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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है? ।
उत्तर:
आजकल लोग सुख का अभिप्राय केवल वस्तुओं तथा साधनों के उपभोग से मिलने वाली सुविधाएँ समझते हैं परंतु लेखक का मानना है कि ‘उपभोग सुख’ ही सुख नहीं है। सुख की सीमा में ही शारीरिक, मानसिक और अन्य प्रकार के सूक्ष्म आराम भी आते हैं।

प्रश्न 2.
आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?
उत्तर:
आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को पूरी तरह प्रभावित कर रही है। हम वही खाते-पीते और पहनते-ओढ़ते हैं जो आज के विज्ञापन कहते हैं। उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण हम धीरे-धीरे उपभोगों के दास बनते जा रहे हैं। हम अपनी जरूरतों को अनावश्यक रूप से बढ़ाते जा रहे हैं। कई लोग तो केवल दिखावे के लिए महँगी घड़ियाँ, कंप्यूटर आदि खरीद रहे हैं।

प्रतिष्ठा के नाम पर हम पाँच सितारा संस्कृति के गुलाम होते जा रहे हैं। इस संस्कृति का सबसे बुरा प्रभाव हमारे सामाजिक सरोकारों पर पड़ रहा है। हमारे सामाजिक संबंध घटते जा रहे हैं। मन में अशांति और आक्रोश बढ़ रहे हैं। विकास का लक्ष्य दूर होता जा रहा है। हम जीवन के विशाल लक्ष्य से भटक रहे हैं। सारी मर्यादाएँ और नैतिकताएँ टूट रही हैं। मनुष्य स्वार्थ-केंद्रित होता जा रहा है।

प्रश्न 3.
लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है?
उत्तर:
लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती इसलिए कहा है
क्योंकि पहले के लोग सादा जीवन, उच्च विचार का पालन करते थे तथा सामाजिकता एवं नैतिकता के पक्षधर थे। आज उपभोक्तावादी संस्कृति भारतीय संस्कृति की नींव हिला रही थी। इससे हमारी एकता और अखंडता प्रभावित होती है। इसके अलावा यह संस्कृति भोग को बढ़ावा देती है तथा वर्ग-भेद को बढ़ावा देती है। इससे सामाजिक ताना-बाना नष्ट होने का खतरा है।

प्रश्न 4.
आशय स्पष्ट कीजिए
(क) जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।
(ख) प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो।
उत्तर:
(क) उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रभाव अत्यंत सूक्ष्म है। इसके प्रभाव में आकर हमारा चरित्र बदलता जा रहा है। हम उत्पादों का उपभोग करते-करते उनके गुलाम होते जा रहे हैं। यहाँ तक कि हम जीवन का लक्ष्य ही उपभोग करना मान बैठे हैं। हम उत्पादों का उपभोग नहीं कर रहे, बल्कि उत्पाद हमारे जीवन का भोग कर रहे हैं।

(ख) सामाजिक प्रतिष्ठा अनेक प्रकार की होती है। प्रतिष्ठा के कई रूप तो बिल्कुल विचित्र होते हैं। उनके कारण हम हँसी के पात्र बन जाते हैं। जैसे, अमरीका में लोग मरने से पहले अपनी समाधि का प्रबंध करने लगे हैं। वे धन देकर यह सुनिश्चित करते हैं उनकी समाधि के आसपास सदा हरियाली रहेगी और मनमोहक संगीत बजता रहेगा।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी.वी. पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं। क्यों?
उत्तर:
टी.वी. पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए लालायित हो उठते हैं; क्योंकि

  1. टी.वी. पर दिखाए गए विज्ञापनों में वस्तुओं के गुणों का बढ़ा-चढ़ाकर बखान किया जाता है।
  2. इन विज्ञापनों का प्रभाव हमारे मस्तिष्क पर अत्यंत गहरा पड़ता है।
  3.  विज्ञापनों में वस्तुओं को ऐसी समृद्ध जीवन शैली के साथ जोड़कर दिखाया जाता है कि हमारा मन उसी समृद्ध शैली में जीने की इच्छा करके विज्ञापित वस्तु खरीद लेते हैं।
  4.  प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा उस वस्तु की खूबियाँ बताया जाना हमें उक्त वस्तु को खरीदने के लिए भी बाध्य कर देता है।
  5. कभी छोटे बच्चे तो कभी घर में किसी प्रिय के दबाव में आकर भी हम विज्ञापित वस्तुओं को खरीद लेते हैं।
  6.  विज्ञापन वस्तुओं के साथ मुफ्त या छूट को लोभ हमें वह सामान खरीदने के लिए प्रेरित करता है।

प्रश्न 6.
आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होना चाहिए या उसका विज्ञापन? तर्क देकर स्पष्ट करें।
उत्तर:
वस्तुओं को खरीदने का एक ही आधार होना चाहिए-वस्तु की गुणवत्ता। विज्ञापन हमें गुणवत्ता वाली वस्तुओं का परिचय करा सकते हैं। परंतु अधिकतर विज्ञापन भी भ्रम पैदा करते हैं। वे आकर्षक दृश्य दिखाकर गुणहीन वस्तुओं का प्रचार करते हैं। उदाहरणतया, चाय की पत्ती के विज्ञापन में लड़कियों के नाच का कोई काम नहीं। परंतु अधिकतर लोग नाच से इतने प्रभावित होते हैं कि दुकान पर खड़े होकर वही चायपत्ती खरीद लेते हैं, जिसका ताज़गी से कोई संबंध नहीं। हमें ‘वाह ताज!’ जैसे शब्दों के मोह में न पड़कर चाय की कड़क और स्वाद पर ध्यान देना चाहिए। वही हमारे काम की चीज़ है।

प्रश्न 7.
पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही ‘दिखावे की संस्कृति पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
आज दिखावे की संस्कृति का असर है कि बाजार तरह-तरह की वस्तुओं से भरे पड़े हैं। विज्ञापनों द्वारा उनका इस तरह प्रचार एवं प्रसार किया जाता है कि व्यक्ति उन्हें खरीदकर हर सुख पा लेना चाहता है। ऐसा करके हम संभ्रांत व्यक्तियों की श्रेणी में आ जाना चाहते हैं। दिखावे की यह प्रवृत्ति पहले महिलाओं में ही होती थी पर आजकल पुरुष वर्ग भी पीछे नहीं रहा। परिधान हो या महँगी वस्तुएँ, उन्हें खरीदकर व्यक्ति समाज में अपनी हैसियत का प्रदर्शन करना चाहता है।
दिखावे की यह संस्कृति समाज में वर्ग-भेद उत्पन्न कर रही है। मनुष्य, मनुष्य से दूर हो रहा है। उसमें व्यक्ति केंद्रिकता बढ़ रही है। आक्रोश और तनाव बढ़ रहा है। सामाजिकता की नींव हिल रही है। यह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।

प्रश्न 8.
आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति-रिवाजों और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर:
आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे रीति-रिवाजों और त्योहारों को भी प्रभावित कर रही है। हमारे त्योहार और रीति-रिवाज बड़े समझ-बूझ के परिणाम थे। उनके कारण हमारी समाज-रचना उत्तम रीति से चल रही थी। परंतु उपभोक्तावादी संस्कृति ने वहाँ आकर भी अपने पाँव फैला लिए हैं। परिणामस्वरूप त्योहार अपने लक्ष्य से भटक गए हैं।

दीपावली में साफ-सफाई और घी के दीपकों का अपना महत्त्व है। इस बहाने वर्षा-ऋतु के बाद पैदा होने वाली गंदगी और कीटाणु नष्ट होते हैं। घर के लोग अपने हाथ से दिए सजाते हैं, उनमें तेल भरते हैं, फिर उन्हें जलाए रखने का प्रयास करते हैं। इस बहाने वे त्योहार में लीन होते हैं। वे समाज की परंपराओं के साथ समरस होते हैं।

परंतु आज, उपभोक्तावादी संस्कृति ने बिजली के कृत्रिम बल्बों की लड़ियाँ पैदा कर दी हैं। अब जो कुछ करना है, बिजली-कर्मचारी करेगा। आपको केवल पैसा खर्च करना है।

पहले शादी-ब्याह में सब रिश्तेदारों की अपनी भूमिका होती थी। लड़की वाले अपने हाथों से काम करते थे और बरात का जमकर स्वागत करते थे। परंतु आज, सारा काम बैंक्वेट हाल या होटल के कर्मचारी कर देते हैं। शादी का उत्साह एक रस्म में बदल चुका है। कुछ करने–धरने को नहीं रहा। इससे जीवन में वैसी खुशी और ताजगी भी नहीं रही। सचमुच उपभोक्तावादी संस्कृति ने हमारे जीवन-रस को सोख लिया है।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 9.
धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है।
उत्तर:
इस वाक्य में बदल रहा है’ क्रिया है। यह क्रिया कैसे हो रही है-धीरे-धीरे। अतः यहाँ ‘धीरे-धीरे’ क्रियाविशेषण है। जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, क्रियाविशेषण कहलाते हैं। जहाँ वाक्य में हमें पता चलता है क्रिया कैसे, कब, कितनी और कहाँ हो रही है, वहाँ वह शब्द क्रियाविशेषण कहलाता है।
(क) ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान में रखते हुए क्रियाविशेषण से युक्त पाँच वाक्य पाठ में से छाँटकर लिखिए।
(ख) धीरे-धीरे, जोर से, लगातार, हमेशा, आजकल, कम, ज्यादा, यहाँ, उधर, बाहर-इन क्रियाविशेषण शब्दों का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए।
(ग) नीचे दिए गए वाक्यों में से क्रियाविशेषण और विशेषण शब्द छाँटकर अलग लिखिएवाक्य

वाक्य क्रियाविशेषण विशेषण

  1.  कल रात से निरंतर बारिश हो रही है।
  2. पेड़ पर लगे पके आम देखकर बच्चों के मुँह में पानी आ गया।
  3. रसोईघर से आती पुलाव की हलकी खुशबू से मुझे ज़ोरों की भूख लग आई।
  4. उतना ही खाओ जितनी भूख है।
  5. विलासिता की वस्तुओं से आजकल बाजार भरा पड़ा है।

उत्तर:
(क)

  1. उत्पादन बढ़ाने पर चारों ओर जोर दिया जा रहा है। (चारों ओर-स्थानवाचक क्रियाविशेषण)
  2.  चाहें तो वहाँ फव्वारे होंगे और मंद ध्वनि में निरंतर संगीत भी। | (निरंतर-रीतिवाचक क्रियाविशेषण)
  3.  पेरिस से परफ्यूम मॅगाइए, इतना ही और खर्च हो जाएगा। (इतना ही-परिमाणवाचक क्रियाविशेषण)
  4. कोई बात नहीं आप उसे ठीक तरह चला भी न सकें। (ठीक तरह-रीतिवाचक क्रियाविशेषण)
  5.  सामंती संस्कृति के तत्व भारत में पहले भी रहे हैं। (पहले-कालवाचक क्रियाविशेषण)

2

(ग)
3

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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न 1.
गुरुदेव ने शांतिनिकेतन को छोड़ कहीं और रहने का मन क्यों बनाया?
उत्तर:
गुरुदेव ने शांतिनिकेतन को छोड़कर अन्यत्र रहने का मन इसलिए बनाया क्योंकि

  1. वे कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे।
  2. वे असमय मिलने-जुलने आने वालों से परेशान थे।
  3. वे आराम, शांति और एकांत की आवश्यकता महसूस कर रहे थे।

प्रश्न 2.
मूक प्राणी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते। पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘एक कुता और एक मैना’ पाठ से स्पष्ट है कि मूक प्राणी भी कम संवेदनशील नहीं होते। इस दृष्टि से कुत्ते का व्यवहार दर्शनीय है। वह अपने स्वामी के प्रति पूरी भक्ति से समर्पित है। जब गुरुदेव उसे शांतिनिकेतन में छोड़कर श्रीनिकेतन में चले आते हैं तो कुत्ता ढूंढते-ढूंढते वहाँ जा पहुँचता है। वह गुरुदेव का स्पर्श पाते ही आनंद से उमंगित हो उठता है।

गुरुदेव की मृत्यु पर उसकी संवेदनशीलता देखने योग्य थी। वह अन्य शोक-पीड़ित समाज के साथ-साथ चलता रहा तथा उनकी चिताभस्म के कलश के पास उदास होकर बैठा रहा। मानो वह भी मृत्यु की उदासी में सम्मिलित था। इससे पता चला कि ये मूक प्राणी भी मानव की तरह संवेदनशील होते हैं।

प्रश्न 3.
गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी कविता के मर्म को लेखक कब समझ पाया?
उत्तर:
गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी गई कविता का मर्म लेखक तब समझ पाया जब उसने गुरुदेव की लिखी इस आशय की कविता पढ़ी कि मैना कीड़ों को चुनकर गिरे पत्ते पर उछल-कूद रही है जबकि अन्य मैनाएँ शिरीषवृक्ष पर बैठी बक-झक कर रही हैं।
यही मैना जब उड़कर कहीं चली जाती है तब लेखक ने समझा कि अन्य मैनाओं के साथ न मिलने के कारण वह उड़ गई। उसका यूँ गायब होना बहुत करुण लगा।

प्रश्न 4.
प्रस्तुत पाठ एक निबंध है। निबंध गद्य-साहित्य की उत्कृष्ट विधा है, जिसमें लेखक अपने भावों और विचारों को कलात्मक और लालित्यपूर्ण शैली में अभिव्यक्त करता है। इस निबंध में उपर्युक्त विशेषताएँ कहाँ झलकती हैं? किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
यह एक ललित निबंध है। इसमें लेखक अपने भावों को, विचारों को, रुचियों-अरुचियों को व्यक्त करता है। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी अपने निजी भावों और विचारों को कल्पना और कला द्वारा प्रकट किया है।

  • ‘मैं’ शैली का प्रयोग-
    इसमें लेखक ने आत्मकथन शैली अर्थात् ‘मैं’ शैली का प्रयोग किया है। उदाहरणतया-‘अस्तु, मैं मय बाल-बच्चों के एक दिन श्रीनिकेतन जा पहुंचा। कई दिनों से उन्हें देखा नहीं था।’
  • कल्पनाशीलता-
    इस निबंध में लेखक ने विभिन्न कल्पनाओं का सहारा लिया है। उदाहरणतया, मैना-दंपती का संवाद अत्यंत रोचक बन पड़ा है। मैना को एकांत में अकेले विहार करते देख उसे विधुर पति या विधवा पत्नी के रूप में देखना मनोरंजक कल्पनाएँ हैं।
  • सरस व्यंग्य-
    द्विवेदी जी ने कौओं को याद करते-करते आधुनिक साहित्यकारों पर भी सरस टीका-टिप्पणी की है। यह टिप्पणी मनोरंजक बन पड़ी है।
  • मानवीकरण शैली-
    पूरे निबंध में सरलता और रोचकता है। निबंधकार ने मैना और कुत्ते को भी सजीव मानव के समान प्रस्तुत किया है।

प्रश्न 5.
आशय स्पष्ट कीजिए| इस प्रकार कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य, मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पाता।
उत्तर:
आशय-अपने पास बैठे कुत्ते की पीठ पर गुरुदेव ने हाथ फेरा तो कुत्ते का रोम-रोम उनके स्नेह का अनुभव करने लगा। कुत्ते के पास इसे बताने के लिए वाणी नहीं है। पर कवि (गुरुदेव) की दृष्टि उसके मर्म को समझ जाती है। प्रेम को अनुभव विशाल मानव-सत्य है। साधारण मनुष्य इस भावना का अनुभव नहीं कर पाते हैं। कवि की दृष्टि ने उस प्राणी के भीतर भी इसे अनुभव कर लिया।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6.
पशु-पक्षियों से प्रेम इस पाठ की मूल संवेदना है। अपने अनुभव के आधार पर ऐसे किसी प्रसंग से जुड़ी रोचक घटना को कलात्मक शैली में लिखिए।
उत्तर:
परीक्षोपयोगी नहीं। भाषा-अध्ययन

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 7.
गुरुदेव ज़रा मुस्करा दिए।
मैं जब यह कविता पढ़ता हूँ।
ऊपर दिए गए वाक्यों में एक वाक्य में अकर्मक क्रिया है और दूसरे में सकर्मक। इस पाठ को ध्यान से पढ़कर सकर्मक और अकर्मक क्रिया वाले चार-चार वाक्य छाँटिए।
उत्तर:
पाठ से सकर्मक और अकर्मक क्रिया वाले चार-चार वाक्य सकर्मक क्रिया वाले वाक्य

  1. हम लोग उस कुत्ते के आनंद को देखने लगे।
  2. गुरुदेव ने इस भाव की एक कविता लिखी थी।
  3. बच्चों से जरा छेड़छाड़ की, कुशल-क्षेम पूछे।
  4.  इतनी सी स्वीकृति पाकर ही उसके अंग-अंग में आनंद का प्रवाह बह उठता है।

अकर्मक क्रिया वाले वाक्य

  1.  दूसरी बार मैं सवेरे गुरुदेव के पास उपस्थित था।
  2. उस समय एक लँगड़ी मैना फुदक रही थी।
  3. हम लोगों को देखकर मुस्कराए।
  4. ऐसे दर्शनार्थियों से गुरुदेव कुछ भीत-भीत से रहते थे।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों में कर्म के आधार पर क्रिया-भेद बताइए
(क) मीना कहानी सुनाती है।
(ख) अभिनव सो रहा है।
(ग) गाय घास खाती है।
(घ) मोहन ने भाई को गेंद दी।
(ङ) लड़कियाँ रोने लगीं।

6

प्रश्न 9.
नीचे पाठ में से शब्द-युग्म के कुछ उदाहरण दिए गए हैं; जैसे समय-असमय, अवस्था-अनवस्था इन शब्दों में ‘अ’ उपसर्ग लगाकर नया शब्द बनाया गया है। पाठ में से कुछ शब्द चुनिए और उसमें ‘अ’ एवं अन्’ उपसर्ग लगाकर नए शब्द बनाइए।
उत्तर:
‘अ’ उपसर्ग लगाने से बने शब्द
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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kritika Chapter 2 मेरे संग की औरतें

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न 1.
लेखिका ने अपनी नानी को कभी भी नहीं देखा फिर भी उनके व्यक्तित्व से वे क्यों प्रभावित थीं?
उत्तर:
लेखिको ने भले ही अपनी नानी को न देखा था, पर अपनी माँ, पिता जी आदि से उनके बारे में सुनकर बहुत कुछ जान गई थी। लेखिका के अपनी नानी के व्यक्तित्व से प्रभावित होने के निम्नलिखित कारण थे

  1. लेखिका की नानी अपनी बेटी (लेखिका की माँ) की शादी आजादी के | सिपाही’ से कराना चाहती थी। इससे उनका स्वतंत्रता के लिए जुनूनी होने का पता चलता है।
  2. लेखिका की नानी को अपनी बेटी की हमेशा चिंता रहती थी। वे ममतामयी माँ थीं।
  3.  उनकी नानी परदानशीं, अनपढ़, परंपरागत ढंग से रहने वाली महिला थीं, पर वे निजी जीवन में आज़ाद ख्यालों वाली थीं।
  4.  उनकी नानी स्पष्टवादिनी महिला थीं। उन्होंने बिना संकोच अपने मन की बात स्वतंत्रता सेनानी प्यारेलाल शर्मा से कह दी जिसे सुनकर सब दंग रह गए।
  5.  वे किसी की निजी जिंदगी में हस्तक्षेप नहीं करती थीं, भले ही वे लेखिका के नाना ही क्यों न हो।

प्रश्न 2.
लेखिका की नानी की आज़ादी के आंदोलन में किस प्रकार की भागीदारी रही?
उत्तर:
लेखिका की नानी आजादी के आंदोलन में खुलकर भाग न ले सकी। उसकी परिस्थितियाँ ऐसी नहीं थीं कि वह खुलकर आंदोलनों में भाग ले सके। परंतु उसने स्वतंत्रता की भावना को मन-ही-मन पनपने दिया। उसने कभी अंग्रेजियत को स्वीकारा नहीं। उसका पति अंग्रेज़ों का भक्त था, फिर भी उसने कभी अंग्रेजों की जीवन शैली में भाग नहीं लिया। उसने सबसे बड़ा योगदान यह किया कि अपनी संतान को अंग्रेज भक्तों के शिकंजे से मुक्त करा लिया। उसने अपनी बेटी की शादी एक क्रांतिकारी से करा दी ताकि उसकी बेटी और उसके बच्चे देश के लिए कुछ कर सकें। इस घटना से क्रांतिकारियों को जो उत्साह मिला होगा, उसकी कल्पना ही की जा सकती है।

प्रश्न 3.
लेखिका की माँ परंपरा का निर्वाह न करते हुए भी सबके दिलों पर राज करती थी। इस कथन के आलोक में
(क) लेखिका की माँ की विशेषताएँ लिखिए।
(ख) लेखिक की दादी के घर के माहौल का शब्द-चित्र अंकित कीजिए।
उत्तर:
(क) लेखिका की माँ की विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

  1. लेखिका की माँ खादी की साड़ी पहनने वाली आजीवन गाँधी जी के सिद्धांतों का पालन करती रहीं।
  2. उसकी माँ में खूबसूरती, नज़ाकत, ईमानदारी और निष्पक्षता का संगम था। इससे वे परीजात-सी लगती थीं।
  3. उनमें आज़ादी के प्रति जुनून तथा लगाव था।
  4. वे हमेशा किसी की गोपनीय बात को गोपनीय ही रखती थीं तथा किसी के सामने प्रकट नहीं करती थीं।
  5. वे सदा सत्य बोलती थीं इससे परिवार वाले उनका आदर करते थे।

(ख) लेखिका की दादी के घर के माहौल का शब्द-चित्रलेखिका की दादी के घर का माहौल अन्य घरों से अलग था। वहाँ सबको लीक से हटकर चलने की छूट थी। लड़के-लड़कियों में कोई भेद नहीं किया जाता था। खुद दादी ने ही अपनी पुत्रवधू के गर्भवती होने पर बेटी पैदा होने की कामना की थी।
घर में स्त्रियों को आदर-सम्मान दिया जाता था। खुद लेखिका की माँ को परिवार भर के लोग मानते थे। परिवार का वातावरण धार्मिक था। स्वयं दादी नियमित रूप से मंदिर जाया करती थी। उनके परिवार में साहित्यिक माहौल था।

लेखिका की माँ पुस्तकें पढ़ने, चर्चा करने, संगीत सुनने में समय बिताया करती थी। स्त्रियों का इतना सम्मान किया जाता था कि पाँच पुत्रियाँ पैदा होने पर भी घर में लेखिका की माँ का आदर कम न हुआ था।

प्रश्न 4.
आप अपनी कल्पना से लिखिए कि परदादी ने पतोहू के लिए पहले बच्चे के रूप में लड़की पैदा होने की मन्नत क्यों माँगी?
उत्तर:
पाठ को पढ़कर लगता है कि लेखिका की परदादी ने भी अपने समय में लड़की के साथ होने वाले अपमान और तिरस्कार को जाना-समझा होगा। उसे मन-ही-मन लगता होगा कि देवी का रूप होने पर भी लड़की का इतना तिरस्कार क्यों होता है? कब उसका सम्मान होना शुरू होगा? शायद इसीलिए उसने अपनी इस भावना को घर में ही फलते-फूलते देखना चाहा होगा। उसने समाज में यह भाव भरना चाहा होगा कि यहाँ लड़कियों का सम्मान होता है। अतः तुम भी उन्हें सम्मान दो। परदादी ने यह भी सोचा होगा कि अगर लड़कियों का सम्मान होगा तो वे आत्मविश्वास, सम्मान और साहस से भरकर शक्तिशाली बन सकेंगी।

प्रश्न 5.
डराने-धमकाने, उपदेश देने या दबाव डालने की जगह सहजता से किसी को भी सही राह पर लाया जा सकता है-पाठ के आधार पर तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
यह बिल्कुल सत्य है कि डराने-धमकाने, उपदेश देने या दबाव डालने की जगह सहजता से सबको राह पर लाया जा सकता है। इस पाठ के अनुसार एक चोर दीवार काटकर हवेली में घुस आया। उसी कमरे में माँ जी सोई हुई थीं। आहट सुनकर उनकी आँख खुल गई। उन्होंने पूछा, “कौन?” जवाब मिला “चोर”।

माँजी ने उसे पानी लाने का आदेश दिया। चोर पानी लेकर आ रहा था कि पहरेदार द्वारा पकड़ लिया गया और उनके सामने लाया गया। माँ-जी ने लोटे का आधा पानी पीकर उसे आधा पिला दिया और कहा, “आज से हम माँ बेटे हुए। अब तू चाहे चोरी कर या खेती ।” चोर ने चोरी करना छोड़कर खेती का काम करना शुरू कर दिया और आजीवन चोरी नहीं की। यदि वह मारपीट करती तो चोर न सुधरता।

प्रश्न 6.
“शिक्षा बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है’ इस दिशा में लेखिका के प्रयासों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
शिक्षा पाना बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है। जिस बच्चे का जन्म हुआ है, उसे उचित विद्यालय में शिक्षा मिलनी ही चाहिए। यदि कहीं शिक्षा की व्यवस्था नहीं है तो उसके लिए उचित प्रबंध किया जाना चाहिए।
लेखिका कर्नाटक के छोटे-से कस्बे बागलकोट में थी। वहाँ उसके दो बच्चों को पढ़ाने की समुचित व्यवस्था नहीं थी। अतः उसने एक अच्छा स्कूल खुलवाने की भरपूर कोशिश की। पहले उसने पास के कैथोलिक बिशप से प्रार्थना की कि वे वहाँ एक स्कूल खोलें। परंतु बिशप तैयार नहीं हुए। तब उन्होंने अपनी कोशिशों से, कुछ उत्साही लोगों को साथ लगाकर वहाँ एक अच्छा प्राइमरी स्कूल खुलवाया। उसमें लेखिका तथा अन्य अफसरों के बच्चे पढ़े तथा बाद में बड़े-बड़े स्कूलों में भर्ती होने योग्य बन गए।

प्रश्न 7.
पाठ के आधार पर लिखिए कि जीवन में कैसे इंसानों को अधिक श्रद्धा भाव से देखा जाता है?
उत्तर:
जीवन में उन लोगों को श्रद्धाभाव से देखा जाता है जो

  1. अपने स्वार्थ तक ही सीमित न रहकर दूसरों के बारे में भी सोचते हैं।
  2.  जो दूसरों की भलाई के लिए अपना धन, समय, श्रम आदि लगाने से भी नहीं घबराते हैं।
  3.  जो घर-परिवार के अलावा समाज के अन्य लोगों को भी उचित राय देते रहते हैं। लेखिका की माँ ऐसा ही किया करती थी।
  4. जो दूसरी की गोपनीय बातों को सार्वजनिक नहीं करते हैं तथा उसकी गोपनीयता बनाए रखते हैं। खुद लेखिका की माँ इसका उदाहरण थीं।

प्रश्न 8.
‘सच, अकेलेपन का मजा ही कुछ और है-इस कथन के आधार पर लेखिका की बहन एवं लेखिका के व्यक्तित्व के बारे में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
लेखिका और उसकी बहन में अकेले अपने पथ पर चलने का दृढ़ साहस है। लेखिका ने अपने बलबूते पर बिहार के रूढिपंथी लोगों के बीच रहकर नारी-जागृति का कार्य किया। उन्होंने शादीशुदा औरतों को पर-पुरुषों के साथ नाटकों में अभिनय करने के लिए प्रेरित किया। इसके लिए उनमें एक धुन सवार थी। इसी भाँति उन्होंने कर्नाटक के एक छोटे से कस्बे बागलकोट में जाकर नया प्राइमरी स्कूल खुलवाया।

लेखिका की बहन रेणु अपने मन की मालिक खुद थी। उसे स्कूल से लौटते समय गाड़ी में आना पसंद नहीं था। इसलिए वह पसीने से तरबतर होकर भी पैदल घर आती थी। इसी प्रकार बी.ए. की परीक्षा पास करने में उसकी कोई रुचि नहीं थी। उसने सभी से यह प्रश्न पूछा-आखिर बी.ए. की डिग्री से क्या मिल जाएगा? संतोषजनक उत्तर न मिलने की स्थिति में उसने पेपर देने में खूब आनाकानी की। भीषण बरसात वाले दिन उसका अकेले स्कूल में जाना यह प्रमाणित करता है कि वह अकेले राह पर चलना जानती थी। । ये दोनों व्यक्तित्व मौलिक थे। ये स्वतंत्र सोच रखते थे। वे लीक पीटने वाले पोंगापंथी लोग नहीं थे। ये विचारवान थे और अपनी राह पर स्वयं चलने की हिम्मत रखते थे।

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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kritika Chapter 3 रीढ़ की हड्डी

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न 1.
रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद बात-बात पर “एक हमारा ज़माना था …” कहकर अपने समय की तुलना वर्तमान समय से करते हैं। इस प्रकार की तुलना करना कहाँ तक तर्कसंगत है?
उत्तर:
यह मनुष्य को स्वाभाविक गुण है कि वह बीते हुए समय को ज्यादा अच्छा बताता है। गोपाल प्रसाद और रामस्वरूप भी ‘हमारा जमाना था…’ कहकर अपने समय को अधिक अच्छा बताने की कोशिश करते हैं। वास्तव में उनकी इस तुलना को तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता है।
हो सकता है कि कुछ बातें उस समय में अच्छी रही हों पर सारी बातें अच्छी रही हों यह भी संभव नहीं। जो बातें अच्छी थीं वे भी तत्कालीन समाज की परिस्थितियों में खरी उतरती होंगी पर बदलते समय के अनुसार वे सही ही हों यह आवश्यक नहीं। हर समाज की आवश्यकताएँ समयानुसार बदलती रहती हैं।
जैसे पहले स्त्रियों को पढ़ाना भले आवश्यक न समझा जाता रहा हो पर आज स्त्रियों की शिक्षा समाज की आवश्यकता बन चुकी है। इसी तरह आज की बातें आज के परिप्रेक्ष्य में अच्छी है और तत्कालीन समाज के लिए वे बातें अच्छी रहीं होंगी। इस प्रकार उनके द्वारा की गई तुलना तर्कसंगत नहीं है।

प्रश्न 2.
रामस्वरूप का अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलवाना और विवाह के लिए छिपाना, यह विरोधाभास उनकी किस विवशता को उजागर करता है?
उत्तर:
रामस्वरूप अपनी बेटी को बी.ए. पढ़ाता है। वह उसे उच्च शिक्षा दिलवाना अपना पवित्र कर्तव्य मानता है। परंतु जब उसके विवाह का समय आता है तो उसे समाज की पिछड़ी मनोभावना का शिकार होना पड़ता है। लोग शिक्षित बहू को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। लड़के तथा सास ससुर को ऐसा लगता है कि पढ़ी लिखी बहू उनके नियंत्रण में नहीं रहेगी। वह बात-बात पर नखरे करेगी, विरोध करेगी, प्रश्न करेगी तथा उन्हें चुनौती देगी। वे इस बात को बिलकुल सहन नहीं करना चाहते। इसलिए वे कम पढ़ी लिखी बहू चाहते हैं। इस कारण रामस्वरूप और उमा की स्थिति विचित्र हो जाती है। उन्हें विवाह के लिए उमा की उच्च शिक्षा को छिपाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

प्रश्न 3.
अपनी बेटी का रिश्ता तय करने के लिए रामस्वरूप उमा से जिस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा कर रहे हैं, वह उचित क्यों नहीं है?
उत्तर:
रिश्ते के लिए रामस्वरूप उमा से जिस व्यवहार की अपेक्षा कर रहे थे वह कहीं से उचित नहीं था। वे चाहते थे कि उमी लड़के वालों (गोपाल प्रसाद और शंकर) के सामने सज-धजकर जाए तथा अपनी बी.ए. पास होने की बात छिपाकर दसवीं पास होना बताए । वे चाहते हैं कि उमा वैसा ही आचरण करे जैसा लड़के वाले चाहते हैं।
आज समाज में लड़की-लड़के को समानता का दर्जा दिया जाता है। लड़कियाँ किसी भी क्षेत्र में लड़कों से पीछे नहीं हैं। अतः लड़की कोई वस्तु या मूक जानवर नहीं है कि किसी के इशारे पर कार्य करे।
उसका भी अधिकार है कि जिसके साथ उसे जीवनभर रहना है उसके बारे में जाने। उसकी रुचियों, पसंद-नापसंद का भी सम्मान किया जाना चाहिए।

प्रश्न 4.
गोपाल प्रसाद विवाह को ‘बिज़नेस’ मानते हैं और रामस्वरूप अपनी बेटी की उच्च शिक्षा छिपाते हैं। क्या आप मानते हैं कि दोनों ही समान रूप से अपराधी हैं? अपने विचार लिखें।
उत्तर:
रामस्वरूप का अपनी बेटी को बी.ए. तक पढ़ाना और फिर उसकी शिक्षा को छिपाना भी गलत है। उसे अपनी सुशिक्षित बेटी पर गर्व होना चाहिए। उसने समाज की धारणा के विपरीत उसे पढ़ाया-लिखाया तो सही, किंतु जब इस कारण रास्ते की बाधाएँ आईं तो मुँह छिपाने लगा। उसका यह व्यवहार कायरतापूर्ण है। उसे समाज में मजबूती से खड़ा होकर उसके लिए योग्य और स्वाभिमानी वर की तलाश करनी चाहिए।

जहाँ तक दोनों के समान रूप से अपराधी होने की बात है, गोपाल प्रसाद अधिक बड़ा अपराधी है। गेंद उसके पाले में है। रामस्वरूप तो उस जैसे लोगों की प्रतिक्रिया पर जीवित है। रामस्वरूप की मजबूरी फिर भी कम बुरी है। उसका वश चलता तो वह गोपाल प्रसाद जैसे ढोंगियों की बखिया उधेड़ कर रख देता। परंतु इससे उसकी कन्या की जिंदगी खराब हो सकती है।

प्रश्न 5.
“…आपके लाड़ले बेटे की रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं…” उमा इस कथन के माध्यम से शंकर की किन कमियों की ओर संकेत करना चाहती है?
उत्तर:
“…आपके लाड़ले बेटे की रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं…” के माध्यम से उमा शंकर की निम्नलिखित कमियों की ओर संकेत करना चाहती है

  1. गोपाल प्रसाद उमा की शिक्षा, उसके गुण, चाल-ढाल तथा खूबसूरती के विषय में बार-बार जानना चाहते हैं, पर अपने बेटे के बारे में तनिक भी ध्यान नहीं देते हैं।
  2. गोपाल प्रसाद मेडिकल कॉलेज की पढ़ाई कर रहे अपने बेटे को बहुत होशियार समझते हैं, पर वास्तव में ऐसा नहीं है।
  3.  शंकर का चरित्र भी बहुत अच्छा नहीं है। लड़कियों के हॉस्टल का चक्कर लगाते हुए पकड़ा गया था।
  4. उसमें (शंकर में) आत्मविश्वास की कमी है।
  5.  वह झुककर चलता है। उसकी शारीरिक बनावट भी कुछ अच्छी नहीं है।

प्रश्न 6.
शंकर जैसे लड़के या उमा जैसी लड़की-समाज को कैसे व्यक्तित्व की ज़रूरत है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
समाज को शंकर जैसे लड़कों की बिलकुल ज़रूरत नहीं है। जिस समाज में शंकर जैसे लंपट, शक्तिहीन, व्यक्तित्वहीन लोग होते हैं, वह समाज कभी करवट नहीं ले सकता। ऐसा दूल्हा अपना परिवार भी ढंग से नहीं चला पाता। वह पति होने योग्य नहीं होता। ऐसा व्यक्ति विवाह कर भी ले तो उसके घर में सदा क्लेश रहता है।
समाज को उमा जैसी लड़कियों की जरूरत है। ऐसी बहादुर, निडर, स्वाभिमानी, मुखर, विद्रोही लड़कियाँ ही गोपाल प्रसाद जैसे बड़बोले, दिशाभ्रष्ट और अहंकारी लोगों को सबक सिखा सकती हैं। उमा सत्य और गुणवत्ता पर खड़ी है। वह प्रकाश है तो गोपाल प्रसाद अँधेरा। जब समाज में उमा जैसी लड़कियाँ और बढ़ेगी तो गुणवत्ता को अपने आप मान मिलेगा। तब लोग सुशिक्षित बहू पसंद करेंगे। इस तरह समाज में सुशिक्षा बढ़ेगी, प्रकाश बढ़ेगा और रूढ़ियों का अँधेरा छेटे ।

प्रश्न 7.
‘रीढ़ की हड्डी’ शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मानव शरीर को सीधा खड़ा होने के लिए रीढ़ की हड्डी का मजबूत होना बहुत आवश्यक है। ठीक इसी प्रकार से समाज के चतुर्दिक विकास के लिए स्त्रियों का शिक्षित और आत्मनिर्भर होना आवश्यक है। समाज में नारी को उचित स्थान न मिल पाना, समाज की ‘बैकबोन’ को कमजोर करता है। नारी की उन्नति तथा समाज में उचित स्थान दिए बिना समाज मजबूत नहीं हो सकता है। उमा के विवाह के लिए रामस्वरूप जो रिश्ता तय करते हैं उस लड़के (शंकर) की कमर भी ‘झुकी रहती है।
उसकी शारीरिक बनावट भी बहुत अच्छी नहीं दिखता। ऐसा लगता है कि उसकी बैकबोन (रीढ़ की हड्डी) झुकी हुई है। इसके अलावा शंकर के चरित्र की कमजोरी को भी रीढ़ की हड्डी न होने की बात कह कर उभारा गया है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ‘रीढ़ की हड्डी’ शीर्षक पूर्णतया सार्थक है।

प्रश्न 8.
कथावस्तु के आधार पर आप किसे एकांकी का मुख्य पात्र मानते हैं और क्यों?
उत्तर:
‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी में मुख्य पात्र है-उमा। वह एकांकी की नायिका है। यद्यपि एकांकी में पूरा समय छाए रहने वाले पात्र हैं-रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद। परंतु वे एकांकी के प्रमुख पात्र नहीं हैं। वे एकांकी की पृष्ठभूमि बनाने वाले पात्र हैं।
एकांकी का नायक वही होता है जो

  1. सारी कथा के मूल में हो।
  2. जो फल का भोक्ता हो।
  3. जो अपनी गति से एकांकी को मोड़ देता हो और प्रभावित करता हो।

‘रीढ़ की हड्डी’ के मूल में दो पात्र प्रमुख हैं–शंकर और उमा। सारी कथा इन्हीं के विवाह के इर्द गिर्द बुनी गई है। चाहे ये दोनों पात्र प्रत्यक्ष रूप से पूरा समय मंच पर न हों, किंतु वे चर्चा के मूल में रहते हैं। अत: ये ही प्रमुख पात्र हो सकते हैं। पुरुष प्रधान समाज में दूल्हा अर्थात् शंकर प्रमुख पात्र हो सकता था, किंतु वह अत्यंत दुर्बल और चापलूस है। इसलिए उमा चमकते सूरज की भाँति एकाएक अंधकार को छिन्न भिन्न कर देती है तथा गोपाल प्रसाद और शंकर को उखाड़ कर रख देती है। वह थोड़े समय आकर भी पाठकों के चित्त पर स्थायी प्रभाव जमा पाती है तथा एकांकी की कथा में एकाएक मोड़ ले
आती है। इसलिए हम उसे प्रभावशाली प्रमुख पात्र कह सकते हैं। एकांकी का फल-विवाह का न होना-भी उस पर पड़ता है। अतः उमा हर तरह से रीढ़ की हड्डी’ की प्रमुख पात्र है।
गोपाल प्रसाद अपने दबदबे से प्रमुखता बनाए रखता है, किंतु वह खलनायक है, नायक नहीं। उसकी खलनायकी उमा के आते ही हवा में उड़ते पत्तों की भाँति गायब हो जाती है।

प्रश्न 9.
एकांकी के आधार पर रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
‘रीढ़ की हड्डी” एकांकी में रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद दोनों ही पुरुष पात्रों में प्रमुख हैं। वे एकांकी के अधिकांश भाग में उपस्थित रहते हैं। उनके चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
रामस्वरूप-राम स्वरूप इस एकांकी के प्रमुख पुरुष पात्र हैं। वे आधुनिक विचारों को महत्त्व देने वाले तथा उच्च शिक्षा के समर्थक हैं।
वे अपनी बेटी उमा को बी.ए. तक पढ़ाते हैं। वे उसके विवाह को लेकर चिंतित दिखते हैं। वे गोपाल प्रसाद के पुत्र शंकर से उसकी शादी करना चाहते हैं। वे गोपाल प्रसाद की मनोवृत्ति जानकर उमा की शिक्षा की बात छिपाते हुए परिस्थितियों से समझौता करने के लिए तैयार हैं।
गोपाल प्रसाद-पेशे से वकील हैं पर शिक्षा के मामले में दोहरी राय रखते हैं। वे उच्च शिक्षा लड़कों के लिए तथा लड़कियों के लिए कम शिक्षा के पक्षधर हैं। वे शादी जैसे मामले को भी बिजनेस मानते हैं। वे दहेज की लालच में अपने मेडिकल की पढ़ाई कर । रहे बेटे का विवाह कम पढ़ी-लिखी लड़की से भी करने को तैयार हो जाते हैं।

प्रश्न 10.
इस एकांकी का क्या उद्देश्य है? लिखिए।
उत्तर:
‘ रीढ़ की हड्डी’ उद्देश्यपूर्ण एकांकी है। इसका उद्देश्य है-नारी शिक्षा को समाज में स्थान दिलाना। हमारा समाज नारी शिक्षा को महत्त्व नहीं देता। इससे पुरानी पीढ़ी की सारी व्यवस्था टूटती है, उनके आसन हिलते हैं, उनका दबदबा समाप्त होता है। सास-ससुर अपनी मनमानी के बल पर घर चलाते हैं। वे हर हालत में अपना अहंकार पूरा होते देखना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि उनकी होने वाली बहू उनकी गुलाम हो, उनके हाथों की कठपुतली हो जिससे वे मनमानी सेवा ले सकें तथा अपनी सनक चला सकें। इसलिए वे पढ़ी लिखी बहू को स्वीकार नहीं करते।

वे आने वाली बहू की इच्छा को ‘नखरे’ मानते हैं। उनकी यह सोच दकियानूसी है। लेखक समाज की इसी दकियानूसी सोच पर आघात करके लोगों को सोचने के लिए प्रेरित करना चाहता है। वह उमा के माध्यम से कहना चाहता है कि बहुएँ कुर्सी-मेज़ की तरह बिकाऊ माल नहीं होतीं। उनकी पढ़ाई कोई पाप नहीं है। उनका भी दिल होता है। उन्हें भी चोट लगती है। इस सबका ध्यान रखना चाहिए। यदि अनपढ़ और स्वार्थी समाज सुशिक्षित बहू का सम्मान नहीं करता तो उमा जैसी बहुओं को इसके लिए संघर्ष करना पड़ेगा, उन्हें मुंहफट बनना पड़ेगा, अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ेगा। नारी उद्धार का यही एकमेव मार्ग है।

इस एकांकी में रामस्वरूप जैसे पिताओं को भी सीख दी गई है कि वे बेटी की शादी के नाम पर कमज़ोर न बनें। वे परिस्थिति का सच्चाई से सामना करें। वे छल-कपट की शेष दुनिया के कपट जाल में स्वयं को न ढालें। शंकर और गोपाल प्रसाद पर भीषण चोट करना भी इस एकांकी का उद्देश्य है, जिसमें एकांकीकार पूरी तरह सफल रहा है।

प्रश्न 11.
समाज में महिलाओं को उचित गरिमा दिलाने हेतु आप कौन-कौन से प्रयास कर सकते
उत्तर:
समाज में महिलाओं को उचित गरिमा दिलाने हेतु हम निम्नलिखित प्रयास कर सकते हैं

  1.  ‘हमें महिलाओं को हीन दृष्टि से नहीं देखना चाहिए’-मैं इस बात को जन-जन तक पहुँचाने में अपना योगदान दे सकता हूँ।
  2. सर्वप्रथम मैं खुद महिलाओं को उचित सम्मान करूंगा। साथ-साथ महिलाओं का सम्मान करने के लिए दूसरों को भी प्रेरित करूंगा।
  3. ) स्त्री-शिक्षा को बढ़ावा देने में हर संभव योगदान करूंगा।
  4. उनके मान-सम्मान को ध्यान में रखकर अश्लील हरकतें वालों को समझाने का प्रयास करूंगा।
  5.  अपने समय की महान तथा विदुषी स्त्रियों का उदाहरण समाज के सामने प्रस्तुत करूंगा।
  6.  लड़के और लड़कियों की तुलना करते हुए लोगों को यह समझाने का प्रयास करूंगा कि लड़कियाँ लड़कों से किसी क्षेत्र में कम नहीं हैं।

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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kritika Chapter 4 माटी वाली

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न 1.
‘शहरवासी सिर्फ माटी वाली को नहीं, उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते हैं।
आपकी समझ से वे कौन से कारण रहे होंगे जिनके रहते ‘माटी वाली’ को सबै पहचानते थे?
उत्तर:
माटी वाली एक बूढ़ी औरत थी, जो कनस्तर में लाल मिट्टी भरकर शहर में घर-घर दिया करती थी। वह माटाखान से मिट्टी लाती थी। इसी मिट्टी को बेचकर वह अपना जीवनयापन करती थी। टिहरी के लोग माटी वाली को ही नहीं बल्कि उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते थे। इसके निम्नलिखित कारण रहे होंगे

  1. माटी वाली की लाल मिट्टी हर घर की आवश्यकता थी, जिससे चूल्हे-चौके की पुताई की जाती थी। इसके बिना किसी का काम नहीं चलता था।
  2.  मिट्टी देने का यह काम उसके अलावा कोई और नहीं करता था। उसका कोई प्रतिद्वंद्वी न था।
  3.  शहर से माटाखान काफी दूर था, इसलिए लोग अपने-आप मिट्टी नहीं ला सकते थे।
  4. शहर की रेतीली मिट्टी से लिपाई का काम नहीं किया जा सकता था। (७) माटी वाली हँसमुख स्वभाव की महिला थी, जो सबसे अच्छी तरह बातें करती थी।

प्रश्न 2.
माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में ज्यादा सोचने का समय क्यों नहीं था?
उत्तर:
माटी वाली के सामने सबसे बड़ी और अहम समस्या यह थी कि वह अपना तथा बुड्डे का पेट कैसे भरेगी? और अगर उसे गाँव छोड़कर जाना पड़ा तो फिर गुजारा कैसे करेगी। अब तक तो माटाखान उसकी रोजी-रोटी बना हुआ था। वहाँ : से उजड़ने के बाद उसका क्या होगा—यह समस्या उसे ऐसा पागल बनाए हुए थी कि उसके पास अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में सोचने का वक्त ही नहीं था।

प्रश्न 3.
“भूख मीठी कि भोजन मीठा’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भूख और भोजन का आपस में बहुत ही गहरा रिश्ता है। यदि खाने वाले को भूख लगी हो तो भोजन रुचिकर तथा स्वादिष्ट लगता है और खाने वाला का पेट पहले से भरा हो तो वही भोजन उसे अच्छा नहीं लगेगा। उसे भोजन में कोई स्वाद नहीं मिलेगा। भोजन की ओर देखने का उसका जी भी न करेगा। अतः स्वाद भोजन में नहीं बल्कि भूख में हैं।

प्रश्न 4.
‘पुरखों की गाढ़ी कमाई से हासिल की गई चीजों को हराम के भाव बेचने का मेरा दिल गवाही नहीं देता।’-मालकिन के इस कथन के आलोक में विरासत के बारे में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
मालकिन कहती है कि उसे अपने पुरखों की सब चीजों से मोह है। न जाने उसके पुरखों ने कितनी मेहनत से, पेट काट-काटकर चीजें बनाई हों। इसलिए उन चीजों को सुरक्षित रखना ज़रूरी है। उन्हें बेचना, वह भी बहुत सस्ते में बेचे देना, गलत है।
मेरे विचार से, मालकिन की बातों में सत्य है। हमें जहाँ तक हो सके, अपने पूर्वजों की निशानी को बचाकर रखना चाहिए। परंतु पुरखों की विरासत का मोह जीवन से बड़ा नहीं होता। अगर जान पर संकट आ जाए, तो पुरखों की संपत्ति को बेचने से इनकार नहीं करना चाहिए। सहज स्वाभाविक स्थितियों में हमें उन्हें सुरक्षित रखना चाहिए।

प्रश्न 5.
माटी वाली का रोटियों को इस तरह हिसाब लगाना उसकी किस मजबूरी को प्रकट करता है?
उत्तर:
माटी वाली की वृद्धावस्था तथा गरीबी पर तरस खाकर घर की मालकिनें बची हुई एक-दों रोटियाँ, ताजा-बासी साग, तथा बची-खुची चाय दे दिया करती थीं, वह उनमें से एकाध रोटी अपने पेट के हवाले कर लेती थी तथा बाकी बची रोटियाँ कपड़े में बाँधकर रख लेती थी, ताकि वह इसे ले जाकर अपने वृद्ध, बीमार एवं अशक्त पति को खिला सके।
माटी वाली को जैसे ही दो या उससे अधिक रोटियाँ मिलती थीं वह तुरंत सोचने लगती थी कि इतनी रोटी मैं स्वयं खाऊँगी तथा इतनी बची रोटियाँ अपने पति के लिए ले जाऊँगी।
उसके द्वारा रोटियों का यूँ हिसाब लगाना उसकी गरीबी, मजबूरी तथा विवशता को प्रकट करता है। वह सुबह से शाम तक परिश्रम करने के बाद भी दो जून की रोटी का इंतजाम नहीं कर पाती है। यह उसकी विवशता ही है कि रोटियों का हिसाब लगाकर ही एकाध रोटी स्वयं खाती है तथा बाकी अपने पति के लिए रख लेती है।

प्रश्न 6.
आज माटी वाली बुड्ढे को कोरी रोटियाँ नहीं देगी-इस कथन के आधार पर माटी वाली के हृदय के भावों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
माटी वाली एक मज़बूर पत्नी है। उसका पति विवश और बूढा है। वह काम करने के योग्य नहीं रहा। वह पूरी तरह अपनी पत्नी पर निर्भर हो चुका है। इसलिए माटी वाली उसका पूरा ध्यान रखती है। वह खुद खाने से पहले उसके लिए बचाकर रखती है। उसमें अपने जीवनसाथी के प्रति गहरा प्रेम और लगाव है। सच तो यह है कि अब वह उसके प्रति प्रेम नहीं वात्सल्य और करुणा रखने लगी है। जब से बूढ़ा दयनीय दशा में पहुँचा है, वह पति के प्रति सद्य हो उठी है।

प्रश्न 7.
“गरीब आदमी को श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए। इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘माटी वाली’ नामक इस पाठ में लेखक ने गरीबों के विस्थापन की समस्या को अत्यंत प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है। लेखक ने टिहरी से विस्थापित होने वाले लोगों के दर्द को अत्यंत गहराई से महसूस किया है। माटी वाली के पास न अपनी कोई जमीन थी और न माटाखान का कोई कागज। वह तो गाँव के ठाकुर की जमीन पर झोंपड़ी डालकर रहती है। माटीवाली एक दिन जब घरों में माटी पहुँचाकर आती है तो देखती है कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है।
माटी वाली के सामने इस समय मुख्य समस्या शहर से विस्थापित होने की नहीं, बल्कि अपने पति के अंतिम संस्कार की है, क्योंकि श्मशान घाट डूब चुके हैं। उसके लिए घर और श्मशान में कोई अंतर नहीं रह जाता है।
वह सोचती है कि एक ओर व्यक्ति प्रतिदिन विकास का दावा करता है, पर गरीब आदमी का सबकुछ छिना जा रहा है। मरने के बाद उसे जगह भी नहीं मिल रही है। वह पीड़ा एवं हताशा के कारण कहती है कि आम आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए।

प्रश्न 8.
‘विस्थापन की समस्या पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर:
‘विस्थापन’ का अर्थ है-एक स्थान से उजड़कर दूसरे स्थान पर बसना। यह बहुत बड़ी समस्या है। विस्थापन से जीवन पूरी तरह हिल जाता है। कुछ भी निश्चित नहीं रहता। सब कुछ अनिश्चित हो जाता है। पुरानी सारी व्यवस्थाएँ छिन्न हो जाती हैं, पुराने मित्र छूट जाते हैं, आदतें लाचार हो जाती हैं। नए स्थान में फिर-से नई व्यवस्थाएँ बनानी पड़ती हैं, नए मित्र बनाने पड़ते हैं, नए विश्वास जमाने पड़ते हैं। नए स्थान के अनुसार ढलना पड़ता है। एक प्रकार से विस्थापन पुनर्जन्म के समान होता है। शांति की बजाय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

विस्थापन से सबसे बड़ी समस्या आती है-घरबार और रोजगार की। विस्थापित व्यक्ति कहाँ रहे? कौन-सा रोजगार करे? पुराने सारे काम-धंधे छूट जाते हैं। जिन लोगों को बुढ़ापे में विस्थापित होना पड़ता है, उनकी तो मानो मौत हो जाती है। सचमुच उनका बुढापा बिगड़ जाता है। टिहरी बाँध बनाने के सिलसिले में हजारों परिवारों को खेती-बाड़ी, काम-धंधा, नौकरी, व्यापार और निश्चित मजदूरी छोड़नी पड़ी। माटी वाली की पीड़ा हम समझ सकते हैं। पिछले दिनों भारत में अनेक बड़े-बड़े विस्थापन हुए। 1947 में भारत-पाक विभाजन हुआ।

लाखों लोग लाहौर से दिल्ली और दिल्ली से कराची आए-गए। इस विस्थापन में लाखों लोग मारे गए। अरबों की संपत्ति स्वाहा हुई। पिछले बीस सालों से कश्मीरी पंडित कश्मीर घाटी छोड़कर मारे-मारे फिर रहे हैं। वे ऐसे विस्थापित हैं, जिनकी किसी ने सुध नहीं ली। उनकी आजीविका गई, भाई-बंधु गए, शांति गई। जीवन खानाबदोश हो गया। इस प्रकार विस्थापन एक बहुत बड़ी समस्या है। इसे यथासंभव रोका जाना चाहिए। परंतु यदि विस्थापन अनिवार्य हो जाए तो विस्थापितों को सहानुभूतिपूर्वक बसाया जाना चाहिए।

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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया

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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 5 नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न 1.
बालिका मैना ने सेनापति ‘हे’ को कौन-कौन से तर्क देकर महल की रक्षा के लिए प्रेरित किया?
उत्तर:
बालिका मैना ने सेनापति ‘हे’ को निम्नलिखित तर्क देकर महल की रक्षा के लिए प्रेरित किया

  1.  इस जड़ पदार्थ मकान ने अंग्रेज़ों को कुछ नहीं बिगाड़ा है।
  2. उसके पिता को मकान होने के कारण यह मकान उसे अत्यंत प्रिय है।
  3. अंग्रेजों के विरुद्ध शस्त्र उठाने वाले को आप सजा दीजिए।
  4.  आपकी पुत्री और मैं साथ-साथ खेलती थीं, तब आप भी यहाँ आया-जाया करते थे।
  5.  आपकी पुत्री की एक चिट्ठी अब तक मेरे (मैना) पास है।

प्रश्न 2.
मैना जड़ पदार्थ मकान को बचाना चाहती थी पर अंग्रेज़ उसे नष्ट करना चाहते थे। क्यों?
उत्तर:
मैना उसी राजमहल में पली-बढ़ी थी। उसी में उसकी बचपन की, पिता की, परिवार की यादें समाई हुई थीं। इसलिए वह जड़ मकान उसके लिए भरी-पूरी जिंदगी के समान था। वह उसके जीवन का भी सहारा हो सकता था। इसलिए वह उसे बचाना चाहती थी।
अंग्रेज़ों के लिए वह राजमहल उनके दुश्मन नाना साहब की निशानी था। वे उनकी हर निशानी को मिट्टी में मिला देना चाहते थे, ताकि देश में फिर से कोई अंग्रेजों के विरुद्ध आवाज न उठाए।

प्रश्न 3.
सर टामस ‘हे’ के मैना पर दया-भाव के क्या कारण थे?
उत्तर:
सर टामस ‘हे’ के मैना पर दया भाव दिखाने के निम्नलिखित कारण थे

  1. सन् 1857 के विद्रोह से पहले टामस ‘हे’ नाना साहब के घर आया-जाया करते थे।
  2.  मैना उसकी दिवंगत पुत्री मेरी की घनिष्ठ सहेली थी।
  3. मैना के पास मेरी की चिट्ठी होने की बात सुनकर ‘हे’ भावुक हो गए थे।
  4. टामस ‘हे’ मैना को अपनी पुत्री के समान ही प्यार करते थे।

प्रश्न 4.
मैना की अंतिम इच्छा थी कि वह उस प्रासाद के ढेर पर बैठकर जी भरकर रो ले लेकिन पाषाण हृदय वाले जनरल ने किस भय से उसकी इच्छा पूर्ण न होने दी?
उत्तर:
जनरल अउटरम के मन में भय रहा होगा कि अगर उसने नाना साहब की बेटी के प्रति जरा भी सहानुभूति दिखाई तो ब्रिटिश सरकार का गुस्सा उस पर फूट पड़ेगा। उसे इसके लिए दंड भी मिल सकता है। क्रोध से पागल सामान्य अंग्रेज़ नागरिक भी उस पर नाराजगी प्रकट करेंगे। इस कारण उसने मैना की यह छोटी-सी इच्छा भी पूरी न होने दी।

प्रश्न 5.
बालिका मैना के चरित्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ आप अपनाना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर:
बालिका मैना के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ अपनाना चाहूंगा|

  1. देश-प्रेम की भावना-मैना में देश-प्रेम तथा देशभक्ति की भावना भरी थी। वह देश पर जान न्योछावर करने को तैयार थी।
  2.  निडरता-मैना निडर थी। महल ध्वस्त होने के बाद भी अंग्रेज़ सैनिकों के बीच निडर बनी रही। वह अंग्रेजी सेना से भयभीत होकर, छिपकर अन्यत्र नहीं गई।
  3.  साहसी-मैना साहसी थी। वह जनरल ‘हे’ से अपनी बातें साहस से कह देती है।
  4.  वाकूपटुता-मैना ने अपनी वाक्पटुता से अंग्रेज़ सेनापति ‘हे’ को महल न गिराने के लिए सोचने पर विवश कर दिया।
  5. उत्सर्ग की भावना-नाना के अचानक जाने और मकान गिराने के बीच वह भी कहीं जा सकती थी, पर उसने मातृभूमि पर अपनीपन देकर अपनी उत्सर्ग की | भावना का परिचय दिया।
  6.  भावुकता-मैना जड़ पदार्थ महल से भी प्यार करती है। वह महल के अवशेष के लिए भी रोती है। ये गुण व्यक्ति में राष्ट्र-प्रेम एवं देशभक्ति की भावना मजबूत बनाते हैं। इसलिए मैं इन्हें अपनाना चाहूँगा।

प्रश्न 6.
‘टाइम्स’ पत्र ने 6 सितंबर को लिखा था-बड़े दुख का विषय है कि भारत सरकार आज तक इस दुर्दात नाना साहब को नहीं पकड़ सकी।’ इस वाक्य में भारत सरकार’ से क्या आशय है?
उत्तर:
यहाँ भारत सरकार से आशय है-ब्रिटिश शासन के अंतर्गत चलने वाली भारत सरकार जिसे अंग्रेज अधिकारी चलाते थे।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 7.
स्वाधीनता आंदोलन को आगे बढ़ाने में इस प्रकार के लेखन की क्या भूमिका रही होगी?
उत्तर:
स्वाधीनता आंदोलन को आगे बढ़ाने में देशभक्तिपूर्ण और देश के लिए अपना सबै कुछ बलिदान करने के लिए प्रेरित करने वाले में इस प्रकार के लेखों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। इस तरह के लेख पढ़कर लोगों में राष्ट्रप्रेम की भावना बलवती हो उठती है।
देश के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना उनके मन में भी जाग उठती है। बलिदानों की गाथाएँ उनमें जोश भर देती हैं। उन्हें दासता का बंधन ऐसा लगने लगता है कि जैसे कोई पक्षी पिंजरे में बंद जीवन जी रहा है।
इन रचनाओं से आम आदमी भी अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए प्रेरित हो उठता है। इस तरह एक-न-एक दिन वह अपने लक्ष्य तक पहुँच ही जाता है।

प्रश्न 8.
कल्पना कीजिए कि मैना के बलिदान की यह खबर आपको रेडियो पर प्रस्तुत करनी है। इन सूचनाओं के आधार पर आप एक रेडियो समाचार तैयार करें और कक्षा में भावपूर्ण शैली में पढ़ें।
उत्तर:
कल शाम 7.00 बजे अंग्रेज सरकार ने कानपुर के कारागृह में वह कायरतापूर्ण कार्य कर डाला जिसका कलंक मिटाए नहीं मिट सकेगा। आपको विदित होगा कि कल आधी रात को नाना साहब की बालिका मैना को जनरल अउटरम ने तब गिरफ्तार कर लिया था, जब वह अपने टूटे हुए महल पर बैठकर रो रही थी। उसे रात को ही हथकड़ी पहनाकर कानपुर जेल में डाल दिया गया था। गिरफ्तारी के समय नन्हीं बालिका ने जनरल अउटरम से यह विनती की थी कि उसे अपने महल पर बैठकर आराम से कुछ समय से लेने दिया जाए। किंतु अउटरम ने उसकी यह छोटी-सी इच्छा भी पूरी नहीं की। समाचार है कि आज रात योजनापूर्वक उसे जलती हुई आग में डालकर भस्म कर डाला गया। अंग्रेज अधिकारी इसे ब्रिटिश शासन का आदेश कह रहे हैं। कानपुर की जनता इस बलिदान को पवित्र मानकर देवी मैना की आराधना कर रही है।

प्रश्न 9.
इस पाठ में रिपोर्ताज के प्रारंभिक रूप की झलक मिलती है लेकिन आज अखबारों में । अधिकांश खबरें रिपोर्ताज की शैली में लिखी जाती हैं। आप
(क) कोई दो खबरें किसी अखबार से काटकर अपनी कॉपी में चिपकाइए तथा कक्षा में पढ़कर सुनाइए।
(ख) अपने आसपास की किसी घटना का वर्णन रिपोर्ताज शैली में कीजिए।
उत्तर:
(क) दो खबरें
हिंदुस्तान 30 दिसंबर, 2009 से साभार
टीचर 65, प्रोफेसर 70 तक पढ़ाएँगे
मदन जैडा नई दिल्ली-प्राइमरी एवं मिडिल स्कूलों में शिक्षकों की कमी से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों को मास्टरों की भर्ती प्रक्रिया में तेजी लाने के साथ-साथ शिक्षकों की रिटायरमेंट आयु 65 साल करने का निर्देश दिया है।
दिल्ली समेत कुछ राज्यों में पहले से ही टीचरों की आयु 62 साल की जा चुकी है, लेकिन ज्यादातर राज्यों में अभी भी टीचरों को 58 या 60 साल में रिटायर किया जाता है।
केंद्र सरकार ने हाल में शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) लागू किया है। इसमें 6-14 साल के सभी बच्चों को शिक्षा प्रदान करना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन इसमें टीचरों की कमी आड़े आ रही है।
लो फ्लोर से फिर निकला धुआँ, अफरा-तफरी
कार्यालय संवाददाता नई दिल्ली-उत्तम नगर इलाके में मंगलवार की दोपहर एक लो फ्लोर बस में धुआँ निकलने से सवारियों में अफरा-तफरी मच गई।
पिछले कुछ ही दिनों में बस से धुआँ निकलने की यह दसवीं घटना है, जिसने लो फ्लोर बसों की जाँच किये जाने संबंधी दावों की कलई खोलकर रख दी। यह बस इंद्रलोक से नजफगढ़ के बीच चलती है, लेकिन बस का रूट उत्तम नगर बस टर्मिनल पर खत्म होना था फिर वहां से यह बस आनंद विहार के लिए बनकर चलनी थी।
सूत्रों के मुताबिक रूट संख्या 817 पर चलने वाली लो फ्लोर बस जब उत्तम नगर चौराहे पर पहुँची तो इंजन से धुआँ निकलने लगा।
मामले की जानकारी मिलने पर चालक रूपेश ने सभी सवारियों को नीचे उतार दिया। फिर बस को उत्तम नगर टर्मिनल में खड़ा कर दिया गया।

(ख) कल रात अक्षरधाम फ्लाई ओवर के पास एक कार डिवाइडर से टकरा गई, जिसमें दो लोग मामूली तौर से तथा एक गंभीर रूप से घायल हो गए। इनमें से दो को प्राथमिक उपचार के बाद छुट्टी दे दी गई। तीसरे की हालत गंभीर बनी हुई है।
पुलिस का कहना है कि कार से बीयर, शराब, पानी की बोतल, खाली गिलास तथा कुछ खाद्य वस्तुएँ मिली हैं। तीनों ही युवक नशे की हालत में थे।
इस बावत मंडावली पुलिस ने उनके खिलाफ नशा कर खतरनाक तरीके से वाहन चलाने की धाराओं के तहत जुर्माना तथा मुकदमा दर्ज किया है।

प्रश्न 10.
आप किसी ऐसे बालक/बालिका के बारे में एक अनुच्छेद लिखिए जिसने कोई बहादुरी का काम किया हो।
उत्तर:
हमारा देश पहले भी वीरांगनाओं के लिए प्रसिद्ध रहा है। ऐसे में आज की किशोरियाँ भला कहाँ पीछे रहने वाली हैं। उनके साहस और वीरता के किस्से आए दिन देखने और पढ़ने को मिल जाते हैं। ऐसी ही एक बहादुर लड़की ने अपनी जान पर खेल कर तीन लड़कियों को डूबने से बचाया।
किस्सा भीलों के मोहल्ला, जिला टोंक (राजस्थान) का है। 23 जून, 2008 को 15 वर्षीय हिना कुरैशी व उसकी सहेलियाँ एक तालाब की सीढ़ियों पर कपड़े धो रही थीं। अचानक प्रीति 10 फुट गहरे तालाब में जा गिरी।

यह देख कर कीर्ति ने बहन की मदद के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया, परंतु संतुलन बिगड़ने के कारण वह तालाब में जा गिरी। दोनों की मदद के लिए वहाँ स्नान करे रही 11 वर्षीय गुलप्सा उन्हें बचाने के लिए दौड़ी। हड़बड़ी में उसका पैर फिसला और वह भी पानी में जा गिरी। तीनों को ही तैरना नहीं आता था।

तीनों को पानी में डूबता देख हिना की सहेलियाँ मदद के लिए चिल्लाईं। किसी को भी आगे आते न देख हिना ने तुरंत पानी में छलाँग लगा दी। पहले उसने गुलप्सा को बाहर निकाला। फिर कीर्ति व प्रीति को भी सुरक्षित बाहर निकाला।

हिना के साहस की वजह से उस दिन तीन जिंदगियों को नया जीवन मिला। हिना की बहादुरी को सबने खूब सराहा। हिना को इस हिम्मत के लिए राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार दिया गया। बच्चो! इससे सबक मिलता है कि हमें संकट के समय कभी भी हौसला नहीं खोना चाहिए और हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 11.
भाषा और वर्तनी का स्वरूप बदलता रहता है। इस पाठ में हिंदी गद्य का प्रारंभिक रूप व्यक्त हुआ है जो लगभग 75-80 वर्ष पहले था। इस पाठ के किसी पसंदीदा अनुच्छेद को वर्तमान मानक हिन्दी रूप में लिखिए।
उत्तर:
सन् 57 के सितंबर मास में अद्र्ध रात्रि के समय चाँदनी रात में एक बालिका स्वच्छ उज्ज्वल वस्त्र पहने हुए नानासाहब के भग्नावशिष्ट प्रासाद के ढेर पर बैठी रो रही थी। पास में जनरल आउटरम की सेना भी ठहरी थी। कुछ सैनिक रात्रि के समय रोने की आवाज सुनकर वहाँ गए। बालिका केवल रो रही थी। सैनिकों के प्रश्न का कोई उत्तर नहीं देती थी।

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