These NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant & Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 3 सिंधु घाटी की सभ्यता Questions and Answers Summary are prepared by our highly skilled subject experts.
Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 3 Question Answers Summary सिंधु घाटी की सभ्यता
Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 3 Question and Answers
प्रश्न 1.
सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष कहाँ मिले हैं?
उत्तर:
सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष सिंध में मोहनजोदड़ो और पश्चिमी पंजाब के हडप्पा में मिले हैं।
प्रश्न 2.
सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में क्या-क्या बातें पता चली हैं?
उत्तर:
सिंधु घाटी की सभ्यता के बारे में निम्न बातें पता चली हैं-
- सिंधु घाटी सभ्यता अत्यंत विकसित सभ्यता थी।
- यह सभ्यता नगर-सभ्यता थी।
- यह सभ्यता सांस्कृतिक युगों की अग्रदूत थी।
- यह सभ्यता प्रधान रूप से धर्मनिरपेक्ष थी।
- इस सभ्यता में व्यापारी वर्ग धनाढ्य था।
प्रश्न 3.
सिंधु सभ्यता ने किन सभ्यताओं से संबंध स्थापित किया?
उत्तर:
सिंधु घाटी सभ्यता ने फारस, मेसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यताओं से संबंध स्थापित किया और व्यापार किया।
प्रश्न 4.
सिंधु नदी किसके लिए प्रसिद्ध है?
उत्तर:
सिंधु नदी अपनी भयंकर बाढों के लिए प्रसिद्ध है।
प्रश्न 5.
इस सभ्यता में मिले मकान कैसे हैं?
उत्तर:
इस सभ्यता में मिले मकान दो या तीन मंजिले हैं।
प्रश्न 6.
ऋग्वेद का रचनाकाल कब माना जाता है?
उत्तर:
अधिकांश विद्वान ऋग्वेद का रचनाकाल ईसा पूर्व 1500 मानते हैं।
प्रश्न 7.
मैक्समूलर ने ऋग्वेद के बारे में क्या कहा है?
उत्तर:
मैक्समूलर ने इसे आर्य मानव द्वारा कहा गया पहला शब्द कहा है।
प्रश्न 8.
‘वेद’ शब्द की उत्पत्ति किस धातु से हुई है? इसका क्या अर्थ है?
उत्तर:
‘वेद’ शब्द की उत्पत्ति ‘विद्’ धातु से हुई है। इसका अर्थ है-जानना। अत: वेद का सीधा अर्थ है-अपने समय के ज्ञान को जानना।
प्रश्न 9.
भारतीय संस्कृति में कौन-सी प्रवृत्ति आरंभ दिखाई देती है?
उत्तर:
भारतीय संस्कृति में विशिष्टतावाद और छुआछूत की प्रवृत्ति का आरंभ दिखाई देता है।
प्रश्न 10.
उपनिषदों का समय कौन-सा माना जाता है?
उत्तर:
उपनिषदों का समय ई.पू. 800 के आस-पास माना जाता है। ये हमें भारतीय आर्यों के चिंतन में एक कदम और आगे ले जाते हैं।
प्रश्न 11.
आर्यों का प्रवेश कब माना जाता है?
उत्तर:
आर्यों का प्रवेश सिंधु घाटी सभ्यता युग के लगभग एक हजार वर्ष बाद माना जाता है।
प्रश्न 12.
उपनिषदों की प्रमुख विशेषता क्या है?
उत्तर:
उपनिषदों की प्रमुख विशेषता सच्चाई पर बल देना है। इनमें प्रकाश और ज्ञान की कामना की गई है। असत् से सत् की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर तथा मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाने की प्रार्थना की गई है।
प्रश्न 13.
उपनिषदों का झुकाव किस ओर था?
उत्तर:
उपनिषदों का झुकाव अद्वैतवाद की ओर था।
प्रश्न 14.
उपनिषदों में किस बात पर जोर दिया गया है?
उत्तर:
उपनिषदों में इस बात पर जोर दिया गया है कि कारगर रूप से प्रगति के लिए शरीर का स्वरूप होना, मन का स्वस्थ होना तथा तन-मन का अनुशासन में होना आवश्यक है। ज्ञानार्जन के लिए संयम, आत्म-पीड़न और आत्म-त्याग जरूरी है।
प्रश्न 15.
व्यक्तिवाद का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर:
व्यक्तिवाद का यह परिणाम हुआ कि मनुष्य ने सामाजिक पक्ष पर समाज के प्रति उसके कर्तव्यों पर कम ध्यान दिया। भौतिकवादियों ने विचार, धर्म और ब्रह्म विज्ञान के अधिकारियों और स्वार्थ से प्रेरित विचारों का विरोध किया।
प्रश्न 16.
अधिकांश पुराकथाएँ कैसी हैं?
उत्तर:
अधिकांश पुराकथाएँ और प्रचलित कहानियाँ वीरगाथात्मक हैं। इनमें सत्य पर अड़े रहने और वचन पालन का उपदेश दिया गया है। चाहे परिणाम कुछ भी हो, इनमें जीवन पर्यन्त और मरणोपरांत भी वफादारी, साहस और लोकहित के लिए सदाचार और बलिदानी शिक्षा दी गई है।
प्रश्न 17.
भौतिकवाद पर लिखा साहित्य किसने नष्ट कर दिया?
उत्तर:
भारत के भौतिकवादी साहित्य को पुरोहितों और धर्म के पुरातनपंथी स्वरूप में विश्वास करने वालों ने नष्ट कर दिया।
प्रश्न 18.
लेखक ने राजतरंगिनी के बारे में क्या लिखा है?
उत्तर:
लेखक ने राजतरंगिनी के बारे में लिखा है कि यह कहूण द्वारा लिखित एकमात्र प्राचीन इतिहास ग्रंथ है।
प्रश्न 19.
महाभारत के बारे में क्या कहा गया है?
उत्तर:
महाभारत का दर्जा विश्व की श्रेष्ठतम रचनाओं में है। यह कृति परंपरा और दंत-कथाओं तथा प्राचीन भारत की राजनीतिक और सामाजिक संस्थाओं का विश्वकोष है।
प्रश्न 20.
भगवद्गीता में क्या बताया गया है?
उत्तर:
भगवद्गीता में महाभारत का अंश है, परंतु वह अपने आप में एक पूर्ण रचना है। यह 700 श्लोकों का एक छोटा काव्य है जिसकी रचना बौद्धकाल से पहले हुई थी। इसका आकर्षण आज तक बना हुआ है। इस पुस्तक में संकटग्रस्त व्यक्ति को कर्म करने की प्रेरणा दी गई है।
प्रश्न 21.
भगवद्गीता का सारांश क्या है?
उत्तर:
गीता में महाभारत युद्ध में अर्जुन और श्रीकृष्ण का संवाद है। अर्जुन परेशान थे। अपने मित्रों और परिचितों के भावी नर-संहार पर उनकी आत्मा ने विद्रोह कर दिया। अर्जुन इंसान की उस पीड़ित आत्मा का प्रतीक बन जाता है जो युग-युग से कर्तव्यों और नैतिकता के तकाजों से ग्रस्त होता है। गीता में ज्ञान, कर्म और भक्ति के बीच समन्वय करने का प्रयास किया गया है। गीता की दृष्टि सार्वभौमिक है।
प्रश्न 22.
प्राचीन भारत में ग्राम सभाओं का क्या स्वरूप था?
उत्तर:
प्राचीन भारत में ग्राम सभाएँ एक सीमा तक स्वतंत्र थीं। उनकी आमदनी का मुख्य स्रोत लगान था। इसका भुगतान प्रायः गल्ले या पैदावार की शक्ल में किया जाता था।
प्रश्न 23.
भारत में लिखने की प्रथा के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर:
भारत में लिखने की प्रथा, बहुत पुरानी है। पाषाण युग के मिट्टी के पुराने बर्तनों पर ब्राह्मी लिपि के अक्षर मिले हैं। इसी लिपि से भारत की देवनागरी तथा अन्य लिपियों का विकास हुआ है। अशोक के कुछ लेख ब्राह्मी लिपि में हैं। उत्तर-पश्चिम में कुछ लेख खरोष्टी लिपि में हैं।
प्रश्न 24.
पाणिनि ने कब, किस ग्रंथ की रचना की?
उत्तर:
पाणिनि ने ईसा पूर्व छठी या सातवीं शताब्दी में संस्कृत भाषा में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘व्याकरण’ की रचना की। तब तक संस्कृत का रूप स्थिर हो चुका था।
प्रश्न 25.
औषध विज्ञान की कौन-सी पुस्तकों की रचना की गई?
उत्तर:
औषध पर चरक की पुस्तकें हैं और शल्य चिकित्सा पर सुश्रुत ने पुस्तकें लिखी हैं। इसमें अनेक बीमारियों की पहचान तथा इलाज के तरीके बताए गए हैं। सुश्रुत ने अपनी पुस्तक में शल्यक्रिया के औजारों और विधियों का उल्लेख विस्तारपूर्वक किया है।
प्रश्न 26.
वनों में स्थिर विश्वविद्यालयों के बारे में क्या बताया गया है?
उत्तर:
अक्सर वनों में विश्वविद्यालयों की स्थापना की जाती थी। इनमें शिक्षण- प्रशिक्षण पाने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। यहाँ विद्यार्थियों को संयम और ब्रह्मचर्य का जीवन जीना होता था। यहाँ से प्रशिक्षण प्राप्त करके विद्यार्थी गृहस्थ जीवन में लौट जाते थे।
प्रश्न 27.
तक्षशिला विश्वविद्यालय के बारे में क्या बताया गया है?
उत्तर:
पेशावर के पास तक्षशिला नामक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था। यह विश्व- विद्यालय विज्ञान, चिकित्साशास्त्र, कलाओं के लिए मशहूर था। इसमें भारत के दूर-दूर के हिस्सों से लोग शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे। तक्षशिला का स्नातक होना सम्मान और विशेष योग्यता की बात समझी जाती थी। बौद्धकाल में यह बौद्धज्ञान का केंद्र बन गया था।
प्रश्न 28.
जैन और बौद्ध धर्म में क्या समानता थी?
उत्तर:
- दोनों वैदिक धर्म से कटकर अलग हुए थे।
- दोनों ने वेदों को प्रमाण नहीं माना था।
- दोनों अहिंसा पर बल देते थे।
- दोनों ने भिक्षुओं के संघ बनाए।
प्रश्न 29.
बुद्ध में क्या विशेषता थी?
उत्तर:
बुद्ध में लोक-प्रचलित धर्म, अंधविश्वास, कर्मकांड और पुरोहित प्रपंच पर हमला करने का साहस था। उन्होंने चमत्कारों की भी निंदा की। उनका आग्रह तर्क, विवेक और अनुभव पर था। उनका बल नैतिकता पर था। उनकी पद्धति मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की थी। उन्होंने वर्ण-व्यवस्था पर सीधा वार तो नहीं किया, पर अपनी संघ व्यवस्था में इसे कोई स्थान नहीं दिया।
प्रश्न 30.
बुद्ध की प्रमुख शिक्षाएँ क्या थीं?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध की प्रमुख शिक्षाएँ निम्न थीं-
- संसार में घृणा का अंत घृणा से न होकर प्रेम से होता था।
- मनुष्य को अपने क्रोध पर दया से तथा बुराई पर भलाई से काबू पाना चाहिए।
- मनुष्य की जाति जन्म से नहीं बल्कि कर्म से तय होती है।
- सभी देशों में जाओ और बुद्ध धर्म का प्रचार करो।
प्रश्न 31.
सिकंदर के आक्रमण से कौन-से विलक्षण व्यक्ति सामने आए?
उत्तर:
सिकंदर के आक्रमण से चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य जैसे दो विलक्षण व्यक्ति सामने आए।
प्रश्न 32.
चंद्रगुप्त और चाणक्य ने मिलकर क्या किया?
उत्तर:
चंद्रगुप्त और चाणक्य ने मिलकर राष्ट्रीयता का नारा बुलंद किया। युनानी सेना को खदेड़कर तक्षशिला पर अधिकार कर लिया। सिकंदर की मृत्यु के दो वर्ष बाद पाटलिपुत्र पर अधिकार कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
चाणक्य ने ‘अर्थशास्त्र’ लिखा। इसमें राजनीतिशास्त्र की बातें बताई गई हैं।
प्रश्न 33.
चाणक्य कैसा व्यक्ति था?
उत्तर:
चाणक्य चंद्रगुप्त का मंत्री था। वह बहुत तीव्र बुद्धि वाला था। उसी का दूसरा नाम ‘कौटिल्य’ है। वह सम्राट को स्वामी की तरह नहीं बल्कि प्रिय शिष्य की तरह देखता है। वह उद्देश्य को पाने में सफल होता है। चंद्रगुप्त की सफलता चाणक्य के बुद्धि चातुर्य का परिणाम है।
प्रश्न 34.
अर्थशास्त्र में किन विषयों पर प्रकाश डाला गया है?
उत्तर:
अर्थशास्त्र में व्यापार, वाणिज्य, कानून, न्यायालय, नगर-व्यवस्था, सामाजिक रीति-रिवाज, विवाह, तलाक, स्त्रियों के अधिकार, कृषि, लगान, खानों, कारखानों, दस्तकारियों, उद्योग-धंधों, मत्स्य उद्योग, जनगणना, जेल आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
प्रश्न 35.
पुस्तक में अशोक के बारे में क्या बताया गया है?
उत्तर:
अशोक 273 ई.पू. मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना। उसने पूर्वी तट के लिंग प्रदेश पर आक्रमण करके उसे जीत लिया। परंतु इसके भयंकर नरसंहार ने अशोक का हृदय-परिवर्तन कर दिया। उस पर बौद्ध धर्म का प्रभाव पड़ गया। उसने दूर देशों में बौद्ध धर्म का प्रचार किया। वह एक निर्माता भी था। उसने अनेक बड़ी इमारतों का निर्माण भी करवाया। 41 वर्षों तक शासन करने के उपरांत 232 ई.पू. में अशोक की मृत्यु हो गई। उसका नाम आज भी आदर के साथ लिया जाता है।
Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 3 Summary
भारत के अतीत की सबसे पहली तसवीर उस सिंधु घाटी सभ्यता में मिलती है, जिसके अवशेष सिंध में मोहनजोदड़ो और पश्चिमी पंजाब में हड़प्पा में मिले हैं। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा एक-दूसरे से काफी दूरी पर हैं। दोनों स्थानों पर इन खंडहरों की खोज मात्र एक संयोग थी। यह सभ्यता विशेष रूप से उत्तर भारत में दूर-दूर तक फैली थी। यह सभ्यता गंगा की घाटी तक फैली थी। सिंधु घाटी सभ्यता जिस रूप में मिली है, उससे इसके अत्यंत विकसित होने का अनुमान लगाया जा सकता है। इसके इस स्थिति में पहुँचने में हजारों साल लगे होंगे। यह सभ्यता धर्मनिरपेक्ष सभ्यता थी। धार्मिक तत्त्व मौजूद होने पर भी इस पर हावी नहीं थे।
सिंधु घाटी सभ्यता ने फारस मेसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यताओं से संबंध स्थापित किया था और व्यापार किया था। यह ऐसी नागर सभ्यता थी जिसमें व्यापारी वर्ग धनाढ्य था। सड़कों पर दुकानों की कतारें थीं। यह सभ्यता हमें चली आती परंपरा और रहन-सहन की लोक-प्रचलित रीति-रिवाज़ों की दस्तकारी की, यहाँ तक कि पोशाकों के फैशन की याद दिलाता है। इस सभ्यता में केवल सुंदर चीजें ही नहीं बनी हैं बल्कि आधुनिक सभ्यता के उपयोगी और ज्यादा ठेठ चिह्नों, अच्छे हमामों और नीतियों के तंत्र का निर्माण भी किया है।
आर्यों का आना- सिंधु घाटी के सभ्यता के लोग कौन थे? कहाँ से आए थे? इनके बारे में ठीक से पता नहीं है। व्यावहारिक दृष्टि से उन्हें भारत का ही माना जा सकता है। सिंधु नदी में भयंकर बाढ़ आने से इस सभ्यता का अंत हो गया होगा। बाढ़ में नगर-गाँव बह गए होंगे। संभव है-मौसम परिवर्तन से जमीन सूखती चली गई हो, खेतों पर रेगिस्तान छा गया हो, बालू तह-पर-तह जमती गई होगी जिससे शहर की जमीन की सतह ऊँची उठ गई होगी। खुदाई में निकले मकान दो या तीन मंजिले जान पड़ते हैं। मौसम के परिवर्तनों का प्रभाव इलाके के निवासियों पर पड़ा होगा। सिंधु सभ्यता के निरंतर टूटने के प्रमाण मिलते हैं। यह संभव है कि आर्यों का प्रवेश सिंधु घाटी युग के लगभग एक हजार वर्ष बाद हुआ हो। सबसे बड़ा सांस्कृतिक समन्वय और मेल-जोल बाहर से आने वाले आर्यों एवं द्रविड़ जाति के लोगों के बीच हुआ। बाद के युगों में बहुत-सी जातियाँ आईं। सबने अपना प्रभाव डाला और फिर यही घुल-मिलकर रह गई।
प्राचीनतम अभिलेख, धर्मग्रंथ और पुराण- सिंधु घाटी की सभ्यता की खोज से पहले यह समझा जाता था कि हमारे भारतीय संस्कृति का सबसे पुराना इतिहास वेद है। आजकल अधिकांश विद्वान ऋग्वेद की ऋचाओं का समय ई. पू. 1500 मानते हैं। पर मोहनजोदड़ो की खुदाई के बाद से इन आरंभिक धार्मिक ग्रंथों को और पुराना साबित करने की प्रवृत्ति बढ़ गई है। मैक्समूलर ने इसे ‘आर्य मानव के द्वारा कहा गया पहला शब्द’ कहा है। यह भी कहा गया है कि वेद भारत के अन्य महाकाव्यों की संस्कृत की अपेक्षा अवेस्ता के अधिक निकट हैं। अवेस्ता की रचना ईरान में हुई थी।
वेद- बहुत से हिंदू वेदों को प्रकाशित धर्मग्रंथ मानते हैं। वेद की उत्पत्ति ‘विद्’ धातु से हुई है जिसका अर्थ है-‘जानना’! अत: वेद का सीधा-सादा अर्थ है-‘अपने समय के ज्ञान का संग्रह’। पर उसमें न मूर्तिपूजा है, न देव मंदिर। वैदिक युग के आर्यों में जीवन के प्रति इतनी उमंग थी कि उन्होंने आत्मा पर बहुत कम ध्यान दिया। वेद या ऋग्वेद मानव जाति की पहली पुस्तक है। इसमें मानव-मन के आरंभिक उद्गार मिलते हैं, काव्य-प्रवाह मिलता है।
हमें भारत में विचार की कर्म की दो समान्तर विकसित होती धाराएँ मिलती हैं। जो एक जीवन को स्वीकार करती हैं और दूसरी जो जिंदगी से बचकर निकल जाना चाहती हैं। वैदिक संस्कृति की मूल पृष्ठभूमि परलोकवादी या विश्व को निरर्थक मानने वाली नहीं है। जब भी भारत की सभ्यता में बहार आई, लोगों ने जीने की प्रक्रिया में आनंद लिया। ऐसे ही युगों में कला, साहित्य, संगीत, चित्रकला, रंगमंच आदि का विकास हुआ।
भारतीय संस्कृति की निरंतरता- भारतीय संस्कृति और सभ्यता तमाम परिवर्तनों के बावजूद आज भी बनी हुई है। इसी समय विशिष्टतावाद और छुआछूत का आरंभ दिखाई पड़ता है जो बाद में असह्य हो जाती है। यही प्रवृत्ति आधुनिक युग की जाति-व्यवस्था है। यह व्यवस्था लंबे समय तक बनी रही। इतिहास के लंबे दौर में भारत अलग-थलग नहीं रहा।
उपनिषद- उपनिषदों का समय ई.पू. 800 के आस-पास माना जाता है। वे हमें भारतीय आर्यों के चिंतन में एक कदम और आगे ले जाते हैं। उपनिषदों में जाँच-पड़ताल की चेतना और चीजों के बारे में सत्य की खोज का उत्साह दिखाई पड़ता है। वे किसी किस्म के दृढ़वाद को अपने रास्ते में नहीं आने देते। उनका जोर आत्म-बोध पर है, व्यक्ति में आत्मा-परमात्मा संबंधी ज्ञान पर है। उपनिषदों का सामान्य झुकाव अद्वैतवाद की ओर है। इनमें बिना सच्चे ज्ञान के कर्मकांड और पूजापाठ को व्यर्थ बताया गया है। उपनिषदों की प्रमुख विशेषता सच्चाई पर बल देना है। इसमें कामना की गई है-असत् से मुझे सत् की ओर ले चलो। अंधकार से मुझे प्रकाश की ओर ले चलो। इसमें हर श्लोक का अंत इस टेक से होता है-“चरैवेति चरैवेति” अर्थात् “चलते रहो चलते रहो”।
व्यक्तिवादी दर्शन के लाभ और हानियाँ- उपनिषदों में कहा गया है कि शरीर स्वस्थ हो, मन स्वच्छ हो और दोनों में अनुशासन हो। ज्ञानार्जन के लिए संयम, आत्म-पीडन और आत्म-त्याग जरूरी है। इस प्रकार की तपस्या का विचार भारतीय चिंतन में सहज रूप से निहित है। व्यक्तिवाद का यह परिणाम हुआ कि उन्होंने मनुष्य के सामाजिक पक्ष पर बहुत कम ध्यान दिया। हर व्यक्ति के लिए जीवन बँटा और बँधा हुआ था। उसके मन में समाज की समग्र कल्पना नहीं थी। बाद में भी ऐसा कोई प्रयास नहीं किया गया कि समाज के साथ एकात्मकता महसूस की जाए।
भौतिकवाद- हमारा प्राचीन साहित्य ताड़पत्रों या भोजपत्रों पर लिखा गया था। कागज पर लिखने का प्रचलन बाद में हुआ। जो पुस्तकें खो गईं, उनमें भौतिकवाद पर लिखा पूरा साहित्य है जिसकी रचना आरंभिक उपनिषदों के ठीक बाद में हई। राजनीतिक और आर्थिक संगठन पर ई.पू. चौथी शताब्दी में रचित कौटिल्य की प्रसिद्ध रचना ‘अर्थशास्त्र’ में भारत के प्रमुख दार्शनिक सिद्धांत हैं। भारत में भौतिकवाद के बहुत से साहित्य को पुरोहितों और धर्म के पुरातन-पंथी स्वरूप में विश्वास रखने वाले लोगों ने नष्ट कर दिए। भातिकवादियों ने विचार, धर्म और ब्रह्मज्ञान के अधिकारियों और स्वार्थ से प्रेरित विचारों का विरोध किया। उन्होंने हर तरह के जादू-टोने और अंधविश्वास की घोर निंदा की। उनके अनुसार वास्तविक अस्तित्व केवल विभिन्न रूपों में वर्तमान पदार्थ का और इस संसार का ही माना जाता है। इसके अलावा न कोई संसार है, न स्वर्ग और नरक है, न ही शरीर से अलग कोई आत्मा। नैतिक नियम मनुष्य द्वारा बनाई गई रूढ़ियाँ हैं।
महाकाव्य, इतिहास, परंपरा और मिथक- प्राचीन भारत के दो महाकाव्यों-रामायण और महाभारत को रूप ग्रहण करने में शायद सदियाँ लगी होंगी और उनमें बाद में भी टुकड़े जोड़े जाते रहे। इतने प्राचीन समय में रची जाने के बावजूद भी इनका भारतीय जीवन पर आज भी जीवंत प्रभाव दिखाई पड़ता है। ये दो ग्रंथ भारतीय जीवन के अंग बन गए हैं।
भारतीय पुराकथाएँ महाकाव्यों तक सीमित नहीं हैं। उनका इतिहास वैदिक काल तक जाता है। अधिकांश पुराकथाएँ और प्रचलित कहानियाँ वीरगाथात्मक हैं। इनमें वफादारी, साहस, लोकहित के लिए सदाचार और बलिदान की शिक्षा दी गई है। ये कहानियाँ पूर्णतः काल्पनिक हैं। यूनानियों, चीनियों और अरबवासियों की तरह प्राचीन काल में भारतीय इतिहासकार नहीं थे। अतः कालक्रम का निर्धारण कठिन है। कहूण की ‘राजतरंगिनी’ एकमात्र प्राचीन ग्रंथ है जिसे इतिहास माना जा सकता है। यह कश्मीर का इतिहास है जिसकी रचना ईसा की बारहवीं शताब्दी में की गई थी।
महाभारत- महाकाव्य के रूप में महाभारत एक महान रचना है। महाभारत का दर्जा विश्व की श्रेष्ठतम रचनाओं में है। यह रचना परंपरा और दंतकथाओं का तथा प्राचीन भारत की राजनीतिक और सामाजिक संस्थाओं का विश्वकोष है। परिस्थितियों के अनुसार वैदिक धर्म में संशोधन किए गए जिससे आधुनिक हिंदू धर्म निकला। महाभारत में हिंदुस्तान की बुनियादी एकता पर बल देने की कोशिश की गई है। महाभारत का युद्ध ई.पू. चौदहवीं शताब्दी के आस-पास हुआ होगा। महाभारत में श्रीकृष्ण से संबंधित आख्यान भी है और प्रसिद्ध काव्य भगवद्गीता भी है। गीता के दर्शन के अलावा इस ग्रंथ में शासन कला और सामान्य रूप से जीवन के नैतिक और आचार संबंधी सिद्धांतों पर जोर दिया गया है। महाभारत एक ऐसा समृद्ध भंडार है जिसमें अनेक अनमोल चीजें ढूँढी जा सकती हैं।
भगवद्गीता- भगवद्गीता महाभारत का अंश है। यह 700 श्लोकों का एक छोटा-सा महाकाव्य है। इसकी रचना बौद्धकाल से पहले हुई थी। इसकी लोकप्रियता अभी तक कम नहीं हुई है। इसमें दुविधाग्रस्त मानव को मार्गदर्शन मिलता है। गीता की असंख्य व्याख्याएँ व टीकाएँ की गईं। आधुनिक युग के विचार और कर्मक्षेत्र के नेताओं-तिलक, अरविंद घोष और गाँधी ने इसकी अपने ढंग से व्याख्या की है। इस काव्य का आरंभ युद्ध शुरू होने से पहले युद्धक्षेत्र में अर्जुन और कृष्ण के संवाद से होता है। गीता में जीवन के कर्तव्यों के निर्वाह के लिए कर्म का आह्वान किया गया है और अकर्मण्यता की निंदा की गई है। गीता सभी संप्रदायों व वर्गों को मान्य हुई है।
प्राचीन भारत में जीवन और कर्म- बुद्ध के समय से पहले का वृत्तांत हमें जातक कथाओं में मिलता है। जातक कथाओं में उस समय का वर्णन मिलता है जब भारत की दो प्रधान जातियों-द्रविड़ों और आर्यों का अंतिम रूप से मेल हो रहा था। जातक पुरोहित या ब्राह्मण परंपरा तथा क्षत्रिय या शासक परंपरा के विरोध में लोक-परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हैं। उस समय आमदनी का एकमात्र जरिया लगान था। लगान उपज का छठा भाग होता था। जातकों के वर्णन में एक खास तरह का विकास उभर कर सामने आता है। विशेष दस्तकारियों से जुड़े लोगों की अलग बस्तियाँ और गाँव थे। एक गाँव बढ़इयों तथा एक गाँव लोहारों का था। पेशेवरों के गाँव शहरों के पास बसे हुए थे। जातकों में सौदागरों की समुद्री यात्राओं का भी हाल है। भारत में लिखने की प्रथा बहुत पुरानी है। पाषाण युग के मिट्टी के पुराने बर्तनों पर ब्राह्मी लिपि के अक्षर मिले हैं। ईसा पूर्व छठी या सातवीं शताब्दी में पाणिनि ने संस्कृत भाषा में अपने प्रसिद्ध व्याकरण की रचना की। उस समय तक संस्कृत का रूप स्थिर हो चुका था। औषध विज्ञान की पाठ्य-पुस्तकें और अस्पताल भी थे। औषधि पर चरक की तथा शल्य चिकित्सा पर सुश्रुत की पुस्तकें मिलती हैं। महाकाव्यों के युग में वनों में एक तरह के विश्वविद्यालयों का जिक्र आया है। कुछ वर्ष तक वहाँ प्रशिक्षण लेकर विद्यार्थी वापस लौटकर गृहस्थ जीवन बिताते थे।
बनारस हमेशा शिक्षा का केंद्र रहा। बुद्ध के समय में भी वह प्राचीन केंद्र माना जाता था। तक्षशिला विश्वविद्यालय विशेष रूप से विज्ञान, चिकित्साशास्त्र और कलाओं के लिए मशहूर था। तक्षशिला का स्नातक होना गर्व की बात थी। पाणिनि ने यहीं से शिक्षा प्राप्त की थी। तथ्यों के आधार पर पता चलता है कि सुदूर अतीत के भारतीय खुले दिल के, आत्म- विश्वासी, परंपरावादी, मर्यादा और मूल्यों को महत्त्व देने वाले जीवन का सहज भाव से आनंद लेने वाले, मौत का लापरवाही से सामना करने वाले लोग थे।
महावीर और बुद्ध : वर्ण व्यवस्था- जैन धर्म और वुद्ध धर्म दोनों वैदिक धर्म से कटकर अलग हुए थे। उन्होंने वेदों को प्रमाण नहीं माना। दोनों अहिंसा पर बल देते थे। वे यथार्थवादी और बुद्धिवादी थे। वे जीवन और विचार में तपस्या के पहलू पर बल देते थे। महावीर और बुद्ध समकालीन थे। बुद्ध में लोक-प्रचलित धर्म, अंधविश्वास, कर्मकांड और पुरोहित प्रपंच पर हमला करने का साहस था। उनका आग्रह तर्क, विवेक और अनुभव पर था।
बुद्ध की शिक्षा- बुद्ध का संदेश उन भारतीयों के लिए नया और मौलिक था, जो ब्रह्मज्ञान की गुत्थियों में डूबे रहते थे। बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा-“सभी देशों में जाओ और इस धर्म का प्रचार करो।” बुद्ध ने विवेक, तर्क और अनुभव का सहारा लिया और उन्होंने लोगों से कहा कि वे अपने मन के भीतर सत्य की खोज करें। बुद्ध की पद्धति मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की पद्धति थी। जीवन में चेतना और दुःख पर बौद्ध धर्म में बहुत बल दिया गया है। बुद्ध ने जिन चार आर्य-सत्यों का निरूपण किया है, उनका संबंध दुःख से है। बुद्ध ने मध्यम मार्ग अपनाने की बात की है। यह मध्यम मार्ग अष्टांग मार्ग है।
बुद्ध कथा- बुद्ध की वह संकल्पना जिसे प्यार से भरे अनगिनत हाथों ने पत्थर, संगमरमर और काँसे में ढालकर आकार दिया, भारतीयों के विचारों की समग्र आत्मा की, या कम से कम उसके एक तेजस्वी पक्ष का प्रतीक है। कमल के फूल पर बैठे हुए शांत और धीर, वासनाओं और लालसाओं से परे इस संसार के तूफानों और संघर्षों से दूर वे इतनी दूर, पहुँच से परे मालुम होते हैं। बुद्ध के बारे में सोचते हुए आज भी एक जीती-जागती थरथराहट पैदा करने वाली अनुभूति से गुजरते हैं। उस राष्ट्र और जाति के पास निश्चय ही समझदारी और आंतरिक शक्ति की गहरी संचित निधि होगी जो ऐसे भव्य आदर्श को जन्म दे सकती है।
चंद्रगुप्त और चाणक्य : मौर्य साम्राज्य की स्थापना- भारत में बौद्ध धर्म का प्रचार धीरे-धीरे हुआ। पश्चिमोत्तर प्रदेश पर सिकंदर के आक्रमण से दो विलक्षण व्यक्ति सामने आए-चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य। दोनों का मेल कारगर सिद्ध हुआ। दोनों मगध के शक्तिशाली शासक नंद द्वारा साम्राज्य से निकाल दिए गए थे। चंद्रगुप्त की भेंट सिकंदर से हुई। सिकंदर की मृत्यु के दो ही वर्ष में पाटलिपुत्र पर अधिकार करके चंद्रगुप्त ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। चाणक्य अर्थात् कौटिल्य ने ‘अर्थशास्त्र’ की रचना की जो राजनीति का महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। इस पुस्तक में व्यापार, वाणिज्य, कानून, न्यायालय, नगर व्यवस्था, सामाजिक रीति-रिवाज़, विवाह, तलाक, कृषि-लगान, दस्तकारियों, जनगणना आदि पर चर्चा की गई है।