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NCERT Solutions for Class 11 History Chapter 8 Confrontation of Cultures (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 History Chapter 8 Confrontation of Cultures (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 History Chapter 8 Confrontation of Cultures (Hindi Medium)

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अभ्यास प्रश्न (पाठ्यपुस्तक से) (NCERT Textbook Questions Solved)

संक्षेप में उत्तर दीजिए

प्र० 1. एज़टेक और मेसोपोटामियाई लोगों की सभ्यता की तुलना कीजिए।
उत्तर एजटेक और मेसोपोटामियाई लोगों की सभ्यताओं की तुलना करने पर निम्नलिखित बिंदु उभरकर सामने आते हैं

  • एज़टेक सभ्यता मध्य अमेरिकी सभ्यता थी क्योंकि इसका विकास मध्य अमेरिका में ही हुआ था। जबकि मेसोपोटामियाई सभ्यता का विकास वर्तमान इराक गणराज्य के भू-भाग पर हुआ था।
  • एजटेक सभ्यता में चित्रात्मक लिपि का प्रचलन था। अत: उनका इतिहास भी चित्रात्मक ढंग से ही लिखा जाता था। दूसरी तरफ मेसोपोटामिया सभ्यता की लिपि को क्यूनिफॉर्म अर्थात् कलाकार लिपि के नाम से जाना जाता था। लातिनी शब्दों में, ‘क्यूनियस’ और ‘फोर्मा’ को मिलाकर ‘क्यूनीफार्म’ शब्द बना है। ‘क्यूनियस’ का अर्थ है-‘खुटी’ और ‘फोर्म’ का अर्थ है-‘आकार’ इस प्रकार से इस आशुलिपि का विकास चित्रों से हुआ। इस सभ्यता में लिपिक के कार्य को महत्त्वपूर्ण और सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। एक सुसंगठित लेखन कला की वजह से ही मेसोपोटामिया में उच्चकोटि के साहित्य का विकास संभव हुआ।
  • एजटेक सभ्यता का विकास बारहवीं और पंद्रहवीं शताब्दी के मध्य हुआ। अतः यह सभ्यता ऐतिहासिक युग में विकसित होने वाली सभ्यता थी। हालाँकि मेसोपोटामिया सभ्यता का विकास कांस्यकाल में हुआ। अतः यह कांस्यकालीन सभ्यता थी।
  • एजटेक निवासी कृत्रिम टापू निर्मित करने में दक्ष थे। उन्होंने सरकंडे की विशाल चटाइयाँ बुनने के पश्चात उन्हें मिट्टी, पत्तों आदि से ढंककर मैक्सिको झील में कृत्रिम टापुओं का निर्माण किया। ऐसे टापुओं को ‘चिनाम्पा’ के नाम से जाना जाता था। इन्हीं उपजाऊ द्वीपों के मध्य नहरें बनाई गईं। उन पर टेनोक्टिटलान शहर बसाया गया। इस प्रकार के शहरों का उदाहरण मेसोपोटामिया सभ्यता में नहीं मिलता। वस्तुतः मेसोपोटामियाई नहरों का विकास मंदिरों के आसपास हुआ था।
  • एज़टेक सभ्यता के अंतर्गत श्रेणीबद्ध समाज की संरचना थी। अभिजात वर्ग की समाज में अहम भूमिका थी। अभिजात वर्ग में पुरोहित, उच्च कुलों में उत्पन्न लोग, और वे लोग भी सम्मिलित थे जिन्हें बाद में प्रतिष्ठा प्रदान की गई थी। प्रश्तौनी अभिजात संख्या की दृष्टि से बहुत कम थे, जो सरकार, सेना तथा धार्मिक में ऊँचे-ऊँचे पदों पर आसीन थे। ये अपने वर्ग में से किसी एक को नेता के रूप चुनाव करते थे। चुना हुआ व्यक्ति आजीवन शासक के पद पर बना रहता था। समाज में पुरोहितों, योद्धाओं और अभिजात वर्ग के लोगों को अत्यधिक सम्मान की नज़र से देखा जाता था।
    हालाँकि मसोपोटामियाई समाज भी श्रेणीबद्ध समाज था। इसमें भी उच्च एवं संभ्रांत वर्ग के लोगों की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। पूँजी के अधिकांश भाग पर इसी वर्ग का कब्ज़ा था।
  • दोनों सभ्यताओं में शिक्षा को विशेष महत्त्व दिया जाता था। अतः अधिक-से-अधिक बच्चों को विद्यालय भेजने | की कोशिश की जाती थी। एजटेक सभ्यता में अभिजात वर्ग के बच्चों को जिस स्कूल में भेजा जाता था उसे ‘कालमेकाक’ कहा जाता था। इन स्कूलों में विशेष रूप से धर्माधिकार या सैन्य-अधिकारी बनने का प्रशिक्षण दिया जाता था। शेष बच्चे जिन स्कूलों में पढ़ते थे, उन्हें ‘तोपोकल्ली’ कहा जाता था। मेसोपोटामिया सभ्यता में बच्चों का शिक्षण देने का मुख्य उद्देश्य मंदिरों, व्यापारियों एवं राज्य को क्लर्क उपलब्ध करना था।

प्र० 2. ऐसे कौन-से कारण थे जिनसे 15वीं शताब्दी में यूरोपीय नौचालन को सहायता मिली?
उत्तर 15वीं शताब्दी में शुरू की गई यूरोपीय समुद्री यात्राओं ने एक महासागर को दूसरे महासागर से जोड़ने के लिए समुद्री मार्ग खोल दिए। सन् 1380 में ही दिशासूचक यंत्र का निर्माण हो चुका था। इस दिशासूचक यंत्र के माध्यम से यूरोपवासियों ने नए-नए क्षेत्रों की ठीक-ठीक जानकारी प्राप्त की। इसके अतिरिक्त यात्रा के साहित्य और विश्व-वृत्तांत वे भूगोल पर लिखी पुस्तकों ने पंद्रहवी शताब्दी में अमरीका महाद्वीप के बारे में यूरोपवासियों के दिलों में रुचि उत्पन्न कर दी। स्पेन और पुर्तगाल के शासक इन नए क्षेत्रों की खोजों के लिए धन देने को तैयार थे और ऐसा करने के लिए उनके आर्थिक, धार्मिक तथा राजनीतिक उद्देश्य भी थे। इस प्रकार 15वीं शताब्दी में यूरोपीय नौ-संचालन को सहायता देने वाले कारण निम्नलिखित थे

  • यूरोप महाद्वीप के बहुत से लोग जैसे पुर्तगाल एवं स्पेन के निवासी एवं उनके शासक दूसरे देशों से सोना और चाँदी प्राप्त करके विश्व के सबसे अमीर लोग बनना चाहते थे। इसका कारण था कि प्लेग और युद्धों के | कारण जनसंख्या में अत्यधिक कमी आई और व्यापार में मंदी आ गई थी। |
  • संसार के कुछ देशों के वासी अपनी ख्याति एवं प्रसिद्धि दुनिया के लोगों के सामने रखना चाहते थे और ऐसा | करने के लिए वे अनेक समुद्री यात्राओं पर निकल पड़े।
  • यूरोप के ईसाई अधिक-से-अधिक लोगों को अपने धर्म में परिवर्तित करने के लिए दूर-दूर के देशों की यात्राएँ करने को तैयार थे। धर्मयुद्धों के परिणामस्वरूप एशिया के साथ व्यापार में वृद्धि हुई। ऐसा समझा जाता था कि व्यापार के समानांतर यूरोपीय लोगों का इन देशों में राजनीतिक नियंत्रण स्थापित हो जाएगा तथा वे इन गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में अपनी बस्तियाँ स्थापित कर लेंगे।

इस प्रकार बाहरी दुनिया के लोगों को ईसाई बनाने की संभावना ने भी यूरोप के धर्मपरायण ईसाइयों को यूरोपीय नौसंचालन कार्यों की ओर उन्मुख किया।

प्र० 3. किन कारणों से स्पेन और पुर्तगाल ने पंद्रहवीं शताब्दी में सबसे पहले अटलांटिक महासागर के पार जाने का साहस किया?
उत्तर स्पेन और पुर्तगाल ने ही पंद्रहवी शताब्दी में सबसे पहले अटलांटिक महासागर के पार जाने का साहस किया। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

  • स्पेन और पुर्तगाल की भौगोलिक स्थिति ने उन्हें अटलांटिक पारगमन की प्रेरणा दी। इन देशों का अटलांटिक | महासागर पर स्थित होना उनके लिए अटलांटिक पारगमन का प्रथम महत्त्वपूर्ण कारण था।
  • एक स्वतंत्र राज्य बनने के बाद पुर्तगाल ने मछुवाही एवं नौकायन के क्षेत्र में विशेष प्रवीणता प्राप्त कर ली। पुर्तगाली मछुआरे एवं नाविक अत्यधिक साहसी थे और उनकी सामुद्रिक यात्राओं में विशेष अभिरुचि भी थी।
  • पुर्तगाली शासक प्रिन्स हेनरी वस्तुतः ‘नाविक हेनरी’ के नाम से प्रसिद्ध थे। उन्होंने नाविकों को जलमार्गों द्वारा नए-नए स्थानों की खोज के लिए प्रोत्साहित किया। उसने पश्चिमी अफ्रीकी देशों की यात्रा की तथा 1415 ई० में सिरश पर हमला किया। तत्पश्चात् पुर्तगालियों ने अनेक अभियान आयोजित करके अफ्रीका के बोजाडोर अंतरीप में अपना व्यापार केंद्र स्थापित किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने नाविकों के प्रशिक्षण के लिए एक प्रशिक्षण स्कूल की भी स्थापना की। परिणामतः 1487 ई० में पुर्तगाली नाविक कोविल्हम ने भारत के मालाबार तट पर पहुँचने में सफलता प्राप्त की।
  • इसी प्रकार स्पेनवासियों ने नाविक कोलंबस को भारत की खोज के लिए धन से यथासंभव सहायता की। नि:संदेह कोलबंस ने अटलांटिक सागर से होकर भारत पहुँचने का प्रयास किया, परंतु संयोगवश वह अमरीका की खोज करने में समर्थ हो गया।
  • 15वीं शताब्दी के अंत तक स्पेन ने यूरोप की सर्वाधिक महान सामुद्रिक शक्ति होने का गौरव प्राप्त कर लिया था। अंतः सोने-चाँदी के रूप में अपार धन-संपत्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से उसमें बढ़-चढ़कर अटलांटिक पारगमन यात्राओं में भाग लिया।
  • पोप के आशीर्वाद ने भी स्पेन और पुर्तगाल को अटलांटिक पारगमन यात्राओं की प्रेरणा दी। इसका कारण यह था कि इस दौरान जर्मनी और इंग्लैंड जैसे देश प्रोटेस्टेंट धर्म को अपनाकर पोप के विरोधी बन चुके थे। अतः पोप का आशीर्वाद स्पेन और पुर्तगाल के साथ था।

प्र० 4. कौन-सी नयी खाद्य वस्तुएँ दक्षिणी अमरीका से बाकी दुनिया में बेची जाती थीं?
उत्तर अमरीका की खोज के कई अहम् दीर्घकालीन एवं तात्कालिक परिणाम हुए। अनिश्चितता से पल-पल दो-चार होती सामूहिक यात्राएँ आगामी समय में न केवल यूरोप, अफ्रीका एवं अमरीका को अपितु पूरे विश्व को क्रांतिकारी रूप । से प्रभावित कीं। अमरीका की खोज के परिणामस्वरूप हासिल होने वाले सोने-चाँदी के असीम भंडार ने अद्यौगिकीकरण और अतंर्राष्ट्रीय व्यापार को काफी प्रोत्साहित किया। फ्रांस, हॉलैंड, बेल्जियम तथा इंग्लैंड जैसे देशों में संयुक्त पूँजी कंपनियों की स्थापना की। साथ-साथ व्यापक स्तर पर संयुक्त व्यापारिक अभियानों का आयोजन किया। यहाँ तक कि इन्होंने उपनिवेशवाद की भी स्थापना की और दक्षिणी अमरीका में उत्पन्न होने वाली खाद्य वस्तुओं; जैसे-तम्बाकू, आलू, गन्ना, ककाओ आदि से यूरोपवासियों को परिचित कराया। विशेष रूप से यूरोपवासियों को का परिचय आलू तथा लाल मिर्च से हुआ और सभी वस्तुएँ अमरीका दुनिया में भेजी जाने लगीं।

संक्षेप में निबंध लिखिए

प्र०5. गुलाम के रूप में पकड़कर ब्राजील ले जाए गए एक सत्रहवर्षीय अफ्रीकी लड़के की यात्रा का वर्णन करें?
उत्तर पुर्तगालियों का ब्राजील पर कब्जा महज एक इत्तफ़ाक था। पेड्रो अल्वारिस कैब्राल एक दिलेर नाविक था। उसने 1500 ई० में एक विशाल जहाजी बेड़े के साथ भारत की ओर प्रस्थान किया। लेकिन पश्चिमी अफ्रीका का एक बड़ा चक्कर लगाकर वह ब्राजील के समुद्रतट पर जा पहुँचा। यद्यपि पुर्तगालियों को ब्राजील से सोना मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी तथापि वे वहाँ की इमारती लकड़ी के द्वारा पर्याप्त धन कमा संकते थे।
नि:संदेह ब्राजील की इमारती लकड़ी की यूरोप में अत्यधिक माँग थी। इसके व्यापार को लेकर पुर्तगाली और फ्रांसीसी व्यापारी बार-बार संघर्ष में उलझते रहते थे। लेकिन अंत में विजय पुर्तगालियों को मिली। इसी क्रम में पुर्तगाल के राजा ने 1534 ई० में ब्राजील के तट को 14 आनुवंशिक कप्तानियों में विभक्त कर दिया और उनके स्वामित्व के अधिकार को वहाँ स्थायी रूप से रहने के इच्छुक पुर्तगालियों को सौंप दिया। इसके साथ ही, उन्हें स्थानीय लोगों को गुलाम बनाने का अधिकार भी प्रदान कर दिया। ऐसा अनुमान है कि 1550-1580 शक्तियों ने ब्राजील में करीब 36 लाख से भी अधिक अफ्रीकी गुलामों का आयात किया।

ऐसे ही गुलामों में एक सत्रहवर्षीय लड़का भी सम्मिलित था। उसके हाथ बाँधकर उसे अन्य गुलामों के साथ पशुओं के समान जहाज पर लाद दिया गया। उन सबको कड़ी निगरानी के बीच पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन लाया गया। लिस्बन के एक बड़े बाजार में सभी गुलामों को बेचने के लिए खड़ा कर दिया गया। उस सत्रहवर्षीय गुलाम लड़के की भी बोली लगाई गई। यह सत्य है कि सभी लोग उस जवान लड़के को खरीदना चाहते थे। इसका कारण यह था कि वह स्वस्थ, और हट्टा-कट्टा था तथा अन्य की अपेक्षा अधिक काम कर सकता था। अंत में सबसे ऊँची बोली लगाकर एक व्यक्ति ने उसे लादकर ब्राजील भेज दिया।

ब्राजील में, उस गुलाम लड़के को कठोर से कठोर काम में लगाया जाता था। कभी वृक्षों को काटने को, कभी उसे जहाज में लकड़ी लादने के काम में लगा दिया जाता था तो कभी उससे खेती का काम करवाया जाता था। नि:संदेह उससे पशुओं के समान काम लिया जाता था और वह पशुओं जैसा जीवन व्यतीत करने के लिए विवश था। उसे न तो आत्मसम्मानपूर्वक जीने का अधिकार था और न ही आराम से जीवन व्यतीत करने का। यहाँ तक कि वह अपने नारकीय जीवन से छुतकारा भी पाना चाहता था, लेकिन वह भागने में असमर्थ था। वह जानता था कि उसके एक साथी को भागने का प्रयास करने पर अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा था। हालाँकि वह बुद्धिमान था। केवल भाग्य उसके साथ नहीं था। अंत में उसने अपनी परिस्थितियों से समझौता कर लिया और आजीवन अपने स्वामी का एक निष्ठावान सेवक बने रहने का फैसला लिया।

प्र० 6. दक्षिणी अमरीका की खोज ने यूरोपीय उपनिवेशवाद के विकास को निम्नलिखित प्रकार से जन्म दिया
उत्तर

  • दक्षिणी अमरीका की खोज से पुर्तगाल और स्पेन को भारी मात्रा में सोने-चाँदी की प्राप्ति हुई। इसे देखकर फ्रांस, इंग्लैंड, हॉलैंड और इटली जैसे देश आश्चर्यचकित रह गए। फलतः ये देश भी अमरीकी महाद्वीपों में अपनी-अपनी बस्तियाँ बनाने के लिए प्रयास करने लगे। इस प्रकार उपनिवेशवाद और वहाँ का प्राकृतिक दोहन करने के दौर में विश्व के अनेक देश सम्मिलित हो गए।
  • इस क्रम में स्पेन ने मध्य और दक्षिणी अमरीका के अनेक हिस्सों पर तथा फ्लोरिडा एवं आधुनिक संयुक्त राज्य अमरीका के दक्षिणी-पश्चिमी हिस्सों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। पुर्तगाल ने ब्राजील पर अधिकार कर लिया। इंग्लैंड ने अटलांटिक सागर की तटवर्ती तेरह बस्तियों, कैरीबियन सागर के कुछ टापुओं तथा मध्य अमरीका में ब्रिटिश होडुरास पर अपना प्रभुत्व कायम कर लिया। हॉलैंड ने उत्तरी अमरीका की हडसन घाटी तथा कैरीबियन के कुछ द्वीपों सहित गुयाना पर अपना नियंत्रण स्थापित किया। उपनिवेशवाद की दौड़ में स्वीडन भी पीछे नहीं था। उसने भी उत्तरी अमरीका की प्रसिद्ध घाटी दिलावरे नदी की घाटी पर अपना अधिकार जमा लिया।
  • अमरीका की खोज यूरोपीय देशों के लिए आर्थिक दृष्टिकोण से काफी सकारात्मक रही। इन देशों में सोने-चाँदी की बाढ़-सी आ गई। फलतः अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और औद्योगीकरण को काफी बढ़ावा मिला। 1560 ई० से लगभग 40 वर्षों तक सैकड़ों जहाज निरंतर दक्षिणी अमरीका की खानों से चाँदी स्पेन लाते रहे। औद्योगिकीकरण के विस्तार से यूरोपीय कारखानों द्वारा भारी मात्रा में उत्पाद तैयार किया जाने लगा। जिसे बेचने के लिए नए-नए बाजारों की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। इससे भी उपनिवेशवाद को काफी प्रोत्साहन मिला। परिणामस्वरूप विश्व के सभी समृद्ध देश उपनिवेशवाद की दौड़ में शामिल हो गए। बहुत जल्द ही अफ्रीका और एशिया के अनेक देश विभिन्न यूरोपीय शक्तियों के उपनिवेश बन गए।

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NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 3 Organisation of Data (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 3 (Hindi Medium)

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प्रश्न अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

प्र.1. निम्नलिखित में से कौन-सा विकल्प सही है?

एक वर्ग मध्यबिन्दु बराबर हैं:

(क) उच्च वर्ग सीमा तथा निम्न वर्ग सीमा के औसत के।
(ख) उच्च वर्ग सीमा तथा निम्न वर्ग सीमा के गुणनफल के।
(ग) उच्च वर्ग सीमा तथा निम्न वर्ग सीमा के अनुपात के।
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।

उत्तर (क) उच्च वर्ग सीमा तथा निम्न वर्ग सीमा के औसत के।

दो चरों के बारंबारता वितरण को इस नाम से जानते हैं?

(क) एक विचर वितरण
(ख) द्विचर वितरण
(ग) बहुचर वितरण
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं

उत्तर (ख) द्विचर वितरण

वर्गीकृत आँकड़ों में सांख्यिकीय परिकलेन आधारित होता है।

(क) प्रेक्षणों के वास्तविक मानों पर
(ख) उच्च वर्ग सीमाओं पर
(ग) निम्न वर्ग सीमाओं पर
(घ) वर्ग के मध्यबिंदुओं पर

उत्तर (क) प्रेक्षणों के वास्तविक मानों पर

अपवर्जी विधि के अंतर्गतः

(क) किसी वर्ग की उच्च वर्ग सीमा को वर्ग अंतराल में समावेक्षित नहीं करते।
(ख) किसी वर्ग की उच्च वर्ग सीमा को वर्ग अंतराल में समावेशित करते हैं।
(ग) किसी वर्ग की निम्न वर्ग सीमा को वर्ग अंतराल में समावेशित नहीं करते।
(घ) किसी वर्ग की निम्न वर्ग सीमा को वर्ग अंतराल में समावेशित करते हैं।

उत्तर (ग) किसी वर्ग की निम्न वर्ग सीमा को वर्ग अंतराल में समावेशित नहीं करते।

परास का अर्थ है:

(क) अधिकतम एवं न्यूनतम प्रेक्षणों के बीच अंतर
(ख) न्यूनतम एवं अधिकतम प्रेक्षणों के बीच अंतर
(ग) अधिकतम एवं न्यूनतम प्रेक्षणों का औसत
(घ) अधिकतम एवं न्यूनतम प्रेक्षणों का अनुपात

उत्तर (क) अधिकतम एवं न्यूनतम प्रेक्षणों के बीच अंतर

प्र.2. वस्तुओं को वर्गीकृत करने में क्या कोई लाभ हो सकता है? अपनी दैनिक जीवन से एक उदाहरण देकर व्याख्या कीजिए।
उत्तर हाँ वस्तुओं को वर्गीकृत करने का बहुत लाभ है

  1. यह अपरिष्कृत आँकड़ों को सांख्यिकीय विश्लेषण के लिए एक सही रूप में संक्षिप्त करता है।
  2. यह जटिलताओं को दूर करता है तथा आँकड़ों की विशेषताओं को उजागर करता है।
  3. यह तुलना करने तथा निष्कर्ष निकालने में सहायता करता है। उदाहरण के लिए यदि एक विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को उनके विषय तथा लिंग के आधार पर वर्गीकृत किया जाए तो तुलना करना अति सरल होगा।
  4. यह दिए गए आँकड़ों के तत्वों के अंतर संबंध के बारे में जानकारी प्रदान करता है। उदाहरण के लिए साक्षरता तथा अपराध दरों के आँकड़ों से हम यह सहसंबंध स्थापित कर सकते हैं कि क्या ये एक दूसरे से संबंधित हैं।
  5. यह समान तत्वों को एक समान करके आँकड़ों को समरूप समूहों में परिवर्तित करता है तथा उनमें समान व असमानताएँ ज्ञात करता है।

प्र.3. चर क्या है? एक संतत तथा विविक्त चर के बीच भेद कीजिए।
उत्तर किसी तथ्य की विशेषता या प्रक्रिया जिसे संख्याओं के रूप में मापा जा सके तथा जो समय प्रति समय, व्यक्ति प्रति व्यक्ति तथा समये प्रति समय परिवर्तनशील हो, उसे चर कहा जाता है। एक व्यक्ति की नाक चर नहीं हो सकती क्योंकि यह परिवर्तनशील नहीं है। सभी की एक ही नाक है। कद और वजन यह है क्योंकि ये व्यक्ति प्रति व्यक्ति अलग-अलग होते हैं।

विविक्त तथा संतत चर

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प्र.4. आँकड़ों के वर्गीकरण में प्रयुक्त अपवर्जी तथा समावेशी विधियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर आँकड़ों को संतत श्रृंखला में वर्गीकृत करने की दो विधियाँ हैं:

  • अपवर्जी श्रृंखला
  • समावेशी श्रृंखला

अपवर्जी श्रृंखला – इस विधि में एक वर्ग की निचली सीमा अगले वर्ग की ऊपरी सीमा होती है। इसमें ऊपरी सीमा वर्ग अन्तराल में शामिल नहीं होती। उदाहरण के लिए;

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समावेशी श्रृंखला – इस विधि में एक वर्ग की निचली सीमा अगले वर्ग की ऊपरी सीमा नहीं होती। इसमें निम्न तथा उच्च दोनों सीमाएँ वर्ग अंतराल में शामिल होती हैं। उदाहरण के लिए;

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प्र.5. सारणी 3.2 के आँकड़ों का प्रयोग करें, जो 50 परिवारों के भोजन पर मासिक व्यय (रु. में) को दिखलाती है, और
(क) भोजन पर मासिक परिवारिक व्यय का प्रसार ज्ञात कीजिए।
(ख) परास को वर्ग अंतराल की उचित संख्याओं में विभाजित करें तथा व्यय का बारंबारता वितरण प्राप्त करें।
उन परिवारों की संख्या पता कीजिए जिनका भोजन पर मासिक व्यय
(क) 2000/- रु. से कम है।
(ख) 3000/- रु. में अधिक है।
(ग) 1500/-रु. और 2500 रु के बीच है।
उत्तर

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प्र.6. एक शहर में, यह जानने हेतु 45 परिवारों का सर्वेक्षण किया गया कि वे अपने घरों में कितनी संख्या में सेल फोनों का इस्तेमाल करते हैं। नीचे दिए गए उनके उत्तरों के आधार पर एक बारंबारता सारणी तैयार कीजिए।

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उत्तर

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प्र.7. वर्गीकृत आँकड़ों में सूचना की क्षति’ का क्या अर्थ है?
उत्तर- बारंबारता वितरण के रूप में आँकड़ों के वर्गीकरण में एक अंतर्निहित दोष पाया जाता है। यह अपरिष्कृत आँकड़ों का सारांश प्रस्तुत कर उन्हें संक्षिप्त एवं बोधगम्य तो बनाता है, परंतु इसमें वे विस्तृत विवरण नहीं प्रकट हो पाते जो अपरिष्कृत आँकड़ों में पाए जाते हैं यद्यपि अपरिष्कृत आँकड़ों को वर्गीकृत करने में सूचना की क्षति होती है, तथापि आँकड़ों को वर्गीकरण द्वारा संक्षिप्त करने पर पर्याप्त जानकारी मिल जाती है। एक बार जब आँकड़ों को वर्गों में समाहित कर दिया जाता है तब व्यष्टि प्रेक्षणों का आगे सांख्यिकीय परिकलनों में कोई महत्त्व नहीं होता। उदाहरण 4 में वर्ग 20-30 के अंतर्गत 6 प्रक्षेण 25, 25, 20, 22, 25 एवं 28 है। इसलिए जब इन आँकड़ों को बारंबारता वितरण में वर्ग 20-30 में समूहित कर दिया जाता है, तब यह बारंबारता वितरण उस वर्ग की बारंबारता (जैसे 6) को दिखाता है, न कि उनके वास्तविक मानों को। इस वर्ग के सभी मानों को उस वर्ग के वर्ग अंतराल के मध्य मान या वर्ग चिह्न के बराबर माना जाता है (अर्थात् 25) आगे की सांख्यिकीय परिकलनों के लिए वर्ग चिह्न के मान को आधार बनाया जाता है, न कि उस वर्ग के प्रेक्षणों के मान को। यही बात सभी वर्गों के लिए सत्य है।

प्र.8. क्या आप इस बात से सहमत हैं कि अपरिष्कृत आँकड़ों की अपेक्षा वर्गीकृत आँकड़े बेहतर होते हैं?
उत्तर हाँ, हम इस बात से सहमत हैं कि अपरिष्कृत आँकड़ों की अपेक्षा वर्गीकृत आँकड़े बेहतर होते हैं। यह अपरिष्कृत आँकड़ों को सांख्यिकीय विश्लेषण के लिए एक सही रूप में संक्षिप्त करता है। यह जटिलताओं को दूर करता है तथा आँकड़ों की विशेषताओं को उजागर करता है। यह तुलना करने तथा निष्कर्ष निकालने में सहायता करता है। यह दिए गए आँकड़ों के तत्वों के अंतरसंबंध के बारे में जानकारी प्रदान करता है। यह समान तत्वों को एक समान करके आँकड़ों को समरूप समूहों में परिवर्तित करता है तथा उनमें समान व अमानताएँ ज्ञात करता है।

प्र.9. एक-विचर एवं द्विचर बारंबारता वितरण के बीच अंतर बताइए।
उत्तर
एक विचर बारंबारता वितरण एकल चर के बारंबारता वितरण को एक-विचर वितरण कहा जाता है।

उदाहरणः

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द्विचर बारंबारता वितरण
एक द्विचर बारंबारता वितरण, दो चरों का बारंबारता वितरण है।
उदाहरण

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प्र.10. निम्नलिखित आँकड़ों के आधार पर 7 का वर्ग अंतराल लेकर समावेशी विधि द्वारा एक बारंबारता वितरण तैयार कीजिए।

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उत्तर

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NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 1 Indian Economy on the Eve of Independence (Hindi Medium)

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प्रश्न अभ्यास
पाठ्यपुस्तक से

प्र.1. भारत में औपनिवेशिक शासन की आर्थिक नीतियों का केंद्र बिंदु क्या था? उन नीतियों के क्या प्रभाव हुए?
उत्तर : औपनिवेशिक शासकों द्वारा रची गई आर्थिक नीतियों का ध्येय भारत का आर्थिक विकास नहीं था अपितु अपने मूल देश के आर्थिक हितों का संरक्षण और संवर्धन ही था। इन नीतियों ने भारत की अर्थव्यवस्था के स्वरूप के मूलरूप को बदल डाला।
(क) एक तो वे भारत को इंग्लैंड में विकसित हो रहे आधुनिक उद्योगों के लिए कच्चे माल का निर्यातक बनाना चाहते थे।
(ख) वे उन उद्योगों के उत्पादन के लिए भारत को एक विशाल बाजार भी बनाना चाहते थे। इसके परिणामस्वरूप भारत एक खस्ताहालत अर्थव्यवस्था बनकर रह गया। एम. मुखर्जी के अनुसार, “1857-1956 के बीच प्रतिव्यक्ति आय की वार्षिक वृद्धि दर 0.5% प्रति वर्ष जितनी कम थी।” अतः अंग्रेजी शासन के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था एक खस्ताहालत अर्थव्यवस्थी रही। अंग्रेज़ी शासन समाप्त होने पर वे भारत को एक खोखली और स्थिर अर्थव्यवस्था के रूप में छोड़कर गए।

  1. निरक्षरता, जन्म दर तथा मृत्यु दर बहुत अधिक था। कुल जनसंख्या का केवल 17% हिस्सा ही साक्षर था। इसी तरह जन्म दर तथा मृत्यु दर क्रमशः 45.2 प्रति हज़ार (1931-41 के दौरान) तथा 40 प्रति हज़ार (1911-21 के दौरान) थी।
  2. देश संयंत्र और आर्थिक विकास के लिए आवश्यक मशीनरी के लिए लगभग पूरी तरह से अन्य देशों पर निर्भर था। वर्तमान जीवन और गतिविधि को बनाए रखने के लिए कई आवश्यक वस्तुओं क़ा आयात करना पड़ता था।
  3. आज़ादी के समय भारत एक कृषि प्रधान देश था। कार्यरत जनसंख्या का 70-75% हिस्सा कृषि में संलग्न था परंतु फिर भी देश खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर नहीं था।
  4. आधारिक संरचना बहुत हद तक अविकसित थी।

प्र.2. औपनिवेशिक काल में भारत की राष्ट्रीय आय का आकलन करने वाले प्रमुख अर्थशास्त्रियों के नाम बताइए।
उत्तर : दादा भाई नौरोजी, बी.के.आर.वी. राव, विलियम डिग्बी, फिडले शिराज, आर.सी. देसाई।

प्र.3. औपनिवेशिक शासनकाल में कृषि की गतिहीनता के मुख्य कारण क्या थे?
उत्तर : औपनिवेशिक शासनकाल में कृषि की गतिहीनता के मुख्य कारण इस प्रकार थे

(क)
पट्टेदारी प्रणाली-भारत में अंग्रेजों ने एक भू-राजस्व प्रणाली शुरू की जिससे जमींदारी प्रथा कहा गया। इसके अंतर्गत कृषकों, ज़मींदारों तथा सरकार के बीच एक त्रिकोणीय संबंध स्थापित किया गया। जमींदार जमीनों के स्थायी मालिक थे जिन्हें सरकार को एक तय राशि कर के रूप में देनी पड़ती थी। बदले में, वे कृषकों पर किसी भी दर पर कर लगा सकते थे। इस प्रथा ने कृषको की हालत भूमिहीन मज़दूरों जैसी कर दी। ऐसी परिस्थितियों में भी वे कार्यरत रहे क्योंकि अन्य कोई रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं थे।

(ख)
कृषि के व्यावसायिकरण का प्रत्यापन-कृषकों को खाद्यान्न फसलों को छोड़ वाणिज्यिक फसलों पर जाने के लिए मजबूर किया गया। उन्हें ब्रिटेन में विकसित हो रहे कपड़ा उद्योग के लिए नील की आवश्यकता थी। कृषि के व्यावसायिकरण ने भारतीय कृषि को बाजार की अनिश्चिताओं से परीचित कराया। अब उन्हें अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ खरीदने के लिए नकदी की जरूरत थी। परंतु अपनी ऋणग्रस्तता के कारण उनके पास नकदी का सदा अभाव रहता था। इसने उन्हें कृषि से जुड़े रहने के लिए मजबूर कर दिया तथा जमींदारों और साहूकारों की दया पर निर्भर कर दिया।

(ग)
आधारिक संरचना की कमी-ब्रिटिश शासकों ने सिंचाई की सुविधाएँ बढ़ाने या तकनीकी विकास करने पर कोई ध्यान नहीं दिया।

(घ)
भारत का विभाजन- भारत के विभाजन ने भी भारतीय कृषि को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया। कलकत्ता की जूट मिलों तथा बंबई और अहमदाबाद के कपड़ा मिलों में कच्चे माल की कमी हो गई। पंजाब और सिंध जैसे अमीर खाद्यान्न क्षेत्र भी पाकिस्तान में चले जाने से खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो गया।

प्र.4. स्वतंत्रता के समय देश में कार्य कर रहे कुछ आधुनिक उद्योगों के नाम बताइए।
उत्तर : टोटा आयरन और स्टील उद्योग (टिस्को) 1907 में शुरू की गई थी, देश में कार्य कर रहे अन्य आधुनिक उद्योगों में चीनी उद्योग, इस्पात उद्योग, सीमेंट उद्योग, रसायन उद्योग और कागज़ उद्योग शामिल थे।

प्र.5. स्वतंत्रता पूर्व अंग्रेजों द्वारा भारत के व्यवस्थित वि-औद्योगीकरण का दोहरे ध्येय क्या थे?
उत्तर : भारत के व्यवस्थित वि-औद्योगीकरण का दोहरा ध्येय इस प्रकार था
(क) भारत को इंग्लैंड में विकसित हो रहे आधुनिक उद्योगों के लिए कच्चे माल का निर्यातक बनाना।
(ख) उन उद्योगों के उत्पादन के लिए भारत को एक विशाल बाजार बनाना।

प्र.6. अंग्रेजी शासन के दौरान भारत के परंपरागत हस्तकला उद्योगों का विनाश हुआ। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर के पक्ष में कारण बताइए।
उत्तर : हाँ, हम इस दृष्टिकोण से पूरी तरह सहमत हैं। ब्रिटिश नीतियाँ सदा से स्वहितों से निदेर्शित रही। ब्रिटेन ने कभी भी यह कष्ट नहीं उठाया कि वे इस तरफ ध्यान दें कि उनकी नीतियों का भारत के लोगों पर बेरोज़गार के रूप में, मानवीय कष्टों या कृषि क्षेत्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने भारतीय हस्तकला उद्योगों पर भारी दर से कर लगाए ताकि भारतीय वस्त्र ब्रिटेन में बने ऊनी या रेशमी वस्त्रों से अधिक महँगे हो जाए। उन्होंने कच्चे माल के निर्यात को तथा ब्रिटेन से उत्पादित माल के आयात को कर मुक्त रखा। परंतु भारतीय हस्तकला उद्योगों के माल के निर्यात पर भारी कर लगाए। इसके अतिरिक्त भारतीय हस्तशिल्प उद्योग को मशीनों से बने सामान से भी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। इसने भारतीय हस्तशिल्प उद्योग की बर्बादी में मुख्य भूमिका निभाई।

प्र.7. भारत में आधारिक संरचना विकास की नीतियों से अंग्रेज़ अपने क्या उद्देश्य पूरा करना चाहते थे?
उत्तर :
औपनिवेशिक शासनकाल में भारत में रेलों, पत्तनों, जल परिवहन व डाक-तार आदि का विकास हुआ परंतु इसका ध्येय जनसामान्य को अधिक सुविधाएँ प्रदान करना नहीं था अपितु इसके पीछे औपनिवेशिक हित साधने का ध्येय था।

(क)
अंग्रेज़ी शासन से पहले बनी सड़कें आधुनिक यातायात साधनों के लिए उपयुक्त नहीं थी। अतः सड़कों का निर्माण इसलिए किया गया ताकि देश के भीतर उनकी सेनाओं के आवागमन की सुविधा हो सके तथा देश के भीतरी भागों से कच्चा माल निकटतम रेलवे स्टेशन या पत्तने तक पहुँचाया जा सके।

(ख)
डाक, तार तथा संचार के साधनों का विकास कुशल प्रशासन के लिए किया गया।

(ग)
एक अन्य उद्देश्य यह भी था कि अंग्रेज़ी धन का भारत में लाभ अर्जित करने के लिए निवेश किया जाये।

प्र.8. ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा अपनाई गई औद्योगिक नीतियों की कमियों की आलोचनात्मक विवेचना करें। (HOTS)
उत्तर : भारत औपनिवेशिक शासनकाल में एक शक्तिशाली औद्योगिक ढाँचे का विकास नहीं कर सका। यह निम्न तथ्यों के आधार पर सिद्ध किया जा सकता है

(क)
समान गुणवत्ता के किसी भी विकल्प के बिना हस्तकला उद्योग में गिरावट-ब्रिटेन का एकमात्र उद्देश्य सस्ती से सस्ती कीमतों पर भारत से कच्चा माल प्राप्त करना तथा भारत में ब्रिटेन से आया उत्पादित माल बेचना था। भारतीय हस्तशिल्प वस्तुओं की ब्रिटेन की मशीनों द्वारा बनाई गई वस्तुओं की तुलना में विदेशों में एक बेहतर प्रतिष्ठा थी इसलिए उन्होंने नीतिगत रीति से आयात को शुल्क मुक्त तथा हस्तशिल्प के निर्यात पर उच्च कर लगाकर भारतीय हस्तशिल्प उद्योग को बर्बाद कर दिया। उन्होंने इन नीतियों से बेरोजगारी, मानवीय पीड़ा या आर्थिक वृद्धि की दर पर होने वाले प्रभाव के प्रति कोई विचार नहीं किया।

(ख)
आधुनिक उद्योग का अभाव-भारत में आधुनिक उद्योग उन्नीसवीं सदी के दूसरे छमाही के दौरान विकसित होना शुरू हुआ। परंतु इसकी विकास दर बहुत धीमी और अवरुद्ध पूर्ण थी। औपनिवेशिक काल के अंत तक उद्योग और प्रौद्योगिक का स्तर निम्न रहा। उन्नीसवीं सदी के दौरान औद्योगिक विकास कपास और जूट कपड़ा मिलों तक ही सीमित था। लौह और इस्पात उद्योग 1907 में आया जबकि चीनी, सीमेंट और कागज़ उद्योग 1930 के दशक में विकसित हुए।

(ग)
पूँजीगत उद्योग को अभाव-भारत में मुश्किल से ही कोई पूँजीगत उद्योग थे जो आधुनिकीकरण को आगे बढ़ावा दे। सकें। 70% संयंत्र तथा मशीनरी का आयात किया जा रहा था। भारत अपनी तकनीकी तथा पूँजीगत वस्तुओं की आवश्यकता के लिए आयात पर निर्भर था।

(घ)
व्यावसायिक संरचना-निम्न विकास दर का सूचक: भारतीय अर्थव्यवस्था के अल्प विकसित होने का सबूत इस बात से मिल जाता है कि कार्यशील जनसंख्या का 72% हिस्सा कृषि में संलग्न था और 11.9% औद्योगिक क्षेत्र में संलग्न था। राष्ट्रीय आय में औद्योगिक क्षेत्र का हिस्सा 25.3% था जबकि कृषि का योगदान 57.6% हिस्से का था।

प्र.9. औपनिवेशिक काल में भारतीय संपत्ति के निष्कासन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर : विदेशी शासन के अंतर्गत भारतीय आयात-निर्यात की सबसे बड़ी विशेषता निर्यात अधिशेष का बड़ा आकार रहा। किंतु इस अधिशेष का देश के सोने और चाँदी के प्रवाह पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वास्तव में इसका उपयोग तो निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए किया गया।
(क) अंग्रेज़ों की भारत पर शासन करने के लिए गढ़ी गई व्यवस्था का खर्च उठाना।
(ख) अंग्रेज़ी सरकार के युद्धों पर व्यय तथा अदृश्य मदों के आयात पर व्यय।

प्र.10. जनांकिकीय संक्रमण के प्रथम से द्वितीय सोपान की ओर संक्रमण का विभाजन वर्ष कौन-सा माना जाता है?
उत्तर : 1921.

प्र.11. औपनिवेशिक काल में भारत की जनांकिकीय स्थिति को एक संख्यात्मक चित्रण प्रस्तुत करें। |
उत्तर :
(क) उच्च जन्म दर और मृत्यु दर-भारत जनांकिकीय संक्रमण के दूसरे चरण में था। अत: उच्च जन्म दर और गिरती मृत्यु दर के कारण इसे “जनसंख्या विस्फोट” का सामना करना पड़ रहा था।

(ख)
निम्न स्तरीय गुणात्मक पहलू-जनसंख्या के गुणात्मक पहलू भी कुछ उत्साहजनक नहीं रहे।

  1. उच्च शिशु मृत्यु दर-स्वतंत्रता के समय शिशु मृत्यु दर 218 प्रति हज़ार जितना उच्च था।
  2. व्यापक निरक्षरता-औसतन साक्षरता दर 16.5% से कम थी। केवल 7% महिलाएँ साक्षर थीं।
  3. निम्नस्तरीय जीवन प्रत्याशा-जीवन प्रत्याशा मात्र 32 वर्ष थी, जो नितांते अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं का संकेत है।
  4. व्यापक गरीबी तथा निम्न जीवन स्तर-लोगों को अपनी आय का 80-90% हिस्सा आधारभूत आवश्यकताओं पर
    खर्च करना पड़ रहा था। कुल जनसंख्या का 52% हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे था। देश के कुछ हिस्सों में अकाल समान स्थितियों का सामना करना पड़ रहा था।

प्र.12. स्वतंत्रता पूर्व भारत की जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना की प्रमुख विशेषताएँ समझाइये।
उत्तर : अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के बीच कार्यबल के वितरण को उस देश की व्यावसायिक संरचना कहा जाता है। स्वतंत्रता पूर्व भारत की जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना की प्रमुख विशेषताओं को निम्न तथ्यों से जाना जा सकता है।
(a) कृषि क्षेत्र की प्रधानता-कृषि क्षेत्र अर्थव्यवस्था की व्यावसायिक संरचना में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था। भारत की कार्यशील जनसंख्या का 70-75% हिस्सा कृषि में संलग्न था, 10% हिस्सा औद्योगिक क्षेत्र तथा 15-20% हिस्सा सेवा क्षेत्र में संलग्न था।
(b) बढ़ रही क्षेत्रीय असमानता-व्यावसायिक संरचना में क्षेत्रीय विविधताएँ बढ़ रही थी। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक (जो उस समय मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा थे) जैसे राज्यों में कार्यबल की कृषि पर निर्भरता कम हो रही थी जबकि उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान में कृषि पर निर्भर कार्यबल में वृद्धि हो रही थी।

प्र.13. स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष उपस्थित प्रमुख आर्थिक चुनौतियों को रेखांकित करें।
उत्तर : शोषक औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन ने भारतीय अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र को बुरी तरह से बर्बाद कर दिया। अंततः परिणामस्वरूप भारत को स्वतंत्रता के समय विशाल आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। भारतीय अर्थव्यवस्था को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा उनमें से मुख्य इस प्रकार हैं

(क)
कृषि उत्पादकता का निम्न स्तर-औपनिवेशिक शासन के दौरान अंग्रेजों ने भारतीय कृषि को अपने हितों के अनुसार इस्तेमाल किया। परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र को गतिहीनता, निम्न उत्पादकता स्तर निवेश का अभाव, भूमिहीन किसानों की खस्ताहालत जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसीलिए भारत के लिए तत्कालिक समस्या यह थी कि वह कृषि क्षेत्र तथा इसकी उत्पादकता का विकास किस प्रकार करे। स्वतंत्रता के समय कुछ तत्कालिक जरूरत इस प्रकार थी-जमींदारी प्रथा का उन्मूलन करना, भूमि सुधार नीतियाँ बनाना, भूमि के स्वामित्व की असमानताओं को कम करना तथा किसानों का उत्थान करना।

(ख)
बाल्यकालीन औद्योगिक क्षेत्र-कृषि की ही भाँति भारत एक सुदृढ़ औद्योगिक आधार का विकास नहीं कर पाया। औद्योगिक क्षेत्र का विकास करने के लिए भारत को विशाल पूँजी, निवेश, आधारिक संरचना मानव कुशलताएँ, तकनीकी ज्ञान तथा आधुनिक तकनीक की आवश्यकता थी। इसके अलावा, ब्रिटिश उद्योगों से कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण भारतीय घरेलू उद्योग बने रहने में विफल रहे। इस प्रकार लघु और बड़े उद्योगों को एक साथ अपने औद्योगिक क्षेत्र में विकसित करना भारत के लिए एक मुख्य चिंता का विषय था। इसके अलावा भारत में सकल घरेलू उत्पाद में औद्योगिक क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाने की जरूरत थी जो भारत के लिए महत्त्वपूर्ण आर्थिक चुनौतियों में से एक था।

(ग)
आधारिक संरचना में कमी-हालाँकि देश की आधारिक संरचना में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किया गया। परंतु यह कृषि और औद्योगिक क्षेत्र के प्रदर्शन में सुधार करने के लिए पर्याप्त नहीं था। इसके अतिरिक्त, उस समय के बुनियादी ढाँचे को आधुनिकीकरण की जरूरत थी।

(घ)
गरीबी और असमानता-भारत गरीबी और असमानता के दुष्चक्र में फँस गया था। ब्रिटिश शासन ने भारतीय धन का एक महत्त्वपूर्ण भाग ब्रिटेन की ओर निष्कासित कर दिया। परिणामस्वरूप, भारत की आबादी का एक बहुसंख्यक हिस्सा गरीबी से पीड़ित था। इसके कारण देशभर में आर्थिक असमानताओं को और अधिक बढ़ावा मिला।

प्र.14. भारत में प्रथम सरकारी जनगणना किस वर्ष में हुई थी?
उत्तर : 1881.

प्र.15. स्वतंत्रता के समय भारत के विदेशी व्यापार के परिमाण और दिशा की जानकारी दें।
उत्तर : औपनिवेशिक शासनकाल में, अंग्रेजों ने एक भेदभावपूर्ण कर नीति का पालन किया जिसके अंतर्गत उन्होंने भारत के लिए अंग्रेज़ी उत्पादों का आयात तथा अंग्रेज़ों को कच्चे माल का निर्यात कर मुक्त कर दिया। जबकि भारत के हस्तशिल्प उत्पादों पर भारी शुल्क (निर्यात शुल्क) लगाए गए। इससे भारतीय निर्यात महँगे हो गए और इसकी अंतर्राष्ट्रीय माँग तेज़ी से गिर गई।

औपनिवेशिक शासनकाल में भारत कच्चे उत्पाद जैसे-रेशम, कपास, ऊन, चीनी, नील और पटसन आदि का निर्यातक होकर रह गया। साथ ही यह इंग्लैंड के कारखानों में बनी हल्की मशीनों तथा सूती, रेशमी, ऊनी वस्त्र जैसे अंतिम उपभोक्ता वस्तुओं का आयातक भी हो गया। व्यवहारिक रूप से भारत के आयात-निर्यात पर अंग्रेज़ों का एकाधिकार हो गया। अतः भारत का आधे से अधिक आयात-निर्यात ब्रिटेन के लिए आरक्षित हो गया तथा शेष आयात-निर्यात चीन, फ्रांस, श्रीलंका की ओर निर्देशित कर दिया गया। इसके अतिरिक्त स्वेज नहर के खुलने के बाद तो भारतीय विदेशी व्यापार पर ब्रिटेन का अधिपत्य और भी जम गया। स्वेज नगर से ब्रिटेन और भारत के बीच में माल लाने और ले जाने की लागत में भारी कमी आई। भारत का विदेशी व्यापार अधिशेष उपार्जित करता रहा परंतु इस अधिशेष को भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश नहीं किया गया बल्कि यह प्रशासनिक और युद्ध उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया गया था। इससे भारतीय धन का ब्रिटेन की ओर पलायन हुआ।

प्र.16. क्या अंग्रेजों ने भारत में कुछ सकारात्मक योगदान भी दिया था? विवेचना करें।
उत्तर : यह कहना अनुचित होगा कि अंग्रेज़ों ने भारत में कुछ सकारात्मक योगदान दिया था अपितु कुछ सकारात्मक प्रभाव उनकी स्वार्थपूर्ण नीतियों के सह उत्पाद के रूप में उपलब्ध हो गये। ये योगदान इच्छापूर्ण तथा नीतिबद्ध नहीं थे बल्कि अंग्रेजों की शोषक औपनिवेशिक नीतियों का सह उत्पाद थे। अतः अंग्रेजों द्वारा भारत में ऐसे कुछ सकारात्मक योगदान इस प्रकार हैं

(क)
रेलवे का आरंभ- अंग्रेज़ी सरकार द्वारा भारत में रेलवे का आरंभ भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी उपलब्धि था। इसने सभी प्रकार की भौगोलिक तथा सांस्कृतिक बाधाओं को दूर किया तथा कृषि के व्यवसायीकरण को संभव किया।

(ख)
कृषि के व्यावसायिकरण का आरंभ- अंग्रेज़ी सरकार द्वारा कृषि का व्यावसायीकरण भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक अन्य बड़ी उपलब्धि था। भारत में अंग्रेज़ी शासन आने से पूर्व, भारतीय कृषि स्वपोषी प्रकृति की थी। परंतु कृषि के व्यावसायीकरण के उपरांत कृषि उत्पादन बाजार की जरूरतों के अनुसार हुआ। यही कारण है कि आज भारत खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर होने के लक्ष्य को प्राप्त कर पाया है।

(ग)
आधारिक संरचना का विकास- अंग्रेजों द्वारा विकसित आधारिक ढाँचे ने देश में अकाल के फैलने को रोकने में विशेष योगदान दिया है। टेलीग्राम तथा डाक सेवाओं ने भी भारतीय जनता को सुविधाएँ दी।।

(घ)
शिक्षा का प्रोत्साहन तथा कुछ सामाजिक सुधार- अंग्रेजी भाषा में भारत में पाश्चात्य शिक्षा को प्रोत्साहित किया। अंग्रेजी भाषा भारत के बाहर की दुनिया को जानने के लिए एक खिड़की बनी। इसने भारत को विश्व के अन्य हिस्सों से जोड़ा। अंग्रेजों ने भारत में सती प्रथा भी प्रतिबंधित की और विधवा पुनर्विवाह अधिनियम की भी उद्घोषणा की।

(ङ)
भारत का एकीकरण- अंग्रेज़ी शासन से पूर्व भारत छोटे-छोटे राज्यों तथा सीमाओं में बँटा हुआ था। आज़ादी के युद्ध के नाम पर अंग्रेज़ भारत तथा भारतीयों को एकीकृत करने का एक कारण बन गये।

(च)
एक कुशल तथा शक्तिशाली प्रशासन का उदाहरण- अंग्रेजों ने अपने पीछे एक कुशल और शक्तिशाली प्रशासन का उदाहरण रख छोड़ा जिसका भारतीय नेता अनुसरण कर सकते थे।

Hope given Indian Economic Developments Class 11 Solutions Chapter 1 are helpful to complete your homework.

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NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 2 Social Change and Social Order in Rural and Urban Society (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 2 (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 2 Social Change and Social Order in Rural and Urban Society (Hindi Medium)

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पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न [NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED]

प्र० 1. क्या आप इस बात से सहमत हैं कि तीव्र सामाजिक परिवर्तन मनुष्य के इतिहास में तुलनात्मक रूप से नवीन घटना है? अपने उत्तर के लिए कारण दें।
उत्तर-

  • यह अनुमान लगाया जाता है कि मानव जाति का पृथ्वी पर अस्तित्व तकरीबन 5,00,000 (पाँच लाख) वर्षों से है, परंतु उनकी सभ्यता का अस्तित्व मात्र 6,000 वर्षों से ही माना जाता रहा है।
  • इन सभ्य माने जाने वाले वर्षों में, पिछले मात्र 400 वर्षों से ही हमने लगातार एवं तीव्र परिवर्तन देखें हैं।
  • इन परिवर्तनशील वर्षों में भी, इसके परिवर्तन में तेजी मात्र पिछले 100 वर्षों में आई है। जिस गति से परिवर्तन होता है? वह चूँकि लगातार बहता रहता है, शायद यही सही है कि पिछले सौ वर्षों में, सबसे अधिक परिवर्तन प्रथम पचास वर्षों की तुलना में अंतिम पचास वर्षों में हुए हैं।
  • आखिर पचास वर्षों के अंतर्गत, पहले तीस वर्षों | की तुलना में विश्व में परिवर्तन अंतिम तीस वर्षों में अधिक आया।

प्र० 2. सामाजिक परिवर्तन को अन्य परिवर्तनों से किस प्रकार अलग किया जा सकता है?
उत्तर-

  • सामाजिक परिवर्तन’ एक सामान्य अवधारणा है, जिसका प्रयोग किसी भी परिवर्तन के लिए किया जा सकता है। जो अन्य अवधारणा द्वारा परिभाषित नहीं किया जा सकता; जैसे-आर्थिक अथवा राजनैतिक परिवर्तन।
  • सामाजिक परिवर्तन का सरोकार उन परिवर्तनों से है जो महत्वपूर्ण हैं-अर्थात, परिवर्तन जो किसी वस्तु अथवा परिस्थिति की मूलाधार संरचना को समयावधि में बदल दें।
  • सामाजिक परिवर्तन कुछ अथवा सभी परिवर्तनों को सम्मिलित नहीं करते, मात्र बड़े परिवर्तन जो, वस्तुओं को बुनियादी तौर पर बदल देते हैं। सामाजिक परिवर्तन एक विस्तृत शब्द है। इसे और विशेष बनाने के लिए स्रोतों अथवा कारकों को अधिकतम वर्गीकृत करने की कोशिश की जाती है। प्राकृतिक आधार पर अथवा समाज पर इसके प्रभाव अथवा इसकी गति के आधार पर इसका वर्गीकरण किया जाता है।

प्र० 3. संरचनात्मक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? पुस्तक से अलग उदाहरणों द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

  • संरचनात्मक परिवर्तन समाज की संरचना में परिवर्तन को दिखाता है, साथ-साथ सामाजिक संस्थाओं अथवा नियमों के परिवर्तन को दिखाता है जिनसे इन संस्थाओं को चलाया जाता है।
  • उदाहरण के लिए, कागजी रुपये का मुद्रा के रूप में प्रादुर्भाव वित्तीय संस्थाओं तथा लेन-देन में बड़ा भारी परिवर्तन लेकर आया। इस परिवर्तन के पहले, मुख्य रूप से सोने-चाँदी के रूप में मूल्यवान धातुओं का प्रयोग मुद्रा के रूप में होता था।
  • सिक्के की कीमत उसमें पाए जाने वाले सोने अथवा चाँदी से मापी जाती थी।
  • इसके विपरीत, कागजी नोट की कीमत का उस लागत से कोई संबंध नहीं होता था, जिस पर वह छापा जाता था और न ही उसकी छपाई से।
  • कागजी मुद्रा के पीछे यह विचार था कि समान अथवा सुविधाओं के लेने-देन में जिस चीज का प्रयोग हो, उसको कीमती होना जरूरी नहीं। जब तक यह मूल्य को ठीक से दिखाता है अर्थात जब तक यह विश्वास को जगाए रखता है-तकरीबन कोई भी चीज़ पैसे के रूप में काम कर सकती है।
  • मूल्यों तथा मान्यताओं में परिवर्तन भी सामाजिक परिवर्तन ला सकते हैं।
  • उदाहरण के तौर पर, बच्चों तथा बचपन से संबंधित विचारों तथा मान्यताओं में परिवर्तन अत्यंत महत्वपूर्ण प्रकार के सामाजिक परिवर्तन में सहायक सिद्ध हुआ है। एक समय था जब बच्चों को साधारणतः ‘आवश्यक’ समझा जाता था। बचपन से संबंधित कोई विशिष्ट संकल्पना नहीं थी, जो इससे जुड़ी हो कि बच्चों के लिए क्या सही था अथवा क्या गलत।
  • उदाहरण के लिए, उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में, यह ठीक माना जाने लगा कि बच्चे जितनी जल्दी काम करने के योग्य हो जाएँ, काम पर लग जाएँ, बच्चे अपने परिवारों को काम करने में मदद पाँच अथवा छह वर्ष की आयु से ही प्रारंभ कर देते थे; प्रारंभिक फैक्ट्री व्यवस्था बच्चों के श्रम पर आश्रित थी।
  • यह उन्नीसवीं तथा पूर्व बीसवीं शताब्दियों के दौरान बचपन जीवन की एक विशिष्ट अवस्था है यह संकल्पना प्रभावी हुई है। इस समय छोटे बच्चों का काम करना अविधारणीय हो गया तथा अनेक देशों ने बाल श्रम को कानून द्वारा बंद कर दिया।

प्र० 4. पर्यावरण संबंधित कुछ सामाजिक परिवर्तनों के बारे में बताइए।
उत्तर-

  • प्रकृति, पारिस्थितिकी तथा भौतिक पर्यावरण को समाज की संरचना तथा स्वरूप पर महत्वपूर्ण प्रभाव हमेशा से रहा है।
  • विगत समय के संदर्भ में यह विशेष रूप से सही है। जब मनुष्य प्रकृति के प्रभावों को सोचने अथवा झेलने में अक्षम था। उदाहरण के लिए, मरुस्थलीय वातावरण में रहने वाले लोगों के लिए एक स्थान पर रहकर कृषि करना संभव नहीं था, जैसे, मैदानी भागों अथवा नदियों के किनारे इत्यादि। अतः जिस प्रकार का भोजन वे करते थे अथवा कपड़े पहनते थे, जिस प्रकार आजीविका चलाते थे तथा सामाजिक अन्योन्यक्रिया ये सब काफ़ी हद तक उनके पर्यावरण के भौतिक तथा जलवायु की स्थितियों से निर्धारित होता है।
  • त्वरित तथा विध्वंसकारी घटनाएँ; जैसे-भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, बाढ़ अथवा ज्वारभाटीय तरंगें (जैसा कि दिसंबर 2004 में सुनामी की तरंगों से इंडोनेशिया, श्रीलंका, अंडमान द्वीप, तमिलनाडु के कुछ भाग इसकी चपेट में आए) समाज को पूर्णरूपेण बदलकर रख देते हैं। ये बदलाव अपरिवर्तनीय होते हैं, अर्थात् ये स्थायी होते हैं तथा चीजों को वापस अपनी पूर्वस्थिति में नहीं आने देते।
  • प्राकृतिक विपदाओं के अनेकानेक उदाहरण इतिहास में देखने को मिल जाएँगे, जो समाज को पूर्णरूपेण परिवर्तित कर देते हैं अथवा पूर्णतः नष्ट कर देते हैं। परिवर्तन लाभ के लिए पर्यावरणीय या पारिस्थितिकीय कारकों का न केवल विनाशकारी होना अनिवार्य है, अपितु उसे सृजनात्मक भी होना अनिवार्य है।

प्र० 5. वे कौन से परिवर्तन हैं, जो तकनीक तथा अर्थव्यवस्था द्वारा लाए गए हैं?
उत्तर-

  • विशेषकर आधुनिक काल में तकनीक तथा आर्थिक परिवर्तन के संयोग से समाज में तीव्र परिवर्तन आया है।
  • तकनीक समाज को कई प्रकार से प्रभावित करती है। यह हमारी मदद, प्रकृति को विभिन्न तरीकों से नियंत्रित उसके अनुरूप ढालने में अथवा दोहन करने में करती है। बाजार जैसी शक्तिशाली संस्था से जुड़कर तकनीकी परिवर्तन अपने सामाजिक प्रभाव की तरह ही प्राकृतिक कारकों; जैसे-सुनामी तथा तेल की खोज की तरह प्रभावी हो सकते हैं।
  • वाष्प शक्ति की खोज में उदीयमान विभिन्न प्रकार के बड़े उद्योगों को शक्ति की उस ताकत को जो न केवल पशुओं तथा मनुष्यों के मुकाबले कई गुणा अधिक थी, बल्कि बिना रुकावट के लगातार
    चलने वाली भी थी, से परिचित कराया।
  • यातायात के साधनों; जैसे-वाष्पचलित जहाज तथा रेलगाड़ी ने दुनिया की अर्थव्यवस्था तथा सामाजिक भूगोल को बदलकर रख दिया।
  • रेल ने उद्योग तथा व्यापार को अमेरिका महाद्वीप तथा पश्चिमी विस्तार को सक्षम किया। भारत में भी, रेल परिवहन ने अर्थव्यवस्था को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, विशेषकर 1853 में भारत में आने से लेकर मुख्यतः प्रथम शताब्दी तक।
  • वाष्पचलित जहाजों ने समुद्री यातायात को अत्यधिक तीव्र तथा भरोसेमंद बनाया तथा इसमें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार तथा प्रवास की गति को बदलकर रख दिया। दोनों परिवर्तनों ने विकास की विशाल लहर पैदा की जिसने न केवल अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया अपितु विश्व समय के सामाजिक सांस्कृतिक तथा जनसांख्यिक रूप को बदल दिया।
  • कभी-कभी तकनीक का सामाजिक प्रभाव पूर्वव्यापी भी होता है। तकनीकी आविष्कार अथवा खोज का कभी-कभी तात्कालिक प्रभाव संकुचित होता है, जो देखने पर लगता है, जैसे सुप्तावस्था में हो। बाद में होने वाले परिवर्तन आर्थिक संदर्भ में उसी खोज की सामाजिक महत्ता को एकदम बदल देते हैं तथा उसे ऐतिहासिक घटना के रूप में मान्यता देते हैं। इसका उदाहरण चीन में बारूद तथा कागज की खोज है, जिसका प्रभाव सदियों तक संकुचित रहा, जब तक कि उनका प्रयोग पश्चिमी यूरोप के आधुनिकीकरण के संदर्भ में नहीं हुआ। । उसी बिंदु से दी गई परिस्थितियों का लाभ उठा, बारूद द्वारा युद्ध की तकनीक में परिवर्तन तथा कागज की छपाई की क्रांति ने समाज को हमेशा के लिए परिवर्तित कर दिया।
  • कई बार आर्थिक व्यवस्था में होने वाले परिवर्तन, जो प्रत्यक्ष तकनीकी नहीं होते हैं, भी समाज को बदल सकते हैं। जाना-पहचाना ऐतिहासिक उदाहरण, रोपण कृषि-यहाँ बड़े पैमाने पर नकदी फसलों; जैसे-गन्ना, चाय अथवा कपास की खेती की जाती है, ने श्रम के लिए भारी माँग उत्पन्न की।
  • भारत में असम के चाय बगानों में काम करने वाले अधिकतर लोग पूर्वी भारत के थे (विशेषकर झारखंड तथा छत्तीसगढ़ के आदिवासी भागों से), जिन्हें श्रम के लिए प्रवास करना पड़ा।

प्र० 6. सामाजिक व्यवस्था का क्या अर्थ है तथा इसे कैसे बनाए रखा जा सकता है?
उत्तर-

  • सामाजिक व्यवस्था सुस्थापित समाजिक प्रणालियाँ हैं, जो परिवर्तन को प्रतिरोध तथा उसे विनियमित करती हैं।
  • सामाजिक व्यवस्था सामाजिक परिवर्तन को रोकती है, हतोत्साहित करती है अथवा कम से कम नियंत्रित करती है। अपने आपको एक शक्तिशाली तथा प्रासंगिक सामाजिक व्यवस्था के रूप में सुव्यवस्थित करने के लिए प्रत्येक समाज को अपने आपको समय के साथ पुनरूत्पादित करना तथा उसके स्थायित्व को बनाए रखना पड़ता है। स्थायित्व के लिए आवश्यक हैं कि चीजें कमोबेश वैसी ही बनी रहें जैसी वे हैं-अर्थात व्यक्ति लगातार समाज के नियमों का पालन करता रहे, सामाजिक क्रियाएँ एक ही प्रकार के परिणाम दें और साध रिणत: व्यक्ति तथा संस्थाएँ पूर्वानुमानित रूप में
    आचरण करें।
  • समाज के शासक अथवा प्रभावशाली वर्ग अधिकांशतः सामाजिक परिवर्तन का प्रतिरोध करते हैं, जो उनकी स्थिति को बदल सकते हैं, क्योंकि स्थायित्व में उनका अपना हित होता है। वहीं दूसरी तरफ अधीनस्थ अथवा शोषित वर्गों का हित परिवर्तन में होता है। सामान्य स्थितियाँ अधिकांशतः अमीर तथा शक्तिशाली वर्गों की तर. फदारी करती हैं तथा वे परिवर्तन के प्रतिरोध में सफल होते हैं।
  • सामाजिक व्यवस्था सामाजिक संबंधों की विशिष्ट पद्धति तथा मूल्यों एवं मानदंडों के सक्रिय अनुरक्षण तथा उत्पादन को निर्देशित करती है। विस्तृत रूप में, सामाजिक व्यवस्था इन दो में से किसी एक तरीके से प्राप्त की जा सकती है, जहाँ व्यक्ति नियमों तथा मानदंडों को स्वतः मानते हों अथवा कहाँ मानदंडों को मानने के लिए व्यक्तियों को बाध्य किया जाता हो।
  • सामाजीकरण भिन्न परिस्थितियों में अधिक या न्यूनतः कुशल हो सकता है, परंतु वह कितना ही कुशल क्यों न हो, यह व्यक्ति की दृढ़ता को पूर्ण रूप से समाप्त नहीं कर सकता है।
  • सामाजीकरण, समाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अथक प्रयास करता है, परंतु यह प्रयास भी अपने आप में पूर्ण नहीं होता।
  • अतः अधिकतर आधुनिक सामज कुछ रूपों में संस्थागत तथा सामाजिक मानदंडों को बनाए रखने के लिए शक्ति अथवा दबाव पर निर्भर करते हैं।
  • सत्ता की परिभाषा अधिकांशतः इस रूप में दी जाती है कि सत्ता स्वेच्छानुसार एक व्यक्ति से मनचाहे कार्य को करवाने की क्षमता रखती है। जब सत्ता का संबंध स्थायित्व तथा स्थिरता से होता है तथा दूसरे जुड़े पक्ष अपने सापेक्षिक स्थान के अभ्यस्त हो जाते हैं, तो हमारे सामने प्रभावशाली स्थिति उत्पन्न होती है।
  • यदि सामाजिक तथ्य (व्यक्ति, संस्था अथवा वर्ग) नियमपूर्वक अथवा आदतन सत्ता की स्थिति में होते हैं, तो इसे प्रभावी माना जाता है।
  • साधारण समय में, प्रभावशाली संस्थाएँ, समूह तथा व्यक्ति समाज में निर्णायक प्रभाव रखते हैं। ऐसा नहीं है कि उन्हें चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ता, परंतु यह विपरीत तथा विशिष्ट परिस्थितियों में होता है।

प्र० 7. सत्ता क्या है तथा यह प्रभुता तथा कानून से कैसे संबंधित है?
उत्तर-

  • मैक्स वेबर के अनुसार सत्ता कानूनी शक्ति है। अर्थात शक्ति न्यायसंगत तथा ठीक समझी जाती है। उदाहरण के लिए, एक पुलिस ऑफिसर एक जज अथवा एक स्कूल शिक्षक, सब अपने कार्य में निहित सत्ता का प्रयोग करते हैं।
  • ये शक्ति उन्हें विशेषकर उनके सरकारी कार्यों की रूपरेखा को देखते हुए प्रदान की गई है-लिखित कागजातों द्वारा सत्ता क्या कर सकती है तथा क्या नहीं, का बोध होता है।
  • कानून सुस्पष्ट संहिताबद्ध मानदंड अथवा नियम होते हैं। यह ज्यादातर लिखे जाते हैं तथा नियम किस प्रकार बनाए अथवा बदले जाने चाहिए, अथवा कोई उनको तोडता है तो क्या करना चाहिए।
  • कानून नियमों के औपचारिक ढाँचे का निर्माण करता है जिसके द्वारा समाज शासित होता है। कानून प्रत्येक नागरिक पर लागू होता है। चाहे एक व्यक्ति के रूप में ‘मैं’ कानून विशेष से सहमत हूँ। या नहीं, यह नागरिक के रूप में ‘मुझे जोड़ने वाली ताकत है, तथा अन्य सभी नागरिकों को उनकी मान्यताओं से हटकर।
  • प्रभाव, शक्ति के तहत कार्य करता है, परंतु इनमें से अधिकांश शक्ति में कानूनी शक्ति अथवा सत्ता होती है, जिसका एक बृहत्तर भाग कानून द्वारा संहितावद्ध होता है।
  • कानूनी संरचना तथा संस्थागत मदद के कारण सहमति तथा सहयोग नियमित रूप से तथा भरोसे के आधार पर लिया जाता है। यह शक्ति के प्रभाव क्षेत्र अथवा प्रभावितों को समाप्त नहीं करता। कई प्रकार की शक्तियाँ हैं, जो समाज में प्रभावी हैं। हालाँकि वे गैरकानूनी हैं, और यदि कानूनी हैं तब कानूनी रूप से संहिताबद्ध नहीं हैं।

प्र० 8. गाँव, कस्बा तथा नगर एक दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर-

  • गाँव ग्रामीण समुदाय की एक इकाई है, जो ग्रामीण जीवन को कायम रखती है और इसके कार्यों से अलग रहती है।
  • यह कृषि आधारित सरल समुदाय है।
  • गाँवों का उद्भव सामाजिक संरचना में आए महत्वपूर्ण परिवर्तनों से हुआ जहाँ खानाबदोशी जीवन पद्धति, शिकार, भोजन संकलन तथा अस्थायी कृषि पर आधारित थी, या संक्रमण स्थायी जीवन में हुआ।
  • सामाजिक परिवर्तन धीमी गति से अनवरत घटित होता है।
  • नगरों में उच्च जनसंख्या, अति जनसंख्या घनत्व और विजातीयता पाई जाती है जो मुख्य रूप से गैर-कृषि धंधों से जुड़े रहते हैं।
  • उनके जीवन जटिल और बहुउद्देशीय होते हैं। ये । सामान्यतया व्यापारिक केंद्र हैं।
  • नगरों में सामाजिक परिवर्तन तीव्र गति से होता है।

प्र० 9. ग्रामीण क्षेत्रों की सामाजिक व्यवस्था की कुछ। विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर-

  • गाँवों का आकार छोटा होता है। अतः ये अधिकांशतः व्यक्तिगत संबंधों का अनुमोदन करते हैं। गाँव के लोगों द्वारा तकरीबन गाँव के ही दूसरे लोगों को देखकर पहचान लेना असामान्य नहीं है।
  • गाँव की सामाजिक संरचना परंपरागत तरीकों से चालित होती है। इसलिए सामाजिक संस्थाएँ जैसे-जाति, धर्म तथा सांस्कृतिक एवं परंपरागत सामाजिक प्रथाओं के दूसरे स्वरूप यहाँ अधिक प्रभावशाली हैं।
  • इन कारणों से जब तक कोई विशिष्ट परिस्थितियाँ न हों, गाँवों में परिवर्तन नगरों की अपेक्षा धीमी गति से होता है।
  • समाज के अधीनस्थ समूहों के पास ग्रामीण इलाके में अपने नगरीय भाइयों की तुलना में अभिव्यक्ति के दायरे बहुत कम होते हैं। गाँव में व्यक्ति एक दूसरे से सीधा संबद्ध होता है। इसलिए व्यक्ति विशेष का समुदाय के साथ असहमत होना कठिन होता है और इसका उल्लंघन करने वाले को सबक सिखाया जा सकता है।
  • प्रभावशाली वर्गों की शक्ति सापेक्षिक रूप से कहीं ज्यादा होती है, क्योंकि वे रोज़गार के साधनों तथा अधिकांशतः अन्य संसाधनों को नियंत्रित करते हैं। अतः गरीबों को प्रभावशाली वर्गों पर निर्भर होना पड़ता है, क्योंकि उनके पास रोजगार के अन्य साधन अथवा सहारा नहीं होता।
  • यदि गाँव में पहले से ही मजबूत शक्ति संरचना होती तो उसे उखाड़ फेंकना बहुत कठिन होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में शक्ति संरचना के संदर्भ में होने वाला परिवर्तन और भी धीमा होता है, क्योंकि वहाँ की सामाजिक व्यवस्था अधिक मजबूत और स्थिर होती है।
  • अन्य परिवर्तन आने में भी समय लगता है, क्योंकि गाँव बिखरे होते हैं तथा पूरी दुनिया से एकीकृत नहीं होते जैसे-नगर तथा कस्बे होते हैं।
  • अन्य संचार के साधनों में भी समय के साथ सुधार आया है। इसके कारण मात्र कुछ एक गाँव ‘एकांत’ तथा ‘पिछड़ा’ होने का दावा कर सकते हैं।
  • जनसंख्या का उच्च घनत्व स्थान पर अत्यधिक जोर देता है तथा तार्किक स्तर पर जटिल समस्याएँ खड़ी करता है। कस्बों सामाजिक व्यवस्था की बुनियादी कड़ी है, जो कि नगर की देशिक जीवनक्षमता को
    आश्वस्त करें।
  • इसका अर्थ है कि संगठन तथा प्रबंधन कुछ चीजों को जैसे निवास तथा आवासीय पद्धति; जन यातायात के साधन उपलब्ध कर सकें, ताकि कर्मचारियों की बड़ी संख्या को कार्यस्थल से लाया तथा ले जाया जा सके; आवासीय सरकारी तथा औद्योगिक भूमि उपयोग क्षेत्र के सह-अस्तित्व की व्यवस्था।
  • सभी प्रकार के जनस्वास्थ्य, स्वच्छता, पुलिस सेवा, जनसुरक्षा तथा कस्बे के शासन पर नियंत्रण की आवश्यकता है।
  • इनमें से प्रत्येक कार्य अपने आप में एक वृहत उपक्रम है तथा योजना, क्रियान्विति और रखरखाव को दुर्जय चुनौती देता है।
  • वे कार्य जो समूह, नृजातीयता, धर्म, जाति इत्यादि के विभाजन तथा तनाव से न केवल जुड़े, बल्केि सक्रिय भी होते हैं।
  • गरीब के लिए आवास की समस्या ‘बेघर’ तथा सड़क पर चलने वाले लोग इस प्रक्रिया को जन्म देते हैं जो सड़कों, फुटपाथों, पुलों तथा फ्लाईओवर के नीचे, खाली बिल्डिग तथा अन्य खाली स्थानों पर रहने तथा जीवनयापन करते हैं। यह इन बस्तियों के जन्म का एक महत्वपूर्ण कारण भी है।
  • संपति का अधिकार दूसरे स्थानों की तरह नहीं होता है। अतः बस्तियाँ दादाओं की जन्मभूमि होती हैं, जो उन लोगों पर अपना बलात् अधिकार दिखाते हैं, जो वहाँ रहते हैं।
  • पूरे विश्व में नगरीय आवासीय क्षेत्र प्रायः समूह तथा अधिकतर प्रजाति नृजातीयता, धर्म तथा अन्य कारकों द्वारा विभाजित होते हैं। इन पहचानों के बीच तनाव के प्रमुख परिणाम पृथकीकरण की प्रक्रिया के रूप में भी उजागर होता है। उदाहरण के लिए, भारत में विभिन्न धर्मों के बीच सांप्रदायिक तनाव, विशेषकर हिंदुओं तथा मुसलमानों में देखा जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप मिश्रित प्रतिदेशी एकल-समुदाय में बदल गए। • सांप्रदायिक दंगों को ये एक विशिष्ट देशिक रूप दे देते हैं, जो बस्तीकरण की नवीन प्रक्रिया घैटोआइजेशन को ओर बढ़ाते हैं।
  • पूरे विश्व में व्याप्त ‘गेटेड समुदाय’ जैसी वृद्धि भारतीय शहरों में भी देखी जा सकती है। इसका अर्थ है एक समृद्ध प्रतिवेशी (पडौसी) का निर्माण जो अपने परिवेश से दीवारों तथा प्रवेशद्वारों से अलग होता है वे यहाँ प्रवेश तथा निवास नियंत्रित होता है। अधिकांश ऐसे समुदायों की अपनी सामानांतर नागरिक सुविधाएँ; जैसे-पानी और
    बिजली सप्लाई, पुलिस तथा सुरक्षा भी होती है।

प्र० 10. नगरी क्षेत्रों की सामाजिक व्यवस्था के सामने कौन-सी चुनौतियाँ हैं?
उत्तर- विद्यार्थी स्वयं करें।

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NCERT Solutions for Class 11 Geography Indian Physical Environment Chapter 3

NCERT Solutions for Class 11 Geography Indian Physical Environment Chapter 3 (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Geography Indian Physical Environment Chapter 3 Drainage System (Hindi Medium)

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[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)

प्र० 1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
(i) निम्नलिखित में से कौन-सी नदी ‘बंगाल का शोक’ के नाम से जानी जाती थी?
(क) गंडक
(ख) कोसी
(ग) सोन
(घ) दामोदर
उत्तर- (घ) दामोदर

(ii) निम्नलिखित में से किस नदी की द्रोणी भारत में सबसे बड़ी है?
(क) सिंधु
(ख) ब्रह्मपुत्र
(ग) गंगा
(घ) कृष्णा
उत्तर- (ग) गंगा

(iii) निम्नलिखित में से कौन-सी नदी पंचनद में शामिल नहीं है?
(क) रावी
(ख) सिंधु
(ग) चेनाब
(घ) झेलम
उत्तर- (ख) सिंधु

(iv) निम्नलिखित में से कौन-सी नदी भ्रंश घाटी में बहती है?
(क) सोन।
(ख) यमुना
(ग) नर्मदा
(घ) लूनी
उत्तर- (ग) नर्मदा

(v) निम्नलिखित में से कौन-सा अलकनंदा व भागीरथी का संगम स्थल है?
(क) विष्णु प्रयाग
(ख) रूद्र प्रयाग
(ग) कर्ण प्रयाग
(घ) देव प्रयाग
उत्तर- (घ) देव प्रयाग

प्र० 2. निम्न में अंतर स्पष्ट करें।
(i) नदी द्रोणी और जल संभर
उत्तर- नदी द्रोणी और जल संभर में अंतर-
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(ii) वृक्षाकार और जालीनुमा अपवाह प्रतिरूप।
उत्तर- वृक्षाकार और जालीनुमा अपवाह प्रतिरूप में अंतर-
NCERT Solutions for Class 11 Geography Indian Physical Environment Chapter 3 (Hindi Medium) 2.1

(iii) अपकेंद्रीय और अभिकेंद्रीय अपवाह प्रतिरूप।
उत्तर- अपकेंद्रीय और अभिकेंद्रीय अपवाह प्रारूप में अंतर-
NCERT Solutions for Class 11 Geography Indian Physical Environment Chapter 3 (Hindi Medium) 2.2

(iv) डेल्टा और ज्वारनदमुख।
उत्तर-
NCERT Solutions for Class 11 Geography Indian Physical Environment Chapter 3 (Hindi Medium) 2.3
NCERT Solutions for Class 11 Geography Indian Physical Environment Chapter 3 (Hindi Medium) 2.4

प्र० 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें:
(i) भारत में नदियों को आपस में जोड़ने के सामाजिक-आर्थिक लाभ क्या हैं?
उत्तर- भारत की नदियाँ दो प्रकार की हैं। एक प्रकार की नदी जिसमें सालों भर पानी रहता है और दूसरे प्रकार की नदी जिसमें सालों भर पानी नहीं रहता है। भारत की नदियाँ प्रतिवर्ष जल की विशाल मात्रा वहन करती हैं लेकिन समय व स्थान की दृष्टि से इसका वितरण समान नहीं है। वर्षा ऋतु में अधिकांश जल बाढ़ में व्यर्थ हो जाता है और समुद्र में बह जाता है। इसी प्रकार जब देश के एक भाग में बाढ़ होती है तो दूसरा भाग सूखाग्रस्त होता है। यदि हम नदियों को आपस में जोड़ दें तो बाढ़ और सूखे की समस्या भी हल हो जाएगी। पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध होने के कारण पीने के पानी की समस्या भी हल हो जाएगी हजारों, करोड़ों रुपयों की बचत होगी और पैदावार में बढ़ोत्तरी होगी तथा किसानों की आर्थिक हालत सुधरेगी।

(ii) प्रायद्वीपीय नदी के तीन लक्षण लिखें।
उत्तर- प्रायद्वीपीय नदी के निम्नलिखित तीन लक्षण हैं
(i) प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ समतल भागों से होकर नहीं बहती हैं, इसलिए इनसे नहरें नहीं निकाली जातीं।
(ii) प्रायद्वीपीय भारत की नदियों में सालों भर पानी नहीं रहता।
(iii) प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ टेढ़ी-मेढ़ी नहीं बहती अर्थात विसर्प नहीं बनातीं।

प्र० 4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 125 शब्दों से अधिक में न दें:
(i) उत्तर भारतीय नदियों की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ क्या हैं? ये प्रायद्वीपीय नदियों से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर- भारत की अधिकांश नदियाँ हिमालय से निकलती हैं। इसलिए अधिकांशतः नदियों में सालों भर पानी रहता है। कुछ नदियाँ पठारी भागों से निकलती हैं जो गर्मी के दिनों में सूख जाती हैं। उत्तर भारत की नदियाँ अधिकांशतः मैदानी भागों में बहती । हैं, जिसके कारण इन नदियों से नहरें निकाली जा सकती हैं। उत्तर भारत की अधिकांशतः नदियाँ गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियाँ हैं। सिंधु नदी अरब सागर में और गंगा तथा ब्रह्मपुत्र बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं।
दक्षिण भारत की नदियाँ उत्तर भारत की नदियों से भिन्न हैं। दक्षिण भारत की नदियों में सालों भर पानी नहीं रहता और न ही ये नदियाँ समतल भागों में बहती हैं। इसलिए इन नदियों में न नावें चलाई जा सकती हैं, और न ही नहरें निकाली जा सकती हैं। जबकि उत्तर भारत की नदियों की स्थिति ठीक इसके विपरीत है।

(ii) मान लीजिए आप हिमालय के गिरिपद के साथ-साथ हरिद्वार से सिलीगुड़ी तक यात्रा कर रहे हैं, इस मार्ग में आने वाली मुख्य नदियों के नाम बताएँ। इनमें से किसी एक नदी की विशेषताओं का भी वर्णन करें।
उत्तर- हिमालय के गिरिपद के साथ-साथ हरिद्वार से सिलीगुड़ी तक यात्रा करने पर इस मार्ग में आने वाली मुख्य नदियाँ टोंस, गोमती, सरयू, रामगंगा, शारदा, गंडक, बुढ़ी गंडक, कमला, बागमती, कोसी, गंगा आदि प्रमुख हैं। उत्तरांचल के उत्तरकाशी जिले में 3900 मीटर की ऊँचाई पर स्थित गंगोत्री हिमनद गंगा का उद्गम स्रोत है। यहाँ इसे भागीरथी कहते हैं। गंगा ने मध्य हिमालय और लघु हिमालय को काटकर सँकरे महाखड्डू बनाए हैं। देवप्रयाग में भागीरथी, अलकनंदा से मिलती हैं। यहीं से दोनों की संयुक्त धारा का नाम गंगा हो जाता है। हरिद्वार के निकट गंगा मैदान में प्रवेश करती है। यहाँ से पहले यह दक्षिण दिशा में तथा पुनः दक्षिण-पूर्व और पूर्व दिशा में बहती हैं और आगे चलकर भागीरथी और हुगली नाम की दो वितरिकाओं में बँट जाती है। गंगा की कुल लम्बाई 2525 कि.मी. है। उत्तरांचल और उत्तर प्रदेश में 1560 कि.मी., बिहार में 445 कि.मी. तथा पश्चिम बंगाल में 520 कि.मी. की दूरी में गंगा बहती है। गंगा द्रोही केवल भारत में लगभग 8.6 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है।

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NCERT Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 1

NCERT Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 1 (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 1 Introduction to Maps (Hindi Medium)

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[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)

प्र० 1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
(i) रेखाओं एवं आकृतियों के मानचित्र कहे जाने के लिए निम्नलिखित में से क्या अनिवार्य है?
(क) मानचित्र रूढ़ि
(ख) प्रतीक
(ग) उत्तर दिशा
(घ) मानचित्र मापनी
उत्तर- (घ) मानचित्र मापनी

(ii) एक मानचित्र जिसकी मापनी 1 : 4,000 एवं उससे बड़ी है, उसे कहा जाता है
(क) भूसंपत्ति मानचित्र
(ख) स्थलाकृतिक मानचित्र
(ग) भित्ति मानचित्र
(घ) एटलस मानचित्र
उत्तर- (क) भूसंपत्ति मानचित्र

(iii) निम्नलिखित में से कौन-सा मानचित्र के लिए अनिवार्य नहीं है?
(क) मानचित्र प्रक्षेप
(ख) मानचित्र व्यापकीकरण
(ग) मानचित्र अभिकल्पना
(घ) मानचित्रों का इतिहास
उत्तर- (घ) मानचित्रों का इतिहास

प्र० 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें
(i) मानचित्र व्यापकीकरण क्या है?
उत्तर- कोई भी मानचित्र एक निश्चित उद्देश्य के साथ बनाया जाता है। उदाहरण के लिए सामान्य उद्देश्य वाला मानचित्र उच्चावच, अपवाह, वनस्पति, बस्ती, परिवहन के साधन आदि जैसी सामान्य सूचनाओं को दर्शाता है। इसी प्रकार, विशेष उद्देश्य वाला मानचित्र एक या एक से अधिक चयनित विषय वस्तु जैसे-जनसंख्या घनत्व, मिट्टी के प्रकार या उद्योगों की स्थिति में संबंधित जानकारी को दर्शाता है। इसलिए यह आवश्यक है कि मानचित्र के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए उसकी विषय वस्तु को सावध रानीपूर्वक नियोजित किया जाए। चूँकि मानचित्रों को एक निश्चित उद्देश्य के लिए लघुकृत मापनी पर तैयार किया जाता है, इसलिए मानचित्रकार का तीसरा कार्य मानचित्र की विषयवस्तु को व्यापकीकृत करना है।

(ii) मानचित्र अभिकल्पना क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर- मानचित्र अभिकल्पना मानचित्रकारों के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण है। इसमें मानचित्र की आलेखी विशिष्टताओं को योजनाबद्ध किया जाता है, जिसमें शामिल है-उचित संकेतों का चयन, उनके आकार एवं प्रकार, लिखावट का तरीका, रेखाओं की चौड़ाई का निर्धारण, रंगों का चयन, मानचित्र में मानचित्र अभिकल्पना के विभिन्न तत्वों की व्यवस्था और रूढ़ चिह्न। अतः मानचित्र अभिकल्पना मानचित्र बनाने की एक जटिल अभिमुखता है, जिसमें उन सिद्धांतों की गहन जानकारी की आवश्यकता होती है, जो आलेखी संचार के प्रभावों का सनियमन करती है।

(iii) लघुमान वाले मानचित्रों के विभिन्न प्रकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर- लघुमाने वाले मानचित्रों को निम्नलिखित वर्गों में वर्गीकृत किया गया है
(क) भित्ति मानचित्र
(ख) एटलस मानचित्र

(क) भित्ति मानचित्र – ये मानचित्र सामान्यत: बड़े आकार के कागज या प्लास्टिक पर बनाए जाते हैं, जिनका उपयोग कक्षा या व्याख्यानकक्ष के लिए होता है।
(ख) एटलस मानचित्र – ये मानचित्र बड़े आकार वाले क्षेत्रों को प्रदर्शित करते हैं तथा भौतिक एवं सांस्कृतिक विशिष्टताओं को सामान्य तरीके से दर्शाते हैं। ये मानचित्र विश्व, महाद्वीपों, देशों या क्षेत्रों की भौगोलिक जानकारियों के आलेखी विश्वकोश हैं।

(iv) बृहत मापनी मानचित्रों के दो प्रमुख प्रकारों को लिखें।
उत्तर- बृहत मापनी मानचित्रों को निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है
(क) भूसंपत्ति मानचित्र
(ख) स्थलाकृतिक मानचित्र

(क) भूसंपत्ति मानचित्र – इन मानचित्रों को कृषि भूमि की सीमाओं का निर्धारण कर तथा नगरों में निजी मकानों के प्लान को दर्शा कर उनके स्वामित्व को दर्शाने के लिए बनाया जाता है।
(ख) स्थलाकृतिक मानचित्र – ये मानचित्र भी साधारणतः बृहत मापनी पर बनते हैं। स्थलाकृतिक मानचित्र परिशुद्ध सर्वेक्षणों पर आधारित होते हैं तथा मानचित्रों की श्रृंखला के रूप में विश्व के लगभग सभी देशों की राष्ट्रीय मानचित्र एजेंसी के द्वारा तैयार किए जाते हैं।

(v) मानचित्र रेखाचित्र से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर- किसी तथ्य का संकेत, आँकड़े तथा अन्य तथ्यों को दर्शाने के लिए रेखाचित्र उपयोग में लाया जाता है, जैसे किसी स्थान की वर्षा और तापमान की वार्षिक स्थिति रेखाचित्र के माध्यम से दर्शाई जाती है। जबकि मानचित्र का उपयोग भूगोलवेत्ता नियोजक तथा अन्य संसाधन अध्ययनवेत्ता किसी मापनी से पृथ्वी या उसके किसी क्षेत्र का छोटा रूप कागजों में दर्शाते हैं। ऐसा करने में वे दूरी, दिशा एवं क्षेत्र को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न प्रकार के मापन करते हैं। मानचित्रों के लिए अनिवार्य प्रक्रम मापनी, मानचित्र प्रक्षेप, मानचित्र व्यापकीकरण, मानचित्र अभिकल्पना, मानचित्र का निर्माण तथा प्रस्तुति हैं।

प्र० 3. मानचित्रों के प्रकारों की विस्तृत व्याख्या करें।
उत्तर- मानचित्र को कई आधारों पर वर्गीकरण किया जाता है
(i) मापनी के आधार पर मानचित्र का वर्गीकरण
(ii) प्रकार्य के आधार पर मानचित्र का वर्गीकरण

(i) मापनी के आधार पर मानचित्र का वर्गीकरण
(क) बृहत मापनी मानचित्र
(ख) लघुमान मानचित्र

(क) बृहत मापनी मानचित्र दो प्रकार के होते हैं
1. भूसंपत्ति मानचित्र
2. स्थलाकृतिक मानचित्र
(ख) लघुमान मानचित्र दो प्रकार के होते हैं
1. भित्ति मानचित्र
2. एटलस मानचित्र

(ii) प्रकार्य के आधार पर मानचित्र का वर्गीकरण
(क) भौतिक मानचित्र
(ख) सांस्कृतिक मानचित्र

(क) भौतिक मानचित्र चार प्रकार के होते हैं
1. उच्चावच मानचित्र
2. भूगर्भीय मानचित्र
3. जलवायु मानचित्र
4. मृदा मानचित्र
(ख) सांस्कृतिक मानचित्र
1. राजनीतिक मानचित्र
2. जनसंख्या मानचित्र
3. आर्थिक मानचित्र
4. परिवहन मानचित्र

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