These NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 3 बस की यात्रा Questions and Answers are prepared by our highly skilled subject experts.
बस की यात्रा NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 3
Class 8 Hindi Chapter 3 बस की यात्रा Textbook Questions and Answers
कारण बताएँ
प्रश्न 1.
“मैने उस कंपनी के हिस्सेदार की तरफ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा।”
लेखक के मन में हिस्सेदार साहब के लिए श्रद्धा क्यों जग गई ?
उत्तर:
लेखक ने कम्पनी के हिस्सेदार की तरफ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा, क्योंकि वह टायरों की हालत जानते हैं। फिर भी जान हथेली पर लेकर इसी बस से सफ़र कर रहे हैं। त्याग की ऐसी भावना सचमुच दुर्लभ है।
प्रश्न 2.
“लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफ़र नहीं करते।”
लोगों ने यह सलाह क्यों दी ?
उत्तर:
लोगों ने यह सलाह इसलिए दी कि इस बस का कोई भरोसा नहीं है। पता नहीं कहाँ रुक जाए। कहाँ रुकना पड़े। कहाँ रात गुजारनी पड़ जाए। बस पूरी तरह जर्जर है। कव इसका प्राणांत हो जाए, पता नहीं। बस डाकिन भी है।
प्रश्न 3.
“ऐसा जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं।”
लेखक को ऐसा क्यों लगा ?
उत्तर:
इंजन के स्टार्ट होने पर सारी बस इंजन की तरह घरघराने लगी थी। लग रहा था जैसे सीट के नीचे भी इंजन है। इसीलिए लेखक को लगा कि सारी बस ही इंजन है।
प्रश्न 4.
“गज़ब हो गया। ऐसी बस अपने आप चलती है।”
लेखक को यह सुनकर हैरानी क्यों हुई ?
उत्तर:
बस खूब वयोवृद्ध थी। सदियों के अनुभव के निशान लिये हुई थी। इस तरह की बसें कुछ लोगों के धकेलने पर ही स्टार्ट होती हैं। ऐसी बस अपने आप चलती है, यह जानकर लेखक को हैरानी हुई थी।
प्रश्न 5.
“मैं हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था।”
लेखक पेड़ों को दुश्मन क्यों समझ रहा था ?
उत्तर:
बस का पता नहीं था-कब ब्रेक फेल हो जाए या स्टीयरिंग टूट जाए। ऐसा होने पर बस किसी भी पेड़ से टकरा सकती थी; इसलिए लेखक पेड़ों को दुश्मन समझ रहा था।
पाठ से आगे
प्रश्न 1.
‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ किसके नेतृत्व में, किस उद्देश्य से तथा कब हुआ था? इतिहास की उपलब्ध पुस्तकों के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ गाँधी जी के नेतृत्व में हुआ। यह आंदोलन पूर्ण स्वराज्य के लिए 1930 में शुरू किया गया। देश भर के करोड़ों लोगों ने पूर्ण स्वराज्य की यह शपथ 26 जनवरी, 1930 को ली।
प्रश्न 2.
सविनय अवज्ञा का उपयोग व्यंग्यकार ने किस रूप में किया है ? लिखिए।
उत्तर:
गाँधी जी ने जो सविनय असहयोग अवज्ञा आंदोलन चलाया था, यह बस उस समय जवान रही होगी। इस बस ने उस समय ट्रेनिंग ली होगी। यह बस पूरी तरह खटारा हो चुकी थी। हर हिस्सा दूसरे हिस्से से असहयोग कर रहा था। सीट बॉडी से असहयोग कर रही थी। कभी लगता-सीट को छोड़कर बस की बॉडी आगे चली जा रही है। पता नहीं चल पा रहा था कि सीट पर हम बैठे हैं या सीट हम पर बैठी है। जर्जर होने के कारण बस का कहीं भी, कभी भी प्राणांत हो सकता था। इस कार्य से यात्रियों के साथ भी असहयोग ही हो जाता। इसी रूप में लेखक ने ‘सविनय अवज्ञा’ का उपयोग किया है।
प्रश्न 3.
आप अपनी किसी यात्रा के खट्टे-मीठे अनुभवों को याद करते हुए एक लेख लिखिए।
उत्तर:
हमें सहारनपुर से बरेली जाना था। स्टेशन पहुंचने पर पता चला कि गाड़ी पाँच घंटे लेट है। हम घर वापस चले गए। लगभग साढ़े चार घंटे बाद हम फिर स्टेशन पहुंचे तो पता चला कि पंद्रह मिनट पहले गाड़ी जा चुकी है। सूचना देने वाले कर्मचारी ने समय बताने में एक घंटे की गड़बड़ी कर दी थी। ऐसे और भी कई लोग थे, जिनकी गाड़ी छूट चुकी थी। स्टेशन मास्टर. ने सबको समझाया कि कर्मचारी घरेलू परेशानी में पड़ा होने के कारण यह गलती कर गया है। खैर हमने टिकट का पैसा वापस लिया। मेरठ होकर जाने वाली नौचन्दी से हमने अपनी अगली यात्रा शुरू की। रात में भयंकर आँधी आने से गाड़ी किसी सुनसान जगह पर कई घंटे खड़ी रही। अँधरे और सुनसान स्थान पर उतरकर पता करने की हिम्मत किसी में नहीं बची थी। थकान के कारण सब चूर-चूर हो रहे थे। गर्मी के कारण भी बहुत बुरा हाल हो गया था। पीने का पानी खत्म हो चुका था। अपनी इस यात्रा को हम अभी तक नहीं भुला पाए हैं।
मन-बहलाना
प्रश्न 1.
अनुमान कीजिए-यदि बस जीवित प्राणी होती, बोल सकती तो वह अपनी बुरी हालत और भारी बोझ के कष्ट को किन शब्दों में व्यक्त करती ? लिखिए।
उत्तर:
मेरे टायर पूरी तरह घिस चुके हैं। बॉडी जगह-जगह से टूट चुकी है। बारिश हो तो बादलों का सारा पानी भीतर भर जाए। खिड़कियों के काँच बरसों पहले बिदा हो चुके हैं। आँधी-पानी, लू-लपट, ठंडी हवाएँ बिना किसी से पूछे, बिना टिकट कटाए मुझमें आकर मुसाफिरों को परेशान करती हैं। मेरा पेट्रोल टैंक लीक करता रहता है। ब्रेक कभी भी काम करना बंद कर देता है। सामने से कोई बड़ा ट्रक देखकर तो मेरी साँस ही रुक जाती है। इंजन की हालत तो ऐसी है कि कब एक से अनेक हो जाए नहीं पता। मेरे स्वास्थ्य पर मालिक बिल्कुल ध्यान ही नहीं देते। मेरा खून चूसने में लगे हैं। मेरी मरम्मत पर फूटी कौड़ी भी खर्च नहीं करते। मैं बेदम हो चुकी हूँ, लेकिन ये बेरहम सवारियाँ और सामान लादने में कोई कमी नहीं करते। इन्हें मेरे बुढ़ापे पर ज़रा भी तरस नहीं आता। लगता है, श्रद्धाभाव इन मालिकों के दिलों से कूच कर चुका है। यह मेरी आराम करने की उम्र है। ये कठोर हृदय वाले लगता है-बूढ़ों की इज्जत करना भूल गए हैं।
भाषा की बात
प्रश्न 1.
बस, वश, बस तीन शब्द हैं-इनमें ‘बस’ सवारी के अर्थ में, ‘वश’ अधीनता के अर्थ में, और ‘बस’ पर्याप्त (काफी) के अर्थ में प्रयुक्त होता है, जैसे-बस से चलना होगा। मेरे वश में नहीं है। अब बस करो।
उपर्युक्त वाक्य के समान तीनों शब्दों से युक्त आप भी दो-दो वाक्य बनाइए।
उत्तर:
बस – मुझे बस से यात्रा करने में दिक्कत होती है।
दिल्ली में ब्लू लाइन बस अधिक दुर्घटनाएँ करती हैं।
वश – सलिल को सुधारना मेरे वश में नहीं।
मेरा वश चलता तो मैं घूसखोरों को जेल भेजा देता।
बस – बहुत हो चुका मेरे भाई! अब बस करो।
तम रुको, बस मैं अभी आया।
प्रश्न 2.
“हम पाँच मित्रों ने तय किया कि शाम चार बजे की बस से चलें। पन्ना से इसी कंपनी की बस सतना के लिए घंटे भर बाद मिलती है।”
ने, की, से आदि शब्द वाक्य के दो शब्दों के बीच संबंध स्थापित कर रहे हैं। ऐसे शब्दों को कारक कहते हैं। इसी तरह जब दो वाक्यों को एक साथ जोड़ना होता है ‘कि’ का प्रयोग होता है।
कहानी में से दोनों प्रकार के चार वाक्यों को चुनिए।
उत्तर:
बस को देखा तो श्रद्धा उमड़ पड़ी।
उस पर सवार कैसे हुआ जा सकता है।
बस कम्पनी के एक हिस्सेदार भी उसी बस से जा रहे थे।
डॉक्टर मित्र ने कहा, “डरो मत, चलो।”
सीट का बॉडी से असहयोग चल रहा था।
दो वाक्यों को एक साथ जोड़ने के लिए ‘कि’ का प्रयोग
(क)
- मालूम हुआ कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया है।
- लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफर नहीं करते।
- लोग इसलिए सफ़र नहीं करना चाहते कि वृद्धावस्था में इसे कष्ट होगा।
- हमें ग्लानि हो रही थी कि बेचारी पर लदकर हम चले आ रहे हैं।
‘या’, ‘अथवा’ के लिए भी ‘कि’ का प्रयोग किया जाता है। उस स्थिति में भी दो वाक्य जुड़ते हैं। जैसे-
- घर जाओगे कि नहीं ?
- बच्चे मेरी बात समझेंगे कि नहीं, बताना कठिन है।
[उपर्युक्त वाक्यों में ‘कि’ के स्थान पर ‘या’ ‘अथवा’ का प्रयोग किया जा सकता है।
प्रश्न 3.
“हम फौरन खिड़की से दूर सरक गए। चाँदनी में रास्ता टटोलकर वह रेंग रही थी।” ‘सरकना’ और ‘रेंगना’ जैसी क्रिया दो प्रकार की गति बताती है। ऐसी कुछ और क्रियाएँ एकत्र कीजिए जो गति के लिए प्रयुक्त होती हैं, जैसे-घूमना इत्यादि उन्हें वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
चलना-
- सुहासिनी उज्जैन जा रही है। क्या तुम भी साथ चलोगे ?
- चलो, बहुत हो चुका है। अब आराम करो।
- झूठ का सिक्का सदा नहीं चलता।
- चलो, चलो! सब अपने घर जाओ।
उपर्युक्त वाक्यों में ‘चलना’ के विभिन्न अर्थ वाले रूप दिए गए हैं।
प्रश्न 4.
“काँच बहुत कम बचे थे। जो बचे थे, उनसे हमें बचना था।” इस वाक्य में ‘बच’ शब्द को दो तरह से प्रयोग किया गया है। एक ‘शेष’ के अर्थ में और दूसरा ‘सुरक्षा’ के अर्थ में।।
नीचे दिए गए शब्दों को वाक्यों में प्रयोग करके देखिए। ध्यान रहे, एक ही शब्द वाक्य में दो बार आना चाहिए और शब्दों के अर्थ में कुछ बलाव होना चाहिए।
(क) जल (ख) फल (ग) हार
उत्तर:
जल – हाथ जल जाने पर तुरन्त ठंडे जल में डुबो दें।
फल – फल के लिए जो पेड़ लगाएगा, उसे इस काम के पुण्य का फल भी जरूर मिलेगा।
हार – युद्ध में हार जाने वालों को कोई भी हार नहीं पहनाता।
प्रश्न 5.
भाषा की दृष्टि से देखें तो हमारी बोलचाल में प्रचलित अंग्रेजी शब्द ‘फर्स्ट क्लास’ में दो शब्द हैं-फर्स्ट और क्लास। यहाँ क्लास का विशेषण है-फर्स्ट। चूँकि फर्स्ट संख्या है, फर्स्ट क्लास संख्यावाचक विशेषण का उदाहरण है। महान आदमी में किसी आदमी की विशेषता है महान। यह गुणवाचक विशेषण है। संख्यावाचक विशेषण और गुणवाचक विशेषण के उदाहरण खोजकर लिखिए।
उत्तर:
संख्यावाचक विशेषण-
- पाँच मित्रों ने बस से चलने का निश्चय किया।
- आठ-दस मील चलने पर सारे भेदभाव मिट गए।
- अब रफ्तार पंद्रह-बीस मील हो गई थी।
- एक पेड़ निकल जाता तो दूसरे पेड़ का इंतजार करता।
गुणवाचक विशेषण-
- दूसरा घिसा टायर लगाकर बस फिर चली।
- समझदार आदमी इस शामवाली बस से सफ़र नहीं करते।
- खूब वयोवृद्ध थी।
- नयी-नवेली बसों से ज्यादा विश्वसनीय है।
- दोनों तरफ़ हरे-भरे पेड़ थे।
- मैं हर पेड़ को पक्का दुश्मन समझ रहा था।
- क्षीण चाँदनी में बस दयनीय लग रही थी।
- वह महान आदमी आ रहा है।
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
लेखक और उनके मित्रों को कहाँ पहँचना था ?
उत्तर:
लेखक और उनके मित्रों को जबलपुर पहुंचना था।
प्रश्न 2.
जबलपुर जाने के लिए ट्रेन कहाँ से पकड़नी थी ?
उत्तर:
जबलपुर जाने के लिए ट्रेन सतना से पकड़नी थी।
प्रश्न 3.
डॉक्टर मित्र ने क्या कहा ?
उत्तर:
डॉक्टर मित्र ने कहा-“डरो मत, चलो। बस अनुभवी है। नयी-नवेली बसों से ज्यादा विश्वसनीय है। हमें बेटों की तरह गोद में लेकर चलेगी।”
प्रश्न 4.
लेखक और उनके मित्रों को जो छोड़ने आए थे, उनकी आँखें क्या कह रही थीं ?
उत्तर:
जो लोग छोड़ने आए थे, उनकी आँखें कह रही थीं कि आना-जाना तो लगा ही रहता है। आया है सो जाएगा-राजा, रंक, फकीर। आदमी के संसार के कूच करने का कोई न कोई कारण होना चाहिए।
प्रश्न 5.
बस को सविनय अवज्ञा आंदोलन की ट्रेनिंग कब मिली होगी ?
उत्तर:
गाँधी जी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय बस जवान रही होगी। उसे वहीं से ट्रेनिंग मिली होगी।
बोध-प्रश्न
निम्नलिखित अवतरणों को पढ़िए एवं पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए
(क) बस को देखा तो श्रद्धा उमड़ पड़ी। खूब वयोवृद्ध थी। सदियों के अनुभव के निशान लिए हुए थी। लोग इसलिए इससे सफ़र नहीं करना चाहते कि वृद्धावस्था में इसे कष्ट होगा। यह बस पूजा के योग्य थी। उस पर सवार कैसे हुआ जा सकता है!
प्रश्न 1.
बस को देखकर श्रद्धा क्यों उमड़ पड़ी ?
उत्तर:
बस बहुत वयोवृद्ध थी। जिस प्रकार वयोवृद्ध व्यक्ति को देखकर श्रद्धा उमड़ पड़ती है, उसी प्रकार इस बस को देखकर भी श्रद्धा उमड़ पड़ती थी।
प्रश्न 2.
‘सदियों के अनुभव के निशान’ का क्या आशय है ?
उत्तर:
बस बहुत खटारा हो चुकी थी। तरह-तरह की टूट-फूट-खरोंच के निशान उस पर पड़े हुए थे। इसी से लगता था कि बस बहुत अनुभवी है और उसने अपने कार्यकाल में ढेर सारी परेशानियाँ झेली हैं।
प्रश्न 3.
लोग इस बस में सफर करना क्यों नहीं चाहते थे ?
उत्तर:
लोग इस बस में सफर नहीं करना चाहते। हमारी संस्कृति में बूढ़ों को कष्ट देना अच्छा नहीं माना जाता। बस वृद्धावस्था में पहुँच चुकी थी; अतः उसे भी कष्ट देना ठीक नहीं था।
प्रश्न 4.
इस बस पर सवार क्यों नहीं हुआ जा सकता था ?
उत्तर:
बस पूजा के योग्य थी। जो पूजा के योग्य हो, भला उस पर सवार कैसे हुआ जा सकता है ? उसकी तो पूजा ही की जा सकती है।
(ख) एकाएक बस रुक गई। मालूम हुआ कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया है। ड्राइवर ने बाल्टी में पेट्रोल निकालकर उसे बगल में रखा और नली डालकर इंजन में भेजने लगा। अब मैं उम्मीद कर रहा था कि थोड़ी देर बाद बस-कंपनी के हिस्सेदार इंजन को निकालकर गोद में रख लेंगे और उसे नली से पेट्रोल पिलाएँगे, जैसे माँ बच्चे के मुँह में दूध की शीशी लगाती है।
प्रश्न 1.
बस एकाएक क्यों रुक गई थी ?
उत्तर:
पेट्रोल की टंकी में छेद होने के कारण बस एकाएक रुक गई।
प्रश्न 2.
ड्राइवर ने इंजन में पेट्रोल कैसे भेजा ?
उत्तर:
ड्राइवर ने बाल्टी में पेट्रोल निकाल अपनी बगल में रख लिया और नली डालकर इंजन में पेट्रोल भेजने लगा।
प्रश्न 3.
लेखक बस कम्पनी के हिस्सेदार से क्या उम्मीद कर रहा था ?
उत्तर:
लेखक बस कम्पनी के हिस्सेदार से उम्मीद कर रहा था कि वे थोड़ी देर बाद इंजन को निकाल कर गोद में रख लेंगे और नली से पेट्रोल पिलाएँगे।
प्रश्न 4.
ड्राइवर इंजन को किस ढंग से पेट्रोल पिलाएगा?
उत्तर:
जैसे माँ बच्चे के मुँह में दूध की शीशी लगाती है, उसी तरह ड्राइवर इंजन को पेट्रोल पिलाएगा।
(ग) बस की रफ्तार अब पंद्रह-बीस मील हो गई थी। मुझे उसके किसी हिस्से पर भरोसा नहीं था। ब्रेक फेल हो सकता है, स्टीयरिंग टूट सकता है। प्रकृति के दृश्य बहुत लुभावने थे। दोनों तरफ हरे-भरे पेड़ थे जिन पर पक्षी बैठे थे। मैं हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था। जो भी पेड़ आता, डर लगता कि इससे बस टकराएगी। वह निकल जाता तो दूसरे पेड़ का इंतजार करता। झील दिखती तो सोचता कि इसमें बस गोता लगा जाएगी।
प्रश्न 1.
अब बस की रफ्तार कितनी हो गई थी ?
उत्तर:
अब बस की रफ्तार पन्द्रह-बीस मील प्रति घंटा हो गई थी।
प्रश्न 2.
लेखक के अनुसार बस का कौन-कौन सा हिस्सा साथ छोड़ सकता था?
उत्तर:
लेखक के अनुसार ब्रेक फेल हो सकता था, स्टीयरिंग कभी भी टूट सकता था।
प्रश्न 3.
सड़क के पास के दृश्य लुभावने होने पर भी लेखक क्यों डरा हुआ था?
उत्तर:
सड़क के पास के दृश्य सुहावने होने पर भी लेखक डरा हुआ था, क्योंकि उसे हर पेड़ अपना दुश्मन लग रहा था। न जाने बस कब किस पेड़ से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो जाए।
प्रश्न 4.
झील दिखने पर लेखक क्या सोचता ?
उत्तर:
झील दिखती तो लेखक सोचता कि बस इसमें गोता लगा लेगी।
(घ) क्षीण चाँदनी में वृक्षों की छाया के नीचे वह बस बड़ी दयनीय लग रही थी। लगता, जैसे कोई वृद्धा थककर बैठ गई हो। हमें ग्लानि हो रही थी कि बेचारी पर लदकर हम चले आ रहे हैं। अगर इसका प्राणांत हो गया तो इस बियाबान में हमें इसकी अंत्येष्टि करनी पड़ेगी।
प्रश्न 1.
क्षीण चाँदनी में बस कैसी लग रही थी ?
उत्तर:
क्षीण चाँदनी में वृक्षों की छाया के नीचे खड़ी बस बड़ी दयनीय लग रही थी। लगता था, जैसे कोई बूढ़ी थककर बैठ गई हो।
प्रश्न 2.
लेखक को ग्लानि क्यों हो रही थी ?
उत्तर:
बस बहुत बूढ़ी थी। लेखक उस पर लदकर यहाँ तक पहुंचा था। अतः उसके मन में बस को कष्ट देने की ग्लानि हो रही थी।
प्रश्न 3.
बस का प्राणान्त होने पर क्या करना पड़ता ?
उत्तर:
यदि बस का प्राणान्त हो जाता तो सुनसान जंगल में ही उसकी अन्तिम क्रिया करनी पड़ती।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘बस की यात्रा’ कहानी के कहानीकार कौन हैं ?
(क) भगवती चरण वर्मा
(ख) हरिशंकर परसाई
(ग) सुभास गाताड़े
(घ) प्रदीप तिवारी
उत्तर:
(ख) हरिशंकर परसाई
प्रश्न 2.
लेखक एवं उनके साथियों को कहाँ की ट्रेन पकड़नी थी ?
(क) सतना की
(ख) ग्वालियर की
(ग) भोपाल की
(घ) जबलपुर की
उत्तर:
(क) सतना की
प्रश्न 3.
चलते-चलते एकाएक बस क्यों रुक गई ?
(क) उसका इंजन खराब हो गया था
(ख) आगे रास्ता खराब था
(ग) डाकुओं ने बस को रुकवा लिया
(घ) पैट्रोल की टंकी में छेद हो गया
उत्तर:
(घ) पैट्रोल की टंकी में छेद हो गया
प्रश्न 4.
पुलिया के ऊपर पहुँचने के बाद क्या हुआ ?
(क) बस का टायर फट गया
(ख) बस का इंजन खराब हो गया
(ग) बस का पहिया गड्ढे में फँस गया
(घ) बस पुलिया से टकरा गई
उत्तर:
(क) बस का टायर फट गया
प्रश्न 5.
लेखक हर पेड़ को अपना दुश्मन क्यों समझ रहे थे ?
(क) उनको डर था कोई पेड़ उन पर न गिर पेड़
(ख) कोई भी पेड़ बस पर गिर सकता था
(ग) बस किसी भी पेड़ से टकरा सकती थी
(घ) लेखक को पेड़ अच्छे नहीं लगते थे
उत्तर:
(ग) बस किसी भी पेड़ से टकरा सकती थी
प्रश्न 6.
डाक्टर मित्र ने क्या कहा ?
(क) बस खटारा है
(ख) बस अनुभवी है
(ग) बस अच्छी है
(घ) बस में कोई खराबी नहीं
उत्तर:
(ख) बस अनुभवी है
बस की यात्रा Summary
पाठ का सार
लेखक को सतना से जबलपुर की ट्रेन पकड़नी थी। उसके लिए पन्ना से चार बजे सतना जाने वाली बस पकड़नी थी। पाँच मित्रों में से दो को सुबह दफ्तर जाना था। लोगों ने इस बस से सफर करने की मनाही की। बस बहुत पुरानी थी। इतनी पुरानी कि उस पर सवार कैसे हुआ जाए, यह सोचना पड़ रहा था। बस कम्पनी के एक हिस्सेदार भी इसी बस से जा रहे थे। पता चला कि यह बस चलती भी है। डॉक्टर मित्र ने कहा कि यह बस हमें बेटों की तरह गोद में लेकर जाएगी। जो बिदा करने के लिए आए थे, वे इस तरह देख रहे थे जैसे अंतिम विदाई देने आए हों। उन्हें पन्ना तक पहुँचने में संदेह था।
इंजन स्टार्ट हुआ तो पूरी बस हिलने लगी। खिड़कियों के काँच नदारद थे। बस सचमुच चल पड़ी। कभी लगता कि सीट बॉडी छोड़कर आगे निकल गई। पेट्रोल की टंकी में छेद होने पर बस रुक गई। ड्राइवर ने बाल्टी में पेट्रोल निकाल बगल में रख लिया और एक नली से इंजन में भेजना शुरू किया। कुछ भी हो सकता था। ब्रेक फेल हो सकता था, स्टीयरिंग टूट सकता था। कभी लगता कि बस किसी भी पेड़ से टकरा जाएगी या झील में गोता लगा लेगी। अगर इसकी मृत्यु हो गई तो जंगल में ही इसका अंतिम संस्कार करना पड़ेगा। हिस्सेदार ने इंजन सुधारा तो बस कुछ आगे बढ़ी। बस की रोशनी भी जाती रही। पुलिया पर पहुँची तो टायर फिस्स हो गया। बस नाले में गिर जाती तो सब लोग देवताओं की बाहों में होते। दूसरा घिसा टायर लगा तो बस आगे बढ़ी। हमने पन्ना पहुँचने की उम्मीद छोड़ दी थी।
शब्दार्थ : हाजिर-उपस्थित, मौजूद; डाकिन-चुडैल, डाइन; वयोवृद्ध-उम्र में बड़ी; वृद्धावस्था- बुढ़ापा; विश्वसनीय-विश्वास के योग्य; कूच करना-प्रस्थान करना, मरना; निमित्त-कारण; सविनय-आज्ञा न मानना; तरकीबें-उपाय; इत्तफाक- अचानक होने वाली घटना; दयनीय-दया के योग्य; ग्लानि-दुख, खेद; प्राणांत-मृत्यु; बियाबान-जंगल; अन्त्येष्टि-अंतिम संस्कार; उत्सर्ग- बलिदान; प्रयाण-प्रस्थान; बेताबी-बेचैनी; इत्मीनान-संतोष; ज्योति-रोशनी।