किया। राम ने कहा-पिता की आज्ञा का पालन अनिवार्य है। पिता की मृत्यु के बाद मैं उनका वचन नहीं तोड़ सकता। इस समय यही उचित है कि तुम राज-काज संभालो, यह पिता की आज्ञा है।
मुनि वशिष्ठ भी बार-बार राम से लौटने का अनुरोध कह रहे थे। वे कह रहे थे-रघुकुल की परंपरा में राजा ज्येष्ठ पुत्र ही होता है। राम ने दृढ़ता पूर्वक उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। राम जब किसी भी तरह लौटने को तैयार नहीं हुए तो भरत ने कहा कि मैं भी खाली हाथ नहीं जाऊँगा। आप मुझे अपनी खड़ाऊँ दे दें। चौदह वर्ष उन्हीं की आज्ञा से राज-काज चलाऊँगा। भरत का यह आग्रह राम ने स्वीकार कर लिया। भरत राम की चरण-पादुकाएँ लेकर अयोध्या लौटे। उन पादुकाओं का पूजन किया गया और उनको गद्दी पर स्थापित कर दिया।