Detailed, Step-by-Step NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Ruchira Chapter 7 भारतजनताऽहम् Questions and Answers were solved by Expert Teachers as per NCERT (CBSE) Book guidelines covering each topic in chapter to ensure complete preparation.
NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Ruchira Chapter 7 भारतजनताऽहम्
अभ्यासः
प्रश्न 1.
पाठे दत्तानां पद्यानां सस्वरवाचनं कुरुत-
प्रश्न 2.
प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत-
(क) अहं वसुंधराम् किम मन्ये?
उत्तरम्:
कुटुम्बं।
(ख) मम सहजा प्रकृति का अस्ति?
उत्तरम्:
मैंत्री।
(ग) अहं कस्मात् कठिना भारतजनताऽस्मि?
उत्तरम्:
कुसुमादपि, सुकुमारा।
(घ) अहं मित्रस्य चक्षुषा किं पश्यन्ती भारतजनताऽस्मि?
उत्तरम्:
संसार।
प्रश्न 3.
प्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत-
(क) भारतजनताऽहम् कैः परिपूता अस्ति?
उत्तरम्:
भारतजनताऽहम् अध्यात्म सुधा तटिनी परिपूता अस्ति।
(ख) समं जगत् कथं मुग्धमस्ति?
उत्तरम्:
समं जगत् काण्यैर्मुग्धस्ति।
(ग) अहं किं किं चिनोमि?
उत्तरम्:
अहं प्रेयः श्रेयः चिनोमि।
(घ) अहं कुत्र सदा दृश्ये
उत्तरम्:
अहं विश्वस्मिन् जगति गताहमस्मि।
(ङ) समं जगत् कै: कैः मुग्धम् अस्ति?
उत्तरम्:
समं जगत् गीतैर्मुग्धं, नृत्यैर्मुग्धं अस्ति।
प्रश्न 4.
सन्धिविच्छेदं पूरयत-
(क) विनयोपेता = विनय + उपेता
(ख) कुसुमादपि = _________ + _________
(ग) चिनोम्युभयम् = चिनोमि + _________
(घ) नृत्यैर्मुग्धम् = _________ + मुग्धम्
(ङ) प्रकृतिरस्ति = प्रकृतिः + _________
(च) लोकक्रीडासक्ता = लोकक्रीडा + _________
उत्तरम्:
(क) विनयोपेता = विनय + उपेता
(ख) कुसुमादपि = कुसुमात् + अपि
(ग) चिनोम्युभयम् = चिनोमि + उभयम्
(घ) नृत्यैर्मुग्धम् = नृत्यै + मुग्धम्
(ङ) प्रकृतिरस्ति = प्रकृतिः + अस्ति
(च) लोकक्रीडासक्ता = लोकक्रीडा + असक्ता
प्रश्न 5.
विशेषण-विशेष्य पदानि मेलयत-
उत्तरम्:
प्रश्न 6.
समानार्थकानि पदानि मेलयत-
उत्तरम्:
जगति – संसारे
कुलिशात् – व्रजात्
प्रकृति – स्वभावः
चक्षुषा – नेत्रेण
तटिनी – नदी
वसुंधराम् – पृथ्वीम्
प्रश्न 7.
उचितकथाना समक्षम् (आम्) अनुचितकथनानां समक्षं च (न) इति लिखत-
(क) अहं परिवारस्य चक्षुषा संसारं पश्यामि।
उत्तरम्:
आम्
(ख) समं जगत् मम काव्यैः मुग्धमस्ति।
उत्तरम्:
आम्
(ग) अहम् अविवेका भारतजनता अस्मि।
उत्तरम्:
न
(घ) अहं वसुंधराम् कुटुम्बं न मन्ये।
उत्तरम्:
न
(ङ) अहं विज्ञानधना ज्ञानधना चास्मि।
उत्तरम्:
आम्
योग्यता-विस्तार
भावविस्तारः
यह कविता आधुनिक कवि डॉ. रमाकान्त शुक्ल के काव्यसंग्रह से ली गई है। डॉ. शुक्ल आधुनिक संस्कृत जगत् में राष्ट्रपति सम्मान तथा पद्मश्री सम्मान से विभूषित मूर्धन्य कवि हैं जिनका काव्य पाठ न केवल भारतीय आकाशवाणी – दूरदर्शन अथवा अन्य विविध कविसम्मेलनों में अपितु मौरिशस-अमेरिका-इटली-यू.के आदि देशों में भी प्रशंसित है। भाति मे भारतम्, जयभारतभूमे, भाति मौरीशसम्, भारतजनताऽहम्, सर्वशुक्ला, सर्वशुक्लोत्तरा, आशाद्विशती, मम जननी तथा राजधानी-रचनाः इनकी महान् काव्य रचनाएँ हैं। इनके अतिरिक्त पण्डितराजीयम् अभिशापम्, पुरश्चरणकमलम्, नाट्यसप्तकम् इत्यादि पुरस्कृत एवं मञ्चित नाट्यरचनाएँ तथा अन्य अनेक सम्पादित ग्रन्थ भी इनकी लेखनी से लब्धप्राण हुए हैं, कवि की कुछ अन्य रचनाएँ भी पढ़िए-
परिमितशब्दैरमितगुणान्, गायामि कथं ते वद पुण्ये।
चुलुके जलधिं तुगतरङ्गं करवाणि कथं वद धन्ये।
जय सुजले सुफले वरदे, विमले कमला-वाणी वन्द्ये।
जय जय जय हे भारत भूमे जय-जय-जय भारत भूमे।
यत्र सत्यं शिवं सुन्दरं राजते,
रामराज्यं च यत्राभवत्पावनम्
यस्य ताटस्थ्यनीतिः प्रसिद्धिं गता
भूतले भाति तन्मामकं भारतम्।।
मोदे प्रगतिं दर्श दर्श
वैज्ञानिकी च भोतिकी, परम्।
दूयेऽद्यत्वे लोकं लोकं
शठचरितं भारत जनताऽहम्।।
जयन्त्येतेऽस्मदीया गौरवाङ्काः कारगिलवीराः
समा आसतेऽस्माकं प्रणम्याः कारगिलवीराः।
मई-षड़विंशदिवसादेषयो मासद्वयं यावत्,
अधोषित-पाक-रण-जयिनोऽभिनन्द्याः कारगिलवीराः।।
इत्यादिप्रकारेण विविध-विषयों पर कवि की विविध रचनाएँ हमें प्राप्त होती हैं जिनका रसास्वादन करते हुए पाठक आनन्दित होता है।
Class 8 Sanskrit Chapter 7 भारतजनताऽहम् Summary
पाठ परिचय
प्रस्तुत् कविता आधुनिक कविकुलशिरोमणि डॉ. रमाकान्त शुक्ल द्वारा रचित काव्य ‘भारतजनताऽहम्’ से साभार उद्धृत है। इस कविता में कवि भारतीय जनता के सरोकारों, विविध कौशलों, विविध रुचियों आदि का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि भारतीय जनता की क्या-क्या विशेषताएँ हैं।
शब्दार्थ-
अभिमानधना – घमण्ड, विनयोपैता (विनय उपेता) – विनम्रता, कुलिशादपि (कुलिशात्+अपि) – वज्र से भी, कठिना, कठोरा – कठोर, कुसुमादपि ( कुसुमात्+अपि) – फूल से भी, सुकुमारा – अत्यंत कोमल, वसुंधराम् – पृथ्वी को, प्रेयः (प्रियकर) – अच्छा लगने वाला, रुचिकर, श्रेयः – कल्याणकर, कल्याणप्रद, चिनोम्युभयम् (चिनोमि+उभयम् )- दोनों को ही चुनती हूँ, अध्यात्मसुधातटिनी-स्नानैः – अध्यात्मरूपी अमृतमयी नदी में स्नान से, परिपूता – पवित्र, रसभरिता – आनंद से परिपूर्ण, आसक्ता – अनुराग रखने वाली, प्रकृतिः – स्वभाव, कर्मण्या – कर्मशील।
मूलपाठः
श्लोक – अभिमानधना विनयोपेता, शालीना भारतजनताऽहम्।
कुलिशादपि कठिना कुसुमादपि, सुकुमारा भारतजनताऽहम्।1।
सरलार्थः
मैं भारत की जनता स्वाभिमानी, विनम्र, शालीन हूँ। जो व्रज से भी कठोर, फूल से भी कोमल हूं
श्लोक – निवसामि समस्ते संसारे, मन्ये च कुटुम्बं वसुन्धराम्।
प्रेयः श्रेयः च चिनोम्युभयं, सुविवेका भारतजनताऽहम्।2।
सरलार्थः
सम्पूर्ण संसार में निवास करते हुए मानो भारत की विवेकी जनता प्रिय और कल्याणकारी हूँ।
श्लोक – विज्ञानधनाऽहं ज्ञानधना, साहित्यकला-सङ्गीतपरा।
अध्यात्मसुधातटिनी-स्नानैः, परिपूता भारतजनताऽहम्।3।
सरलार्थः
मैं भारत की जनता विज्ञान, ज्ञान, अविधान में समृद्ध साहित्य, संगीतकला और अध्यात्म रूपी नदी में स्नान से पवित्र हूँ।
श्लोक – मम गीतैर्मुग्धं समं जगत, मम नृत्यैर्मुग्ध समं जगत्।
मम काव्यैर्मुग्धं समं जगत्, रसभरिता भारतजनताऽहम्।4।
सरलार्थः
मैं भारत की जनता पूरे संसार को गीत से मुग्ध और नृत्य से मुग्ध कर चूकी हूँ। हमारी काव्य, सम्पूर्ण संसार को मुग्ध करने वाली रसभरी है।
श्लोक – उत्सवप्रियाऽहं श्रमप्रिया, पदयात्रा-देशाटन-प्रिया।
लोकक्रीडासक्ता वर्धेऽतिथिदेवा, भारतजनताऽहम्।5।
सरलार्थः
मैं उत्सव प्रिय हूँ, मैं परिश्रमी हूँ, पदयात्रा और घूमने का शौकिन हूँ। मैं भरत की जनता हूँ। मुझे अनेक लोक क्रीडा भी प्रिय है। मैं अतिथि को देव के सदृश्य सम्मान देती हूँ। मैं भारत की जनता हूँ।
श्लोक – मैत्री मे सहजा प्रकृतिरस्ति, नो दुर्बलतायाः पर्यायः।
मित्रस्य चक्षुषा संसारं, पश्यन्ती भारतजनताऽहम्।6।
सरलार्थः
मेरे स्वभाव में ही मित्रता है, यह मेरी कमजोरी नहीं है। समस्त संसार को मित्र के समान देखती हूँ, मैं भारत की जनता हूँ।
श्लोक – विश्वस्मिन् जगति गताहमस्मि, विश्वस्मिन् जगति सदा दृश्य।
‘विश्वस्मिन् जगति करोमि कर्म, कर्मण्या भारतजनताऽहम्।7।
‘सरलार्थः
मैं सम्पूर्ण जगत को जानने वाली हूँ, मुझे सम्पूर्ण जगत में देखते ही, कर्मणी रूप में, सम्पूर्ण जगत में कर्म करने वाली, मैं भारत की जनता हूँ।