Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 7 कर्ण

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 7 कर्ण

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 7

प्रश्न 1.
हस्तिनापुर में भारी समारोह का आयोजन क्यों किया गया ?
उत्तर:
सभी राजकुमार अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा प्राप्त करके लौटे थे। उन सभी को उनके कौशल का प्रदर्शन करने के लिए भारी समारोह का आयोजन किया गया। सभी राजकुमार एक से बढ़कर एक प्रदर्शन कर रहे थे।

प्रश्न 2.
कर्ण ने सभा में उपस्थित होकर अर्जुन से क्या कहा ?
उत्तर:
कर्ण ने अर्जुन से कहा-“अर्जुन! जो भी करतब तुमने यहाँ दिखाएँ हैं, उनसे बढ़कर कौशल में दिखा सकता हूँ।

प्रश्न 3.
कर्ण की चुनौती का दर्शकों पर क्या असर हुआ ?
उत्तर:
कर्ण की चुनौती सुनकर दर्शक मंडली में खलबली मच गई। ईर्ष्या की आग में जलने वाले दुर्योधन को इससे बड़ी राहत मिली। उसने आगे बढ़कर कर्ण का स्वागत किया और उसे छाती से लगा लिया।

प्रश्न 4.
कृपाचार्य ने उठकर कर्ण से क्या पूछा ?
उत्तर:
कृपाचार्य ने उठकर कर्ण से कहा कि हे! अज्ञात वीर महाराज पांडु का पुत्र और कुरुवंश का वीर अर्जुन तुम्हारे साथ द्वंद्व युद्ध करने के लिए तैयार है, किंतु तुम पहले अपना परिचय दो। द्वंद्व युद्ध बराबर वालों में ही होता है। कुल का परिचय पाए बगैर राजकुमार कभी द्वंद्व युद्ध करने को तैयार नहीं होते।

प्रश्न 5.
कृपाचार्य की बातें सुनकर कर्ण का सिर झुक जाने पर दुर्योधन ने क्या किया?
उत्तर:
कृपाचार्य की बातें सुनकर दुर्योधन खड़ा हो गया और बोला-“अगर बराबरी की बात है तो मैं आज ही कर्ण को अंगदेश का राजा घोषित करता हूँ। दुर्योधन ने भीष्म और धृतराष्ट्र की अनुमति लेकर रंगभूमि में ही राज्यभिषेक की सामग्री मंगवाकर कर्ण का राज्यभिषेक कर दिया।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 7 कर्ण

प्रश्न 6.
कर्ण सूत-पुत्र है, सभा में इस बात का कैसे पता चला ?
उत्तर:
रंगभूमि में भय के मारे काँपते हुए तभी बूढ़ा अधिरथ प्रविष्ट हुआ। उसको देखकर कर्ण ने अपना धनुष नीचे रखकर सिर नवाया। बूढ़े ने भी बेटा कहकर उसे गले लगा लिया। तब सभा में पता चला कि कर्ण सूत-पुत्र है।

प्रश्न 7.
इन्द्र ने कर्ण से कवच और कुंडल दान में क्यों माँगे ?
उत्तर:
अर्जुन इंद्र के पुत्र थे और कर्ण सूर्य के पुत्र । इन्द्र नहीं चाहता था कि भविष्य में होने वाले किसी युद्ध में कर्ण की शक्ति से अर्जुन पर विपत्ति आए। इन्द्र कर्ण की शक्ति कम करना चाहता था। इसलिए उसने कर्ण से कवच और कुंडल माँग लिए।

प्रश्न 8.
सूर्य के सचेत कर देने पर भी कर्ण ने इन्द्र को अपने कवच-कुंडल क्यों दे दिए ?
उत्तर:
कर्ण महान दानवीर था। वह अपने पास आए किसी भी याचक को खाली हाथ नहीं लौटने देता था। वह यह जानकर भी कि उसके साथ धोखा हो रहा है फिर भी अपने कवच और कुंडल इन्द्र को दे दिए।

प्रश्न 9.
परशुराम ने कर्ण को क्या श्राप दिया ?
उत्तर:
परशुराम ने कर्ण को कहा कि तुमने अपने गुरु से छल किया है अतः जो विद्याएँ तुमने मुझसे सीखी हैं वे समय पड़ने पर तुम्हारे काम नहीं आएंगी। परशुराम का श्राप सच्चा सिद्ध हुआ। कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन से युद्ध करते हुए कर्ण अपनी सारी विद्याएँ भूल गया और अर्जुन के हाथों वीरगति को प्राप्त हुआ।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 7 कर्ण

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 7

कथासार पांडवों ने पहले कृपाचार्य और बाद में द्रोणाचार्य से अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा पाई। जब वे पूरी तरह निपुण हो गए तो एक भारी समारोह का आयोजन किया गया। सभी राजकुमार इस समारोह में अपने-अपने करतब दिखा रहे थे। अर्जुन का कमाल देखकर दुर्योधन ईर्ष्या के कारण जल रहा था। तभी सभा में कर्ण ने प्रवेश किया। उसने अर्जुन से कहा कि मैं उनसे बढ़कर कौशल दिखा सकता हूँ। कर्ण की चुनौती सुनकर सभा में खलबली मच गई। दुर्योधन ने कर्ण का बड़ी तत्परता से स्वागत किया। कर्ण की चुनौती सुनकर अर्जुन को तैश आ गया। इसी बीच कृपाचार्य ने उठकर कर्ण से उसका परिचय पूछा और कहा युद्ध सदा बराबर वालों में ही होता है। इसी बीच दुर्योधन ने खड़े होकर कर्ण को अंगदेश का राजा घोषित कर दिया और सभा में ही उसका राजतिलक कर दिया। तभी सभा में बूढ़े अधिरथ पहुंच गए। उनको देखते ही कर्ण ने धनुष नीचे रखकर उनके आगे सिर नवाया। यह जानकर कि यह सूतपुत्र है सभा में खलबली मच गई।

इस घटना के कुछ समय बाद इन्द्र एक बूढ़े ब्राह्मण का वेश बनाकर कर्ण के पास गया और उनसे उसके कवच और कुंडल दान में माँगे। इन्द्र नहीं चाहते थे कि भविष्य में होने वाले युद्ध में कर्ण अर्जुन के लिए विपत्ति बने। कर्ण को सूर्यदेव ने पहले ही सचेत कर दिया था कि तुम्हारे साथ इन्द्र ऐसी चाल चलने वाला है। परन्तु दानी कर्ण ने इस बात की कभी परवाह नहीं की। इतनी अद्भुत दानवीरता देखकर इन्द्र ने इनको शक्ति नामक अस्त्र प्रदान किया। साथ ही कहा कि इसका प्रयोग तुम केवल एक बार ही कर सकते हो।

एक बार कर्ण को परशुराम जी से ब्रह्मास्त्र सीखने की इच्छा हुई। वे ब्राह्मणवेश में परशुराम जी के पास गए। परशुराम ने ब्राह्मण समझकर कर्ण को सारी विद्याएँ सिखा दीं। तभी एक घटना के कारण यह भेद खुल गया कि कर्ण ब्राह्मण नहीं है। यह जानकर परशुराम को बहुत क्रोध आया उन्होंने कहा कि तुमने गुरु के साथ छल किया है। अतः समय पड़ने पर ये विद्याएँ तुम्हारे काम नहीं आएंगी। परशुराम का यह श्राप सच्चा सिद्ध हुआ। दुर्योधन के साथ कर्ण ने अंत समय तक मित्रता निभाई। अर्जुन के साथ युद्ध करते हुए उसकेउ रथ का पहिया जमीन में धंस गया। तभी अर्जुन ने मौका पाकर कर्ण पर प्रहार किया। कुंती ने जब यह सुना तो उसके दुःख का पार न रहा।

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