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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न 1.
सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है?
उत्तर
सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है वह सदियों की परतंत्रता की छाप है। चाटुकारिता उनके तन-मन में विद्यमान है और जहाँ चाटुकारिता का भाव होता है वहाँ अपने सम्मान का कोई महत्त्व नहीं होता है। सरकारी तंत्र उस जॉर्ज पंचम की नाक के लिए चिंतित है जिसने न जाने कितने ही कहर ढहाए। उसके अत्याचारों को याद न कर उसके सम्मान में जुट जाता है। इस तरह सरकारी तंत्र अपनी अयोग्यता, अदूरदर्शिता, मूर्खता और चाटुकारिता को दर्शाता है।

प्रश्न 2.
रानी एलिजाबेथ के दरजी की परेशानी का क्या कारण था? उसकी परेशानी को आप किस तरह तर्कसंगत ठहराएँगे?
उत्तर
रानी एलिजाबेथ भारत सहित अन्य देशों के दौरे पर भी जाएँगी, यह बात जानकर उनका दरजी भी परेशान हो उठा। लगा कि रानी एलिजाबेथ को भारत के साथ-साथ पाकिस्तान और नेपाल भी जाना है जहाँ की संस्कृति और पहनावा जैसी बातों में पर्याप्त भिन्नता है। वहाँ के पहनावे और संस्कृति के अनुरूप ही रानी की वेशभूषा भी होनी चाहिए तथा उस वेशभूषा से रानी की राजसी शान का प्रतिबिंब भी उभरना चाहिए। यही सब उसकी परेशानी का कारण था। उसकी परेशानी अपनी जगह पूर्णतया जायज ही थी, क्योंकि ऐसा न होने से रानी अन्य देशों में उपहास का पात्र बन सकती थी।

प्रश्न 3.
‘और देखते ही देखते नई दिल्ली की कायापलट होने लगी। नई दिल्ली के कायापलट के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए गए होंगे?
उत्तर
रानी एलिजाबेथ के स्वागतार्थ नई दिल्ली की कायापलट के निम्नलिखित प्रयत्न किए गए होंगे-

  1. सरकारी भवनों की साफ-सफाई तथा रंग-रोगन कर उन्हें चमकाया गया होगा।
  2. स्थान-स्थान पर कूड़े-करकट के ढेर उठाने का प्रयास किया गया होगा।
  3. रानी की नज़र कहीं झोंपड़ी, झुग्गी-बस्तियों पर न पड़ जाए। यह सोच कर उनको स्थानांतरित किया गया होगा।
  4. सड़कों को साफ-सुथरा कर सजे हुए तोरण द्वार बनाए गए होंगे, जगह-जगह बैनर लगाए गए होंगे।
  5. कहीं-कहीं प्रमुख स्थानों पर देश के सम्मानित नेताओं का झुंड हाथ में पुष्पहार और बुके आदि लिए खड़े होंगे।
  6. सुरक्षा की दृष्टि से स्थान-स्थान पर पुलिस की व्यवस्था की गई होगी।
  7. सरकारी भवनों पर झंडे लगाए गए होंगे।
  8. ब्रिटेन और भारत की मित्रता के स्लोगन लिखे गए होंगे।

प्रश्न 4.
आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है-
(क) इस प्रकार की पत्रकारिता के बारे में आपके क्या विचार हैं?
(ख) इस तरह की पत्रकारिता आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव डालती
उत्तर
(क) आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों के अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन को पेज श्री टाइप की पत्रकारिता कहा जा सकता है जिसे युवा तथा देश का विशेष वर्ग इन्हें चाव से पढ़ता है और प्रभावित होता है। चर्चित व्यक्तियों के पहनावे की चर्चा एक सीमा में रहकर करना चाहिए। ऐसा ही कुछ दिन पहले हुआ था जब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का नौ लाख की लागत से बना सूट चर्चा का विषय बन गया था। जिस देश के किसान आत्महत्या कर रहे हों, लोग दो वक्त की रोटी के लिए लालायित हों तब ऐसी प्रवृत्ति अर्थात् पत्रकारिता का विषय बनाकर वाह-वाही लूटने से बचना चाहिए।

(ख) इस प्रकार की पत्रकारिता से आम जनता और विशेषकर युवा पीढ़ी बहुत प्रभावित होती है। युवा पीढ़ी तो लक्ष्यभ्रमित होकर दिवास्वप्न देखने लगती है। वे पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान देना कम करके फैशन और बनाव श्रृंगार पर अधिक ध्यान देने लगते हैं। इसके लिए वे अनुचित उपाय अपनाने से भी नहीं चूकते हैं।

प्रश्न 5.
जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने क्या-क्या यत्न किए?
उत्तर
जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के जो सराहनीय प्रयास किए वे सब निश्चित ही हैरान करने वाले थे, वे इस प्रकार हैं-

  1. मूर्तिकार ने फाइलें ढूँढ़वाईं, जिससे यह का पता चल सके कि इस प्रकार का पत्थर कहाँ पाया जाता है।
  2. फाइल के न मिलने पर मूर्तिकार उस तरह का पत्थर ढूँढ़ने के लिए हिंदुस्तान के हर पहाड़ पर गया।
  3. उसने अपने देश के सभी नेताओं की नाक नापी। उसके लिए वह देश के उन सब नेताओं की मूर्तियाँ ढूँढ़ते-ढूंढ़ते नाक नापते-नापते देश के हर प्रांत और कोने में गया।
  4. बिहार के सेक्रेटरिएट के सामने सन् बयालीस में शहीद हुए बच्चों की स्थापित मूर्तियों की नाक को नापा, परंतु सभी बड़ी निकलीं।
  5. अंत में देश के किसी जिंदा व्यक्ति की जिंदा नाक लगाने का प्रयास किया और यह प्रयास सफल रहा, अंत में जिंदा नाक लगा दी गई।

प्रश्न 6.
प्रस्तुत कहानी में जगह-जगह कुछ ऐसे कथन आए हैं जो मौजूदा व्यवस्था पर करारी चोट करते हैं। उदाहरण के लिए- ‘फाइलें सब कुछ हजम कर चुकी हैं।’ सब हुक्कामों ने एक-दूसरे की तरफ ताका। पाठ में आए ऐसे अन्य कथन छाँटकर लिखिए।
उत्तर
‘जॉर्ज पंचम की नाक’ पाठ में आए कुछ व्यंग्यात्मक कथन जो मौजूदा व्यवस्था पर चोट करते हैं-

  • इन खबरों से हिंदुस्तान में सनसनी फैल रही थी।
  • देखते ही देखते नई दिल्ली का कायापलट होने लगा।
  • नई दिल्ली में सब था…सिर्फ नाक नहीं थी।
  • गश्त लगती रही और लाट की नाक चली गई।
  • यह बताने की जिम्मेदारी तुम्हारी है।
  • जैसे भी हो, यह काम होना है और इसका दारोमदार आप पर है।

प्रश्न 7.
नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है। यह बात पूरी व्यंग्य रचना में किस तरह उभर कर आई है? लिखिए।
उत्तर
नाक सदा से ही मान-सम्मान एवं प्रतिष्ठा का प्रतीक रही है। प्रतिष्ठा के प्रतीक इसी नाक को इस व्यंग्य रचना का विषय बनाया गया है, साथ ही देश की सरकारी व्यवस्था, मंत्रियों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों की गुलाम मानसिकता पर कठोर प्रहार किया गया है। देश स्वतंत्र हुए आज लंबा समय बीत जाने पर भी अधिकारी एवं कर्मचारी उसी मानसिकता में जी रहे हैं। लाट की जिस टूटी नाक की किसी को भी चिंता नहीं थी, वह एलिजावेथ के भारत आगमन के कारण अचानक महत्त्वपूर्ण हो उठी और सरकारी तंत्र तथा अन्य कर्मचारी बदहवास हो उसे पुनः लगाने के लिए हर प्रकार का जोड़-तोड़ करने में जुट गए। उनमें मची आपाधापी देखने लायक थी। यह गुलामी की मानसिकता का ही असर था कि वे जॉर्ज पंचम की नाक को अब और देर तक टूटी हुई नहीं देख सकते थे, न इस दशा में एलिजावेथ को दिखाना चाहते थे। निश्चित रूप में यह गुलामी की मानसिकता का ही प्रतीक था।

प्रश्न 8.
अखबारों ने जिंदा नाक लगने की खबर को किस तरह से प्रस्तुत किया?
उत्तर
जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता-गांधी जी, टैगोर, तिलक, लाला लाजपत राय, सरदार पटेल, चंद्रशेखर आजाद, बिस्मिल आदि नेताओं की नाक फिट न होने की बात कहकर यह दर्शाना चाहता है कि जॉर्ज पंचम और हमारे इन देश-भक्तों का कोई मुकबला नहीं है। इन देश भक्तों के कार्य और व्यवहार के सामने जॉर्ज पंचम सूर्य के सामने दीये जैसा महत्त्व रखते हैं। जॉर्ज पंचम तो हमारे देश के शहीद बच्चों जैसे आदरणीय नहीं हैं। ऐसे में हमारे देश के हुक्मरानों और सरकारी कार्यालय एक बुत की नाक के लिए पता नहीं क्यों इतने परेशान हैं।

प्रश्न 9.
जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक फिट न होने की बात से लेखक किस ओर संकेत करना चाहता है।
उत्तर
जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक फिट न होने की बात से लेखक का संकेत है कि जिस जॉर्ज पंचम की नाक के लिए सरकारी तंत्र के सभी हुक्काम चिंतित थे उसकी नाक तो अपने देश, देश के लिए शहीद हुए बच्चों की नाक से भी छोटी थी। इस तरह जॉर्ज पंचम की स्थिति गोखले, तिलक, शिवाजी, गाँधी, पटेल, बोस की तुलना में नगण्य थी।

प्रश्न 10.
“नई दिल्ली में सब था… सिर्फ नाक नहीं थी।” इस कथन के माध्यम से लेखक क्या * कहना चाहता है?
उत्तर
‘नई दिल्ली में सब था…सिर्फ नाक नहीं थी’ के माध्यम से लेखक यह बताना चाहता है कि हमारे देश की राजधानी में सब कुछ पहले जैसा था। यह कि अपना संविधान एवं लोकतंत्र था। लोग अपनी इच्छानुसार बोलने और आचरण करने के लिए स्वतंत्र थे। वे अपने-अपने ढंग से एलिजाबेथ के स्वागत की तैयारियों में जुटे थे। भारतीय ‘अतिथि देवो भवः’ परंपरा निभाने को तैयार थे, पर अब भारतीयों के मन में जॉर्ज पंचम के लिए मन में सम्मान न था।

प्रश्न 11.
जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार चुप क्यों थे?
उत्तर
जॉर्ज पंचम के लाट पर जिंदा नाक लगने से अखबार वाले लज्जित थे जिस जॉर्ज-पंचम की तुलना छोटे बच्चे से भी न की जा सके और जिसके अत्याचार का इतिहास भी शायद भूले नहीं थे, उस जॉर्ज पंचम की लाट पर अपने सम्मान की नाक कटवा कर जिंदा नाक फिट की गई। यह कृत्य चुल्लू भर पानी में डूबने जैसा था। यह दिन भारतीयों के आत्म-सम्मान पर चोट करने वाला था, इसलिए आज के दिन अखबार खाली थे।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sanchayan Chapter 3 टोपी शुक्ला

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बोध-प्रश्न

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न 1.
इफ्फन टोपी शुक्ला की कहानी का महत्त्वपूर्ण हिस्सा किस तरह से है?
उत्तर
इफ्फन टोपी शुक्ला कहानी का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि कथा नायक टोपी शुक्ला की पहली दोस्ती इफ्फन के साथ हुई थी। टोपी शुक्ला व इफ़्फ़न विपरीत धर्मों के होते हुए भी अटूट व अभिन्न मित्र थे। इफ्फ़न के बिना टोपी शुक्ला की कहानी में अधूरापन लगेगा और उसे समझा नहीं जा सकेगा। दोनों की घरेलू परंपराएँ अलग-अलग होने पर भी कोई ताकत उन्हें मिलने से नहीं रोक पाई थी।

प्रश्न 2.
इफ्फन की दादी अपने पीहर क्यों जाना चाहती थीं?
उत्तर
इफ्फ़न की दादी का विवाह मौलवी से हुआ था। वे एक जमींदार की बेटी थी। अपने मायके में रहते हुए उन्होंने अपनी मरजी और खूब आजादी से खाया-पीया था। वहाँ असामियों के घर से दूध-घी की जो हांडियाँ आती थीं उनके लिए लखनऊ (अपनी ससुराल) आकर तरस जाना पड़ा। मायके जाने पर दूध-दही की फिर आजादी हो जाती थी। लखनऊ में उन्हें एक मौलविन होकर रह जाना पड़ता था, इसलिए वे अपने पीहर जाना चाहती थीं।

प्रश्न 3.
इफ्फन की दादी अपने बेटे की शादी में गाने-बजाने की इच्छा पूरी क्यों नहीं कर पाईं?
उत्तर
दादी अपने बेटे सय्यद मुरतुजा हुसैन की शादी में गाने-बजाने की इच्छा को इसलिए पूरी नहीं कर पाईं क्योंकि उनके पति कट्टर मौलवी थे जो हिंदुओं के हाथ का पका हुआ तक नहीं खाते थे। बेटे की शादी में दादी का दिल गाने-बजाने को लेकर खूब फड़फड़ाया किंतु मौलवियों के घर में गाने-बजाने की पाबंदी होती थी। इसलिए उनकी इच्छा मन में ही दबकर रह गई। बेटे की शादी के बाद मौलवी साहब की मृत्यु हो गई। इफ्फ़न बाद में पैदा हुआ था जिस कारण दादी को अब कोई डर नहीं रह गया था और उसने इफ्फ़न की छठी पर खूब नाच-गाकर जश्न मनाया था।

प्रश्न 4.
“अम्मी” शब्द सुनकर टोपी के घरवालों की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर
टोपी शुक्ला अपने मित्र इफ्फ़न के मुँह से अपनी माँ के लिए ‘अम्मी’ शब्द सुना करता था। उसके घर में अम्मी कहने सुनने पर कोई आपत्ति न थी। यह ‘अम्मी’ शब्द उसे भी अच्छा लगा। एक दिन शाम को जब मेज़ पर बैठे सभी खाना खा रहे थे तभी टोपी ने अपनी माँ से कहा, “अम्मी, जरा बैगन का भुरता।” इतना सुनते ही सभी के हाथ जहाँ के तहाँ रुक गए। यह शब्द उसने कहाँ से सीखा? यह पूछा गया। वह पुनः इफ़्फ़न के घर न जाए, ऐसा न स्वीकारने के कारण उसकी पिटाई भी की गई।

प्रश्न 5.
दस अक्टूबर सन् पैंतालीस का दिन टोपी के जीवन में क्या महत्त्व रखता है?
उत्तर
दस अक्टूबर सन् पैंतालीस वैसे तो सामान्य दिन था परंतु टोपी की जिंदगी में यह दिन विशेष महत्व रखता है। इस दिन उसके सबसे प्यारे दोस्त इफ्फ़न के पिता का तबादला हो गया था और वे सपरिवार मुरादाबाद चले गए थे। अब टोपी बिल्कुल अकेला हो गया था क्योंकि इफ्फ़न के पिता की जगह आने वाले कलेक्टर के तीनों बेटों में से किसी ने भी उसके साथ दोस्ती न की थी। इसी दिन टोपी ने कसम खाई थी कि वह ऐसे लड़के से दोस्ती नहीं करेगा जिसका पिता ऐसी नौकरी करते हो जिसमें बदली होती हो।

प्रश्न 6.
टोपी ने इफ्फ़न से दादी बदलने की बात क्यों कही?
उत्तर
टोपी की दादी नहीं चाहती थीं कि टोपी इफ्फ़न के घर आए-जाए या उसकी बोली भाषा सीखे। वे टोपी की भावनाओं की परवाह नहीं करती थी। टोपी को उनमें अपनापन नज़र नहीं आया, इसलिए वे टोपी को अच्छी नहीं लगती थी। इसके विपरीत इफ़्फ़न की दादी टोपी से पूरबी बोली में पूछती, ”तोरी अम्मा का कर रहीं…।” से बात शुरू करतीं और उसे प्यार से तरह-तरह की कहानियाँ सुनाती। ऐसा अपनापन उसे कभी भी अपनी दादी से नहीं मिल पाया था। इसलिए उसने इफ्फ़न से अपनी दादी बदलने की बात कही।

प्रश्न 7.
पूरे घर में इफ्फ़न को अपनी दादी से ही विशेष स्नेह क्यों था?
उत्तर
पूरे घर में इफ्फ़न को अपनी दादी से ही विशेष स्नेह था। यद्यपि प्यार तो उसे अपने अब्बू, अम्मी और बाजी से भी था तथापि दादी से उसे विशेष लगाव था। अब्बू तो कभी-कभी डॉट भी दिया करते थे परंतु एकमात्र दादी ही ऐसी थीं जिन्होंने उसका दिल कभी नहीं दुखाया था। दादी रात में इफ़्फ़न को प्यार से तरह-तरह की कहानियाँ सुनाया करती थीं। दादी की भाषा भी इफ्फ़न को अच्छी लगती थी। यही कारण था कि इफ्फन अपनी दादी से बहुत प्यार करता था।

प्रश्न 8.
इफ्फन की दादी के देहांत के बाद टोपी को उसका घर खाली-सा क्यों लगने लगा?
उत्तर
इफ्फ़न की दादी के देहांत के बाद उसका अपना घर खाली-सा लगा, क्योंकि उस घर में दादी के अलावा अन्य किसी से उसे अपनापन नहीं मिला। दादी ने ही उसका दुख-दर्द समझा। जिस तरह टोपी को अपने घर में भी अपनापन नहीं मिला उसी तरह इफ्फ़न की दादी भी अपनी बोली-भाषा के कारण परिवार में अलग-सी होकर रह रही थी। टोपी और दादी की मुलाकात ने एक-दूसरे का दुख समझने का अवसर दिया। इससे दोनों के बीच उम्र का, धर्म का और जाति का भेद किए बिना अटूट बंधन बँध गया। यही कारण है कि टोपी ने जब इफ़्फ़न की दादी की मृत्यु की बाते सुनी तो वह उदास हो गया और एकांत में देर तक रोता रहा।

प्रश्न 9.
टोपी और इफ्फन की दादी अलग-अलग मजहब और जाति के थे पर एक अनजान अटूट रिश्ते से बँधे थे। इस कथन के आलोक में अपने विचार लिखिए।
उत्तर
लेखक ने बताया है कि टोपी कट्टर हिंदू परिवार से संबंध रखता था तथा इफ़्फ़न की दादी मुसलमान थीं किंतु फिर भी टोपी और इफ्फन की दादी में एक अटूट मानवीय रिश्ता था। दोनों आपस में स्नेह के बंधन में बंधे थे। टोपी को इफ्फ़न के घर में अपनापन मिलता था। दादी के आँचल की छाँव में बैठकर वह स्नेह का अपार भंडार पाता था। इसके लिए रीति-रिवाज़, सामाजिक हैसियत, खान-पान आदि कोई महत्व नहीं रखता था। इफ्फन की दादी भी घर में अकेली थीं, उनकी भावनाओं को समझने वाला भी कोई न था। अतः दोनों का रिश्ता धर्म और जाति की सीमाएँ पार कर प्रेम के बंधन में बँध गया। दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरे थे। लेखक ने हमें समझाया है कि जब दिल से दिल मिल जाते हैं तो मज़हब और जाति के बंधन बेमानी हो जाते हैं। अतः स्पष्ट हो जाता है कि टोपी व इफ्फ़न की दादी अलग-अलग मज़हब और जाति के होने पर भी वे दोनों आपस में प्रेम व स्नेह की अदृश्य डोर से बँधे हुए थे।

प्रश्न 10.
टोपी नवीं कक्षा में दो बार फेल हो गया। बताइए
(क) जहीन होने के बावजूद भी कक्षा में दो बार फेल होने के क्या कारण थे?
(ख) एक ही कक्षा में दो बार बैठने से टोपी को किन भावनात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
(ग) टोपी की भावात्मक परेशानियों को मद्देनजर रखते हुए शिक्षा व्यवस्था में आवश्यक बदलाव सुझाइए।
उत्तर

  1. टोपी एक जहीन लड़का था, फिर भी वह दसवीं में दो साल फेल हो गया। इसके दो मुख्य कारण थे
    • घर के सदस्य टोपी से अपना-अपना काम करवाते थे। इससे उसे पढ़ने का अवसर न मिला।
    • दूसरे साल वह टाइफ़ाइड होने के कारण पढ़ाई न कर सका।
  2. एक ही कक्षा में दो बार बैठने पर टोपी को अनेक भावनात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उसके साथ पढ़ने वाले साथी छात्र अगली कक्षा में चले गए। पिछली कक्षा से आने वाले छात्रों को वह अपना मित्र न बना सका जिनसे खुलकर वह बातचीत कर सके। कक्षा के अध्यापक भी बात-बात पर उसका मजाक उड़ाते थे। वे उसकी तरफ़ ध्यान नहीं देते थे। जिस प्रश्न का उत्तर उसे आता भी रहता, उसे न बताने देते। मौका मिलते ही कक्षा के छात्र उसका मजाक उड़ाते इससे टोपी अपमानित महसूस करता और अपनी बातें न कह पाता।
  3. टोपी की भावनात्मक परेशानियों को ध्यान में रखने से ज्ञात होता है कि शिक्षा व्यवस्था में कुछ कमियाँ हैं, जिनमें सुधार करना अत्यावश्यक है। इसके लिए कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं-
    • छात्रों की प्रगति का आधार केवल वार्षिक परीक्षा को ही न बनाया जाए।
    • छात्रों की परीक्षा साल में तीन-चार बार कराई जानी चाहिए।
    • छात्रों की पाठ्य सहगामी क्रियाओं, उनकी रुचियों, व्यवहार आदि का भी मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
    • छात्र के पिछली कक्षा के परिणाम को भी ध्यान में रखकर उसे फेल करने का फैसला करना चाहिए।

प्रश्न 11.
इफ्फन की दादी के मायके को घर कस्टोडियन में क्यों चला गया?
उत्तर
कस्टोडियन का अर्थ ऐसे विभाग से है जो ऐसी संपत्ति को संरक्षण देता है जिस संपत्ति पर किसी का कोई मालिकाना हक नहीं होता। जब इफ्फ़न की दादी की मृत्यु निकट थी तो उनकी स्मरण-शक्ति समाप्त-सी हो गई। उन्हें यह भी याद न रहा कि अब उनका घर कहाँ है। उनके सारे घरवाले कराची में रह रहे थे। इसलिए जब उनके घर का कोई ‘चारिस न रहा तो उनके मायके का घर कस्टोडियन में चला गया।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न 1.
झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?
उत्तर
झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक कुछ इस तरह सम्मोहित कर रहा था कि जिसे देखकर लेखिका हैरान थी। उसे लग रहा था कि आसमाने उलट पड़ा हो और सारे तारे नीचे बिखर कर टिमटिमा रहे हैं। दूर ढलान लेती तराई पर सितारों के गुच्छे रोशनियों की झालर-सी बना रहे हैं।

प्रश्न 2.
गंतोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर’ क्यों कहा गया है?
उत्तर
गंतोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर’ इसलिए कहा गया है कि यहाँ के लोगों को अत्यंत परिश्रम करते हुए यहाँ जीवनयापन करना पड़ता है। औरतें पत्थरों पर बैठी पत्थर तोड़ती हैं। उनके हाथों में कुदाल और हथौड़े तथा पीठ पर बँधी डोको (बड़ी टोकरी) में उनके बच्चे भी बँधे रहते हैं। वे भरपूर ताकत के साथ कुदाल को जमीन पर मारकर काम करती हैं। ऐसे कार्य करते हुए कई बार वे अपने प्राणों को गवाँ बैठती हैं। बच्चों को तीन-चार किलोमीटर की चढ़ाई चढ़कर स्कूल जाना पड़ता है। अधिकांश बच्चे शाम के समय अपनी-अपनी माँ के साथ मवेशियों को चराते हैं, पानी भरते हैं तथा जंगल से लकड़ियों के गट्ठर ढोते हैं। ऐसा परिश्रम करने के बाद भी वे सभी खुश रहते हैं।

प्रश्न 3.
कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?
उत्तर
‘यूमथांग’ शहर के आसपास किसी पवित्र स्थान पर दो तरह की पताकाएँ लगाई जाती हैं-पहली शांति और अहिंसा की प्रतीक मंत्र लिखी श्वेत पत्रकाएँ, दूसरी शुभ कार्य की रंगीन पताकाएँ।

  1. यहाँ मान्यता के अनुसार किसी बौद्ध धर्म के अनुयायी की मृत्यु होने पर उसकी आत्मा की शांति के लिए शहर से दूर किसी पवित्र स्थान पर 108 श्वेत पताकाएँ फहरा दी जाती हैं।
  2. इसी प्रकार नए कार्य की शुरूआत में रंगीन पताकाएँ लगाई जाती हैं। इन पताकाओं को उतारा नहीं जाता है। ये धीरे-धीरे अपने-आप नष्ट हो जाती हैं।

प्रश्न 4.
जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जन-जीवन के बारे में क्या महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दीं; लिखिए।
उत्तर
जितेन नार्गे ने लेखिका एवं अन्य सैलानियों को सिक्किम के बारे में अनेक महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दीं। वह लेखिका के साथ ड्राइवर-कम-गाइड का कार्य कर रहा था जो जीप चलाते हुए जानकारियाँ दे रहा था। वह एक कुशल ड्राइवर होने के साथ-साथ गाइड भी था जिसे गंतोक के बारे में नई-पुरानी तथा पौराणिक अनेक जानकारियाँ कंठस्थ थीं। उसने लेखिका को बताया कि सिक्किम पूर्वोत्तर भारत का पहाड़ी इलाका है जहाँ जगह-जगह पाईन और धूपी के खूबसूरत पेड़ हैं। यहाँ के अविरल बहते झरने जगह-जगह फूलों के चादर से ढंकी वादियाँ, बरफ़ीली चोटियाँ आदि का अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य बरबस लोगों को चित्त अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। इसके अलावा गुरुनानक के फुट प्रिंट, चावल बिखरने, कुटिया में प्रेयर ह्वील घुमाने से पाप धुल जाने, प्रियुता और रुडोडेंड्रो के फूलों के खिलने की जानकारी के अलावा पहाड़ी लोगों के परिश्रम भरे जीवन की जानकारी भी दी।

प्रश्न 5.
लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक सी क्यों दिखाई?
उत्तर
जितेन नार्गे कवी-लौंग स्टॉक के बारे में परिचय दे रहा था। उसी रास्ते पर एक कुटिया में घूमता एक चक्र देखा जिसके बारे में बताया-यह धर्म चक्र है-प्रेअर व्हील । इसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। जितेन की यह बातें सुन लेखिका को लगा-चाहे मैदान हो या पहाड़, तमाम वैज्ञानिक प्रगतियों के बावजूद इस देश की आत्मा एक जैसी है। लोगों की आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वास, पाप-पुण्य की आवधारणाएँ और कल्पनाएँ एक जैसी हैं।

प्रश्न 6.
जितेन नार्गे की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए लिखिए कि एक कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं?
उत्तर
जितेन नार्गे की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करने से यह पता चलता है कि एक गाइड में निम्नलिखित गुण होते हैं-

  • एक कुशल गाइड में अपने क्षेत्र की भौगोलिक जानकारी होती है।
  • उसमें उस क्षेत्र विशेष से जुड़ी जनश्रुति, दंतकथा आदि की जानकारी होती है ताकि पर्यटकों को ऊबन न होने पाए।
  • उसमें वाक्पटुता और व्यवहार कुशलता के अलावा विनम्रता होती है।
  • एक कुशल गाइड मृदुभाषी एवं सहनशील होता है।
  • वह गाइड होने के साथ-साथ ड्राइवर भी होता है ताकि आवश्यकता पड़ने पर गाड़ी भी चला सके।
  • वह साहसी तथा उत्साही होता है जो खतरों का सामना करने से नहीं डरता है।

प्रश्न 7.
इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
लेखिको बालकनी से हिमालय की तीसरी सबसे बड़ी चोटी कंचनजंघा के दर्शन करना चाहती थी किंतु हल्के बादलों से आसमान घिरा होने के कारण कंचनजंघा नहीं देख सकी।

आगे बढ़ने पर हिमालय बड़ा होते-होते विशालकाय होने लगा। भीमकाय पर्वतों के बीच से निकलते हुए ऐसा लगता था कि किसी सघन हरियाली वाली गुफा के बीच हिचकोले खाते निकल रहे हैं। लेखिका कभी पर्वतों के शिखरों को देखती तो कभी ऊपर से दूध की धार की तरह झर-झर गिरते जल प्रपातों को देखती। कभी नीचे चिकने-चिकने गुलाबी पत्थरों के बीच इठलाकर बहती चाँदी की तरह कौंध मारती बनी ठनी तिस्ता नदी को।

उसने खूब ऊँचाई से पूरे वेग के साथ ऊपर शिखरों के भी शिखर से गिरता फेन उगलता झरना देखा, जिसका नाम था-‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल ।’ रात के गहराते। अँधेरे में ऐसा लगता था कि हिमालय ने काला कंबल ओढ़ लिया हो।

प्रश्न 8.
प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है?
उत्तर
प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका मंत्रमुग्ध सी हो जाती है। उसे प्रकृति अत्यंत रहस्यमयी और मोहक लगती है। वह इस सौंदर्य को किसी बुत-सी ‘माया’ और ‘छाया’ के खेल की तरह देखती रह जाती है। ऐसा लगता। है जैसे प्रकृति लेखिका को नासमझ जानकर अपना परिचय देती हुई जीवन के विभिन्न रहस्यों से परिचित करा रही हो। ताकि लेखिका जीवन के रहस्यों से परिचित हो सके।

प्रश्न 9.
प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी हुई लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए?
उत्तर
प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी हुई लेखिका के हृदय जो दृश्य झकझोर गए-वे इस प्रकार हैं-

  1. अवितीय सौंदर्य से निरपेक्ष कुछ पहाड़ी औरतें पत्थरों पर बैठी पत्थर तोड़ रही थीं। गुँथे आटे-सी कोमल काया परंतु हाथों में कुदाल और हथौड़े। स्वर्गिक सौंदर्य के बीच भूख, मौत, दैन्य और जिंदा रहने की यह जंग।
  2. दूर-दूर से तराई के स्कूल में जाते वे बच्चे, जो सिर्फ पढ़ते ही नहीं हैं अपितु अधिकांश बच्चे शाम के समय माँओं के साथ पशु चराते हैं, पानी भरते हैं, जंगल से लकड़ियों के भारी गट्ठर भी ढोते हैं। पहाड़ों के सौंदर्य के बीच इतना परिश्रमपूर्ण जीवन ।।
  3. सूरज ढलने के समय कुछ पहाड़ी औरतें गायों को चराकर वापस लौट रही थीं। कुछ के सिर पर लकड़ियों के भारी-भरकम गट्ठर थे।
  4. चाय के बागानों में बोकु पहने युवतियाँ चाय की पत्तियाँ तोड़ रही थीं। उपर्युक्त दृश्य लेखिका को झकझोर गए।

प्रश्न 10.
सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटी का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान है, उल्लेख करो।
उत्तर
सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा की अनुभूति करवाने में अनेक लोगों का योगदान होता है; जैसे-

  • वाहन चालक और परिचालकों का, जो पर्यटकों को मनोरम स्थानों पर ले जाते हैं।
  • गाइड का, जो पर्यटकों को विभिन्न जानकारियाँ देकर ज्ञानवर्धन एवं मनोरंजन करते हैं।
  • खाद्य वस्तुएँ एवं अन्य सुरक्षा के उपकरण बेचने वालों को, जो पर्यटकों की क्षुधा शांत करने के अलावा स्वादानुभूति करवाते हैं।
  • कैमरा, जूते, छड़ी, दूरबीन आदि किराए पर उपलब्ध करवाने वालों का, जो पर्यटकों की यात्रा को यादगार बनाते हैं।
  • सड़क बनाने, बोझा ढोने में लगे मजदूरों का, जिनकी मदद से उन दुर्गम स्थानों तक पहुँचा जाता है।
  • राज्य सरकार के सुरक्षाकर्मियों का, जो हमें भयमुक्त यात्रा का अवसर देते हैं।

प्रश्न 11.
“कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं।” इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?
उत्तर
एक स्थान पर पहाड़िने सड़कें बनाने के लिए पत्थर तोड़ रही थीं। पहाड़ों पर रास्ता बनाना कितना दुस्साध्य है, जरा सी चूक और सीधे पाताल में प्रवेश, पीठ पर बच्चे को बाँधकर पत्तों की तलाश में वन-वन डोलती आदिवासी युवतियाँ। उन आदिवासियों के फूले हुए पाँव और इन पत्थर तोड़ती पहाड़िनों के हाथों में पड़े गाँट, ये देश की आम जनता ही नहीं, जीवन का संतुलन भी हैं। ‘वेस्ट एट रिपेईंग’ है।

इस आधार पर कहा जा सकता है कि देश की प्रगति का आधार यही आम जनता है जिसके प्रति सकारात्मक, आत्मीय भावना भी नहीं होती है। यदि यही जनता अपने हाथ खड़े कर दे तो देश की प्रगति का पहिया एक दम ब्रेक लगने जैसे रुक जाएगा। दूसरी ओर इन्हें ही इतना कम मिलता है कि अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते हैं।

प्रश्न 12.
आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है? इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए?
उत्तर
आज की युवा पीढ़ी को अपने मनोरंजन एवं सुख की चिंता है। यह प्रकृति से दूरी बनाकर रखता है जिससे वह प्रकृति की उपेक्षा करती है। वह इस बात को भी भूल जाता है कि उसका जीवन प्रकृति की कृपा पर आश्रित है। आज की पीढ़ी पर्वतीय स्थानों, नदी-झील के तट तथा प्रकृति के अन्य रमणीय स्थलों को अपना पर्यटन एवं मनोरंजन स्थल बना रही है। इससे वहाँ एक ओर गंदगी बढ़ रही है तो दूसरी ओर तापमान में वृद्धि हो रही है। इसे रोकने के लिए-

  • पर्यटन स्थलों पर किसी भी प्रकार का खाली पैकेट, अवशिष्ट खाद्य पदार्थ तथा कूड़ा-करकट नहीं फेंकना चाहिए।
  • इन स्थानों पर लगे कूड़ेदान का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
  • इन जगहों पर कागज या अन्य अनुपयोगी पदार्थ जलाना नहीं चाहिए।
  • यथासंभव यहाँ तक पहुँचने के लिए सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 13.
प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का जिक्र किया गया है। प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं? लिखें।
उत्तर
लेखिका लायुग में बर्फ देखने की इच्छा सँजोए है कि लायुंग में बर्फ देखने को मिल जाएगी, लेकिन वहीं घूमते हुए एक सिक्किम युवक उसकी इच्छा पर यह कहकर पानी

फेर देता है कि बढ़ते हुए प्रदूषण के कारण स्नो-फॉल भी कम होता जा रहा है। अब बर्फ ‘कटाओ’ में मिलेगी। अतः स्नो-फॉल न होना बढ़ते प्रदूषण का दुष्परिणाम है। इस तरह प्रदूषण के अनेक दुष्परिणाम सामने हैं-

  1. अंटार्टिका की बर्फ निरंतर पिघल रही है, जिसके कारण समुद्र का जल-स्तर बढ़ता जा रहा है, धरती की सीमाएँ डूबने लगी हैं।
  2. नदियों में पानी की मात्रा में इतनी कमी हो रही है, जिसे देखकर नदियों के सूखने की आशंका होने लगी है।
  3. नदियों का जल बहुत प्रदूषित हो गया है, जिससे जलीय-जंतुओं का जीवन खतरे | में पड़ गया है।
  4. पेड़ कटने से कार्बन-डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन का संतुलन बिगड़ गया है, जिससे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है।
  5. मौसम चक्र बदल गया है, जिससे पैदावार घट रही है। प्राकृतिक आपदाओं ने जोर पकड़ लिया है।

प्रश्न 14.
‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए।
उत्तर
कटाओ, सिक्किम का अत्यंत खूबसूरत और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थान है। यह अत्यंत ऊँचाई पर बसा दुर्गम स्थान है, जहाँ बरफ़ मिलने की संभावना सर्वाधिक रहती है। लेखिका जब कटाओ पहुँची तो उसे घुटने भर बरफ़ मिली। वह बरफ़ पर लेटना चाहती थी, पर वहाँ कोई दुकान न थी। यदि दुकान होती तो वहाँ व्यापारिक गतिविधियाँ बढ़ जाती और लोग खान-पान का अपशिष्ट एवं अवशिष्ट सामान छोड़ते तथा वहाँ वाहनों का आवागमन बढ़ता जिससे प्रदूषण तथा तापमान बढ़ जाता और वहाँ भी बरफ़ मिलने की संभावना समाप्त हो जाती तथा पर्यटकों को निराश लौटना पड़ता। इस प्रकार कटाओ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है।

प्रश्न 15.
प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है?
उत्तर
प्रकृति के द्वारा जल-संचय की व्यवस्था हिम शिखरों के रूप में अद्भुत ढंग से की गई है। प्रकृति सर्दियों में बर्फ के रूप में जल-संग्रह कर लेती है और गर्मियों में पानी के लिए जब त्राहि-त्राहि मचती है तो ये बर्फ शिलाएँ पिघल-पिघलकर जलधारा बन हमारे सूखे कंठों को तरावट पहुँचाती है। कितनी अद्भुत व्यवस्था है जल संचय की।

इस प्रकार प्रकृति के द्वारा जल संचय की व्यवस्था है कि पहाड़ों पर जाड़े में बर्फ के पहाड़ बन जाते हैं और यही हिम-शिखर पिघलकर नदियों के द्वारा कृषि की, लोगों की और धरती की प्यास बुझाते हैं।

प्रश्न 16.
देश की सीमा पर बैठे फौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए?
उत्तर
देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में देश की रखवाली करते हुए अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हैं। वे ऐसे निर्जन, दुर्गम एवं बीहड़ स्थानों पर रहकर अपना कर्तव्य निर्वाह करते हैं जहाँ हर समय मौत का साया मँडराता रहता है। प्राकृतिक परिस्थितियाँ भी पूर्णतया प्रतिकूल होती हैं। ठंड इतनी कि पेट्रोल के सिवा सब कुछ जम जाता है। देश और देशवासियों के लिए जान लुटाने को तत्पर इन फ़ौजियों के प्रति हमारा उत्तरदायित्व यह होना चाहिए कि-

  • हम उनके प्रति सम्मान एवं आदर भाव रखें।
  • उनकी कर्तव्यनिष्ठा एवं देशभक्ति पर उँगली न उठाए।
  • उनके परिवार की सुख-सुविधाओं का सदैव ध्यान रखें।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 1 साखी

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?
उत्तर
मीठी वाणी जीवन में आत्मिक सुख व शांति प्रदान करती है। इसके प्रयोग से संपूर्ण वातावरण सरस व सहज बन जाता है। यह सुननेवाले के मन को प्रभावित व आनंदित करती है। इसके प्रभाव से मन में स्थित शत्रुता, कटुता वे आपसी ईष्र्या-द्वेष के भाव समाप्त हो जाते हैं। मीठी वाणी बोलने से सुननेवालों को शांति प्राप्त होती है। इसलिए हमें ऐसी वाणी बोलनी चाहिए कि जिसे सुनकर लोग आनंद की अनुभूति करें। हम मीठी वाणी बोलकर अपने शरीर को भी शीतलता पहुँचाते हैं। कठोर वाणी हमें क्रोधित व उत्तेजित करती है। मीठी वाणी अहंकारशून्य होने के कारण तन को शीतलता प्रदान करती है तथा आनंद की सुखद अनुभूति कराती है। इस प्रकार मीठी वाणी बोलने से न केवल दूसरों को हम सुख प्रदान करते हैं अपितु स्वयं भी शीतलता का अनुभव करते हैं।

प्रश्न 2.
दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
साखी के संदर्भ में ‘दीपक ज्ञान रूपी प्रकाश का प्रतीक है। जिस प्रकार दीपक का प्रकाश अंधकार को मिटा देता है, उसी प्रकार से जब ईश्वरीय ज्ञान की लौ दिखाई देती है, तब अज्ञान रूपी अंधकार मिट जाता है और मनुष्य के भीतर-बाहर ज्ञान का प्रकाश फैल जाता है। ज्ञान का प्रकाश तभी प्रज्वलित होता है, जब मनुष्य का ‘अहम्’ नष्ट हो जाता है और परमात्मा से उसका साक्षात्कार हो जाता है।

प्रश्न 3.
ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
उत्तर
ईश्वर संसार के कण-कण में व्याप्त है परंतु हम उसे देख नहीं पाते, क्योंकि हमारा अस्थिर मन सांसारिक विषय-वासनाओं, अज्ञानता, अहंकार और अविश्वास से घिरा रहता है। अज्ञान के कारण हम ईश्वर से साक्षात्कार नहीं कर पाते। जिस प्रकार कस्तूरी नामक सुगंधित पदार्थ हिरण की नाभि में विद्यमान होता है लेकिन वह उसे जंगल में इधर-उधर ढूँढ़ता रहता है उसी प्रकार ईश्वर हमारे हृदय में निवास करते हैं परंतु हम उन्हें अज्ञानता के कारण मंदिरों, मस्जिदों, गिरिजाघरों व गुरुद्वारों में व्यर्थ में ही खोजते फिरते हैं। कबीर के मतानुसार कण-कण में छिपे परमात्मा को पाने के लिए ज्ञान का होना अत्यंत आवश्यक है।

प्रश्न 4.
संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
संसार में सुखी वही व्यक्ति है, जिसने घट-घट और कण-कण में बसने वाले ईश्वर से प्रीति कर ली है, उसके तत्व ज्ञान को जान और मान लिया है। दुखी मनुष्य वह है, जो दिन में खाकर और रात में सोकर हीरे जैसे अनमोल जीवन साखी 5 को व्यर्थ गॅवाकर भौतिक सुखों की चकाचौंध में खोया हुआ है। यहाँ जो व्यक्ति संसार के विषयों से अनासक्त होकर ईश्वर में मन को लगाए हुए है, वह ‘जागना’ का प्रतीक है और जो व्यक्ति विषय-विकारों में मस्त है, भौतिक दृष्टि से उसकी आँखें बेशक खुली हुई हैं, पर वास्तव में वह सोया हुआ है, अर्थात् ‘सोना’ का प्रतीक है।

प्रश्न 5.
अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर
स्वभाव की निर्मलता के लिए आवश्यक है कि मनुष्य का मन निर्मल हो । मन तभी निर्मल रह सकता है जब हम उसे विकारों से मुक्त रखेंगे। इसके लिए आवश्यक है कि हम बुरे काम न करें। इसके लिए कबीर ने यह उपाय सुझाया है कि हमें सदा निंदक अर्थात आलोचना करनेवाले को सम्मान सहित आँगन में कुटी बनाकर रखना चाहिए। क्योंकि उन्हें यह विश्वास है कि निंदक ही वह प्राणी है जो मनुष्य की गलतियों को सुधारने का अवसर देता है। जिससे मनुष्य के स्वभाव में निर्मलता का भाव उत्पन्न होता है।

प्रश्न 6.
एकै अषिर पीव का, पढ़े सु पंडित होइ’-इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर
इस पंक्ति के द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि ईश्वर को पाने के लिए तो उसके नाम, भक्ति और प्रेम का एक अक्षर पढ़ लेना ही बड़े-बड़े वेदों तथा ग्रंथों को पढ़ने के समान है। पंडित बनने के लिए ईश्वर के नाम के एक अक्षर को गहराई से समझकर हृदय में आत्मसात् कर लेना पर्याप्त है। पुस्तकीय ज्ञान द्वारा व्यक्ति द्वंद्व, विवाद एवं वैचारिक मतभेदों में फँस जाता है।

प्रश्न 7.
कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कबीर जी द्वारा रचित इन साखियों की भाषा सधुक्कड़ी है। इसमें अवधी, ब्रज, खड़ी बोली, पूर्वी हिंदी तथा पंजाबी के शब्दों का सुंदर प्रयोग हुआ है। कबीर की भाषा में देशज शब्दों का भी प्रयोग मिलता है। कवि ने अपनी बात कहने के लिए साखी को अपनाया है। यह वस्तुतः दोहा छंद है। इनमें अत्यंत सामान्य भाषा में लोक व्यवहार की शिक्षा दी गई है। इनमें मुक्तक शैली का प्रयोग हुआ है तथा गीति तत्व के सभी गुण विद्यमान है। भाषा सहज तथा मधुर है। भाषा में अनुप्रास, रूपक पुनरुक्ति प्रकाश, उदाहरण व दृष्टांत अलंकार प्रयुक्त है। अपनी चमत्कारी भाषा के कारण कबीर जगत् प्रसिद्ध हैं।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए

प्रश्न 1.
विरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।
उत्तर
विरह-व्यथा विष से भी अधिक मारक है, दारुण है। इस व्यथा का वर्णन शब्दों द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता। यह केवल अनुभूति का विषय है। सर्प और विष का उदाहरण देते हुए कवि ने राम वियोगी की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है। कबीर के अनुसार विरह सर्प की भाँति है। विरह-विष तन में व्याप्त है। कोई मंत्र (झाड़-फॅक) इस विष को मार नहीं सकता है। राम का वियोगी-विरह व्यथा में मरता है अगर जीता है तो बावला हो जाता है।

प्रश्न 2.
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूंढे बन मॉहि।
उत्तर
मनुष्य के घट (शरीर) में ही परमात्मा का वास है अर्थात् शक्ति का स्त्रोत हमारे भीतर है पर इसके प्रति हमारा विश्वास नहीं। हम उसे बाहर कर्मकांड आदि में ढूंढते हैं अपने भीतर ढूंढने का यत्न नहीं करते। यही भ्रम है-यही भूल है, मृग जैसी हमारी दशा है। उसकी नाभि में ही कस्तूरी है पर उसे उसका बोध नहीं और उस सुगंध की खोज में वह स्थान-स्थान पर भटकता फिर रहा है।

प्रश्न 3.
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नॉहि।
उत्तर
कबीर के अनुसार जब तक मैं अर्थात् अहंकार को भाव मन में था तब तक वहाँ ईश्वर का वास नहीं था। केवल मन में अज्ञान रूपी अंधकार ही समाया हुआ था। जब ज्ञान दीपक में स्वयं के स्वरूप को पहचाना तब मन में छाया अज्ञान दूर हो गया। मन निर्मल हो गया। मन निर्मल हो ईश्वर से अभिन्नता का अनुभव करने लगा।

प्रश्न 4.
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भयो ने कोइ।
उत्तर
कबीर प्रेम मार्ग की श्रेष्ठता पर बल देते हुए कहते हैं कि शास्त्र पढ़-पढ़कर सारा संसार नष्ट होता जा रहा है। युग बीतते जा रहे हैं लेकिन कौन सच्चे अर्थों में पंडित या विद्वान बन पाया? किसने वह अलौकिक आनंद प्राप्त किया जो प्रेम से मिलता है। कबीर की दृष्टि से जिसने प्रेम के दो अक्षरों को जान लिया है। वही विद्वान है, पंडित है। प्रेम हृदय का भाव है और पढ़ना मस्तिष्क का । प्रेम के मार्ग में पढ़ाई साधक भी हो सकती है और बाधक भी।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप उदाहरण के अनुसार लिखिए-
उदाहरण-जिवै – जीना
औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणी, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास
उत्तर
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 1 1

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न 1.
हमारी आजादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस कहानी में लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है?
उत्तर
यद्यपि हमारी आजादी की लड़ाई में सभी वर्गों का योगदान रहा है। उनमें समाज में उपेक्षित समझे जाने वाले वर्ग का भी योगदान कम नहीं रहा। पाठ के पात्र टुन्नू और दुलारी दोनों ही कजली गायक हैं। दोनों ने आजादी के समय आंदोलन में अपनी सामर्थ्य के अनुसार भरपूर योगदान दिया है।

टुन्नू : टुन्नू सोलह-सत्रह वर्ष का संगीत प्रेमी बालक है। वह खद्दर का कुर्ता पहनता था और सिर पर गाँधी टोपी लगाता था। उसने दुलारी को भी गाँधी आश्रम में बनी खद्दर की साड़ी उपहार स्वरूप दी थी, वह विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार करने वालों के जुलूस में शामिल था जहाँ उसे अली सगीर ने अपने बूट से ऐसी ठोकर मारी कि वह अपनी जान से हाथ धो बैठा। इस तरह उसने अपना बलिदान दे दिया।

दुलारी : दुलारी भी टुन्नू की तरह कजली गायिका है। विदेशी वस्त्रों का संग्रह करने वाली टोली को चादर, कोरी धोतियों का बंडल दे देती है। वह टुन्नू दूद्वारा दी गई गाँधी आश्रम की धोती को सगर्व पहनती है। वह पुलिस के मुखबिर फेंकू की झाड़ से पिटाई करती है। लेखक ने इस तरह समाज से उपेक्षित लोगों के योगदान को स्वतंत्रता के आंदोलन में महत्त्वपूर्ण माना है।

प्रश्न 2.
कठोर हृदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उटी?
उत्तर
दुलारी समाज के उपेक्षित वर्ग से संबंध रखने वाली कजली गायिका थी। समाज के कुछ लोगों की लोलुप नज़रों से बचने के लिए उसका कठोर हृदयी होना भी आवश्यक था। इसके अलावा समय और समाज के थपेड़ों ने भी दुलारी को कठोर बना दिया। इसी बीच टुन्नू से मुलाकात, उसकी देशभक्ति और उसके निश्चल प्रेम ने दुलारी के हृदय की कठोरता को करुणा में बदलने पर विवश कर दिया। दुलारी ने जान लिया था कि टुन्नू का प्रेम उसकी आत्मा से है, शरीर से नहीं। दुलारी अपने प्रति टुन्नू के प्रेम से अनभिज्ञ नहीं थी, इसलिए कठोर हृदयी दुलारी उसकी मृत्यु पर विचलित हो उठी।

प्रश्न 3.
कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा? कुछ परंपरागत लोक आयोजनों का उल्लेख कीजिए?
उत्तर
कजली गन्न भी अन्य मनोरंजक आयोजनों की तरह होता है। इसमें दो टन इकटे होकर गायन-प्रतियोगिता करते हैं और अलग-अलग भावों में व्यंग्य-शैली अपनाते हुए एक-दूसरे के सवालों का जवाब देने के साथ प्रश्न भी कर देते हैं। यह सिलसिला काफी देर तक चलता रहता है। वाह-वाह करने के लिए दोनों दलों के साथ संगतकार होते हैं। स्वतंत्रता से पहले लोगों में देश-प्रेम की भावना उत्पन्न करना, लोगों को उत्साहित  रना, प्रचार करना इन दंगलों के मुख्य कार्य थे।
कजली दंगल की तरह समाज में कई अन्य प्रकार के दंगल किए जाते हैं; जैसे-

  1. रसिया-दंगल : यह ब्रज-क्षेत्र में अधिक प्रचलित है।
  2. रागिनी-दंगल : यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में अधिक प्रचलित है।
  3. संकीर्तन-दंगल : जहाँ-तहाँ संपूर्ण भारत में इसकी परंपरा है।।
  4. पहलवानों का कुश्ती-दंगल : यह दंगल भी संपूर्ण भारत में होता है।

प्रश्न 4.
दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक, सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अति विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अपनी विशिष्टताओं जैसे-कजली गायन में निपुणता, देशभक्ति की भावना, विदेशी वस्त्रों का त्याग करने जैसे कार्यों से अति विशिष्ट बन जाती है। दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. कजली गायन में निपुणता-दुलारी दुक्कड़ पर कजली गायन की जानी पहचानी गायिका है। वह गायन में इतनी कुशल है कि अन्य गायक उसका मुकाबला करने से डरते हैं। वह जिस पक्ष में गायन के लिए खड़ी होती है, वह पक्ष अपनी जीत सुनिश्चित मानता है।
  2. स्वाभिमानी-दुलारी भले ही गौनहारिन परंपरा से संबंधित एवं उपेक्षित वर्ग की नारी है पर उसके मन में स्वाभिमान की उत्कट भावना है। फेंकू सरदार को झाड़ मारते हुए अपनी कोठरी से बाहर निकालना इसका प्रमाण है।
  3. देशभक्ति तथा राष्ट्रीयता की भावना-दुलारी देशभक्ति एवं राष्ट्रीयता की भावना के कारण विदेशी साड़ियों का बंडल होली जलाने वालों की ओर फेंक देती है।
  4. कोमल हृदयी-दुलारी के मन में टुन्नू के लिए जगह बन जाती है। वह टुन्नू से प्रेम करने लगती है। टुन्नू के लिए उसके मन में कोमल भावनाएँ हैं।
    इस तरह दुलारी का चरित्र देश-काल के अनुरूप आदर्श है।

प्रश्न 5.
दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस प्रकार हुआ?
उत्तर
भादों की तीज पर खोजवाँ और बजरडीहा वालों के बीच कजली दंगल हो रहा था। उस समय दुक्कड़ पर गाने वालियों में दुलारी की महती ख्याति थी। उसमें पद्य में सवाल-जवाब करने की अद्भुत क्षमता थी। खोजवाँ वाले दुलारी के अपनी ओर होने से अपनी जीत के लिए आश्वस्त थे। दूसरी ओर बजरडीहा वाले अपनी ओर से टुन्नू को लाए थे। उसने भी पद्यात्मक शैली में प्रश्न-उत्तर करने में कुशलता प्राप्त की थी। टुन्नू दुलारी की ओर हाथ उठाकर चुनौती के रूप में ललकार उठा। दुलारी मुसकुराती हुई मुग्ध होकर सुनती रही। यहीं पर गायक के रूप में दुलारी और टुन्नू का परिचय हुआ।

प्रश्न 6.
दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था-“तै सरबला बोल जिन्नगी में कब देख ले लोट?…” दुलारी के इस आक्षेप में आज के युवावर्ग के लिए क्या संदेश | छिपा है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कजली की सुप्रसिद्ध गायिका दुलारी को खोजवाँ बाजार में गाने के लिए बुलाया गया था। इसी दंगल में जब उसकी गायिकी का जवाब देने टुन्नू नामक एक किशोर उठ खड़ा हुआ और अपने गीतों से दुलारी को माकूल जवाब दिया तो दुलारी ने गीत के माध्यम से कहा, “तें सरबउला बोल जिन्नगी में कब देखले लोट?..। उसका यह आक्षेप मुख्य रूप से टुन्नू के लिए था जिसका बाप घाटों पर पूजा पाठ करके जीवन की गाड़ी खींच रहा था। दुलारी के इस कथन में आज के युवाओं के लिए निहित संदेश है-

  1. युवाओं को अपने लक्ष्य पर ध्यान देना चाहिए गाने बजाने पर नहीं।
  2. युवा अपनी यथार्थ स्थिति को ध्यान में रखकर ही कल्पना की दुनिया में हुए।
  3. युवा रचनात्मक कार्यों से विमुख न हों तथा समाजोपयोगी काम करें।
  4. युवा अपने कार्यों से माता-पिता की प्रतिष्ठा और इज्ज़त दाँव पर न लगाएँ।

प्रश्न 7.
भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपना योगदान किस प्रकार दिया?
उत्तर
भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपनी सामर्थ्य और सोच से अधिक योगदान दिया । दुलारी एक सामान्य महिला थी। जब देश के दीवानों का दल विदेशी वस्त्रों का संग्रह कर रहा था तब दुलारी ने मुँचेस्टर और लंका-शायर के मिलों की बनी बारीक सूत की मखमली किनारी वाली नयी कोरी धोतियों के बंडल को अनासक्त भाव से फेंक कर आंदोलन में योगदान दिया। देश के दीवानों की टोली में सम्मिलित हुए टुन्नू की मृत्यु पर टुन्नू की ही दी हुई गाँधी आश्रम की धोती को पहन कर उसने उसके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की।

इसी प्रकार टुन्नू भी देश के दीवारों की टोली में शामिल होकर आंदोलन में अपनी भूमिका निभाता है और अपना बलिदान दे देता है। इस प्रकार उसका बलिदान भी लोगों को देश-प्रेम के लिए प्रेरणा देता है। इस तरह दोनों का योगदान सराहनीय है।

प्रश्न 8.
दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी। यह प्रेम दुलारी को देश-प्रेम तक कैसे पहुँचाता है?
उत्तर
दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी। एक ओर दुलारी कजली की प्रसिद्ध गायिका थी वहीं टुन्नू भी उभरता हुआ युवा गायक था। दोनों की प्रथम मुलाकात कजली दंगल में हुई थी। उन्होंने अपनी कला के माध्यम से एक दूसरे पर जहाँ व्यंग्य किया, वहीं एक-दूसरे का सम्मान भी। टुन्नू के मन में अपने प्रति छिपा आकर्षण दुलारी ने महसूस कर लिया था पर यह प्रेम मुखरित न हो सका था। विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार करने के कारण जब टुन्नू की हत्या कर दी जाती है और यह बात दुलारी को पता चलती है तो वह शोक प्रकट करने खादी की सूती साड़ी पहनकर जाती है। टुन्नू के प्रति यह प्रेम इस तरह देश प्रेम में बदल जाता है।

प्रश्न 9.
जलाए जाने वाले विदेशी वस्त्रों के ढेर में अधिकांश वस्त्र फटे-पुराने थे परंतु दुलारी द्वारा विदेशी मिलों में बनी कोरी साड़ियों को फेंका जाना उसकी किस मानसिकता को दर्शाता
उत्तर
आज़ादी के दीवानों की एक टोली जलाने के लिए विदेशी वस्त्रों का संग्रह कर रही थी। अधिकतर लोग फटे-पुराने वस्त्र फेंक रहे थे। उनमें देश-प्रेम कम दिखावे का भाव अधिक था, किंतु बिना किसी मोह के विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करते हुए दुलारी ने विदेश की बनी उन साड़ियों को फेंक दिया जिनकी अभी तह तक नहीं खुली थी। उसके मन में देश-प्रेम की भावना पूर्णरूपेण अपनी जगह बना चुकी थी। उसका विदेशी वस्त्रों के प्रति मोह समाप्त हो चुका था। जिस रास्ते पर टुन्नू चल रहा था उस पर चलकर
उसने टुन्नू के प्रति आत्मीय स्नेह को स्पष्ट किया।

प्रश्न 10.
“मन पर किसी का बस नहीं, वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।” टुन्नू के इस | कथन में उसका दुलारी के प्रति किशोर जनित प्रेम व्यक्त हुआ है, परंतु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोड़ा?
उत्तर
टुन्नू का यह कहना, ‘मन पर किसी का वश नहीं, वह रूप या उमर का कायल नहीं होता” उसके मन की उन कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति है जो दुलारी के प्रति है। दुलारी भी इस निश्छल प्रेम को महसूस करती है तथा समझ जाती है कि टुन्नू का यह प्रेम शारीरिक न होकर मानसिक है, पर दुलारी द्वारा सकारात्मक जवाब न पाकर टुन्नू सूती धोतियाँ दुलारी को देकर उस दल में शामिल हो जाता है जो विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने तथा उनकी होली जलाने के लिए गली-गली घूमकर उनका संग्रह कर रहा था। इस प्रकार उसके विवेक ने उसके प्रेम को देश प्रेम की ओर मोड़ दिया।

प्रश्न 11.
‘एही टैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ का प्रतीकार्थ समझाइए।
उत्तर
इसी जगह पर मेरी नाक की झुलनी (लौंग) खो गई है-यह इसका शाब्दिक अर्थ है। दुलारी स्पष्ट करती है कि थाने आकर मेरी नाक की लौंग खो गई–अर्थात मेरी प्रतिष्ठा जाती रही। थाने में दुलारी को बुलाकर उसकी इच्छा के विपरीत गाने के लिए विवश किया गया था। इस तरह वह अपनी प्रतिष्ठा का खोना मानती है।

दुलारी टुन्नू को अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार कर चुकी थी जिसे वहीं अली सगीर ने बूट की ठोकर मारी थी और वह उस चोट से वहाँ गिरकर मर गया था। इसलिए दूसरा अर्थ है कि मेरी नाक की लौंग, यानी मेरा सुहाग (टुन्नू) यहीं पर मार दिया गया है। अर्थात् मेरी सबसे प्रिय चीज़ यहीं कहीं खो गई है।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति उनके लेखन में कहीं अधिक मदद करती है, क्यों?
उत्तर
लेखक का मानना है कि अनुभव घटित का होता है परंतु अनुभूति संवदेना और कल्पना के सहारे उस सत्य को आत्मसात् कर लेती है जो वास्तव में कृतिकार के साथ घटित नहीं हुआ है। जो आँखों के सामने नहीं आया वही आत्मा के सामने ज्वलंत प्रकाश में आ जाता है तब वह अनुभूति-प्रत्यक्ष हो जाता है।

अतः लेखक का मानना है कि जब तक रचनाकार का हृदय संवेदना से व्यथित नहीं होता है तब तक प्रत्यक्ष अनुभव उसे लिखने के लिए विवश नहीं कर सकता है। लिखने की यह विवशता अंदर की अनुभूति से होती है और भावना स्वयं शब्दों में प्रस्फुटित होने लगती है। यही कारण है कि लिखने में अंदर की अनुभूति विशेष मदद करती है।

प्रश्न 2.
लेखक ने हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता कब और किस तरह महसूस किया?
उत्तर
लेखक विज्ञान का विद्यार्थी था। उसे अणु, रेडियोधर्मी तत्व उनका भेदन, रेडियोधर्मिता की सैद्धांतिक जानकारी होने पर भी जब उसने हिरोशिमा पर अणु बमबारी के बारे में सुना तथा वहाँ जाकर उनके कुप्रभावों को प्रत्यक्ष रूप से देखा तब भी उस विस्फोट का भोक्ता नहीं बन पाया। एक दिन सड़क पर घूमते हुए जब एक बड़े से जले पत्थर पर मानव छाया देखी तो उसने जान लिया कि विस्फोट के समय यहाँ कोई मनुष्य खड़ा था। मनुष्य से रुद्ध होकर जो किरणें रुक गई, उन्होंने पत्थर को जला दिया और मनुष्य से टकराई किरणों ने उसे भाप बनाकर उड़ा दिया होगा। इससे उसके मन में विस्फोट का प्रत्यक्ष दृश्य साकार हो उठा और वह विस्फोट का भोक्ता बन गया।

प्रश्न 3.
‘मैं क्यों लिखता हूँ?’ के आधार पर बताइए कि
(क) लेखक को कौन-सी बातें लिखने के लिए प्रेरित करती हैं?
(ख) किसी रचनाकार के प्रेरणास्रोत किसी दूसरे को कुछ भी रचने के लिए किस तरह उत्साहित कर सकते हैं?
उत्तर
(क) किसी भी लेखक को लिखने के लिए निम्न बातें प्रेरित करती हैं

  1. आंतरिक विवशता-लेखकीय प्रवृत्ति में जब अपनी व्यक्तिगत अनुभूति को प्रकट करने की उत्कंठा इतनी बलवती हो जाती है कि उसे न लिखने तक बेचैन बनाए रखती है।
  2. संपादक और प्रकाशक का आग्रह-जब लेखक प्रसिद्ध हो जाते हैं तो संपादक और प्रकाशक कुछ लिखने के लिए आग्रह करते हैं और लेखक लिख देते हैं।
  3. आर्थिक विवशता-लेख लिखने के लिए सम्मान के साथ पारिश्रमिक भी मिलता है। आर्थिक आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए भी लेखक लिखते हैं।
  4. प्रसिद्ध पाने के लिए-ऐसे भी लेखक होते हैं जिन्हें कोई आकांक्षा नहीं होती वे लिखते हैं लिखते रहते हैं। उनमें आत्मसंतुष्टि की भावना होती है और यह भी कामना होती है कि लिखते-लिखते इतना सुधार आ जाए और पहचान बन सके।

(ख) किसी रचनाकार के प्रेरणास्रोत रचनाकार को कुछ भी लिखने के लिए विविध प्रकार से उत्साहित करते और कुछ भी लिखने की अपेक्षा करते हैं। लेखक को जो बातें लिखने के लिए प्रेरित करती हैं उन सबकी सम्पूर्ति को पूरा होने की बात कहते हैं या उनसे मुक्त हो जाने का प्राप्त अवसर बताते हैं।

प्रश्न 4.
कुछ रचनाकारों के लिए आत्मानुभूति/स्वयं के अनुभव के ण्य-साथ बाह्य दबाव भी महत्त्वपूर्ण होता है। ये बाह्य दबाव कौन-कौन से हो सकते हैं?
उत्तर
कुछ रचनाकारों के लिए आत्मानुभूति या स्वयं के अनुभव के साथ जो वाह्य दबाव महत्त्वपूर्ण होते हैं, वे निम्नलिखित हो सकते हैं-

  1. प्रकाशकों का आग्रह – लेखक को ख्याति मिलते ही प्रकाशक उससे लेखन का आग्रह करने लगते हैं।
  2. संपादकों का आग्रह – प्रकाशकों की तरह ही संपादकों का आग्रह भी लेखकों के लेखन में प्रेरक बनता है।
  3. आर्थिक लाभ – लेखन से मिलने वाला आर्थिक लाभ भी लेखन के लिए आवश्यक बन जाता है।
  4. प्रचार-प्रसार का दवाब – जब लेखकों पर किसी नए तथ्य के प्रचार-प्रसार का दबाव होता है, तब वे लेखन के लिए विवश हो जाता है।

प्रश्न 5.
क्या बाह्य दबाव केवल लेखन से जुड़े रचनाकारों को ही प्रभावित करते हैं या अन्य क्षेत्रों से जुड़े कलाकारों को भी प्रभावित करते हैं, कैसे?
उत्तर
बाह्य-दबाव केवल रचनाकारों को ही प्रभावित नहीं करते अपितु शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जो बाह्य-दबाव से मुक्त हो। अतः अन्य क्षेत्रों से जुड़े कलाकार भी। बाह्य-दबावों से प्रभावित होते हैं; जैसे

  1. गायक-गायिकाएँ-आयोजकों और श्रोताओं का दबाव बना रहता है।
  2. सिनेमा-जगत् से संबंधित कलाकार-इन पर निर्देशक का दबाव रहता है। इसके अलावा आर्थिक दबाव भी रहता है।
  3. चित्रकार और मूर्तिकार-इन पर बनवाने वाले ग्राहकों की इच्छाओं का दबाव रहता है।

प्रश्न 6.
हिरोशिमा पर लिखी कविता लेखक के अंतः व बाह्य दोनों का परिणाम है यह आप कैसे कह सकते हैं?
उत्तर
हिरोशिमा पर लिखी कविता लेखक के अंतः एवं बाह्य दबाव दोनों का परिणाम है, क्योंकि लेखक ने हिरोशिमा में बम विस्फोट से उत्पन्न त्रासदी को देखा। लेखक ने देखा कि रेडियोधर्मी किरणों ने मनुष्य को भाप बनाकर उड़ा दिया जिसकी छाया पत्थर पर अंकित हो गई है। यह देखकर लेखक के मन में अनुभूति जगी, जिसकी प्रेरणा से प्रेरित होकर लेखक ने यह कविता जापान में नहीं लिखी बल्कि प्रेरणा की तीव्रता ने भारत आकर उसे कविता लेखन के लिए विवश कर दिया।

प्रश्न 7.
हिरोशिमा की घटना विज्ञान का भयानकतम दुरुपयोग है। आपकी दृष्टि में विज्ञान का दुरुपयोग कहाँ-कहाँ और किस तरह से हो रहा है?
उत्तर
हिरोशिमा पर अणु-बम गिराया जाना ऐसी घटना थी जिसने संपूर्ण मानवता को हिलाकर रख दिया, यह विज्ञान का निकृष्टतम प्रयोग था। विज्ञान कुछ दुरुपयोग निम्नलिखित

  1. विज्ञान के बढ़ते हुए दुरुपयोग से बढ़ती हुई भ्रूण हत्याएँ।
  2. कंप्यूटर में वायरस जैसा कुछ गलत कार्य।
  3. देश की सुरक्षा के लिए निर्मित हथियारों का आतंकवादियों द्वारा निर्दोषों की हत्या के लिए प्रयोग में लाना।।
  4. विविध कीटनाशकों का प्रयोग आत्महत्या के लिए।

प्रश्न 8.
एक संवेदनशील युवा नागरिक की हैसियत से विज्ञान का दुरुपयोग रोकने में आपकी क्या भूमिका है?
उत्तर
एक संवेदनशील युवा नागरिक की हैसियत से मैं विज्ञान का दुरुपयोग रोकने के लिए कई प्रकार से अपनी भूमिका निभा सकता हूँ, जैसे-

  1. अल्ट्रासाउंड मशीनों का दुरुपयोग कर कन्याभ्रूण हत्या रोकने के लिए लोगों को सजग करूँगा तथा भविष्य में इससे होने वाले खतरों के प्रति आगाह करूंगा।
  2. प्लास्टिक की थैलियों तथा उनसे बनी वस्तुओं का प्रयोग कम से कम करने के लिए लोगों में जनचेतना और सजगता फैलाऊँगा।
  3. विज्ञान के विभिन्न उपकरणों एवं यंत्रों का मैं खुद भी दुरुपयोग नहीं करूंगा और लोगों से अनुरोध करूँगा कि वे भी इसका दुरुपयोग न करें।
  4. लोगों से आग्रह करूंगा कि वे अपनी-अपनी गाड़ियों का प्रयोग कम करके सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करें ताकि प्रदूषण में कमी आए।

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