Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 27 पांडवों और कौरवों के सेनापति

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 27 पांडवों और कौरवों के सेनापति

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 27

प्रश्न 1.
पांडवों की सेना में कौन-कौन प्रमुख वीर थे? उन्होंने किस को अपना सेनापति बनाया ?
उत्तर:
पांडवों की सेना में द्रुपद, विराट, धृष्टद्युम्न, शिखंडी, सात्यकि, चेकितान, भीमसेन जैसे महारथी थे। परंतु अर्जुन की राय से उन्होंने धृष्टद्युम्न को सेनापति नियुक्ति किया।

प्रश्न 2.
कौरव सेना ने अपना सेनापति किसे बनाया। उन्होंने क्या निश्चय किया था ?
उत्तर:
भीष्म को कौरव सेना का सेनापति बनाया गया। भीष्म ने निश्चय किया था कि जानबूझ कर स्वयं आगे आकर मैं पांडु पुत्रों का वध नहीं करूँगा। उनका कहना था कि कर्ण लोगों का बहुत ही प्यारा है। वह सदा से ही मेरी सम्मतियों का विरोध करता आया है।

प्रश्न 3.
कर्ण ने क्या निश्चय किया था ?
उत्तर:
कर्ण ने निश्चय किया था कि जब तक भीष्म जीवित रहेंगे तब तक वह युद्ध भूमि में प्रवेश नहीं करेगा। भीष्म के मारे जाने के बाद ही वह युद्ध में भाग लेगा और केवल अर्जुन को ही मारेगा।

प्रश्न 4.
कौन-कौन से राजाओं ने महाभारत के युद्ध में भाग नहीं लिया था ?
उत्तर:
महाभारत के युद्ध में केवल बलराम व कृष्ण की पत्नी के भाई रुक्मी ने भाग नहीं लिया। ये दोनों ही तटस्थ रहे।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 27 पांडवों और कौरवों के सेनापति

प्रश्न 5.
कौरवों की सेना की व्यूह रचना देखकर युधिष्ठिर ने अर्जुन को क्या आज्ञा दी ?
उत्तर:
युधिष्ठिर ने अर्जुन से कहा कि एक जगह सब वीरों को इकट्ठे रहकर लड़ना होगा। सेना को सूची-मुख व्यूह में सज्जित करो।

प्रश्न 6.
अर्जुन के मन में क्या शंका उत्पन्न हुई ?
उत्तर:
अर्जुन ने जब अपने सम्मुख खड़े वीरों को देखा तो उसने सोचा कि हम यह क्या करने जा रहे हैं। अर्जुन के इस भ्रम को दूर करने के लिए श्रीकृष्ण ने कर्मयोग का उपदेश दिया जिसे हम सभी जानते हैं।

प्रश्न 7.
युधिष्ठिर अचानक ही अपना धनुष बाण उतारकर कौरव सेना की ओर क्यों चल पड़े ?
उत्तर:
युधिष्ठिर बड़ों की आज्ञा लेकर ही युद्ध करना चाहते थे। अतः वह इस प्रकार भीष्म और द्रोण से युद्ध की आज्ञा लेने के लिए कौरव सेना के बीच पहुँच गए।

प्रश्न 8.
कौरव सेना के कौन-कौन सेनापति रहे ?
उत्तर:
भीष्म के नेतृत्व में कौरव-वीरों ने दस दिन युद्ध किया। भीष्म के आहत होने पर द्रोण सेनापति बने। द्रोण के खेत रहने पर कर्ण सेनापति बने। कर्ण भी सत्रहवें दिन के युद्ध में मारे गए। इसके बाद शल्य सेनापति बने और ये सभी अट्ठारह दिनों में समाप्त हो गए।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 27 पांडवों और कौरवों के सेनापति

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 27

श्रीकृष्ण के उपप्लव्य लौट आने पर युधिष्ठिर ने अपने भाइयों को सेना सुसज्जित करने के लिए कहा। अर्जुन की सलाह पर धृष्टद्युम्न को पांडव सेना का सेनापति बनाया गया। कौरव सेना ने भीष्म को अपना नायक बनाया। उनका कहना था कि युद्ध का संचालन कर मैं अपना ऋण चुका दूंगा। मैं जानबूझ कर पांडु पुत्रों का वध नहीं करूँगा। उधर कर्ण ने ठान लिया कि जब तक भीष्म जीवित रहेंगे, तब तक वह युद्ध भूमि में प्रवेश नहीं करेगा।

इधर युद्ध की तैयारियाँ हो रही थीं उधर बलराम पांडवों के पास पहुंचे। उनका कहना था कि भीम और दुर्योधन दोनों ही मेरे प्रिय शिष्य हैं। मैं इन दोनों को आपस में लड़ते-मरते नहीं देख सकता। मुझे संसार से विराग हो गया है। अतः मैं जा रहा हूँ। इस युद्ध में समस्त भारतवर्ष से केवल दो राजा ही युद्ध में सम्मिलित नहीं थे। एक बलराम और दूसरे कृष्ण की पत्नी रुक्मणि के भाई रुक्मी। रुक्मी एक अक्षौहिणी सेना लेकर पांडवों के पास गए तो अर्जुन ने हँसकर कहा राजन्! आप बिना शर्त के सहायता करना चाहते हैं तो आपका स्वागत है। इसके बाद रुक्मी दुर्योधन के पास गया तो दुर्योधन ने भी उसकी सहायता लेने से मना कर दिया।

दोनों पक्षों की सेनाएँ कुरुक्षेत्र के मैदान में पहुँच गईं। अपने वीरों को युधिष्ठिर ने आज्ञा दी कि सेना को सूची-मुख व्यूह में सुसज्जित करो। जब अर्जुन ने अपने सामने अपने ही संगे सबंधियों को देखा तो उनके मन में शंका हुई। कृष्ण ने उपदेश देकर उनकी शंका का निवारण किया। सब लोग युद्ध शुरु होने की राह देख रहे थे कि तभी युधिष्ठिर ने जाकर पहले भीष्म के चरणों में प्रणाम किया और फिर द्रोणाचार्य को प्रणाम करके दोनों से युद्ध की अनुमति मांगी। इसके बाद सभी योद्धा युद्ध के नियमों के अनुसार युद्ध करने लगे। भीष्म ने दस दिनों तक कौरव सेना का नेतृत्व किया। भीष्म के आहत होने पर द्रोणाचार्य ने सेना का नेतृत्व किया। द्रोण के खेत रहने पर कर्ण ने नेतृत्व किया वह सत्रहवें दिन के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ। इस प्रकार यह युद्ध अट्ठारह दिन चला।

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