Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 8 द्रोणाचार

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 8 द्रोणाचार्य

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 8

प्रश्न 1.
आचार्य द्रोण कौन थे ? उनकी शिक्षा-दीक्षा कहाँ हुई ?
उत्तर:
आचार्य द्रोण महर्षि भरद्वाज के पुत्र थे। इनकी शिक्षा-दीक्षा महर्षि भरद्वाज के आश्रम में ही हुई।

प्रश्न 2.
द्रोण के मित्र कौन थे? शिक्षा के दौरान उनमें किस प्रकार की बातें हुईं ?
उत्तर:
पांचाल नरेश के पुत्र द्रुपद द्रोण के मित्र थे। वे दोनों एक साथ शिक्षा ग्रहण करते थे। द्रुपद उनसे कहता था कि राजा बनने के बाद मैं अपना आधा राज्य तुम्हें दे दूंगा।

प्रश्न 3.
राजा बनने के बाद द्रुपद को द्रोण का अपने पास आना बुरा क्यों लगा ?
उत्तर:
द्रुपद ऐश्वर्य के मद में चूर हो गए थे। वे अपनी मित्रता को भी भुला बैठे। द्रोण एक गरीब व्यक्ति थे। उनको द्रोण का वहाँ आना बुरा लगा क्योंकि उनका मानना था कि मित्रता बराबर वालों में ही हो सकती है। एक दरिद्र प्रजाजन की राजा के साथ मित्रता नहीं हो सकती।

प्रश्न 4.
द्रुपद से अपमानित होने पर द्रोण ने क्या निश्चय किया ?
उत्तर:
द्रोण ने निश्चय किया कि मैं इस अभिमानी राजा को सबक सिखाऊँगा और बचपन में जो मित्रता हुई उसे पूरी करके चैन लूँगा। वे हस्तिनापुर पहुंचकर अपनी पत्नी के भाई कृपाचार्य के पास गुप्त रूप से रहने लगे और उचित मौके की तलाश में लग गए।

प्रश्न 5.
द्रोणाचार्य का कौरव-पांडवों से मिलन किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
एक बार सभी राजकुमार नगर से बाहर गेंद खेल रहे थे, तभी उनकी गेंद कुँए में गिर गई। गेंद निकालने के प्रयास में युधिष्ठिर की अंगूठी भी कुँए में भी गिर गई। राजकुमार गेंद निकालने में सफल नहीं हुए तभी द्रोणाचार्य ने एक सींक से ही गेंद को बाहर निकाल दिया तथा धनुष पर बाण चढ़ाकर कुँए में गिरी अंगूठी को भी निकाल दिया। इस प्रकार द्रोणाचार्य का राजकुमारों से परिचय हुआ।

प्रश्न 6.
द्रोणाचार्य के बारे में जानकर भीष्म ने क्या किया ?
उत्तर:
भीष्म ने द्रोणाचार्य को राजकुमारों का शिक्षक नियुक्त कर दिया। द्रोण ने सभी राजकुमारों को अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा प्रदान की।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 8 द्रोणाचार्य

प्रश्न 7.
द्रोणाचार्य ने गुरु दक्षिणा के रूप में राजकुमारों के सामने क्या माँग रखी और क्यों?
उत्तर:
द्रोणाचार्य ने राजकुमारों से गुरु दक्षिणा के रूप में द्रुपद को कैद कर लाने के लिए आदेश दिया। दुर्योधन के असफल होने पर अर्जुन द्रुपद को युद्ध में हराकर उसे बंदी बना लाया। द्रोणाचार्य ने द्रुपद को बंदी बनाने का आदेश इसलिए दिया था जिससे कि द्रुपद के अभिमान को चूर किया जा सके व अपने अपमान का बदला लिया जा सके।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 8

आचार्य द्रोण व पांचाल नरेश के पुत्र द्रुपद भरद्वाज ऋषि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करते थे। दोनों में गहरी मित्रता थी। कभी-कभी अति उत्साह में आकर द्रुपद द्रोण से कहता था कि पांचाल देश का राजा बनने पर मैं आधा राज्य तुम्हें दे दूंगा। द्रोण भी धन प्राप्त कर अपने परिवार के साथ सुख से रहना चाहते थे। एक बार परशुराम जी अपनी सारी संपत्ति ब्राह्मणों में बाँट रहे थे। द्रोण भी उनके पास पहुँचे परन्तु तब तक सारी सम्पत्ति बँट चुकी थी। परशुराम ने उनसे कहा कि अब मेरे पास केवल मेरा शरीर व धनुर्विद्या ही है। द्रोण ने परशुराम से धनुर्विद्या सीख ली।

कुछ समय के बाद राजकुमार द्रुपद के पिता का स्वर्गवास हो गया। द्रुपद गद्दी पर बैठा। यह समाचार द्रोण को भी मिला। द्रोण ने सोचा कि द्रुपद यदि राज्य न भी दे, धन तो देगा ही यह सोचकर वे द्रुपद के पास पहुंचे। ऐश्वर्य के मद में चूर द्रुपद को द्रोण का आना बुरा लगा। उन्होंने कहा कि एक राजा के साथ दरिद्र प्रजाजन की मित्रता नहीं होती, मित्रता बराबरी की हैसियत वालों में होती है। द्रोणाचार्य बहुत लज्जित हुए। उन्होंने उसको सबक सिखाने की सोची। वे हस्तिनापुर जाकर अपनी पत्नी के भाई कृपाचार्य के पास गुप्त रूप से रहने लगे।

एक बार हस्तिनापुर के राजकुमार नगर से बाहर गेंद खेल रहे थे तभी उनकी गेंद एक कुँए में गिर पड़ी। द्रोणाचार्य ने पास पड़ी हुई एक सींक से ही उनकी गेंद निकाल दी। इसके बाद द्रोण ने युधिष्ठिर की अंगूठी भी धनुष पर बाण चढ़ाकर निकाल दी। द्रोण के इस चमत्कार को देखकर राजकुमारों को विस्मय हुआ। राजकुमारों द्वारा परिचय माँगने पर द्रोण ने कहा कि सारी घटना बताकर आप भीष्म से मेरा परिचय प्राप्त कर लीजिए। राजकुमारों की बात सुनकर भीष्म समझ गए कि हो न हो वे आचार्य द्रोण ही होंगे। उन्होंने निश्चय कर लिया कि राजकुमारों की शिक्षा द्रोणाचार्य से ही कराई जाए। इसके बाद द्रोणाचार्य ने राजकुमारों की शिक्षा प्रारंभ कर दी। शिक्षा पूरी होने पर द्रोणाचार्य ने उनसे गुरु दक्षिणा के रूप में पांचाल नरेश द्रुपद को कैद करके लाने को कहा। अर्जुन ने द्रुपद की सेना को तहस-नहस कर दिया व द्रुपद व उनके मंत्रियों को कैद कर लाया। द्रोणाचार्य ने द्रुपद को बचपन की बातें याद दिलाते हुए कहा कि तुम किस प्रकार मुझे भूल गए और मेरा अपमान किया। एक राजा ही दूसरे राजा के साथ मित्रता कर सकता है इसलिए मुझे युद्ध करके तुम्हारा राज्य छीनना पड़ा। मैं तुम्हारे साथ मित्रता करना चाहता हूँ इसलिए मैं तुम्हें आधा राज्य लौटाता हूँ क्योंकि मित्रता बराबरी वालों में ही होती है। द्रुपद के मन में द्रोण से बदला लेने की चाह थी। उसने कठोर व्रत व तप इस कामना से किए कि उसे ऐसा बलशाली पुत्र हो जो द्रोण का वध कर सके व ऐसी कन्या हो जो अर्जुन से ब्याही जा सके। आगे चलकर अर्जुन का ब्याह द्रुपद की कन्या द्रौपदी के साथ हुआ तथा द्रोणाचार्य का वध भी द्रुपद के पुत्र धृष्ठधुमन ने किया।

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