Author name: Raju

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 2 पद

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 2 पद

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 2 पद

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 2 पद.

प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
पहले पद में मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती किस प्रकार की है?
उत्तर
मीरा श्री कृष्ण को संबोधित करते हुए कहती हैं कि हे श्री कृष्ण! आप तो सदैव अपने भक्तों की पीड़ा को दूर करते हैं। अनेक उदाहरणों के माध्यम से श्री कृष्ण को अपनी पीड़ा हरने की बात कहती हैं। जिस प्रकार भरी सभा में कौरवों द्वारा अपमानित होने पर जब द्रोपदी ने रक्षा के लिए पुकारा तो आपने वस्त्र बढ़ाकर उसके मान-सम्मान की रक्षा की। इसी प्रकार भक्त प्रह्लाद को बचाने हेतु नरसिंह का रूप धारण कर हिरण्यकश्यप को मारा था। मुसीबत में पड़े ऐरावत हाथी को मगरमच्छ के मुँह से बचाया । मीरा इन सब दृष्टांतों के माध्यम से अपनी पीड़ा हरने के साथ-साथ सांसारिक बंधनों से मुक्ति के लिए भी विनती करती हैं।

प्रश्न 2.
दूसरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्यों करना चाहती हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
दूसरे पद में कवयित्री मीराबाई अपने आराध्य श्रीकृष्ण की चाकरी इसलिए करना चाहती हैं ताकि उन्हें इसी चाकरी के बहाने दिन-रात कृष्ण की सेवा का अवसर मिल सके। मीरा अपने कृष्ण का दर्शन करना चाहती हैं, उनके नाम का दिनरात स्मरण करना चाहती हैं तथा अनन्य भक्तिभाव दर्शाना चाहती है। ऐसा करने से मीरा प्रभु-दर्शन, नाम-स्मरण की जेब खर्ची और भक्ति भाव की जागीर के रूप पाकर अपनी तीनों इच्छाएँ पूरी कर लेना चाहती हैं।

प्रश्न 3.
मीराबाई ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन कैसे किया है?
उत्तर
मीराबाई ने श्री कृष्ण के रूप-सौंदर्य का अलौकिक वर्णन किया है। श्रीकृष्ण के शरीर पर पीले वस्त्र सुशोभित हो रहे हैं। सिर पर मोर पंख युक्त मुकुट सुशोभित हो रहा है। गले में बैजयंती माला उनके सौंदर्य में चार चाँद लगा रहा है। वे बाँसुरी बजाते हुए वृंदावन में गौएँ चराते हुए घूमते हैं। इस प्रकार इस रूप में श्रीकृष्ण का बहुत ही मनोरम रूप उभरता है।

प्रश्न 4.
मीराबाई की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
मीराबाई के काव्य का कला पक्ष भी उनके भाव पक्ष की तरह सबल है। उन्होंने अपने पदों में मुख्य रूप से ब्रजभाषा का प्रयोग किया है जिसमें पंजाबी, राजस्थानी और गुजराती भाषा के शब्दों की बहुलता है। भाषा सरल, सहज बोधगम्य है। उनका शब्द चयन सटीक है जो भावों की सहजाभिव्यक्ति में समर्थ है। इन पदों में ब्रजभाषा की कोमलकांत पदावली और राजस्थानी की अनुनासिकता के कारण मिठास और कोमलता का संगम बन गया है। पदों में भक्ति प्रवणता में गेयता और संगीतात्मकता के कारण वृद्धि हुई है। कवयित्री ने शब्दों को भावों के अनुरूप ढाल बनाकर प्रयोग किया है। इसके अलावा अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। इन अलंकारों में अनुप्रास और रूपक मुख्य हैं।

प्रश्न 5.
वे श्रीकृष्ण को पाने के लिए क्या-क्या कार्य करने को तैयार हैं?
उत्तर
मीराबाई ने श्रीकृष्ण को अपने प्रियतम के रूप में देखा है। वे बार-बार श्रीकृष्ण का दर्शन करना चाहती हैं। उन्हें पाने के लिए उन्हें उनकी दासी बनना भी स्वीकार है। वे प्रतिदिन दर्शन पाने के लिए उनके महलों में बाग लगाने के लिए तैयार हैं। वे बड़े-बड़े महलों का निर्माण करवाकर उनके बीच में खिड़कियाँ बनवाना चाहती हैं ताकि वे श्रीकृष्ण के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर सकें। वे उनके दर्शन पाने के लिए कुसुंबी साड़ी पहनकर यमुना के तट पर आधी रात को प्रतीक्षा करने को तैयार हैं। मीरा के मन में अपने आराध्य से मिलने के लिए व्याकुलता है इसलिए वे उन्हें पाने के लिए हर संभव
प्रयास करने को तत्पर हैं।

(ख) निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-

प्रश्न 1.
हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर।।
भगत कारण रूप नरहरि, धर्यों आप सरीर।
उत्तर
भाव पक्ष-प्रस्तुत पंक्तियाँ मीराबाई के पद से ली गई हैं। जिसमें मीराबाई ने कृष्ण से अपने कष्टों को दूर करने का आग्रह किया है। मीरा के अनुसार श्रीकृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाने के लिए चीर बढ़ाया था। भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए नरसिंह का अवतार धारण किया था। इस पद के माध्यम से मीरा कृष्ण से कहना चाहती हैं कि प्रभु! जब जिस भक्त को आपकी जिस रूप की आवश्यकता पड़ती है, वह रूप धारण कर आप उसके कष्टों को हरण करते हैं। उसी प्रकार आप मेरे भी सभी कष्टों को दूर कीजिए।
कला पक्ष-

  1. राजस्थानी, गुजराती व ब्रज भाषा का प्रयोग है।
  2. भाषा अत्यंत सहज व सुबोध है।
  3. शब्द चयन भावानुकूल है।
  4. पद में माधुर्य भाव है।
  5. भाषा में प्रवाहमयता और सरसता का गुण विद्यमान है।
  6. दैन्य भाव की भक्ति है तथा शांत रस की प्रधानता है।
  7. दृष्टांत अलंकार का प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 2.
बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर।।
उत्तर
भाव सौंदर्य – इन पंक्तियों में कवयित्री मीरा द्वारा अपनी पीड़ा दूर करने के लिए प्रार्थना करते हुए उनकी भक्तवत्सलता का वर्णन किया है। मीरा ने प्रभु को स्मरण कराया है कि किस तरह उन्होंने जलाशय की अतल गहराई में मगरमच्छ द्वारा खींचे जाने पर डूबते गजराज की मदद की थी।
शिल्प सौंदर्य –
भाषा – कोमलकांत पदावली युक्त मधुर ब्रजभाषा का प्रयोग। तत्सम, तद्भव शब्दों का मेल।
अलंकार – काटी कुण्जर’ में अनुप्रास तथा पूरे पद में दृष्टांत अलंकार है।
रस – भक्ति एवं शांत रस की प्रधानता।
छंद – पद छंद का प्रयोग।
अन्य – पद में गेयता एवं संगीतात्मकता।

प्रश्न 3.
चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनँ बाताँ सरसी।
उत्तर
भाव पक्ष-प्रस्तुत पंक्तियों में मीराबाई कृष्ण की सेविका बन कर उनकी चाकरी करना चाहती हैं क्योंकि कृष्ण की सेविका बनकर वे प्रतिदिन उनके दर्शन प्राप्त कर सकेंगी और स्मरण रूपी धन को प्राप्त कर पाएँगी तथा इस भक्ति रूपी, साम्राज्य को प्राप्त करके मीराबाई तीनों कामनाएँ बड़ी सरलता से प्राप्त कर लेंगी। अर्थात् प्रभु के दर्शन, नाम स्मरण रूपी खरची और नाम भक्ति रूपी जागीर तीनों ही प्राप्त कर लेंगी।
कला पक्ष

  1. प्रस्तुत पंक्तियों की भाषा राजस्थानी है।
  2. भाषा अत्यंत सहज व सुबोध है।
  3. कवयित्री की कोमल भावनाओं की सुंदर ढंग से अभिव्यक्ति हुई है।
  4. भाषा में लयात्मकता तथा संगीतात्मकता है।
  5. भाषा सरलता, सरसता और माधुर्य से युक्त है।
  6. दास्य भाव एवं शांत रस की प्रधानता है।
  7. “भाव भगती’ में अनुप्रास अलंकार है।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
उदाहरण के आधार पर पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए
उदाहरण-भीर-पीड़ा/कष्ट/दुख; री-की
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 2 1
उत्तर
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 2 2

Hope given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 2 are helpful to complete your homework.

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 2 पद Read More »

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 3 दोहे

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 3 दोहे

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 3 दोहे

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 3 दोहे.

प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

(क) निम्नलिखत प्रश्नों के उत्तर लिखिए

प्रश्न 1.
छाया भी कब छाया हूँढ़ने लगती है?
उत्तर
ग्रीष्म ऋतु के जेठ मास की दोपहर में सूरज बिलकुल सिर के ऊपर आ जाता है, तो विभिन्न वस्तुओं की छाया सिकुड़कर वस्तुओं के नीचे दुबक जाती है। गर्मी इतना प्रचंड रूप धारण कर लेती है कि सारे मानव और मानवेत्तर प्राणियों के लिए उसे सहन कर पाना असंभव हो जाता है। वृक्षों की और घर की दीवारों की छाया उनके अंदर ही अंदर रहती है, वह बाहर नहीं जाती। तेज धूप से बचने के लिए छाया घने जंगलों को अपना घर बनाकर उसी में प्रवेश कर जाती है इस प्रकार छाया कहीं दिखाई नहीं देती। ऐसा लगता है कि मानो गर्मी से त्रस्त होकर छाया भी छाया हूँढ़ने लगती है।

प्रश्न 2.
बिहारी की नायिका यह क्यों कहती है ‘कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात’- स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात’–बिहारी की नायिका ने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि इस समय नायक नायिका के पास नहीं है। वह विरह व्यथा झेल रही है। विरह की पीड़ा इतनी अधिक है कि दुर्बलता के कारण उसके हाथ काँपने लगे हैं और वह पसीने से तरबतर हो जाती है। इस हालत में वह अपने दिल की बातों को कागज़ पर उतारकर उसके पास नहीं भेज पा रही है। नायिका अपने दिल की बातें किसी संदेशवाहक से भी नहीं कहलवा पाती है, क्योंकि दूसरों से बताते हुए उसे शर्म आ रही है। वह संदेशवाहक से दोनों ओर की विरह व्यथा महसूस कर ऐसा कहती है क्योंकि दोनों के हृदय की दशा एक जैसी ही है।

प्रश्न 3.
सच्चे मन में राम बसते हैं-दोहे के संदर्भानुसार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कवि के अनुसार प्रभु उन लोगों के मन में बसते हैं जिनकी भक्ति सच्ची होती है। राम को सच्चे हृदय से ही पाया जा सकता है। जो लोग तरह-तरह ढोंग करते हैं, सांसारिक आकर्षणों के जाल में उलझे रहते हैं, जो भक्ति का नाटक करते है, वे स्वयं भ्रमित होते हैं और दूसरों को भी भ्रमित करते हैं। माला जपनी, शरीर पर चंदन का छाप लगाना, माथे पर तिलक लगाना, ये सब बाहरी दिखावे हैं, जो इन व्यर्थ के आडंबरों में भटकते रहते हैं, वे झूठा प्रदर्शन करके दुनिया को धोखा दे सकते हैं, परंतु ईश्वर को नहीं। इसलिए व्यक्ति को बाह्य आडंबर, ढोंग आदि न करके सच्चे मन से ईश्वर की आराधना करनी चाहिए।

प्रश्न 4.
गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी क्यों छिपा लेती हैं?
उत्तर
गोपियों की इच्छा रहती थी कि वे कृष्ण से बातें करते हुए बातों का आनंद उठाएँ। इसके लिए वे तरह-तरह की शरारतें करती हैं। वे कृष्ण की मुरली को छिपा देती हैं और कृष्ण के पूछने पर वे साफ़ मना कर जाती हैं, परंतु आँखों की भौंहों से हँसकर मुरली अपने पास होने का संकेत दे देती हैं ताकि कृष्ण उनसे बार-बार मुरली के बारे में पूँछे तथा वे बतरस का आनंद उठा सकें। यही कारण है कि गोपियाँ कृष्ण की मुरली को छिपा देती हैं।

प्रश्न 5.
बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी कैसे बात की जा सकती है, इसका वर्णन किस प्रकार किया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
बिहारी नगरीय जीवन से परिचित कवि हैं। उन्होंने ‘हाव-भाव’ के कुशल वर्णन को नायक-नायिका के माध्यम से इस प्रकार किया है कि नायक नायिका से आँखों के संकेतों से प्रणय निवेदन करता है। नायिका सिर हिलाकर मना कर देती है। नायक-नायिका के मना करने के तरीके पर रीझ जाता है। नायिका उसकी दशा देखकर खीझ जाती है। बनावटी गुस्सा करती है। नायक उसके खीझने पर प्रसन्न होता है, दोनों के नेत्र मिलते हैं। दोनों की आँखों में प्रेम-स्वीकृति का भावे आता है। स्वीकृति पाकर नायक प्रसन्न हो उठता है जिस पर नायिका लजी जाती है। इस प्रकार आँखों के संकेतों की भाषा से दोनों अपने मन की बातें कर लेते हैं और किसी को पता नहीं चलता।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए

प्रश्न 1.
मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु पर्यों प्रभात।
उत्तर
भाव-इस पंक्ति का भाव यह है कि कृष्ण के नीले शरीर पर पीले रंग के वस्त्र शोभायमान हो रहे हैं। वे देखने में ऐसे
लग रहे हैं मानो नीलमणि पर्वत पर प्रातःकालीन धूप खिल उठी हो। यह संभावना और कल्पना रंग-रूप और चमक की | समानता के कारण बहुत सुंदर बन पड़ी है।

प्रश्न 2.
जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।
उत्तर
भाव यह है कि गरमी अपने चरम पर है जिससे सारे प्राणी व्याकुल हो रहे हैं। व्याकुलता के कारण वे अपना स्वाभाविक बैर-भाव भूल बैठे हैं। इसी कारण अब शेर और मृग, साँप और मोर जैसे प्राणियों को साथ-साथ देखा जा सकता है। ऐसा लगता है कि संसार तपोवन बन गया है जहाँ किसी को किसी से कोई भय नहीं रह गया है। ऐसा गरमी की प्रचंडता के कारण संभव हो पाया है।

प्रश्न 3.
जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु ।
मन-काँचै नाचे वृथा, साँचे राँचै राम्।।।
उत्तर
भाव-इस दोहे में बिहारी का कहना कि ईश्वर को निश्छल भक्ति द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। उसके लिए बाह्य आडंबरों
या दिखावे की आवश्यकता नहीं होती। भक्ति का नाटक करने; जैसे माला जपना, तिलक लगाना, चंदन का शरीर पर छाप लगाना, ये सब व्यर्थ है, ईश्वर को पाने के लिए अंतःकरण को शुद्ध रखना, मन की स्थिरता, सच्ची भावना और आस्था को स्थान देना चाहिए; क्योंकि व्यर्थ के बाह्य आडंबरों का झूठा प्रदर्शन करके लोगों को धोखा दिया जा सकता है। भगवान को नहीं।

Hope given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 3 are helpful to complete your homework.

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 3 दोहे Read More »

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 1 पद

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 1 पद

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 1 पद

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 1 पद.

प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न 1.
गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
उत्तर
गोपियाँ उद्धव को व्यंग्य करती हैं कि तुम्हारे भाग्य की कैसी बिडंबना है कि श्रीकृष्ण के निकट रहते हुए भी प्रेम से वंचित रहे। श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रति अनुराग नहीं हुआ, वह तुम जैसा ही भाग्यवान हो सकता है। इस तरह गोपियाँ उनको भाग्यवान कहकर यही व्यंग्य करती हैं कि तुमसे बढ़कर दुर्भाग्य और किसका हो सकता

प्रश्न 2.
उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किससे की गई है?
उत्तर
उद्धव के व्यवहार की तुलना निम्नलिखित से की गई है

  1. कमल के पत्तों से, जो जल में रहकर भी उससे प्रभावित नहीं होते।
  2.  जल में पड़ी तेल की बूंद से, जो जल में घुलती-मिलती नहीं। उद्धव भी इनके समान हैं। वे कृष्ण के संग रहकर भी उसके प्रेम से प्रभावित नहीं हो सके।

प्रश्न 3.
गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
उत्तर
गोपियाँ उद्धव को निम्नलिखित उलाहने देकर उनको आहत करती हैं

  1. हम गोपियाँ तुम्हारी तरह उस कमल-पत्र और तेल की मटकी नहीं हैं जो श्रीकृष्ण के पास रहकर भी उनके प्रेम से अछूती रह सकें।
  2. हम तुम्हारी तरह निष्ठुर नहीं हैं जो समीप बहती हुई प्रेम-नदी का स्पर्श तक भी न करें।
  3. तुम्हारे योग-संदेश हम गोपियों के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
  4. हमने कृष्ण को मन, वचन और कर्म से हारिल की लकड़ी की तरह जकड़ रखा है।
  5. हमें योग-संदेश कड़वी ककड़ी तथा व्याधि के समान प्रतीत हो रहा है।

प्रश्न 4.
उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?
उत्तर
ब्रज की गोपियाँ इस प्रतीक्षा में बैठी थीं कि देर-सवेर कृष्ण उनसे मिलने अवश्य आएँगे, या अपना प्रेम-संदेश भेजेंगे। इसी से वे तृप्त हो जाएँगी। इसी आशा के बल पर वे वियोग की वेदना सह रही थीं। परंतु ज्यों ही उनके पास कृष्ण द्वारा भेजा गया योग-संदेश पहुँचा, वे तड़प उठीं। उनकी विरह-ज्वाला तीव्रता से भड़क उठी। उन्हें लगा कि अब कृष्ण उनके पास नहीं आएँगे। वे योग-संदेश में ही भटकाकर उनसे अपना पीछा छुड़ा लेंगे। इस भय से उनकी विरहाग्नि भड़क उठी।

प्रश्न 5.
“मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
उत्तर
गोपियाँ कह रही थीं कि श्रीकृष्ण के प्रति उनका प्रेम था और उन्हें पूर्ण विश्वास था। | कि उनके प्रेम की मर्यादा का निर्वाह श्रीकृष्ण की ओर से भी वैसा ही होगा जैसा उनका है। इसके विपरीत कृष्ण ने योग-संदेश भेजकर स्पष्ट कर दिया कि उन्होंने प्रेम की मर्यादा को नहीं रखा। जिसके लिए गोपियों ने अपनी सभी मर्यादाओं को छोड़ दिया, उसी ने प्रेम-मर्यादा का पालन नहीं किया।

प्रश्न 6.
कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?
उत्तर
गोपियों ने कृष्ण के प्रति अपने अनन्ये प्रेम को निम्नलिखित युक्तियों से व्यक्त किया है

  • वे स्वयं को कृष्ण रूपी गुड़ पर लिपटी हुई चींटी कहती हैं।
  •  वे स्वयं को हारिल पक्षी के समान कहती हैं जिसने कृष्ण-प्रेम रूपी लकड़ी को दृढ़ता से थामा हुआ है।
  • वे मन, वचन और कर्म से कृष्ण को मन में धारण किए हुए हैं।
  •  वे जागते-सोते, दिन-रात और यहाँ तक कि सपने में भी कृष्ण का नाम रटती रहती हैं।
  • वे कृष्ण से दूर ले जाने वाले योग-संदेश को सुनते ही व्यथित हो उठती हैं।

प्रश्न 7.
गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
उत्तर
गोपियों ने योग-शिक्षा के बारे में परामर्श देते हुए कहा कि ऐसी शिक्षा उन लोगों को देना उचित है, जिनका मन चकरी के समान अस्थिर है, चित्त में चंचलता है और जिनका कृष्ण के प्रति स्नेह-बंधन अटूट नहीं है।

प्रश्न 8.
प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों को योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
उत्तर
सूरदास के पठित पदों के आधार पर स्पष्ट है कि गोपियाँ योग-साधना को नीरस, व्यर्थ और अवांछित मानती हैं। उनके अनुसार योग-साधना प्रेम का स्थान नहीं ले सकती। प्रेमीजन योग-मार्ग द्वारा नहीं, प्रेमपूर्ण समर्पण के बल पर ही ईश्वर को पा सकते हैं। उनके अनुसार, योग-साधना तो उनके प्रेम की दीवानगी में बाधा है। यह उन्हें उनके कृष्ण से दूर ले जाती है। इसीलिए योग का नाम सुनते ही उनकी विरह-ज्वाला और अधिक भड़क उठती है। उन्हें योग-साधना एकै बला प्रतीत होती है। उन्हीं के शब्दों में सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।

गोपियाँ प्रेम के बदले योग-संदेश भेजने को कृष्ण की मूर्खता या चालाकी मानती हैं। कभी वे कृष्ण को बुद्ध बनाती हुई कहती हैं-‘बढी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए। कभी वे आरोप लगाती हुई कहती हैं-‘हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।

प्रश्न 9.
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?
उत्तर
गोपियाँ अपनी राजनैतिक प्रबुद्धता का परिचय देती हुईं राजा का धर्म बताती हैं कि राजा का कर्तव्य है कि वह किसी भी स्थिति में अपनी प्रजा को संत्रस्त न करे, अपितु उसे अन्याय से मुक्ति दिलाए तथा उसकी भलाई के लिए सोचे।

प्रश्न 10.
गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?
उत्तर
गोपियों को लगा कि कृष्ण मथुरा में जाकर बदल गए हैं। वे अब गोपियों से प्रेम नहीं करते। इसलिए वे स्वयं उनसे मिलने नहीं आए। दूसरे, उन्हें लगा कि अब कृष्ण राजा बनकर राजनीतिक चालें चलने लगे हैं। छल-कपट उनके स्वभाव का अंग हो गया है। इसलिए वे वहाँ से अपना प्रेम-संदेश भेजने की बजाय योग-संदेश भेज रहे हैं।
इन परिवर्तनों को देखते हुए गोपियों को लगा कि अब उनका कृष्ण-प्रेम में डूबा हुआ मन वापस उन्हें मिल पाएगा।

प्रश्न 11.
गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
उद्धवे जैसे ज्ञानी को गोपियों की वाकूपटुता चुप रहने के लिए विवश कर देती है। और वे गोपियों के वाक्चातुर्य से प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ निम्नलिखित हैंस्पष्टता-गोपियाँ अपनी बात को बिना किसी लाग-लपेट के स्पष्ट कह देती हैं। उद्धव के द्वारा बताए गए योग संदेश को बिना संकोच के कड़वी ककड़ी बता देती हैं। व्यंग्यात्मकता-गोपियाँ व्यंग्य करने में प्रवीण हैं। उनकी भाग्यहीनता को भाग्यवान कहकर व्यंग्य करती हैं कि तुमसे बढ़कर और कौन भाग्यवान होगा जो कृष्ण के समीप रहकर उनके अनुराग से वंचित रहे। सहृदयता-उनकी सहृदयता उनकी बातों में स्पष्ट झलकती है। वे कितनी भावुक हैं इसका ज्ञान तब होता जब वे गद्गद होकर कहती हैं कि हम अपनी प्रेम-भावना को उनके सामने प्रकट ही नहीं कर पाईं। इस तरह उनका वाक्चातुर्य अनुपम था।

प्रश्न 12.
संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए?
उत्तर
सूरदास के भ्रमरगीत की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • इनमें गोपियों का निर्मल कृष्ण-प्रेम प्रकट हुआ है। वे कृष्ण की दीवानी हैं। उनका प्रेम अनन्य है, संपूर्ण है। और अनूठा है।
  • गोपियाँ गाँव की चंचल, अल्हड और वाचतुर बालाएँ हैं। वे चुपचाप आँसू बहाने वाली नहीं अपितु अपने भोले-निश्छल तर्को से सामने वाले को परास्त करने की क्षमता रखती हैं।
  • भ्रमरगीत में व्यंग्य, कटाक्ष, उलाहना, निराशा, प्रार्थना, गुहार आदि अनेक-अनेक मनोभाव तीखे तेवरों के साथ प्रकट हुए हैं।
  • इसमें योग और प्रेम मार्ग का द्वंद्व दिखाया गया है। प्रेम के सम्मुख योग-साधना को तुच्छ दिखलाया गया है।
  •  इसमें कृष्ण के ज्ञानी मित्र उद्धव को निरुत्तर, मौन और भौंचक्का-सा दिखाया गया है।
  •  ये पद संगीत की दृष्टि से बहुत मनोहारी हैं। हर पद पहले गाया गया है, फिर लिखा गया है। ये शास्त्रीय रागों पर आधारित हैं।
  •  इनमें ब्रजभाषा की कोमलता, मधुरता और सरसता के दर्शन होते हैं। श्रृंगार रस के अनुरूप शब्द कोमल बनपड़े हैं।
  • इनकी भाषा अलंकार-युक्त है। जो भी अलंकार आए हैं, वे सहज जनजीवन से आए हैं। उनका प्रयोग स्वाभाविक है। कहीं-कहीं अलंकार न के बराबर हैं तो भी सरसता में कोई कमी नहीं आई है। ऐसे अलंकारहीन पदों में सूरदास की रसमयी भावना ही आकर्षण का कारण है।
  •  इन पदों में कृष्ण परदे के पीछे रहते हैं। गोपियाँ ऊधौ के सामने खुलकर अपना उलाहना प्रकट करती हैं।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 13.
गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।
उत्तर
गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं पर वे कुछ और तर्क शामिल कर सकती थीं जो निम्नलिखित हैं

  • जब हम गोपियों ने कृष्ण से प्रेम किया तब क्या कृष्ण ने तुमसे पूछा था। उस समय उन्होंने तुम्हारी मदद नहीं ली। यदि तब मदद ली होती तो योग हमें इतना बुरा न लगता।
  • लगता है कि योग तुम्हें बहुत प्रिय है। तुम्हारे साथ के कारण अब कृष्ण भी हमारे प्रेम से अधिक योग को महत्त्व देने लगे हैं।

प्रश्न 14.
उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पाऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?
उत्तर
गोपियाँ वाक्चतुर हैं। वे बात बनाने में किसी को भी पछाड़ देती हैं। यहाँ तक कि ज्ञानी उद्धव उनके सामने गैंगे।
होकर खड़े रह जाते हैं। कारण यह है कि गोपियों के हृदय में कृष्ण-प्रेम का सच्चा ज्वार है। यही उमड़ाव, यही जबरदस्त आवेग उद्धव की बोलती बंद कर देता है। सच्चे प्रेम में इतनी शक्ति है कि बड़े-से-बड़ा ज्ञानी भी उसके सामने घुटने टेक देता है।

प्रश्न 15.
गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
“हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं” से यही स्पष्ट होता है कि राजनीति, छल, प्रपंच के पर्याय के रूप में जानी जाती रही है। राजनीति में धर्म, कर्तव्य, विश्वास, अपनत्व, सुविचार आदि का कोई महत्त्व और स्थान नहीं है। राजनीति को धर्म का पालन करने के लिए गोपियों द्वारा याद दिलाने की आवश्यकता पड़ी है, जिस पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। आज की कलुषित राजनीति में ऐसा ही चारों ओर दिखाई दे रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि छल-प्रपंच के बिना राजनीति कैसी? वास्तव में आज की राजनीति में झूठ और छल-कपट का बोलबाला है। हर हाल में अपना स्वार्थ पूरा करना, अवसरवादिता, अन्याय, कमजोरों को सताना अधिकाधिक धन कमाना आज की
राजनीति का अंग बन गया है।

पाठेतर सक्रियता

• प्रस्तुत पदों की सबसे बड़ी विशेषता है गोपियों की ‘वाग्विदग्धता’ । आपने ऐसे और चरित्रों के बारे में पढ़ा या सुना होगा जिन्होंने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई ; जैसे-बीरबल, तेनालीराम, गोपालभाँड, मुल्ला नसीरुद्दीन आदि। अपने किसी मनपसंद चरित्र के कुछ किस्से संकलित कर एक अलबम तैयार करें।
• सूर रचित अपने प्रिय पदों को लय व ताल के साथ गाएँ।
उत्तर
छात्र स्वयं करें।

Hope given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 1 are helpful to complete your homework.

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 1 पद Read More »

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 4 मनुष्यता

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 4 मनुष्यता

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 4 मनुष्यता

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 4 मनुष्यता.

प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है?
उत्तर
कवि के अनुसार संसार नश्वर है जिस मनुष्य ने इस संसार में जन्म लिया है, उसकी मृत्यु अवश्यंभावी है। इस संसार में उस मनुष्य की मृत्यु सुमृत्यु कही जाती है जिसके मरने के बाद लोग उसके सत्कार्यों के लिए उसे याद करें, उसके लिए आँसू बहाएँ, जो दूसरे लोगों की यादों में बसा रहे, जो परोपकार के कारण सम्मानीय हो, जो दूसरों के लिए प्रेरणास्त्रोत हो, ऐसी यशस्वी मृत्यु को ही कवि ने सुमृत्यु कहा है।

प्रश्न 2.
उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है?
उत्तर
किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कार्यों से होती है। जिस प्रकार दुष्ट को उसकी दुष्टता के कारण जाना-पहचाना जाता है उसी प्रकार उदार व्यक्ति की पहचान उसके द्वारा किए गए उदारतापूर्ण कार्यों से होती है। उदार व्यक्ति दूसरों के प्रति अपने मन में उदारभाव रखते हैं तथा दूसरों को दुख में देख उसकी मदद के लिए आगे आ जाते हैं। वे दूसरों के प्रति सहानुभूति का भाव रखते हैं और दूसरे के दुख को अपना दुख समझते हैं। ऐसा करते हुए वे ऊँच-नीच या अपने-पराए का भेद नहीं करते हैं। उदार व्यक्ति अपना तन-मन और धन देकर दूसरों की मदद अथवा परोपकार करने से पीछे नहीं हटते हैं।

प्रश्न 3.
कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर ‘मनुष्यता के लिए क्या संदेश दिया है?
उत्तर
कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर सारी मनुष्यता को त्याग और बलिदान का संदेश दिया है। अपने लिए तो सभी जीते हैं पर जो परोपकार के लिए जीता और मरता है उसका जीवन धन्य हो जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार दधीचि ऋषि ने वृत्रासुर से देवताओं की रक्षा करने के लिए अपनी अस्थियों तक का दान कर दिया। इसी प्रकार कर्ण ने अपने जीवन-रक्षक, कवच-कुंडल को अपने शरीर से अलग करके दान में दिया था। रंतिदेव नामक दानी राजा ने भूख से व्याकुल ब्राह्मण को अपने हिस्से का भोजन दे दिया था। राजा शिवि ने कबूतर के प्राणों की रक्षा हेतु अपने शरीर का मांस काटकर दे दिया। ये कथाएँ हमें परोपकार का संदेश देती हैं। ऐसे महान लोगों के त्याग के कारण ही मनुष्य जाति का कल्याण संभव हो सकता है। कवि के अनुसार मनुष्य को इस नश्वर शरीर के लिए मोह का त्याग कर देना चाहिए। उसे केवल परोपकार करना चाहिए। वास्तव में सच्चा मनुष्य वही होता है, जो दूसरे मनुष्य के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दे।

प्रश्न 4.
कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व-रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए?
उत्तर
हमें गर्वरहित जीवन जीना चाहिए, यह भाव निम्नांकित पंक्तियों में व्यक्त हुआ है-
रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।

प्रश्न 5.
“मनुष्य मात्र बंधु है” से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कवि के अनुसार ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है और सभी मनुष्यों में ईश्वर का अंश है। वह मनुष्यों की सहायता मनुष्य के रूप में ही करता है। सभी मनुष्य उस परमपिता ईश्वर की संतान हैं तथा एक पिता की संतान होने के नाते सभी मनुष्य एक दूसरे के भाई के समान हैं। इसलिए हमें छोटे-बड़े, ऊँच-नीच, रंग-रूप, जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। मनुष्यों ने आपस में जाति-पाँति, छुआछूत के भेद पैदा किए हैं, अतः हमें भेदभावों को भुलाकर भाईचारे से रहना चाहिए। जिस प्रकार हम अपने भाई-बंधुओं का अहित नहीं करते, ठीक उसी तरह हमें विश्व में किसी का अहित न कर भाई समान एक-दूसरे की सहायता करनी चाहिए। अहंकार वृत्ति का परित्याग करना चाहिए।

प्रश्न 6.
कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है? ।
उत्तर
कवि ने सभी को एक साथ चलने की शिक्षा इसलिए दी है ताकि मनुष्य कठिन काम में भी सफलता प्राप्त कर सके। यह सर्वविदित है कि मिल-जुलकर काम करने में भी सफलता के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों का सामना सरलतापूर्वक किया जा सकता है जब कि अकेला व्यक्ति थोड़ी सी भी कठिनाई आने पर हार मानकर निराश हो उठता है। अकेले व्यक्ति का मनोबल टूट जाता है और सरल कार्य भी उसके लिए केवल इसलिए दुरूह हो जाता है क्योंकि उसका मनोबल बढ़ाने और उत्साहवर्धन करने वाला कोई नहीं होता है। मिल-जुलकर करने से व्यक्ति एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते हुए, आपसी मेल-जोल और सद्भाव बनाए रखते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़ते जाते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 7.
व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए? इस कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर
कवि के अनुसार व्यक्ति को सदैव परोपकार करते हुए जीवन व्यतीत करना चाहिए। मनुष्य को केवल अपने लिए नहीं अपितु | मानव-हित को सर्वोपरि मानते हुए जीवन बिताना चाहिए। स्वार्थपूर्ण जीवन व्यतीत करना पशुप्रवृत्ति है, मानव स्वभाव नहीं। मनुष्य को अपने में उदारता, त्यागशीलता जैसे गुणों को विकसित करना चाहिए। दूसरों की भलाई के लिए यदि सर्वस्व त्याग करना पड़े तो उसके लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। उसे कभी तुच्छ धन पर घमंड नहीं करना चाहिए। निरंतर कर्मशील रहते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए। मनुष्य को ऐसा जीवन व्यतीत करना चाहिए कि लोग उसकी मृत्यु के पश्चात भी उसके सद्गुणों, त्याग, बलिदान को याद करें। वह यश रूपी शरीर से सदैव अमर बना रहे।

प्रश्न 8.
‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर
मनुष्यता कविता के माध्यम से कवि यह संदेश देना चाहता है कि मनुष्य मरणशील प्राणी है। उसके पास सोचने-समझने की बुद्धि के अलावा त्याग और परोपकार जैसे मानवीय मूल्य भी हैं। उसमें चिंतनशीलता, त्याग, उदारता, प्रेम, सद्भाव जैसे मानवोचित गुणों का संगम है। उसे इनका सदुपयोग करते हुए अपनी मनुष्यता बनाए रखना चाहिए और दूसरों की भलाई में लगे रहना चाहिए। मनुष्य को ऐसे कर्म करना चाहिए कि वह अपने सत्कार्यों से ‘सुमृत्यु’ प्राप्त करे और दूसरों के प्रेरणा स्रोत बन जाए। इसके अलावा कवि ने अभिमान न करने और मिल-जुलकर रहने का भी संदेश दिया है।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए

प्रश्न 1.
सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही;
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा,
विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?
उत्तर
कवि ने सहानुभूति को मनुष्य की सबसे बड़ी पूँजी इसलिए कहा है क्योंकि यही गुण मनुष्य को महान, उदार और सर्वप्रिय बनाता है। इसी के कारण सारी दुनिया मनुष्य के वश में हो जाती है। दूसरों के साथ दया, करुणा और सहानुभूति का व्यवहार करके धरती को वश में किया जा सकता है। वही महान विभूति होते हैं, जो दूसरों को सहानुभूति देते हैं। बुद्ध ने करुणावश उस समय ही पारंपरिक मान्यताओं का विरोध किया था, विरोधी लोगों को भी उनकी बातों को मानना पड़ा। उदार वही होता है जो परोपकार करता है जो मनुष्यता के काम आता है, सबके लिए जीता-मरता है। उदारता, विनम्रता आदि गुणों के सामने सभी नतमस्तक हो जाते हैं।

प्रश्न 2.
रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।
उत्तर
भाव यह है कि मनुष्य धन आने पर अभिमान और घमंड में चूर हो जाता है। वह दूसरों को तुच्छ और हीन समझने लगता है। वास्तव में मनुष्य को धन का घमंड करने की भूल नहीं करना चाहिए। उसे अपने ऊपर हुई इस ईश्वरीय कृपा का भी अभिमान नहीं करना चाहिए। जिस ईश्वर ने उस पर कृपा की है वही सबकी मदद के लिए अपना हाथ बढ़ाए हुए है, अतः किसी को अनाथ समझने की भूल नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 3.
चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति, विघ्न जो पड़े उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।
उत्तर
कवि एक-दूसरे की बाधाओं को दूर करते हुए आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हुए कहता है कि सबका अभीष्ट मार्ग भिन्न होगा। हर व्यक्ति अपनी इच्छा और रुचि के अनुसार अपना लक्ष्य निर्धारित करेगा परंतु अंतिम लक्ष्य होना चाहिए-मानव-मानव में एकता स्थापित करना। अपने जीवन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हँसते-खेलते आगे बढ़ो। रास्ते में जो भी विपत्ति आए उससे विचलित हुए बिना अपना लक्ष्य प्राप्त करो। आपस में सभी में प्यार बना रहे, वह कभी कम न हो। तर्क से परे होकर अपनी मंजिल को पाने के लिए सावधानीपूर्वक आगे बढ़ो। वास्तव में मनुष्य वही होता है जो मनुष्य के लिए अपना जीवन न्योछावर कर देता है। मानव-मानव की एकता को सर्वमान्य कहा गया है। इसमें विश्वबंधुत्व की भावना प्रकट हुई है।

Hope given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 4 are helpful to complete your homework.

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 4 मनुष्यता Read More »

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद.

प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न 1.
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?
उत्तर
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूटने के निम्नलिखित तर्क दिए

  1. धनुष पुराना तथा अत्यंत जीर्ण था।
  2. राम ने इसे नया समझकर हाथ लगाया था, पर कमजोर होने के कारण यह छूते ही टूट गया।
  3. मेरी (लक्ष्मण की) दृष्टि में सभी धनुष एक समान हैं।
  4. ऐसे पुराने धनुष के टूटने पर लाभ-हानि की चिंता करना व्यर्थ है।

प्रश्न 2.
परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
अनुप्रास

  • ‘कटि किंकिनि कै’ में ‘क’ की आवृत्ति के कारण अनुप्रास का सौंदर्य है।
  •  ‘पट पीत’ में ‘प’ की आवृत्ति है।
  • ‘हिये हुलसै’ में ‘ह’ की आवृत्ति है।

रूपक-

  • मुखचंद-मुख रूपी चाँद
  • जग-मंदिर-दीपक-संसार रूपी मंदिर के दीपक

प्रश्न 3.
लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद-शैली में लिखिए।
उत्तर
मुझे लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का यह अंश “तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार-बार मोहि लागि बोलावा” विशेष रूप से अच्छा लगा। यह अंश संवाद-शैली में निम्नलिखित है-

परशुराम अपनी वीरता की डींग हाँकते हुए लक्ष्मण को डराने के लिए बार-बार फरसा दिखा रहे हैं।
लक्ष्मण व्यंग्य-वाणी में परशुराम से कहते हैंलक्ष्मण-आप तो बार-बार मेरे लिए काल (मौत) को बुलाए जा रहे हैं।
परशुराम-तुम जैसे धृष्ट बालक के लिए यही उचित है।
लक्ष्मण-काल कोई आपका नौकर है जो आपके बुलाने से भागा-भागा चला आएगा।

प्रश्न 4.
परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही ।।
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही ।।
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोक महीपकुमारा।।
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।
उत्तर
वसंत के परंपरागत वर्णन में फूलों का खिलना, ठंडी हवाओं का चलना, नायक-नायिका का परस्पर मिलना, झूले झुलाना, रूठना-मनाना आदि होता था। परंतु, इस कवित्त में वसंत को किसी नन्हें नवजात राजकुमार के समान दिखाया गया है। इसलिए कवि ने शिशु को प्रसन्न करने वाले सारे सामान जुटाए हैं। नवजात शिशु के लिए चाहिए-पालना, बिछौना, ढीले वस्त्र, लोरी, झुनझुना, झूले झूलना, उसे बुरी नज़र से बचाने का प्रबंध आदि। कवि ने इस कवित्त में वृक्षों को पालना, पत्तों को बिछौना, फूलों को झिंगूला, वायु को सेविका, मोर और तोते को झुनझुने, कोयल को ताली बजाकर गाने वाली, परागकण को नजर से बचाने का सामान आदि दिखाया है। इस प्रकार यह वर्णन परंपरागत वसंत-वर्णन से भिन्न है।

प्रश्न 5.
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताईं?
उत्तर
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की निम्नलिखित विशेषताएँ बताईं

  1. वीरा योद्धा रणक्षेत्र में शत्रु के समक्ष पराक्रम दिखाते हैं।
  2. वे शत्रु के समक्ष अपनी वीरता का बखान नहीं करते हैं।
  3. वे ब्राह्मण, देवता, गाय और प्रभु भक्तों पर पराक्रम नहीं दिखाते हैं।
  4. वे शांत, विनम्र तथा धैर्यवान होते हैं।
  5. वीर क्षोभरहित होते हैं तथा अपशब्दों का प्रयोग नहीं करते हैं।

प्रश्न 6.
“साहस और शक्ति के साथ विनम्रता से तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर
कवि ने चाँदनी रात की सुंदरता को निम्न रूपों में देखा है

  • आकाश में स्फटिक शिलाओं से बने मंदिर के रूप में।
  • दही से छलकते समुद्र के रूप में।।
  • दूध की झाग से बने फर्श के रूप में।
  • स्वच्छ, शुभ्र दर्पण के रूप में।

प्रश्न 7.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी । अहो मुनीसु महाभट मानी।।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फँकि पहारू ।।
(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं । जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।
देख कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
(ग) गाधिसू नु कहे हृदये हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझे अबूझ ।।।
उत्तर
(क) परशुराम अपने बड़बोलेपन से लक्ष्मण को डराने की असफल कोशिश करते हैं। इस पर लक्ष्मण ने कोमल वाणी में परशुराम से व्यंग्यपूर्वक कहा-“मुनि आप तो महान योद्धा अभिमानी हैं। आप अपने फरसे का भय बार-बार दिखाकर मुझे डराने का प्रयास कर रहे हैं, मानो आप फेंक मारकर विशाल पर्वत को उड़ा
देना चाहते हों।

(ख) परशुराम बार-बार तर्जनी उँगली दिखाकर लक्ष्मण को डराने का प्रयास कर रहे थे। यह देख लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि मैं सीताफल की नवजात बतिया (फल) के समान निर्बल नहीं हूँ जो आपकी तर्जनी के इशारे से डर जाऊँगा। मैंने आपके प्रति जो कुछ भी कहा वह आपको फरसे और धनुष-बाण से सुसज्जित देखकर ही अभिमानपूर्वक कहा।।

(ग) परशुराम की दंभभरी बातें सुन विश्वामित्र मन-ही-मन उनकी बुधि पर हँसने लगे। वे मन-ही-मन कहने लगे कि मुनि को सावन के अंधे की भाँति सब कुछ हरा-हरा ही दिख रहा है। अर्थात् वे राम-लक्ष्मण को भी दूसरे साधारण क्षत्रिय बालकों के समान ही कमजोर समझ रहे हैं। उन्हें राम-लक्ष्मण की शक्ति का अंदाजा नहीं है। जिन्हें वे गन्ने की मीठी खाँड़ समझ रहे हैं जबकि वे शुद्ध लोहे से फौलाद के हथियार की तरह मजबूत तथा शक्तिशाली हैं।

प्रश्न 8.
पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर
कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता दिखाने के लिए निम्नलिखित उपमानों का प्रयोग किया है

  1. स्फटिक शिला
  2. सुधा मंदिर
  3. उदधि दधि
  4.  दूध की झाग से बना फर्श
  5. आरसी
  6.  आभा
  7. चंद्रमा।

प्रश्न 9.
इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य समाया हुआ है। लक्ष्मण तो मानो परशुराम पर व्यंग्य की प्रतीक्षा में रहते हैं। वे व्यंग्य का कोई अवसर नहीं छोड़ते हैं। उनके व्यंग्य में कहीं वक्रोक्ति है तो कहीं व्यंजना शब्द शक्ति का। व्यंग्य की शुरूआत पाठ की तीसरी पंक्ति से ही होने लगती है

सेवक सो जो करे सेवकाई। अरि करनी करि करिअ लराई।।

दूसरे अवसर पर व्यंग्यपूर्ण बातों का क्रम तब देखने को मिलता है जब लक्ष्मण परशुराम से कहते हैं-

लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें ।।

एक अन्य अवसर पर लक्ष्मण परशुराम के दंभ एवं गर्वोक्ति पर व्यंग्य करते हैं

पुनि-पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन पूँकि पहारू।।
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं । जे तरजनी देखि मर जाहीं।।
x                             x                     x                      x
कोटि कुलिस सम बचन तुम्हारी। ब्यर्थ धरहु धनु बाने कुठारा।।

एक अन्य अवसर पर लक्ष्मण की व्यंग्यपूर्ण बातें देखिए

भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े। विजदेवता घरहि के बाढ़े।।

इन साक्ष्यों के आलोक में हम देखते हैं कि इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य विद्यमान है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचानकर लिखिए
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।
बार बार मोहि लागि बोलावा।।
(घ) लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु ।।
उत्तर
आज पूर्णिमा की रात है। चारों ओर प्रकृति चाँदनी में नहाई-सी जान पड़ती है। आकाश की नीलिमा बहुत साफ़ और उज्ज्वल प्रतीत हो रही है। तारे भी मानो चाँदनी के हर्ष से हर्षित हैं। वातावरण बहुत मनोरम है। लोग अपनी छत पर बैठकर मनोविनोद कर रहे हैं और चाँद की ओर निहार रहे हैं।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 11.
“सामाजिक जीवन में क्रोध की ज़रूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।”

आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष
या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर
‘क्रोध’ जीवन का ऐसा अनिवार्य आभूषण है, जिसके बिना रहा नहीं जा सकता, और उसे निरंतर धारण भी नहीं किया जा सकता। इस कारण ही आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने क्रोध के सकारात्मक रूप की सराहना की है और अनायास और ईष्र्या के कारण उत्पन्न क्रोध को नकारने का परामर्श दिया है।
क्रोध के पक्ष में

  1.  मानवीय अधिकारों के लिए क्रोध अपेक्षित है। क्रोध के अभाव में उद्दंड की उद्दंडता निरंतर बढ़ती जाती है।
  2. “क्रोध और क्षमा’ तब सार्थक है जब ऐसा करने वाला शक्ति संपन्न हो। इसलिए कवि दिनकर जी ने कहा है-“क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल
    हो।” अन्यथा क्रोध उपहास का पात्र होता है।
  3. क्रोध दंभ का पर्याय होता है। विनम्रता शक्तिमान पुरुष का आभूषण है। जड़, मूर्ख और स्वभाव से उदंड लोगों पर जब विनम्रता का कोई प्रभाव नहीं होता तो क्रोध अपेक्षित है। ऐसे क्रोध में शक्ति-संपन्नता और संयम आवश्यक है। राम की अनुनय विनय का समुद्र पर कोई प्रभाव न पड़ने पर उनका पौरुष धधक उठी और उसका परिणाम सार्थक रही। इसी संदर्भ में श्री तुलसीदास जी ने कहा-
    विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत ।
    बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीत।।”
  4. क्रोध मनुष्य में ही नहीं, अपितु सभी प्राणियों में होता है। यहाँ तक प्रकृति भीक्रोध से वंचित नहीं है। प्रकृति की सहिष्णुता, गंभीरता की एक सीमा है। जब मनुष्य सीमाओं का अतिक्रमण करने लगता है तो प्रकृति भी सहिष्णुता, गंभीरता को छोड़ क्रोध का कहर बरपाती है। ऐसे ही जब मनुष्य की मनुष्यता का उपहास होने लगता है तब क्रोध अपेक्षित है।

क्रोध के विपक्ष में-

  1. क्रोध निंदनीय है। क्रोध ध्वंसात्मक कार्य करता है। क्रोध की प्रबल-अवस्था में करणीय-अकरणीय, विचारणीय-अविचारणीय का स्थान नहीं होता। ऐसी स्थिति में किसी का भी अपमान हो सकता है। पुत्र अपने माता-पिता का, शिष्य अपने गुरु का अपमान करने में कोई संकोच नहीं करता।
  2. गीता के अनुसार क्रोध-जनित काम की इच्छा में मनुष्य अपना सब कुछ नष्ट कर बैठता है। स्मृति का नाश, बुधिनाश, अंततः पूर्ण नष्ट हो जाता है। इसलिए श्री कृष्ण ने क्रोध को नियंत्रित करने के लिए कहा है।
  3. दंभ-जनित क्रोध में ईष्र्या-द्वेष होता है। मनुष्य अपनों से भी शत्रुता करता है; | शत्रु पैदा करता है। अंततः पैरों तले कुचला जाता है। पतन के गर्त में गिर पड़ने पर निकलना कठिन होता है।
  4. क्रोध का विरोध न होने पर यह इतनी गति पकड़ता है कि सामान्य बातों पर क्रोध होने लगता है। स्मृति का विनाश और बुधिनाश होने के कारण दुस्साहस करता हुआ मनुष्य प्राणों से ही हाथ धो बैठता है।

प्रश्न 12.
संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने
आपको इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यवहार कैसा होता?
उत्तर
यदि मैं राम होता तो परशुराम को अपनी सामर्थ्य को बता देता कि मैं कौन हूँ। मेरे प्रति अपनी शंका छोड़ दीजिए और यदि लक्ष्मण होता तो विनम्रता से चुपचाप परशुराम को बता देता कि आप शांत रहें, इन्हें न पहचानने की भूल न करें। मेरे अग्रज श्री राम साक्षात् आपके भी आराध्य प्रभु हैं। यदि मैं परशुराम होता तो चिंतन करता कि असामान्य शिव-धनुष को तोड़ने वाला कोई सामान्य जन नहीं हो सकता। इसलिए श्री राम से उनका परिचय विनम्रता पूर्वक पूछता।।

प्रश्न 13.
अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
मेरे मित्र को परिस्थितियों का लंबा अनुभव है। परिस्थितियों से सामंजस्य स्थापित करना वह अच्छी तरह जानता है। वह उन लोगों से सावधान रहता है जो उपदेश देते हैं, अपनी सज्जनता के प्रदर्शन के लिए तिलक आदि तो लगाते ही हैं, साथ ही पौराणिक, ऐतिहासिक चरित्रों को सहारा लेते हैं। उनसे सावधान रहने के लिए कहता है। वह शांत और गंभीर है। वह अपने किए गए प्रयासों को जब तक प्रकट नहीं करता, तब तक उसे सफलता नहीं मिल जाती।
वह अपने मित्रों के प्रति सहृदय है, विनम्र है। अपनी हानि उठाकर भी मित्रों के लिए तत्पर रहता है।

प्रश्न 14.
‘दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए’-इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।
उत्तर
गाँव में एक जमींदार था। उसे पहलवानी का बड़ा शौक था। साथ ही उसे अपनी जमींदारी और परंपरा से चली आ रही पहलवानी का बड़ा घमंड था। जमींदार के बगल में एक मजदूर झोंपड़ी में रहता था। उसका भी एक बेटा था। जमींदार उसे अपने बेटे की मालिश करने के लिए कहता था। मजदूर का लड़का मालिश करता, उससे कुश्ती लड़ता था। बेचारा मजदूर बालक रोज पिटता था। धीरे-धीरे मजदूर और उसके बेटे के मन में जमींदार के बेटे को पछाड़ने की मन-ही-मन धुन लग गई। एक दिन मजदूर से न रहा गया और जमींदार से कह दिया-“एक दिन मेरा बेटा आपके बेटे को पीटकर आपके घमंड को चूर करके रहेगा।” यह सुन जमींदार के बेटे ने मजदूर के बेटे को अखाड़े में ले जाकर इतनी पिटाई की, कि फिर वह जमींदार के अखाड़े में नहीं गया। कुछ दिन बाद मजदूर से जमींदार ने पूछा–“अरे तेरा बेटा कहाँ गया? वह तो मेरे बेटे को कुश्ती में पीटना चाहता था।” मजदूर उस गाँव को छोड़कर कहीं चला गया। मजदूर की बात को जमींदार तो भूल चुका था, किंतु मजदूर का बेटा इस बात को नहीं भूला था। वह जी-जान से पहलवानी की अभ्यास कर रहा था।

एक दिन जिला चैंपियन के लिए कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। सबको चुनौती देता हुआ जमींदार का बेटा अखाड़े में घूम रहा था। जोश में था। अखाड़े में घमंड से उछल रहा था। जमींदार भी वहाँ बैठी खूब खुश हो रहा था। जमींदार ने अपने बेटे को खूब बादाम, काजू खिलाए थे। जमींदार के सपने साकार होते हुए दिखाई दे रहे थे। मजदूर का बेटा भी पिता के साथ भीड़ में शांत बैठा देख रहा था। कोई जमींदार के बेटे पहलवान से हाथ मिलाने की हिम्मत नहीं कर रहा था। समय समाप्त होने को था। तभी मजदूर का बेटा धीरे-धीरे आया और चुनौती के अंदाज में हाथ मिलाया। जमींदार और उसका बेटा उसे पहचानकर अवाक् रह गए। कुश्ती हुई। मजदूर का बेटा विजयी हुआ। मजदूर ने जमींदार को दिए गए वचनों को याद कराया। जमींदार का मुँह लटक गया। जमींदार को होश आया, और कहा-“दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना
वाहिए।”

प्रश्न 15.
उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
उत्तर
मैंने अन्याय को कई बार प्रतिकार किया है; परंतु ये प्रतिकार मुझे सबक भी सिखा गए कि अन्याय का प्रतिकार करना सबके लिए उपयुक्त नहीं है। कहानियों, कथाओं, उपदेशों से प्रेरित होकर अन्याय का प्रतिकार करना जान-बूझकर ओखली में सिर देने जैसा भी हो सकता है। ऐसा ही एक अनुभव निम्नलिखित है-

सड़क पर साइकिल से जाते हुए दो दूधवाले बिना संकेत दिए गलत दिशा में मुड़े, पीछे से तेज़ आते हुए स्कूटर सवार ने ऐसा देख तेज ब्रेक लगाए फिर भी स्कूटर साइकिल से मात्र स्पर्श ही कर पाया था; स्कूटर-सवार स्कूटर से गिर गया। फिर भी स्कूटर सवार को गालियाँ देते हुए दूधवाले ने मुक्का मारा। वहाँ खड़े हुए मैंने दूधवाले को ऐसा करते देख अपने हाथ में पकड़ी अटैची आगे कर दी, जिससे मुक्का अटैची में तेजी से लगा। स्कूटर सवार पिटने से बचा। मेरे साथ मेरा मित्र भी था। स्कूटर सवार तो बच गया। पर हम दोनों पिट गए। तब मुझे व्यंग्यकार, कहानीकार, पं. हरिशंकर परसाई की वह ‘मातादीन चाँद पर’ वाली कहानी याद आ गई, जिसमें गुंडों के एक व्यक्ति को मारने पर घायल व्यक्ति को अस्पताल पहुँचाने के परिणामतः उसे ही इंस्पेक्टर मातादीन ने जेल भेज दिया था।

प्रश्न 16.
अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?
उत्तर
अवधी भाषा का प्रखर रूप अवध-क्षेत्र में देखने को मिलता है। अवधी भाषा का प्रचलित रूप आजकल लखनऊ, अयोध्या, फैजाबाद, सुलतानपुर, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, जौनपुर, मिर्जापुर आदि पूर्वी उत्तर-प्रदेश में बोली जाती है।

Hope given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 are helpful to complete your homework.

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Read More »

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 6 मधुर-मधुर मेरे दीपक जल

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 6 मधुर-मधुर मेरे दीपक जल

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 6 मधुर-मधुर मेरे दीपक जल

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 6 मधुर-मधुर मेरे दीपक जल.

प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ और ‘प्रियतम’ किसके प्रतीक हैं?
उत्तर
प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ प्रभु आस्था व प्रेम का प्रतीक है और ‘प्रियतम कवयित्री के आराध्य अर्थात् परमात्मा का प्रतीक है। कवयित्री आस्था का दीपक जलाती है। उसकी आस्था स्नेह से परिपूर्ण है। ‘प्रियतम कवयित्री के आराध्य देव हैं। वह अपने प्रियतम को पाने के लिए आस्था रूपी दीपक जलाना चाहती है। वह प्रियतम के साथ एकाकार होना चाहती है।

प्रश्न 2.
दीपक से किस बात का आग्रह किया जा रहा है और क्यों?
उत्तर
कवयित्री द्वारा दीपक से निरंतर हँस-हँसकर जलने का आग्रह किया जा रहा है। इसका कारण यह है कि यह दीपक कवयित्री की आस्था एवं भक्ति का दीप है। वह इस आस्था और भक्ति को कभी कम नहीं होने देना चाहती है, इसलिए वह चाहती है कि दीपक हँस-हँसकर जलता रहे।

प्रश्न 3.
‘विश्व-शलभ’ दीपक के साथ क्यों जल जाना चाहता है?
उत्तर
‘विश्व-शलभ’ का आशय है-सारा संसार। कवयित्री शलभ अर्थात् पतंगों के समान प्रभु भक्ति की लौ में लगकर अपने अहं को गलाना चाहती है। जिस प्रकार पतंगा दीपक के साथ जलकर अपना अस्तित्व मिटा देना चाहता है। वह सोचता है कि जब एक छोटा-सा दीपक अपने शरीर का कण-कण जलाकर औरों को प्रकाश दे सकता है तो वह भी किसी के लिए पना बलिदान देकर अनंत के साथ मिलकर एकाकार होना चाहता है। दूसरे शब्दों में, संसार के लोग अपने अहंकार को गलाकर प्रभु को पा लेना चाहते हैं।

प्रश्न 4.
आपकी दृष्टि में ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर है?
(क) शब्दों की आवृत्ति पर।
(ख) सफल बिंब अंकन पर।
उत्तर
(क) मेरा मानना यह है कि ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल।’ कविता का सौंदर्य शब्दों की आवृत्ति और सफल बिंबांकन दोनों पर ही निर्भर है; जैसे-
शब्दों की आवृत्ति से उत्पन्न सौंदर्य- इस कविता में अनेक स्थानों पर शब्दों की आवृत्ति से उत्पन्न सौंदर्य देखिए-

मधुर मधुर मेरे दीपक जल !
युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर !
सौरभ फैला विपुल धूप बन,
मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन;
दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल गल !
पुलक पुलक मेरे दीपक जल !

(ख) सफल बिम्बांकन से उत्पन्न सौंदर्य- कविता में बिम्बों को सफल अंकन हुआ है, इस कारण सौंदर्य में वृद्धि हो गई है-
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल
सौरभ फैला विपुल धूप बन
विश्व-शलभ सिर धुन कहता मैं
जलते नभ में देख असंख्यक
स्नेहहीन नित कितने दीपक
विद्युत ले घिरता है बादल !

प्रश्न 5.
कवयित्री किसका पथ आलोकित करना चाह रही हैं?
उत्तर
कवयित्री अपने प्रियतम का पथ आलोकित करना चाह रही हैं ताकि परमात्मा तक उसका पहुँचना आसान हो जाए। यदि प्रियतम तक पहुँचने का मार्ग अंधकारमय होगा तो लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो पाएगी। परमात्मा की प्राप्ति के लिए अहंकार को मिटाना पड़ता है। मन की अज्ञानता ही अंधकार है। कवयित्री अपना आस्था रूपी दीपक जलाकर अपने प्रियतम का पथ आलोकित करना चाह रही है।

प्रश्न 6.
कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से क्यों प्रतीत हो रहे हैं?
उत्तर
कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन इसलिए प्रतीत हो रहे हैं, क्योंकि-

  • आकाश में असंख्य तारे होने पर उनसे प्रकाश न निकलने पर ऐसा लगता है, जैसे उनका तेल समाप्त हो गया है।
  • ये तारागण दया, करुणा, प्रेम और सहानुभूति रहित मनुष्यों की भाँति हैं।
  • यदि इन तारों को तेल मिल जाए तो इनसे प्रकाश फूट पड़ेगा।
  • मनुष्य की भाँति ही इन दीपकों को भी प्रकाशपुंज की आवश्यकता है।

प्रश्न 7.
पतंगा अपने क्षोभ को किस प्रकार व्यक्त कर रहा है?
उत्तर
पतंगा दीपक की लौ में जलना चाहता है परंतु वह जल नहीं पाता। वह अपना क्षोभ सिर धुन-धुनकर व्यक्त कर रहा है। पतंगा दीपक से बहुत स्नेह करता है और उसकी लौ पर मर-मिटना चाहता है जब वह यह अवसर खो देता है तब वह पछताकर अपना क्षोभ व्यक्त करता है। इसी प्रकार मनुष्य भी अपने अहंकार को त्यागकर परमात्मा को पाना चाहता है परंतु अहंकार के रहते वह ईश्वर को पाने में असफल रहता है।

प्रश्न 8.
कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग-अलग तरह से मधुर मधुर, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस जलने को क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कवयित्री अपने प्रभु के प्रति असीम आस्था और आध्यात्मिकता का दीप खुशी से जलाए हुए है। भक्ति का यह भाव निरंतर बनाए रखने के लिए दीपक अलग-अलग जलने के लिए कहती है। दीपक जलने के लिए प्रयुक्त किए गए अलग-अलग शब्दों के भाव इस प्रकार हैं-
मधुर-मधुर- मन की खुशी को प्रकट करने के लिए मंद-मंद मुसकान का प्रतीक।
पुलक-पुलक- मन की खुशी को मुखरित करने के लिए हँसी का प्रतीक।
विहँसि-विहँसि- मन के उल्लास को प्रकट करने के लिए उन्मुक्त हँसी का प्रतीक।

प्रश्न 9.
नीचे दी गई काव्य-पंक्तियों को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए

जलते नभ में देख असंख्यक,
स्नेहहीन नित कितने दीपक;
जलमय सागर का उर जलता,
विद्युत ले घिरता है बादल!
विहँस विहँस मेरे दीपक जल!

(क) ‘स्नेहहीन दीपक’ से क्या तात्पर्य है?
(ख) सागर को जलमय’ कहने का क्या अभिप्राय है और उसका हृदय क्यों जलता है?
(ग) बादलों की क्या विशेषता बताई गई है? ।
(घ) कवयित्री दीपक को ‘विहँस विहँस’ जलने के लिए क्यों कह रही हैं?
उत्तर
(क) स्नेहहीन दीपक का अर्थ है-कांतिहीन दीपक। आकाश में तारे ऐसे चमकते हैं मानो इन तारे रूपी दीपकों में स्नेह (तेल) समाप्त हो गया।

(ख) सागर को ‘जलमय’ कहने का तात्पर्य है-संसार के लोगों को सांसारिक सुख वैभव से भरपूर बताना, परंतु हर प्रकार की सुख-समृधि में रहते हुए भी लोग ईष्र्या, द्वेष और तृष्णा के कारण जल रहे हैं। वे पीड़ित हैं। वे सांसारिक तृष्णाओं के कारण जल रहे हैं तथा आध्यात्मिक ज्योति के अभाव में जल रहे हैं।

(ग) बादल अपने जल के दुवारा धरती को शीतल एवं हरा-भरा बना देते हैं। जब वे गरजते हैं तो उनमें बिजली पैदा होती है। बादलों में उत्पन्न बिजली क्षणभर के लिए प्रकाश फैला देती है। इसका सांकेतिक अर्थ है-युग के महा प्रतिभाशाली | लोग आध्यात्मिक क्षेत्र को छोड़कर सांसारिक उन्नति में विलीन हो गए हैं।

(घ) कवयित्री दीपक को विहँस-विहँस कर जलने के लिए इसलिए कह रही है क्योंकि वह अपनी प्रभु आस्था को लेकर संतुष्ट है, प्रसन्न है और वह उसे संसार भर में फैलाना चाहती है। उसे जलाना तो हर हाल में है ही। इसलिए विहँस-विहँस कर जलते हुए दूसरों को भी सुख पहुँचाया जा सकता है।

प्रश्न 10.
क्या मीराबाई और आधुनिक मीरा ‘महादेवी वर्मा इन दोनों ने अपने-अपने आराध्य देव से मिलने के लिए जो युक्तियाँ अपनाई हैं, उनमें आपको कुछ समानता या अंतर प्रतीत होता है? अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर

मीराबाई और आधुनिक मीरा कहलाने वाली कवयित्री महादेवी वर्मा दोनों ने जो युक्तियाँ अपनाई हैं उनमें असमानता अधिक समानता कम है क्योंकि-
असमानता – मीराबाई अपने प्रभु कृष्ण के रूप सौंदर्य पर मोहित हैं। वे उनसे मिलने के लिए उनकी चाकरी करना चाहती हैं। उनके लिए बाग लगाना चाहती है, ताकि कृष्ण वहाँ विहार के लिए आएँ तो मीरा उनके दर्शन कर सकें। वे लाल रंग की साड़ी पहनकर अर्धरात्रि में यमुना किनारे आने के लिए कृष्ण से कहती हैं। महादेवी वर्मा के प्रभु निराकार ब्रह्म हैं जिन तक पहुँचने के लिए वे अपनी आस्था का दीपक जलाए रखना चाहती हैं।
समानता – मीराबाई और महादेवी वर्मा दोनों ही अपने-अपने आराध्य की अनन्य भक्त हैं। वे पलभर के लिए भी अपने आराध्य को नहीं भूलना चाहती हैं।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए

प्रश्न 1.
दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल गल!
उत्तर
दीपक के व्यवहार की प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि सागर अपार, असीमित होता है, शरीर प्रतिदिन क्षीण होता है, दीपक की लौ भी प्रतिक्षण क्षीण होती है वह फिर भी प्रकाश फैलाती है उसी प्रकार हे हृदय रूपी दीपक, तू ज्ञान रूपी प्रकाश फैला तथा जीवन को प्रतिक्षण ईश्वर की आराधना में लीन कर दे। यहाँ मनुष्य को ईश्वर आराधना में लीन होने की प्रेरणा दी गई है।

प्रश्न 2.
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
उत्तर
भाव यह है कि कवयित्री अपनी आस्था का दीप एक पल के लिए भी नहीं बुझने देना चाहती है। यह दीप निरंतर अर्थात् प्रतिपल, प्रतिदिन और हर क्षण जलता रहे ताकि परमात्मा तक पहुँचने के मार्ग पर सर्वत्र आलोक बिखरा रहे।

प्रश्न 3.
मृदुल मोम-सा घुल रे मृदु तन!
उत्तर
कवयित्री का सर्वस्व समर्पण भाव व्यक्त हुआ है। वह कहती है-तू अपने नरम शरीर को कोमल मोम के समान पिघला दो अर्थात् तू अपनी कोमल भावनाओं के लिए प्रभु के चरणों में समर्पित हो जा । यहाँ मानव को मोमबत्ती के समान कोमल बनने की सलाह दी गई है।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
कविता में जब एक शब्द बार-बार आता है और वह योजक चिह्न द्वारा जुड़ा होता है, तो वहाँ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होता है; जैसे–पुलक-पुलक। इसी प्रकार के कुछ और शब्द खोजिए जिनमें यह अलंकार हो।
उत्तर
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 6 1

Hope given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 6 are helpful to complete your homework.

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 6 मधुर-मधुर मेरे दीपक जल Read More »

error: Content is protected !!