Detailed, Step-by-Step NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Ruchira Chapter 2 बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता Questions and Answers were solved by Expert Teachers as per NCERT (CBSE) Book guidelines covering each topic in chapter to ensure complete preparation.
NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Ruchira Chapter 2 बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता
अभ्यासः
प्रश्न 1.
‘उच्चारणं कुरुत-
उत्तरम्:
शिक्षक सहायता स्वयमेव च शुद्धम् उच्चारणं कुरुत|
प्रश्न 2.
एकपदेन उत्तर लिखत-
(क) सिंहस्य नाम किम्?
(ख) गुहायाः स्वामी कः आसीत्?
(ग) सिंहः कस्मिन् समये गुहायाः समीपे आगतः?
(घ) हस्तपाददिकाः क्रियाः केषां न प्रवर्तन्ते?
(ङ) गुहा केन प्रतिध्वनिता?
उत्तरम् :
(क) खरनखरः
(ख) दधिपुच्छ:/शृगालः
(ग) सूर्यास्तसमये
(घ) भयसन्त्रस्तमनसाम्
(ङ) सिंहोच्यगर्जन-प्रतिध्वनिना।
प्रश्न 3.
पूर्णवाक्येन उत्तरत-
(क) खरनखरः कुत्र प्रतिवसति स्म?
(ख) महतीं गुहां दृष्ट्वा सिंहः किम् अचिन्तयत्?
(ग) शृगालः किम् अचिन्तयत्?
(घ) शृगालः कुत्र पलायितः?
(ङ) गुहासमीपमागत्य शृगालः किं पश्यति?
(च) कः शोभते?
उत्तरम्:
(क) खरखर: कस्मिंश्चित् वने प्रतिवसति स्म
(ख) महती गुहां दृष्ट्वा सिंहः अचिन्तयम् – “नूनम् एतस्यां गुहायां रात्रौ कोऽपि जीवः आगच्छति। अत: अत्रैव निगूढो भूत्वा तिष्ठामि” इति। शृगालः अचिन्तयत्-“अहो विनष्टोऽस्मि। नूनम् अस्मिन् बिले सिंहः अस्ति। अतः अस्य परीक्षणं करणीयम्।”
(घ) शृगालः दूरं पलायतिः।
(ङ) गुहासमीपमागत्य शृगालः सिंह पदपद्धति पश्यति।
(च) अनागतं य: कुरुते स सोभते।
प्रश्न 4.
रेखांकितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(क) क्षुधार्तः सिंहः कुत्रापि आहारं न प्राप्तवान्?
उत्तरम्:
कीदृशः सिंहः कुत्रापि आहारं न प्राप्तवान्?
(ख) दधिपुच्छ: नाम शृगालः गुहायाः स्वामी आसीत्?
उत्तरम्:
किम् नाम शृगालः गुहायाः स्वामी आसीत्?
(ग) एषा गुहा स्वामिनः सदा आह्वानं करोति?
उत्तरम्:
एषा गुहा कस्य सदा आह्वानं करोति?
(घ) भयसन्त्रस्तमनसां हस्तपादादिकाः क्रियाः न प्रवर्तन्ते?
उत्तरम्:
भयसन्त्रस्तमनसां के क्रियाः न प्रवर्तन्ते?
(ङ) आह्वानेन शृगालः बिले प्रविश्य सिंहस्य भोज्यं भविष्यति?
उत्तरम्:
आह्वानेन शृगालः कुत्र प्रविश्य सिंहस्य भोज्यं भविष्यति?
प्रश्न 5.
घटनाक्रमानुसार वाक्यानि लिखत-
(क) गुहायाः स्वामी दधिपुच्छ: नाम शृगालः समागच्छत्।
(ख) सिंहः एकां महती गुहाम् अपश्यत्।
(ग) परिभ्रमन् सिंहः क्षुधातॊ जातः।
(घ) दूरस्थः शृगालः रवं कर्तुमारब्धः।
(ङ) सिंहः शृगालस्य आह्वानमकरोत्।
(च) दूरं पलायमानः शृगालः श्लोकमपठत्।
(छ) गुहायां कोऽपि अस्ति इति शृगालस्य विचारः।
उत्तरम:
(ग) परिभ्रमन् सिंहः क्षुधा जातः।
(ख) सिंह: एका महर्ती गुहाम् अपश्यत्।
(क) गुहायाः स्वामी दधिपुच्छ: नाम शृगालः समागच्छत्।
(छ) गुहायां कोऽपि अस्ति इति शृगालस्य विचारः।
(घ) दूरस्थः शृगाल: रवं कर्तुमारब्धः।
(ङ) सिंहः शृगालस्य आह्वानमकरोत्।
(च) दूरं पलायमानः शृगालः श्लोकमपठत्।
प्रश्न 6.
यथानिर्देशमुत्तरत-
(क) ‘एकां महतीं गुहां दृष्ट्वा सः अचिन्तयत्’ अस्मिन् वाक्ये कति विशेषणपदानि, संख्यया सह पदानि अपि लिखत?
उतरम्:
एकां।
(ख) तदहम् अस्य आह्वानं करोमि- अत्र ‘अहम्’ इति पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
उतरम्:
खरनखरः।
(ग) ‘यदि त्वं मां न आह्वयसि’ अस्मिन् वाक्ये कर्तृपदं किम्?
उतरम्:
त्वं
(घ) ‘सिंहपदपद्धतिः गुहायां प्रविष्टा दृश्यते’ अस्मिन् वाक्ये क्रियापदं किम्?
उतरम्:
प्रविष्टा दृश्यते।
(ङ) ‘वनेऽत्र संस्थस्य समागता जरा’ अस्मिन् वाक्ये अव्ययपदं किम्?
उतरम्:
अत्र।
प्रश्न 7.
मञ्जूषातः अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-
(कश्चन, दूरे, नीचैः, यदा, तदा, यदि, तर्हि, परम, च, सहसा)
एकस्मिन् वने _______ व्याध: जालं विस्तीर्य _________ स्थितः। क्रमशः आकाशात् सपरिवारः कपोतराज: __________ आगच्छत्। ___________ कपोताः तण्डुलान् अपश्यन् _________ तेषां लोभो जातः। परं राजा सहमत: नासीत्। तस्य युक्तिः आसीत् __________ वने कोऽपि मनुष्यः नास्ति। कुतः तण्डुलानाम् सम्भवः। __________ राज्ञः उपदेशम् अस्वीकृत्य कपोताः तण्डुलान् खादितुं प्रवृत्ताः जाले ___________ निपतिताः। अतः उक्तम् ‘__________ विदधीत न क्रियाम्’।
उतरम्:
एकस्मिन् वने कश्चन व्याध: जालं विस्तीर्य दूरे स्थितः। क्रमशः आकाशात् सपरिवारः कपोतराज: नीचैः आगच्छत्। यदा कपोताः तण्डुलान् अपश्यन् तदा तेषां लोभो जातः। परं राजा सहमत: नासीत्। तस्य युक्तिः आसीत् यदि वने कोऽपि मनुष्यः नास्ति। कुतः तण्डुलानाम् सम्भवः। परम् राज्ञः उपदेशम् अस्वीकृत्य कपोताः तण्डुलान् खादितुं प्रवृत्ताः जाले तर्हि निपतिताः। अतः उक्तम् ‘सहसा विदधीत न क्रियाम्’।
योग्यता-विस्तार:
ग्रन्थ-परिचय-विष्णु शर्मा ने राजा अमरशक्ति के मूर्ख पुत्रों को कुशल राजनीतिज्ञ बनाने के उद्देश्य से कथाओं के संकलन के रूप में पतन्त्र की रचना की थी। इसमें मित्रभेद मित्रसम्प्राप्ति, काकोलूकीय, लब्धप्रणाश तथा अपरीक्षित कारक; इन पाँच खण्डों में कुल 70 कथाएँ तथा 100 श्लोक हैं। श्लोकों में प्रायः तर्क पूर्व नीतिश्लोक प्रयुक्त हैं। पतन्त्र का अनुवाद चतुर्थ शताब्दी के आसपास ईरान की पहलवी भाषा में हुआ था। इसी के आधार पर विदेशी भाषाओं में इसके अनेक अनुवाद हुए। ‘काकोलूकीयम्’ पतन्त्र का तृतीय तन्त्र है। इसका नाम काक और उलूक की मुख्य कथा के कारण पड़ा है।
व्याकरणम्
अव्यय-अव्यय संस्कृत में दो प्रकार के शब्द हैं-विकारी तथा अविकारी। विकारी शब्द परिवर्तनशील है। संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया शब्द विकारी है। जैसे-बालकः, सः, शुक्लः, गच्छति। अविकारी शब्द अव्यय कहलाते हैं। इनके रूप कभी नहीं बदलते। जैसे अत्र, अधुना, अपि।
अव्ययों के भी रूढ और यौगिक दो रूप मिलते हैं। रूढ़ अव्ययों के खण्ड नहीं होते जैसे-च, अपि, वा तु खलु न इत्यादि। यौगिक अव्ययों के खण्ड होते हैं। ये कृत, तद्धित या समास के रूप में होते हैं। कृत से बने अव्यय हैं -प्रतिदिनम्, यथाक्ति इत्यादि।
प्रस्तुत पाठ में कदाचित्, इतस्ततः (इत + ततः) न, दृष्ट्वा , नूनम्, कदा अपि, तर्हि, अत्र, एव (अभैव) भूत्वा, इतिच बहिः अहो, एवं विचिन्त्य सह, तदा, यदि, अथ, श्रुत्वा, सदा, परन्तु (परम् + तु), प्रविश्य, सहसा, कदापि (कदा + अपि) ये अव्यय है। इनकी उपर्युक्त कोटियों में पहचान की जा सकती है।
Class 8 Sanskrit Chapter 2 बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता Summary
पाठ परिचय
संस्कृत के प्रसिद्ध कथाग्रन्थ ‘पंचतन्त्र’ को कौन नहीं जानता है? इनकी कथाएँ न केवल भारत अपितु विश्व के जनमानस में रची बसी हुई हैं। प्रस्तुत पाठ पंचतन्त्र’ के तृतीय काकोलूकीयम्’ से संकलित है। पतंत्र के मूल लेखक विष्णुशर्मा है इसमें पाँच खण्ड हैं। जिन्हें ‘तन्त्र कहा जाता है। इसमें गद्य-पद्य रूप में कथाएँ दी गयी हैं जिनके पात्र मुख्यत: पशु-पक्षी हैं। अत्याधिक रोचक कथाओं के माध्यम से नीतिकार ने बहुमूल्य शिक्षाओं को मनोहारी हार के रूप में गूंथकर विश्व पर उपकार किया है।
शब्दार्थ-
कस्मिंश्चित् – किसी; कदाचित् – किसी समय; परिभ्रमन् – घूमता हुआ; क्षुधार्त – भूख से व्याकुल; आहारम् – भोजन; महती गुहाम् – बड़ी गुफा को; दृष्ट्वा – देखकर; नूनम् – अवश्य ही; निगूढो भूत्वा – छिपकर; अन्तरे -बीच में; सिंह पदपद्धति – शेर के पैरों में चिन्ह; तर्कयामि – सोचता हूँ: चिचिन्त्य – सोचकर रवम् – आवाज को समय – शर्त, समझौता; बाह्यतः – बाहर से; आकारयिष्यसि – तुम पुकारोंगे; यास्यामि – जाऊँगा; एतच्छ्रुत्वा – यह सुनकर; उच्यते – कहा जाता है; भयसन्त्रस्तमनसाम् – डरे हुए मन वालों का; वेपथु – कम्पन; विचार्य – सोचकर; सहसा – एकाएक; अनागतम् – आने वाले को; श्रुता – सुनी।
मूलपाठः
कस्मिंश्चित् बने………………………….भूत्वा तिष्ठामि इति।
सरलार्थः – किसी वन में खरनखर नाम का शेर रहता था। किसी समय भूख से पीड़ित होते हुए, इधर-उधर घूमते हुए उसे कोई भी भोजन नहीं मिला। इसके बाद सन्ध्या के समय एक विशाल गुफा को देखकर उसने सोचा- “निश्चय ही इस गुफा में रात में कोई जीव आता है। इसलिए यहीं छिपकर बैठता हूँ” ऐसा।
एतस्मिन् अन्तरे गुहायाः…………………बिल यास्यामि इति।
सरलार्थः – इसी बीच गुफा का स्वामी दधिपुच्छ नाम वाला गीदड़ (वहाँ) आ गया तथा उसने जब (ध्यान से) देखा तो शेर के पैरों के चिन्ह गुफा में प्रवेश करते हुए दिखे, बाहर की ओर आते हुए नहीं दिखे। गीदड़ ने सोचा-“अरे में तो गया। निश्चय ही इस गफा में शेर है, ऐसा सोचता हूँ। तो क्या करूँ?” ऐसा सोचकर (उसने) दूर से ही बोलना शुरु कर दिया-“हे गुफा! हे गुफा! क्या तुम्हें स्मरण हैं? कि मेरा तुम्हारे साथ समझौता किया हुआ है-कि जब में बाहर से लौटूंगा तो तुम मुझे बुलाओगी? यदि तुम मुझे नहीं बुलाती हो तो मैं दूसरी गुफा में चला जाऊगा: ऐसा।”
अथ एतच्छ्रुत्वा सिंह.. ………………………..न किञ्चित् पदति।”
सरलार्थः – इसके बाद यह सुनकर शेर ने सोचा-“निश्चित ही यह गुफा (अपने) स्वामी को पुकारा करती है। परन्तु (यह गुफा) मेरे भय से कुछ नहीं बोल रही है।
अथवा यह उचित कहा गया है।
1. भयसन्त्रस्तमनसां हस्तपादादिकाः क्रियाः।
प्रवर्तन्ते न वाणी च वेपथुश्चाधिको भवते॥
अन्वयः
भय सन्त्रस्तमनसां हस्त पादादिकाः न प्रवर्तन्ते। वाणी च अधिक: वेपथुः भवेत्।
सरलार्थ-
भय से डरे हुए मन वाले लोगों के हाथ-पैर आदि क्रियाशील नहीं हो पाते हैं। (उनकी) वाणी भी अधिक काँपने लगती है।
तदहम् अस्य आह्वानं…………………………..इममपठत्
सरलार्थ-
तो मैं इसे पुकारता हूँ। इस तरह वह बिल (गुफा) में प्रवेश करके मेरा भोजन बन जाएगा। ऐसा विचार करके शेर अचानक गीदड़ को पुकारता है। शेर की ऊँची गर्जना की प्रतिध्वनि द्वारा गुफा ने जोर से गीदड़ को पुकारा। इससे दूसरे पशु भी भयभीत हो गए। गीदड़ ने भी वहाँ से दूर भागते हुए यह पढ़ा (कहा)
2. अनागतं यः कुरुते स शोभते
स शोच्यते यो न करोत्यनागतम्।
वनेऽत्र संस्थस्य समागता जरा
बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता।
अन्वयः
यः अनागतं कुरुते से: शोभते। यः अनागतं न करोति स: शोच्यते। अत्र वने संस्थस्य (में) जरा समगता। मे बिलस्य वाणी कदापि न श्रुता।
सरलार्थ-
जो भावी दु:ख को सोच लेता है, वह शोभा पाता है। जो भावी दुःख को नहीं सोचता है, उसे शोक करना पड़ता है। इस वन में रहते हुए मेरा बुढ़ापा आ गया। मैंने बिल(गुफा)की वाणी कभी नहीं सुनी।