NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 15 नौकर

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नौकर NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 15

Class 6 Hindi Chapter 15 नौकर Textbook Questions and Answers

निबंध से

प्रश्न 1.
आश्रम में कॉलेज के छात्रों से गाँधी ने कौन-सा काम करवाया और क्यों ?
उत्तर:
गाँधी जी ने कॉलेज के छात्रों से गेहूँ बीनने का काम करवाया। उन छात्रों को अपने अंग्रेजी भाषा के ज्ञान पर बड़ा गर्व था। गाँधी जी उनके इस गर्व को तोड़ना चाहते थे। वे यह शिक्षा देना चाहते थे कि अधिक पढ़ लेने पर भी हमें छोटे कार्य करने में संकोच नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 2.
‘आश्रम में गाँधी जी कई ऐसे काम भी करते थे, जिन्हें आमतौर पर नौकर-चाकर करते हैं’। पाठ से तीन अलग-अलग प्रसंग अपने शब्दों में लिखो जो इस बात का प्रमाण हों।
उत्तर:

  1. वे चक्की को अपने हाथों से चलाकर गेहूँ पीसा करते थे। वे कभी-कभी
  2. वे बर्तनों की सफाई अपने हाथों से किया करते थे। वे बर्तनों को रगड़-रगड़ कर चमकीला बना दिया करते थे।
  3. वे रसोई घर में सब्जियों को धोने, छीलने, काटने का कार्य भी स्वयं करते थे। उनके लिए कोई कार्य छोटा या बड़ा नहीं था।

प्रश्न 3.
लंदन में भोज पर बुलाए जाने पर गाँधी जी ने क्या किया ?
उत्तर:
जब लंदन में गाँधी जी को वहाँ के छात्रों ने भोज पर बुलाया तो गाँधी जी समय से पहले पहुँचकर तश्तरियाँ धोने, सब्जी साफ करने और अन्य काम करने लगे, किसी ने उनकी तरफ ध्यान ही नहीं दिया कि ये कौन हैं। अंत में छात्रों के नेता के आने पर पता चला कि ये तो हमारे सम्मानित अतिथि हैं।

प्रश्न 4.
गाँधी जी ने श्रीमती पोलक के बच्चे का दूध कैसे छुड़वाया ?
उत्तर:
एक बार दक्षिण अफ्रीका में जेल से छूटने के बाद घर लौटने पर गाँधी जी ने देखा कि उनके मित्र की पत्नी श्रीमती पोलक बहुत ही दुबली और कमजोर हो गई हैं। उनका बच्चा उनका दूध पीना छोड़ता नहीं था और वह उसकी दूध छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। बच्चा उन्हें चैन नहीं लेने देता था और रो-रोकर उन्हें जगाए रखता था। गाँधी जी जिस दिन लौटे उसी रात से उन्होंने बच्चे की देखभाल का काम अपने हाथों में ले लिया। सारे दिन कड़ी मेहनत करने, सभाओं में भाषण देने के बाद, चार मील पैदल चलकर गाँधी कभी-कभी रात को एक बजे घर पहुंचते थे, और बच्चे को श्रीमती पोलक के बिस्तर से उठाकर अपने बिस्तर पर लिटा लेते थे। वह चारपाई के पास एक बर्तन में पानी भरकर रख लेते ताकि यदि बच्चे को प्यास लगे तो उसे पिला दें, लेकिन इसकी जरूरत ही नहीं पड़ती थी। बच्चा कभी नहीं रोता और उनकी चारपाई पर रात में आराम से सोता रहता था। एक पखवाड़े तक माँ से अलग सोने के बाद बच्चे ने माँ का दूध छोड़ दिया।

प्रश्न 5.
आश्रम में काम करवाने का कौन-सा तरीका गाँधी जी अपनाते थे ? इसे पाठ पढ़कर लिखो।
उत्तर:
आश्रम में काम करवाने के लिए परस्पर सहयोग पर बल दिया जाता था। सभी व्यक्तियों को कार्य करना पड़ता था। आश्रम में सभी लोग अपने खाने के बर्तन स्वयं साफ करते थे। रसोई के बड़े बर्तन सभी बारी-बारी से साफ किया करते थे।

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निबंध से आगे

प्रश्न 1.
गाँधी जी इतना पैदल क्यों चलते थे ? पैदल चलने के क्या लाभ हैं ? लिखो।
उत्तर:
गाँधी जी अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पैदल चलते थे। पैदल चलने से हमारे फेफड़ों में अंदर तक हवा पहुँचती है। हमारे शरीर पर अनावश्यक चर्बी नहीं बढ़ती। हमारा स्वास्थ्य अच्छा रहता है तथा हमें दूसरों के ऊपर आश्रित भी नहीं रहना पड़ता। पैदल चलने से लाभ ही लाभ हैं।

प्रश्न 2.
अपने घर के किन्हीं दस कामों की सूची बनाकर लिखो कि ये काम घर के कौन से सदस्य अक्सर करते हैं ? तुम अगले पृष्ठ पर बनी तालिका की सहायता ले सकते हो-
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अब यह देखो कि कौन सबसे ज़्यादा काम करता है और कौन सबसे कम। कामों का बराबर बँटवारा हो सके, इसके लिए तुम क्या कर सकते हो ? सोच कर शिक्षक को बताओ।

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अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
गाँधी जी अपने साथियों की ज़रूरत के मुताबिक हर काम कर देते थे, लेकिन उनका खुद का काम कोई और करे, यह उन्हें पसंद नहीं था क्यों ? सोचो और अपने शिक्षक को सुनाओ।
उत्तर:
गाँधी जी को किसी की सेवा लेना अच्छा नहीं लगता था। उनका मानना था कि सेवा के हकदार बीमार, बूढ़े और बच्चे होते हैं। हमें अपना कार्य स्वयं करना चाहिए तभी आत्मनिर्भरता आती है।

प्रश्न 2.
‘नौकरों को हमें वेतनभोगी मज़दूर नहीं, अपने भाई के समान मानना चाहिए। इसमें कुछ कठिनाई हो सकती है, फिर भी हमारी कोशिश सर्वथा निष्फल नहीं जाएगी। गाँधी जी की इस बात को अपने मित्रों को समझाओ।
उत्तर:
छात्र इस बात को सोचें और ऐसा ही करने का प्रयत्न करें साथ ही अपने मित्रों को भी बताएँ कि हम सभी समान हैं।

प्रश्न 3.
गाँधी जी की कही-लिखी बातें लगभग सौ से अधिक किताबों में दर्ज हैं। घर के काम, बीमारों की सेवा, मेहमानों से बातचीत आदि ढेरों काम करने के बाद गाँधी जी को लिखने का समय कब मिलता होगा ? गाँधी जी का एक दिन कैसे गुज़रता होगा, इस पर अपनी कल्पना से लिखो।
उत्तर:
गाँधी जी सुबह उठकर सबसे पहले नित्यकर्म से निवृत्त होकर ईश्वर का भजन करते होंगे। फिर वे बाहर घूमकर आते होंगे। इसके बाद वे थोड़ा बहुत खाकर लिखने पढ़ने का कार्य करते होंगे। इसके बाद वे आने वालों से मुलाकात करते होंगे। रात्रि को सोने से पहले वे दिन भर के पत्रों का जवाब देते होंगे।

प्रश्न 4.
पाठ में बताया गया है कि गाँधी जी और उनके साथी आश्रम में रहते थे। आश्रम किसे कहते हैं ? स्कूल के छात्रावास से गाँधी जी का आश्रम किस तरह अलग था ? पता करो और अपने शिक्षक को सुनाओ।
उत्तर:
आश्रम नगर व गाँव के शोरगुल से दूर वन में स्थित ऐसा स्थान होता है जहाँ रहने की व्यवस्था बिल्कुल सादे ढंग से होती है। विद्यालय पक्की ईंटों का बना होता है व शहर या गाँव में स्थित होता है। आश्रम जंगल में बना होता है वहाँ अक्सर फँस की बनी हुई झोंपड़ियाँ होती हैं।

प्रश्न 5.
ऐसे कामों की सूची बनाओ जिसे तुम हर रोज़ खुद कर सकते हो पर नहीं करते ? सामने उनका नाम लिखो जो यह काम तुम्हारे लिए करते हैं।
उत्तर:
निम्नलिखित कार्य ऐसे हैं जिन्हें हम खुद कर सकते हैं परन्तु करते नहीं-
सब्जी लाना, सब्जी काटना, रोटी बनाना, कपड़ों पर इस्त्री करना, जूते पॉलिश करना, अपने कपड़ों को धोना आदि।

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भाषा की बात

प्रश्न 1.
(क) ‘पिसाई’ संज्ञा है, जो ‘पीस’ क्रिया के अंत में ‘ई’ प्रत्यय जोड़ने से बनी है। किसी शब्द के अंत में कुछ जोड़ा जाए, तो उसे प्रत्यय कहते हैं। नीचे ऐसी कुछ और संज्ञाएँ लिखी हैं। बताओ कि ये किन क्रियाओं से बनी हैं-
बुआई …………….., बुआई ……………..
सिंचाई …………….., रोपाई ……………..
कताई …………….., रंगाई ……………..
उत्तर:
बुआई – बोना, कटाई – काटना
सिंचाई – सींचना, रोपाई – रोपना
कताई – कातना, रंगाई – रंगना

(ख) हर काम-धंधे और हर क्षेत्र की अपनी अलग भाषा और शब्द-भंडार होता है। ऊपर लिखे शब्दों का संबंध दो अलग-अलग कामों से है। पहचानो कि वे क्षेत्र कौन-से हैं।
उत्तर:
खेती और सूत तैयार करना।

प्रश्न 2.
हमारे आस-पास ऐसे कई घरेलू काम हैं, जिन्हें अब कम महत्त्व दिया जाता है। कपड़े सिलना इनमें से एक है। नीचे इस काम से जुड़े कुछ शब्द दिए गए हैं। आस-पास के बड़ों से या दर्जी से पूछो और प्रत्येक शब्द को एक-दो वाक्यों में समझाओ। इस सूची में और शब्द भी जोड़ो-
तुरपाई, कच्ची सिलाई, बखिया, चोर-सिलाई
उत्तर:
कमीज की तुरपाई अच्छी नहीं है।
दर्जी पहले कच्ची सिलाई करता है।
उसने तो उसकी बखिया उधेड़ दी।
पैसे रखने के लिए पैंट में चोर सिलाई करानी चाहिए।
नोट : बखिया उधेड़ने का अर्थ है ताना-बाना उधेड़ देना।

प्रश्न 3.
नीचे लिखे गए शब्द पाठ से लिए गए हैं। इन्हें पाठ में खोज कर बताओ कि ये स्त्रीलिंग हैं या पुल्लिंग-
कालिख, भराई, चक्की, रोशनी, जेल, सेवा, पतीला
पाठ के वाक्यों की सहायता से यह भी बताओ कि तुमने यह कैसे जाना ? इसे अपने शिक्षक को सुनाओ।
उत्तर:
कालिख, भराई, चक्की, रोशनी, जेल, सेवा स्त्रीलिंग हैं पतीला पुल्लिंग है।
स्त्रीलिंग पुल्लिंग का कोई निश्चित नियम नहीं है केवल अध्ययन एवं प्रयोग से ही स्त्रीलिंग व पुल्लिंग का पता चलता है।

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महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. आश्रम में गाँधी कई ऐसे काम भी करते थे जिन्हें आमतौर पर नौकर-चाकर करते हैं। जिस जमाने में वह बैरिस्टरी से हजारों रुपये कमाते थे, उस समय भी वह प्रतिदिन सुबह अपने हाथ से चक्की से आटा पीसा करते थे। चक्की चलाने में कस्तूरबा और उनके लड़के भी हाथ बँटाते थे। इस प्रकार घर में रोटी बनाने के लिए महीन या मोटा आटा वे खुद पीस लेते थे। साबरमती आश्रम में भी गाँधी ने पिसाई का काम जारी रखा। वह चक्की को ठीक करने में कभी-कभी घंटों मेहनत करते थे।

प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत’ में संकलित पाठ ‘नौकर’ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक ‘अनुबंधोपाध्याय’ जी हैं। उन्होंने यहाँ गाँधी जी के जीवन पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या- साबरमती आश्रम में रहते हुए गाँधी जी अपने सारे काम स्वयं करते थे। नौकर-चाकरों द्वारा करने वाले काम भी वे खुद ही कर लेते थे। गाँधी जी वकालत करके हजारों रुपये कमाते थे फिर भी वे अपने हाथ से चक्की चलाकर पीसा करते थे। वे अपने प्रत्येक कार्य के लिए समय निकाल लिया करते थे। चक्की चलाने में उनकी पत्नी कस्तूरबा एवं उनके पुत्र भी उनकी सहायता किया करते थे। उन्हें जैसे भी आटे की आवश्यकता होती थी, चाहे मोटा या बारीक वे खुद ही पीस लिया करते थे। साबरमती आश्रम में उन्होंने पिसाई का कार्य सुचारू रूप से जारी रखा। चक्की को पूरी तरह से ठीक करके ही वे आटा पीसते थे भले ही उसमें उनको घंटों लग जाएँ।

2. गाँधी दूसरों से काम लेने में बहुत सख्त थे, लेकिन अपने लिए दूसरों से काम कराना उन्हें नापसंद था। एक बार एक राजनीतिक सम्मेलन से गाँधी जब अपने डेरे पर लौटे तो रात हो गई थी। सोने से पहले वह अपने कमरे का फर्श बुहार रहे थे। उस समय रात के दस बजे थे। एक कार्यकर्ता ने दौड़कर गाँधी के हाथ से बुहारी ले ली। उनको यह पसंद नहीं था।

प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत’ में संकलित पाठ ‘नौकर’ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक ‘अनुबंधोपाध्याय’ जी हैं। लेखक ने यहाँ गाँधी जी के सामाजिक जीवन के बारे में बताया है।

व्याख्या- गाँधी जी अपना काम स्वयं करने में ही विश्वास रखते थे वे दूसरों से अपना काम करवाने के बहुत सख्त खिलाफ थे। उनको यह बिल्कुल भी पसंद नहीं था। एक बार किसी राजनैतिक सम्मेलन से अपने डेरे पर लौटते समय गाँधी जी को पहुँचने में देर हो गई। वे रात को ही अपने हाथ में झाडू लेकर सफाई का कार्य करने लगे। एक कार्यकर्ता ने उनको जब झाडू लगाते देखा तो उसने उनके हाथ से झाडू लेनी चाही परन्तु गाँधी जी को तो अपने काम आप ही करने अच्छे लगते थे।

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नौकर Summary

पाठ का सार

साबरमती आश्रम में रहते हुए भी महात्मा गाँधी अपने सभी काम खुद किया करते थे। उस समय में जब वे बैरिस्ट्ररी से हज़ारों रुपये कमाते थे, गाँधी जी नौकर के साथ भाई-बहिन का व्यवहार करते थे। उन्हें वे नौकर नहीं बल्कि घर का सदस्य ही समझते थे। वे सबके साथ स्नेह का व्यवहार करते थे, वे उदार हृदय वाले भारतीय थे।

गाँधी जी घर में रोटी बनाने के लिए चक्की से आटा स्वयं पीसते थे। आश्रम में भी वह सुबह-सुबह चक्की से आटा स्वयं पीसते थे। चक्की को चलाने में उनकी पत्नी कस्तूरबा तथा उनके लड़के उनका हाथ बँटाते थे। एक बार आश्रम में आटा कम पड़ जाने पर वे स्वयं आटा पीसने के लिए उठ खड़े हुए। गेहूँ पीसने से पहले वे उसे साफ करने पर ज्यादा जोर देते थे। कंपनी के कार्यकर्ता इस महान व्यक्ति को गेहूँ बीनते देखकर हैरत में पड़ जाते थे। बाहरी लोगों के सामने मेहनत करने में उन्हें शर्म नहीं आती थी। वे प्रत्येक कार्य को मेहनत व बड़ी लग्न से करते थे।

कुछ वर्षों तक गाँधी जी ने आश्रम में भंडार का काम संभाला। सवेरे प्रार्थना के बाद वे रसोई घर में सब्जियाँ छीलते थे। अगर वहाँ पर उन्हें कोई गंदगी नजर आती तो वे साथियों को डाँट लगाते थे। उन्हें फल, सब्जियों के पौष्टिक गुणों का काफी ज्ञान था। वे सब्जियों को बिना धोए काटने नहीं देते थे। वे आश्रमवासियों के लिए स्वयं भोजन परोसते थे। इसलिए वे उबली एवं बेस्वाद चीजों के विरुद्ध कुछ नहीं कहते थे। एक बार गाँधी जी ने एक आश्रमवासी को काले चक्ते पड़े हुए केले खाने को दिए तो उसे बुरा लगा, फिर गाँधी जी ने उसे समझाया कि तुम्हारा हाज़मा कमजोर है इसलिए ये तुम्हें दिए गए हैं ताकि जल्दी पचा सको। गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका की जेल में कैदियों को दिन में दो बार भोजन परोसने का कार्य कर चुके थे।

आश्रम का एक नियम था कि सभी खाना खाने के बाद अपने बर्तन स्वयं साफ करें। रसोई के बड़े बर्तनों को साफ करने के लिए कुछ लोग दिन बाँध लेते थे। एक दिन गाँधी जी ने आश्रम के बड़े बर्तनों को धोने का कार्य अपने ऊपर लिया। पतीलों में बड़ी कालिख लगी थी, वे रगड़-रगड़ कर उन्हें साफ करने लगे तभी उनकी पत्नी कस्तूरबा वहाँ आ गयी और बोली, यह आपका काम नहीं है इसको करने के लिए यहाँ पर और लोग हैं। गाँधी जी कस्तूरबा को बर्तन की सफाई सौंपकर चले गए। आश्रम का जब निर्माण हो रहा था तो मेहमानों को तंबुओं में सोना पड़ता था, नए मेहमान को नहीं पता था कि बिस्तर को कहाँ रखना है। उसने लपेटकर उसे रख दिया तो गाँधी जी उसका बिस्तर स्वयं उठाकर रखने के लिए चल दिए। आश्रम के लिए कुएँ से पानी लाने का काम वे रोज करते थे उन्हें यह बात पसन्द नहीं थी कि वह बूढ़ा होने के कारण शारीरिक श्रम न करें। हर प्रकार का काम करने की. उनमें अद्भुत क्षमता थी। वे थकान का नाम नहीं जानते थे वे कई मीलो तक पैदल चलते थे। दक्षिण अफ्रीका में बोकर युद्ध के दौरान उन्होंने घायलों को स्ट्रेचर पर लादकर अस्पताल पहुंचाया। एक बार तालाब की भराई में उनके साथी लगे हुए थे। जब वे शाम को काम करके लौटे तो गाँधी जी ने उनके लिए भोजन तैयार करके रखा क्योंकि वह सब लोग थके हुए लौटेंगे।

दक्षिण अफ्रीका में एक भारतीय छात्र ने उन्हें शाकाहारी भोज के लिए आमंत्रित किया इसलिए छात्रों ने भोजन स्वयं बनाया। तीसरे पहर एक दुबला-पतला आदमी आकर उनमें शामिल हो गया और बर्तन धोने का काम करने लगा। कुछ देर बाद छात्रों का नेता वहाँ आया तो देखता है कि वह बर्तन धोने वाला दुबला-पतला व्यक्ति कोई और नहीं सम्मानित अतिथि गाँधी जी थे। गाँधी जी को अपने लिए दूसरों से काम कराना पसन्द नहीं था। रात को यदि लिखते समय लालटेन का तेल खत्म हो जाता था तो वे चन्द्रमा की रोशनी में काम पूरा कर लेना पसन्द करते थे। अपने किसी कार्य के लिए वे अपने किसी सोए हुए साथी को जगाते नहीं थे।

गाँधी जी को बच्चों से बहुत प्यार था। अपने बच्चों के जन्म के बाद उन्होंने उनकी देखभाल के लिए कभी किसी धाय को नहीं रखा। उनका कहना था कि बच्चे के विकास के लिए माँ-बाप का प्यार और उनकी देखभाल जरूरी है। वे माँ की तरह बच्चों की देखभाल कर सकते थे। दक्षिण अफ्रीका में जेल से छूटने के बाद जब वे घर लौटे तो देखा कि उनके मित्र की पत्नी पोलक बहुत कमज़ोर हो गयी है। वह बहुत कोशिश कर चुकी पर उनका बच्चा दूध पीना नहीं छोड़ता था। गाँधी जी ने तभी से उस बच्चे की देखभाल का काम अपने हाथों में ले लिया। सारा दिन मेहनत के बाद वे रात को देर से घर लौटते थे और श्रीमति पोलक के बिस्तर से बच्चे को उठाकर अपने बिस्तर पर लिटा लेते थे। रात को प्यास लगने पर गाँधी जी बच्चे को स्वयं पानी पिलाते थे। एक महीने तक माँ से अलग सोने के बाद बच्चे ने दूध पीना छोड़ दिया। गाँधी जी के पास बच्चा कभी नहीं रोया।

गाँधी जी अपने से बड़ों का आदर सत्कार किया करते थे। एक बार दक्षिण अफ्रीका में गोखले गाँधी जी के साथ ठहरे हुए थे। वे उनके कपड़ों पर प्रैस करते थे, उनका बिस्तर लगाते थे और उनको भोजन परोस कर देते थे। वे उनके हाथ पैर दबाने को भी तैयार रहते थे गोखले के मना करने पर भी वे मानते नहीं थे। महात्मा कहलाने से पहले वे दक्षिण अफ्रीका से बाहर आने पर कांग्रेस के अधिवेशन में गए वहाँ उन्होंने गन्दी लैट्रिन, बाथ रूम साफ किए। बाद में एक कांग्रेसी नेता से उन्होंने पूछा, “कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ”, नेता ने कहा कि मेरे पास बहुत से पत्र इकट्ठे हो गए हैं इनका जवाब देना है। तुम यह काम करने के लिए तैयार हो। गाँधी जी ने कहा कि मैं ऐसा कोई भी काम कर सकता हूँ जो मेरी सामर्थ्य से बाहर न हो। गाँधी जी ने यह काम बहुत थोड़े समय में ही समाप्त कर दिया फिर उन्होंने नेता की कमीज के टूटे हुए बटन लगा दिए और उनकी सेवा का काम भी किया।

जब कभी आश्रम में किसी सहयोगी को रखने की आवश्यकता होती थी तो वे हरिजन को रखने का आग्रह करते थे। वे कहते थे कि नौकरों को हमें वेतन-भोगी मज़दूर नहीं मानना चाहिए बल्कि अपने परिवार का सदस्य समझना चाहिए। एक बार जब वे जेल में अपने साथियों के साथ थे तो कई कैदियों को उनकी सेवा का काम सौंपा गया, एक आदमी उनके बर्तन धोता था दूसरा उनकी लैट्रिन की सफाई करता था तो तीसरा ब्राह्मण कैदी भी उनके बर्तन धोता था। दो यूरोपियन उनकी चारपाई बाहर निकालते थे। गाँधी जी ने देखा कि इंग्लैंड के घरों में नौकर को परिवार का सदस्य माना जाता है। अंग्रेज परिवार से विदा लेते समय नौकरों का परिचय उनसे नौकरों की तरह नहीं बल्कि परिवार के सदस्य के समान कराया गया। तब उन्हें बहुत खुशी हुई और कहा कि मैं किसी को अपना नौकर नहीं समझता बल्कि अपना भाई या बहिन समझता हूँ आपने जो मेरी सेवा की उसके बदले मेरे पास आपको देने के लिए कुछ नहीं है। भगवान आपको इसका फल देंगे।

शब्दार्थ:
आश्रम – कुटिया, मठ, प्रतिदिन – रोजाना, छात्र – विद्यार्थी, मेहमान – अतिथि, कुआँ – कूप, जेल – कारागार, कालिख – कालापन, नौकर – सेवक, अनुचर, निष्फल – व्यर्थ, बेकार, कैदी – बंदी, चन्द्रमा – चाँद, निमन्त्रित – बुलाया हुआ, अनुमति – स्वीकृति, इज़ाजत, अवस्था – आयु, बैरिस्टरी – वकालत, फौरन – तुरंत, अनुमति – स्वीकृति, इज़ाजत, अवस्था – आयु, बीनना – चुनना, छाँटना, हैरत – अचंभा, आगंतुक – मेहमान, चारा – उपाय, हाजमा – पाचन शक्ति, माँजना – रगड़कर साफ करना, पखवाड़ा – पन्द्रह दिन का समय, अद्भुत – अनोखा/आश्चर्यजनक, कारकून – कारिंदा, काम करने वाला, अनुकरण – नकल, प्रतिदान – किसी ली हुई वस्तु के बदले, छरहरा – चुस्त, फुर्तीला दूसरी वस्तु देना, कौपीनधारी – धोती पहनने के एक विशेष ढंग के कारण, बुहारी – झाडू देना यह विशेषण गाँधी जी के लिए प्रयोग किया जाताथा। लंगोटी धारण करने वाला, खाखरा – एक गुजराती व्यंजन, चैन – आराम

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