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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 1 गिल्लू

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 1 गिल्लू

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 1 गिल्लू

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बोध-प्रश्न

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न
1. सोनजुही में लगी पीली कली को देख लेखिका के मन कौन से विचार उमड़ने लगे?
2. पाठ के आधार पर कौए को एक साथ समादरित और अनादरित प्राणी क्यों कहा गया है?
3. गिलहरी के घायल बच्चे का उपचार किस प्रकार किया गया?
4. लेखिका का ध्यान आकर्षित करने के लिए गिल्लू क्या करता था?
5. गिल्लू को मुक्त करने की आवश्यकता क्यों समझी गई और उसके लिए लेखिका ने क्या उपाय किया?
6. गिल्लू किन अर्थों में परिचारिका की भूमिका निभा रहा था?
7. गिल्लू की किन चेष्टाओं से यह आभास मिलने लगा था कि अब उसका अंत समय समीप है?
8. ‘प्रभात की प्रथम किरण के स्पर्श के साथ ही वह किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया’-का आशय स्पष्ट कीजिए।
9. सोनजुही की लता के नीचे बनी गिल्लू की समाधि से लेखिका के मन में किस विश्वास का जन्म होता है?
उत्तर
1. सोनजुही की पीली कली मनमोहक होती है। उसे देखकर लेखिका के मन में विचार आया कि वह छोटा जीव (गिल्लू) इसी कली की सघन छाया में छिपकर बैठ जाता था। वह लेखिका के निकट पहुँचते ही कंधे पर कूद जाता था और उन्हें चौंका देता था। उस समय लेखिका को केवल कली की खोज रहती थी, पर अब वे उस लघुगात, प्राणी को ढूँढ़ रही थीं। इस कली को पुनः खिले हुए देखकर लेखिका अपने उसी पारिवारिक सदस्य की यादों में डूब जाती हैं, जिसका नामकरण संस्कार भी उन्होंने स्वयं ही किया था।

2. कौए को समादरित इसलिए कहा गया है क्योंकि पितर पक्ष में उसकी पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि उसे खिलाने से हमारे पूर्वजों का पेट भरता है। दूसरे, जब ये कौए बोलते हैं तो हमें अपने किसी प्रियजन के आने की सूचना मिलती है।
कौए को अनादरित अर्थात् अपमानित इसलिए कहा गया है क्योंकि उसकी काँव-काँव को कर्कश माना गया है। उसकी कठोर आवाज़ को कोई पसंद नहीं करता।

3. लेखिका ने दो कौओं की चोंच से घायल, गिलहरी के बच्चे को उठा लिया। वह कौओं द्वारा चोंच मारे जाने से बिलकुल निश्चेष्ट-सा गमले से चिपटा पड़ा था। लेखिका उसे उठाकर अपने कमरे में ले आईं और रुई से उसका खून पोंछकर उसके घावों पर मरहम लगाया। लेखिका ने रुई की पतली बत्ती दूध से भिगोकर बार-बार उसके नन्हे मुँह पर लगाई किंतु उसका मुँह पूरी तरह खुल नहीं पाता था, इसलिए वह पी न सका। काफी देर तक लेखिका उसका उपचार करती रही, तब जाके उसके मुँह में पानी की बूंद टपकाने में सफल हो सकीं। लेखिका के इस प्रकार के उपचार के तीन दिन बाद ही गिलहरी का बच्चा पूरी तरह अच्छा और स्वस्थ हो गया।

4. गिल्लू लेखिका का ध्यान आकर्षित करने के लिए सर्र से परदे के ऊपर चढ़ जाता और तेजी से नीचे उतर आता था। वह तब तक लगातार ऐसा करता ही रहता था, जब तक कि महादेवी उठकर उसे लिफाफे में बंद न कर दें।

5. गिल्लू को मुक्त करने की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि वह उसका पहला बसंत था। बाहर की गिलहरियाँ खिड़की की जाली के पास आकर चिक-चिक करके कुछ-कुछ कहने लगीं। गिल्लू जाली के पास बैठकर उन्हें निहारता था। उन्हें मजे से खेलते देख वह उदास था। उसे मुक्त करने का कारण यह भी था कि उस जैसे छोटे जानवर का कुत्ता और बिल्ली आदि से रक्षा करना भी मुश्किल था। लेखिका ने उसे मुक्त करने के लिए जाली का कोना खोल दिया ताकि इस मार्ग से गिल्लू बाहर आ-जा सके। बाहर जाकर गिल्लू ने सचमुच मुक्ति की साँस ली।

6. जिन दिनों महादेवी वर्मा अस्वस्थ होकर घर में लेटी हुई थी, तब गिल्लू उनके सिरहाने बैठा रहता था। वह बड़ी कोमलता से अपने नन्हे-नन्हे पंजों से उसके सिर और बालों को सहलाया करता था। इस तरह वह एक अच्छी सेविका की । भूमिका निभा रहा था।

7. गिलहरी के जीवन की अवधि लगभग दो वर्ष होती है। जब गिल्लू का अंत समय आया तो उसने दिन-रात कुछ नहीं खाया। वह घर से बाहर भी नहीं गया। वह अपने अंतिम समय में अपने झूले से उतरकर लेखिका के बिस्तर पर निश्चेष्ट लेट गया, उसके पंजे पूरी तरह ठंडे पड़ चुके थे। वह अपने ठंडे पंजों से लेखिका की उँगली पकड़कर उसके हाथ से चिपक गया। लेखिका ने हीटर जलाकर उसे गर्मी देने का प्रयास किया, किंतु कोई लाभ न हुआ। प्रातः काल होने तक गिल्लू की मृत्यु हो चुकी थी।

8. जैसे ही सवेरा हुआ, गिल्लू इस जीवन को छोड़कर अगले किसी जीवन में जन्म लेने के लिए चला गया। आशय यह है कि सुबह होते ही उसकी मृत्यु हो गई।

9. सोनजुही की पीली कली की लता पुनः खिली थी अर्थात मृत्यु के बाद पुनर्जन्म की कामना मन को संतुष्ट कर रही थी। गिल्लू को सोनजुही से लगाव था। वह उसकी सघन छाया में छिपकर बैठ जाता था। उसकी हरियाली उसके मन को भाँति थी। सोनजुही का खिलना उस लघुगात के पुनः लौटने की आशा को जाग्रत करता है। इसी कारण शायद उसकी समाधि सोनजुही की गोद में बनाई गई है। पौधों के पुनर्प्रस्फुटन की प्रथा तो देखी गई है परंतु जीव को लौटना असंभव है फिर भी एक अपूर्ण-सी कामना की झलक मन को आशा से परिपूर्ण करती है। महादेवी जी भी इसी मनोकामना से आश्वस्त दिखाई देती हैं।

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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 2 स्मृति

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बोध-प्रश्न

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न
1. भाई के बुलाने पर घर लौटते समय लेखक के मन में किस बात का डर था?
2. मक्खनपुर पढ़ने जानेवाली बच्चों की टोली रास्ते में पड़नेवाले कुएँ में ढेला क्यों फेंकती थी?
3. ‘साँप ने फुफकार मारी या नहीं, ढेला उसे लगा या नहीं, यह बात अब तक स्मरण नहीं’–यह कथन लेखक की किस मनोदशा को स्पष्ट करता है?
4. किन कारणों से लेखक ने चिट्ठियों को कुएँ से निकालने का निर्णय लिया?
5. साँप का ध्यान बाँटने के लिए लेखक ने क्या-क्या युक्तियाँ अपनाई?
6. कुएँ में उतरकर चिट्ठियों को निकालने संबंधी साहसिक वर्णन को अपने शब्दों में लिखिए।
7. इस पाठ को पढ़ने के बाद किन-किन बाल-सुलभ शरारतों के विषय में पता चलता है?
8. ‘मनुष्य का अनुमान और भावी योजनाएँ कभी-कभी कितनी मिथ्या और उलटी निकलती हैं’–का आशय स्पष्ट कीजिए।
9. ‘फल तो किसी दूसरी शक्ति पर निर्भर है’-पाठ के संदर्भ में इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. जब लेखक झरबेरी से बेर तोड़ रहा था तभी गाँव के एक आदमी ने कहा कि तुम्हारे भाई बुला रहे हैं, शीघ्र चले आओ। भाई के बुलाने पर लेखक घर की ओर चल दिया पर उसके मन में डर था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उससे कौन-सा कसूर हो गया। उसे आशंका थी कि कहीं बेर खाने के अपराध में उसकी पेशी न हो रही हो। उसे बड़े भाई
की मार का डर था।

2. मक्खनपुर पढ़ने जानेवाले बच्चों की टोली पूरी वानर टोली थी। उन बच्चों को पता था कि कुएँ में साँप है। वे ढेला फेंककर कुएँ में से आनेवाली उसकी क्रोधपूर्ण फुफकार सुनने में मजा लेते थे। कुएँ में ढेला फेंककर उसकी आवाज़ सुनने के बाद अपनी बोली की प्रतिध्वनि सुनने की लालसा उनके मन में रहती थी।

3. यह घटना 1908 में घटी थी और लेखक ने इसे अपनी माँ को 1915 में सात साल बाद बताया था। जब तक वह इसे लिखा होगा और भी समय बीत चुका होगा। लेखक ने जब ढेला उठाकर कुएँ में साँप पर फेंका तब टोपी में रखी चिट्ठी कुएँ में गिर गईं। इससे लेखक पर बिजली-सी गिरी। वह बुरी तरह घबरा गया था। उसे निराशा, पिटने का भय और घबराहट हो रही थी। वह अपने होश खो बैठा था। उसे ठीक से यह भी याद नहीं कि जब उसने कुएँ में ढेला फेंका था तब साँप ने फुफकार मारी या नहीं, उसका फेंकी ढेला साँप को लगा या नहीं। इससे उसकी
घबराहट झलकती थी।

4. लेखक को चिठियाँ बडे भाई ने दी थीं। यदि वे डाकखाने में नहीं डाली जातीं तो घर पर मार पडती। सच बोलकर पिटने का भय और झूठ बोलकर चिट्ठियों के न पहुँचने की जिम्मेदारी के बोझ से दबा वह बैठा सिसक रहा था। वह झूठ भी नहीं बोल सकता था। चिट्ठियाँ कुएँ में गिरी पड़ी थीं। उसका मन कहीं भाग जाने को करता था, फिर पिटने का भय और जिम्मेदारी की दुधारी तलवार कलेजे पर फिर रही थी। उसे चिट्ठियाँ बाहर निकालकर लानी थीं। अंत में उसने कुएँ से चिट्ठियाँ निकालने का निर्णय कर ही लिया।

5. साँप का ध्यान बाँटने के लिए लेखक ने निम्नलिखित युक्तियाँ अपनाई-

  • उसने डंडे से साँप को दबाने का ख्याल छोड़ दिया।
  • उसने साँप का फन पीछे होते ही अपना डंडा चिट्ठियों की ओर कर दिया और किफ़ा उठाने की चेष्टा की।
  • डंडा लेखक की ओर खींच आने से साँप के आसन बदल गए और वह चिट्ठियाँ चुनने में कामयाब हो गया।

6 लेखक की चिट्ठियाँ कुएँ में गिरी पड़ी थीं। कुएँ में उतरकर चिट्ठियों को निकाल लाना साहस का कार्य था। लेखक ने इस चुनौती को स्वीकार किया और उसने छह धोतियों को जोड़कर डंडा बाँधा और एक सिरे को कुएँ में डालकर उसके दूसरे सिरे को कुएँ के चारों ओर घुमाने के बाद उसमें गाँठ लगाकर छोटे भाई को पकड़ा दिया। धोती के सहारे जब वह कुएँ के धरातल से चार-पाँच गज ऊपर था, उसने साँप को फन फैलाए देखा। वह कुछ हाथ ऊपर लटक रहा था। साँप के पास पैर लटकते थे। वह आक्रमण करने की तैयारी में था। साँप को धोती में लटककर नहीं मारा जा सकता था। डंडा चलाने के लिए काफी जगह चाहिए थी इसलिए उसने डंडा चलाने का इरादा छोड़ दिया। उसने डंडे से चिट्ठियों को खिसकाने का प्रयास किया कि साँप डंडे से चिपक गया। साँप का पिछला भाग लेखक के हाथों को छू गया। लेखक ने डंडे को एक ओर पटक दिया। देवी कृपा से साँप के आसन बदल गए और वह चिट्ठियों को उठाने में कामयाब हो गया।

7. बच्चे कौतूहल प्रिय और जिज्ञासु प्रवृत्ति के होते हैं। उनकी जिज्ञासा व पीड़ा उनको निर्णायक मोड़ पर ला खड़ा कर देती है। इस पाठ से लेख़क उनके भाई वे उनके साथियों की बाल-सुलभ शरारतों का पता चलता है। वे इस प्रकार हैं

  • बच्चे झरबेरी से बेर तोड़कर खाने का आनंद लेते हैं।
  • कठिन व जोखिम पूर्ण कार्य करते हैं।
  • माली से छुप-छुपकर पेड़ों से आम आदि फल तोड़ना पसंद करते हैं।
  • बच्चे स्कूल जाते समय रास्ते में शरारतें करते हैं।
  • रास्ते में चलते-चलते डंडे की सहायता से वस्तुओं को बिखेरना पसंद करते हैं।
  • बच्चे कुएँ में ढेला फेंककर खुश होते हैं।
  • वे जानवरों जीव-जंतुओं को तंग कर उल्लसित होते हैं।

8. मनुष्य हर स्थिति से निबटने के लिए अपना अनुमान लगाता है। वह अपने अनुसार भविष्य के लिए योजनाएँ बनाता है, पर ये योजनाएँ हर बार सफल नहीं हो पातीं। ये कई बार झूठी सिद्ध होती हैं। कई बार तो स्थिति बिलकुल उल्टी होती है। जिस प्रकार लेखक के साथ बचपन में घटित हुआ। मक्खनपुर जाते समय जब लेखक की चिट्ठियाँ गिर गईं। उस समय की स्थिति का लेखक ने अनुमान नहीं लगाया था। कुएँ में उतरकर चिट्ठियों को लाना साहस का काम था। लेखक धोती के सहारे कुएँ में उतरा था। सामने साँप फन फैलाए बैठा था। धोती पर लटककर साँप को मारना बिलकुल असंभव था। वहाँ डंडा चलाने की भी जगह नहीं थी। लेखक ने डंडे से चिट्ठियों को खिसकाने का प्रयास किया तो साँप ने डंडे से चिपककर आसन बदल लिया और लेखक चिट्ठियाँ उठाने में सफल हुआ। लेखक इन सब बातों के लिए पहले से तैयार नहीं था, लेकिन स्थिति के साथ वह अपनी योजना में परिवर्तन करता गया।
इस प्रकार मनुष्य की कल्पना और वास्तविकता में बहुत अंतर होता है। यह बात इस घटना से सिद्ध हो जाती है।

9. मनुष्य तो कर्म करता है। उसे फल देने का काम ईश्वर करता है। फल को पाना मनुष्य के बस की बात नहीं है। मनचाहा फल प्राप्त नहीं किया जा सकता। यह तो फल देने वाले की इच्छा पर निर्भर है। इस पाठ में लेखक ने चिट्ठियाँ प्राप्त करने के लिए भरसक प्रयास किया और उसे सफलता मिल भी गई। गीता में भी कहा गया है कि “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्” कार्य के प्रति आसक्ति रखना उचित नहीं है।

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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

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प्रश्न-अभ्यास
( पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न 1.
‘इस विजन में ……………… अधिक है’ -पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का क्या आक्रोश है और क्यों ?
उत्तर:
उपर्युक्त पंक्तियों में कवि का आक्रोश प्रकट हुआ है, क्योंकि शहर या नगर में रहने वाले लोगों में पैसों के प्रति इतना लगाव बढ़ गया है कि इसके आगे उन्हें सब कुछ तुच्छ-सा लगता है। वे अपने व्यापार पर अधिक ध्यान देते हैं। वे प्रेम और सौंदर्य से बहुत दूर हो चुके हैं। कवि के आक्रोश का कारण यह है कि-

  1. कवि प्रकृति को बहुत प्यार करता है।
  2. वह शहर के बनावटी जीवन को अच्छा नहीं मानता है।
  3. गाँवों का वातावरण शहर के शोर, प्रदूषण, भागमभाग की जिंदगी से कोसों दूर
  4. गाँवों में प्रकृति के अंग-अंग प्यार में डूबे नजर आते हैं।

प्रश्न 2.
सरसों को ‘सयानी’ कहकर कवि क्या कहना चाहता होगा?
उत्तर:
सरसों को ‘सयानी’ कहकर कवि कहना चाहता है कि अब उसकी फसल पककर तैयार हो चुकी है। उसका पूरा विकास हो चुका है।

प्रश्न 3.
अलसी के मनोभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कवि ने अलसी को हठीली नायिका के रूप में चित्रित किया है। वहे चने के पास हठपूर्वक उग आयी है। दुबले शरीर और लचकदार कम्बाली अलसी सिर पर नीले फूल धारण कर प्रेमातुर हो रही है कि उसे जो छुएगा उसका वह अपने हृदय का दान देगी।

प्रश्न 4.
अलसी के लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग क्यों किया गया है?
उत्तर:
अलसी को ‘हठीली’ कहने के दो कारण हैं|

  1. वह चने के खेत में हठपूर्वक अपने-आप उग आई है।
  2. वह अपनी पतली देह के साथ बार-बार झूमती-झुकती है और फिर-से खड़ी हो जाती है।

प्रश्न 5.
“चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा’ में कवि की किस सूक्ष्म कल्पना का आभास मिलता
उत्तर:
पोखर के जल में जब सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं तो उसका प्रतिबिंब गोल और लंबा-सा बन जाता है। यह प्रतिबिंब कवि को चाँदी के खंभे सी लगता है। इस प्रकार कवि की यह कल्पना मनोरम बन पड़ी है।

प्रश्न 6.
कविता के आधार पर हरे चने का सौंदर्य अपने शब्दों में चित्रित कीजिए।
उत्तर:
हरा चना आकार में ठिगना है। आज वह दूल्हे के रूप में सजकर खड़ा है। उसने अपने सिर पर गुलाबी फूलों की पगड़ी पहन रखी है। इस प्रकार वह सुशोभित हो रहा है।

प्रश्न 7.
कवि ने प्रकृति का मानवीकरण कहाँ-कहाँ किया है?
उत्तर:
कवि ने कविता में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया है, जैसे-

  1. यह हरा ठिगना चना, बाँधे मुरैठा शीश पर
  2. बीच में अलसी हठीली देह की पतली, कमर की है लचीली
  3. सरसों के लिए-हाथ पीले कर लिए हैं
    ब्याह-मंडप में पधारी
  4. फाग गाता मास फागुन आ गया है आज जैसे।
  5. हैं कई पत्थर किनारे पी रहे चुपचाप पानी
  6. बगुले के लिए देखते ही मीन चंचल
    ध्यान-निद्रा त्यागता है,

प्रश्न 8.
कविता से उन पंक्तियों को ढूंढ़िए जिनमें निम्नलिखित भाव व्यंजित हो रहा है और चारों तरफ़ सूखी और उजाड़ ज़मीन है लेकिन वहाँ भी तोते का मधुर स्वर मन को स्पंदित कर रहा है।
उत्तर:
चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
कम ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
बाँझ भूमि पर
इधर-उधर रीवा के पेड़
काँटेदार कुरूप खड़े हैं।
सुन पड़ता है ,
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें;

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 9.
‘और सरसों की न पूछो’-इस उक्ति में बात को कहने का एक खास अंदाज़ है। हम इस प्रकार की शैली का प्रयोग कब और क्यों करते हैं?
उत्तर:
अपनी बात को चुटिल (रोचक) बनाते हुए अधिक प्रभावपूर्ण ढंग से कहने, किसी की प्रशंसा आदि के लिए इस शैली का प्रयोग करते हैं; जैसे तुम कुतुबमीनार की ऊँचाई की न पूछो। तुम गंगा की पवित्रता को तो पूछो ही मते इस समय लेह में ठंडक की न पूछो।

प्रश्न 10.
काले माथे और सफेद पंखों वाली चिड़िया आपकी दृष्टि में किस प्रकार के व्यक्तित्व का प्रतीक हो सकती है?
उत्तर:
काले माथे और सफेद पंख वाली चिड़िया किसी महाधूर्त, महास्वार्थी आक्रामक उग्र व्यक्तित्व की प्रतीक हो सकती है। वह पैनी दृष्टि से अपने शिकार पर नज़र रखती है और अवसर मिलते ही अपना काम कर जाती है।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 11.
बीते के बराबर, ठिगना, मुरैठा आदि सामान्य बोलचाल के शब्द हैं, लेकिन कविता में इन्हीं से सौंदर्य उभरा है और कविता सहज बन पड़ी है। कविता में आए ऐसे ही अन्य शब्दों की सूची बनाइए।
उत्तर:
फाग, पोखर, लचीली, हठीली, सयानी, चकमकाता, चट, झपाटे, चटुल, लहरियाँ, अनगढ़, सुग्गा, जुगल, जोड़ी, टें-टें-टें, टिरटों-टिरटों, चुप्पे-चुप्पे आदि।

प्रश्न 12.
कविता को पढ़ते समय कुछ मुहावरे मानसपटल पर उभर आते हैं, उन्हें लिखिए और अपने वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए।
उत्तर:

  • बीता-भर (छोटा-सा) -यह बच्चा है तो बीता-भर, लेकिन बातें बड़ी-बड़ी करता है।
  • सिर पर चढ़ाना (अधिक छूट देना, उदंड बना देना)-माँ-बाप अपनी ढील से बच्चों को सिर पर चढ़ा लेते हैं।
  • हृदय को दान देना (समर्पित होना)–विवाह के पहले दिन ही पति-पत्नी एक-दूसरे को हृदय का दान दे देते हैं।
  • सयानी होना (विवाह-योग्य होना)-अरे भाई, बिटिया सयानी हो गई है। अब इसके लिए योग्य वर की तलाश करो।
  • हाथ पीले करना (शादी करना)-माता-पिता ने ठीक समय पर अपनी कन्या के हाथ पीले कर दिए।
  • गले में डालना (जल्दी से खाना, निगलना)- गाड़ी का समय हो गया था। इसलिए मैंने रोटी गले में डाली और रेलवे-स्टेशन की ओर भागा।
  • हृदय-चीरना (दिल को बहुत दुख पहुँचाना)-दुर्घटना में पुत्र की मौत के समाचार ने पिता का हृदय चीरकर रख दिया।

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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी

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बोध-प्रश्न

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न
1. ‘उनाकोटी’ का अर्थ स्पष्ट करते हुए बतलाएँ कि यह स्थान इस नाम से क्यों प्रसिद्ध है?
2. पाठ के संदर्भ में उनाकोटी में स्थित गंगावतरण की कथा को अपने शब्दों में लिखिए।
3. कल्लू कुम्हार का नाम उनाकोटी से किस प्रकार जुड़ गया?
4. ‘मेरी रीढ़ में एक झुरझुरी-सी दौड़ गई’-लेखक के इस कथन के पीछे कौन-सी घटना जुड़ी है?
5. त्रिपुरा ‘बहुधार्मिक समाज’ का उदाहरण कैसे बना?
6. टीलियामुरा कस्बे में लेखक का परिचय किन दो प्रमुख हस्तियों से हुआ? समाज-कल्याण के कार्यों में उनका क्या योगदान था?
7. कैलाशशहर के जिलाधिकारी ने आलू की खेती के विषय में लेखक को क्या जानकारी दी?
8. त्रिपुरा के घरेलू उद्योगों पर प्रकाश डालते हुए अपनी जानकारी के कुछ अन्य घरेलू उद्योगों के विषय में बताईए।
उत्तर
1. उनाकोटी का अर्थ है-एक करोड़ से एक कम। उनाकोटी में शिव की कोटि से एक कम मूर्तियाँ हैं। भारत के | यह सबसे बड़े शैव तीर्थों में से एक है। यहाँ आदिवासी धर्म फलते-फूलते हैं। यह स्थान जंगल में काफी भीतर है। यह पूरा इलाका देवी-देवताओं से भरा पड़ा है। इन मूर्तियों का निर्माता कल्लू कुम्हार था। वह पार्वती का भक्त था। वह शिव-पार्वती के साथ उनके निवास कैलाश पर्वत पर जाना चाहता था। पार्वती के जोर देने पर शिव कल्लू को कैलाश ले जाने के लिए तैयार हो गए, लेकिन उसके लिए यह शर्त रखी कि उसे एक रात में शिव की एक कोटी मूर्तियाँ बनानी होंगी। कल्लू धुन के पक्के व्यक्ति की तरह अपने काम में जुट गया। लेकिन जब गिनती हुई तो मूर्तियाँ एक कोटि से कम निकलीं। कल्लू नाम की इस मुसीबत से पीछा छुड़ाने पर अड़े शिव ने इसी बात का बहाना बनाते हुए कल्लू को अपनी मूर्तियों के साथ उनाकोटी में ही छोड़ दिया और चलते बने।।

2. प्राचीन काल में एक महान राजा हुए हैं-भगीरथ। उन्होंने अपनी तपस्या से गंगा को धरती पर आने के लिए राजी किया। गंगा के वेग से धरती पाताल लोक में न चली जाए, इसके लिए भगवान शिव से प्रार्थना की गई। भगवान शिव ने अपनी जटाओं में गंगा को धारण किया और धीरे-धीरे धरती पर छोड़ दिया। इसी घटना को चित्रों के द्वारा उनाकोटी में दर्शाया। गया है।

3. उनाकोटी का पूरा इलाका ही शब्दशः देवियों-देवताओं की मूर्तियों से भरा पड़ा है। इन आधार-मूर्तियों के निर्माता अभी चिहनित नहीं किए जा सके हैं। स्थानीय आदिवासियों का मानना है कि इन मूर्तियों का निर्माता कल्लू कुम्हार था। वह पार्वती का भक्त था। वह शिव-पार्वती के निवास कैलाश जाना चाहता था। लेकिन इसके लिए शर्त यह रखी थी कि उसे एक रात में शिव की एक कोटि मूर्तियाँ बनानी होंगी। जब भोर हुई तो मूर्तियाँ एक कोटि से कम निकलीं। कल्लू नाम की इस मुसीबत से पीछा छुड़ाने पर अड़े शिव ने इसी बात को बहाना बनाते हुए कल्लू कुम्हार को अपनी मूर्तियों के साथ उनाकोटी में ही छोड़ दिया और चलते बने। इस प्रकार उनाकोटी की मूर्तियों के निर्माता के रूप में कल्लू कुम्हार को प्रसिद्धि मिली और उनका नाम उनाकोटी से जुड़ गया।

4. ‘मेरी रीढ़ में एक झुरझुरी-सी दौड़ गई’-लेखक के इस कथन के पीछे वह घटना है, जब लेखक सी.आर.पी. एफ. के जवानों के साथ त्रिपुरा के हिंसाग्रस्त क्षेत्र से गुजर रहा था। मार्ग में एक जवान ने एक जगह की तरफ इशारा करके बताया कि दो दिन पहले वहाँ विद्रोहियों ने एक जवान को मार डाला था। इस बात को सुनकर लेखक घबरा गया।

5. त्रिपुरा में उन्नीस अनुसूचित जनजातियों और विश्व के चारों बड़े धर्मों का प्रतिनिधित्व मौजूद है। अगरतला के बाहरी हिस्से पचौरथल पर उन्हें बताया गया कि त्रिपुरा के उन्नीस कबीलों में से दो यानी चकमा और मधु महायानी बौद्ध हैं। ये कबीले त्रिपुरा में बर्मा या म्याँमार के चटगाँव के रास्ते आए थे। दरअसल इस मंदिर की मुख्य बुद्ध प्रतिमा भी 1930 के दशक में रंगून से लाई गई थी। त्रिपुरा में लगातार बाहरी लोगों के आने से कुछ समस्याएँ तो पैदा हुईं लेकिन इसके चलते यह राज्य बहुधार्मिक समाज का उदाहरण बना है।

6.

टीलियामुरा कस्बे में लेखक की मुलाकात प्रसिद्ध लोकगायक हेमंत कुमार जमातिया और रेडियो कलाकार व गायिका मंजू ऋषिदास से हुई। हेमंत कुमार गायक होने के साथ-साथ जिला परिषद् के सदस्य भी थे। वे सामाजिक कार्यों में हाथ बँटाते थे। मंजू ऋषिदास नगर पंचायत में अपने वार्ड का प्रतिनिधित्व करती थी और स्वच्छ पेयजल तथा गलियाँ पक्की करवाने के लिए प्रयासरत थी।

7. कैलासशहर के जिलाधिकारी ने आलू की खेती के विषय में लेखक को यह जानकारी दी कि आलू की बुआई के लिए आमतौर पर पारंपरिक आलू के बीजों की जरूरत दो मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर पड़ती है। इसके टी०पी०एस० की सिर्फ 100 ग्राम मात्रा दो हेक्टेयर की बुआई के लिए कड़ी होती है। त्रिपुरा की टी०पी०एस० का निर्यात अब न सिर्फ असम, मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश को बल्कि बांग्लादेश, मलेशिया और वियतनाम को भी किया जा रहा है।

8. त्रिपुरा में बाँस के द्वारा पतली-पतली सीके तैयार की जाती हैं। इन सींकों को अगरबत्ती बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। त्रिपुरा के कुछ अन्य घरेलू उद्योग हैं-अचार बनाना, पापड़ बनाना, लिफाफे तैयार करना, चटनी बनाना, पतंग बनाना, वस्त्र तैयार करना, मसाले तैयार करना, पुस्तकों पर जिल्द चढ़ाना आदि।

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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 4 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 4 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 4 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 9 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 4 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय.

बोध-प्रश्न

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न
1. लेखक का ऑपरेशन करने से सर्जन क्यों हिचक रहे थे?
2. ‘किताबों वाले कमरे में रहने के पीछे लेखक के मन में क्या भावना थी?
3. लेखक के घर में कौन-कौन-सी पत्रिकाएँ आती थीं?
4. लेखक को किताबें पढ़ने और सहेजने का शौक कैसे लगा?
5. माँ लेखक की स्कूली पढ़ाई को लेकर क्यों चिंतित रहती थी?
6. स्कूल से इनाम में मिली अंग्रेज़ी की दोनों पुस्तकों ने किस प्रकार लेखक के लिए नयी दुनिया के द्वार खोल दिए?
7. ‘आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का। यह तुम्हारी अपनी लाइब्रेरी है-पिता के इस कथन से लेखक को क्या प्रेरणा मिली?
8. लेखक द्वारा पहली पुस्तक खरीदने की घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
9. ‘इन कृतियों के बीच अपने को कितना भरा-भरा महसूस करता हूँ’-का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. लेखक को तीन-तीन जबरदस्त हार्ट-अटैक आए थे। कुछ डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया था, लेकिन डॉक्टर बोर्जेस ने हिम्मत नहीं हारी थी। उन्होंने नौ सौ वॉल्टस के शॉक्स दिए थे। उनका मानना था कि यदि शरीर मृत है तो दर्द महसूस नहीं होगा। परंतु इस प्रयोग में साठ प्रतिशत हार्ट सदा के लिए नष्ट हो गया केवल चालीस प्रतिशत बचा। ओपन हार्ट ऑपरेशन करने की ज़रूरत थी। उसी में डॉक्टर हिचक रहे थे। केवल चालीस प्रतिशत हार्ट ऑपरेशन के बाद रिवाइव नहीं हुआ तो क्या होगा। अन्य विशेषज्ञों की राय ली गई। कुछ दिन बाद ऑपरेशन की बात की गई।

2. लेखक किताबों वाले कमरे में रहकर स्वयं को अकेला महसूस नहीं करता था। जीवन भर सँभाल कर रखी गई पुस्तकों से लेखक को बड़ा प्रेम था। वहाँ रहकर लेखक को शांति मिलती थी।

3. लेखक के पिता सरकारी नौकरी करते हुए बहुत अच्छा पैसा कमा रहे थे, किंतु उन्होंने गांधी जी के आह्वान पर नौकरी छोड़ दी। इससे घर में आर्थिक संकट उठ खड़ा हुआ। इसके बावजूद भी लेखक के घर में कई पत्रिकाएँ नियमित रूप से आती थीं। इनमें आर्यमित्र (साप्ताहिक), वेदोदम, ‘सरस्वती’, ‘गृहिणी’ प्रमुख थीं। इसके अलावा दो बाल पत्रिकाएँ ‘बालसखा’ और ‘चमचम’ भी नियमित रूप से आती थीं।

4. लेखक के घर दो बाल पत्रिकाएँ ‘बाल सखा’ और ‘चमचम’ आती थीं। इनमें परियों, राजकुमारों, दानवों आदि की कहानियाँ और रेखाचित्र होते थे। इन कहानियों को पढ़ते-पढ़ते लेखक को किताबें पढ़ने का शौक लग गया। लेखक के पिता द्वारा दिया गया अलमारी का कोना पुस्तकें सहेजकर रखने की आदत बन गया।

5. लेखक स्कूली किताबों से कहीं अधिक अतिरिक्त किताबें पढ़ता था। वह कक्षा की किताबें नहीं पढ़ता था। माँ को चिंता थी कि कहीं वह साधु बनकर घर से भाग न जाए। उनका मानना था कि जीवन में यही पढाई काम आएगी। माँ की चिंता को मिटाने के लिए लेखक ने पिता के कहने पर पाठ्यपुस्तकों का अध्ययन करना आरंभ कर दिया। तीसरी, चौथी कक्षा में अच्छे अंक लाकर माँ की चिंता दूर कर दी। लेखक जब पाँचवीं कक्षा में प्रथम आया तब माँ ने आँसू भरकर उसे गले से लगा लिया।

6. लेखक को अंग्रेज़ी में सबसे ज्यादा नंबर मिले तो उसे इनाम स्वरूप अंग्रेजी की दो किताबें मिलीं। इनमें से एक में पक्षियों की कहानियाँ थीं, जिससे लेखक को पक्षियों की जातियों, बोलियों व उनकी आदतों की जानकारी मिली। दूसरी किताब में पानी के जहाजों की कहानियाँ थीं, जिनसे जहाज़, नाविकों, द्वीपों व मछलियों की जानकारी मिली। इस प्रकार इन पुस्तकों ने लेखक के लिए एक नई दुनिया का द्वार खोल दिया।

7. “आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का, यह तुम्हारी अपनी लाइब्रेरी है।” पिता जी के इस कथन ने लेखक में पुस्तकों के संकलन की चाह पैदा की। यहाँ से आरंभ हुई उस बच्चे की लाइब्रेरी। बच्चा किशोर हुआ, स्कूल से कॉलेज, कॉलेज से यूनिवर्सिटी गया, डॉक्टरेट हासिल की, यूनिवर्सिटी में अध्यापन किया, अध्यापन छोड़कर इलाहाबाद से बंबई आया संपादन किया। उसी अनुपात में अपनी लाइब्रेरी का विस्तार करता गया। किताबें पढ़ने का शौक तो ठीक, किताबें इकट्ठी करने की सनक सवार हुई। बचपन के अनुभव तथा पिता के कथन की प्रेरणा से उन्होंने घरेलू लाइब्रेरी को स्थापित किया।

8. लेखक का पहली पुस्तक खरीदना एक संयोग ही था। लेखक ‘देवदास’ फिल्म देखने निकला था। शो शुरू होने में कुछ समय था। समय व्यतीत करने के लिए वह पास की एक पुस्तकों की दुकान पर खड़ा हो गया। वहाँ एक किताब रखी थी-देवदास। लेखक थे शरत्चंद्र चट्टोपाध्याय। पुस्तक विक्रेता जान-पहचान का था। उसने दाम से भी कम मूल्य में किताब दे दी। इस प्रकार लेखक ने पहली पुस्तक खरीदी।

9. आज जब लेखक अपने पुस्तक संकलन पर नज़र डालता है तो उसमें हिंदी, अंग्रेजी के उपन्यास, नाटक, काव्य
संकलन, जीवनियाँ, संस्मरण, इतिहास, कला, पुरातत्व, राजनीति की हजारों पुस्तकें हैं। ऐसे में कितनी शिद्दत से याद आती है अपनी पहली पुस्तक की खरीददारी। रेनर मारिया, स्टीफेन, ज्वीग, मोपाँसा, चेरवत, टालस्टाय, आदि के साथ हुसैन पिकासो, ब्रूगेल तथा हिंदी में कबीर, तुलसी, सूरदास, प्रेमचंद, निराला, महादेवी वर्मा और न जाने कितने लेखकों, चिंतकों की इन कृतियों के बीच अपने को कितना भरा-भरा महसूस करता है। इन किताबों के बीच लेखक अपने आप को अकेला महसूस नहीं करता था। उसे किताबों को देखकर संतोष होता है।

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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 5 हामिद खाँ

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 5 हामिद खाँ

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 5 हामिद खाँ

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 9 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 5 हामिद खाँ.

बोध-प्रश्न

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न
1.
लेखक को परिचय हामिद खाँ से किन परिस्थितियों में हुआ?
2. ‘काश मैं आपके मुल्क में आकर यह सब अपनी आँखों से देख सकता।’–हामिद ने ऐसा क्यों कहा?
3. हामिद को लेखक की किन बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था? ।
4. हामिद खाँ ने खाने का पैसा लेने से इंकार क्यों किया?
5. मालाबार में हिंदू-मुसलमानों के परस्पर संबंधों को अपने शब्दों में लिखिए।
6. तक्षशिला में आगजनी की खबर पढ़कर लेखक के मन में कौन-सा विचार कौंधा? इससे लेखक के स्वभाव की किस विशेषता का पता चलता है?
उत्तर
1. लेखक भारत के निवासी थे। वह तक्षशिला के खंडहर देखने के लिए पाकिस्तानी दोस्तों के साथ वहाँ गए थे। घूमते-घूमते उन्हें भूख लगी, कुछ न मिलने पर उन्हें गली में एक दुकान दिखाई दी। यह हामिद खाँ की दुकान थी। वहाँ उन्हें खाने के लिए सालन और चपाती मिली। बातचीत करने पर दोनों एक-दूसरे से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। मुसलिम होते हुए भी उसने हिंदू लेखक की मेहमाननवाजी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इन परिस्थितियों में लेखक की मुलाकात हामिद खाँ से हुई।।

2. हामिद के देश (पाकिस्तान) में हिंदू-मुसलमान का भेद बहुत अधिक था। हिंदू लोग मुसलमानों को अत्याचारी मानकर उनसे घृणा करते थे तथा उनसे दूर रहते थे। अतः हामिद यह कल्पना ही नहीं कर सकता था कि कहीं हिंदू-मुसलमान आपस में प्रेम से रहते होंगे। परंतु वह दिल से चाहता था कि ये दोनों जातियाँ परस्पर प्रेमपूर्वक रहें। इसलिए उसने यह इच्छा प्रकट की कि वह लेखक के देश (भारत) में आकर हिंदू-मुसलमान को आपसी भाईचारा देखे।

3. लेखक ने हिंदू-मुसलमानों के मेल-मिलाप की बातें हामिद खाँ को बताईं। उसे लेखक की बातों पर भरोसा नहीं हुआ। पाकिस्तान में हिंदू-मुसलिम संबंधों में अंतर था। उनमें बहुत दूरियाँ थीं परंतु हिंदुस्तान में आपसी संबंध बहुत अच्छे थे। पाकिस्तान में वे एक-दूसरे के त्योहारों में सम्मिलित नहीं होते। न कोई हिंदू मुसलिम होटल में खाना खाता है और न ही कोई मुसलिम हिंदू दुकान पर जाता था। मुसलमानों को अत्याचारियों की संतान माना जाता है। इस दुनिया में उन्हे शैतानों की तरह लुक-छिपकर चलना पड़ता था। लेखक ने जब हिंदू-मुसलमान एकता की भारत की बात की तो हामिद खाँ हैरान रह गया। पहले तो उसे लेखक के हिंदू होने पर विश्वास नहीं हुआ। फिर वह
लेखक को अजनबी निगाहों से देखता रहा।

4. हामिद खाँ लेखक का प्रेम और भाईचारा देखकर बहुत प्रभावित हुआ। उसने लेखक को अपना मेहमान मान लिया। इसलिए उसने उससे खाने को पैसा लेने से इनकार कर दिया।

5. मालाबार में हिंदू और मुसलमानों में परस्पर भेद-भाव नहीं था। वे दोनों धर्मों के नाम पर झगड़ते नहीं थे। सांप्रदायिक झगड़ों के कारण माहौल बिगड़ा हुआ नहीं था। हिंदू-मुसलमान एक-दूसरे के तीज-त्योहार में सम्मिलित होते थे। हिंदू इलाकों में मस्जिद भी स्थित है।

6. तक्षशिला में आगज़नी की खबर सुनकर लेखक के मन में हामिद के प्रति शुभकामना के भाव उठते हैं। वह प्रभु से प्रार्थना करता है कि वह उसे सुरक्षित रखे। इससे लेखक की उदारता, सद्भावना तथा सांप्रदायिक सौहार्द का पता चलता है।

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