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NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

Detailed, Step-by-Step NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा Questions and Answers were solved by Expert Teachers as per NCERT (CBSE) Book guidelines covering each topic in chapter to ensure complete preparation.

Shemushi Sanskrit Class 10 Solutions Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत –

(क) बुद्धिमती केन उपेता पितुर्गुहं प्रति चलिता?
उत्तर:
बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितृगृहं प्रति चलिता।

(ख) व्याघ्रः किं विचार्य पलायित:?
उत्तर:
व्याघ्रः इति विचार्य पलायितः, यत् इयं व्याघ्र मारी अस्ति।

(ग) लोके महतो भयात् कः मुच्यते?
उत्तर:
लोके महतो भयात् बुद्धिमान् मुच्यते।

(घ) जम्बुकः किं वदन् व्याघ्रस्य उपहासं करोति?
उत्तर:
जम्बुकः एवं वदन् व्याघ्रस्य उपहासं करोति, यत् “व्यया महत्कोतुकम् आवेदितं यन्मानुषात् अपि विभेषि”?

(ङ) बुद्धिमती शृंगालं किम् उक्तवती?
उत्तर:
बुद्धिमती शृंगालं उक्तवती यत् रे रे धूर्त! व्वया मह्यं पुरा व्याघ्र त्रयं दत्तम्। विश्वास (अपि) अद्य एक आनीय कथं यासि इति अधुना वद।

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प्रश्न 2.
स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –

(क) तत्र राजसिंहो नाम राजपुत्रः वसति स्म।
उत्तर:
तत्र किम् नाम राजपुत्रः वसतिस्म?

(ख) बुद्धिमती चपेटया पुत्रौ प्रद्धतवती।
उत्तर:
बुद्धिमती कया पुत्रौ प्रदतवती?

(ग) व्याघ्रं दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत्।
उत्तर:
कं दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत्?

(घ) त्वं मानुषात् बिभेषि।
उत्तर:
त्वम् कस्मात् बिभेषि?

(ङ) पुरा त्वया महा व्याघ्रत्रयं दनम्।
उत्तर:
पुरा त्वया कस्मै व्याघ्रत्रयं दनम्?

प्रश्न 3.
अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमानुसारेण योजयत –

(क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
(ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालं आक्षिपन्ती उवाच।
(ग) जम्बुककृतोत्साह: व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।
(घ) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
(ङ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच-अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यताम्।
(च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृह प्रति चलिता।
(छ) ‘त्वं व्याघ्रत्रयम् आनेतु’ प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
(ज) गलबद्ध शृगालक; व्याघ्रः पुनः पलायितः।
उत्तर:
1. (च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृह प्रति चलिता।
2. (घ) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
3. (ङ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच-अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यताम्।
4. (क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
5. (ग) जम्बुककृतोत्साह: व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।
6. (ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालं आक्षिपन्ती उवाच।
7. (छ) ‘त्वं व्याघ्रत्रयम् आनेतु’ प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
8. (ज) गलबद्ध शृगालक; व्याघ्रः पुनः पलायितः।

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प्रश्न 4.
सन्धि/सन्धिविच्छेदं वा कुरुत –

(क) पितर्गहम् – ………….. + ……………..
उत्तर:
पितुर्रहम् – पितुः + गृहम्

(ख) एकैक: – ……………… + …………….
उत्तर:
एकेकः – एकः + एकः

(ग) ……………. – अन्यः + अपि
उत्तर:
अन्योऽपि – अन्यः + अपि

(घ) ……………… – इति + उक्त्वा
उत्तर:
इत्युक्त्वा – इति + उक्त्वा

(ङ) ……………… – यत्र + आस्ते
उत्तर:
यत्रास्ते – यत्र + आस्ते

प्रश्न 5.
अधोलिखितानां पदानाम् अर्थः कोष्ठकात् चित्वा लिखत –

(क) ददर्श – (दर्शितवान् . दृष्टवान्)
उत्तर:
दृष्टवान्

(ख) जगाद – (अकथयत्. अगच्छत्)
उत्तर:
अकथयत्

(ग) ययौ – (याचितवान्, गतवान्)
उत्तर:
गतवान्

(घ) अनुम् – (खादितुम्, आविष्कर्तुम्)
उत्तर:
खादितुम्

(ङ) मुच्यते- (मुक्तो भवति, मग्नो भवति)
उत्तर:
मुक्तो भवति

(च) ईक्षते – (पश्यति, इच्छति) उत्तराणि
उत्तर:
पश्यति।

प्रश्न 6.
(अ) पाठात् चित्वा पर्यायपदं लिखत –

(क) वनम्
उत्तर:
वनम् -काननम्

(ख) नृगालः
उत्तर:
नृगालः -जम्बुक:

(ग) शीघ्रम्
उत्तर:
शीघ्रम् – तुर्णम्

(घ) पत्नी
उत्तर:
पत्नी – भार्या

(ङ) गच्छसि
उत्तर:
गच्छसि – यासी

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प्रश्न 6.
(आ) पाठात् चित्वा विपरीतार्थकं पदं लिखत –

(क) प्रधम:
उत्तर:
प्रथम:- द्वितीयः

(ख) उक्त्वा
उत्तर:
उक्त्वा – श्रुत्वा

(ग) अधुना
उत्तर:
अधुना – तदा

(घ) अवेला
उत्तर:
अवेला- वेला

(ङ) बुद्धिहीना
उत्तर:
बुद्धिहीना – बुद्धिमती

प्रश्न 7.
(अ) प्रकृतिप्रत्ययविभागं कुरुत –

(क) चलितः
उत्तर:
चलितः – चल + क्तः

(ख) नष्टः
उत्तर:
नष्टः नश + क्त

(ग) आवेदितः
उत्तर:
आवेदितः – आ + विद + क्त

(घ) दृष्टः
उत्तर:
दृष्टः – दृश + क्त

(ङ) गतः
उत्तर:
गतः – गम् + क्त

(च) हतः
उत्तर:
हतः – हन् + क्त

(छ) पठितः
उत्तर:
पठितः – पठ् + क्त

(ज) लब्धः
उत्तर:
लब्धः – लभ् + क्त

प्रश्न 7.
(आ) उदाहरणमनुसृत्य कर्तरि प्रथमा विभक्तेः क्रियायाञ्च ‘क्तवतु’ प्रत्ययस्य प्रयोगं कृत्वा वाच्यपरिवर्तनं कुरुत-
यथा-तया अहं हन्तुम् आरब्धः – सा मां हन्तुम् आरब्मावती।

(क) मया पुस्तकं पठितम्। – …….
उत्तर:
अहं पुस्तक पठितवान्

(ख) रामेण भोजनं छतम्। – …………..
उत्तर:
रामः भोजनं कृतवान्

(ग) सीतया लेखः लिखितः। – …………
उत्तर:
सीता लेख लिखितवती

(च) अश्वेन तृणं भुक्तम्। – …………
उत्तर:
अश्वः तृणं भुक्त्वान्

(ङ) त्वया चित्रं दृष्टम्। – ……….
उत्तर:
त्वं चित्रं दृष्टवान्

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अन्यपरीक्षोपयोगी

प्रश्न 1.

प्रस्तुत पाठं पठित्वा अधोलिखित प्रश्नाना उत्तराणि लिखत(प्रस्तुत पाठ को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखि)

I. एकपदेन उत्तरत

(क) नार्याः नाम किम् असीत्?
उत्तर:
बुद्धिमती

(ख) वेला अपि का स्यात्?
उत्तर:
वेलाप्य वेला

(ग) धूर्तः कः हसन्नाह?
उत्तर:
भवान् कुतः भयात् पलायित:

(घ) भयाकुलचितः, क: नष्ट?
उत्तर:
व्याघ्रः

(ङ) पितुगृहं प्रति का चलिता?
उत्तर:
बुद्धिमती

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत

(क) हसन् शृगालः किम् आह?
उत्तर:
हसन् शृगालः आह-” भवान् कुतः भयात् पलायित:?”

(ख) ‘गच्छ जम्बुक!’ इति कः कथयति?
उत्तर:
‘गच्छ जम्बुक!’ इति व्याघ्र कथयति।

(ग) यदि सा सम्मुखमीक्षते तर्हि कः हन्तव्यः?
उत्तर:
यदि सा सम्मुखमीक्षते तर्हि अहं अन्तव्यः।

(घ) गलबद्धशृगालकः सहसाः कः नष्टः?
उत्तर:
गलबद्धशृगालकः सहसा: व्याघ्रः नष्टः?

(ङ) व्याघ्रजात् मदात् पुनरपि का मुक्ता?
उत्तर:
व्याघ्रजात् भयात् पुनरपि बुद्धिमती मुक्त।

योग्यता विस्तार पुस्तक से

भाषिकविस्तारः
ददर्श-दृश् धातु, लिट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन विभषि ‘भी’ धातु. लट् लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन। प्रहरन्ती – प्र + ह धातु, शत् प्रत्यय, स्त्रीलिङ्ग। गम्यताम् – गम् धातु, कर्मवाच्य, लोट् लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन।
ययौ- ‘या’ धातु, लिट् लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन।
यासि – गच्छसि
समास
गलबद्ध शृंगालकः – गले बद्धः नृगालः यस्य सः।
प्रत्युत्पन्नमतिः – प्रत्युत्पन्ना मतिः यस्य सः।
जम्बुककृतोत्साहात् – जम्बुकेन
छतः उत्साह: – जम्बुककृतोत्साहः तस्मात्।
पुत्रद्वयोपेता – पुत्रद्वयेन उपेता।
भयाकुलचिनः – भयेन आकुल: चिनम् यस्य
व्यानमारी – व्याघ्र मारयति इति।
गृहीतकरजीवितः – गृहीतं करे जीवितं येन सः।
भयङ्करा – भयं करोति या इति।

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ग्रन्थ-परिचय-शुकसप्ततिः के लेखक और काल के विषय में यद्यपि भ्रान्ति बनी हुई है, तथापि इसका काल 1000 ई. से 1400 ई. के मध्य माना जाता है। हेमचन्द्र ने (1088-1172) में शुकसप्ततिः का उल्लेख किया है। चौदहवीं शताब्दी में इसका फारसी भाषा में ‘तूतिनामह’ नाम से अनुवाद हुआ था।

शुकसप्ततिः का ढाँचा अत्यन्त सरल और मनोरंजक है। हरिदत्त नामक सेठ का मदनविनोद नामक एक पुत्र था। वह विषयासक्त और कुमार्गगामी था। सेठ को दु:खी देखकर उसके मित्र त्रिविक्रम नामक ब्राह्मण ने अपने घर से नीतिनिपुण शुक और सारिका लेकर उसके घर जाकर कहा-इस सपत्नीक शुक का तुम पुत्र की भाँति पालन करो।

इसका संरक्षण करने से तुम्हारा दुख दूर होगा। हरिदत्त ने मदनविनोद को वह तोता दे दिया। तोते की कहानियों ने मदनविनोद का हृदय परिवर्तन कर दिया और वह अपने व्यवसाय में लग गया।
व्यापार प्रसंग में जब वह देशान्तर गया तब शुक अपनी मनोरंजक कहानियों से उसकी पत्नी का तब तक विनोद करता रहा जब तक उसका पति वापस नहीं आ गया। संक्षेप में शुकसप्ततिः अत्यधिक मनोरंजक कथाओं का संग्रह है।
NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा 1
NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा 2

Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा Summary Translation in Hindi and English

पाठपरिचय – प्रस्तुत पाठ शुक सप्ततिः नामक प्रसिद्ध कथाग्रंथ से लिया गया है। इस पाठ में अपने दो छोटे छोटे पुत्रों को लेकर जगल के रास्ते अपने पिता के घर जा रही एक बुद्धिमती नामक नारीके बुद्धि कौशल को प्रकट किया गया है,जो सामने आये हुए शेर को भी डरा कर भगा देती है। इस ग्रंथ में नीति निपुण शुक व सारिका की कहानियों की वर्णन है जो बालक में सवृत्ति का विकास करती है।

1. अस्ति देउलाख्यो ग्रामः। तत्र राजसिंहः नाम राजपुत्रः वसति स्म। एकदा केनापि आवश्यककार्येण तस्य भार्या बुद्धिमती पुत्रद्योपेता पितुर्गृह प्रति चलिता। मार्गे गहनकानने सा एक व्यानं ददर्श। सा व्याघ्रमागच्छन्त ‘ दृष्ट्वा ध राष्ात् पुत्रौ चपटेया प्रहत्य जगाद – “कथमेकैकशो व्याघ्रभक्षणाय कलहं कुरुथ:? अयमेकस्तावद्विभज्य भुज्यताम्। पश्चाद् अन्यो द्वितीयः कश्चिल्लक्ष्यते। इति श्रुत्वा व्याघ्रमारी काचिदियमिति मत्वा व्याघ्रो भयाकुलचित्तो नष्टः।
निजबुद्ध्या विमुक्ता सा भयाद् व्याघ्रस्य भामिनी। अन्योऽपि बुद्धिमाँल्लोके मुच्यते महतो भयात्॥
भयाकुलं व्याघ्रं दृष्ट्वा कश्चित् धूर्तः नृगालः हसत्ताह – “भवान् कुतः भयात् पलायित:?”

शब्दार्था: – भाां – पत्नी, पुत्रद्वयोपेता – दयेन पुत्रेन् सह दो पुत्रों के साथ, उपेता – युक्ता (लेकर के) कानने – वने (जगंल में), ददर्श – अपश्यत (देखा) धाष्टर्यात – धृष्ट भावात् (ठिठाई से). वपेटेया कर प्रहारेण – थप्पड से ,

प्रहव्य – प्रहारकृत्वा थप्पड मारकर, जगाद – उक्तवती (बोला) कलहः – विवाद (झगड़). विभज्य – विभक्तः कृत्वा (अलग करके), लक्ष्यते – अन्विष्यते (ढूंढा जाएगा), व्याघ्रमारी – व्याघ्र मरयति, नष्ट: – मृतः, पलायित: – (भाग गया) बाघ को मारने वाली इति

सरलार्थः – एक देअलाख्य नाम का गाँव है वहाँ राजसिंह नाम का राजा का पुत्र रहता था। एक बार किसी आवश्यक कार्य के कारण उसकी पत्नी जिसका नाम बुद्धिमती था, दो पुत्रों के साथ अपने पिता के घर चल ही रास्ते में घने जगल में उसने एक बाघ देखा। वह बाघ को देखकर बिठाई पूर्वक अपने दोनों पुत्रों को थप्पड़ मारकर बोली: क्यों एक एक बाघ खाने के लिए झगड़ा कर रहे हो? इस एक को ही तब तक बाँटकर खाओं। इसके बाद दूसरे को ढूढ़ते है।”
ऐसा सुनकर बाघमारी (बाघ को मारने वाली) है कोई ऐसा मानकर बाघ भय से आकुल होकर भाग गया।
“अपनी बुद्धि से वह रूपवती स्त्री बाघ के भय से मुक्त हो गई। इस प्रकार बुद्धिमान बुद्धि से बहुत बड़े संकट से भी मुक्त हो सकते है।”
भय से आकुल (परेशान) बाघ को किसी धूर्त सियार न देखा और हँसा और कहा: – आप भय के मारे काहाँ भाग रहे हो?”

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2. व्याघ्रः – गच्छ, गच्छ जम्बुक! त्वमपि किञ्चिद् गूढप्रदेशम्। यतो व्याघ्रमारीति या शास्त्रे श्रूयते तयाह हन्तुमारब्धः परं गृहीतकरजीवितो नष्टः शीघ्रं तवग्रतः।
शृगालः – व्याघ्र! त्वया महत्कौतुकम् आवेदित यन्मानुषादपि बिभेषि?
व्याघ्रः – प्रत्यक्षमेव मया सात्मपुत्रावेकैकशो मामत्तु कलहायमानौ चपेटया प्रहरन्ती दष्टा।
जम्बुक: – स्वामिन्! यत्रास्ते सा धूर्ता तत्र गम्यताम्। व्याघ्र! तव
पुनः तत्र गतस्य सा सम्मुखमपीक्षते यदि, तर्हि त्वया अहं हन्तव्यः इति।
व्याघ्रः – शृगाल! यदि त्वं मां मुक्त्वा यासि तदा बेलाप्यवेला स्यात्।

शब्दार्थ: – जम्बुक: – श्रृगालः (सियार), गूढ प्रदेशम् – गुप्तप्रदेशम् (गुप्त प्रदेश में), ग्रहीत कर जीवितःहस्ते प्राणान्नीत्वा (हथेली पर प्राण लेकर) आवेदिताम्विज्ञापतम् (बताया), प्रत्यक्षम् – समक्षम् (सामने), सात्मपुत्री:सा आत्मनः पुत्रौ (वह अपने दौनो पुत्रों को)

एकैकशः – एक एक कृत्वा (एक एक कर के), अत्तुम् – भक्षयितम् (खाने के लिए) कलहायमानौ – कलहं कुर्वन्तौ (झगड़ा करते हुए) ईक्षते – पश्यति (देखती है), वेलो (समय) शर्त।

सारलार्थ: – बाघ – जाओ जाओ सियार! तुम भी किसी गुप्त स्थान पर! क्यों कि बाघ मारने वाली जो शास्त्रों में सुनी गई है वह मुझे मारने वाली थी, परन्तु प्राणों को हथेली पर रखकर में उसके आगे से जल्दी से भाग आया।

सियार – हे बाघ! तुमने बहुत आश्चर्य बताया, कि तुम मनुष्य से भी डर रहे हो।

बाघ – मैने प्रत्यक्ष रूप से उसे उपने पुत्रों जो एक एक, __ करेक मुझे खाने के लिए झगड़ रहे थे को थप्पड़ से पीटते हुए देखा है।

सियार – हे स्वामी! वह कपटी नारी जहाँ है वहाँ मुझे ले चलिए। हे बाघ! तुम्हारे पुनः वहाँ जाने पर यदि वह सामने देखती हे तो तुम मुझे मार देना ऐसा।

बाघ – हे सियार! यदि तुम मुझे छोड़कर भाग गए तो असमय ही मेरा समय अर्थात काल आ जाएगा।

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3. जम्बुकः – यदि एवं तर्हि मां निजगले बद्ध्वा चल सत्वरम्। स व्याघ्रः तथाकृत्वा काननं ययौ। शृंगालेन सहितं पुनरायान्तं व्याघ्र दूरात् दृष्ट्वा बुद्धिमती
चिन्तितवती – जम्बुककृतोत्साहाद् व्याघ्रात् कथं मुच्यताम्? परं प्रत्युत्पत्रमतिः सा जम्बुकमाक्षिपन्त्यङ्गल्या तर्जयन्त्युवाच
रे रे धूर्त त्वया दत्तं मह्यं व्याघ्रत्रयं पुरा। विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि वदाधुना

शब्दार्थः – पुनरायान्तं – पुन आते हुए को (पुन:आग). प्रव्युत्पन्नपतिः – तीक्ष्णबृद्धिः (तेज बुद्धि वाली), आक्षिपन्ती – आक्षेपं कुर्वाण (आक्षेप करती हुई), तर्जयन्ती – (तर्जन कुर्वाणां (धमकाती हुई). विश्वास्य – समाश्वस्य (विश्वास दिलाकर) तूर्णम् – शीघ्रम (जल्दी), भयङ्करा – भयं करोति इति (भय पैदा करने वाली), गलबद्ध श्रृगालकः – गलेबद्ध श्रृगालः यस्य सः गले में बधे हुए श्रृंगाल वाला।

सरलार्थ: सियार – यदि ऐसा है तो मुझे अपने गले में बाधकर जल्दी चलो। वह बाघ वैसा करके जगंल में गया। सियार के साथ फिर से आते हुए बाघ को दूर से ही देखकर बुद्धिमती ने सोचा_ ‘सियार द्वारा उत्साहित (भड़काए गए) बाघ से कैसे बचा जाए?’ परन्तु वह प्रत्युत्पन्मति सियार को (दोष लगाते हुए) फटकारती हुई बोली अरे हे धूर्त! तूने मुझे पहले तीन बाघ दिए। विश्वास दिलाने के बाद भी आज एक ही लाकर क्यों जा रहा है? अब बता दे।

यह कहकर वह भयंकर बाघमारी नारी तेजी से दौड़ी। गले से बंधे सियार वाला बाघ भी अचानक भाग गया। इस प्रकार वह बुद्धिमती बाघ के भय से फिर मुक्त हो गई। इसीलिए कहा जाता है
हे तन्वि! सदैव सभी कामों में बुद्धि ही बलवती होती है।

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 12 अनयोक्त्यः

Detailed, Step-by-Step NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 12 अनयोक्त्यः Questions and Answers were solved by Expert Teachers as per NCERT (CBSE) Book guidelines covering each topic in chapter to ensure complete preparation.

Shemushi Sanskrit Class 10 Solutions Chapter 12 अनयोक्त्यः

प्रश्न 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उनराणि संस्कृतभाषया लिखत-

(क) सरसः शोभा केन भवति?
उत्तर:
सरसः शोभा राजहंसेन् भवति।

(ख) चातकः किमर्थ मानी कथ्यते?
उत्तर:
चातकः पुरूदरं याचते।

(ग) मीनः कदा दीनां गतिं प्राप्नोति?
उत्तर:
मीनः सरोवरे संकुचिते।

(घ) कानि पूरयित्वा जलद: रिक्तः भवति?
उत्तर:
नानानदीनदज्ञतानि पूरयित्वा जलद: रिक्तः भवति?

(च) वृष्टिभिः वसुधां के आर्द्रयन्ति?
उत्तर:
वृष्टिभिः वसुधां अम्भोदाः आर्द्रयन्ति।

प्रश्न 2.
अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-

(क) मालाकारः तोयैः तरोः पुष्टिं करोति।
उत्तर:
मालाकारः के: तरोः पुष्टिं करोति?

(ख) भृङ्गाः रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते।
उत्तर:
भृङ्गाः कानि समाश्रयन्ते?

(ग) पतङ्गाः अम्बरपथम् आपेदिरे।
उत्तर:
के अम्बरपथम् आपेदिरे?

(घ) जलद: नानानदीनदशतानि पूरयित्वा रिक्तोऽस्ति।
उत्तर:
कः नानानदीनदशतानि पूरयित्वा रिक्तोऽस्ति?

(च) चातकः वने वसति।
उत्तर:
चातकः कुत्र वसति?

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 12 अनयोक्त्यः

प्रश्न 3.
अधोलिखितयोः श्लोकयोः भावार्थ स्वीकृतभाषयां लिखत-

(अ) तोयैरल्पैरपि …………………………… वारिदेन।
उत्तर:
भावार्थ-हे माली! भीषण ग्रीष्मकाल की गरमी से थोड़े से ही जल द्वारा आपके द्वारा करूणापूर्वक इस वृक्ष का जो पोषण किया गया। क्या वर्षाकालीन जल के चारो और से धाराओं को बरसाने से बादल के द्वारा वह पोषण किया जा सकता है अर्थात् दिल से किया काम ही ज्यादा फलदायी होता है। मेहनत का फल ही मीठा होता है। दान का नहीं।

(आ) रे रे चातक ………………………. दीनं वचः।
उत्तर:
भावार्थ-अरे हे मित्र चातक! ध्यान से क्षणभर सुनो। आकाश में अनेक मेघ है। सभी बरसने वाले नहीं है। कुछ वर्षा से गीला करते है व कुछ गरजते है अतः सबके सामने दीन वचन कहने का कोई फायदा नहीं है। अर्थात् माँगना भी दानवीरों से ही माँगना चाहिए।

प्रश्न 4.
अधोलिखितयोः श्लोकयोः अन्वयं लिखत-

(अ) आपेदिरे ………………….. कतमां गतिमभ्युपैति।
उत्तर:
अन्वय-पतङगाः परितः अम्बरपथम् आपेहिरे, भृङ्गाः रसालमुकुलाचि समान्यन्ते। सरः त्ययि सङ्कोचम् अञ्चति, हन्त, दीनदीनः मीनः नु कतमा गतिम् अभ्युपैतु।

(आ) आश्वास्य ……………….. सैव तवोत्तमा श्रीः।।
उत्तर:
अन्वय-तमनोष्ण तत्सम् पर्वतकुलम् आश्वास्य उद्दादाव विधुराणि काननानि च नानानदीन दशवानि पूरयित्वा च हे जलद! यत् रिक्तः असि तव सा एव उत्त्मा श्रीः (आस्ति)।

प्रश्न 5.
उदाहरणमनुसृत्य सन्धि/सन्धिविच्छेद वा कुरुत-
(i) यथा- अन्य + उक्तयः – अन्योक्तयः

(क) ____________ + _____________ – निपीतान्यम्बूनि
उत्तर:
निपीतानि + अम्बूनि

(ख) __________ + उपकारः = कृतोपकारः
उत्तर:
कृत

(ग) तपन + ____________ – तपनोष्णतप्तम्
उत्तर:
उष्णतप्तम्

(घ) तव + उनमा – _____________
उत्तर:
तवोत्तमा

(च) न + एतादृशाः = _______________
उत्तर:
नैतादृशाः

(ii) यथा – पिपासितः + अपि = पिपासितोऽपि

(क) __________ + _________ = कोऽपि
उत्तर:
कः + अपि

(ख) ____________ + ___________ = रिक्तोऽसि
उत्तर:
रिक्तः + असि

(ग) मीन: + अयम् = ____________
उत्तर:
मीनोऽयम्

(घ) सर्वे + अपि = _______________
उत्तर:
सर्वेऽपि

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 12 अनयोक्त्यः

(iii) यथा – सरसः + भवेत् = सरसो भवेत्

(क) खगः + मानी = _____________
उत्तर:
खगोमानी

(ख) ____________ + नु = मीनो नु
उत्तर:
मीन:

(ग) पिपासितः + वा = ___________
उत्तर:
पिपासितोऽपि

(घ) ___________ + _______________ = पुरतो मा
उत्तर:
पुरतः + मा

(iv) यथा – मुनिः + अपि = मुनिरपि

(क) तोयैः + अल्पैः = _____________
उत्तर:
तौयैरल्पैः

(ख) _____________ + अपि = अल्पैरपि
उत्तर:
अल्पैः

(ग) तरोः + अपि = _________________
उत्तर:
तरोरपि

(घ) ________________ + आर्द्रयन्ति = वृष्टिभिरार्द्रयन्ति
उत्तर:
वृष्टिभिः

प्रश्न 6.
उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितैः विग्रहपदै :
समस्तपदानि रचयत
विग्रहपदानि – समस्त पदानि
यथा – पीतं च तत् पङ्कजम = पङ्कजम

(क) राजा च असौ हंसः = _____________
उत्तर:
राजहंसः

(ख) भीमः च असौ भानुः = __________________
उत्तर:
भीम भानः

(ग) अम्बरम् एव पन्थाः = ________________
उत्तर:
अम्बर प्रथम्

(घ) उनमा च इयम् श्रीः = ________________
उत्तर:
उत्तमेश्री

(च) सावधानं च तत् मनः, तेन = _________________
उत्तर:
सावधानमनसा

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 12 अनयोक्त्यः

प्रश्न 7.
उदाहरणमनुसृत्य निम्नलिखितैः धातुभिः सह यथानिर्दिष्टान् प्रत्ययान् संयुज्य शब्दरचनां कुरुतधातुः क्त्वा क्तवतु तव्यत् अनीयर्

(क) पठ् पठित्वा पठितवान् पठितव्यः पठनीयः
उत्तर:
पठ् – पठित्वा पठितवान् पठितव्यः पठनीयः

(ख) गम् ________ ________ ________ ________
उत्तर:
गम् – गत्वा, गतवान, गन्तव्यः, गमनीयः

(ग) लिख् _______ ________ _________ __________
उत्तर:
लिख – लिखित्वा, लिखितवान् लेखितव्यः, लेखनीयः

(घ) छ ________ ________ ________ ___________
उत्तर:
कृ – कृतवा, कृतवान्, कर्त्तव्यः, करणीयः

(च) ग्रह ________ ________ ________ __________
उत्तर:
ग्रह् – ग्रहीत्वा,  ग्रहीतवान्,  ग्रहीतव्यः,  ग्रहणीयः

(ङ) नी _________ ________ ________ ___________
उत्तर:
नी – नीत्वा, नीतवान्, नेतव्यः, नयनीयः

अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्नाः

प्रश्न 1.
पाठात् पर्यायपदानि चित्वा लिखत-
(पाठ से पर्यायवाची शब्दों को चुनकर लिखिए।)

(क) भ्रमराः ________
उत्तर:
भृङगाः

(ख) इन्द्रम्, सुरपतिम् _________
उत्तर:
पुरन्दरम्

(ग) वनानि ___________
उत्तर:
नालिनानि

(घ) मेघाः _________
उत्तर:
अम्भोदाः

(ङ) धराम् _________
उत्तर:
वसुधाम्

प्रश्न 2.
विशेषणविशेष्ययोः समुचितं मेलनं कुरुत-
(विशेषण-विशेप्य शब्दों का उचित मिलान कीजए)
विशेषिणम् – विशेष्यम्

(क) मानी – कृत्येन
उत्तर:
खगः

(ख) दीनहीनः – खगः
उत्तर:
मीनः

(ग) केक – शोभा
उत्तर:
कृत्येन

(घ) निषेवितानि – मीनः
उत्तर:
नलिनानि

(ङ) या – नालिनानि
उत्तर:
शोभा।

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 12 अनयोक्त्यः

प्रश्न 3.
प्रस्तुत पाठं पठित्वा अधोलिखित प्रश्नानां उत्तराणि लिखत-
(प्रस्तुत पाठ को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए)

1. एकपदेन उत्तरत्-

(क) केन सरसः शोभान भवेत्?
उत्तर:
बकसहस्त्रेण

(ख) राजहंसेन कानि निपीताति?
उत्तर:
अम्बूनि

(ग) कस्य कृतोपकारः भविता?
उत्तर:
सरोवरस्य

(घ) तरो: तादृशी पृष्टि केन कर्तुं न शक्या?
उत्तर:
वारिदेन

(ङ) कः दीनहीनः मानित:?
उत्तर:
मीनः

2. पूर्णवाक्येन उत्तरत्-

(क) गगने बहवः के सन्ति?
उत्तर:
गगने बहवः अम्भोदाः वसति?

(ख) चातक! कियत् कालं यावत् श्रूयताम?
उत्तर:
चातक! क्षणं श्रूयताम्।

(ग) कः रिक्तः अपि शोभते?
उत्तर:
काननादीनि पूरयित्वा जलद: रिक्तः अपि शोभते।

(घ) चातकः कं याचते?
उत्तर:
चातकः पुरन्दरं याचते।

(ङ) वने मानी खगः कः वसति?
उत्तर:
वने मानी खगः चातक: वसति।

योग्यताविस्तारः

पाठपरिचयः
अन्येषां कृते या उक्तयः कथ्यन्ते ता उक्तयः अन्योक्तयः अत्र पाठे सटलिता वर्तन्ते। अस्मिन् पाठे षष्ठश्लोकम् सप्तमश्लोकम् च अतिरिच्य ये श्लोकाः सन्ति ते पण्डितराजजगन्नाथस्य ‘भामिनीविलास’ इति गीतिकाव्यात् सटलिताः सन्ति। षष्ठः श्लोक: महाकवि माघस्य ‘शिशुपालवधम्’ इति महाकाव्यात् गृहीतः अस्ति। सप्तमः श्लोक: महाकविभर्तृहरेः नीतिशतकात् उद्धृतः अस्ति।

कविपरिचयः
पण्डितराजजगन्नाथः संस्कृतसाहित्यस्य मूर्धन्यः सरसश्च कविः आसीत्। सः शाहजहाँ नामकेन मुगलशासकेन स्वराजसभायां सम्मानितः। पण्डितराजजगन्नाथस्य त्रयोदश कृतयः प्राप्यन्ते।

  1. गगलहरी
  2. अमृतलहरी
  3. सुधालहरी
  4. लक्ष्मीलहरी
  5. करुणालहरी
  6. आसफविलासः
  7. प्राणाभरणम्
  8. जगदाभरणम्
  9. यमुनावर्णनम्
  10. रसगगधरः
  11. भामिनीविलासः
  12. मनोरमाकुचमर्दनम्
  13. चित्रमीमांसाखण्डनम्।

एतेषु ग्रन्थेषु ‘भामिनीविलासः’ इति तस्य विविध पद्यानां सङ्गहः।

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 12 अनयोक्त्यः

महाकविमाघः – महाकविमाधस्य एकमेव महाकाव्यं प्राप्यते “शिशुपालवधम्” इति।
भर्तृहरिः – महाकविभर्तृहरे: त्रीणि शतकानि सन्ति, नीतिशतकम्, शृङ्गारशतकम् वैराग्यशतकं च।
अधोदत्ताः विविधविषयकाः श्लोकाः अपि पठनीयाः स्मरणीयाश्च
हंसः- हंसः श्वेतः बकः श्वेतः को भेदो बकहंसयोः।
नीरक्षीरविभागे तु हंसो हंसः बको बकः।।
एकमेव पर्याप्तम्-एकेनापि सुपुत्रेण सिंही स्वपिति निर्भयम्।
सहैव दशभिः पुत्रैः भारं वहति रासभी ।।
पिकः – काकः कृष्णः पिकः कृष्णः को भेदः पिककाकयोः।
वसन्तसमये प्राप्ते काकः काकः पिकः पिकः।।
चातक वर्णनम् – यद्यपि सन्ति बहूनि सरांसि,
स्वादुशीतलसुरभिपयांसि।
चातकपोतस्तदपि च तानि,
त्यक्त्वा याचति जलदजलानि।।

Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 12 अनयोक्त्यः Summary Translation in Hindi and English

पाठपरिचय-अन्योक्ति अर्थात् किसी की प्रशंसा अथवा निन्दा अप्रत्यक्ष रूप से अथवा किसी बहाने से करना। जब किसी प्रतीक या माध्यम से किसी के गुण की प्रशंसा या दोष की निन्दा की जाती है तब वह पाठकों के लिए अधिक ग्राह्य हाती है। प्रस्तुत पाठ में ऐसी ही सात अन्योक्तियों का सङ्कलन है जिनमें राजहसं, कोकिल, मधे, मालाकार, सरोवर तथा चातक के माध्यम से मानव को सदवृत्तियों एवं सत्कर्मों के प्रति पवृत्त होने का संदेश दिया गया है।

एकेन राजहंसेन या शोभा सरसों भवेत्।
न सा बकसहस्त्रेण परितस्तीरवासिना॥1॥

अन्वयः – एकेन राजहंसेन सरसः या शोभा भवेत्। परितः तीरवासिना बकसस्त्रेण सा (शोभा) न (भवति)।

शब्दार्थः सरसः – तडागस्य, सरोवरस्य (तालाब की)। बकसहस्रेण – दीघजङ्घन, मीनधातिना, तापसेन, दांभिकेन (हजारो बगुलों के द्वारा)। परितः – सर्वतः, अभितः (सब (चारों) ओर से)। तीरवासिना – तटवासिना (तटवासी से (के द्वारा)।

व्याख्या – एक राजहंस के द्वारा तालाब की जो शोभा होती है। (तालाब के) चारों ओर हजारों बगुलों से भी वह (शोभा) नहीं होती है।

भुक्ता मृणासलपटली भवता निपीता
न्यम्बूनि यत्र नलिनानि निषेवितनि।
रे राजहंस! वद तस्य सरोवरस्य,
कृत्येन कने भवितासि कृतोपकारः।।2।।

अन्वयः – यत्र भवता मृणालपटली भुक्ता, अम्बूनि निपीतानि नलिनानि निषेवितानि रे राजहंस! तस्य सरोवरस्य केन कृत्येन कृतोपकारः भविता असि, वद।

शब्दार्थ: – भुक्ता – सेविता (सेवन की गई।) मृणालपटली – कमलनालसमूहः (कमल डण्डी का समूह)। भवता – त्ववा (आपके द्वारा) निपीतानि – सम्यक् पीतानि (भली भाँति पीए गए) अम्बूनि – वारीणि, जलनि। (जल)। नलिनानि-कमलानि, पद्मानि (कमलों को) निषेवितानि – भुक्तानि, सेवितानि (सेवन किए गए)। कृयेन – कार्येण (कार्य से)। भविता – भविष्यति (होगा)। कृतोपकारः – प्रत्युपकारी (उपकार किया हुआ, प्रत्युपकारक करने वाला)।

व्याख्या – (हे राजहंस)। जहाँ आपके द्वारा कमलनाल के समूहको सेवन किया गया, जल पीया गया, कमलों का सवेन किया गया। हे राजहंस! उस सरोवरका किस कार्य के द्वारा प्रत्युपकार होगा? तुम बताओं।

तोवैरल्पैरपि करुणया भीमभानौ निदाघ,
मालाकार! व्यरचि भवता या तरोरस्य पुष्टिः।
सा किं शक्या जनयितुमिह प्रावृषेण्येन वारा,
धारासारानपि विकिरता विश्वतो वारिदेन।।3।।

अन्वयः – हे मालाकार! भीमभानौ निदाघे अल्पैः तौये: अपि भवता करुणया अस्य तराः या पुष्टिः व्यरचि। वाराम् प्रावृषेण्येन विश्वतः धारासारान् अपि विकिरता वारिदेन इह जनयितुिम् सा (पुष्टिः किम् शक्या।।

शब्दार्थः – तोयैः – जलैः, वारिभिः (जल से)। अल्पैः – न्यूनः (थोड़े से (के द्वारा)। भीमभानौ – ग्रीष्मकाले, ग्रीष्मतौं (ग्रीष्म ऋतु में)। मालाकार! – हे पालिन् (हे माली)। व्यरचि – कृता (की गई)। पुष्टि:-पोषणम्, पुष्टता, वृद्धिः (पोषण)। जनयितुम् – उत्पादयितुम् (उत्पन्न करने के लिए)। इह-अत्र, इहलोके (यहाँ, इस लोक में)। प्रावृषेण्येन-वर्षाकालिकन (वर्षाकालिक से (के द्वारा)। वाराम-जलों के (जलानाम)। धारा-आसारान्-धराप्रवाहान् (धाराओं का प्रवाह)। विकिरता-वर्षयता (बरसाते) छिड़कते) हुए)। विश्वतःपरितः, सर्वतः (सब ओर)। वारिदेन-जलदेन, मेधेन (बादल से (के द्वारा)।

व्याख्या – हे माली! भीषण ग्रीष्मकाल की गरमी से थोड़े से ही जल द्वारा आपके द्वारा करुणापूर्वक इस वृक्ष का जो पोषण किया गया। क्या वर्षाकालीन जल के, चारों ओर से धाराओं को बरसाने से, बादल के द्वारा, वह पोषण किया जा सकता है?

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 12 अनयोक्त्यः

आपेदिरेऽम्बरपथं परितः पतडाः,
भडा रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते।
सडोचमञ्चति सरस्त्वयि दीनदीनो,
मीनो नु हन्त कतमा गतिम्भ्युपैतु।।4।।

अन्वयः – पतड्गाः परितः अम्बरपथम् आपेरिदे, भृङ्गा रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते। अञ्चति, हन्त, दीनदीन: मीनः न कतमां गतिम् अभ्युपैतु॥

शब्दार्थः – आपेदिरे – प्राप्तवनः, अवाप्नुवन् (पा लिए)। अम्बरपथम् – गगनमार्गम् (आकाश मार्ग को)। परितः – सर्वतः विश्वतः (सब ओर)। पतड्गाः – खगाः, खेचराः, पक्षिण: (पक्षी)। भृड्गा: – भ्रमराः (भँवरे, भौरे)। रसालमुकुलानि – आम्रकलिकानि (आम के बौर (मंजरियो) को)। सडकोचम् अञ्चति – संकुचिते (संकुचित होने पर)। मीन: – मत्स्यः, क्षषः (मछली) हन्त – अरे, भोः खेदम् (खेद है)। अभ्युपैतु-प्राप्नोतु (प्राप्त करे)।

व्याख्या – पक्षी आकाश में चारों ओर भटक रहे हैं। भौरे आम की मञ्जरियों की शरण लेते हैं। हे तालाब! कष्ट है, तुम्हारे संकुचित होने (जल घटने) पर बेचारी मछली किस गति को पावे?

एक एव खगो मानी वने वसति चातकः।
पिपासितो वा म्रियते याचते वा पुरन्दरम्॥5॥

अन्वयः – एक एव मानी खगः चातकः वने वसति। वा पिपासितः म्रियते पुरन्दरम् याचते वा।।

शब्दार्थ: – खगः पक्षी, खेचरः (पक्षी)। मानी – अंहकारी (अभिमानी)। पिपासितः – पिपासुः, तृषार्तः, तर्षितः (प्यासा)। याचते – प्रार्थयते (माँगता है)। पुरन्दरम् इन्द्रम्, सुरपतिम्, सुरेशम (इन्द्र को)।

व्याख्या – (अकेला) एक ही स्वाभिमानी पक्षी वन में रहता है। वह या तो प्यासा ही मर जाता है या (केवल) इन्द्र से याचना करता है।

आश्वास्य पर्वतकल तपनोष्णतप्त
मुद्दामदावविधुराणि च काननानि।
नानानदीनदशतानि च पूरयित्वा,
रिक्तोऽसि यज्जलद! सैव तवोत्तमा श्रीः॥6॥

अन्वयः – तपनोष्णतप्तम् पर्वतकुलम् आश्वास्य उद्दादावविधुराणि काननानि च (आश्वास्य; नानानदीनदशतानि पूरयित्वा च हे जलद! यत् रिक्तः असि तव सा एव उत्तमा श्रीः।।

शबदार्थ: – आश्वास्य – समाश्वस्य (सन्तुष्ट करके)। पर्वतकुलम् – पर्वतसमूहम् (पर्वतों के समूह को)। तएनोष्णतप्तम् – सूर्यातपप्तम् (सूर्य की गर्मी से तपे हुए को)। उद्दाम:दाव-विधुराणि – उन्नतवृक्षरहितानि (ऊँचे पेड़ों से रहित को)। नाना-नदी-नद-शतानि-अनेकनदीनदशतानि (अनेक नदियों व सैकड़ों नदों (नालों) को। काननानि – वनानि (वन, जंगल)। श्री: – शोभा, कान्तिः (शोभा, लक्ष्मी)।

व्याख्या – सूर्य की गरमी से तपे हुए पर्वत समूह (को) और ऊँचे वृक्षों से रहित वनोंको (जल से) आश्वस्त करके अनेक नदियों व सैकड़ों नदों (नालों) को भरकर हे मेघ! तुम जो रिक्त (खाली) हो गए हो यही तुम्हारी उत्तम शोभा (निधि) है।

रे रे चातक! सावधानमनसा मित्र क्षणं श्रूयता-
मम्भोदा बहवो हि सन्ति गगने सर्वेऽपि नैतादृशाः।
केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधां गर्जन्ति केचिद् वृथा,
यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा बूहि दीनं वचः।|7।।

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 12 अनयोक्त्यः

अन्वयः – रे रे मित्र चातक! सावधानमनसा क्षधां श्रूयताम, गगने हि बहवः अम्भोदाः सन्ति, सर्वे अपि एतादृशाः न (सन्ति) केचित् धरिणीं वृष्टिभिः आर्द्रयन्ति, केचिद् वृथा गर्जन्ति, (त्वम्) यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतः दीनं वचः मा ब्रूहि।।

शब्दार्थ: – सावधानमनसा – ध्यानेन (ध्यान से)। अम्भोदा: – जलदाः, मेघाः (बादल)। बहवः – अनेके (अनेक)। गगने – आकाशे, नभसि (आकाश में)। आर्द्रयन्ति – क्लेदयन्ति (जल से भिगोते हैं)। वसुधाम् – धराम् (धरती को)। वृथाव्यर्थम् (बेकार)। पुरतः – समक्षम्. अग्रे (सामने, आगे) ब्रूहि – वद (बोलो)।

व्याख्या – अरे हे मित्र चातक! ध्यान से क्षणभर सुनो। आकाश में अनेक मेघ हैं। सभी ऐसे (बरसने वाले) नहीं हैं। (इनमें से कुछ (मेघ) धरती को वर्षा से गीला करते हैं (और) कुछ व्यर्थ में गरजते (ही) हैं। तुम जिस-जिस (मेघ) को देखते हो उस-देखते हो उस-उसके सामने दीन वचन मत बोलो।

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

Detailed, Step-by-Step NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः Questions and Answers were solved by Expert Teachers as per NCERT (CBSE) Book guidelines covering each topic in chapter to ensure complete preparation.

Shemushi Sanskrit Class 10 Solutions Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत

(क) कीदृशं कर्म व्यायामसंज्ञितम् कथ्यते?
उत्तर:
शरीरायासजननं व्यायाम सेवितम् कथ्यते।

(ख) व्यायामात् किं किमुपजायते?
उत्तर:
व्यायामात् श्रम-कल्म् पिपासा, उष्ण शीतादीनां सहिष्णुता परमम् आरोग्य च उपजायते।

(ग) जरा कस्य सकाशं सहसा न समधिरोहति?
उत्तर:
जरा व्यायामाभिः रतस्य सकाशं सहस न समधि रोहति।

(घ) कस्य विरुद्धमपि भोजनं परिपच्यते?
उत्तर:
बलस्य अर्धन् व्यायामः कर्तव्यः।

(ङ) कियता बलेन व्यायामः कर्तव्यः?
उत्तर:
व्यायाम कुर्वतः जन्तो हद्धिस्थान-आस्पितः।

(च) अर्धबलस्य लक्षणम् किम्?
उत्तर:
वायुः यथा वक्त्रं प्रपद्यते तद् अर्ध बल लक्षण।

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

प्रश्न 2.
उदाहरणमनुसृत्य कोष्ठकगतेषु पदेषु तृतीयाविभक्ति प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत

यथा – व्यायामः ……. हीनमपि सुदर्शनं करोति (गुण)

व्यायामः गुणैः हीनमपि सुदर्शनं करोति।

(क) ……………. व्यायामः कर्नव्यः। (बलस्यार्ध)
उत्तर:
बलस्यार्धेन् व्यायामः कर्नव्यः। (बलस्यार्ध)

(ख) …………. सदृशं किञ्चित् स्थौल्यापकर्षण नास्ति। (व्यायाम)
उत्तर:
व्यायामेन् सदृशं किञ्चित् स्थौल्यापकर्षणं नास्ति। (व्यायाम)

(ग) ………………. विना जीवनं नास्ति। (विद्या)
उत्तर:
विधां/विद्यायाः/विद्यया विना जीवनं नास्ति। (विद्या)

(घ) सः …………….. खञ्जः अस्ति । (चरण)
उत्तर:
सः चरणेन खञ्जः अस्ति। (चरण)

(ङ) सूपकारः …………. भोजनं जिघ्रति। (नासिका)
उत्तर:
सूपकारः नासिकया भोजन जिघ्रति। (नासिका)

प्रश्न 3.
स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत

(क) शरीरस्य आयासजननं कर्म व्यायामः इति कथ्यते।
उत्तर:
कस्य आयासजननं कर्म व्यायामः इति कथ्यते?

(ख) अरयः व्यायामिनं न अर्दयन्ति।
उत्तर:
के व्यायामिनं न अर्दयन्ति?

(ग) आत्महितैषिभिः सर्वदा व्यायामः कर्तव्यः।
उत्तर:
कैः सर्वदा व्यायामः कर्तव्यः?

(घ) व्यायाम कुर्वतः विरुद्धं भोजनम् अपि परिपच्यते।
उत्तर:
व्यायाम कुर्वतः कीदृश भोजनम् अपि परिपच्यते?

(ङ) गात्राणां सुविभक्तता व्यायामेन संभवति।
उत्तर:
केषाम् सुविभक्तता व्यायामेन संभवति?

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

प्रश्न 4.
(अ) षष्ठ श्लोकस्य भावमाश्रित्य रिक्तस्थानानि पूरयत

(क) यथा- …………….. समीपे उरगाः
उत्तर:
वैनतेयस्य

(ख) न ………. एवमेव व्यायामिनः
उत्तर:
उपसर्पन्ति

(ग) जनस्य समीप ……….. न गच्छन्ति।
उत्तर:
व्याधयः

(घ) व्यायामः वयोरूपगुणहीनम् अपि जनम् …………….. करोति।
उत्तर:
सुदर्शन।

प्रश्न 4.
(आ) ‘व्यायामस्य लाभाः’ इति विषयमधिकृत्य पञ्चवाक्येषु ‘संस्कृतभाषया’ एकम् अनुच्छेद लिखत।
उत्तर:
1, सर्वदा व्यायामः कर्त्तव्यः।
2. व्यायामेन अनेका रोगाः नश्यन्ति।
3. अनेन् जनाः स्फूर्तिवान् भवन्ति।
4. व्यायामेन् आलस्यं नश्यति।
5. व्यायाम शीलः सदा रोगरहितः (निरोग) जीवति।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशमुनरत –

(क) ‘तत्छत्वा तु सुखं देहम्’ अत्र विशेषणपदं किम्?
उत्तर:
सुखं

(ख) व्याधयो नोपसर्पन्ति वैनतेयमिवोरगाः’ अस्मिन् वाक्ये क्रियापदं किम्?
उत्तर:
उपसर्पन्ति

(ग) ‘पुम्भिरात्महितैषिभिः’ अत्र ‘पुरुषैः’ इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम्?
उत्तर:
पुम्भिः

(घ) “दीप्ताग्नित्वमनालस्यं स्थिरत्वं लाघवं मजा’ इति वाक्यात् ‘गौरवम्’ इति पदस्य विपरीतार्थकं पदं चित्वा लिखत।
उत्तर:
लाघवं

(ङ) ‘न चास्ति सदृशं तेन किञ्चित् स्थौल्यापकर्षणम्’ अस्मिन् वाक्ये ‘तेन’ इति सर्वनामपद कस्मै प्रयुक्तम्?
उत्तर:
व्यायामेन्

प्रश्न 6.
(अ) निम्नलिखितानाम् अव्ययानाम् रिक्तस्थानेषु प्रयोगं कुरुतसहसा, अपि, सदृशं, सर्वदा, यदा, सदा, अन्यथा

(क)……………….. व्यायामः कर्त्तव्यः ।
उत्तर:
सर्वदा

(ख) ……….. मनुष्यः सम्यक्पे ण व्यायाम करोति तदा सः ……………….. स्वस्थः तिष्ठति।
उत्तर:
यदा-सदा

(ग) व्यायामेन असुन्दराः ………. सुन्दरा: भवन्ति।
उत्तर:
अपि

(घ) व्यायामिनः जनस्य सकाशं वार्धक्य …….. नायाति।
उत्तर:
सहसा

(ङ) व्यायामेन ……………. किष्ट्चित् स्थौल्यापकर्षण नास्ति।
उत्तर:
सदृश

(च) व्यायाम समीक्ष्य एव कर्तव्यम् ………. व्याधयः आयान्ति।
उत्तर:
अन्यथा

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

प्रश्न 6.
(आ) उदाहरणमनुसृत्य वाच्यपरिवर्तनं कुरुतकर्मवाच्यम्
यथा-आत्महितैषिभिः व्यायामः क्रियते
कर्तृवाच्यम्
आत्महितैषिणः व्यायाम कुर्वन्ति।

(क) बलवता विरूद्धमपि भोजनं पच्यते। ………
उत्तर:
बलवता विरुद्धमपि भोजन पचति।

(ख) जनैः व्यायामेन कान्तिः लभ्यते। ……..
उत्तर:
जनाः व्यायामेन कान्तिः लभ्यन्ति।

(ग) मोहनेन पाठः पठ्यते। ……….
उत्तर:
मोहन पाठ पठति।

(घ) लतया गीतं गीयते। ………………
उत्तर:
लता गीतं गायति।

प्रश्न 7.
(अ) अधोलिखितेषु तद्धितपदेषु प्रकृति/प्रत्ययं च पृथक् कृत्वा लिखत
मूलशब्दः (प्रछतिः) प्रत्ययः
(क) पथ्यतमः ……………… + ……………
उत्तर:
पथ्यतमः = पथ्य + तम

(ख) सहिष्णुता – …………. + ……………
उत्तर:
सहिष्णुता = सहिष्णु + तल्

(ग) अग्नित्वम् – ………… + ……………
उत्तर:
अग्नित्वम् = अग्नि + त्व

(घ) स्थिरत्वम् – ………… + ……………
उत्तर:
स्थिरत्वम् = स्थिर + त्व

(ङ) लाघवम् = ………….. + ……………
उत्तर:
लाघवम् = लघु + अण

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

प्रश्न 7.
(आ) अधोलिखितकृदन्तपदेषु मूलधातुं प्रत्ययं च पृथक् छत्वा लिखत

मूलधातुः + प्रत्ययः

(क) कर्तव्यः …………… + ……………
उत्तर:
कर्तव्यः कृ + तव्यत्

(ख) भोजनम् ……………..+ ……………
उत्तर:
भोजनम् भुज + ल्यूट

(ग) आस्थितः आ + ….. + ……………
उत्तर:
आस्थितः आ + स्था + क्त

(घ) स्मृतः ………. + …………..
उत्तर:
स्मृतः स्मृ + क्त

(ङ) समीक्ष्य सम् ………. + ……………
उत्तर:
समीक्ष्य सम् + ईक्ष + ल्यप्

(च) आक्रम्य आ ……….+ …………….
उत्तर:
आक्रम्य आ + क्रम् + ल्यप्

(छ) जननम् …………… + ……………
उत्तर:
जननम् जन् + ल्युट्

योग्यता विस्तारः

(क) सुश्रुतः आयुर्वेदस्य, ‘सुश्रुतसंहिता’ इत्याख्यस्य ग्रन्थस्य रचयिता। अस्मिन् ग्रन्थे शल्यचिकित्सायाः प्राधान्यमस्ति। सुश्रुतः शल्यशास्त्रज्ञस्य दिवोदासस्य शिष्यः आसीत्। दिवोदासः सुश्रुतं वाराणस्याम् आयुर्वेदम् अपाठयत्। सुश्रुतः दिवोदासस्य उपदेशान् स्वग्नन्थेऽलिखत्।।

(ख) उपलब्धासु आयुर्वेदीय-संहितासु ‘सुश्रुतसंहिता’ सर्वश्रेष्ठः शल्यचिकित्साप्रधानो ग्रन्थः। अस्मिन् ग्रन्थे 120 अमयायेणु क्रमेण सूत्रस्थाने मौलिकसिणन्ताना शल्यकर्मोपयोगि-यन्त्रादीना. निदानस्थाने प्रमुखाणां रोगाणां, शरीरस्थाने शरीरशास्त्रस्य चिकित्सास्थाने, शल्यचिकित्सायाः कल्पस्थाने च विषाणां प्रकरणानि वर्णितानि। अस्य उनरतन्त्र 66 अमयायाः सन्ति।

(ग) वैनतेयमिवोरगा:-कश्यप ऋषि की दो पत्निया! थीं-कटु और विनता। विनता का पुत्र गरुड़ था और कटु का पुत्र सर्प। विनता का पुत्र होने के कारण गरुड़ को _वैनतेय कहा जाता है। (विनतायाः अयम् वैनतेयः, ढक्
(एय) प्रत्यये छते)। गरुड़ सर्प से अधिक ताकतवर होता है, भयवश साँप गरुड़ के पास जाने का साहस नहीं करता। यहाँ व्यायाम करने वाले मनुष्य की तुलना गरुड़ से तथा व्याधियों को तुलना साँप से की गई है। जिस प्रकार गरुड़ के समक्ष साँप नहीं जाता। उसी प्रकार व्यायाम करने वाले व्यक्ति के पास रोग नहीं फटकते।

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः सदा Summary Translation in Hindi and English

पाठपरिचय: – “पहला सुख निरोग काया” पर आधारित यह पाठ आयुर्वेद वेद (पंचम वेद) की “सश्रुत संहिता” के चिकित्सा भाग में वर्णित 24वे अध्याय से संकलित है इसमें आचार्य सुश्रुत में व्यायाम की परिभाषा बताते हुए व्यायाम से होने वाले लाभो के बारे में बताया है। शरीर में सुगठन कान्ति स्फूर्ति, सहिष्णुता व नीरोगता आदि व्यायाम के प्रमुख लाभ है।

1. शरीरायासजननं कर्म व्यायामसंज्ञितम् ।
तत्कृत्वा तु सुखं देहं विमृद्नीयात् समन्ततः ॥1॥

अन्वयः – शरीर आयास जननं कर्म व्यायाम् सज्ञितम् (ज्ञास्यति) तत कृत्वा तु सुखम् (भवति) देह समन्ततः विमृद जानीयात।

शब्दार्थ: – आयास: – श्रमः प्रयत्नः (परिश्रम), विमदनीयात – मर्दयेत (मालिश करनी चाहिए), समन्ततःसर्वतः (पूरी तरह से) __व्याख्या (सरलार्थ): – शरीर के द्धारा श्रम की उत्पत्ति करना (कर्म करना) ही व्यायाम कहलाता है। इसको करने से सुख मिलता है। शरीर की सब और से मालिश होनी चाहिए।

श्रमक्लमपिपासोष्ण – शीतादीनां सहिष्णुता ।
आरोग्यं चापि परमं व्यायामादपजायते ॥3॥

अन्वयः – व्यायामात् श्रमक्लम – पिपासा – उष्ण – शीतादीनां साहिष्णुता परमम् आरोग्य च अपि उपजायते।

शब्दार्थ: – क्लम: – श्रमजनितशिथिलता (थकान)। सहिष्णुता – सहिष्णुत्वम् (सहन कर सकना)। आरोग्यम् – स्वास्थ्यम् (स्वास्थ्य)। उपजायते – निष्पद्यते (पैदा होता है।)।

व्याख्या – परिश्रम – जनित थकान, पिपासा (प्यास), गरमी – सर्दी आदि को सहन कर सकना और परम आरोग्य (स्वास्थ्य) व्यायाम से मिलता है।

न चास्ति सदृशं तेन किञ्चित्स्थौल्यापकर्षणम् ।
न च व्यायामिनं मर्त्यमर्दयन्त्यरयो बलात् ।।4।।

अन्वयः – तेन (व्यायामेन) च सदृशं स्थौल्य – अपकर्षणम् किञ्चित् न अस्ति। व्यायामिनं च मय॑म् अरयः बलात् न अर्दयन्ति।

शब्दार्थः – स्थौल्यापकर्षणम् – पीनत्वापक्षयम् (मोटापा घटाना)। मर्त्यम् – मानवम्, पुरुषम् (मनुष्य को)। अर्दयन्ति – मर्दयन्ति (कुचल देते हैं) अरयः – शत्रवः (शत्रु लोग)।

व्याख्या – इस (व्यायाम) के समान मोटापे का कम करने वाला कोई (दूसरा उत्तम साधन) नहीं है। व्यायाम करने वाले व्यक्ति को शुत्र बल से नहीं पछाड़ सकते हैं।

न चैन सहसाक्रम्य जरा समधिरोहति ।
स्थिरीभवति मांस च व्यायामाभिरतस्य च ॥5॥

अन्वयः – जरा च एन (व्यायामिन) सहसा आक्रम्य न अधिरोहित। व्यायाम – अभिरतस्य च मांसं स्थिरीभवति।

शब्दार्थ: – सहसा – अकस्मात् (अचानक) जरा – वृद्धावस्था (बुढ़ापा)। समधिरोहति – अधिरोहति (चढ़ता/बढ़ता है।) अभिरतस्य – तल्लनौस्य (तल्लीन रहने वाले का)।

व्याख्या – बुढ़ापा भी इस (व्यायामशील) पर अचानक आक्रमण करके सवार नहीं होता है। तल्लीनता से व्यायाम करने वाले का मास भी स्थिर हो जाता है।

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

व्यायामस्विन्नगात्रस्य पद्भ्यामुवर्तितस्य च ।
व्याधयो नोपसर्पन्ति वैनतेयमिवोरगाः वयोरूपगुणहीनमपि कुर्यात्सुदर्शनम् ॥6॥

अन्वयः – व्यायाम् – स्विन्नगात्रस्य पद्भ्यास उद्वर्तितस्य च व्यांधयः वैनतेयम् उरगाः इव न उपसर्पन्ति। वयः रूप – गुणैः हीनम् अपि (जन) सुदर्शनं कुर्यात्।

शब्दार्थ: – स्विन्नागात्रस्य – उन्नमितस्य (ऊपर उठाकर व्यायाम करने वाले का)। पद्भ्याम् – चरणाभ्याम् (दोनों पैरों में)। उद्वर्तितस्य – उन्नमितस्य (ऊपर उठाकर व्यायाम करने वाले के)। नोपसर्पन्ति – नोपगच्छन्ति (नहीं आती हैं)। वैनतेयः – गरुडः (गरुड़)। उरगः – सर्पः (साँप)।

व्याख्या – व्यायाम के कारण पसीने से लथपथ शरीर वाले तथा दोनों पैर उठाकर व्यायाम करने वाले के पास रोग उसी तरह नहीं आते हैं, जैसे गरुड़ के पास साँप। व्यायाम आयु, रूप आदि गुणों से रहित को भी सुन्दर बना देता है।

व्यायाम कुर्वतो नित्यं विरुद्धमपि भोजनम् ।
विदग्धमविदग्धं वा निर्दोषं परिपच्यते ॥7॥

अन्वयः – नित्यं व्यायाम कुर्वतः विरुद्धम् अपि भोजनं, विदग्धम् अविदग्धं वा (भोजन) निर्दोष परिपच्यते।

शब्दार्थः – विरुद्धम् – प्रतिकूलम् (विरुद्ध, प्रतिकूल)। विदग्धम् – सु पक्वम् (अच्छी तरह पका हुआ)। पत्पिच्यते – जीर्यते (पच जाता है)।

व्याख्या – नित्य व्यायाम करने वाले को प्रतिकूल, पक्का या कच्चा सब तरह का भोजन आसानी से पच जाता है। व्यायाम कुर्वतो नित्यं विरुद्धमपि भोजनम्।

स च शीते वसन्ते च तेषां पथ्यतमः स्मृतः॥8॥

अन्वयः – स्निग्धभोजिना बलिना (च) व्यायाम: हि सदा पथ्यः (भवति)।सः (व्यायामः) शीते वसन्ते च तेषा पध्यतमः स्मृतः।

शब्दार्थ: – स्निग्धभोजिनाम् वसायुक्तभोजिनाम् (चिकनाई युक्त भोजन खाने वालों का)। पथ्यम् – उचितम् (उचित, स्वास्थ्यकर)।

व्याख्या – चिकनाई वाला भोजन खाने वालों तथा बलवानों के लिए व्यायाम सदैव स्वास्थ्यवर्धक है। उनके लिए सर्दी और वसन्त (आदि सभी ऋतुओं) मे व्यायाम परम स्वास्थ्यवर्धक बताया गया है।

सर्वेष्वृतुष्वहरहः पुम्भिरात्महितैषिभिः ।
बलस्यार्धन कर्तव्यो व्यायामो हन्त्यतोऽन्यथा ॥9॥

अन्वयः – अत: आत्महितैषिभिः पुम्भिः सर्वेषु ऋतुषु अहरदः बलस्य अर्धेन व्यायामः कर्त्तव्यः, अन्यथा हन्ति।

शब्दार्थ: – अहरदः – प्रतिदिनम् (प्रतिदिन)। पुम्भिः – पुरुषैः, जनैः (लोगों के द्वारा)। आत्महितैषिभिः – स्वहितैतिभिः (अपना भला चाहने वालों के द्वारा)। हन्ति – नाशयति (मारता है)।

व्याख्या – इसलिए अपना कल्याण (भला हित चाहने वाले लोगों को सभी ऋतुओं में प्रतिदिन अपने बल के आधे भाव (आधी ताकत) से व्यायाम करना चाहिए, अन्यथा वह मरता है।

हृदिस्थानस्थितो वायुर्यदा वक्त्रं प्रपद्यते ।
व्यायाम कुर्वतो जन्तोस्तबलार्धस्य लक्षणम् ॥10॥

अन्वयः – व्यायाम कुर्वतः जन्तोः हृदिस्थान – आस्थितः वायुः यदा वक्त्रं प्रपद्यते, तत् बल – अर्धस्य लक्षणम्

शब्दार्थ: – अस्थितः – स्थितः (स्थित)। वक्त्रम् – मुखम् (मुंह)। प्रपद्यते – उपगच्छति (पहुँचता है)।

व्याख्या – व्यायाम करते हुए व्यक्ति की हृदय में स्थित वायु जब मुँह पर पहुँचती है तो यह बल का आधा लक्षण (पहचान) है।

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

वयोबलशरीराणि देशकालाशनानि च ।
समीक्ष्य कुर्याद् व्यायाममन्यथा रोगमाप्नुयात् ॥11॥

अन्वयः – वयः बल – शरीराणि, देश – काल अशनानि च समीक्ष्य व्यायाम कुर्यात अन्यथा रोगम् आप्नुयात् (प्राप्नोति)

शब्दार्थ: – अशनानि – आहाराः (भोजनोमि) मसीक्ष्य (दृष्टवा) जाँचकर (देखकर) आप्नुयात् – प्राप्नोति (प्राप्त करेगा)।

व्याख्याः – आयु, बल, शरीर देश (उपयुक्त) काल (समय) व भोजन को परखकर ही व्यायाम करना। चाहिए, अन्यथा वह रोग को प्राप्त करता है।

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम्

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Shemushi Sanskrit Class 10 Solutions Chapter 4 शिशुलालनम्

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत –

(क) रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः कीदृशः आसीत्?
उत्तर:
रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः हद्धयग्राही आसीत्।

(ख) रामः लवकुशौ कुत्र उपवेशयितुम् कथयति?
उत्तर:
रामः लवकुशौ सिंहासनम् उपरि उपवेशयितुम् कथयति।

(ग) बालभावात् हिमकर: कुत्र विराजते?
उत्तर:
बालभावात् हिमकरः पशुपति मस्तके विराजते।

(घ) कुशलवयोः वंशस्य कर्ता कः?
उत्तर:
कुशलवयोः वंशस्य कर्ता भगवान सूर्यः।

(ङ) केन सम्बन्धेन वाल्मीकिः कुशलवयोः गुरुः आसीत्?
उत्तर:
उपनयनोपदेशन्: वाल्मीकिः कुशलवयोः गुरुः आसीत।

(च) कुशलवयोः मातरं वाल्मीकि केन नाम्ना आह्वयति?
उत्तर:
कुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः ‘वधूः’ इति नाम्ना आह्वयति?

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम्
प्रश्न 2.
रेखाङ्कितेषु पदेषु विभक्तिं तत्कारणं च उदाहरणानुसार निर्दिशत –

यथा – राजन्! अलम् अतिदाक्षिण्येन
(क) रामः लवकुशौ आसनार्धम् उपवेशयति।
(ख) धिङ् माम् एवं भूतम्।
(ग) अटव्यवहितम् अध्यास्यतां सिंहासनम्
(घ) अलम अतिविस्तरेण
(ङ) रामम् उपसृत्य प्रणभ्य च।
उत्तर:
NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम् 7

प्रश्न 3.
यथानिर्देशम् उत्तरत

(क) ‘जानाम्यहं तस्य नामधेयम्’ अस्मिन् वाक्ये कर्तृपदं किम्?
उत्तर:
अहं

(ख) ‘किं कुपिता एवं भणति उत प्रकृतिस्था’- अस्मात् वाक्यात् ‘हर्षिता’ इति पदस्य विपरीतार्थकपदं चित्वा लिखत।
उत्तर:
कुपिता

(ग) विदूषकः (उपसृत्य) ‘आज्ञापयतु भवान्!’ अत्र भवान् इति पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
उत्तर:
रामाय

(घ) ‘तस्माद-व्यवहितम् अध्यास्याताम् सिंहासनम्’ – अत्र क्रियापदं किम्?
उत्तर:
अध्यास्याताम्

(ङ) ‘वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम्’-अत्र ‘आयुषः इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम्?
उत्तर:
वयः

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम्

प्रश्न 4.
अधोलिखितानि वाक्यानि कः कं प्रति कथयति

(क) सव्यवधानं न चारित्र्यलोपाय।
(ख) किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृतिस्था?
(ग) जानाम्यहं तस्य नामधेयम्।
(घ) तस्या द्वे नाम्नी।
(ङ) वयस्य! अपूर्व खलु नामधेयम्।
उत्तर:
NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम् 1

प्रश्न 5.
मञ्जूषातः पर्यायद्वयं चित्वा पदानां समक्षं लिखत –
शिवः शिष्टचारः शशिः चन्द्रशेखरः सुतः इदानीम् अधुना पुत्रः सूर्यः सदाचारः निशाकरः भानुः

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम् 2
उत्तर:
NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम् 3

प्रश्न 6.
(अ) उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितेषु पदेषु प्रयुक्त-प्रकृति प्रत्ययञ्च लिखत

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम् 4
NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम् 5
उत्तर:
NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम् 6

प्रश्न 6.
(आ) विशेषण-विशेष्यपदानि योजयतयथा- विशेषण पदानि विशेष्य पदानि

श्लाघ्या – कथा
(1) उदात्तरम्यः – (क) समुदाचारः
(2) अतिदीर्घः – (ख) स्पर्शः
(3) समरूपः – (ग) कुशलवयोः
(4) हृदयग्राही – (घ) प्रवास:
(5) कुमारयोः – (छ) कुटुम्बवृत्तान्तः
उत्तर:
(1) – क
(2) – घ
(3) – ङ
(4) – ख
(5) – ग

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प्रश्न 7.
(क) अधोलिखितपदेषु सन्धिं कुरुत:

(क) द्वयोः + अपि = ……………
(ख) द्वौ + अपि = ………………
(ग) कः + अत्र = ………………….
(घ) अनभिज्ञः + अहम् = ………….
(ङ) इति + आत्मानम् = …………..
उत्तर:
(क) द्वयोः + अपि – दूयोरपि
(ख) द्वौ + अपि – द्वावपि
(ग) कः + अत्र – कोऽत्र
(घ) अनभिज्ञः + अहम् – अनभिज्ञोऽहम्
(ङ) इति + आत्मानम् – इत्यात्मानः

(ख) अधोलिखितपदेषु विच्छेदं कुरुत:

(क) अहमप्येतयोः – ……………..
(ख) वयोऽनुरोधात् – …………….
(ग) समानाभिजनौ – ……………
(घ) खल्वेतत् – ………………..
उत्तर:
(क) अहमप्येतयोः – अहम् + अपि + एतयोः
(ख) वयोऽनुरोधात् – वयः + अनरोधात्
(ग) समानाभिजनौ – समान् + अभिजनौ
(घ) खल्वेतत् – खलु + एतत्

परीक्षा उपयोगी अन्य प्रश्नाः

प्रश्न 1.
प्रस्तुत पाठ पठित्वा अधीलिखित प्रश्नाना उत्तराणि लिखत(प्रस्तुत पाठ को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए)

1. एकपदेन उत्तरत

(क) ‘अम्बा’ इति कः कथयति?
उत्तर:
कुशः

(ख) तयोः गुरोः नाम किम्?
उत्तर:
वाल्मीमिः

(ग) “निरनुक्रोशः’ इति कः भणति?
उत्तर:
अम्बा

(घ) ‘केन सम्बधेन’? इति कः पृच्छति?
उत्तर:
श्रीरामः

(च) ‘उपनयनोपदेशेन’ इति कः कथयति?
उत्तर:
लवः।

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2. पूर्णवाक्येन उत्तरत

(क) रामस्य अन्तिकं कः प्रेष्यताम्?
उत्तर:
रामस्य अन्तिक लक्ष्मणः प्रेष्यातम्।

(ख) सरस्वत्यवतार कीदृशः?
उत्तर:
सरस्वत्यवतारः अपूर्वः।

(ग) पुराण: व्रतनिधिः कः?
उत्तर:
पुराणः व्रतनिधिः वाल्मीकिः।

(घ) सवाष्पं कः अवलोकयति?
उत्तर:
सवाष्पं श्रीरामः अवलोकयति।

(च) अपूर्व खलु किम् आसीसत्?
उत्तर:
अपूर्व खलु नामधेयम् आसीत्।

2. भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद्
गुणमहतामपि लालनीय एव।
व्रजतिध हिमकरोऽपि बालभावात्
पशुपति-मस्तक-केतकच्छत्वम्

अन्वय – गुणमहताम् अपि वयोऽनुरोधात् शिशुजन: लालनीयः एव भवति। बालभावात् हि हिमकरः अपि पशुपति-मस्तक-केतच्छदत्वम् व्रजति।
भाव – अत्यधिक गुणी लोगों के लिए भी छोटी उम्र के कारण बालक लालनीय ही होता है। चन्द्रमा बालभाव के कारण ही शटर के मस्तक का आभूषण बनकर केतकी पुष्पों से निर्मित चूड़ा की भाँति शोभित होता हैं।

भवन्तौ गायन्तौ कविरपि पुराणों व्रतनिधिर् गिरा
सन्दर्भेऽयं प्रथमवतीणों वसुमतीम्।
कथा चेयं श्लाघ्या सरसिरुहनाभस्य नियतं,
पुनाति श्रोतार रमयति च सोऽयं परिकरः

अन्वय – भवन्ती गायन्तौ, पुराणः व्रतनिधिः कविः अपि, वसुमतीम् प्रथम अवतीर्णः गिराम् अयं सन्दर्भः, सरसिरुिहनाभस्य च इंच श्लाघ्या कथा, सःि च अयं परिकरः नियंत श्रोतारं पुनाति रमयति च।

भाव – भगवान् वाल्मीकि द्वारा निबद्ध पुराणपुरुष की कथा, कुश लव द्वारा श्री राम को सुनायी जानी थी, उसी की सूचना देते हुए नेपथ्य से कुश और लव को बिना समय नष्ट किये अपने कर्तव्य का पालन करने का निर्देश दिया जाता है। दोनों राम से आज्ञा लेकर जाना चाहते हैं तब श्री राम उपर्युक्त श्लोक के माध्यम से उस रचना का सम्मान करते हैं।

आप दोनों (कुश और लव) इस कथा का गान करने वाले हैं, तपोनिधि पुराण मुनि (वाल्मीकि) इस रचना के __ कवि हैं, धरती पर प्रथम बार अवतरित होने वाला स्फुट
वाणी का यह काव्य है और इसकी कथा कमलनाभि विष्णु
से सम्बद्ध है इस प्रकार निश्चय ही यह संयोग श्रोताओं को _पवित्र और आनन्दित करने वाला है।

योग्यताविस्तारः

नाट्य-प्रसङ्गः
कुन्दमाला के लेखक दिङ्नाग ने प्रस्तुत नाटक में रामकथा के करुण अवसाद भरे उत्तरार्ध की नाटकीय सम्भावनाओं को मौलिकता से साकार किया है। इसी कथानक पर प्रसिद्ध नाटककार भवभूति का उत्तररामचरित भी आश्रित है। कुन्दमाला के छहों अटों का दृश्यविधान वाल्मीकि-तपोवन के परिसर में ही केन्द्रित है। प्रस्तुत नाटकांश पञ्चम अट से सम्पादित कर सटलित किया गया है। लव और कुश से मिलने पर राम के हृदय में उनसे आलिंगन की लालसा होती है। उनके स्पर्शसुख से अभिभूत हो राम, उन्हें अपने सिंहासन पर, अपनी गोद में बिठाकर लाड़ करते हैं। इसी भाव की पुष्टि में नाटक में यह श्लोक उद्धृत है

भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद्
गुणमहतामपि लालनीय एव।
व्रजति हिमकरोऽपि बालभावात्
पशुपति-मस्तक-केतकच्छवत्वम्।।

शिशुस्नेहसमभावश्लोकाः

अनेन कस्यापि कुलाङ्कुरेण
स्पृष्टस्य गात्रेषु सुखं ममैवम् ।
का निर्वृतिं चेतसि तस्य कुर्याद्
यस्यायमकात् कृतिनः प्ररूढः ।। (कालिदासस्य)

अन्त:करणतत्त्वस्य दम्पत्योः स्नेहसंश्रयात् ।
आनन्दग्रन्थिरेकोऽयमपत्यमिति पठ्यते ॥ (भवभूते:)

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम्

धूलोधूसरतनवः
क्रीडाराज्ये स्वके च रममाणाः ।
कृतमुखवाद्यविकाराः
क्रीडन्ति सुनिर्भर बालाः ।। (कस्यचित्)

अनियतरुदित स्मित विराजत्
कतिपयकोमलदन्तकुड्मलाग्रम् ।
वदनकमलकं शिशोः स्मरामि
स्खलदसमञ्जसमञ्जुजल्पितं ते ॥

Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम् Summary Translation in Hindi and English

पाठपरिचय – प्रस्तुत पाठ संस्कृतवाङ्मय के प्रसिद्ध नाटक ‘कुन्दमाला’ के पंचम अङ्क से सम्पादित कर लिया गया है। इसके रचयिता प्रसिद्ध नाटककार दिङ्नाग हैं। इस नाटकांश में राम कुश और लव को सिंहासन पर बैठाना चाहते हैं किन्तु वे दोनों अतिशालीनतापूर्वक मना करते हैं। सिंहासनारूढ राम कुश और लव के सौन्दर्य से आकृष्ट होकर उन्हें अपनी गोद में बिठा लेते हैं और आनन्दित होते हैं। रात में शिशु स्नेह का अत्यन्त मनोहारी वर्णन किया गया हैं।

1. विदूषकः-इत इत आयौं! कुशलवी-(रामम् उपसृत्य प्रणम्य च) अपि कुशलं महाराजस्य?
रामः – युष्मद्दर्शनात् कुशलमिव। भवतोः किं वयमत्र
कुशलप्रश्नस्य भाजनम् एव, न पुनरतिथिजन समुचितस्य कण्ठाश्लेषस्य। (परिष्वज्य) अहो हृदयग्राही स्पर्शः।
उभौ – राजासनं खल्वेतत्, न युक्तमध्यासितुम्।
रामः – सव्यवधानं न चारित्रलोपाय। तस्मावङ्क – व्यवहितमध्यास्यतां सिंहासनम्
(अङ्कमुपवेशयति)
उभौ – (अनिच्छा नाटयतः) राजन्!
अलमतिदाक्षिण्येन।
रामः-अलमतिशालीनतया।

भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद्
गुणमहतामपि लालनीय एव।
व्रजति हिमकरोऽपि बालभावात्
पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वम्।।

रामः – एष भवतोः सौन्दर्यावलोकजनितेन कौतूहलेन
पृच्छामि – क्षत्रियकुल-पितामहयोः सूर्यचन्द्रयोः को वा भवतोवंशस्य कर्ता?
लव: – भगवन् सहस्रदीधितिः।
रामः – कथमस्मत्समानाभिजनौ संवृत्ती?
विदूषकः – किं द्वयोरप्येकमेव प्रतिवचनम्?
लव: – भ्रातरावावां सोदयौं।
रामः – समरूपः शरीरसन्निवेशः। वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम्

शब्दार्थ:-
उत्थाय – उत्थितो भूत्वा (उठकर)
अलक्रियते – विभूष्यते (सुशोभित होता है)
पितामहः – पितुः पिता (पिता के पिता)
सहस्रदीधितिः – सूर्यः (सूर्य)
कण्ठाश्लेषस्य – कण्ठे आश्लेषस्य (गले लगाने का)
परिष्वज्य – आलिङ्गनं कृत्वा (आलिङ्गन करके)
विचिन्त्य – विचार्य (विचार करके)
अनभिज्ञः – अपरिचित : (नहीं जानने वाला/अनजान)
अध्यासितुम् – उपवेष्टुम् (बैठने के लिए)
सव्यवधानम् – व्यवधानेन सहितम् (रुकावट सहित)
अध्यास्यताम् – उपविश्यताम् (बैठिये)
अलमतिदाक्षिण्येन – अलमतिकौशलेन (अत्यधिक दक्षता, अधिक कुशलता नहीं करें)
अङ्कमु – क्रोडम् (गोद में)
हिमकरः – चन्द्रः (चन्द्रमा)
पशुपतिः – शिवः (शिव)
केतक-छदत्वम् – केतकस्य छदत्वम् (केतकी (केवड़े) के पुष्प से बना मस्तक का शेखर (जूड़ा)

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम्

सरलार्थ: –
सिंहासन पर स्थित राम! इसके बाद प्रवेश करते है विदूषक द्वारा मार्ग दिखाए गए हुए तपस्वी दोनों लव व कुश?
वियूषक – हे आर्य पुत्रों! इधर, इधर कुश व लव-(राम के पास जाकर और प्रणाम करके) क्या महाराज सकुशल है?
राम – आपके दर्शन पाकर कुशल हूँ हम यहाँ आपकी कुशलता पूछने के योग्य है, नहीं तो फिर आप जैसे अतिथियों से उचित रूप से गले लगाने योग्य है। (गले लगाकर के) अरे! यह स्पर्श तो हृद्धय को छुने वाला है।
दोनों – यह राजा का आसन है, इस पर बैठना उचित नहीं है।
राम – व्यवधान के साथ, आचरण लोप न हो इसलिए गोद की रूकावट के साथ सिहांसन पर बैठ जाइए (अर्थात गोद में बैठ जाइए) (गोद में बैठाते है)
दोनों – (इच्छा नहीं होने का नाटक करते है) हे राजन! अत्यधिक कुशलता मत कीजिए।
रामा – अधिक शालीनता मत दिखाइए।
“अधिक गुणों से युक्त लोगों के लिए भी छोटी उम्र के कारण बालक लालनीय ही होता है। क्यों कि चन्द्रमा बालभाव के कारण ही भगवान शङ्कर के मस्तक का आभूषण बनता है एवं केतकी फूलों के समान चूड़ा की तरह सुशोभित होता है।
राम – आप दोनों के सौन्दर्य दर्शन पाकर जिज्ञासावश यह पूछ रहा हूँ कि क्षत्रिय कुल के पितामह सूर्य व चन्द्र में से आपके वंश के (जनक) कौन है?
लव – भगवान सूर्य
राम – क्या हमारे ही वंश के है आप दोनों? विदूषक-क्या दोनों सगे भाई है।
लव – हम दोनों सगे भाई है।
राम – रूप समान है एवं शरीर संरचना भी समान है। आयु का थोड़ा भी अन्तर नहीं है।

2. लव: – आवां यमलौ।
रामः – सम्प्रति युज्यते। किं नामधेयम्?
लवः – आर्यस्य वन्दनायां लव इत्यात्मानं श्रावयामि (कुशं निर्दिश्य) आर्योंऽपि गुरुचरणवन्दनायाम् ………..
कुशः – अहमपि कुश इत्यात्मानं श्रावयामि।
रामः – अहो! उदात्तरम्यः समुदाचारः।
किं नामधेयो भवतोर्गुरुः?
लवः – ननु भगवान् वाल्मीकिः।
रामः – केन सम्बन्धेन?
लव: – उपनयनोपदेशेन।
रामः – अहमत्रभवतोः जनकं नामतो वेदितुमिच्छामि।
लव: – न हि जानाम्यस्य नामधेयम्। न कश्चिदस्मिन् तपोवने तस्य नाम व्यवहरति।
रामः – अहो माहात्म्यम्।
कुश: – जानाम्यहं तस्य नामधेयम्।
रामः – कथ्यताम्।
कुशः – निरनुक्रोशो नाम….
राम: – वयस्य, अपूर्वं खलु नामधेयम्।
विदूषकः – (विचिन्त्य) एवं तावत् पृच्छामि निरनुक्रोश इति क एवं भणति?
कुश: – अम्बा।
विदूषकः – किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृतिस्था?
कुश: – यद्यावयोर्बालभावजनितं किञ्चिदविनयं पश्यति तदा एवम् अधिक्षिपति-निरनुक्रोशस्य पुत्रौ, मा चापलम् इति।
विदूषकः – एतयोर्यदि पितुर्निरनुक्रोश इति नामधेयम् एतयोर्जननी तेनावमानिता निर्वासिता एतेन वचनेन दारको निर्भर्त्सयति।
रामः – (स्वगतम्) धिङ् मामेवंभूतम्। सा तपस्विनी मत्कृतेनापराधेन स्वापत्यमेवं मन्युगभैरक्षरैर्निर्भसंयति।

शब्दार्थ:
यमलौ – युगलौ (जुड़वाँ)
शरीरसन्निवेशः – अङ्ग-रचनाविन्यासः (शरीर की बनावट)
उदात्तरम्यः – अत्यन्तः रमणीयः (अत्यधिक मनोहर)
समुदाचारः – शिष्टाचारः (शिष्टाचार)
उपनयनोपदेशेन – उपनयनस्य उपदेशेन (उपनयन-संस्कारदीक्षया)
(उपनयन की दीक्षा के कारण)
नामधेयम् – नाम (नाम)
निरनुक्रोशः – निर्दयः (दया रहित)
वयस्य – मित्र (मित्र)
भणति – कथयति (कहता है)
अम्बा – जननी (माता)
उत – अथवा (अथवा)
प्रकृतिस्था – सामान्या मनःस्थितिः (स्वाभाविक रूप से)
अधिक्षिपति – अधिक्षेपं करोति (फटकारती है)
चापलम् – चपलताम् (चंचलता)
अवमानिता – तिरस्कृता (अपमानित)
दारको – पुत्रौ (पुत्र)
निर्भद्यति – तर्जयति (धमकाती है)

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम्

सरलार्थ:
लव – हम दोनों जुड़वे भाई है।
राम – तब ठीक है नाम क्या है?
लव – आर्य (आप की स्तुति में अपने आपको लव सुना रहा हूँ) (कुशकी तरफ इशारा करते हुए) आर्य भी गुरूचरणों की बंदना में।
कुश – मैं भी अपने आपको कुश बताता हूँ।
राम – अहों! शिष्टाचार अति उत्तम है। आप दोनों के गुरू का क्या नाम है?
लव – भगवन् वाल्मीकि।
राम – किस सम्बन्ध से।
लव – उपनयन संस्कार की दीक्षा देने के कारण।
राम – मैं आप दोनों के पिता को नाम जानना चाहता हूँ।
लव – मैं उनका नाम नहीं जानता हूँ तपोवन में कोई भी उनका नाम नहीं लेता है। राम-अरे! बहुत अच्छा (महान) है।
कुश – मैं जानता हूँ उनका नाम।
राम – कहिए कुश-“निर्दय” नाम है।
राम – मित्र, निश्चत ही अनोखा नाम है।
विदूषक – (सोचकर) यह पूछ रहा हूँ कि उन्हें निर्दय कौन कहता है?
कुश – माँ विदूषक-क्या वे गुस्से मेंऐसा कहती है या वास्तविक रूप में ऐसा कहती है।
कुश – यदि हम दोनों की बालभाव से उत्पन्न उद्दण्डता देखती है, तब ऐसा (कहकर) फटकारती है-‘निर्दय के पुत्रों, चञ्चलता मत करो’ ऐसा।
विदूषक – यदि इनके पिता का नाम निर्दय है तो इनकी माता उससे अपमानित व निस्कासित होने के कारण इन्हें फटकारती है।
राम – (अपने मन में) ऐसे मुझको धिम्कार है वह तपस्विनी मेरे द्वारा किए गए अपराध के कारण अपनी सन्तान की इस प्रकार अहंकार युक्त शब्दों से फटकारती है। (नम आँखों से देखने लगते है)

3. रामः – अतिदीर्घः प्रवासोऽयं दारुणश्च। (विदूषकमवलोक्य जनान्तिकम्) कुतूहलेनाविष्टो मातरमनयोनामतो वेदितुमिच्छामि। न युक्तं च स्त्रीगतमनुयोक्तुम्, विशेषतस्तपोवने। तत् कोऽत्राभ्युपायः?
विदूषकः – (जनान्तिकम्) अहं पुनः पृच्छामि। (प्रकाशम्) किं नामधेया युवयोर्जननी?
लवः – तस्याः द्वे नामनी।
विदूषकः – कथमिव? लव:-तपोवनवासिनो देवीति नाम्नाह्वयन्ति, भगवान् वाल्मीकिर्वधूरिति।
राम: – अपि च इतस्तावद् वयस्य! मुहूर्त्तमात्रम्।
विदूषकः – (उपसृत्य) आज्ञापयतु भवान्।
राम: – अपि कुमारयोरनयोरस्माकं च सर्वथा समरूप: कुटुम्बवृत्तान्तः?
(नेपथ्ये)
इयतो वेला सञ्जाता रामायणगानस्य नियोगः किमर्थ न विधीयते?
उभौ-राजन्! उपाध्यायदूतोऽस्मान् त्वरयति।
रामः-मयापि सम्माननीय एव मुनिनियोगः। तथाहि
भवन्तौ गायन्तौ कविरपि पुराणो व्रतनिधिर्
गिरां सन्दर्भोऽयं प्रथममवतीर्णो वसुमतीम्। कथा
चेयं श्लाघ्या सरसिरुहनाभस्य नियतं,
पुनाति श्रोतारं रमयति च सोऽयं परिकरः।।
वयस्य! अपूर्वोऽयं मानवानां सरस्वत्यवतारः, तदहं
सुहृज्जनसाधारणं श्रोतुमिच्छामि। सन्निधीयन्तां सभासदः,
प्रेष्यतामस्मदन्तिवं सौमित्रिः,
अहमप्येतयोश्चिरासनपरिखेदं विहरणं कृत्वा अपनयामि

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम्

शब्दार्थः –
प्रवास:-विदेश गमनम् (विदेश को जाना), दारूण-भीषणः (भयंकर), अवलोक्य-दृष्ट्वा (देखकर), आह्वयन्ति-शब्दापयन्ति (पुकारते है). आज्ञायपतु-आदेशयतु (आज्ञा दीजिए). उपाध्यायः-आचार्य शिक्षक: (शिक्षक), शलाह्या-प्रशंसनीया (प्रशंसा योग्य), सरसिरूहनाभस्य-विष्णों (विष्णु का), निःश्वस्य-दीर्ध श्वास, ग्रहीत्वा-लम्बी श्वास लेकर, स्वापत्यम्-स्वसन्ततिम् (अपनी संतान को)

सरलार्थ: –
राम – यह प्रवास बहुत लम्बा व भंयकर हो गया है (विदूषक को देखकर अकेले में) इनकी माता को छुटे हुए नाम से जानना चाहता हूँ अर्थात वास्तविक नाम से जानना चाहता है। स्त्री के बारे में पूछ ताछ उचित नहीं हैं, विशेष रूप से तपोवन में, तो फिर क्या उपाय है।
विदूषक – (अकेले मे) फिर मैं पूछ लेता हूँ। (प्रकाश में) तुम दोनों की माता का नाम क्या है? लव-उसके दो नाम है
विदूषक – कैसे?
लव – तपोवनवासो उसे “देवा” के नाम से पुकारते है एवं भगवान वामीकि ‘वधू’ इस नाम से।
राम – मित्र, इसके अलावा क्या है?
विदूषक – (पास जाकर) आज्ञा दीजिए आप।
राम – क्या इन दोनों कुमारों और हमारे वेश का वृत्तान्त
पूर्णतः समान है? (पर्दे से) इतना समय हो गया है, रामायण के गायन की तैयारी क्यों नहीं की जा रही है?
दोनों – हे राजन्! उपाध्याय का दूत हमें शीघ्रता के लिए कह रहा है।
राम – मुनि की व्यवस्था हमारे लिए भी सम्मानीय है क्योंकि-आप दोनों इस कथा का गान करने वाले हैं, तपोनिधि पुराण मुनि इस रचना के कवि हैं, ध रती पर प्रथम बार अवतरित होने वाला स्फुट वाणी का यह काव्य है और इसकी कथा कमलनाभि विष्णु से सम्बद्ध है इस प्रकार निश्चय ही यह संयोग श्रोताओं को पवित्र और आनन्दित करने वाला है।’ मित्र! सरस्वती का यह अवतार मानवों के लिए अनोखा है, मैं उस जनसाधारण के हृदय (में स्थित) भाव को सुनना चाहता हूँ! सभी सभासद बैठ जाएँ। लक्ष्मण को मेरे पास भेजा जाए। मैं भी उन दोनों के चिरकालजनित कष्ट को विहार करके दूर कर देता हूँ। (इस प्रकार सभी निकल जाते हैं।)

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 10 भूकंपविभीषिका

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Shemushi Sanskrit Class 10 Solutions Chapter 10 भूकंपविभीषिका

प्रश्न 1.
अधोलिखिताना प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-

(क) समस्तराष्ट्र कीदृशे उल्लासे मग्नम् आसीत्?
उत्तर:
समस्तराष्ट्र नृत्य गीत-वादित्राणाम् उल्लासे मग्नम् आसीत्।

(ख) भूकम्पस्य केन्द्रबिन्दुः कः जनपदः आसीत्?
उत्तर:
भूकम्पस्य केन्द्रबिन्दुः “कप्छ” इति जनपद: आसीत्।

(ग) पृथिव्याः स्खलनात् किं जायते?
उत्तर:
पृथिव्याः स्खलनात् महाकम्पनं जायते।

(घ) समग्रं विश्वं कैः आतंकित: दृश्यते?
उत्तर:
समग्रो विश्वः अशांत पञ्चतत्वैः आतंकित: दृश्यते।

(ङ) केषां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायते?
उत्तर:
ज्वालामुख पर्वतनाम विस्फोटैरपि भूकम्पो जायते।

(च) कीदृशानि भवनानि धराशायीनि जायन्ते?
उत्तर:
बहुभूमिकानि भवनानि धराशायीनि जायन्ते।

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 10 भूकंपविभीषिका

प्रश्न 2.
स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-

(क) भूकम्पविभीषिका विशेषेण कच्छजनपद ध्वंसावशेषेषु परिवर्तितवती।
उत्तर:
भूकम्पविभीषिका विशेषेण कच्छजनपदं केषु परिवर्तितवती?

(ख) वैज्ञानिकाः कथयन्ति यत् पृथिव्याः अन्तर्गर्भे, पाषाणशिलानां संघर्षणेन कम्पनं जायते।
उत्तर:
केः कथयन्ति यत् पृथिव्याः अन्तर्गर्भ, पाषाणशिलानां संघर्षणेन कम्पनं जायते?

(ग) विवशाः प्राणिनः आकाशे पिपीलिकाः इव निहन्यन्ते।
उत्तर:
विवशा: प्राणिनः कुत्र पिपीलिकाः इव निहन्यन्ते?

(घ) एतादृशी भयावहघटना गढवालक्षेत्रे घटिता।
उत्तर:
कीदृशी भयावहघटना गढवालक्षेत्रे घटिता?

(ङ) तदिदानीम् भूकम्पकारणं विचारणीयं तिष्ठति।
उत्तर:
तदिदानीम् किम् विचारणीयं तिष्ठति?

प्रश्न 3.
‘भूकम्पविषये’ पञ्चवाक्यमितम् अनुच्छेदं लिखत।
उत्तर:

  1. भौगर्मिक हिलचलैः भूकम्पः जायते।
  2. भूकम्पः प्राकृतिक आपदा इति कथ्यते।
  3. अयं (भूकम्पः) महा विनाशकारी आस्ति।
  4. मानवः भूकम्प समय कोऽपि कर्तुम् न समर्थो अस्ति।
  5. भूकम्पस्य विषये जागरूकता करणीया।

प्रश्न 4.
कोष्ठकेषु दत्तेषु धातुषु निर्देशानुसारं परिवर्तनं विधाय रिक्तस्थानानि पूरयत-

(क) समग्रं भारतम् उल्लासे मग्नः ___________। (अस् + लट् लकारे)
उत्तर:
अस्ति

(ख) भूकम्पविभीषिका कच्छजनपदं विनष्टं __________। (कृ + क्तवतु + ङीप्)
उत्तर:
कृतवती

(ग) क्षणेनैव प्राणिनः गृहविहीनाः ____________। (भू + लङ, प्रथम-पुरुषः बहुवचनम्)
उत्तर:
अभवन्

(घ) शान्तानि पञ्चतत्त्वानि भूतलस्य योगक्षेमाभ्यां ___________। (भू + लट्, प्रथम-पुरुषः बहुवचनम्)
उत्तर:
भवन्ति

(ङ) मानवाः ____________ यत् बहुभूमिकभवननिर्माण करणीयम् न वा? (प्रच्छ् + लट्, प्रथम-पुरुषः बहुवचनम्)
उत्तर:
पृच्छन्ति

(च) नदीवेगेन ग्रामाः तदुदरे _____________। (सम् + आ + विश् + विधिलिङ, प्रथम पुरुषः एकवचनम्)
उत्तर:
समविशेयुः।

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 10 भूकंपविभीषिका

प्रश्न 5.
सन्धिं/सन्धिविच्छेदं च कुरुत-
(अ) परसवर्णसन्धिनियमानुसारम्-

(क) किञ्च = __________ + च
उत्तर:
किञ्च = किम् + च

(ख) __________ = नगरम् + तु
उत्तर:
नगरन्तु = नगरम् + तु

(ग) विपन्नञ्च = ________ + _________
उत्तर:
विपन्नञ्च = विपन्नम् + च

(घ) __________ = किम् + नु
उत्तर:
किन्नु – किम् + नु

(ङ) भुजनगरन्तु = __________ + ___________
उत्तर:
भुजनगरन्तु = भुजनगरं + तु

(च) ___________ – सम् + चयः
उत्तर:
सञ्चयः = सम् + चयः

(आ) विसर्गसन्धिनियमानुसारम्-

(क) शिशवस्तु = __________ + ____________
उत्तर:
शिशवस्तु = शिशवः + तु

(ख) __________ = विस्फोटैः + अपि
उत्तर:
विस्फोटैरपि = विस्फोटः + अपि

(ग) सहस्रशोऽन्ये = ___________ + अन्ये
उत्तर:
सहस्रशोऽन्ये = सहस्त्रशः + अन्ये

(घ) विचित्रोऽयम् = विचित्रः + __________
उत्तर:
विचित्रोऽयम् = विचित्रः + अयम्

(ङ) ___________ – भूकम्पः + जायते
उत्तर:
भूकम्पोजायते = भूकम्पः + जायते

(च) वामनकल्प एव = ___________ + ____________
उत्तर:
वामनकल्प एव = वामनकल्प + एव

प्रश्न 6.
(अ) ‘क’ स्तम्भे पदानि दत्तानि ‘ख’ स्तम्भे विलोमपदानि, तयोः संयोगं कुरुत-
क – ख
सम्पन्नम् – प्रविशन्तीभिः
ध्वस्तभवनेषु – सुचिरेणैव
निस्सरन्तीभिः – विपन्नम्
निर्माय – नवनिर्मितभवनेषु
क्षणेनैव – विनाश्य
उत्तर:
क – ख
सम्पन्नम् – विपन्नम्
ध्वस्तभवनेषु – नवनिर्मितभवनेषु
निस्सरन्तीभिः – प्रविशन्तीभि
निर्माय – विनाश्य
क्षणेनैव – सुचिरेणेव

(आ) ‘क’ स्तम्भे पदानि दत्तानि ‘ख’ स्तम्भे समानार्थकपदानि तयोः संयोगं कुरुत-
क – ख
पर्याकुलम् – नष्टाः
विशीर्णाः – क्रोधयुक्ताम्
उगिरन्तः – संत्रोट्य
विदार्य – व्याकुलम्
प्रकुपिताम् – प्रकटयन्तः
उत्तर:
क – ख
पर्याकुलम् – व्याकुलम्
विशीर्णाः – नष्टाः
उगिरन्तः – प्रकटयन्तः
विदार्य – संत्रोट्य
प्रकुपिताम् – क्रोधयुक्ताम्

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प्रश्न 7.
(अ) उदाहरणमनुसृत्य प्रकृति-प्रत्यययोः विभागं कुरुत-
यथा – परिवर्तितवती – परि + वृत् + क्तवतु + ङीप् (स्त्री)

(क) धृतवान् – __________ + ___________
उत्तर:
धृतवान् – धु + क्तवत

(ख) हसन् – __________ + ___________
उत्तर:
हसन् – हस + शत

(ग) विशीर्णा – वि + शस्त्र + क्त + ___________
उत्तर:
विशीर्णा – वि + शस्त्र + क्त + टापू

(घ) प्रचलन्ती – ___________ + _____________ + शतृ + ङीप् (स्त्री)
उत्तर:
प्रचलन्ती – प्र + चल + शतृ + ङीप् (स्त्री)

(ङ) हतः – __________ + ___________
उत्तर:
हतः – हुन + क्त

(आ) पाठात् विचित्य समस्तपदानि लिखत-

(क) महत् च तत् कम्पनं = ____________
उत्तर:
महाकम्पनम्

(ख) दारुणा च सा विभीषिका = ___________
उत्तर:
दारूण विभीषिक

(ग) ध्वस्तेषु च तेषु भवनेषु = ____________
उत्तर:
ध्वस्त भवनेषु

(घ) प्राक्तने च तस्मिन् युगे = ____________
उत्तर:
प्राग्युगे

(ङ) महत् च तत् राष्ट्र तस्मिन् = ____________
उत्तर:
महाराष्ट्रे।

अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्नाः

प्रश्न 1.
पाठात् समुचित-विलोमपदानि चित्वा लिखत-
(पाठ से उचित विलोम शब्दों को चुनकर लिखिए)

(क) प्रसादः
उत्तर:
प्रकोपः

(ख) अविचलनम्
उत्तर:
संस्खलम्

(ग) मरणम्
उत्तर:
जीवनम्

(घ) अखण्डा, अखण्डिता
उत्तर:
विभाता

(च) व्यवस्थितम्
उत्तर:
विपर्यस्तम्

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प्रश्न 2.
पाठात् समुचित-पर्याय-पदानि चित्वा लिखत-

(क) कक्षौ
उत्तर:
उदरे

(ख) विचलनम्
उत्तर:
सस्खसलनम्

(ग) निर्गच्छन्तीभिज्ञः
उत्तर:
निस्सन्तीभिः

(घ) उत्पाटिताः
उत्तर:
उत्खाता:

(च) विपत्त्युिक्तम्
उत्तर:
विपन्नम्।

प्रश्न 3.
रेखाइकित-पदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(रेखांकित शब्दों के आधार पर प्रश्ननिर्माण कीजिए)

(क) धरां विदार्य बहिर्निष्क्रामति।
उत्तर:
का वदार्य वहिनिष्क्रामति?

(ख) वैज्ञानिक कथयन्ति।
उत्तर:
के कथयन्ति।

(ग) करुणकरुणं क्रन्द्रन्ति स्म।
उत्तर:
कीदृशं क्रन्दन्ति स्म?

(घ) भूमिः फालद्वये विभक्ता।
उत्तर:
का फालद्वये विभक्ता?

(च) इयं भकम्पस्य विभीषिका आसीत।
उत्तर:
इयं कस्य विभीषिका आसीत्।

योग्यताविस्तारः

भूकम्प परिचय-भूमि का कम्पन भूकम्प कहलाता है। वह बिन्दु भूकम्प का उद्गम केन्द्र कहा जाता है, जिस बिन्दु पर कम्पन की उत्पत्ति होती है। कम्पन तरंग के रूप में विभिन्न दिशाओं में आगे चलता है। ये तरंगें सभी – दिशाओं में उसी प्रकार फैलती हैं जैसे किसी शान्त तालाब में पत्थर के टुकड़ों को फेंकने से तरंगें उत्पन्न होती हैं।

धरातल पर कुछ स्थान ऐसे हैं जहा! भूकम्प प्रायः आते ही रहते हैं। उदाहरण के अनुसार- प्रशान्त महासागर के चारों ओर के प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गंग। एवं बह्मपुत्र का तटीय भाग, इन क्षेत्रों में अनेक भूकम्प आए जिनमें से कुछ तो अत्यधिक भयावह और विनाशकारी थे। सुनामी भी एक प्रकार का भूकम्पन ही है जिसमें भूमि के भीतर अत्यन्त गहराई से तीन कम्पन उत्पन्न होता है। यही कम्पन समुद्र के जल को काफी ऊँचाई तक तीव्रता प्रदान करता है। फलस्वरूप तटीय क्षेत्र सर्वाधिक प्रभावित होते हैं। सुनामी का भीषण प्रकोप 20 सितम्बर 2004 को हुआ। जिसकी चपेट में भारतीय प्रायद्वीप सहित अनेक देश आ गये। क्षिति, जल, पावक, गगन और समीर इन पष्टुचतत्वों में सन्तुलन बनाए रखकर प्राछतिक आपदाओं से बचा जा सकता है। इसके विपरीत असन्तुलित पष्ट्चतत्वों से सृष्टि विनष्ट हो सकती है?

भूकम्पविषये प्राचीनमतम्
प्राचीनः षिभिः अपि स्वस्वग्रन्थेषु भूकम्पोल्लेखः छत: येन स्पष्टं भवति यत् भूकम्पाः प्राचीनकालेऽपि आयान्ति स्मा
यथा-
वराहसंहितायाम्
क्षितिकम्पमाहुरेके मह्यन्तर्जलनिवासिसत्त्वकृतम्
भूभारखिन्नदिग्गजनिः श्वाससमुद्भवं चान्ये।
अनिलोऽनिलेन निहितः क्षितौ पतन् सस्वनं करोत्यन्ये
केचित् त्वदृष्टकारितमिदमन्ये प्राहुराचार्याः।।

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 10 भूकंपविभीषिका

मयूरचित्रे
कदाचित् भूकम्पः श्रेयसेऽपि कल्पते। एतादृशाः अपि उल्लेखाः अस्माकं साहित्ये समुपलभ्यन्ते यथा वारुणमण्डलमौशनसे-
प्रतीच्यां यदि कम्पेत वारुणे सप्तके गणे,
द्वितीययामे रात्रौ तु तृतीये वारुणं स्मृतम्।
अत्र वृष्टिश्च महती शस्यवृद्धिस्तथैव च,
प्रज्ञा मार्मरताश्चैव भयरोगविवर्जिताः ।।
उल्काभूकम्पदिग्दाहसम्भवः शस्यवृद्धये।
क्षेमारोग्यसुभिक्षार्थ वृष्टये च सुखाय च।
भूकम्पसमा एव अग्निकम्पः, वायुकम्पः, अम्बुकम्पः इत्येवमन्येऽपि भवन्ति।

Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 10 भूकंपविभीषिका Summary Translation in Hindi and English

पाठपरिचय-
हमारे वातावरण में भौतिक सुख-साधनों के साथ-साथ अनेकों आपदाए! भी लगी रहती हैं। प्राकृतिक आपदाए! जीवन को अस्त-व्यस्त कर देती हैं। कभी किसी महामारी की आपदा, बाढ़ तथा सूखे की आपदा या तूफान के रूप में भयङ्कर प्रलङ्कर प्रलय-ये सब हम अपने जीवन में देखते तथा सुनते रहते हैं। भूकम्प भी ऐसी ही आपदा है, जिस पर यहाँ दृष्टिपात किया गया है। इस पाठ के माध्यम से यह बताया गया है कि किसी भी आपदा में बिना किसी घबराहट के, हिम्मत के साथ किस प्रकार हम अपनी सुरक्षा स्वयं कर सकते हैं।

(1)

एकोत्तर द्विसहस्रखीष्टाब्दे (2001 ईस्वीये वर्षे) गणतन्त्र-दिवस-पर्वणि यदा समग्रमपि भारतराष्ट्र नृत्यगीतवादित्राणाम् उल्लासे मग्नमासीत् तदाकस्मादेव गुर्जर- राज्यं पर्याकुलं, विपर्यस्तम्, क्रन्दनविकलं विपन्नञ्च जातम्। भूकम्पस्य दारुण-विभीषिका समस्तमपि गुर्जरक्षेत्र विशेषेण च कच्छजनपदं ध्वंसावशेषु परिवर्तितवती। भूकम्पस्य केन्द्रभूतं भुजनगरं तु मृत्तिकाक्रीडनकमिव खण्डखण्डम् जातम्। बहुभूमिकानि भवनानि क्षणेनैव धराशायीनि जातानि। उत्खाता विद्युद्दीपस्तम्भाः। विशीर्णाः गृहसोपान-मार्गाः। फालद्वये विभक्ता भूमिः। भूमिग दुपरि निस्सरन्तीभिः दुर्वार-जलधाराभिः महाप्लावनदृश्यम् उपस्थितम्। सहस्रमिताः प्राणिनस्तु क्षणेनैव मृताः। ध्वस्तभवनेषु सम्पीडिता सहस्रशोऽन्ये सहायतार्थं करुणकरुणं क्रन्दन्ति स्म। हा दैव! क्षुत्क्षामकण्ठाः मृतप्रायाः केचन शिशवस्तु ईश्वरकृपया एव द्वित्राणि दिनानि जीवनं धारितवन्तः।

इयमासीत् भैरवविभीषिका कच्छ-भूकम्पस्य। पञ्चोत्तर-द्विसहस्रखीष्टाब्दे (2005 ईस्वीये वर्षे) अपि कश्मीर-प्रान्ते पाकिस्तान-देशे च धरायाः महत्कम्पनं जातम्। यस्मात्कारणात् लक्षपरिमिताः जनाः अकालकालकवलिताः। पृथ्वी कस्मात्प्रकम्पते वैज्ञानिकाः इति विषये कथयन्ति यत् पृथिव्या अन्तर्गर्भे विद्यमानाः बृहत्यः पाषाण-शिलाः यदा संघर्षणवशात् त्रुट्यन्ति तदा जायते भीषणं संस्खलनम्, संस्खलनजन्य कम्पनञ्च। तदैव भयावहकम्पनं धरायाः उपरितलमप्यागत्य महाकम्पनं जनयति येन महाविनाशदृश्य समुत्पद्यते।

शब्दार्थ:
पर्याकुलम् – परित:व्याकुलम् (चारों ओर से बेचैन)
विपर्यस्तम् – अस्तव्यस्तम् (अस्तव्यस्त)
विपन्नम् – विपनियुक्तम् (विपनिग्रस्त) मुसीबत में
दारुणविभीषिका – भयटरत्रासः (भययुक्त)
मवंसावशेषु – नाशोपरान्तम् अवशिष्टेषु (विनाश के बाद बची हुई वस्तु)
मृनिकावडनकमिव – मृनिकायाः वैडनकम् इव (मिट्टी के खिलौने के समान)
बहुभूमिकानि भवनानि – बहवः भूमिकाः येषु तानि भवनानि (बहुमंजिले मकान)
उत्खाताः – उत्पाटिताः (उखाड़े गये)
विशीर्णाः – नष्टाः (बिखर गये)
फालद्वये – खण्डद्वये (दो खण्डों में)
निस्सरन्तीभिः – निर्गच्छन्तीभिः (निकलती हुई)
दुर्वारः – दुःखेन निवारयितुं योग्यः (जिनको हटाना कठिन है)
महाप्लावनम् – महत् प्लावनम् (विशाल बाढ़)
क्षुत्क्षामकण्ठः – क्षुधा क्षामः कण्ठाः येषाम् ते (भूख से दुर्बल कण्ठ वाले)
कालकवलिताः – दिवंगताः (मृत्यु को प्राप्त हुए)
संस्खलनम् – विचलनम् (स्थान से हटना)
जनयति – उत्पनं करोति (उत्पन्न करती है)

सरलार्थ – सन् 2001 ई. में गणतन्त्र दिवस समारोह पर जब पूरा भारत नृत्य-गीत-संगीत आदि के उल्लास (हर्ष) में मग्न था, तभी अकस्मात् गुजरात राज्य पूरी तरह व्याकुल, अस्त-व्यस्त, करुणा चीखों से घिरा हुआ और आपदा से ग्रस्त हो गया। भूकम्प की भंयकर आपदा ने सारे गुजरात को विशेष रूप से कच्छ जिले को खण्डहरों में बदल दिया। भूकम्प का केंद्र भुज नगर तो मिट्टी के खिलौने की भांति चकनाचूर कर गया। बहुमंजिले भवन क्षण-भर में धराशायी हो गया। बिजली के खम्भे उखड़ गए। घर की सीढ़ियाँ व रास्ते बिखर गए। धरती दो भागों में बटॅगई। धरती के अन्दर से निकलती हुई दुर्निवार जलधाराओं से बाढ़ का दृश्य उपस्थित हो गया। हजारों प्राणी तो क्षण-भर में ही मर गए। टूटे हुए भवनों में दबे (फसे) हुए हजारों दूसरे लोग सहायता के लिए करुण स्वर पुकार रहे थे। हा दैव भूख से सूखे (दुबले) हुए गले वाले कुछ बच्चे तो ईश्वर की कृपा से ही दो-तीन दिनों तक जीवित रह पाये।

यह थी कच्छ के भूकम्प की भंयकर (भीषण) आपदा। सन् 2005 ई. में भी कश्मीर प्रांत मे और पाकिस्तान में बहुत तेज भूकम्प आया था। जिसकारण से लगभग एक लाख लोग अकाल मौत को प्राप्त हो गए। भूमि क्यों काँपती है? इस विषय में वैज्ञानिक कहते हैं कि-पृथ्वी के आंतरिक भाग में स्थित बड़ी-बड़ी चट्टानें (प्लेटें) जब आपसी रगड़ से टूटती है। तब भयंकर स्खलन (स्थान-परिवर्तन/सरकाव) और स्खलन से कम्पन उत्पन्न होता है। वहीभयानक कम्पन पृथ्वी के ऊपरी तल पर आकर भयंकर कम्पन (तरंगें) पैदा करता है जिससे महाविनाश का दृश्य पैदा हो जाता है।

(2)

ज्वालामुखपर्वतानां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायत इति कथयन्ति भूकम्पविशेषज्ञाः। पृथिव्याः गर्भे विद्यमानोऽग्निर्यदा खनिजमृत्तिकाशिलादिसञ्चयं क्वथयति तदा तत्सर्वमेव लावारसताम् उपेत्य दुर्वारंगत्या धरा पर्वत वा विदार्य बहिनिष्क्रामति। धूमभस्मावृतं जायते तदा गगनम्। सेल्सियश-ताप-मात्राया अष्टशताईतामुपगतोऽयं लावारसो यदा नदीवेगेन प्रवहति तदा पार्श्वस्थग्रामा नगराणि वा तदुदरे क्षणेनैव समाविशन्ति।

निहन्यन्ते च विवशाः प्राणिनः। ज्वालामुगिरन्त एते पर्वता अपि भीषणं भूकम्यं जनयन्ति। यद्यपि दैवः प्रकोपो भूकम्पो नाम, तस्योपशमनस्य न कोऽपि स्थिरोपायो दृश्यते। प्रकृतिसमक्षमद्यापि विज्ञानगर्वितो मानवः वामनकल्प एव तथापि भूकम्परहस्यज्ञाः कथयन्ति यत् बहुभूमिकभवननिर्माण न करणीयम्। तटबन्ध निर्माय बृहन्मानं नदीजलमपि नैकस्मिन् स्थले पुञ्जीकरणीयम् अन्यथा असन्तुलनवशाद् भूकम्पस्सम्भवति। वस्तुतः शान्तानि एव पञ्चतत्त्वानि क्षितिजलपावकसमीरगगनानि भूतलस्य योगक्षेमाभ्यां कल्पन्ते। अशान्तानि खलु तान्येव महाविनाशम् उपस्थापयन्ति।

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 10 भूकंपविभीषिका

शब्दार्थ:
भूकम्पविशेषज्ञाः – भुवः कम्पनरहस्यस्य ज्ञातार: (भूमि के कम्पन के रहस्य को जानने वाले)
खनिजम् – उत्खननात् प्राप्तं द्रव्यम् (भूमि को खोदने से प्राप्त वस्तु)
क्वथयति – उनप्तं करोति (उबालती है, तपाती है)
विदार्य – विदीणष्ट्वद्व छत्वा, भित्वा (फाड़कर)
पार्श्वस्थ-ग्रामाः – निकटस्थः ग्रामाः (समीप के गाँव)
उदरे – कुक्षौ (पेट में)
समाविशन्ति – अन्तः गच्छन्ति (समा जाती हैं)
उगिरन्तः – प्रकटयन्तः (प्रकट करते हुए)
उपशमनस्य – शान्तेः (शान्त करने का)
वामनकल्पः – वामनसदृशः (बौना)
निर्माय – निर्माणं छत्वा (बनाकर)
पुञ्जीकरणीयम् – संग्रहणीयम् (इकट्ठा करना चाहिए)
योगक्षेमाभ्याम् – अप्राप्तस्य प्राप्तिः योगः, प्राप्तस्य रक्षणं क्षेमः ताभ्याम् (अप्राप्त की प्राप्ति योग है प्राप्त की रक्षा क्षेम है-उन दोनों के लिए)

सरलार्थ- भूकम्प विशेषज्ञ कहते है कि …….. पवंतो के विस्फाटा से भी …….. भीतर स्थित अग्नि जब खनिल-मिट्टी चट्टानों आदि को एक साथ दहकाती है तब वह सारा लावा बनकर अनिवारवीय गति (वेग) से धरती या पर्वत को फाड़कर बाहर निकालता है तब आकाश धुएँ तथा राख से ढक जाता है। सेल्सियस ताप की मात्रा 800 डिग्री होने पर लावा जब नदी के वेग (रफ्तार) से बहता है तब पास में स्थित गांव या शहर उसके पेट (गर्भ) में क्षणभर में ही समा जाते हैं।

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 10 भूकंपविभीषिका

सरलार्थ – और विवश प्राणी मारे जाते है। ज्वाला को उगलते हुए ये पर्वत भी भयंकर भूकम्प उत्पन्न कर देते है। यद्यपि भूकम्प भाग्य का प्रकोप है। इसे शान्त करने का कोई भी स्थायी उपाय दिखाई नहीं देता है। प्रकति के सामने विज्ञान के घमण्ड वाला मानव आज भी बौना ही है फिर भी भूकम्प का रहस्य जानने वाले वैज्ञानिक कहते है कि बहुमंजिला भवनो का निर्माण नहीं करना चाहिए। तट को बाँधकर (बाँध) निर्माण के लिए नदी का जल भी एक स्थान पर सञ्चित नहीं करना चाहिए। अन्यथा असंतुलन के कारण भूकम्प पैदा हो सकते हैं वस्तुतः पञ्चतत्व- ‘पृथ्वी,जल, अग्नि, वायु तथा आकाश’ शान्त रहकर ही भूतल का योग (अप्राप्त की प्राप्ति) तथा क्षेम (प्राप्त की रक्षा) कर सकते हैं वे (पञ्चतत्व) ही अशांत होकर महाविनाश को पैदा करते हैं।

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला

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Shemushi Sanskrit Class 10 Solutions Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत

(क) कृषकः किं करोति स्म?
उत्तर:
कृषक: बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं करोति स्म।

(ख) माता सुरभिः किमर्थ अश्रूणि मुञ्चति स्म?
उत्तर:
माता सुरभिः तं दुर्बलं वृषभं दृष्ट्वा अश्रूणि मुञ्चति स्म।

(ग) सुरभिः इन्द्रस्य प्रश्नस्य किमुत्तरं ददाति?
उत्तर:
सुरभिः इन्द्रस्य प्रश्नस्य उत्तरं ददाति यत्, दुर्बले सुते मातुः अधिका कृपा सहजैव।

(घ) मातुः अधिका कृपा कस्मिन् भवति?
उत्तर:
मातुः अधिका कृपा दुर्बले सुते भवति।

(ङ) इन्द्रः दुर्बलवृषभस्य कष्टानि अपाकर्तुम् कि कृतवान्?
उत्तर:
इन्द्रः दुर्बलवृषभस्य कष्टानि अपाकर्तुम् प्रवर्षः (वृष्टिः ) कृतवान्।

(च) जननी कीदृशी भवति?
उत्तर:
जननी तुल्य वत्सला भवति।

(छ) पाठेऽस्मिन् कयोः संवादः विद्यते?
उत्तर:
पाठेऽस्मिन् सुरभीन्द्रयोः संवाद: वियते?

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला

प्रश्न 2.
‘क’ स्तम्भे दत्तानां पदानां मेलनं ‘ख’ स्तम्भे दत्तैः समानार्थकपदैः कुरुत

क स्तम्भ – ख स्तम्भ
(क) कृच्छ्रेण – (i) वृषभः
(ख) चक्षुभ्याम् – (ii) वासवः
(ग) जवेन – (iii) नेत्राभ्याम्
(घ) इन्द्रः – (iv) अचिरम्
(ङ) पुत्राः – (v) द्रुतगत्या
(च) शीघ्रम् – (vi) काठिन्येन
(छ) बलीवर्दः – (vii) सुताः
उत्तर:
(क) कृच्छ्रेण – काठिनयेन्
(ख) चक्षुभ्याम् – नेत्राभ्याम्
(ग) जवेन – दतगत्या
(घ) इन्द्रः – वासवः
(ङ) पुत्राः – सुताः
(च) शीघ्रम् – अचिरम्
(छ) बलीवर्दः – वृषभः

प्रश्न 3.
स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत

(क) सः कृच्छ्रेण भारम् उद्वहति।
उत्तर:
सः केन् भारम् उदवहति?

(ख) सुराधिपः ताम् अपृच्छत्।
उत्तर:
कः ताम् अपृच्छत?

(ग) अयम् अन्येभ्यो दुर्बलः।
उत्तर:
अयम् केभ्यो दुर्बल:?

(घ) धेनूनाम् माता सुरभिः आसीत्।
उत्तर:
काम् माता सुरभिः आसीत?

(ङ) सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि सा दुःखी आसीत्।
उत्तर:
केषु पुत्रेषु सत्स्वपि सा दुःखी आसीत?

प्रश्न 4.
रेखांकितपदे यथास्थानं सन्धि विच्छेद वा कुरुत

(क) कृषकः क्षेत्रकर्षणं कुर्वन् + आसीत्
उत्तर:
कुर्वन्नासीत

(ख) तयोरेक: वृषभ: दुर्बलः आसीत्।
उत्तर:
तयोः + एकः

(ग) तथापि वृषः न + उत्थितः
उत्तर:
नोत्थितः

(घ) सत्स्वपि बहुषु पुत्रेषु अस्मिन् वात्सल्यं कथम्?
उत्तर:
सत्सु+अपि

(ङ) तथा + अपि + अहम् + एतस्मिन् स्नेहम् अनुभवामि।
उत्तर:
तथाप्याहमेतस्मिन्

(च) मे बहूनि + अपत्यानि सन्ति।
उत्तर:
बहून्यपत्यानि

(छ) सर्वत्र जलोपप्लव: संजात:।
उत्तर:
जल+उपप्लव:

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला

प्रश्न 5.
अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखांकितसर्वनामपद कस्मै प्रयुक्तम्

(क) सा च अवदत् भो वासव! अहम् भृशं दुःखिता अस्मि ।
उत्तर:
सुरभिः

(ख) पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहम् रोदिमि।
उत्तर:
सुरभिः

(ग) सः दीनः इति जानन् अपि कृषक: तं पीडयति।
उत्तर:
वृषभः (दुर्बल)

(घ) मे बहूनि अपत्यानि सन्ति।
उत्तर:
सुरभिः

(ङ) सः च ताम् एवम् असान्त्वयत्।
उत्तर:
इन्द्रः

(च) सहस्रेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन् प्रीतिः अस्ति।
उत्तर:
सुरभिः

प्रश्न 6.
उदाहरणमनुसृत्य पाठात् चित्वा प्रकृति प्रत्यय विभाग कुरुतः

यथा – सुरभिवचनं श्रुत्वा इन्द्रः विस्मितः। (श्रु+क्त्वा)
(क) बलीवाभ्या क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्
उत्तर:
कुर्वन् + शत् + आसीत

(ख) स्वपुत्रं दृष्ट्वा सर्वधेनूना मातुः नेत्राभ्यां अश्रूणि आविरासन्।
उत्तर:
दृश् + कत्वा

(ग) सः दीनः इति जानन् अपि पीडयति।
उत्तर:
जन् + शत

(घ) धुर वोढुं सः न शक्नोति।
उत्तर:
वोड़ + तुमुन (उदधातु)

(ङ) विशिष्य आत्मवेदनानुभवामि।
उत्तर:
वि + शिष् + ल्यप्

(च) वृषभो नीत्वा गृहमगात्।
उत्तर:
नी + कत्वा

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प्रश्न 7.
‘क’ स्तम्भे विशेषणपदं लिखितम्, ‘ख’ स्तम्भे पुनः विशेष्यपदम्। तयोः मेलनं कुरुत

क स्तम्भ – ख स्तम्भ
(क) कश्चित् – (i) वृषभम्
(ख) दुर्बलम् – (ii) कृपा
(ग) क्रुद्धः – (iii) कृषीवल:
(घ) सहस्राधिकेषु – (iv) आखण्डल:
(ङ) अभ्यधिका – (v) जननी
(च) विस्मितः – (vi) पुत्रेषु
(छ) तुल्यवत्सला – (vii) कृषक:
उत्तर:
(क) – (vii)
(ख) – (i)
(ग) – (iii)
(घ) – (vi)
(ङ) – (ii)
(च) – (iv)
(छ) – (v)

योग्यताविस्तारः

प्रस्तुत पाठ्यांश महाभारत से उद्धृत है, जिसमें मुख्यतः व्यास द्वारा धृतराष्ट्र को एक कथा के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि तुम पिता हो और एक पिता होने के नाते अपने पुत्रों के साथ-साथ अपने भतीजों के हित का ख्याल रखना भी उचित है। इस प्रसंग में गाय के मातृत्व की चर्चा करते हुए गोमाता सुरभि और इन्द्र के संवाद के माध्यम से यह बताया गया है कि माता के लिए सभी सन्तान बराबर होती हैं। उसके हृदय में सबके लिए समान स्नेह होता है। इस कथा का आधार महाभारत, वनपर्व, दशम अध्याय, श्लोक संख्या 8 से श्लोक संख्या 16 तक है। महाभारत के विषय में एक श्लोक प्रसिद्ध है,

धर्मे अर्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।
यदिहास्ति तवन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् क्वचित् ।।

अर्थात्- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन पुरुषार्थ-चतुष्टय के बारे में जो बातें यहाँ हैं वे तो अन्यत्र मिल सकती हैं, पर जो कुछ यहाँ नहीं है, वह अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं है।
उपरोक्त पाठ में मानवीय मूल्यों की पराकाष्ठा दिखाई गई है। यद्यपि माता के हृदय में अपनी सभी सन्ततियों के प्रति समान प्रेम होता है, पर जो कमजोर सन्तान होती है उसके प्रति उसके मन में अतिशय प्रेम होता है।

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मातृमहत्त्वविषयक श्लोक
नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राणं, नास्ति मातृसमा प्रिया
– वेदव्यास

उपाध्यायान्वशाचार्य, आर्चायेभ्यः शतं पिता।
सहस्रं तु पितृन् माता, गौरवेणातिरिच्यते
-मनुस्मृति

माता गुरुतरा भूमेः, खात् पितोच्चतरस्तथा।
मनः शीघ्रतरं वातात्, चिन्ता बहुतरी तृणात्।।
– महाभारत

निरतिशयं गरिमाणं तेन जनन्याः स्मरन्ति विद्वांसः।
यत् कमपि वहति गर्भे महतामपि स गुरुर्भवति।।

भारतीय संस्कृति में गौ का महत्त्व अनादिकाल से रहा है। हमारे यहाँ सभी इच्छित वस्तुओं को देने की क्षमता गाय में है, इस बात को कामधेनु की संकल्पना से समझा जा सकता है। कामधेनु के बारे में यह माना जाता है कि उनके सामने जो भी इच्छा व्यक्त की जाती है वह तत्काल फलवती हो जाती है।

काले फलं यल्लभते मनुष्यो
न कामधेनोश्च समं द्विजेभ्यः

कन्यारवानां करिवाजियुक्तैः
शतैः सहस्रैः सततं द्विजेभ्यः

दत्तैः फलं यल्लभते मनुष्यः
समं तथा स्यान्नतु कामधेनोः।।

गाय के महत्त्व के संदर्भ में महाकवि कालिदास के रघुवंश में, सन्तान प्राप्ति की कामना से ग़जा दिलीप द्वारा ऋषि वशिष्ठ की कामधेनु नन्दिनी की सेवा और उनकी प्रसन्नता से प्रतापी पुत्र प्राप्त करने की कथा भी काफी प्रसिद्ध है। आज भी गाय की उपयोगिता प्राय: सर्वस्वीकृत ही है।

एकत्र पृथ्वी सर्वा, सशैलवनकानना।
तस्याः गौायसी, साक्षादेकत्रोभयतोमुखी।
गावो भूतं च भव्यं च, गावः पुष्टिः सनातनी।
गावो लक्षम्यास्तथाभूतं, गोषु दत्तं न नश्यति

Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला Summary Translation in Hindi and English

पाठपरिचय – यह कथा महाभारत के वनपर्व से ली गई है महाभारत में अनेक ऐसे प्रसंग है जिसकी आवश्सयकता आज के युग में हो यह कथा केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं अपितु जीव जन्तुओं के प्रति भी समदृष्टि (समान भाव) पर बल देती है। समाज में यह देखा गया है कि कमजोर व दुर्बल जीवों के प्रति माँ की ममता प्रगाढ़ होती है। यह पाठ इसी माँ की ममता पर अभिप्रेरित हैं।

1. कश्चित् कृषक: बलीवभ्या क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्। तयो : बलीवर्दयो : एकः शरीरेण दुर्बल: जवेन गन्तुमशक्तश्चासीत्। अतः कृषक: तं दुर्बल वृषभं तोदनेन नुद्यमानः अवर्तत। सः ऋषभः हलमूदवा गन्तुमशक्तः क्षेत्रे पपात। क्रुद्धः कृषीवल: तमुत्थापयितुं बहुवारम् यत्नमकरोत्। तथापि वृषः नोत्थितः।
भूमौ पतिते स्वपुत्रं दृष्ट्वा सर्वधनूनां मातुः सुरभे: नेत्राभ्यामश्रूणि आविरासन्। सुरभेरिमामवस्थां दृष्ट्वा सुराधिपः तामपृच्छत्-” अयि शुभे! किमेव रोदिषि? उच्यताम्” इति। सा च

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विनिपातो न वः कश्चित् दृश्यते त्रिदशाधिपः।
अहं तु पुत्र शोचामि, तेन रोदिमि कौशिक!

“भो वासव! पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि। स: दीन इति जानन्नपि कृषक: तं बहुधा पीडयति। सः कृच्छ्रेण भारमुद्वहति। इतरमिव धुरं वोढुं सः न शक्नोति। एतत् भवान् पश्यति न?” इति प्रत्यवोचत्।

शब्दार्थ:
बलीवदाभ्याम् – वृषभाभ्याम् (दो बैलों से)
क्षेत्रकर्षणम् – क्षेत्रस्य कर्षणम् (खेत की जुताई)
जवेन – तीव्रगत्या (तीव्रगति से)
तोदनेन – कष्टप्रदानेन (कष्ट देने से)
नुद्यमानः – बलेन नीयमानः (धकेला जाता हुआ, हाँका जाता हुआ)
हलमूढ्वा – हलम् आदाय (हल उठाकर, हल होकर)
पपात – भूमी अपतत् (गिर गया)
कृषीवल: – कृषक: (किसान)
उत्थापयितुम – उपरि नेतुम् (उठाने के लिए)
वृषः – वृषभः (बैल)
धेनूनाम् – गवाम् (गायों की)
नेत्राभ्याम् – चक्षुाम्, नयनाभ्याम् (दोनों आँखों से)
अश्रूणि – नयनजलम् (आँसू)
आविरासाविरासन् – आगताः (आने लगे, आए)
सुराधिपः – सुराणां राजा. (देवताओं के राजा) देवानाम् अधिपः
उच्यताम् – कथ्यताम् (कहें. कहा जाए)
वासव – इन्द्रः, देवराजः (इन्द्र)
कृच्छ्रेण – काठिन्येन (कठिनाई से)
इतरमिव – भिन्नम् इव (दूसरों के समान)
धुरम् – धुरम् (जुए को (गाडी के जुए का वह भाग) जो बेलों के कंधों पर रखा रहता है)
वोढुम् – वहनाय योग्यम् (ढोने के लिए)
प्रत्यवोचत – उत्तरं दत्तवान् (जवाब दिया)

सरलार्थ: –
(किसी समय) कोई किसान दो बैलों से खेत की जुताई कर रहा था। उनके दो बैलों में से एक शरीर से तीव्रगति से कमजोर होता जा रहा था अतः किसान उस कमजोर बैल को कष्ट देते हुए हॉका जा रहा था वह बैल हल को उठाने में असक्षम होता हुआ खेत में गिर गया। क्रोधित किसान ने उरुको उठाने की कितनी ही बार कोशिश की। फिर भी वह नहीं उठा। भूमि पर पड़े हुए अपने पत्र को देखकर सभी गायों की माता सुरभि आँखो में आँसू आने दशा में देखकर राजा लगे। सुरभि की इस दशा में देखकर राजा इन्द्र ने पूछाः “हे सुरभि क्यों इस प्रकार से रही हो? कहो।

ऐसा और वह है कोशिक (इन्द्र) उस के द्वारा गिराया हुआ वह (बैल) क्या आपको नहीं दिख रहा है में (प्रकति माता) तो उस पुत्र के लिए रो रही है। हे वासव (इन्द्र) पुत्र की दीन हीन दशा देखकर से रही हूँ। वह कमजोर है जानते हुए भी किसान उस (बैल) को कष्ट दे रहा है वह कठिनाई से भार उठा पा रहा है दूसरे बैल की तरह धुरी (जुई का भार नहीं उठा पा रहा है ऐसा आप नहीं देख रहे है क्या “ऐसा जवाब दिया।

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2. “भद्रे! नूनम्। सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन्नेव एतादृशं वात्सल्यं कथम्?” इति इन्द्रेण पृष्टा सुरभिः प्रत्यवोचत्

यदि पुत्रसहस्र मे, सर्वत्र सममेव मे।
दीनस्य तु सतः शक्र! पुत्रस्याभ्यधिका कृपा।।

“बहून्यपत्यानि मे सन्तीति सत्यम्। तथाप्यहमेतस्मिन् पुत्रे विशिष्य आत्मवेदनामनुभवामि। यतो हि अयमन्येभ्यो दुर्बलः। सर्देष्वपत्येषु जननी तुल्यवत्सला एव। तथापि दुर्बले सुते मातुः अभ्यधिका कृपा सहजैव” इति। सुरभिवचनं श्रुत्वा भृशं विस्मितस्याखण्डलस्यापि हृदयमद्रवत्। स च तामेवमसान्त्वयत्-” गच्छ वत्से! सर्व भद्रं जायेत।”
अचिरादेव चण्डवाढेन मेघरवैश्च सह प्रवर्षः समजायत। पश्यतः एव सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः।
कृषक: हर्षतिरेकेण कर्षणाविमुखः सन् वृषभौ नीत्वा गृहमगात्।

अपत्येषु च सर्वेषु जननी तुल्यवत्सला।
पुत्रे दीने त, सा माता कृपादई दया भवते ।।

शब्दार्थ:
नूनम् – निश्चयेन (निश्चय ही)
सहस्रम् – दशशतम् (हजार)
वात्सल्यम् – स्नेहभावः (वात्सल्य) (प्रेमभाव)
अपत्यानि – सन्ततयः (सन्तान)
विशिष्य – विशेषतः (विशेषकर)
वेदनाम् – पीड़ाम्, दुःखम् (कष्ट को)
तुल्यवत्सला – समस्नेहयुता (समान रूप से प्यार करने वाली)
सुतः – पुत्र:/तनयः (पुत्र)
भृशम् – अत्यधिकम् (बहुत अधिक)
आखण्डलस्य – देवराजस्य इन्द्रस्य (इन्द्र का)
असान्त्वयत् – सान्त्वना दत्तवान्, (सान्त्वना दी) (दिलासा दी) समाश्वासयत्
अचिरात् – शीघ्रम् (शीघ्र ही)
चण्डवातेन – वेगयुता वायुना (प्रचण्ड (तीव्र) हवा से)
मेघरवैः – मेघस्य गर्जनेन (बादलों के गर्जन
प्रवर्षः – वृष्टिः (वर्षा)
जलोपप्लवः – जलस्य विपत्तिः (जलसंकट) (उपप्लवः विपत्ति)
कर्षणविमुखः – कर्षणकर्मणा विमुखः (जोतने के काम से विमुख होकर)
वृषभौ – वृषौ (दोनों बैलों को)
अगात् – गतवान्, अगच्छत् (गया)
त्रिदशाधिपः – त्रिदशानाम्
अधिप: – इन्द्रः,(देवताओं का राजा-इन्द्र)
प्रतोदेन – अत्यधिवेन कष्टप्रददण्डेन (कष्टदायक डण्डे से)
अभिनन्तम् – मारयन्तम् (मारते हुए)
लाङ्गलेन – हलेन (हल से)
निपीडितम् – पीड़ितोऽभवत् (पीड़ित होते हुए)

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला

सरलार्थ: –
हे भेद्र (सुरभि) निश्चय ही हजारों पुत्र आपके है, फिर इस पुत्र पर इतना प्यार क्यों इस प्रकार इन्द्र ने सुरभि से पूछा-और सुरभि ने इस प्रकार उत्तर दिया।
” यदि मेरे हजारों पुत्र है तो वे सब मेरे लिए समान है लेकिन हे इन्द्र! कमजोर पुत्र (गरीब) पुत्र पर माँ की ममता (कृपा) अधिक होती है।”
“मेरे बहुत सी संताने है यह सत्य है। फिर भी इस पुत्र में मेरी विशेष आत्म वेदना अनुभव कर रही हूँ क्यों कि यह दूसरों से दुर्बल (कमजोर) है। सभी संतानों पर माँ की ममता रहती है फिर भी दुर्बल संतान पर माँ की ममता अधि क होती है यह सहज है।”

सुरभि के वचन सुनकर बहुत अधिक विस्मित इन्द्र का हृदय भी द्रवित हो गया और इन्द्र ने सुरभि को सांत्वना दी (दिलासा दी) है वत्स जाओं सब ठीक हो जाएगा। शिघ्र ही प्रचंड वायु के वेग से बादलों की गर्जना के साथ वर्षा हो गयी सभी और जल ही जल हो गया। किसान प्रसन्न होकर जोतने के काम से विमुख होकर दोनों बैलों को घर ले आया।

श्लोकान्वयः सर्वेषु अपव्येषु जननी तुल्य वत्सला च (पर) दीने पुत्रे (तु) माता आई हृद्धया कृपा भवेत “सभी संतानों पर माँ की ममता समान होती है लेकिन कमजोर पर मां की कृपा आर्द्रद्धय (विशेष) होती है।”

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