NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Bhaswati Chapter 9 वस्त्रविक्रयः

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Bhaswati Class 11 Solutions Chapter 9 वस्त्रविक्रयः

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया देयानि-

(क) अयं पाठः कस्मात् ग्रन्थात् सङ्कलितः कश्च तस्य प्रणेता?
उत्तर:
अयं पाठः भारतविजयनाटकस्य प्रथमाङ्कात् सङ्कलितः, पं० मथुराप्रसाद दीक्षितः चास्य प्रणेता।

(ख) वैदेशिको गौराङ्गः किं संदर्य श्रेष्ठिनौ तन्तुवायञ्च भर्त्सयति?
उत्तर:
वैदेशिको गौरागः राजमुद्राङ्कित प्रमाणपत्र संदर्घ्य श्रेष्ठिनौ तन्तुवायञ्च भर्त्सयति।

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(ग) तन्तुवायेन कथं पटः निष्पादितः?
उत्तर:
तन्तुवायेन षड्भिः मासैः रात्रिन्दिवं परिश्रम्य पटः निष्पादितः।

(घ) यन्मया निश्चिीयते दीयते च तदेव मूल्यमिति कथनं कस्यास्ति?
उत्तर:
यन्मया निश्चीयते दीयते च तदेव मूल्यमिति कथनं वैदेशिकगौरागस्य अस्ति।

(ङ) तन्तुवायाः कीदृशस्य पटस्य निर्माणमकुर्वन्?
उत्तर:
तन्तुवायाः अतिसूक्ष्मतरस्य अतीव सुन्दरस्य च पटस्य निर्माणमकुर्वन्।

(च) यूयं निर्मितान् पटान् मह्यं दत्त इति कः कान् प्रति कथयति?
उत्तर:
यूयं निर्मितान् पटान् महां दत्त इति वैदेशिकगौराङ्गः तन्तुवायान् प्रति कथयति।

(छ) गौराङ्गः तन्तुवायान् कथं निष्काशयति?
उत्तर:
गौरागः तन्तुवायान् गलहस्तेन निष्काशयति।

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(ज) वैदेशिको गौराङ्गः तन्तुवायान् कया ताडयितुं भर्त्सयति?
उत्तर:
वैदेशिको गौराङ्गः तन्तुवायान् कशया ताडयितुं भर्त्सयति।

प्रश्न 2.
रिक्तस्थानानि पूरयत-
उत्तर:

  1. कथमेतेन मम कुटुम्बस्य भरणपोषणे भविष्यतः।
  2. अनिर्वचनीयम् एतत्पटयोः सौन्दर्यम्।
  3. कथमेत्समक्षमस्मद्देशीयानां पटानां विक्रयो भविष्यति।
  4. शोभनं पट निर्माय मह्यं दत्त, योग्यं मूल्यं भविष्यति।
  5. यूयं पटान् निर्माय श्रेष्ठिना सविधे विक्रीणीध्वे।

प्रश्न 3.
सप्रसङ्गं व्याख्यायन्ताम्-

(क) युष्मत्कुटुम्बरक्षायै ………………. जानीहि व्रजाधुना।
उत्तर:
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भास्वती – प्रथमो भागः’ के अध्याय ‘वस्त्रविक्रयः’ में से अवतरित है। यह अध्याय महामहोपाध्याय पं० मथुराप्रसाद दीक्षितकृत ‘भारतविजयनाटकम्’ के प्रथम अंक से संकलित है। प्रस्तुत पाठ में वस्त्र व्यापारियों के साथ जुलाहों का वस्त्र-विक्रय हेतु वार्तालाप होता है। उसी समय विदेशी गौराङ्ग का प्रवेश होता है। वह राजकीय मुद्रा से अंकित प्रमाण पत्र दिखाकर बहुत कम मूल्य देकर वस्त्र खरीदना चाहता है। इतने कम मूल्य से उसके परिवार का पालन-पोषण भी नहीं हो पाएगा – ऐसा कहने पर जुलाहे के प्रति क्रोध करता हुआ वह विदेशी गौराङ्ग कहता है-

अर्थ – तुम्हारे परिवार की रक्षा की मैंने प्रतिज्ञा नहीं की। कैसे रक्षा होगी – यह तुम जानो, अब जाओ।

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व्याख्या – इस प्रकार बहुत कम मूल्य देकर और साथ ही क्रोध भी दिखाकर वह विदेशी जुलाहे को वहाँ से जाने को कहता है। गरीबों के साथ इसी प्रकार से अन्याय होता है। उन्हें अपनी वस्तु कम कीमत पर भी बेचनी पड़ती है तथा कुछ भी बोलने पर बुरा-भला भी सुनना पड़ता है।

(ख) अनिर्वचनीयमेतत्पट्योः सौन्दर्यम्। अतिसूक्ष्मतरोऽयं पटः। पश्य,एतस्य पञ्चषैः पटलैः परिवेष्टितमप्यपटमेव प्रतीयतेऽङ्गम्।
उत्तर:
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भास्वती प्रथमो भागः’ के अध्याय ‘वस्त्रविक्रयः’ में से उद्धृत किया गया है। यह अध्याय महामहोपाध्याय पं० मथुराप्रसाद
दीक्षितकृत ‘भारतविजयनाटकम्’ के प्रथम अंक से संकलित है। प्रस्तुत पाठ में वस्त्र व्यापारियों के साथ जुलाहों का वस्त्र विक्रय हेतु वार्तालाप होता है। उसी समय विदेशी गौराग का प्रवेश होता है। वह राजकीय मुद्रा से अंकित प्रमाणपत्र दिखाकर बहुत कम मूल्य देकर वस्त्र खरीद लेता है और डाँट-डपट कर जुलाहे को वहाँ से जाने को कहता है। वस्त्र बहुत सुन्दर है, अतः उसकी प्रशंसा करता हुआ वह विदेशी गौराङ्ग कहता है

अर्थ – दोनों वस्त्रों की सुन्दरता अवर्णनीय है। यह वस्त्र अत्यन्त महीन है। देखो, इसकी पाँच-छ: परतों से ढका हुआ अंग भी वस्त्रहीन सा दिखाई देता है।

व्याख्या – वस्त्र इतना सुन्दर तथा महीन है कि इसकी पाँच-छ: परतों से भी यदि अंग ढका जाता है तब भी वह अंग वस्त्रहीन सा ही लगता है। इस प्रकार वह विदेशी अत्यन्त प्रसन्न है कि उसने बहुत कम मूल्य में इतना सुन्दर वस्त्र ले लिया है।

(ग) न वयमयोग्यमूल्यत्वात् पट निर्मामः।
उत्तर:
प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भास्वती प्रथमो भागः’ के अध्याय ‘वस्त्रविक्रयः’ में से उद्धृत किया गया है। यह अध्याय महामहोपाध्याय पं. मथुराप्रसाद दीक्षितकृत भारतविजयनाटकम् के प्रथम अंक से संकलित है। प्रस्तुत पाठ में व्यापारियों के साथ जुलाहों का वस्त्र विक्रय हेतु वार्तालाप होता है। उसी समय विदेशी गौराग का प्रवेश होता है। वह राजकीय मुद्रा से अंकित प्रमाणपत्र दिखाकर बहुत कम मूल्य देकर वस्त्र ले लेता है और डाँट-डपट कर जुलाहे को वहाँ से भगा देता है। वह जुलाहा उसे इतनी कम कीमत में वस्त्र देना ही नहीं चाहता, अतः वह बहाने लगता हुआ कहता है-

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अर्थ – हम अनुचित मूल्य के कारण वस्त्र नहीं बनाते।

व्याख्या – इस पर वह विदेशी जुलाहे को अच्छी कीमत का लालच देकर उसे और वस्त्र देने को कहता है। वह इन जुलाहों से सारा वस्त्र लेकर, पैसे जबरदस्ती लेकर उनके व्यापार को ठप्प करना चाहता है। वस्त्र न बनाने की बात कहने पर विदेशी जुलाहे को डाँटता-डपटता है और उसे लालच भी देता है।

प्रश्न 4.
सन्धिविच्छेदं क्रियताम्-
उत्तर:

  1. विंशत्यधिकम् = विंशति + अधिकम्।
  2. मुद्राङ्कितम् = मुदा + अड्कितम्।
  3. विधेरुन्मूलम् = विधेः + उन्मूलम्।
  4. मोचयिष्याम्यतः = मोचयिष्यामि + अतः।
  5. सामर्षम् = स + अमर्षम्।
  6. मिथ्यैतत् = मिथ्या + एतत्।

प्रश्न 5.
‘एतत्सूक्ष्मपटस्येति’ श्लोकस्य स्वमातृभाषया अनुवादः कार्यः-
उत्तर:
इस महीन वस्त्र की निर्माण-विधि को नष्ट करने में मैं समर्थ हूँ। दण्ड देने तथा मारने में निपुण मैं अब उन वस्त्र निर्माण करने वालों को मुक्त करा लूँगा। इनकी वस्त्र निर्माण की निपुणता को तथा इनके इतने अधिक उन्नत व्यापार को भी छीन लो तथा इस देश की उन्नति अब केवल लोगों की बातों में ही रह जाए (जानी चाहिए)।

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प्रश्न 6.
अधोलिखितेषु पदेषु धातु प्रत्यय च पृथक्कृत्य लिखत-
उत्तर:
NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Bhaswati Chapter 9 वस्त्रविक्रयः Q6

योग्यताविस्तारः
अग्नि से जली हुई शाहजहाँ की पुत्री की चिकित्सा गेबरियल वाऊटन के द्वारा की गई। कुछ ऐतिहासिकों के मत के अनुसार उसकी चिकित्सा सत्थामस महोदय के द्वारा की गई। बाद में वह स्वस्थ हो गई। बाद में बङ्ग (बंगाल) के राजा शाहजादा राजकुमारा शुज्जा की पत्नी की भी चिकित्सा सत्थामस महोदय के द्वारा ही की गई और वह भी स्वस्थ हो गई। तत्पश्चात् फरुखशियर सम्राट् की चिकित्सा सर्जन विलियम हेमिल्टन द्वारा की गई और वह भी स्वस्थ हो गए।

Bhaswati Class 11 Solutions Chapter 9 वस्त्रविक्रयः Summary Translation in Hindi and English

संकेत – (ततः प्रविशन्ति ………… लक्षयति।)

शब्दार्थ् (Word-meanings):
Bhaswati Class 11 Solutions Chapter 9 वस्त्रविक्रयः Summary Translation in Hindi and English 1

हिन्दी-अनुवाद:
(तब वस्त्र बेचने और खरीदने के लिए कोई जुलाहा तथा दो सेठ प्रवेश करते हैं।)
सेठ – अरे जुलाहा! इस वस्त्र का मूल्य कितना है?
जुलाहा – एक सौ बीस रुपये।
सेठ – नहीं, नहीं। यह कुछ अधिक है। सौ रुपये ले लो।
(तब अपने सेवक के साथ विदेशी गौराङ्ग प्रवेश करता है। वह राजकीय मुद्रा से अंकित प्रमाणपत्र दिखाकर दोनों सेठों तथा जुलाहों को धमकी देता है।)
विदेशी गौराङ्ग – अरे जुलाहे! यह देख राजकीय मुद्रा से अंकित प्रमाण पत्र। तुम इसे नहीं बेच सकते।
जुलाहा – तो मैं इस वस्त्र का क्या करूँ।
विदेशी गौराग – इस वस्त्र को मुझे दे दो, मैं इस वस्त्र को बेचूँगा, ये लो पचास मुद्राएँ। (ऐसा कहकर पचास मुद्राएँ देता है।)
जुलाहा – (आश्चर्य के साथ देखते हुए) अरे यह क्या कर रहे हैं? इस (राशि) से मेरे परिवार का पालन पोषण कैसे होगा? छ: महीने किसी प्रकार दिन-रात परिश्रम करके यह वस्त्र बन पाया है।
विदेशी गौराग – ये मुद्राएँ लो, मैं कुछ नहीं जानता। चुप रहो, जाओ। दूसरा वस्त्र बनाकर मेरे पास ही लाना। तुम्हारे परिवार की रक्षा की मैंने प्रतिज्ञा नहीं की। कैसे रक्षा होगी – यह तुम जानो, अब जाओ।
(वह मुद्रा नहीं लेता तो दूसरा जुलाहा वस्त्र बेचने के लिए प्रवेश करता है और वस्त्र खरीदने के लिए सेठ को वस्त्र दिखाता है।)

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English-Translation:
(Then a weaver and two wealthy persons enter to sell and buy the cloth.)
Wealthy person-Oh weaver! What is the price of this cloth? Weaver-One twenty rupees. Wealthy person-No, no. This is too much. Take hundred rupees.
(Then a fair-complexioned foreigner enters with his attendant. He shows a certificate having govt. seal. He threatens both the wealthy men and the weaver.)
Fair-complexioned foreigner – Oh weaver! See this certificate stamped with the govt. seal. You cannot sell it. Weaver – What should I do with this cloth then?
Fair-complexioned foreigner – Give this cloth to me. I will sell it. Take fifty-coins (saying so he gives him fifty coins.)
Weaver – (Looks at them with surprise) what are you doing? How can I nourish my family with this amount? I have made this cloth with great difficulty by working hard continuously day and night for six months.
Foreign – Take these coins. I don’t know anything. Keep quiet and go. Make another cloth and bring it to me only. I have not promised to nourish your family. How will your family be nourished – this is your problem. Now go away.
(He does not take the coins. Then another weaver enters to sell the cloth. He shows the cloth to the wealthy men to buy that.)

संकेत – तन्तुवाप – श्रेष्ठिन्। गृहाण ………… प्रविशति।)

शब्दार्थ् (Word-meanings):
Bhaswati Class 11 Solutions Chapter 9 वस्त्रविक्रयः Summary Translation in Hindi and English 2

हिन्दी-अनुवाद:
जुलाहा – हे सेठ! लो वस्त्र।
सेठ – (भौहे चढ़ाकर) यह खरीदेगा, मैं नहीं खरीद सकता।
जुलाहा – क्यों?
सेठ – इसके पास राजकीय प्रमाणपत्र है। यही खरीदेगा और कोई नहीं।
विदेशी गौराग – इधर आओ। (जुलाहे को बुलाता है और उसे प्रमाणपत्र दिखाता है वस्त्र ले लेता है) लो ये चालीस मुद्राएँ। (ऐसा कहकर मुद्रा देता है)
जुलाहा – महाराज! यह क्या कर रहे हैं? क्या यही न्याय है?

विदेशी गौराग – जाओ, जाओ। मैं न्याय या अन्याय नहीं जानता। जो मैंने निश्चय किया वही मूल्य दे रहा हूँ। (दोनों उसके द्वारा दिए गए मूलय को ले लेते हैं।)
दोनों जुलाहे – इसके बाद हम वस्त्र नहीं बनाएँगे। (ऐसा कहकर चले जाते हैं।) विदेशी गौराग – (सेवक की ओर संकेत करके) देखो। मैं इन दोनों से बहुत सारी मुद्राएँ ले लूँगा। दोनों वस्त्रों की सुंदरता अवर्णनीय है। यह वस्त्र अत्यंत महीन है। देखो, उसकी पाँच छः परतों से ढका हुआ भी अंग वस्त्रहीन ही दिखाई देता है। ओह! उसके सामने हमारे देश के वस्त्रों का विक्रय कैसे होगा – हमारे देश का तो व्यापार ही नष्ट हो जाएगा। (पुनः विचार करके)

इस महीन वस्त्र की निर्माणविधि को नष्ट करने में मैं समर्थ हूँ। दण्ड देने तथा मारने में निपुण मैं अब उन वस्त्र निर्माण करने वालों को मुक्त करा लूँगा। इनकी वस्त्रनिर्माण की निपुणता को और इनके इतने अधिक उन्नत व्यापार को भी छीन लो तथा इस देश की उन्नति अब केवल लोगों की बातों में ही रह जाए।
द्वारपाल – (प्रवेश करके) देव की जय हो, जय हो।
विदेशी गौराङ्ग – द्वारपाल । शीघ्र तीन-चार जुलाहे ले आओ।
द्वारपाल – जैसी देव की आज्ञा! (बाहर जाकर तीन जुलाहे लेकर प्रवेश करता है।)

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English-Translation:
Weaver – Oh richmen! Take the cloth.
Wealthy men – (Showing his eyebrows). He will buy, I cannot buy.
Weaver – Why?
Wealthy men – Because he has got a govt. certificate. He will buy, no one else.
Foreigner – Come here. (He calls that weaver and shows him the certificate. He takes the cloth) take these forty coins.
(Saying so he gives him those coins)
Weaver – Oh lord! What are you doing? Is this the judgment?
Foreigner – Go, go. I do not know what is just or what is unjust. I am giving you the decided cost.
(Both the weavers take the amount given by him.)
Both the weavers – We will not make the cloth after this.
(Saying so both of them go)
Foreigner – (Towards the attendant)
See. I shall take many coins from both of them. The beauty of both the clothes is indescribable. This cloth is very thin and fine. Just see, the body parts though covered by five or six folds of this cloth, seem to be uncovered. Oh! How shall the cloth made in our country be sold when this beautiful cloth is available? Our business will be ruined. (Thinking again.)

I am capable of destroying the means of producing this thin cloth. I am clever in punishing and killing the persons, so I will make them free who produced cloth for our country. Destroy their cleverness of producing good cloth as well as their highly developed business and the progress of this country may now remain in woods only.
Doorkeeper (Having entered) – May lord is victorious.
Foreigner – Oh gatekeeper. Bring three or four weavers quickly,
Doorkeeper – As the lord commands. (He goes out and again enters with three weavers.)

शब्दार्थ् (Word-meanings):
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हिन्दी-अनुवाद:
वै० गौराग – (जुलाहों की ओर संकेत करके) अरे अरे! तुम तैयार वस्त्रों को मुझे दो।
जुलाहे – हम अनुचित मूल्य के कारण वस्त्र नहीं बनाते।
वै. गौराग – ठीक है, अच्छा वस्त्र बनाकर मुझे दो, अच्छी कीमत होगी। ये मुद्राएँ लो। (ऐसा कहकर पन्द्रह मुद्राएँ देता है, वे नहीं ग्रहण करते। जबरदस्ती उनके वस्त्र से बाँधकर गले से पकड़कर बाहर निकाल देता है।
जुलाहे – (द्वार पर स्थित) महाराज! हम सौ रुपये के मूल्य के वस्त्र को पन्द्रह मुद्राओं के लिए नहीं बनाएंगे।
वै० गौराग – (उलाहनापूर्वक) कौन शोर मचा रहा है? (द्वार पर जाकर क्रोधपूर्वक, कोड़े से उन्हें मारता है। जाओ, दूसरा सुन्दर वस्त्र बनाकर लाओ। (वे मुद्राएँ फेंककर चले जाते हैं।)
वै० गौराङ्ग – (सेवक की ओर) अरे! अरे! दूसरे तीन चार जुलाहे लाओ। (वह निकलकर दूसरे चार जुलाहे लाकर) महाराज! ये जुलाहे आ गए हैं।
वै० गौराङ्ग – (जुलाहों की ओर संकेत करके) बने हुए रेशमी वस्त्र मुझे दो।
जुलाहे – हम वस्त्र नहीं बनाते।
वै० गौराग – यह असत्य है। तुम सब वस्त्र बनाकर सेठों के सम्मुख बेचते हो। (सब को कोड़े से मारने की धमकी देता है।)
सब – हम नहीं बनाते वस्त्र। (इस प्रकार हाथ जोड़े हुए काँपते हैं।) (सब चले जाते हैं।)

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English-Translation:
Foreigner – (Towards the weavers) You give the woven clothes to me. Weavers – We do not prepare cloth due to insufficient price.
Foreigner – O.K., Give me cloth of good quality. You will get a good price. Keep these coins. (Saying so he gives them fifteen coins. They do not accept. He ties those coins to their clothes forcibly and turns them out holding them with his neck.)
Weaver – (With objection) Who is making this noise?
(Goes to the door & angrily he beats them with the hunter) Go and bring another beautiful cloth.
(They throw the coins and go away.)
Foreigner – (Towards his attendant) Bring other three or four weavers. (He goes out and brings four other weavers.)
My lord! These weavers have come. Weavers – We do not weave cloth.
Foreigners – It is not true. You weave cloth and sell before the wealthy persons. (Threatens all of them to beat with the hunter.)
All the weavers – We do not weave. (Saying so they all tremble with their hands folded.) (All of them go away.)

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