NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 8 ऐसे-ऐसे

These NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 8 ऐसे-ऐसे Questions and Answers are prepared by our highly skilled subject experts.

ऐसे-ऐसे NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 8

Class 6 Hindi Chapter 8 ऐसे-ऐसे Textbook Questions and Answers

एकांकी से

प्रश्न 1.
‘सड़क के किनारे एक सुंदर फ्लैट में बैठक का दृश्य। उसका एक दरवाज़ा सड़क वाले बरामदे में खुलता है …… उस पर एक फ़ोन रखा है। इस बैठक की पूरी तस्वीर बनाओ।
उत्तर:
छात्र स्वयं करेंगे।

प्रश्न 2.
माँ मोहन के ऐसे-ऐसे कहने पर क्यों घबरा रही थी ?
उत्तर:
माँ का घबराना स्वाभाविक था क्योंकि मोहन कुछ बताता ही नहीं था बस ऐसे-ऐसे किए जा रहा था। माँ ने सोचा पता नहीं यह कौन-सी बीमारी है और कितनी भयंकर है। इसलिए मोहन की माँ घबरा गई थी।

प्रश्न 3.
ऐसे कौन-कौन से बहाने होते हैं जिन्हें मास्टर जी एक ही बार में सुनकर समझ जाते हैं ? ऐसे कुछ बहानों के बारे में लिखो।
उत्तर:
ऐसे अनेक बहाने होते हैं जैसे आज स्कूल में कुछ नहीं होगा बस सफाई कराई जाएगी। कुछ छात्र कहते हैं कि मैं रात में पढ़ाई कर रहा था मेरी किताब और कापी वहीं छूट गई। कभी-कभी छात्र किसी दूर के रिश्तेदार की बीमारी का बहाना बना लेते हैं।

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अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
जब तुम्हारी तबीयत खराब होती है तो तुम्हारे घरवालों का व्यवहार तुम्हारे प्रति कैसा रहता है ? इसे शिक्षक को बताओ।
उत्तर:
जब हमारी तबीयत खराब होती है तो हमारे घरवाले बेहद परेशान हो जाते हैं पहले तो वे घर में रखी कोई चीज देते हैं जिससे तबीयत ठीक हो जाए। वे तुरंत डॉक्टर को बुलाते हैं। वे कभी कुछ पूछते हैं कभी कुछ। जब तक आराम नहीं आ जाता वे खाना-पीना तक भूल जाते हैं।

प्रश्न 2.
मान लो कि तुम मोहन की तबीयत पूछने जाते हो। तुम अपने और मोहन के बीच की बातचीत को संवाद के रूप में लिखो।
उत्तर:
अरे मोहन! तुम्हारी कैसी तबीयत है ?
मोहन : मेरे पेट में बहुत दर्द है।
तुमने कल क्या खाया था ?
मोहन : कल तो मैंने कुछ भी नहीं खाया।
जब कुछ भी नहीं खाया तो दर्द कैसे हो गया।
मोहन : पता नहीं कैसे हो गया यार।
किसी डॉक्टर को दिखाया या नहीं ?
मोहन : हाँ डॉक्टर को दिखाया है वे दवाई दे गए हैं चलो अच्छा है जल्दी ही ठीक हो जाओगे।

प्रश्न 3.
‘नाटक’ शब्द का आम जिंदगी में कब-कब इस्तेमाल किया जाता है ? सोचकर लिखो।
उत्तर:
नाटक शब्द का आम जिंदगी में तब इस्तेमाल किया जाता है जब हमें कोई बहाना बनाना होता है।

प्रश्न 4.
संकट के समय के लिए कौन-कौन से नंबर याद रखे जाने चाहिए। पुलिस, फायर ब्रिगेड और डॉक्टर से तुम कैसे बात करोगे?
उत्तर:
संकट के समय पुलिस, फायर बिग्रेड़ और हॉस्पिटल एवं चिकित्सक के नंबर याद रखे जाने चाहिए। यदि कोई वारदात होती है तो पुलिस को जानकारी देंगे। यदि कहीं आग लगती है तो फायर बिग्रेड को खबर देंगे। यदि कोई बीमार है तो डॉक्टर को फोन करेंगे।

हम पुलिस को कहेंगे कि अमुक स्थान पर कोई दुर्घटना हो गई है जल्दी पहुँचिए, फायर बिग्रेड को फोन करके घटना की जानकारी देंगे कि अमुक स्थान पर आग लगी है। रास्ता इधर-उधर से है जल्दी आ जाइए। डॉक्टर को कहेंगे कि मेरे अमुक रिश्तेदार की तबियत खराब है। आप जल्दी से जल्दी आकर उनकी हालत का जायजा लीजिए।

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भाषा की बात

(क) मोहन ने केला और संतरा खाया।
(ख) मोहन ने केला और संतरा नहीं खाया।
(ग) मोहन ने क्या खाया ?
(घ) मोहन केला और संतरा खाओ।
उपर्युक्त वाक्यों में से पहला वाक्य एकांकी से लिया गया है। बाकी तीन वाक्य देखने में पहले वाक्य से मिलते-जुलते हैं, पर उनके अर्थ अलग-अलग हैं। पहला वाक्य किसी कार्य या बात के होने के बारे में बताता है। इसे विधिवाचक वाक्य कहते हैं। दूसरे वाक्य का संबंध उस कार्य के न होने से है, इसलिए उसे निषेधवाचक वाक्य कहते हैं। (निषेध का अर्थ नहीं या मनाही होता है।) तीसरे वाक्य में इसी बात को प्रश्न के रूप में पूछा जा रहा है, ऐसे वाक्य प्रश्नवाचक कहलाते हैं। चौथे वाक्य में मोहन से उसी कार्य को करने के लिए कहा जा रहा है। इसलिए उसे आदेशवाचक वाक्य कहते हैं। अगले पृष्ठ पर एक वाक्य दिया गया है। इसके बाकी तीन रूप तुम सोचकर लिखो-
बताना : रुथ ने कपड़े अलमारी में रखे।
नहीं/मना करना : रुथ ने कपड़े अलमारी में नहीं रखे।
पूछना : क्या रुथ ने कपड़े अलमारी में रखे।
आदेश देना : रुथ कपड़े अलमारी में रखो।

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ऐसे-ऐसे Summary

एकांकी नाटक का सार

प्रस्तुत एकांकी नाटक में मोहन एक विद्यार्थी है जिसकी उम्र लगभग नौ साल है। वह एक दिन अपने पेट को पकड़कर कहता है कि मेरे पेट में ऐसे-ऐसे हो रहा है। उसके पेट में ऐसे-ऐसे क्या हो रहा है यह किसी की भी समझ में नहीं आता। उसकी माँ उसे सेंक लेने को कहती है तथा डॉक्टर को बुलाती है। मोहन अपने पिता के साथ दफ्तर गया था। मोहन की माँ ने अपने पति से पूछा कि कहीं इसने कुछ अंट-शंट तो नहीं खा लिया। मोहन के पिता बताते हैं कि इसने ऐसा कुछ भी नहीं खाया। यह तो वहाँ कूदता फिर रहा था। मोहन के पिता टेलीफोन करके डॉक्टर को बुलाते हैं। वे डॉक्टर के पूछने पर बताते हैं कि यह और कुछ नहीं बताता बस यही कहता है कि मेरे पेट में कुछ ऐसे-ऐसे हो रहा है। यह ऐसे-ऐसे क्या होता है मोहन तकलीफ से कराहने का नाटक करता है। उसकी माँ उसे सांत्वना देती है तभी वैद्य जी आते हैं वैद्य जी आकर कहते हैं कि बेटा मोहन क्या तुम्हारा खेलने से जी भर गया। वैद्य जी मोहन के पास कुरसी पर बैठ जाते हैं। वे उसकी नाड़ी देखकर कहते हैं कि वात का प्रकोप है। वे मोहन की जीभ भी देखते हैं और बताते हैं कि इसके पेट में कब्ज है। इस कारण वायु बढ़ गई है। वैद्य जी अपने हाथ की अँगुलियाँ फैलाकर . मोहन से पूछता है क्या तुम्हारे पेट में ऐसे-ऐसे होता है। मोहन हाँ कहता है। वैद्य जी कहते हैं कि मैं रोग समझ गया हूँ, अभी पुड़िया भेजता हूँ जल्दी ही ठीक हो जाएगा। मोहन के पिता वैद्य जी को पाँच का नोट देते हैं। वैद्य जी के जाते ही डॉक्टर साहब आ जाते हैं। डॉक्टर साहब मोहन के पास बैठते हैं। डॉक्टर साहब मोहन का कभी पेट दबाकर देखते हैं, कभी जीभ बाहर निकलवाकर देखते हैं। डॉक्टर साहब कहते हैं कि इसके चेहरे से लगता है कि इसके पेट में काफी दर्द है। डॉक्टर साहब भी मोहन के पेट में कब्ज ही बताते हैं। वे कहते हैं कि मैं अभी दवाई भिजवाता हूँ एक खुराक पीने के बाद तबियत सुधर जाएगी। वे कहते हैं कि कभी-कभी पेट में हवा रुक जाती है वह फँदा डाल लेती है इसलिए दर्द होता है। मोहन के पिता डॉक्टर साहब को दस रुपये देते हैं। तभी एक पड़ोसन मोहन को देखने के लिए आती है तो मोहन की माँ कहती है कि यह तो दर्द के मारे तड़फता फिर रहा है। पड़ोसन कहती है कि लगता है यह कोई नई बीमारी है। माँ कहती है कि इसने तो कुछ भी नहीं खाया।

मोहन के मास्टर जी मोहन को आवाज लगाते हुए घर में प्रवेश करते हैं। वे कहते हैं कि सुना है मोहन के पेट में बहुत दर्द हो रहा है। वह मोहन के पास जाकर कहते हैं दादा कल स्कूल भी जाना है। तुम्हारे बिना क्लास में रौनक कहाँ रहती है ? माता जी आपने मोहन को ऐसा क्या खिला दिया। मोहन की माँ कहती है कि इसने तो कुछ भी नहीं खाया तो मास्टर जी कहते हैं कि फिर शायद यह न खाने का दर्द है। उसी से ऐसे-ऐसे होता है। मास्टर जी कहते हैं कि मोहन की बीमारी का इलाज डॉक्टर के पास नहीं है। मैं इसकी बीमारी को जानता हूँ। अक्सर मोहन जैसे लड़कों को यह बीमारी हो जाती है। मास्टर जी मोहन के पास जाकर कहते हैं दर्द तो दूर हो ही जाएगा बेशक तुम कल स्कूल मत आना। पर तुम यह तो बताओ कि तुमने स्कूल का काम पूरा कर लिया या नहीं। मोहन ठिठकते हुए बोलता है कि सब नहीं हुआ। मास्टर जी ने कहा कि शायद सवाल रह गए हों। वह कहता है जी, हाँ,! मास्टर जी कहने लगे माता जी इसने महीना भर मौज की है। स्कूल का सारा काम रह गया आज ख्याल आया बस डर के मारे ऐसे-ऐसे होने लगा। इसकी दवाई मेरे पास है। स्कूल से इसकी दो दिन की छुट्टी। दो दिन में सारा काम पूरा करना है। माँ मोहन से कहती है कि तू तो बहुत उस्ताद है तूने तो हमें डरा ही दिया था। तभी दीनानाथ दवाई लेकर प्रवेश करते हैं। दवा की शीशी नीचे गिरकर टूट जाती है। सब ठगे से मोहन को देखते रहते हैं। इसके बाद सब हँस पड़ते हैं।

शब्दार्थ: गलीचा – सूत या ऊन के धागे से बुना हुआ कालीन, पुचकार कर – प्यार करके, अंट-शंट – फालतू चीजें, गड़-गड़ – गरजने की आवाज़, यकायक – एकदम, कल – चैन, बला – कष्ट, भला-चंगा – स्वस्थ, तंदरुस्त, अच्छा-खासा, घर सिर पर – शोर मचाना, गुलज़ार – चहल-पहल वाला, उठाना – शरारतें करना, धमा-चौकड़ी – उछल-कूद, कूद-फाँद, ऊधम, वात – शरीर में रहने वाली वायु के बढ़ने से होनेवाला रोग, प्रकोप – बीमारी का बढ़ना, बहुत अधिक या, तबीयत – शरीर या मन की स्थिति बढ़ा हुआ कोप, बदहज़मी – अपच, अजीर्ण, रौनक – चहल-पहल

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