CBSE Class 11

NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 14 (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 14 Movements of Ocean Water (Hindi Medium)

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[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)

प्र० 1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
(i) महासागरीय जल की ऊपर एवं नीचे गति किससे संबंधित है?
(क) ज्वार
(ख) तरंग
(ग) धाराएँ।
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर- (क) ज्वार

(ii) वृहत ज्वार आने का क्या कारण है?
(क) सूर्य और चंद्रमा का पृथ्वी पर एक ही दिशा में गुरुत्वाकर्षण बल
(ख) सूर्य और चंद्रमा द्वारा एक दूसरे की विपरीत दिशा से पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण बल
(ग) तटरेखा का दंतुरित होना
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर- (क) सूर्य और चंद्रमा का पृथ्वी पर एक ही दिशा में गुरुत्वाकर्षण बल।

(iii) पृथ्वी तथा चंद्रमा की न्यूनतम दूरी कब होती है?
(क) अपसौर
(ख) उपसौर
(ग) उपभू
(घ) अपभू
उत्तर- (ग) उपभू

(iv) पृथ्वी उपसौर की स्थिति कब होती है?
(क) अक्तूबर
(ख) जुलाई
(ग) सितंबर
(घ) जनवरी
उत्तर- (घ) जनवरी

प्र० 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए।
(i) तरंगें क्या हैं?
उत्तर- तरंगें वास्तव में ऊर्जा हैं, जल नहीं, जो कि महासागरीय सतह के आर-पार गति करती हैं। तरंगों में जल-कण छोटे वृत्ताकार रूप में गति करते हैं। वायु जल को ऊर्जा प्रदान करती है, जिससे तरंगें उत्पन्न होती हैं। वायु के कारण तरंगें महासागर में गति करती हैं। जैसे ही एक तरंग महासागरीय तट पर पहुँचती है, इसकी गति कम हो जाती है। बड़ी तरंगें खुले महासागरों में पाई जाती हैं। तरंगें जैसे ही आगे की ओर बढ़ती हैं, बड़ी होती जाती हैं।

(ii) महासागरीय तरंगें ऊर्जा कहाँ से प्राप्त करती हैं?
उत्तर- वायु जल को ऊर्जा प्रदान करती है, जिससे तरंगें उत्पन्न होती हैं। वायु के कारण तरंगें महासागर में गति करती हैं तथा ऊर्जा तटरेखा पर निर्मुक्त होती है। तरंगें वायु से ऊर्जा को अवशोषित करती हैं। अधिकतर तरंगें वायु के जल के विपरीत दिशा में गतिमान होने से उत्पन्न होती हैं।

(iii) ज्वार-भाटा क्या है?
उत्तर- चंद्रमा एवं सूर्य के आकर्षण के कारण दिन में एक बार या दो बार समुद्र तल के नियतकालिक उठने या गिरने को ज्वार-भाटा कहा जाता है। जब समुद्र का जल समुद्र तल से ऊपर उठता है तो उसे ज्चार कहा जाता है और जब समुद्र का जल नीचे की ओर होता है तो उसे भाटा कहा जाता है।

(iv) ज्वार-भाटा उत्पन्न होने के क्या कारण हैं?
उत्तर- चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के कारण तथा कुछ हद तक सूर्य के गुरुत्वाकर्षण द्वारा ज्वार-भाटाओं की उत्पत्ति होती है। दूसरा कारक अपकेंद्रीय बल है जो कि गुरुत्वाकर्षण को संतुलित करता है। गुरुत्वाकर्षण बल तथा अपकेंद्रीय बल दोनों मिलकर पृथ्वी पर दो महत्त्वपूर्ण ज्वार-भाटाओं को उत्पन्न करने के लिए उतरदायी हैं। चंद्रमा की तरफ वाले पृथ्वी के भाग पर एक ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है, जब विपरीत भाग पर चंद्रमा का गुरुत्वीय आकर्षण बल उसकी दूरी के कारण कम होता है तब अपकेंद्रीय बल दूसरी तरफ ज्वार उत्पन्न करता है।

(v) ज्वार-भाटा नौसंचालन से कैसे संबंधित है?
उत्तर- ज्वार-भाटा नौसंचालकों व मछुआरों को उनके कार्य-संबंधी योजनाओं में मदद करता है। नौसंचालन में ज्वारीय प्रवाह का अत्यधिक महत्त्व है। ज्वार की ऊँचाई बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है, विशेषकर नदियों के किनारे वाले बंदरगाहों पर एवं ज्वारनदमुख के भीतर, जहाँ प्रवेश द्वार पर छिछली रोधिकाएँ होते हैं जो कि नौकाओं एवं जहाजों को बंदरगाह में प्रवेश करने से रोकती हैं। जिस नदी के समुद्री तट के मुहाने पर | बंदरगाह हो और जब ज्वार आता है तो बड़े-बड़े जहाज बंदरगाह में प्रवेश कर जाते हैं। इसका उदाहरण भारत के हुगली नदी के तट पर स्थित कोलकाता बंदरगाह है।

प्र० 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए।
(i) जलधाराएँ तापमान को कैसे प्रभावित करती हैं? उत्तर-पश्चिम यूरोप के तटीय क्षेत्रों के तापमान को ये किस प्रकार प्रभावित करती हैं?
उत्तर- जलधाराएँ अधिक तापमान वाले क्षेत्रों से कम तापमान वाले क्षेत्रों की ओर तथा इसके विपरीत कम तापमान वाले क्षेत्रों से अधिक तापमान वाले क्षेत्रों की ओर बहती हैं। जब ये धाराएँ एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर बहती हैं तो ये उन क्षेत्रों के तापमान को प्रभावित करती हैं। किसी भी जलराशि के तापमान का प्रभाव उसके ऊपर की वायु पर पड़ता है। इसी कारण विषुवतीय क्षेत्रों से उच्च अक्षांशों वाले ठंडे क्षेत्रों की ओर बहने वाली जलधाराएँ उन क्षेत्रों की वायु के तापमान को बढ़ा देती हैं। उदाहरणार्थ गर्म उत्तरी अटलांटिक अपवाह जो उत्तर की ओर यूरोप के पश्चिमी तट की ओर बहती है। यह ब्रिटेन और नार्वे के तट पर शीत ऋतु में भी बर्फ नहीं जमने देती। जलधाराओं का जलवायु पर प्रभाव और अधिक स्पष्ट हो जाता है, जब आप समान अक्षांशों पर स्थित ब्रिटिश द्वीप समूह की शीत ऋतु की तुलना कनाडा के उत्तरी-पूर्वी तट की शीत ऋतु से करते हैं। कनाडा का उत्तरी-पूर्वी तट लेब्राडोर की ठंडी धारा के प्रभाव में आ जाता है। इसलिए यह शीत ऋतु में बर्फ से ढका रहता है।

(ii) जलधाराएँ कैसे उत्पन्न होती हैं?
उत्तर- महासागरीय जलधाराओं को उत्पन्न करने वाले कारक निम्न हैं
(क) प्रचलित पवनें – धाराओं को उत्पन्न करने में प्रचलित पवनों का बहुत बड़ा योगदान होता है। प्रचलित पवनें सदा एक ही दिशा में चलती हैं। ये सागर के ऊपरी तल पर से गुजरते समय जल को अपनी घर्षण शक्ति से सदा आगे धकेलती हैं। और धाराओं को जन्म देती हैं।

(ख) तापमान में भिन्नता – गर्म जल हल्का होकर फैलता है, इसलिए उसका तल ऊँचा हो जाता है। ठंडा जल भारी होता है, इसलिए नीचे बैठ जाता है। इस प्रकार तापमान में भिन्नता के कारण सागरीय जल के तल में अंतर आ जाता है और महासागरीय धाराओं का जन्म होता है।

(ग) लवणता में अंतर – अधिक लवणता वाला जल भारी होता है, इसलिए नीचे बैठ जाता है। उसका स्थान लेने के लिए कम लवणता तथा घनत्व वाला जल आता है और एक धारा बन जाती है।

(घ) वाष्पीकरण – जिन स्थानों पर वाष्पीकरण अधिक होता है, वहाँ पर जल का तल नीचे हो जाता है। और संतुलन बनाए रखने के लिए वहाँ अन्य क्षेत्रों से जल एकत्रित होना शुरू हो जाता है। इस प्रकार एक धारा उत्पन्न होती है।

(ङ) भूघूर्णन – पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करती है, जिससे कोरिऑलिस बल उत्पन्न हो जाता है। कोरिऑलिस बल के प्रभावाधीन बहता हुआ जल मुड़कर दीर्घ वृत्ताकार मार्ग का अनुसरण करता है, जिसे गायर्स कहते हैं। इन गायर्स में जल का परिसरण उत्तरी गोलार्ध में घड़ी की सुइयों के अनुकूल तथा दक्षिणी गोलार्ध में घड़ी की सुइयों के प्रतिकूल होता है। अतः फेरेल के नियम के अनुसार उत्तरी गोलार्ध में धाराएँ अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्ध में अपनी बाईं ओर मुड़ जाती हैं। इससे नई धाराएँ बनती हैं।

(च) तटरेखा की आकृति – तटरेखा की आकृति का महासागरीय धाराओं की प्रवाहे-दिशा पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उत्तरी हिंद महासागर में पैदा होने वाली धाराएँ भारतीय प्रायद्वीप की तट रेखा का अनुसरण करती हैं।

(छ) ऋतु परिवर्तन – उत्तरी हिंद महासागर में समुद्री धाराओं की दिशा ऋतु परिवर्तन के साथ बदल जाती है। शीत ऋतु में मानसून ड्रिफ्ट की दिशा पूर्व से पश्चिम तथा ग्रीष्म ऋतु में पश्चिम से पूर्व की ओर होती है। हिंद महासागर में भूमध्य रेखीय विपरीत धारा केवल शीत ऋतु में ही होती है और
भूमध्यरेखीय धारा केवल ग्रीष्म ऋतु में बहती हैं।

परियोजना कार्य-
(i) किसी झील या तालाब के पास जाएँ तथा तरंगों की गति का अवलोकन करें। एक पत्थर फेंकें एवं देखें कि तरंगें कैसे उत्पन्न होती हैं।
(ii) एक ग्लोब या मानचित्र लें, जिसमें महासागरीय धाराएँ दर्शाई गई हैं, यह भी बताएँ कि क्यों कुछ जलधाराएँ गर्म हैं व अन्य ठंडी। इसके साथ ही यह भी बताएँ कि निश्चित स्थानों पर यह क्यों विक्षेपित होती हैं। कारणों का विवेचन करें।
उत्तर- छात्र स्वयं करें।

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NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 3 Environment and Society (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 3 Environment and Society (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 3 Environment and Society (Hindi Medium)

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पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न [NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED]

प्र०1. पारिस्थितिकी से आपका क्या अभिप्राय है? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  • पारिस्थितिकी प्रत्येक समाज का आधार होती है। ‘पारिस्थितिकी’ शब्द से अभिप्राय एक ऐसे जाल से है जहाँ भौतिक और जैविक व्यवस्थाएँ तथा प्रक्रियाएँ घटित होती हैं और मनुष्य भी इसका एक अंग होता है।
  • पर्वत तथा नदियाँ, मैदान तथा सागर और जीव-जंतु ये सब पारिस्थितिकी के अंग हैं।
  • किसी स्थान की पारिस्थितिकी पर वहाँ के भूगोल तथा जलमंडल की अंत:क्रियाओं का भी प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए मरुस्थलीय प्रदेशों में रहने वाले जीव-जंतु अपने आपको वहाँ की पारिस्थितियों के अनुरूप; जैसे कम वर्षा, पथरीली अथवा रेतीली मिट्टी तथा अत्यधिक तापमान में अपने आप ढाल लेते हैं।
  • पारिस्थितिकीय कारक इस बात का निर्धारण करते हैं कि किसी स्थान विशेष पर लोग कैसे रहेंगे।

प्र० 2. पारिस्थितिकी सिर्फ प्राकृतिक शक्तियों तक ही सीमित क्यों नहीं है?
उत्तर-

  • मनुष्य की क्रियाओं द्वारा पारिस्थितिकी में परिवर्तन आया है। पर्यावरण के प्राकृतिक कारक; जैसे-अकाल या बाढ़ की स्थिति आदि की उत्पत्ति भी मानवीय हस्तक्षेप के कारण होती है।
  • नदियों के ऊपरी क्षेत्र में जंगलों की अंधाधुध कटाई नदियों में बाढ़ की स्थिति को और बढ़ा देती है।
  • पर्यावरण में मनुष्य के हस्तक्षेप का एक अन्य उदाहरण विश्वव्यापी तापमान वृद्धि के कारण जलवायु में आनेवाला परिवर्तन भी है। समय के साथ पारिस्थितिकीय परिवर्तन के लिए कई बार प्राकृतिक तथा मानवीय कारणों में अंतर करना काफ़ी कठिन होता है।
  • हमारे चारों ओर कुछ ऐसे तत्व भी हैं जो पूरी तरह से मनुष्य द्वारा निर्मित है।
  • कृषि भूमि जहाँ मिट्टी तथा पानी के बचाव के कार्य चल रहे हों, खेत और पालतू पशु, कृत्रिम खाद तथा कीटनाशक का प्रयोग, यह सब स्पष्ट रूप से मनुष्य द्वारा प्रकृति में किया गया परिवर्तन है।
  • शहर के निर्माण में प्रयुक्त सीमेंट, ईंट, कंक्रीट, पत्थर, शीशा और तार हालाँकि प्राकृतिक संसाधन हैं, परंतु फिर भी ये मनुष्य की कलाकृति के उदाहरण हैं।

प्र० 3. उस दोहरी प्रक्रिया का वर्णन करें जिसके कारण सामाजिक पर्यावरण का उद्भव होता है?
उत्तर-

  • जैवभौतिक पारिस्थितिकी तथा मनुष्य के हस्तक्षेप की अन्त:क्रिया के द्वारा सामाजिक पर्यावरण का उद्भव होता है।
  • जिस प्रकार से प्रकृति समाज को आकार देती है। ठीक उसी प्रकार से समाज भी प्रकृति को आकार देता है। अतः यह दो-तरफा प्रक्रिया है। उदाहरण के तौर पर, सिंधु-गंगा की उपजाऊ भूमि गहन कृषि के लिए उपयुक्त है। इसकी उच्च उत्पादक क्षमता के कारण यहाँ घनी आबादी का क्षेत्र बसा है और अतिरिक्त उत्पादन से गैर कृषि क्रियाकलाप आगे चलकर जटिल अधिक्रमिक समाज तथा राज्य को जन्म देते हैं।
  • ठीक इसके विपरीत, राजस्थान के मरुस्थल केवल पशुपालकों को ही सहारा दे पाते हैं। वे अपने पशुओं के चारे की खोज में इधर-उधर भटकते रहते हैं ताकि उनके पशुओं को चारा मिलता रहे।
  • ये पारिस्थितिकी के उदाहरण हैं जो मानव के जीवन और संस्कृति को आकार देते हैं।
  • दूसरी तरफ, पूँजीवादी सामाजिक संगठनों ने भी विश्वभर की प्रकृति को आकार दिया है।
  • निजी परिवहन पूँजीवादी उपयोगी वस्तु का एक ऐसा उदाहरण है जिसने जीवन तथा भू-दृश्य दोनों को बदल दिया है। शहरों में वायु प्रदूषण तथा भीड़भाड़, क्षेत्रीय अगड़े, तेल के लिए युद्ध और विश्वव्यापी तापमान में वृद्धि, गाड़ियों के पर्यावरण पर होने वाले प्रभावों के कुछ एक उदाहरण हैं।

प्र० 4. सामाजिक संस्थाएँ कैसे तथा किस प्रकार से पर्यावरण तथा समाज के आपसी रिश्तों को आकार देती हैं?
उत्तर-

  • पर्यावरण तथा समाज के बीच अंत:क्रिया को सामाजिक संगठन द्वारा आकार दिया जाता है।
  • यदि वनों पर सरकार का आधिपत्य है तो यह निर्णय लेने का अधिकार भी सरकार का ही होगा कि क्या वनों को पट्टे पर किसी लकड़ी के कारोबार करने वाली कंपनी को देनी चाहिए अथवा ग्रामीणों को जंगलों से प्राप्त होने वाले वन्य उत्पादों को संग्रहित करने का अधिकार हो।
  • भूमि तथा जल संसाधन का व्यक्तिगत स्वामित्व इस बात का निर्णय करेंगे कि अन्य लोगों को किन नियमों तथा शर्तों के अधीन इन संसाधनों के उपयोग का अधिकार प्राप्त हो।
  • उत्पादन प्रक्रिया के अंतर्गत संसाधनों पर नियंत्रण श्रम विभाजन से संबंधित है।
  • पुरुषों की तुलना में कृषिहीन मजदूरों एवं स्त्रियों का प्राकृतिक संसाधनों से संबंध भिन्न होता है।
  • सामाजिक संगठन इस तथ्य को प्रभावित करता है। कि विभिन्न सामाजिक समूह किस प्रकार अपने आपको पर्यावरण से जोड़ते हैं।
  • प्रासंगिक ज्ञान की व्यवस्था के अतिरिक्त पर्यावरण तथा समाज के संबंध उसके सामाजिक मूल्यों तथा प्रतिमानों में भी प्रतिबिंबित होते हैं।
  • पूँजीवादी मूल्यों ने प्रकृति के उपयोगी वस्तु होने की विचारधारा को पोषित किया है। इस संदर्भ में प्रकृति को एक वस्तु के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है और इसे लाभ के लिए खरीदा अथवा बेचा जा रहा है। उदाहरण के लिए, किसी नदी के बहुविकल्पीय सांस्कृतिक अर्थों; जैसे-पारिस्थितिकीय, उपयोगितावादी, धार्मिक तथा सौंदर्यपरकता के महत्व को समाप्त कर किस उद्यमकर्ता के लिए पानी को हानि या लाभ की दृष्टि से बेचने का करोबार बना दिया गया है।
  • कई देशों ने समानता तथा न्याय के समाजवादी-मूल्यों को स्थापित करने हेतु बड़े-बड़े जमींदारों से उजड़ी ज़मीनों को छीनकर उन्हें पुनः भूमिहीन किसानों में बाँट दिया है।
  • धार्मिक मूल्यों ने कई सामाजिक समूहों का नेतृत्व किया है ताकि धार्मिक हितों और विभिन्न किस्मों को संरक्षण हो सके। और अन्य यह मान सकें कि उन्हें अपने हितों के लिए पर्यावरण में परिवर्तन करने का दैवीय
    अधिकार प्राप्त है।

प्र० 5. पर्यावरण व्यवस्था समाज के लिए एक महत्वपूर्ण तथा जटिल कार्य क्यों हैं?
उत्तर-

  • हालाँकि पर्यावरण प्रबंधन एक कठिन कार्य है।
  • इसकी प्रक्रियाओं को पूर्वानुमान तथा उसे रोकना भी कंठिन है।
  • पर्यावरण के साथ मनुष्य के संबंध और अधिक जटिल हो गए हैं।
  • बढ़ते औद्योगीकरण के कारण संसाधनों का दोहन अत्यंत तीव्र गति से हो रहा है। यह पारिस्थितीकी तंत्र को विभिन्न प्रकार से प्रभावित किया है।
  • जटिल औद्योगिक तकनीक तथा संगठन की व्यवस्थाएँ बेहतरीन प्रबंधन के लिए अनिवार्य हैं। ये अधिकांशतः गलतियों के प्रति कमजोर तथा सुभेद्य होते हैं।
  • हम जोखिम भरे समाज में रहते हैं। हम ऐसी तकनीकों तथा वस्तुओं का प्रयोग करते हैं, जिनके संबंध में हमें पूरी जानकारी नहीं है। औद्योगिक पर्यावरण में घटित नाभिकीय विपदा; जैसे-चेरनोबिल, भोपाल की औद्योगिक दुर्घटना, यूरोप में फैली ‘मैड काऊ’ बीमारी इसके खतरों को दर्शाते हैं।

प्र० 6. प्रदूषण संबंधित प्राकृतिक विपदाओं के मुख्य रूप कौन-कौन से हैं?
उत्तर-

  • ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण एक मुख्य समस्या मानी जा रही है। इससे श्वास और सेहत संबंधी अन्य बीमारियाँ तथा मृत्यु भी हो सकती है।
  • उद्योगों तथा वाहनों से निकलने वाली जहरीली गैसे तथा घरेलू उपयोग के लिए लकड़ी तथा उद्योगों से होने वाले प्रदूषण वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोत हैं।
  • खाना बनाने वाले ईंधन से आंतरिक प्रदूषण भी एक जोखिम भरा स्रोत है। यह विशेषकर ग्रामीण घरों के लिए सच है। यहाँ खाना बनाने के लिए हरी-भरी लकड़ियों का प्रयोग, अनुपयुक्त चूल्हे तथा हवा के निष्कासन की अव्यवस्था ग्रामीण महिलाओं के सेहत पर बुरा असर डालते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार तकरीबन 600,000 लोग भारत में 1998 के दौरान घरेलू प्रदूषण से मरे। यह भी सत्य है कि अकेले ग्रामीण क्षेत्रों में मरने वाले लोगों की संख्या 500,000 के करीब थी।
  • नदी और जलाशय से संबंधित प्रदूषण भी एक महत्वपूर्ण समस्या है। शहर ध्वनि प्रदूषण से भी ग्रसित है। कई शहरों में यह विवाद न्यायालय के अधीन है। धार्मिक तथा सामाजिक अवसरों पर उपयोग किए जाने वाले लाउडस्पीकर, राजनीतिक प्रचार, वाहनों के होने और यातायात एवं निर्माण कार्य इसके प्रमुख स्रोत हैं।

प्र० 7. संसाधनों की क्षीणता से संबंधित पर्यावरण के प्रमुख मुद्दे कौन-कौन से हैं?
उत्तरे-

  • संसाधनों की क्षीणता का अर्थ है-अस्वीकृत प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करना, और यह पर्यावरण की एक गंभीर समस्या है।
  • सम्पूर्ण भारत में विशेषकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भूजल के स्तर में लगातार कमी होना एक गंभीर समस्या है।
  • नदियों पर बाँध बना दिए गए हैं और इसके बहाव को मोड़ दिया गया है। इस कारण पर्यावरण के जल बेसिन को जो क्षति पहुँची है उसकी भरपाई करना असंभव है।
  • शहरों में पाये जाने वाले जलाशय भर दिए गए हैं। और उस पर निर्माण कार्य सम्पन्न होने के कारण प्राकृतिक जल निकासी के साधनों को नष्ट किया जा रहा है।
  • भूजल के समान मृदा की ऊपरी परत का निर्माण हजारों सालों के बाद होता है। पर्यावरण के कुप्रबंधन; जैसे-भू कटाव, पानी का जमाव तथा खारेपन इत्यादि के कारण कृषि संसाधन भी नष्ट होते जा रहे हैं।
  • मृदा की ऊपरी सतह के विनाश के लिए भवन-निर्माण के लिए ईटों का उत्पादन भी जिम्मेदारी है।
  • जंगल, घास के मैदान और आर्द्रभूमि जो कि जैविक विविध आवासों के उदाहरण हैं, ऐसे अन्य मुख्य संसाधन हैं, जो बढ़ती कृषि के कारण समाप्ति के कगार पर खड़े हैं।

प्र० 8. पर्यावरण की समस्याएँ समाजिक समस्याएँ भी हैं। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

  • पर्यावरण की समस्याएँ विभिन्न समूहों को प्रभावित करती हैं।
  • सामाजिक परिस्थिति और शक्ति इस बात पर निर्भर करती है कि व्यक्ति अपने आपको पर्यावरण की आपदाओं से बचाने या उस पर विजय प्राप्त करने के लिए किस हद तक जा सकता है।
  • गुजरात राज्य के कच्छ (Kutch) में जहाँ पानी की अत्यधिक कमी है, वहाँ संपन्न किसानों ने अपने खेतों में नकदी फसलों की सिंचाई के लिए नलकूपों की गहरी खुदाई पर काफी धन खर्च किया है। जब वर्षा नहीं होती है तब गरीब ग्रामीणों के कुएँ सूख जाते हैं तथा उन्हें पीने तक के लिए पानी नहीं मिलता है।
  • ऐसे समय में संपन्न किसानों के लहलहाते खेत मानो उनका मजाक उड़ा रहे होते हैं। कुछ पर्यावरण संबंधी चिंतन कभी-कभी विश्वव्यापी चिंतन बन जाते हैं। परंतु यह सत्य है कि इसका संबंध किसी विशेष सामाजिक समूह से नहीं रहता है।
  • समाजशास्त्रीय अध्ययन से यह जाहिर होता है। कि किस प्रकार सार्वजनिक प्राथमिकताएँ तय की जाती हैं और किस प्रकार इन्हें आगे बढ़ाया जाता है। सार्वभौमिक रूप से उनका लाभदायक होना कठिन है। साथ ही, जनहित के कार्यों की रक्षक नीतियाँ राजनीतिक तथा आर्थिक रूप से शक्तिशाली वर्गों के लाभ की रक्षा करती हैं, या गरीब एवं राजनीतिक रूप से कमजोर वर्गों को नुकसान पहुँचाती हैं।

प्र० 9. सामाजिक पारिस्थितिकी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-

  • सामाजिक पारिस्थितिकी यह जाहिर करती है। कि सामाजिक संबंध विशेष रूप से संपत्ति तथा उत्पादन के संगठन पर्यावरण से संबंधित सोच और प्रयास को आकार देते हैं।
  • विभिन्न सामाजिक वर्गों के लोग पर्यावरण संबंधित मामलों को भिन्न प्रकार से परखते और समझते हैं।
  • वन्य विभाग उद्योग के लिए अधिक मात्रा में बाँस का निर्माण करेगा। इसका उद्देश्य अधिक से अधिक राजस्व प्राप्त करना होगा। साथ ही वन्य विभाग बाँस का निर्माण बाँस के टोकरे बनाने वाले कारीगर के लिए बाँस के उपयोग से अलग रूप में देखेगा। उनकी रुचियाँ और विचारध राएँ पर्यावरण संबंधी मतभेदों को जन्म देती हैं। इस प्रकार पर्यावरण संकट की जड़े सामाजिक असमानताओं में देखी जा सकती हैं।
  • पर्यावरण और समाज के आपसी संबंधों में परिवर्तन पर्यावरण संबंधित समस्याओं को सुलझाने का एक उपाय है। इसका अर्थ है विभिन्न समूहों के बीच संबंधों में परिवर्तन अर्थात पुरुष और स्त्री, ग्रामीण और शहरी लोग, जमीदार तथा मजदूर के संबंधों में परिवर्तन।
  • सामाजिक संबंधों में परिवर्तन से पर्यावरण प्रबंधन के लिए विभिन्न ज्ञान व्यवस्थाओं और ज्ञानतंत्र का जन्म होगा।

प्र० 10. पर्यावरण संबंधित कुछ विवादास्पद मुद्दे जिनके बारे में आपने पढ़ा या सुना हो उनका वर्णन कीजिए। (अध्याय के अतिरिक्त)
उत्तर- स्वयं करें।

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NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 4 Presentation of Data (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 4 Presentation of Data (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 4 Presentation of Data (Hindi Medium)

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प्रश्न अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

निम्नलिखित 1 से 10 तक के प्रश्नों के सही उत्तर चुनें।

प्र.1. दंड-आरेख

(क) एक विमी आरेख है
(ख) द्विविम आरेख है।
(ग) विम रहित आरेख है
(घ) इनमें से कोई नहीं है।

उत्तर (क) एक विमी आरेख है।

प्र.2, आयत चित्र के माध्यम से प्रस्तुत किये गये आँकड़ों से आलेखी रूप से निम्नलिखित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं:

(क) माध्य
(ख) बहुलक
(ग) मध्यिका
(घ) उपर्युक्त सभी

उत्तर (ख) बहुलक

प्र.3. तोरणों के द्वारा आरेखी रूप में निम्नलिखित में से किसकी स्थिति जानी जा सकती है।

(क) बहुलक
(ख) माध्य
(ग) मध्यिका
(घ) उपर्युक्त कोई भी नहीं

उत्तर (ग) मध्यिका

प्र.4, अंकगणितीय रेखा चित्र के द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों से निम्न को समझने में मदद मिलती है:

(क) दीर्घकालिक प्रवृत्ति
(ख) आँकड़ों में चक्रीयता
(ग) आँकड़ों में कालिकता
(घ) उपर्युक्त सभी

उत्तर (ग) आँकड़ों में कालिकता

प्र.5, दंड आरेख के दंडों की चौड़ाई का एक समान होना जरूरी नहीं है। (सही/गलत)
उत्तर गलत

प्र.6. आयत चित्रों में आयतों की चौड़ाई अवश्य एक समान होनी चाहिए। (सही/गलत)
उत्तर गलत

प्र.7, आयत चित्र की रचना केवल आँकड़ों के सतत वर्गीकरण के लिए की जा सकती है। (सही/गलत)
उत्तर सही

प्र.8. आयत चित्र एवं स्तंभ आरेख आँकड़ों को प्रस्तुत करने की एक जैसी विधियाँ हैं। (सही/गलत)
उत्तर गलत

प्र.9, आयत चित्र की मदद से बारंबारता वितरण के बहुलक को आरेखीय रूप से जाना जा सकता है। (सही/गलत)
उत्तर सही

प्र.10. तोरणों से बारंबारता वितरण की मध्यिका को नहीं जाना जा सकता है। (सही/गलत)
उत्तर गलत

प्र.11. निम्नलिखित को प्रस्तुत करने के लिए किस प्रकार का आरेख अधिक प्रभावी होता है।

(क) वर्ष-विशेष की मासिक वर्षा
(ख) धर्म के अनुसार दिल्ली की जनसंख्या का संघटन
(ग) एक कारखाने में लागत-घटक

उत्तर

(क) सरल दंड आरेख
(ख) बहुदंड चित्र
(ग) वृत्त आरेख

प्र.12. मान लीजिए आप भारत में शहरी और कामगारों की संख्या में वृद्धि तथा भारत के शहरीकरण पर बल देना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आँकड़ों का सारणीयन कैसे करेंगे?

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उत्तर

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 4 (Hindi Medium) 3

प्र.13. यदि किसी बारंबारता सारणी में समान वर्ग अंतरालों की तुलना में वर्ग अंतराल असमान हों, तो आयत चित्र बनाने की प्रक्रिया किस प्रकार भिन्न होगी?
उत्तर जब बारंबारता सारणी में वर्ग अंतराल समान होते हैं तो वर्ग अंतराल की बारंबारता को साधारण रूप से अंकित किया जाता है परंतु जब बारंबारता सारणी में वर्ग अंतराल असमान हो तो पहले हमें समायोजित बारंबारता की गणना करनी होती है। यह नीचे दिए गये उदाहरण से स्पष्ट हो जायेगा।

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प्र.14. भारतीय चीनी कारखाना संघ की रिपोर्ट में कहा गया है कि दिसंबर 2001 के पहले पखवाड़े के दौरान 3,87,000 टन चीनी का उत्पादन हुआ, जबकि ठीक इसी अवधि में पिछले वर्ष 2000 में 3,78,700 टन चीनी का उत्पादन हुआ था। दिसंबर 2001 में घरेलू खपत के लिए चीनी मिलों से 2,83,000 टन चीनी उठाई गई और 41,000 टन चीनी निर्यात के लिए थी, जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में घरेलू खपत की मात्रा 1,540,000 टन थी और निर्यात शून्य था।

(क) उपर्युक्त आँकड़ों को सारणीबद्ध रूप में प्रस्तुत करें।
(ख) मान लीजिए, आप इस आँकड़े को आरेख के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं तो आप कौन-सा आरेख चुनेंगे और क्यों?
(ग) इन आँकड़ों को आरेखी रूप में प्रस्तुत करें।

उत्तर
(क)

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 4 (Hindi Medium) 5

(ख) हम इसे आरेख द्वारा प्रस्तुत नहीं कर सकते परंतु चित्र द्वारा कर सकते हैं।

प्र.15. निम्नलिखित सारणी में कारक लागत पर सकल घरेलू उत्पाद में क्षेत्रकवार अनुमानित वास्तविक संवृद्धि दर को (पिछले वर्ष से प्रतिशत परिवर्तन प्रस्तुत) किया गया है।

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 4 (Hindi Medium) 6

उपर्युक्त आँकड़ों को बहु काल-श्रेणी आरेख द्वारा प्रस्तुत करें।
उत्तर

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 4 (Hindi Medium) 7

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NCERT Solutions for Class 11 Sociology Introducing Sociology Chapter 2 Terms, Concepts and their Use in Sociology (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Sociology Introducing Sociology Chapter 2 Terms, Concepts and their Use in Sociology (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Sociology Introducing Sociology Chapter 2 Terms, Concepts and their Use in Sociology (Hindi Medium)

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पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न [NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED]

प्र० 1. समाजशास्त्र में हमें विशिष्ट शब्दावली और संकल्पनाओं के प्रयोग की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर- सामान्य ज्ञान के विपरीत किसी अन्य विज्ञान के सदृश समाजशास्त्र की अपनी संकल्पनाएँ (Concepts), सिद्धांत तथा तथ्य-संग्रह की पद्धतियाँ हैं। किसी सामाजिक विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र जिन सामाजिक वास्तविकताओं एवं क्रिया-विधियों/ प्रविधियों, जिनका अध्ययन करता है, का किसी विशेष अर्थ की आवश्यकता नहीं पड़ती है। प्रत्येक विषय को मानक शब्दावली पारिभाषिक शब्दावली, भाषा एवं संकल्पनाओं की आवश्यकता पड़ती है, जिसके द्वारा पेशेवर व्यक्ति इसके विषय के संबंध में विचार-विमर्श करते हैं और इसकी विविध विशिष्टताओं को कायम रखते हैं। सामाजिक शब्दावली (Sociological Terms) पर चर्चा करना और अधिक महत्वपूर्ण बन जाता है, क्योंकि सामान्य उपयोग के दृष्टिकोण से उनका क्या तात्पर्य है, जिनके विविध अर्थ एवं संकेतार्थ हो सकते हैं।

प्र० 2. समाज के सदस्य के रूप में आप समूहों में और विभिन्न समूहों के साथ अंतःक्रिया करते होंगे। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से इन समूहों को आप किस प्रकार देखते हैं?
उत्तर- सामाजिक समूह का सरोकार सदस्यों या व्यक्तियों से है, जो सदस्यता के औपचारिक या अनौपचारिक कसौटी द्वारा परिभाषित किए जाते हैं तथा जो एकता के अनुभव का आदान-प्रदान करते हैं या अंत:क्रिया के अपेक्षाकृत स्थिर प्रतिमानों द्वारा एक-दूसरे से बँधे होते हैं। सामाजिक समूह के सदस्य समान विशेषताओं और उद्देश्यों के आधार पर संबंधों को कायम करते हैं। तथा एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। सामाजिक समूह को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि यह दो या दो से अधिक व्यक्तियों की एक संगठित संरचना है, जिसमें व्यक्ति एक-दूसरे के साथ अंत:क्रिया करते हैं, समान उद्देश्यों का आदान-प्रदान करते हैं, एक-दूसरे पर अन्योन्याश्रित हैं तथा स्वयं को किसी समूह का सदस्य समझते हैं। समूह की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ हैं :
1. एक सामाजिक इकाई, जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति पाए जाते हैं, जो स्वयं को किसी समूह के साथ अपनापन का भाव महसूस करते हैं। समूह की यह विशेषता एक समूह को दूसरे समूह से अंतर करने में मदद करती है तथा समूह को उसकी पहचान प्रदान करती है।
2. व्यक्तियों का एक समुच्चय, जिसके समान प्रयोजन और उद्देश्य होते हैं। समूह या तो किसी दिए गए उद्देश्य के प्रति कार्य करता है या समूह के समक्ष निश्चित आशंकाओं से दूर हटकर कार्य करता है।
3. निरंतर व्यवस्था करने के लिए अटल अंत:क्रिया।
4. अंत:क्रिया का एक स्थिर मानक।
5. समान प्रतिमानों और संरचनाओं की स्वीकृति।
6. व्यक्तियों का एक समुच्चय, जो इस तथ्य पर
अन्योन्याश्रित है कि कोई क्या कर रहा है, इसका प्रभाव दूसरों पर भी पड़ सकता है।
7. यह भूमिका, प्रतिमान, प्रस्थिति और संसक्तिशीलता (Cohensiveness) के समुच्चय के माध्यम से एक संगठित संरचना है। समाजशास्त्री, मानव विज्ञानी (Anthropologists) और समाज मनोवैज्ञानिक (Social Psychologists) ने समूह को विभिन्न प्रकार से वर्गीकृत किया है।
प्राथमिक और द्वितीयक समूह
(i) प्राथमिक समूह पूर्व-स्थित बनावट है, जो व्यक्ति प्रायः प्राप्त करता है, जबकि द्वितीयक समूह वे समूह हैं, जिनसे व्यक्ति अपनी स्वेच्छा से जुड़ता है। उदाहरण के लिए, परिवार, जाति एवं धर्म प्राथमिक समूह हैं, जबकि किसी राजनीतिक दल की सदस्यता द्वितीयक समूह का उदाहरण है।
(ii) प्राथमिक समूह में आमने-सामने की अंत:क्रिया होती है। सदस्यों में भौतिक निकटता पाई जाती है। वे संवेदनशील बंधनों का आदान-प्रदान करते हैं।
(iii) प्राथमिक समूह व्यक्तिगत कार्य के केंद्रबिंदु हैं और विकास के प्रारंभिक चरण में व्यक्ति के मूल्यों तथा आदर्शों को विकसित करने में अहम् भूमिका निभाते हैं।
(iv) द्वितीयक समूह वे समूह हैं, जहाँ सदस्यों के मध्य संबंधों का स्वरूप अव्यक्तिगत, अप्रत्यक्ष एवं कम तीव्र होता है।
(v) प्राथमिक समूह में सीमाएँ कम पारगम्य होती हैं। इस समूह के सदस्यों के पास सदस्यता चुनने का कोई विकल्प नहीं होता है। जबकि जहाँ द्वितीयक समूह में समूह को छोड़ना तथा अपनाना आसान होता है।
(vi) प्राथमिक समूह में अपनापन का भाव पाया जाता है, जबकि द्वितीयक समूह आकार में अपेक्षाकृत बड़े होते हैं। इसलिए इनमें अपनापन न के बराबर होता है। इसकी विशिष्टता औपचारिक और
अनौपचारिक संबंधों से जानी जाती है। उदाहरण | के लिए विद्यालय, कार्यालय, अस्पताल इत्यादि।
औपचारिक और अनौपचारिक समूह
समूह के कार्य औपचारिक समूहों में स्पष्ट एवं औपचारिक रूप से व्यक्त किया गया है। औपचारिक समूहों की बनावट विशिष्ट सिद्धांतों या नियमों पर आधारित है तथा सदस्य की निश्चित भूमिकाएँ हैं।
औपचारिक समूह संरचना के आधार पर अनौपचारिक समूह से अलग है।
अनौपचारिक समूह अधिक लचीला होता है और सदस्यों के मध्य निकट संबंध पाया जाता है।
अंत:समूह और बाह्य समूह
‘अंत:समूह’ शब्द का अर्थ है-किसी का अपना समूह और ‘बाह्य-समूह’ शब्द का अर्थ है-दूसरों का समूह।
अंत:समूह के सदस्यों के लिए ‘हम’ शब्द का प्रयोग किया जाता है, जबकि बाह्य-समूह के सदस्यों के लिए ‘वे’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। अंत:समूह के व्यक्ति प्रायः समान समझे जाते हैं और सकारात्मक दृष्टि से अवलोकन किए जाते हैं तथा उनके वांछनीय चारित्रिक गुण होते हैं। बाह्य समूह के सदस्य भिन्न रूप से अवलोकन किए जाते हैं और अंत:समूह के सदस्यों की तुलना में नकारात्मक समझे जाते हैं।
समवयस्क समूह
व्यक्तियों का एक समुच्च्य, जो कुछ समान विशेषताओं
का आदान-प्रदान करते हैं, जैसे कि आयु, जातीयता या व्यवसाय, स्वयं को एक विशिष्ट सामाजिक जन-समूह समझते हैं और दूसरों के द्वारा स्वीकार किए जाते हैं। संदर्भ समूह
‘संदर्भ समूह’
शब्द की खोज हर्बर्ट हायमन (Herbert Hyman) द्वारा की गई थी।
हायमन (Hyman) ने सदस्यता समूह, जिसके लोग सदस्य होते हैं और संदर्भ समूह, जिसकी तुलना में प्रयोग किया जाता है, के मध्य अंतर स्थापित किया।
संदर्भ समूह एक सदस्यता समूह हो भी सकता है या नहीं भी हो सकता है। हम सभी के अपने सपने और आकांक्षाएँ हैं।
सामाजिक परिदृश्य में हम सभी सामाजिक दुनिया में निवास करते हैं। हम किसी समूह के प्रति मोहित या
आकर्षित हो जाते हैं, जो लगता है कि किसी अधिक सुखद जीवन की ओर अग्रसर है। जब हम अन्य लोगों या समूहों को देखते हैं, तब हमें उनके समान बनने की गुप्त रूप से अभिलाषा करते हैं। हम उनके साथ अपनी पहचान बनानी आरंभ कर देते हैं। हम उनके गुणों को अंतरंग करते हैं। हम उनके स्वभाविक प्रतिमानों तथा क्रियाविधि का भी अंतरंग करते हैं, ताकि हम उनकी तरह लगें। इस प्रकार हम संदर्भ समूह के सदस्य नहीं होते हैं। हम केवल उनको अपनी पहचान बना लेते हैं।
न्यूकॉम्ब (Newcomb) एक सामाजिक मनोवैज्ञानिक
थे। उन्होंने उदार महिला महाविद्यालय के छात्रों के बदलते मूल्यों और विचारों की व्याख्या में मदद के लिए संदर्भ समूह का प्रयोग किया। अनेक महिलाएँ जिनका संबंध राजनीतिक तौर पर रूढ़िवादी पृष्ठभूमि से था, ने अपने महाविद्यालय जीवनवृत के पाठ्यक्रमों के प्रति उदार विचार शीघ्रता से विकसित की, क्योंकि उनका लगाव महाविद्यालय प्राध्यापक वर्ग से अधिक और अपनी उत्पत्ति के परिवार से कम था। जिन लड़कियों में सर्वाधिक परिवर्तन हुए, अपने उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सामाजिक संबंधों के संदर्भ में, व्यक्तिगत उपयुक्तता के अर्थ में, उनकी विशिष्टिता उनके माता-पिता से स्वतंत्र थी।
उदाहरण के लिए, अनेक बार विद्यालय और महाविद्यालय में पढ़ने वाली लड़कियाँ तथा लड़के बॉलीवुड (Bollywood) की प्रशंसा करते हैं, उसको महत्व देते हैं एवं उसके साथ अपनी पहचान व्यक्त करते हैं, जैसे-साधना, राजेश खन्ना इत्यादि व गुप्त रूप से, उनकी तरह बनने की अभिलाषा विकसित करते हैं। वे अपनी जीवन शैली, बाल और बातचीत का ढंग, कपड़े इत्यादि उनकी तरह पहनना प्रारंभ कर देते हैं। प्रधानतः उनकी सदस्यता समूह छात्र समूह है, लेकिन वे फिल्म कलाकार समूह (Film Stars Group) के प्रति मोहित हो जाते हैं, जो उनके लिए संदर्भ समूह हैं। सामाजिक दृष्टिकोण से यदि समाज में संदर्भ समूह के अर्थ में राजनीति, धर्म, व्यवसाय इत्यादि से संबंधित आदर्श पात्र हैं, तो युवा पीढ़ी तदानुसार उनसे प्रभावित होती है।

प्र०3. अपने समाज में उपस्थित स्तरीकरण की व्यवस्था के बारे में आपका क्या प्रेक्षण है? स्तरीकरण से व्यक्तिगत जीवन किस प्रकार प्रभावित होते हैं?
उत्तर- समाजशास्त्र में ‘स्तरीकरण’ शब्द संरचनातीत सामाजिक असमानताओं के अध्ययन के लिए प्रायः प्रयोग किया जाता है, जैसे कि व्यक्तियों के समूहों के मध्य किसी सुव्यवस्थिति असमानताओं का अध्ययन, जो सामाजिक प्रक्रिया एवं संबंधों के अप्रत्याशित परिणाम के रूप में प्रकट होता है। जब हम पूछते हैं कि गरीबी क्यों है, भारत में दलित और महिलाएँ सामाजिक रूप से अपंग क्यों हैं, तो हम सामाजिक स्तरीकरण के विषय में प्रश्न खड़ा करते हैं। सामाजिक स्तरीकरण सूक्ष्म समाजशास्त्र की सारभाग (Core) समस्या है, जोकि समाज का समग्र अध्ययन है। सामाजिक स्तरीकरण का सरोकार अनेक अर्थों में वर्ग और प्रस्थिति की समस्याओं से है–सामाजिक समाकलन (Integration) के समझ की कुंजी के रूप में समूह गठन, जोकि जिस हद तक सामाजिक संबंध संसक्तिशील (Cohesive) है या विभाजनात्मक (Divisive), वह परिणामतः सामाजिक व्यवस्था को निर्धारित करता है।
मैंने प्रेक्षण किया है कि हमारे समाज में स्तरीकरण व्यवस्था संरचना का अस्तित्व, भारतीय समाज के विविध समूहों के मध्य असमानता इत्यादि का द्योतक है। भारतीय समाज में संस्तरण के स्तर पाए जाते हैं, जोकि समाज के शिखर पर उच्चतम योग्य व्यक्ति और धरातल पर निम्नतम योग्य व्यक्ति। भारतीय समाज में आर्थिक विषमता, जिससे वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था इत्यादि का जन्म हुआ, स्तरीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
1. भारतीय जाति स्तरीकरण व्यवस्था में किसी व्यक्ति की प्रस्थिति व्यक्ति की उपलब्धियों एवं उसके योगदान या उसके मनोवैज्ञानिक गुणों से न होकर जन्म से प्रदत्त है।
2. भारतीय समाज के इस स्तरीकरण के विरुद्ध कुछ आशाएँ हैं। आर्थिक विकास, संवैधानिक व्यवस्था, नगरीकरण, औद्योगिकीकरण, शिक्षा, सुगम संचार और प्रबुद्ध माध्यम के कारण हमारा समाज खुशहाली की तरफ धीरे-धीरे परिवर्तनशील है।
3. स्तरीकरण किसी समाज की स्वाभाविक प्रक्रिया है। जैसे हम जानते हैं कि समाज एक समूह है और समूह एक संगठित संरचना है, जिसमें सदस्यों की प्रस्थिति भूमिका होती है।
4. सामाजिक स्तरीकरण इस बात का आश्वासन देता है कि सर्वाधिक महत्वपूर्ण पदों पर योग्य व्यक्तियों को होना चाहिए।
5. भूमिका का सरोकार उम्मीदों से है, जो गतिशील है और प्रस्थिति का व्यवहारिक क्षेत्र है। प्रस्थिति का संदर्भ समाज में प्रत्येक सदस्य द्वारा धारण स्थिति से है। किसी सदस्य की प्रस्थिति की संस्थापित भूमिका है। प्रस्थिति समाज में व्यवस्थित, मानकीकृत एवं औपचारिक हो जाती है।
6. सामाजिक स्तरीकरण सामान्य पूर्वानुमान से प्रारंभ होता है या प्रकार्यवाद के विश्वास पर आधारित है। कि कोई भी समाज वर्गहीन या बिना स्तरीकरण के है। केवल समन्वय, संतुलन, समाकलन तथा सबके विकास की आवश्यकता पड़ती है, जो किसी स्वस्थ समाज का उद्देश्य होना चाहिए।

प्र० 4. सामाजिक नियंत्रण क्या है? क्या आप सोचते हैं कि समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सामाजिक नियंत्रण के साधन अलग-अलग होते हैं? चर्चा करें।
उत्तर- ‘सामाजिक नियंत्रण’ शब्द का सरोकार उस सामाजिक प्रक्रिया से है, जिसके द्वारा व्यक्ति या समूह के व्यवहार को नियंत्रित किया जाता है। समाज मानवों का सामंजस्यपूर्ण संघ है, जिनसे अपेक्षा की जाती है कि वे अपना कार्य तदनुसार करें। अस्तित्व और विकास के लिए समाज को अपने सदस्यों पर निश्चित नियंत्रण रखना पड़ता है। ऐसे नियंत्रणों को सामाजिक नियंत्रण कहा जाता है। परिणामतः सामाजिक नियंत्रण किसी भी समाज को परिष्कृत कर देने वाला लक्षण है। सामाजिक नियंत्रण व्यक्तियों एवं समूहों के अप्रत्याशित व्यवहारों को नियंत्रित करने में सहायता करता है। इसका प्रयोग समाज समग्र रूप से समूह के कल्याण व उन्नति के लिए करता है। सामाजिक नियंत्रण का स्वरूप एक समाज से दूसरे समाज में बदल जाता है, क्योंकि प्रत्येक समाज के अपने नियम एवं प्रतिमान हैं। समाज के विभिन्न प्रकार जैसे व्यक्तिवादी/व्यष्टिवादी समाज या जन सामूहिक समाज अपने सदस्यों से विविध अपेक्षाएँ रखते हैं। भारतीय सांस्कृतिक मूल्य और जीवन के सामान्य मानक/मानदण्ड पश्चिमी व्यक्तिवादी समाज से अलग हैं। तदनुसार उस विशिष्ट समाज में परिवार व्यवस्था, विवाह पद्धति, सकारात्मक एवं नकारात्मक परिपाटियाँ, धर्म तथा शिक्षा व्यवस्था विकसित की गई हैं। उस विशिष्ट समाज के सदस्यों को इन व्यवस्थाओं की आज्ञा का पालन करना चाहिए। समाज किसी खास विशिष्ट समाज के लिए उचित सामाजिक नियंत्रण को विकसित करता है।

प्र० 5. विभिन्न भूमिकाओं और प्रस्थितियों को पहचानें जिन्हें आप निभाते हैं और जिनमें आप स्थित हैं। क्या आप सोचते हैं कि भूमिकाएँ और प्रस्थितियाँ बदलती हैं? चर्चा करें कि ये कब और किस प्रकार बदलती हैं।
उत्तर- छात्र स्वयं करें।

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NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 1

NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 1 (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 1 Geography as a Discipline (Hindi Medium)

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[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)

प्र० 1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
(i) निम्नलिखित में से किस विद्वान ने भूगोल (Geography) शब्द (Term) का प्रयोग किया?
(क) हेरोडोटस
(ख) गैलिलियो
(ग) इरेटास्थेनीज
(घ) अरस्तू
उत्तर- (ग) इरेटास्थेनीज़।

(ii) निम्नलिखित में से किस लक्षण को भौतिक लक्षण कहा जा सकता है?
(क) पत्तन
(ख) मैदान
(ग) सड़क
(घ) जल उद्यान
उत्तर- (ख) मैदान

(iii) स्तंभ I एवं II के अंतर्गत लिखे गए विषयों को पढ़िए।
NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 1 (Hindi Medium) 1
सही मेल को चिह्नांकित कीजिए :
(क) 1. ब, 2. से, 3. अ, 4. दे
(ख) 1. द, 2. ब, 3. स, 4. अ
(ग) 1. अ, 2. द, 3. ब, 4. स
(घ) 1. स, 2. अ, 3. द, 4. ब
उत्तर- (घ) 1. स, 2. अ, 3. द, 4. ब

(iv) निम्नलिखित में से कौन-सा प्रश्न कार्य-कारण संबंध से जुड़ा हुआ है?
(क) क्यों
(ख) क्या
(ग) कहाँ
(घ) कब
उत्तर- (क) क्यों

(v) निम्नलिखित में से कौन-सा विषय कालिक संश्लेषण करता है?
(क) समाजशास्त्र
(ख) मानवशास्त्र
(ग) इतिहास
(घ) भूगोल
उत्तर- (ग) इतिहास

प्र० 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए।
(i) आप विद्यालय जाते समय किन महत्वपूर्ण सांस्कृतिक लक्षणों का पर्यवेक्षण करते हैं? क्या वे सभी समान हैं। अथवा असमान? उन्हें भूगोल के अध्ययन में सम्मिलित करना चाहिए अथवा नहीं? यदि हाँ तो क्यों?
उत्तर- हम जब विद्यालय जाते हैं तो रास्ते में दुकान, सिनेमाघर, सड़क, मंदिर, मस्जिद, चर्च, घर, सरकारी कार्यालय
आदि सांस्कृतिक लक्षणों का पर्यवेक्षण करते हैं। ये सभी लक्षण असमान हैं। इन्हें भूगोल के अध्ययन में सम्मिलित करना चाहिए, क्योंकि हम इन लक्षणों को प्रायोगिक भूगोल में संकेत चिह्नों के माध्यम से समझते हैं। ये सभी सांस्कृतिक लक्षण सांस्कृतिक भूगोल तथा मानव भूगोल के अभिन्न हिस्से हैं।

(ii) आपने टेनिस गेंद, क्रिकेट गेंद, संतरा एवं लौकी देखा होगा। इनमें से कौन-सी वस्तु की आकृति पृथ्वी की आकृति से मिलती-जुलती है? आपने इस विशेष वस्तु को पृथ्वी की आकृति वर्णित करने के लिए क्यों चुना है?
उत्तर- हमने टेनिस गेंद, क्रिकेट गेंद, संतरा एवं लौकी को देखा है। इनमें से संतरे की आकृति पृथ्वी से मिलती-जुलती है, क्योंकि टेनिस गेंद, क्रिकेट गेंद पूर्णरूपेण गोल होती है जबकि लौकी लम्बी होती है। संतरा गोल तो होता है, लेकिन थोड़ा चपटा होता है, ठीक इसी तरह पृथ्वी भी ध्रुवों पर चपटी है।

(iii) क्या आप अपने विद्यालय में वन-महोत्सव समारोह का आयोजन करते हैं? हम इतने पौधारोपण क्यों करते हैं? वृक्ष किस प्रकार पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखते हैं?
उत्तर- हम अपने विद्यालय में वन-महोत्सव समारोह का आयोजन करते हैं, जिसमें पौधों को विद्यालय के प्रांगण में लगाने का अभियान चलाया जाता है। पेड़-पौधे हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण करते हैं, जोकि पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन बनाए रखते हैं।

(iv) आपने हाथी, हिरण, केंचुए, वृक्ष एवं घास देखी है। वे कहाँ रहते एवं बढ़ते हैं? उस मंडल को क्या नाम दिया गया है? क्या आप उस मंडल के कुछ लक्षणों का वर्णन कर सकते हैं?
उत्तर- हमने हाथी, हिरण, केंचुए, वृक्ष एवं घास देखी है। जहाँ वे रहते एवं बढ़ते हैं, उस जगह को जैवमंडल का नाम दिया गया है। जीवन को आश्रय देने वाला पृथ्वी का वह घेरा जहाँ स्थलमंडल, वायुमंडल, जलमंडल एक-दूसरे से मिलकर जीवन को संभव बनाते हैं, उसे जीवमंडल कहते हैं। सजीव जीवमंडल के जैविक घटक हैं और वायु, मृदा और जल निर्जीव घटक। जीवमंडल में गतिशील और स्थिर दोनों तरह के जीव पाए जाते हैं। गतिशील जीवों में पशु, मानव, कीड़े-मकोड़े, जल-जीव आदि आते हैं। स्थिर जीवों में
पेड़-पौधे, घास आदि को सम्मिलित किया जाता है।

(v) आपको अपने निवास से विद्यालय जाने में कितना समय लगता है? यदि विद्यालय आपके घर की सड़क के उस पार होता तो आप विद्यालय पहुँचने में कितना समय लेते? आने-जाने के समय पर आपके घर एवं विद्यालय के बीच की दूरी का क्या प्रभाव पड़ता है? क्या आप समय को स्थान या इसके विपरीत, स्थान को समय, में परिवर्तित कर सकते हैं?
उत्तर- हमें अपने घर से विद्यालय पहुँचने में एक घंटा समय लगता है। यदि विद्यालय हमारे घर की सड़क के उस पार होता तो हम विद्यालय पहुँचने में दो मिनट का समय लेते। आने-जाने में दो घंटे लगने के कारण पढ़ाई का काफी समय बर्बाद हो जाता है। हाँ, हम स्थान को आने-जाने के आधार पर समय में परिवर्तित कर सकते हैं। जैसे किसी को कहा जाता है कि अमुक स्थान पर यहाँ से पैदल 45 मिनट में पहुँच सकते हैं। लेकिन समय को स्थान में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।

प्र० 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए:
(i) आप अपने परिस्थान (Surrounding) का अवलोकन करने पर पाते हैं कि प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक दोनों तथ्यों में भिन्नता पाई जाती है। सभी वृक्ष एक ही प्रकार के नहीं होते। सभी पशु एवं पक्षी, जिन्हें आप देखते हैं, भिन्न-भिन्न होते हैं। ये सभी भिन्न तत्व धरातल पर पाए जाते हैं। क्या अब आप यह तर्क दे सकते हैं कि भूगोल प्रादेशिक/क्षेत्रीय भिन्नता का अध्ययन है?
उत्तर- भूगोल में अपने परिस्थान (Surrounding) का अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक दोनों तथ्यों में भिन्नता पाई जाती है। विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रकार के वृक्ष और पशु-पक्षी देखने को मिलते हैं। प्रादेशिक स्तर पर अध्ययन भिन्न तरीके से किया जाता है। किसी भी तथ्य के बारे में अध्ययन करने के लिए सर्वप्रथम विश्व स्तर पर उसको अध्ययन किया जाता है। फिर उसका वर्गीकरण करके क्षेत्रीय आधार पर अध्ययन किया जाता है। उदाहरणस्वरूप, विश्व के वनों के बारे में अध्ययन करने के लिए सर्वप्रथम यह पता लगाया जाता है। कि विश्व में कितने प्रकार के वन पाए जाते हैं। जैसे विषुवतरेखीय सदाबहार वन, कोणधारी वन, मानसूनी वन आदि। प्रादेशिक उपागम में विश्व को विभिन्न पदानुक्रमिक स्तर के प्रदेशों में विभक्त किया जाता है और फिर एक विशेष प्रदेश में सभी भौगोलिक तथ्यों का अध्ययन किया जाता है। ये प्रदेश प्राकृतिक, राजनीतिक या नामित प्रदेश हो सकते हैं।

(ii) आप पहले ही भूगोल, इतिहास, नागरिकशास्त्र एवं अर्थशास्त्र का सामाजिक विज्ञान के घटक के रूप में अध्ययन कर चुके हैं। इन विषयों के समाकलन का प्रयास उनके अंतरापृष्ठ (Interface) पर प्रकाश डालते हुए कीजिए।
उत्तर- भूगोल का एक संश्लेषणात्मक विषय के रूप में अनेक प्राकृतिक तथा सामाजिक विज्ञानों से अंतर्संबंध है। प्राकृतिक या सामाजिक सभी विज्ञानों का एक मूल उद्देश्य है-यथार्थता का ज्ञान करना। वस्तुत: विज्ञान से संबंधित सभी विषय भूगोल से जुड़े हैं, क्योंकि उनके कई तत्व क्षेत्रीय संदर्भ से भिन्न-भिन्न होते हैं। भूगोल ऐतिहासिक घटनाओं को प्रभावित करता है। स्थानिक दूरी स्वयं विश्व के इतिहास की दिशा को परिवर्तित करने के लिए एक प्रभावशाली कारक है। प्रत्येक भौगोलिक तथ्य समय के साथ परिवर्तित होता रहता है तथा समय के परिप्रेक्ष्य में उसकी व्याख्या की जा सकती है। भू-आकृति, जलवायु, वनस्पति, आर्थिक क्रियाएँ, व्यवसाय एवं सांस्कृतिक विकास ने एक निश्चित ऐतिहासिक पथ का अनुसरण किया है। अनेक भौगोलिक तत्व विभिन्न संस्थानों द्वारा एक विशेष समय पर निर्णय लेने की प्रक्रिया के प्रतिफल होते हैं। राजनीतिशास्त्र का मूल उद्देश्य राज्य-क्षेत्र, जनसंख्या, प्रभुसत्ता का विश्लेषण है। जबकि राजनीतिक भूगोल एक क्षेत्रीय इकाई के रूप में राज्य तथा उसकी जनसंख्या के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन करता है। अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था की मूल विशेषताओं, जैसे-उत्पादन, वितरण, विनिमय एवं उपभोग का विवेचन करता है। इन विशेषताओं में से प्रत्येक का स्थानिक पक्ष होता है। अतएव वहाँ आर्थिक भूगोल की भूमिका आती है।

परियोजना कार्य-
(अ) वन को एक संसाधन के रूप में चुनिए, एवं
(i) भारत के मानचित्र पर विभिन्न प्रकार के वनों के वितरण दर्शाइए।
NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 1 (Hindi Medium) 2

(ii) देश के लिए वनों का आर्थिक महत्त्व’ विषय पर एक लेख लिखिए।
उत्तर- देश के लिए वनों का आर्थिक महत्त्व निम्न है:
(i) वन जंगली जानवरों की शरणस्थली होता है।
(ii) वनों से हमें लकड़ियाँ प्राप्त होती हैं।
(iii) वनों से हमें कागज के लिए घास और बाँस, रेशम के लिए शहतूत के कीड़े, शराब के लिए महुआ, चंदन की लकड़ी, कत्था, लाख आदि प्राप्त होते हैं।
(iv) वन मृदा अपरदन को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

(iii) भारत में वन संरक्षण का ऐतिहासिक विवरण राजस्थान एवं उत्तरांचल में ‘चिपको आन्दोलन’ पर प्रकाश डालते हुए प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर- राजस्थान में वन संरक्षण के ऐतिहासिक विवरण के अनुसार 18वीं सदी के मध्य में जोधपुर के राजा ने अपने कर्मचारियों से स्थानीय क्षेत्रों से पेड़ काटकर लकड़ियाँ लाने के लिए कहा था। कर्मचारी जब जोधपुर राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों से पेड़ों को काटकर लकड़ियाँ प्राप्त करने गए तो ग्रामीणों ने उनका विरोध किया। जब इस विरोध की सूचना कर्मचारियों ने राजा को दी तो राजा ने क्रोधित होकर विरोध करने वालों की हत्या करने का भी आदेश दे दिया। कर्मचारी राजा का आदेश मानकर पेड़ों को काटने के लिए पुनः ग्रामीण क्षेत्रों में पहुँच गए और उन्होंने पेड़ों को काटने का विरोध करने वालों की हत्या भी कर दी। कई लोगों की जान जाने के बावजूद ग्रामीणों ने पेड़ों को काटने का विरोध नहीं छोड़ा। जब यह बात राजा को पता चली तो उन्होंने पेड़ काटने का आदेश वापस ले लिया। इस तरह से अपनी जान गॅवाकर भी ग्रामीणों ने वन को संरक्षण प्रदान किया।
उत्तरांचल में वन संरक्षण का ऐतिहासिक विवरण – चिपको आंदोलन की शुरुआत उत्तरांचल के दो-तीन गाँवों से हुई थी। इसके पीछे एक कहानी है। गाँववालों ने वन विभाग से कहा कि खेती-बाड़ी के औज़ार बनाने के लिए हमें पेड़ काटने की अनुमति दी जाए। वन विभाग ने अनुमति देने से इनकार कर दिया। बहरहाल, विभाग ने खेल-सामग्री के एक विनिर्माता कम्पनी को जमीन का वही टुकड़ा व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए आवंटित कर दिया। इससे गाँववालों में रोष पैदा हुआ और उन्होंने सरकार के इस कदम का विरोध किया। यह विरोध जल्दी ही उत्तरांचल के अन्य क्षेत्रों में भी फैल गया। क्षेत्र की पारिस्तिथिकी और आर्थिक शोषण के बड़े सवाल उठने लगे। गाँववालों ने माँग की कि जंगल की कटाई का कोई भी ठेका बाहरी व्यक्ति को नहीं दिया जाना चाहिए और स्थानीय लोगों का जंगल, जल, जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर कारगर नियंत्रण होना चाहिए। लोग चाहते थे कि सरकार लघु उद्योगों के लिए कम कीमत की सामग्री उपलब्ध कराए। लोग सरकार की नीतियों का विरोध जिला मुख्यालय पर धरना-प्रदर्शन करके कर रहे थे। जब गाँव के पुरुष जिला मुख्यालय पर धरना दे रहे थे, उसी समय खेल-सामग्री बनाने वाली कंपनी ने गाँव में जाकर पेड़ों की कटाई शुरू कर दी। इस स्थिति को देखकर ग्रामीण महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर पेड़ों की रक्षा की, जिसे ‘चिपको आंदोलन’ के नाम से जाना गया।

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NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 6

NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 6 (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 6 Geomorphic Processes (Hindi Medium)

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[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)

प्र० 1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
(i) निम्नलिखित में से कौन-सी एक अनुक्रमिक प्रक्रिया है?
(क) निपेक्ष
(ख) ज्वालामुखीयता
(ग) पटल विरूपण
(घ) अपरदन
उत्तर- (घ) अपरदन

(ii) जलयोजन प्रक्रिया निम्नलिखित पदार्थों में से किसे प्रभावित करती है?
(क) ग्रेनाइट
(ख) क्वार्ट्ज़
(ग) चीका (क्ले) मिट्टी
(घ) लवण
उत्तर- (घ) लवण

(iii) मलवा अवधान को किस श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है?
(क) भूस्खलन
(ख) तीव्र प्रवाही बृहत संचलन
(ग) मंद प्रवाही बृहत संचलन
(घ) अवतलन/धसकन
उत्तर- (ख) तीव्र प्रवाही बृहत संचलन

प्र० 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए:
(i) अपक्षय पृथ्वी पर जैव विविधता के लिए उत्तरदायी है। कैसे?
उत्तर- अपक्षय प्रक्रियाएँ चट्टानों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने एवं मृदा निर्माण के कार्य में ही सहायक नहीं होती हैं बल्कि वे अपरदन एवं बृहत संचलन के लिए भी उतरदायी हैं। जैव मात्रा एवं जैव विविधता प्रमुखतः वन की उपज हैं तथा वन अपक्षयी प्रवाल की गहराई अर्थात न केवल आवरण प्रस्तर एवं मिट्टी अपितु अपरदन बृहत संचलन पर निर्भर करता है। यदि चट्टानों का अपक्षय न हो तो अपरदन का कोई महत्त्व नहीं होता। चट्टानों का अपक्षय एवं निक्षेपण राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए अति महत्त्वपूर्ण एवं मूल्यवान है। यह कुछ खनिजों जैसे लोहा, मैगनीज, एल्युमिनियम, ताँबे के अयस्कों के समृद्धीकरण एवं संकेंद्रण में सहायक होता है।

(ii) बृहत संचलन जो वास्तविक, तीव्र एवं गोचर, अवगम्य (Perceptible) हैं, वे क्या हैं? सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर- बृहत संचलन के अंतर्गत वे सभी संचलन आते हैं, जिनमें चट्टानों के मलबे गुरुत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव के कारण ढाल अनुरूप स्थानांतरित होते हैं। भूस्खलन अपेक्षाकृत तीव्र एवं अवगम्य संचलन है। भूस्खलन मुख्यतः पर्वतीय भागों में अधिक होता है। पर्वतीय भागों में शिखरों की ढाल काफी तीव्र होती है। तीव्र ढाल के कारण शिखरों से पत्थर, मलबा, मिट्टी आदि घाटी की ओर गिरने लगते हैं। असम्बद्ध कमजोर पदार्थ, छिछले संस्तर वाली चट्टानें, भ्रंश, तीव्रता से झुके हुए संस्तर, खड़े भृगु या तीव्र ढाल, पर्याप्त वर्षा, मूसलाधार वर्षा, भूकंप तथा वनस्पति का अभाव, झीलों, नदियों एवं जलाशयों से भारी मात्रा में जल निष्कासन, विस्फोट
आदि बृहत संचलन को अनुकूलित करते हैं।

(iii) विभिन्न गतिशील एवं शक्तिशाली बहिर्जनिक भू-आकृतिक कारक क्या हैं तथा वे क्या प्रधान कार्य संपन्न करते हैं?
उत्तर- बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ सूर्य द्वारा निर्धारित वायुमंडलीय ऊर्जा एवं अंतर्जनित शक्तियों से नियंत्रित विवर्तनिक कारकों से उत्पन्न प्रवणता से अपनी ऊर्जा प्राप्त करती हैं। सभी बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं को एक सामान्य शब्दावली अनाच्छादन के अंतर्गत रखा जा सकता है। अनाच्छादन से तात्पर्य आवरण को हटाने से है। अपक्षय, वृहत क्षरण, संचलन, अपरदन, परिवहन आदि अनाच्छादन प्रक्रिया से सम्मिलित होते हैं। तापमान एवं वर्षण जलवायु के दो महत्त्वपूर्ण घटक हैं जोकि
विभिन्न भू-आकृतिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं।

(iv) क्या मृदा निर्माण में अपक्षय एक आवश्यक अनिवार्यता है?
उत्तर- मृदा निर्माण में अपक्षय एक आवश्यक अनिवार्यता है क्योंकि अपक्षय प्रक्रियाएँ शैलों को न केवल छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने तथा आवरण प्रस्तर एवं मृदा निर्माण के लिए मार्ग प्रशस्त करती हैं अपितु अपरदन एवं बृहत संचलन के लिए भी उत्तरदायी हैं। अपक्षय जलवायु, चट्टान निर्माणकारी पदार्थों की विशेषताओं एवं जीवों सहित कई अन्य कारकों के समुच्चय पर निर्भर करता है। मृदा निर्माण में मूल शैल एक निष्क्रिय नियंत्रक कारक है। मूल शैल को अपक्षय छोटे कण के रूप में परिवर्तित कर देता है और वही धीरे-धीरे मृदा का रूप ले लेता है।

प्र० 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए।
(i) “हमारी पृथ्वी भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के दो विरोधात्मक वर्गों के खेल का मैदान है,” विवेचना कीजिए।
उत्तर- धरातल पर दिखाई देने वाले विविध स्थलरूपों का निर्माण पृथ्वी के आंतरिक एवं बाह्य बलों के पारस्परिक प्रभाव के कारण होता है। इन बलों द्वारा मुलायम शैलें आसानी से काँटी-छाँटी जाती हैं जबकि अपेक्षाकृत कठोर शैलों पर इनका प्रभाव कम पड़ता है। अतः किसी क्षेत्र के स्थल रूपों के निर्माण में शैलों की अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। पृथ्वी के आंतरिक बल धरातल को निरंतर ऊपर उठाने में लगे रहते हैं। जबकि बाह्य बल उठे हुए भागों को काँट-छाँटकर समतल बनाने में निरंतर कार्यशील रहते हैं। इस प्रकार बाह्य बलों अर्थात तल संतुलन के कारकों के लगातार क्रियाशील रहने के कारण विविध प्रकार के स्थलरूप बनते रहते हैं। धरातल पर पाए जाने वाले प्रमुख स्थलरूप पर्वत, पठार और मैदान हैं। इन स्थलरूपों में बाह्य बल द्वारा अपरदन, निक्षेपण, परिवहन जैसी क्रियाएँ शुरू हो जाती हैं, जिससे कई नए स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। सामान्यतः अन्तर्जनित शक्तियाँ मूल रूप से आकृति निर्मात्री शक्तियाँ होती हैं। धरातल का निर्माण एवं विघटन क्रमशः अन्तर्जनित एवं बहिर्जनिक शक्तियों का परिणाम है।

(ii) ‘बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ अपनी अंतिम ऊर्जा सूर्य की गर्मी से प्राप्त करती हैं।’ व्याख्या कीजिए।
उत्तर- बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ अपनी अंतिम ऊर्जा सूर्य, की गर्मी से प्राप्त करती हैं। गर्मी के कारण शैलें फैलती हैं और सर्दी के कारण सिकुड़ती हैं। गर्म मरुस्थलीय प्रदेशों में दिन में तापमान बहुत ऊँचा हो जाता है। इसके विपरीत रातें बहुत ठंडी होती हैं। दैनिक ताप परिसर के अधिक होने के कारण शैलें क्रमिक रूप में फैलती और सिकुड़ती रहती हैं। इससे उनकी दरारें और जोड़ चौड़े हो जाते हैं। अंततः शैलें छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाती हैं। शैलें सामान्यतः ताप की कुचालक होती हैं। अधिक गर्मी के कारण शैलों की बाहरी परतें जल्दी से फैल जाती हैं। लेकिन भीतरी परतें गर्मी से लगभग अप्रभावित रहती हैं। क्रमिक रूप से फैलने और सिकुड़ने से शैलों की बाहरी परतें शैल के मुख्य भाग से अलग हो जाती हैं। इस प्रक्रिया में शैलों की परतें प्याज के छिलकों की तरह ही उतरती चली जाती हैं। उच्च तापमान और अधिक आर्द्रता वाले क्षेत्रों में रासायनिक अपक्षय अधिक तीव्रता से होता है। वनस्पति के प्रकार एवं वितरण, जो प्रमुखतः वर्षा एवं तापमान पर निर्भर करते हैं, बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं पर अप्रत्यक्ष प्रभाव डालते हैं। इन सभी बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं की शक्ति का स्रोत सौर ऊर्जा है। अतः हम कह सकते हैं कि बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी अंतिम ऊर्जा सूर्य की गर्मी से प्राप्त करती हैं।

(iii) क्या भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं? यदि नहीं तो क्यों? सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
उत्तर- भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय की प्रक्रियाएँ अलग-अलग हैं, लेकिन एक-दूसरे से संबंधित भी हैं। भौतिक बल द्वारा चट्टानों का विघटन होता है जबकि रासायनिक क्रिया द्वारा चट्टानों का अपघटन होता है। भौतिक अपक्षय प्रक्रियाओं में कुछ अनुप्रयुक्त शक्तियाँ जैसे गुरुत्वाकर्षण बल, तापक्रम में परिवर्तन, क्रिस्टल रवों में वृद्धि आदि सम्मिलित हैं। रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाओं का एक वर्ग जैसे विलयन, कार्बोनेटीकरण, जलयोजन, ऑक्सीकरण तथा न्यूनीकरण शैलों के अपघटन, विलयन अथवा न्यूनीकरण का कार्य करते हैं, जो रासायनिक क्रिया द्वारा सूक्ष्म अवस्था में परितर्तित हो जाती हैं। ऑक्सीजन, धरातलीय या मृदा-जल एवं अन्य अम्लों की प्रक्रिया द्वारा चट्टानों का न्यूनीकरण होता है। इस तरह से दोनों में अंतर देखने को मिलता है। लेकिन कई क्षेत्रों में भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय की ये प्रक्रियाएँ अंतर्संबंधित हैं। ये साथ-साथ चलती रहती हैं। तथा अपक्षय प्रक्रिया को त्वरित बना देती हैं। ये भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ चट्टानों को टुकड़ों या कणों में परिवर्तित करती हैं। दोनों चट्टानों में विखंडन करती हैं। दोनों मूल पदार्थों में अपघर्षण करती हैं।

(iv) आप किस प्रकार मृदा निर्माण प्रक्रियाओं तथा मृदा निर्माण कारकों के बीच अंतर ज्ञात करते हैं? जलवायु एवं जैविक क्रियाओं की मृदा निर्माण में दो महत्त्वपूर्ण कारकों के रूप में क्या भूमिका है?
उत्तर- मृदा निर्माण की प्रक्रिया-मृदा निर्माण में अपक्षय की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। भौतिक अपक्षय धरातलीय शैलों को विघटित करके उन्हें बारीक चूर्ण में बदल देता है। जल इन छोटे-छोटे शैल कणों को परतों के रूप में बिछा देता है। जैविक अपक्षय से ह्यूमस बनता है। यह जैव पदार्थ पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं के क्रियाकलापों से बनता है, जो मृदा के निर्माण में सहायता करता है। अपक्षय की प्रक्रिया से भिन्न-भिन्न रंगों और गुणों वाली मृदाओं का निर्माण होता है। मृदा निर्माण के कारक-मृदा निर्माण को नियंत्रित करने वाले कारकों में मूल शैल, उच्चावचे, समय, जलवायु तथा जैविक तत्व शामिल हैं। मूल शैल, उच्चावच, समय को निष्क्रिय कारक और जलवायु तथा जैविक तत्व को क्रियाशील कारक कहते हैं। आधारी शैल तथा जलवायु मृदा निर्माण के दो महत्त्वपूर्ण कारक हैं, क्योंकि ये अन्य कारकों को प्रभावित करते हैं। मृदा निर्माण के कारक

  1. मूल शैल – मृदा विभिन्न खनिजों से युक्त शैल या मूल शैल पदार्थों से निर्मित होती है।
  2. उच्चावच – किसी क्षेत्र की स्थलाकृति मूल शैल पदार्थों के अपरदन की मात्रा तथा वहाँ बहने वाले जल की गति को प्रभावित करती है। इस प्रकार मृदा निर्माण में सहायक प्रक्रियाएँ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में उच्चावच से प्रभावित होती हैं।
  3. समय – मृदा का निर्माण बहुत धीरे-धीरे होता है। इसलिए पूर्णरूप से विकसित मृदा के निर्माण में अधिक समय लगता है।
  4. जलवायु – मृदा निर्माण की प्रक्रिया में जलवायु सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कारक है।
  5. वनस्पति तथा जीव – पेड़-पौधे तथा जीव-जन्तु मूल शैल पदार्थों को विकसित मृदा में बदलने में एक सक्रिय भूमिका निभाते हैं।

परियोजना कार्य-
प्र० 1. अपने चतुर्दिक विद्यमान भूआकृति/उच्चावच एवं पदार्थों के आधार पर जलवायु, संभव अपक्षय प्रक्रियाओं एवं मृदा के तत्त्वों और विशेषताओं क परखिए एवं अंकित कीजिए।
उत्तर- छात्र स्वयं करें।

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