These NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 14 लोक गीत Questions and Answers are prepared by our highly skilled subject experts.
लोक गीत NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 14
Class 6 Hindi Chapter 14 लोक गीत Textbook Questions and Answers
निबंध से
प्रश्न 1.
निबंध में लोक गीतों के किन-किन पक्षों की चर्चा हुई है ? बिंदुओं के रूप में उन्हें लिखो।
उत्तर:
इस निबंध में लोक गीतों के निम्नलिखित पक्षों की चर्चा हुई है-
- लोक गीत लोकप्रिय होते हैं।
- ये शास्त्रीय संगीत से भिन्न होते हैं।
- ये गाँव देहात की जनता के गीत हैं।
- इन गीतों के लिए किसी साधना की आवश्यकता नहीं पड़ती।
- ये गीत त्योहारों और फसल कटाई, बुवाई जैसे विशेष अवसरों पर गाए जाते हैं।
- इन गीतों की रचना गाँव के ही लोगों के द्वारा हुई है।
- ये गीत बिना किसी विशेष बाजे की मदद के भी गाए जा सकते हैं।
प्रश्न 2.
हमारे यहाँ स्त्रियों के खास गीत कौन-कौन से हैं।
उत्तर:
हमारे यहाँ त्योहारों पर नदियों में नहाते समय के, नहाने जाते हुए राह के, विवाह के, मरकोड़ ज्यौनार के, सबंधियों के लिए प्रेमयुक्त गाली के, जन्म आदि के गीत स्त्रियों के गीत हैं। इनको स्त्रियाँ ही गाती हैं। इसके अतिरिक्त कजरी, गुजरात का गरबा और ब्रज का रसिया भी स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला गीत है।
प्रश्न 3.
निबंध के आधार पर और अपने अनुभव के आधार पर (यदि तुम्हें लोक गीत सुनने के मौके मिले हैं तो) तुम लोक गीतों की कौन-सी विशेषताएँ बता सकते हो ?
उत्तर:
लोक गीत की निम्न विशेषताएँ हैं-लोक गीत गाँव के अनपढ़ पुरुष व औरतों के द्वारा रचे गए हैं। इनके लिए साधना की जरूरत नहीं होती। ये त्योहारों और विशेष अवसरों पर ही गाए जाते हैं। मार्ग या देशी के सामने इनको हेय समझा जाता था अभी तक इनकी उपेक्षा की जाती है। लेकिन साहित्य और कला के क्षेत्र में परिवर्तन होने पर प्रान्तों की सरकारों ने लोक गीत लोक-साहित्य के पुनरुद्धार में हाथ बँटाया। वास्तविक लोक गीत गाँव व देहात में हैं। स्त्रियों के लोक गीतों की रचना में विशेष रूप से भाग लिया है। लोक गीत देशी और मार्ग दोनों प्रकार के संगीत से भिन्न हैं। लोक गीत ढोलक, झांझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से गाए जाते हैं।
प्रश्न 4.
‘पर सारे देश के ….. अपने-अपने विद्यापति हैं, इस वाक्य का क्या अर्थ है ? पाठ पढ़कर मालूम करो और लिखो।
उत्तर:
इस वाक्य का अर्थ यह है कि भारत के प्रत्येक क्षेत्र में गीतों के रचनाकार एवं गायक हुए हैं जैसे की मैथिल कोकिला विद्यापति। आप जिस क्षेत्र में भी जाएँगे आपको वहाँ ऐसी प्रतिभाओं के दर्शन हो जाएँगे।
अनमान और कल्पना
प्रश्न 1.
क्या लोक गीत और नृत्य सिर्फ गाँवों या कबीलों में ही पाए जाते हैं ? शहरों के कौन से लोक गीत हो सकते हैं ? इस पर विचार करके लिखो।
उत्तर:
लोक गीत और नृत्य अधिकतर गाँवों या कबीलों में ही पाए जाते हैं। शहरों में अपने लोक गीत नहीं होते। शहरों में जो लोक गीत गाए जाते हैं वे भी किसी न किसी रूप में गाँवों से ही जुड़े हुए हैं।
प्रश्न 2.
‘जीवन जहाँ इठला-इठला कर लहराता है, वहाँ भला आनंद के स्रोतों की कमी हो सकती है ? उद्दाम जीवन के ही वहाँ के अनंत संख्यक गाने प्रतीक हैं। क्या तुम इस बात से सहमत हो? ‘बिदेसिया’ नामक लोक गीत से कोई कैसे आनंद प्राप्त कर सकता है और वे कौन लोग हो सकते हैं जो इसे गाते-सुनते हैं ? इसके बारे में जानकारी प्राप्त कर अपने शिक्षक को सुनाओ।
उत्तर:
किसी भी लोक गीत से आनंद प्राप्त किया जा सकता है यदि आप वहाँ की बोली से थोड़ा भी परिचित हों। जो लोग भोजपुरी के जानकार हैं वे ‘बिदेसिया’ लोक गीत को सुनकर पूरा आनन्द उठा सकते हैं। इन गीतों में रसिक प्रियों और प्रियाओं की बात रहती है। इनसे परदेशी प्रेमी और करुणा का रस बरसता है।
कुछ करने को
प्रश्न 1.
तुम अपने इलाके के कुछ लोक गीत इकट्ठा करो। गाए जाने वाले मौकों के अनुसार उनका वर्गीकरण करो।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 2.
जैसे-जैसे शहर फैल रहे हैं और गाँव सिकुड़ रहे हैं, लोक गीतों पर उनका क्या असर पड़ रहा है ? अपने आस-पास के लोगों से बातचीत करके और अपने अनुभवों के आधार पर एक अनुच्छेद लिखो।
उत्तर:
धीरे-धीरे लोक गीतों का महत्त्व घटता जा रहा है। लोक कलाकार भी अपनी इस कला को छोड़ने लगे हैं इनके स्थान पर फिल्मी गीतों का जोर हो गया है। यदि किसी फिल्म में कोई लोक गीत होता है तो वह अवश्य ही लोक प्रियता पा लेता है।
भारत के मानचित्र में
भारत के नक्शे में पाठ में चर्चित राज्यों के लोक गीत और नृत्य दिखाओ।
उत्तर:
भाषा की बात
प्रश्न 1.
‘लोक’ शब्द में कुछ जोड़कर जितने शब्द तुम्हें सूझें, उनकी सूची बनाओ। इन शब्दों को ध्यान से देखो और समझो कि उनमें अर्थ की दृष्टि से क्या समानता है। इन शब्दों से वाक्य भी बनाओ। जैसे-लोककला।
उत्तर:
लोक कल्याण, लोक सभा, लोकोक्ति, लोक संगीत, लोक भाषा
लोक कल्याण – साहित्य वही है जिसमें लोक-कल्याण की भावना हो।
लोक सभा – भारतीय गणतंत्र में लोक सभा के सदस्यों का चुनाव जनता करती है।
लोकोक्ति – पुराने जमाने से लोगों द्वारा कही गई ज्ञानवर्धक बातों को जो आज भी उसी तरह अपना अर्थ रचती हैं को लोकोक्ति कहते हैं।
लोक संगीत – लोक संगीत का अपना अलग ही आनंद है।
लोक भाषा – पुराने जमाने में संस्कृत भारत की लोक भाषा थी।
प्रश्न 2.
‘बारहमासा’ गीत में साल के बारह महीनों का वर्णन होता है। नीचे विभिन्न अंकों से जुड़े कुछ शब्द दिए गए हैं। इन्हें पढ़ो और अनुमान लगाओ कि इनका क्या अर्थ है और वह अर्थ क्यों है। इस सूची में तुम अपने मन से सोचकर भी कुछ शब्द जोड़ सकते हो-
इकतारा, सरपंच, चारपाई, सप्तर्षि, अठन्नी,
तिराहा, दोपहर, छमाही, नवरात्र
उत्तर:
अन्य शब्द-चौराहा, अष्टाध्यायी, पंचानन, पंचामृत, तिपाई, दशानन, चतुर्मख।
प्रश्न 3.
को, में, से आदि वाक्य में संज्ञा का दूसरे शब्दों के साथ संबंध दर्शाते हैं। पिछले पाठ (झाँसी की रानी) में तुमने का के बारे में जाना। नीचे ‘मंजरी जोशी’ की पुस्तक ‘भारतीय संगीत की परंपरा’ से भारत के एक लोकवाद्य का वर्णन दिया गया है। इसे पढ़ो और रिक्त स्थानों में उचित शब्द लिखो-
तुरही भारत के कई प्रांतों में प्रचलित है। यह दिखने में अंग्रेज़ी के एस या सी अक्षर की तरह होती है। भारत के विभिन्न प्रांतों में पीतल या काँसे से बना यह वाद्य अलग-अलग नामों से जाना जाता है। धातु की नली को घुमाकर एस का आकार इस तरह दिया जाता है कि उसका एक सिरा संकरा रहे और दूसरा सिरा घंटीनुमा चौड़ा रहे। फूंक मारने की एक छोटी नली अलग से जोड़ी जाती है। राजस्थान में इसे बगूँ कहते हैं। उत्तर प्रदेश में यह तूरी मध्य प्रदेश और गुजरात में रणसिंघा और हिमाचल प्रदेश में नरसिंघा के नाम से जानी जाती है। राजस्थान और गुजरात में इसे काकड़सिंघी भी कहते हैं।
प्रश्न 4.
तुमने देखा कि इतने सरस और जीवंत गीतों का निर्माण आदिवासी तथा ग्रामीण स्त्रियों जैसे साधारण लोगों ने किया है। यह देखकर ऐसा नहीं लगता कि सृजनशीलता कुछ गिने-चुने लोगों तक ही सीमित नहीं। इस विषय में अपने विचारों को विस्तार से लिखो।
उत्तर:
लोक गीत साधारण गाँव की जनता के द्वारा ही रचे गए हैं। इन गीतों की रचना का विषय कोरी कल्पना नहीं है। वे गीतों के विषय अपने रोजमर्रा के जीवन से लेते हैं। लोक गीतों में अधिकतर रसिक प्रिय और प्रियाओं की बात रहती हैं। परदेशी प्रेमी की और इनके करुणा और विरह का जो रस बरसता है उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। अहीरों के गीतों में एक ओर मर्द और दूसरी ओर स्त्रियाँ एक दूसरे के जवाब के रूप में दल बनाकर गाते हैं। अधिकतर संख्या अपने देश में स्त्रियों के गीतों की है इन्हें गाती भी स्त्रियाँ हैं। इन गीतों का सम्बन्ध विशेषतः स्त्रियों से है। त्योहारों के, विवाह के, ज्यौनार के, सम्बन्धियों के लिए प्रेमयुक्त गाली के, जन्म आदि सभी अवसरों के अलग-अलग गीत हैं जो स्त्रियाँ आज से नहीं बल्कि प्राचीन काल से गाती आ रही हैं। स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं। उनके गाने के साथ नाच का पुट भी होता है। इसी प्रकार होली के अवसर पर ब्रज में रसिया गाया जाता है जिसे स्त्रियाँ दल बनाकर गाती हैं। लोक गीतों के निर्माण में स्त्रियों ने काफी योगदान दिया है।
लोक गीत व्याकरण बिन्दु
प्रश्न 1.
उसने अपने इलाके का लोक गीत गाया। उसने उस लोक गीत को गाया, जो उसके इलाके का था। ऊपर के दोनों वाक्यों पर ध्यान दो। दोनों में बिना अर्थ बदले उसके रूपों को बदला गया है। तुम इसी तरह नीचे लिखे वाक्यों के रूप बदलो।
उसने अपने हाथ की अंगुली नहीं दिखाई। तुमने अपने घर का दरवाजा नहीं खोला.। उसने अपने हिस्से की रोटी खायी।
उत्तर:
- उसने उस अंगुली को नहीं दिखाया जो उसके हाथ में थी।
- तुमने वह दरवाजा नहीं खोला जो तुम्हारे घर का है।
- उसने वह रोटी नहीं खायी जो उसके हिस्से की है।
प्रश्न 2.
हम गा चुके।
मैं गाना गा चुका, तब वह आया।
मैंने गाना गाया और मेरी इच्छा पूरी हुई।
ऊपर का पहला वाक्य सरल वाक्य दूसरा मिश्र और तीसरा संयुक्त वाक्य है। तुम भी इस तरह के कुछ सरल, मिश्रित और सयुंक्त वाक्य बनाओ।
उत्तर:
- मैं पुस्तक पढ़ने लागा। (सरल वाक्य)
- जैसे ही वह आया मैं पुस्तक पढ़ने लगा (मिश्रित वाक्य)
- मैं पढ़ने लगा और वह आ गया (संयुक्त वाक्य)
प्रश्न 3.
जिसमें किसी बात के न होने का आभास हो वह मिले निषेधवाचक जिसमें किसी तरह की आज्ञा का भाव हो वह आज्ञावाचक और जिसमें किसी प्रकार के प्रश्न किए जाने का बोध हो उसे प्रश्नवाचक वाक्य माना जाता है। जैसेमैंने गाना नहीं गाया। तुम गाओ।? क्या तुम गा रहे हो? अब तुम जिसमें आश्चर्य, दुःख या सुख का बोध हो, किसी बात का संदेह प्रकट हो और किसी प्रकार की इच्छा या शुभकामना का बोध हो को दर्शाने वाले कुछ वाक्य लिखो।
उत्तर:
- हम सब भारतवासी हैं। (विधानवाचक)
- हरि किशन घूस लेते हुए नहीं पकड़ा गया। (निषेधवाचक)
- शोर मत करो। (आशावाचक)
- तुम यहा खड़े क्या कर रहे हो? (प्रश्नवाचक)
- तुम जियो हज़ारों साल। (इच्छाबोधक)
- शायद आज वर्षा हो। (संदेहवाचक)
- अच्छी वर्षा होगी तो फसल भी अच्छी होगी। (संकेतवाचक)
- वाह! तुम तो बड़े खिलाड़ी निकले। (विस्मयादि बोधक)
प्रश्न 4.
कभी-कभी वाक्य में अनेक वाक्य होते हैं। उसमें एक प्रधान होता है और अन्य उपवाक्य होते हैं। जैसे- सोनू ने कहा कि मैं गाऊँगा। इसमें. ‘सोनू ने कहा’ प्रधान वाक्य है और ‘कि मैं गाऊँगा’ उपवाक्य । उपवाक्यों के शुरूआत में प्रायः कि, जिससे, ताकि, जो, जितना, ज्यों-ज्यों, चूँकि, क्योंकि, यदि, यद्यपि, जब, जहाँ आदि होते हैं। तुम कुछ वाक्यों को लिखो जिसमें उपवाक्य भी हों।
उत्तर:
- गाँधी जी ने कहा कि सत्य ही ईश्वर है।
- जिनको आप चरित्रहीन कहते थे वे आज मंत्री बनने वाले हैं।
- यह वह पुस्तक है जो मैंने नई सड़क से खरीदी थी।
- मोहन चाहता है कि सब उसकी हाँ में हाँ मिलाएँ।
- मैं जैसे ही पढ़ने बैठा वैसे ही बिजली चली गई।
- जो आपने कहा मैंने सुन लिया।
- जहाँ सच्चाई होगी, वहाँ सम्मान भी होगा।
कुछ प्रमुख लोक गीत
सोहर – बच्चों के जन्म की खुशी में औरतें ढोलक बजाकर सोहर गाती हैं।
बोड़ी, बन्ना, मांडवा – विवाह की विभिन्न रस्मों पर गाए जाते हैं।
चदैंनी – यह ग्वालों का गीत है।
नटवा भक्कड़ – यह नाइयों का गीत है जो विवाह के अवसर पर गाया जाता है।
आल्हा – इसमें आल्हा-ऊदल की ऐतिहासिक लड़ाई का बखान किया जाता है।
मांड – राजाओं की प्रशंसा में कभी मांड गाए जाते थे, ये मारवाड़ के गीत हैं।
फाग – फागुन के महीने में वसंत पंचमी के दिन इसे पुरुष गाते हैं।
बारहमासी – भगवान राम और कृष्ण की लीलाओं का बखान करते हुए बारह महीनों के नाम इस गीत में लिये जाते हैं।
होली – होली के बाद चैत के महीने में चैती गाई जाती है।
वलयप्पटू, मुगवईपटू – फसल काटने और रोपने के समय दक्षिण भारत में प्रचलित लोक गीत।
वालांडनई पल्लू – दक्षिण के खानाबदोशों के गीत।
कुस्सी कोलात्म – मन बहलाव के लिए दक्षिण भारत में प्रचलित गीत।
कजली – सावन के महीने में कजली गई जाती है। बनारस और मिर्जापुर की कजली बहुत मशहूर हैं। लड़कियाँ और औरतें झूला झूलते हुए कजली गाती हैं।
महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या
1. लोक गीत अपनी लोच, ताजगी और लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं। लोक गीत सीधे जनता के संगीत हैं। घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं ये। इनके लिये साधना की ज़रूरत नहीं होती। त्योहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं। सदा से ये गाये जाते रहे हैं और इनके रचने वाले भी अधिकतर गाँव के लोग ही हैं। स्त्रियों ने भी इनकी रचना में विशेष भाग लिया है। ये गीत बाजों की मदद के बिना ही या साधारण ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से गाये जाते हैं।
प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत’ में संकलित पाठ ‘लोक गीत’ से अवतरित है। इस पाठ के लेखक ‘भगवतशरण उपाध्याय’ जी हैं। लेखक ने यहाँ लोक गीतों के बारे में बताया है।
व्याख्या- शास्त्रीय संगीत और लोक गीत दोनों में काफी भिन्नता है। लोक गीत अपने लचीलेपन, ताज़गी और लोकप्रियता में आम-जन तक पहुँच रखता है। लोक गीत आम लोगों के गीत हैं इसलिए इनकी लोकप्रियता सीधे जनता में होती है। ये गीत घर, गाँव और नगर की आम जनता के गीत हैं। इन गीतों को गाने के लिए शास्त्रीय संगीत की तरह साधना की आवश्यकता नहीं होती। लोक गीत विभिन्न त्योहारों और विशेष अवसरों जैसे फसल की कटाई, बुवाई आदि पर गाए जाते हैं। लोक गीत सदा से ही गाए जाते रहे हैं। इनकी रचना किसी बड़े विद्धान के द्वारा नहीं हुई बल्कि आम लोगों के द्वारा ही हुई है। लोक गीतों की रचना का श्रेय महिलाओं को भी जाता है। महिलाओं ने भी इनकी रचना में अपना सहयोग दिया है। इन गीतों को गाने में किसी विशेष वाद्य यंत्र की आवश्यकता नहीं पड़ती। ये गीत साधारण साज जैसे ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से भी गाए जा सकते हैं।
2. वास्तविक लोक गीत देश के गाँवों और देहात में हैं। इनका सम्बन्ध देहात की जनता से है। बड़ी जान होती है इनमें। चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मिर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेश के पूरबी और बिहार के पश्चिमी जिलों में गाये जाते हैं। बाउल और भतियाली बंगाल के लोकगीत हैं। पंजाब में माहिया आदि इसी प्रकार के हैं। हीर-राँझा, सोहनी-महीवाल सम्बन्धी गीत पंजाबी में और ढोला-मारू आदि के गीत राजस्थानी में बड़े चाव से गाये जाते हैं।
प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत भाग-1′ में संकलित पाठ ‘लोक गीत’ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक ‘भगवतशरण उपाध्याय’ जी हैं। इस पाठ में लेखक ने लोक गीतों के महत्त्व के बारे में बताया है।
व्याख्या- लेखक का कहना है कि लोक गीतों का सबसे अधिक प्रभाव देश के गाँवों और देहातों में है। लोक गीत का संबंध सीधे तौर पर देहात की जनता से माना जाता है। लोक गीत बहुत ही प्रभावशाली होते हैं। चैता, कंजरी, बारहमासा, सावन आदि अनेक लोक गीत हैं। ये लोक गीत मिर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेश के और बिहार के अनेक जिलों में गाए जाते हैं। बाउल और भतियाली बंगाल में गाए जाने वाले लोक गीत हैं। पंजाब में भी अनेक लोक गीत प्रचलित हैं जिनमें माहिया, हीर-रांझा, सोहनी-महीवाल आदि हैं। राजस्थान के लोक गीतों में ढोला मारू बहुत प्रसिद्ध है वह बड़े-चाव से राजस्थान के देहातों में गाया जाता है।
3. अनन्त संख्या अपने देश में स्त्रियों के गीतों की है। हैं तो ये गीत भी लोक गीत ही पर अधिकतर इन्हें औरतें ही गाती हैं इन्हें सिरजती भी अधिकतर वही हैं। वैसे मर्द रचने वालों या गाने वालों की भी कमी नहीं है पर इन गीतों. का सम्बन्ध विशेषतः स्त्रियों से है। इस दृष्टि से भारत इस दिशा में सभी देशों से भिन्न है क्योंकि संसार के अन्य देशों में स्त्रियों के अपने गीत मर्दो या जनगीतों से अलग और भिन्न नहीं हैं, मिले-जुले ही हैं।
प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत’ में संकलित पाठ ‘संसार एक पुस्तक है’ पाठ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक ‘भगवतशरण उपाध्याय’ जी हैं। लेखक ने यहाँ पर बताया है कि हमारे देश में अधिकतर गीत औरतों के हैं जिनकी रचनाकार भी वे स्वयं ही हैं।
व्याख्या- लेखक का कहना है कि हमारे देश में अधिकतर गीत औरतों को आधार बनाकर लिखे गए हैं। इन लोक गीतों की रचना भी महिलाओं के द्वारा ही हुई है। पुरुषों द्वारा रचित गीत भी कम नहीं हैं परन्तु महिलाओं के गीत इनसे अधिक हैं। पुरुषों द्वारा रचित गीतों का संबंध भी स्त्रियों से ही होता है। इस दृष्टि से देखा जाए तो भारत इस दिशा में अन्य सभी देशों से अलग है क्योंकि दूसरे देशों में स्त्रियों और पुरुषों के गीत अलग-अलग न होकर एक ही होते हैं।
लोक गीत Summary
पाठ का सार
लोक गीत अपनी ताज़गी और लोकप्रियता के कारण मार्ग और देशी दोनों प्रकार के संगीत से भिन्न हैं। लोक गीत गाँव, नगर की जनता के गीत हैं इनके लिये साधना की जरूरत नहीं होती। त्योहारों और विशेष अवसरों पर ही ये गाये जाते हैं। इन गीतों की रचना करने वाले अधिकतर गाँव के अनपढ़ लोग ही हैं। स्त्रियों ने भी इनकी रचना में भाग लिया। ये गीत साधारण ढोलक, झांझ, करताल, बाँसुरी आदि की सहायता से ही गाए जाते हैं। मार्ग या देशी गीतों के सामने इनको पिछड़ा समझा जाता था अभी तक इनकी काफी उपेक्षा की जाती थी। साधारण जनता की और राजनीतिक कारणों से लोगों की नजर फिरने से साहित्य और कला के क्षेत्र में काफी परिवर्तन हुआ है। अनेक लोगों ने अनेक बोलियों के लोक साहित्य और लोक गीतों के संग्रह पर कमर कसी। इस प्रकार के अनेक संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। सरकार ने भी लोक साहित्य के पुनरुद्धार के लिए अनेकों प्रयत्न किए और सार्वजनिक अधिवेशनों, पुरस्कार, प्रचार आदि के द्वारा वृद्धि शुरू कर दी।
लोक गीतों के अनेक प्रकार हैं। मध्य प्रदेश, दकन, छोटा नागपुर में गोंड खाँड, ओराव मुंडा, भील, संथाल आदि जातियाँ फैली हुई हैं। इनके गीत और नाच अधिकतर साथ-साथ बड़े-बड़े दलों में गाए या नाचे जाते हैं। एक दूसरे के जवाब में बीस-बीस तीस-तीस आदमियों और औरतों के दल गाते हैं। दिशाएं गूंज उठती हैं।
पहाड़ियों के अपने अलग गीत एवं भिन्न रूप होते हुए भी अशास्त्रीय होने के कारण उनमें समानता है। गढवाल, कन्नौर, कांगड़ा आदि के अपने-अपने गीत और उन्हें गाने की अपनी अलग-अलग शैलियाँ हैं। उनका अलग नाम पहाड़ी है।
लोक गीत वास्तव में गाँव और देहात के हैं। इनका सम्बन्ध भी देहात की जनता से है। चैता, कजरी, सावन, बारहमासा आदि गीत मिर्जापुर, बनारस, उत्तर प्रदेश के पूर्वी और बिहार के पश्चिमी जिलों में गाये जाते हैं। भतियाली और ब्राउल बंगाल के लोक गीत हैं। माहिया आदि पंजाब के गीत हैं। हीर-रांझा, सोहनी-महिवाल के गीत पंजाब में और ढोला-मारू राजस्थान आदि में गाये जाते हैं। देहाती गीतों की रचना का विषय रोजमर्रा की ज़िन्दगी से होता है जिससे वे सीधे हृदय को छू लेते हैं। पील, सारंग, सोरठ, सावन आदि उनके राग हैं। अधिकतर लोक गीत गाँव और क्षेत्रों की बोलियों में गाये जाते हैं। राग इन गीतों के आकर्षण होते हैं। इनकी समझी जाने वाली भाषा ही इनकी सफलता का कारण है।
जातियों के अतिरिक्त सभ्य गाँव के दल गीतों में बिरहा आदि गाए जाते हैं। ये लोग दल बनाकर एक दूसरे के जवाब के रूप में गीत गाते हैं। एक दूसरे प्रकार के बड़े लोकप्रिय गाने अल्हा के हैं जो बुन्देलखण्डी में गाये जाते हैं। इनका प्रारम्भ चन्देल राजाओं के राजकवि जगनिक से माना जाता है। जिसने आल्हा ऊदल की वीरता का वर्णन अपने महाकाव्य में किया है। इनको गाने वाले गाँव-गाँव ढोलक लिये गाते फिरते हैं। जिनमें नट रस्सियों पर खेल करते हुए गाते हैं। लोक गीत हमारे गाँव में आज भी बहुत प्रेम से गाए जाते हैं। अपने देश में ज्यादा संख्या स्त्रियों के गीतों की है वे ही इन्हें गाती हैं। पुरुष भी इनकी रचना करके इनको गा सकते हैं। लेकिन इन गीतों का सम्बन्ध स्त्रियों से है। इस दृष्टि से भारत इस दिशा में सभी देशों से भिन्न है। विवाह के, त्योहार के, नदियों में नहाते समय के, प्रेम युक्त गाली के, मलकोड़ ज्यौनार के, जन्म आदि सभी अवसरों के अलग-अलग गीत हैं। एक विशेष बात यह है कि स्त्रियों के गाने दल बाँधकर ही गाये जाते हैं अकेले नहीं। अनेक कंठ एक साथ फूटने के कारण उनमें मेल नहीं होता फिर भी त्योहारों और अवसरों पर वे अच्छे लगते हैं। गाँव और नगरों में इन गीतों को गाने वाली स्त्रियाँ भी होती हैं जो विशेष अवसरों पर गाने के लिए बुला ली जाती हैं। सभी ऋतुओं में स्त्रियाँ दल बाँधकर गाती हैं। लेकिन होली, बरसात की कज़री उनकी अपनी चीज है, जो सुनते ही हृदय को छू लेती है। स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं। गुजरात का एक प्रकार का गायन गरबा है इसमें स्त्रियाँ घेरे में घूम-घूमकर गाती हैं। साथ ही लकड़ियाँ भी बजाती हैं जो बाजे का काम करती हैं। इसमें नाचना, गाना साथ-साथ चलते हैं। वास्तव में यह नाच ही है। यह सभी प्रान्तों में लोकप्रिय हो गया है। होली के अवसर पर ब्रज में रसिया के गीत स्त्रियों के दल बनाकर माए जाते हैं।
गाँव के गीत वास्तव में अनेक प्रकार के हैं। जहाँ जीवन लहराता है और वहाँ आनन्द के स्रोतों की कमी नहीं हो सकती।
शब्दार्थ :
लोक गीत – जन समुदाय में प्रचलित परंपरागत गीत, आनंद – उल्लास, खुशी, लोकप्रिय – जन साधारण को पसंद आने वाला, भिन्न – अलग, करताल – एक प्रकार का वाद्य यंत्र, हेय – हीन, लोच – लचीलापन, उपेक्षा – उदासीनता, तिरस्कार, प्रकाशित – जो छापा गया हो, प्रकाशवान, सरकार – हुकूमत, शासन, गवर्नमेंट, संगीत – मधुर ध्वनि, प्राचीनकाल – पुराने समय का, गरबा – राजस्थान का नृत्य, ओजस्वी – ओज-भरी, झाँझ – काँसे की दो तस्तरियों से बना वाद्य यंत्र, सिरजही – सृजन करती/ बनाती, अबूझ – जो समझने योग्य न हो, आह्लादकर – आनंददायक, बखान – वर्णन/बड़ाई, उल्लसित – खुश, उद्दाम – बंधन रहित, कृत्रिम – बनावटी