Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 15 चौसर का खेल व द्रौपदी की व्यथा

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 15 चौसर का खेल व द्रौपदी की व्यथा

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 15

प्रश्न 1.
विदुर ने इन्द्रप्रस्थ जाकर युधिष्ठिर से क्या कहा ?
उत्तर:
विदुर ने इन्द्रप्रस्थ जाकर युधिष्ठिर से कहा कि हस्तिानपुर में खेल के लिए एक सभा मंडप बनाया गया है, जो तुम्हारे मंडप के समान ही सुंदर है। राजा धृतराष्ट्र की ओर से उसे देखने चलने के लिए तुम्हें न्यौता देने आया हूँ। उनकी इच्छा है कि तुम सब भाइयों सहित वहाँ आओ, उस मंडप को देखो और दो-दो हाथ चौसर भी खेल जाओ।

प्रश्न 2.
चौसर खेलने के निमंत्रण की बात सुनकर युधिष्ठिर ने विदुर से क्या कहा ?
उत्तर:
युधिष्ठिर ने कहा “काका श्री! चौसर का खेल अच्छा नहीं है। उससे आपस में झगड़े पैदा होते हैं। समझदार लोग उसे पसंद नहीं करते। लेकिन इन मामलों में हम तो आप ही के आदेशानुसार चलने वाले हैं।”

प्रश्न 3.
सारी बातों को जानने के बाद भी युधिष्ठिर ने चौसर खेलना क्यों स्वीकार किया?
उत्तर:
राजवंशों की रीति के अनुसार किसी भी राजा को खेल के लिए बुलावा मिल जाने पर उसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता था। इसके अलावा युधिष्ठिर को डर था कि कहीं खेल में न जाने को ही धृतराष्ट्र अपना अपमान न समझ लें इसलिए युधिष्ठिर ने न्यौता स्वीकार कर लिया।

प्रश्न 4.
चौसर के खेल में युधिष्ठिर को क्या-क्या हारना पड़ा ?
उत्तर:
चौसर के खेल में दुर्योधन की ओर से शकुनि खेल रहे थे। ऐसा लगता था कि मानो पांसे शकुनि के इशारों पर चल रहे हों। युधिष्ठिर अपना सोना, चाँदी, भाइयों के आभूषण, अपने भाइयों को; तथा अपने आपको भी दाँव पर लगाकर हार गया। अंत में उसने शकुनि के उकसाने पर द्रौपदी को भी दाँव पर लगा दिया और हार गया।

प्रश्न 5.
दुर्योधन ने विदुर को क्या आदेश दिया, विदुर ने क्या कहकर दुर्योधन का आदेश नहीं माना ?
उत्तर:
दुर्योधन ने विदुर को आदेश दिया कि वे रनिवास में जाएँ और द्रौपदी को लेकर आएँ। विदुर ने कहा कि मूर्ख! नाहक क्यों मृत्यु को न्यौता देने चला है। अपने को हार चुकने के बाद युधिष्ठिर को कोई अधिकार नहीं था कि वह पांचाल की बेटी को दाँव पर लगाए।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 15 चौसर का खेल व द्रौपदी की व्यथा

प्रश्न 6.
धृतराष्ट्र के पुत्र विकर्ण ने क्या कहकर दुर्योधन का विरोध किया ?
उत्तर:
विकर्ण ने कहा कि चौसर के खेल के लिए युधिष्ठिर को धोखे से बुलाया गया है। स्वयं को हारने के बाद युधिष्ठिर को कोई अधिकार नहीं कि वह द्रौपदी को दाँव पर लगाए। शकुनि ने द्रौपदी की बाजी लगाने के लिए युधिष्ठिर को उकसाया था जो नियम विरुद्ध था।

प्रश्न 7.
दुःशासन द्वारा द्रौपदी का चीर हरण करने पर भीम ने क्या प्रतिज्ञा की ?
उत्तर:
भीम ने प्रतिज्ञा की “उपस्थित सज्जनो! मैं शपथ खाकर कहता हूँ कि जब तक भरत वंश पर बट्टा लगाने वाले इस दुरात्मा दुःशासन की छाती चीर न लूँगा तब तक इस संसार को छोड़कर नहीं जाऊँगा ?

प्रश्न 8.
भीम की प्रतिज्ञा को सुनकर धृतराष्ट्र ने क्या निर्णय लिया ?
उत्तर:
परिस्थितियों को संभालने के लिए धृतराष्ट्र ने द्रौपदी को बड़े प्रेम से अपने पास बुलाकर शांत किया और फिर युधिष्ठिर से बोले तुम तो अजातशत्रु हो, उदार हृदय भी हो, दुर्योधन की इस कुचाल को क्षमा कर दो। अपना राज्य, संपत्ति आदि सब ले जाओ और इन्द्रप्रस्थ जाकर सुखपूर्वक रहो। धृतराष्ट्र की इन बातों से पांडवों के दिल शांत हो गए।

प्रश्न 9.
दुर्योधन के पुनः बुलावे पर चौसर के लिए क्या शर्त रखी गई ?
उत्तर:
इस बार खेल के लिए शर्त थी कि हारा हुआ दल अपने भाइयों के साथ बारह वर्ष तक वनवास करेगा तथा उसके उपरांत एक वर्ष अज्ञातवास में रहेगा। यदि अज्ञातवास के एक वर्ष में उनका पता चल गया तो उन सबको बारह वर्ष का वनवास फिर से भोगना पड़ेगा।

प्रश्न 10.
युधिष्ठिर को अपने भाइयों के साथ वन में क्यों जाना पड़ा ?
उत्तर:
युधिष्ठिर फिर से आयोजित किए गए चौसर के खेल में हार गए। शर्त के अनुसार उनको 12 वर्ष के वनवास व एक वर्ष के अज्ञातवास के लिए जाना पड़ा।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 15 चौसर का खेल व द्रौपदी की व्यथा

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 15

धृतराष्ट्र की बात मानकर विदुर पांडवों के पास चौसर खेलने का न्योता लेकर गए। विदुर का वहाँ यथोचित सत्कार किया गया। विदुर ने युधिष्ठिर को हस्तिनापुर के नवनिर्मित मंडप को देखने और चौसर खेलने का निमंत्रण दिया। युधिष्ठिर ने कहा काका श्री चौसर का खेल ठीक नहीं है, परन्तु राजवंश की नीति के अनुसार बुलावे को अस्वीकार करना भी उचित नहीं है। युधिष्ठिर ने चौसर खेलने के न्यौते को स्वीकार कर लिया। युधिष्ठिर अपने भाइयों एवं पत्नी के साथ हस्तिनापुर पहुंच गए। अगले दिन तैयार होकर वे मंडप में जा पहँचे। युधिष्ठिर ने एक बार फिर कहा कि चौसर का खेल उचित नहीं है। इस पर शकुनि ने कहा कि तुम हार से डरते हो इसलिए ऐसा कह रहे हो। जब युधिष्ठिर ने पूछा कि उनके साथ कौन खेलेगा तो दुर्योधन बोले की मेरी ओर से मामा शकुनि खेलेंगे पर धन में दूँगा। युधिष्ठिर ने किसी की ओर से दूसरे के खेलने पर भी आपत्ति की परन्तु शकुनि के यह कहने पर कि तुम बहाना बना रहे हो, युधिष्ठिर ने खेलना स्वीकार कर लिया। खेल शुरू हो गया। ऐसा लगता था कि मानो पांसा उसके इशारों पर चल रहा है। युधिष्ठिर अपनी सारी सम्पत्ति और अपने भाइयों को भी दाँव पर लगाकर एक-एक करके हारता चला गया। अंत में वह स्वयं को भी हार गया। शकुनि के उकसाने पर युधिष्ठिर ने द्रौपदी को भी दाँव पर लगा दिया और उसको भी हार गया। दुर्योधन ने द्रौपदी को लाने के लिए विदुर से कहा कि वे रनिवास में जाएँ और द्रौपदी को लेकर आएँ। विदुर ने इस कार्य को अनीतिपूर्ण बताया। इसके बाद दुर्योधन ने प्रतिकामी को भेजा। द्रौपदी ने कहा कि युधिष्ठिर को स्वयं हारने के बाद उसे दाँव पर लगाने का अधिकार नहीं है। फिर दुर्योधन ने द्रौपदी को लाने के लिए अपने छोटे भाई दुःशासन को भेजा। दुःशासन ने द्रौपदी के बाल बिखेर डाले व गहने तोड़ दिए वह उसे खींचकर सभा मंडप में लाया। धृतराष्ट्र के बेटे विकर्ण ने इसका विरोध किया। कर्ण ने उसे डाँटकर चुप करा दिया। दुःशासन द्रौपदी की साड़ी पकड़कर खींचने लगा पर वस्त्र बढ़ता ही जा रहा था। अखिर में दुःशासन थककर बैठ गया। तभी भीम ने प्रतिज्ञा की-मैं शपथ खाकर कहता हूँ कि जब तक इस दुरात्मा दुःशासन की छाती चीर न लूँगा तब तक इस संसार को छोड़कर नहीं जाऊँगा। यह सुनकर उपस्थित लोग थर्रा उठे। धृतराष्ट्र ने भावी विनाश को समझते हुए द्रौपदी को प्यारपूर्वक अपने पास बुलाया और पांडवों को उनका राज्य वापस कर दिया। पर युधिष्ठिर को दुबारा खेलने का निमंत्रण दिया गया। इस बार शर्त यह रखी गई कि चौसर के खेल में जो भी हारेगा उसे अपने भाइयों के साथ बारह वर्ष का वनवास व एक वर्ष अज्ञातवास में रहना होगा। अज्ञातवास में पहचान लिए जाने पर पुनः वनवास जाना होगा। युधिष्ठिर इस बार भी इस खेल में हार गए।

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