Author name: Raju

NCERT Solutions for Class 12 Sociology Social Change and Development in India Chapter 1 Structural Change (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 12 Sociology Social Change and Development in India Chapter 1 Structural Change (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 12 Sociology Social Change and Development in India Chapter 1 Structural Change (Hindi Medium)

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[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)

प्र० 1. उपनिवेशवाद का हमारे जीवन पर किस प्रकार का प्रभाव पड़ा है? आप या तो किसी एक पक्ष जैसे संस्कृति या राजनीति को केंद्र में रखकर, या सारे पक्षों को जोड़कर विश्लेषण कर सकते हैं?
उत्तर-

  • ब्रिटिश उपनिवेशवाद जो कि पूँजीवाद पर आधारित था, ने सीधे तौर पर निजी लाभ तथा ब्रिटिश पूँजीवाद के हितों पर अपना ध्यान केंद्रित किया।
  • जो भी नीतियाँ बनाई गईं, उनका उद्देश्य ब्रिटिश पूँजीवाद को विस्तारित तथा मजबूत करना था।
  • उसने कृषिगत भूमि के नियमों में भी बदलाव किए
    (क) इसने न केवल भूमि के स्वामित्व में बदलाव किए, बल्कि इस नीति ने यह भी निर्धारित किया कि कौन-सी फसल का उत्पादन किया जाना चाहिए तथा किसका नहीं?
    (ख) इन नीतियों ने वस्तुओं के उत्पादन तथा वितरण की पद्धति में भी बदलाव किए।
    (ग) इसने विनिर्माण क्षेत्रों में भी हस्तक्षेप किया।
    (घ) इसने जंगलों पर नियंत्रण करके पेड़ों का सफाया कर वहाँ बगान लगाना प्रारंभ कर दिया।
    (ङ) उपनिवेशवाद ने वन अधिनियम लागू किया। इसके कारण जनजातियों तथा चरवाहों के जीवन में बदलाव आया।
    (च) इसने लोगों को भारत के एक भाग से दूसरे भाग तक आने-जाने को भी सुगम बनाया। इस कारण लोगों में जागरूकता बढी तथा ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरुद्ध असंतोष और मुखर हुआ।

उपनिवेशवाद ने हमारे सांस्कृतिक तथा राजनीतिक जीवन को काफी प्रभावित किया तथा कमोवेश इसे एक-दूसरे के साथ मिलाने का भी काम किया। गतिशीलता तथा आधुनिक विचारधारा को अपनाने के कारण लोगों ने स्वतंत्रता तथा मानवाधिकारों के बारे में सोचना प्रारंभ किया। इसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की नींव को तैयार किया। उपनिवेशवाद का एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक प्रभाव भी था। जैसे कि भारतीय मध्यम वर्ग की जीवन शैली में परिवर्तन आया। इनके खानपान, भाषा तथा पहनावे में भी परिवर्तन आया।
उपनिवेशवाद का भारतीय समाज पर पड़ने वाला राजनीतिक प्रभाव बहुत ही गहरा था। इसने हमारे राष्ट्रीय आंदोलन, राजनीतिक पद्धति, संसदीय तथा विधिक पद्धति, संविधान, शिक्षा पद्धति तथा पुलिस यातायात के नियम तथा कुल मिलाकर पूरे राजनीतिक संरचना में उपनिवेशवाद के कारण बदलाव आए।

प्र० 2. औद्योगीकरण और नगरीकरण का परस्पर संबंध है। विचार करें।
उत्तर- औद्योगीकरण का संबंध यांत्रिक उत्पादन के उदय से है, जो शक्ति के गैरमानवीय संसाधन; जैसे-वाष्प या विद्युत पर निर्भर होता है।

  • औद्योगिक समाज की एक प्रमुख विशेषता है। कि लोग कृषि के बजाय अधिक संख्या में कारखानों, ऑफ़िसों और दुकानों में काम करते हैं।
  • 90 प्रतिशत से भी अधिक लोग कस्बों और शहरों में रहते हैं, क्योंकि वहीं पर रोजगार तथा व्यवसाय के अधिक अवसर होते हैं। ब्रिटेन का समाज औद्योगीकरण से गुजरने वाला पहला समाज था। अतः सबसे पहले ग्रामीण से रूपांतरित होकर नगरीय देश बना।
  • ब्रिटिश शासन काल के दौरान कुछ क्षेत्रों में औद्योगीकरण के कारण पुराने नगरीय केंद्रों का क्षरण हुआ।
  • उपनिवेशी शासन काल के दौरान पुराने नगरीय केंद्रों का क्षरण हुआ तथा नए उपनिवेशवादी नगर बस गए। उदाहरणार्थ, सूरत तथा मसुलीपट्नम ने अपना आकर्षण खो दिया तथा मुंबई तथा चेन्नई महत्त्वपूर्ण शहर बनकर उभरे।
  • जब ब्रिटेन में निर्माण क्षेत्रों में तेजी आई हुई थी, तब भारत के परंपरागत, निर्यातक वस्तुओं रेशम तथा कपास के उत्पादन तथा निर्यात में गिरावटआई क्योंकि ये ‘मैनचेस्टर’ की प्रतियोगिता नहीं कर सकते थे।
  • उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में, भारत के कुछ शहरों में औद्योगीकरण के कारण उनकी जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई।
  • पूर्वी भारत के उन क्षेत्रों के अतिरिक्त यहाँ ब्रिटिश का आगमन जल्दी तथा सघन था, दूसरे क्षेत्र अधिक समय तक इससे अप्रभावित रहे। *उदाहरणार्थ-सुदूर गाँवों की ग्रामीण शिल्पकला इससे काफी समय तक अप्रभावित रही। इन पर प्रभाव तभी पड़ा जब रेलवे का विस्तार हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने औद्योगीकरण के संरक्षण तथा संवर्द्धन के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठाए।
  • उदारीकरण की वर्तमान नीति के कारण शहरो का तीव्र विकास हुआ है।

प्र० 3. किसी ऐसे शहर या नगर को चुनें जिससे आप भली-भाँति परिचित हैं। उस शहर/नगर के इतिहास, उसके उद्भव और विकास, तथा समसामयिक स्थिति का विवरण दें।
उत्तर- स्वयं करें।

प्र० 4. आप एक छोटे कस्बे या बहुत बड़ा शहर या अर्धनगरीय स्थान, या एक गाँव में रहते हैं

  • जहाँ आप रहते हैं उस जगह का वर्णन करें।
  • वहाँ की विशेषताएँ क्या हैं, आप को क्या लगता है कि वह एक कस्बा है शहर नहीं, एक गाँव है। कस्बा नहीं यो शहर है गाँव नहीं?
  • जहाँ आप रहते हैं क्या वहाँ कोई कारखाना है?
  • क्या लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती है?
  • क्या व्यवसाय वहाँ निर्णायक रूप में प्रभावशाली है?
  • क्या वहाँ इमारतें हैं?
  • क्या वहाँ शिक्षा की सुविधाएँ उपलब्ध हैं?
  • लोग कैसे रहते और व्यवहार करते हैं?
  • लोग किस तरह बात करते और कैसे कपड़े पहनते हैं?

उत्तर- स्वयं करें।

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NCERT Solutions for Class 12 Sociology Social Change and Development in India Chapter 3 The Story of Indian Democracy (Hindi Medium)

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[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)

प्र० 1. हित समूह प्रकार्यशील लोकतंत्र के अभिन्न अंग हैं। चर्चा कीजिए।
उत्तर-

  • हित समूहों का गठन राजनीति के क्षेत्र में कुछ विशेष हितों की पूर्ति के लिए किया जाता है। ये हित समूह सरकार पर अपना दबाव कायम करते हैं।
  • यदि कुछ समूहों को ऐसा प्रतीत होता है कि उनके हित का ध्यान नहीं रखा जा रहा है, तो वे कोई वैकल्पिक पार्टी बना लेते हैं।
  • लोकतंत्र लोगों का, लोगों के लिए तथा लोगों के द्वारा निर्मित शासन प्रणाली है। इस प्रणाली के अंतर्गत विभिन्न हित समूहों की सरकार की कार्य प्रणाली के बारे में जानकारी दी जाती है।
  • हित समूह निजी संगठन होते हैं। ये सार्वजनिक नीतियों के निर्माण में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं।
  • ये एक गैर-राजनीतिक दल होते हैं तथा इनका लक्ष्य अपने हितों की पूर्ति करना होता है। राजनीतिक दल एक संगठित संस्था होते हैं, जिनका लक्ष्य सत्ता प्राप्त कर विशेष कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करना होता है। विभिन्न हित समूह राजनीतिक पार्टियों पर दबाव कायम करते हैं।
  • इन हित समूहों को जब तक मान्यता नहीं मिल जाती, एक आंदोलन के तौर पर जाने जाते हैं।
  • दबाव समूह भारतीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं तथा कई महत्वपूर्ण कार्य करते है। जैसे
    (क) जनमत का निर्माण – विभिन्न प्रकार के प्रचार माध्यमों के द्वारा ये एक जनमत का निर्माण करते हैं। ये जनता की सहानुभूति प्राप्त करने व सरकार की व्यवस्था में परिवर्तन के लिए टी०वी०, रेडियो, ई-मेल, तथा सामाजिक मीडिया के अन्य साधनों का इस्तेमाल करते हैं। वे ट्वीटर तथा फेसबुक का भी इस्तेमाल अपने विचारों को लोगों के समक्ष रखने हेतु करते हैं।
    (ख) प्राकृतिक आपदाओं के समय क्रिया शीलता – इस तरह के हित समूह प्राकृतिक आपदाओं के समय लोगों को मदद पहुँचाते हैं। जैसे केदारनाथ में आई विपदा, भूकंप इत्यादि में हित समूहों ने लोगों की काफी मदद पहुँचाई। इस तरह के कार्यों से ये लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकृष्ट करने में सफल होते हैं तथा अंततः सरकार पर अपना दबाव बनाते हैं।

प्र० 2. संविधान सभा की बहस के अंशों का अध्ययन कीजिए। हित समूहों को पहचानिए। समकालीन भारत में किस प्रकार के हित समूह हैं? वे कैसे कार्य करते हैं?
उत्तर- बहस के अंश

  • के०टी० शाह ने कहा कि लाभदायक रोजगार को श्रेणीगत बाध्यता के द्वारा वास्तविक बनाया जाना चाहिए और राज्यों की यह जिम्मेदारी है कि वह सभी समर्थ एवं योग्य नागरिकों की लाभदायक
    रोजगार उपलब्ध कराए।
  • बी० दास ने सरकार के कार्यों को उचित अधिकार क्षेत्र तथा अनुचित अधिकार क्षेत्र में विभाजित किए जाने का विरोध किया। उनका कहना था-‘मैं समझता हूँ कि भुखमरी को समाप्त करना, सभी नागरिकों को समाजिक न्याय देना और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार को प्राथमिक कर्तव्य है।…..लाखों लोगों की सभा यह मार्ग नहीं हूँढ़ पाई कि संघ का संविधान उनकी भूख से मुक्ति कैसे सुनिश्चित करेगा, समाजिक न्याय, न्यूनतम मानक जीवन-स्तर और न्यूनतम जन-स्वास्थ्य कैसे सुनिश्चित करेगा।”
    अंबेडकर को उत्तर – “संविधान का जो प्रारूप बनाया गया है, वह देश के शासन के लिए केवल एक प्रणाली उपलब्ध कराना है। इसकी यह योजना बिल्कुल नहीं है कि अन्य देशों की तरह कोई विशेष दल को सत्ता में लाया जाए। यदि व्यवस्था लोकतंत्र को संतुष्ट करने में खरी नहीं, उतरती है, तो किसे शासन में होना चाहिए, इसका निर्धारण जनता करेगी।”
  • भूमि सुधार के विषय पर नेहरू ने कहा कि सामाजिक शक्ति इस तरह की है कि कानून इस संदर्भ में कुछ नहीं कर सकता, जो इन दोनों की गतिशीलता की एक प्रतिकृति है। “यदि कानून और संसद स्वयं को बदलते परिदृश्य के अनुकूल नहीं कर पाएँगे, तो स्थितियों पर नियंत्रण कठिन होगा।”
  • संविधान सभा की बहस के समय आदिवासी हितों की रक्षा के मामले में जयपाल सिंह से नेहरू ने कहा-”यथासंभव उनकी सहायता करना हमारी अभिलाषा और निश्चित इच्छा है; यथासंभव उन्हें कुशलतापूर्वक उनके लोभी पड़ोसियों से बचाया जाएगा और उन्हें उन्नत किया जाएगा।”
  • संविधान सभा ने ऐसे अधिकारों को जिन्हें न्यायालय नहीं लागू करवा सकता, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धातों के शीर्षक के रूप में स्वीकार किया तथा इनमें सर्व-स्वीकृति से कुछ अतिरिक्त सिद्धांतों को जोड़ा गया। इनमें के० संथानम का वह खंड भी है, जिसके अनुसार राज्य को ग्राम-पंचायतों की स्थापना करनी चाहिए तथा स्थानीय स्वशासन के लिए उन्हें अधिकार और शक्ति भी देनी चाहिए।
  • टी०ए० रामालिंगम चेट्टियार ने ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी कुटीर उद्योगों के विकास से संबंधित खंड जोड़ा। प्रख्यात सांसद ठाकुरदास भार्गव ने यह खंड जोड़ा कि राज्य को कृषि एवं पशुपालन को आधुनिक प्रणाली से व्यवस्थित करना चाहिए।

प्र० 3. विद्यालय में चुनाव लड़ने के समय अपने आदेश पत्र के साथ एक फड़ बनाइए (यह पाँच लोगों के एक छोटे समूह में भी किया जा सकता है, जैसे पंचायत में होता है।)
उत्तर- विद्यालय पंचायत के एक सदस्य के रूप में हमारा ध्यान निम्न विषयों पर होगा-

  • पंचायत के सदस्य छात्रों में स्वअनुशासन की भावना लाने की शिक्षा देने का प्रयास करेंगे। छात्रों के बीच हम अन्य छात्रों के लिए प्रेरणास्रोत बनेंगे।
  • सह-शिक्षा वाले विद्यालयों में हम यह सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगे कि लड़कियों को सम्मान तथा सुरक्षा मिले। अतएवं हम अप्रत्यक्ष रूप से एक स्वस्थ समाज के निर्माण की नींव रखने की कोशिश करेंगे।
  • हम एक ऐसा तरीका विकसित करेंगे, जिसके द्वारा छात्रों को विद्यालय में ही स्वाध्याय और व्यावसायिक कोर्स के लिए विशेष कोचिंग दी जा सके।
  • पंचायत विशेष श्रेणी वाले बच्चों पर विशेष ध्यान देगी तथा उनके लिए शिक्षा को बेहतर बनाएगी।
  • पंचायत प्राचार्य से समन्वय स्थापित करेगी तथा उचित शिक्षक-छात्र अनुपात, नामांकन नीति, यूनीफार्म, मध्याह्न भोजन के वितरण आदि मसलों पर दबाव बनाने का काम करेगी।
  • पंचायते प्राचार्य तथा प्रबंधकीय कर्मचारियों के बीच | खेलकूद, पाठ्येत्तर गतिविधियों तथा विद्यालय में शिक्षा हेतु नवीन तकनीक के प्रयोग के मामले पर तालमेल बिठाने का प्रयास करेंगी।

प्र० 4. क्या आपने बाल मजदूर तथा मजदूर किसान संगठन के बारे में सुना है? यदि नहीं, तो पढ़ा कीजिए और उनके बारे में 200 शब्दों में एक लेख लिखिए।
उत्तर- बाल मजदूरी-मानव जगत् के सपनों एवं उमंगों का पुंज बालकों को माना गया है। बच्चे राष्ट्र के भविष्य का नेतृत्व करते हैं। वे देश की प्रगति का आइना एवं भावी कर्णधार हैं। उनका चमकता हुआ चेहरा यदि किसी देश की प्रगति और खुशहाली का प्रतीक है। तो उनका मुरझाया हुआ चेहर देश की विषमता एवं विपन्नता का प्रतीक है। हालाँकि विडंबना इस बात की है कि आज अधिकतर बच्चों का जीवन संघर्षों एवं असामान्य परिस्थितियों में बीत रहा है।

प्राचीनकाल से ही बाल श्रमिक भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं। हालाँकि उस समय गरीबी, रूढ़िवादिता तथा भाग्यवादिता के कारण उनकी शिक्षा तथा उनके सर्वांगीण विकास की ओर ध्यान नहीं दिया गया। फलतः उनका बचपन मजदूरी की के हवनकुंड में होम कर दिया गया। उनके हाथ में कलम और किताब के स्थान पर हँसिया और फावड़ा पकड़ा दिया गया। वही सिलसिला बदले हुए परिवश में कुछ। हद तक प्यारी है। बाल मजदूरी को बढ़ावा देने में सबसे अहम भूमिका उन किसानों, छोटे व्यवसायियों एवं उद्योगपतियों को है जो आधी मजदूरी पर छोटे बच्चों के श्रम का अधिक से अधिक दोहन करना चाहते हैं। साथ-साथ “जितने हाथ उतने काम की मानसिकता ने भी बालश्रम को बढ़ावा दिया है।

दुनिया में सबसे ज्यादा बाल मजदूर भारत में ही हैं। 1991 की जनगणना के अनुसार बाल मजदूरों का आंकड़ा 11.3 मिलियन या 2001 में यह आंकड़ा बढ़कर 12.7 मिलियन पहुँच गया। बाल मजदूरों की संख्या में बेतहाश वृद्धि को ध्यान में रखकर सरकार ने चाइल्ड लेबर एक्ट बनायी, जिसके अंतर्गत बाल मजदूरी को अपराध माना गया तथा रोजगार पाने की न्यूनतम आयु 11 वर्ष कर दी। बाल मजदूरी से निपटने के लिए सरकार ने आठवीं तक की शिक्षा अनिवार्य तथा नि:शुल्क कर दिया है किंतु गरीबी और बेबसी के आगे यह योजना अप्रभावी साबित होती दिखाई देती है। माता-पिता बच्चों को इसलिए स्कूल नहीं भेजते हैं कि घर की आमदनी इतनी कम जाएगी कि रोजी-रोटी के लाले पड़े जाएँगे।

अतः यह नि:संदेह रूप से यह कहा जाता है बाल मजदूरी का सिर्फ एक मात्र कारण है-गरीबी। बाल मजदूरी को समाप्त करने के लिए गरीबी को समाप्त करना जरूरी है। ऐसे बच्चों और उनके परिवारों को दो वक्त की खाना मुहैया कराना। इसके लिए सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। साथ-साथ आम जनता की भी इसमें सहभागिता जरूरी है। देश का प्रत्येक सक्षम व्यक्ति ऐसे परिवारों की सहायता करने लगें तो सारी परिदृश्य बदल सकता हैं।
मजदूर किसान संगठननिर्देश – मजदूर किसान संगठनों के बारें में इंटरनेट से अधिक से अधिक जानकारी एकत्र करें एवं उसे स्वयं लेख को स्वरूप में लिखने की कोशिश करें।

प्र० 5. ग्रामीणों की आवाज को सामने लाने में 73 वाँ संविधान संशोधन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। चर्चा कीजिए।
उत्तर- 73 वाँ संशोधन ग्रामीण लोगों की आवाज बुलंद करने हेतु एक मिसाल की तरह है। इसका कारण यह है कि यह संशोधन राज्य के नीति निर्देशक तत्वों तथा पंचायती राज से संबंधित है। यह संशोधन जनता की शक्ति के सिद्धांतों पर आधारित है तथा पंचायतों को संवैधानिक संरक्षण प्रदान करता है।
अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ।

  • पंचायतों का स्वायत्तशासी सरकार के रूप में मान्यता।
  • आर्थिक विकास तथा सामाजिक न्याय हेतु कार्यक्रम तैयार करने हेतु पंचायतों को शक्तियाँ।
  • पंचायतों की एक मजबूत त्रिस्तरीय-ग्राम, प्रखंड तथा जिला स्तर पर व्यवस्था। यह व्यवस्था उन सभी राज्यों में होगी, जहाँ की आबादी 20 लाख से अधिक है।
  • यह अधिनियम दिए गए क्षेत्र के कमजोर वर्गों के लिए पंचायतों में हिस्सेदारी, पंचायतों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, वित्तीय व्यवस्था तथा चुनाव इत्यादि के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करता है।
    अधिनियम का महत्त्व
  • जमीनी स्तर पर लोकतंत्र की लाने में यह एक क्रांतिकारी कदम था।
  • 73 वें संशोधन अधिनियम के दिशा-निर्देशों क आलोक में सभी राज्यों ने अपने यहाँ कानून बनाए।
  • इस अधिनियम के कारण पंचायती राज्य का विचार जमीनी स्तर पर यथार्थ रूप में सामने आया।

प्र० 6. एक निबंध लिखकर उदाहरण देते हुए उन तरीकों को बताइए जिनसे भारतीय संविधान ने साधारण जनता के दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण है। और उनकी समस्याओं का अनुभव किया है।
उत्तर-

  • भारत के संविधान ने हम सबके लिए एक लोकतांत्रिक पद्धति प्रदान की है।
  • लोकतंत्र जनता के, जनता से तथा जनता के लिए बनी शासन-व्यवस्था है। यह केवल राजनैतिक स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय तक ही सीमित नहीं है। यह सभी जाति, धर्म, कुल तथा लिंगों के लिए
    समान स्वतंत्रता प्रदान करता है।
  • भारत के संविधान ने धर्मनिरपेक्षता को स्थापित किया है। हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं तथा सभी भारतीयों को अपने धर्म के प्रति आस्था रखने की पूरी स्वतंत्रता है। भारत का संविधान अल्पसंख्यकों को भी समान अधिकार प्रदान करता है तथा उनके विकास के लिए उसमें बहुत सारे उपबंध विद्यमान हैं।
  • भारत एक कल्याणकारी राज्य है तथा यहाँ का समाज सामाजिकता से संरक्षित है। यह हमारा कर्तव्य है कि हम सार्वजनिक तथा राष्ट्रीय संपत्ति की हिफाजत करें। यह संविधान हम सबके लिए इस बात का समान अवसर प्रदान करता है कि हम संसाधनों का उपयोग करें तथा आर्थिक विकास के लिए प्रयत्न करें।
  • भारत का संविधान यहाँ के नागरिकों को समान रूप से सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय एवं समानता प्रदान करता है। अतएव यह हमारा कर्तव्य है कि हम सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों; जैसे- जनसंख्या नियंत्रण, चेचक, मलेरिया तथा पल्स पोलियो उन्मूलन कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी प्रदान करें। खाद्य सुरक्षा अधिनियम, सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार तथा महिलाओं के सशक्तिकरण के प्रयास कुछ ऐसे कदम हैं, जिन्हें सरकार ने उठाए हैं, ताकि लोकतंत्र को मजबूती प्रदान की जा सके।

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NCERT Solutions for Class 12 Sociology Social Change and Development in India Chapter 4 Change and Development in Rural Society (Hindi Medium)

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[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)

प्र० 1. नीचे लिखे गद्यांश को पढ़े तथा प्रश्नों के उत्तर दें-
अघनबीघा में मजदूरों की कठिन कार्य-दशी, मालिकों के एक वर्ग के रूप में आर्थिक शक्ति तथा प्रबल जाति के सदस्य के रूप में अपरिमित शक्ति के संयुक्त प्रभाव का परिणाम थी। मालिकों की सामाजिक शक्ति का एक महत्वपूर्ण पक्ष, राज्य में विभिन्न अंगों का अपने हितों के पक्ष में करवा सकने की क्षमता थी। इस प्रकार प्रबल तथा निम्न वर्ग के मध्य खाई को चौड़ा करने में राजनीतिक कारकों का निर्णयात्मक योगदान रहा है।
(i) मालिक राज्य की शक्ति को अपने हितों के लिए कैसे प्रयोग कर सके, इस बारे में आप क्या सोचते हैं?
(ii) मजदूरों की कार्य दशा कठिन क्यों थी?
उत्तर-
(i) एक प्रबल जाति के होने के कारण मालिक लोग राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक रूप से बेहद शक्तिशाली थे। शक्ति-संपन्न होने के कारण वे अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति हेतु राज्य की शक्तियों का प्रयोग करते थे। वे अपने लाभ के लिए बड़ी ही कुशलता से राज्य की विभिन्न संस्थाओं का उपयोग करते थे।
(ii) श्रमिक बड़ी ही विषम परिस्थितियों में काम करते थे। दलित होने के कारण वे अपनी भूमि नहीं खरीद सकते थे। उन्हें प्रभुत्वसंपन्न जातियों के खेतों में श्रमिक के तौर पर काम करने के लिए मजबूर किया जाता था।

प्र० 2. भूमिहीन कृषि मज़दूरों तथा प्रवसन करने वाले मजदूरों के हितों की रक्षा करने के लिए आपके अनुसार सरकार ने क्या उपाय किए हैं, अथवा क्या किए जाने चाहिए?
उत्तर- भूमिहीनों के संरक्षण के लिए उपाय

  • विधिक रूप से बंधुआ मजदूरी की समाप्ति – उत्तर प्रदेश तथा बिहार में बंधुआ मजदूरी की प्रथा, गुजरात में हेलपति तथा कर्नाटक में जोता व्यवस्था की भारत सरकार द्वारा कानूनी रूप से समाप्ति।
  • जमींदारी व्यवस्था का उन्मूलन – किसानों तथा राज्यों के बीच जमींदार बिचौलिए थे। सरकार ने बड़े ही प्रभावशाली तथा गहन रूप से अधिनियम को पारित कर इस व्यवस्था को खत्म कर दिया।
  • पट्टेदारी समाप्ति तथा नियमन अधिनियम – इस कानून ने बँटाईदारी व्यवस्था को हतोत्साहित किया। पश्चिम बंगाल तथा केरल, जहाँ की साम्यवादी सरकारें थीं, वहाँ पट्टेदारों को जमीन पर अधिकार दिए गए।
  • भूमि हदबंदी अधिनियम का प्रावधान – इस अधिनियम के अनुसार, भू-स्वामियों के द्वारा रखी जाने वाली जमीन की अधिकतम सीमा तय कर दी गई। अतिरिक्त भूमि की पहचान कर उसे भूमिहीनों के बीच वितरित करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर दी गई। विनोबा भावे की भू-दान योजना ने इस कानून के क्रियान्वयन में मदद की। किंतु इस अधिनियम में बहुत सारी त्रुटियाँ भी हैं, जिनका कि निराकरण होना चाहिए।
    भूमिहीन श्रमिकों की दशाओं को सुधारने के लिए समुचित प्रयास किए जाने चाहिए तथा इस पूरे क्षेत्र को संगठित किया जाना चाहिए।
  • गाँवों की आर्थिक अवस्था को राज्यों के द्वारा सुधारा जाना चाहिए। गाँवों का संबंध शेष जगत् से अच्छी तरह से होना चाहिए। गाँवों में रोजगार के अवसरों का सृजन किया जाना चाहिए। शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ-साथ गाँवों में मनोरंजन की सुविधाएँ भी प्रदान की जानी चाहिए ताकि श्रमिकों में पलायन की प्रवृत्ति पर रोक लग सके। इसके लिए मनरेगा (MANREGA) एक अच्छी पहल है।
  • भूमि की चकबंदी – भू-स्वामी किसानों को बिखरी हुई अथवा भूमि के छोटे-छोटे टुकड़ों के बजाय । एक या दो भूमि का बड़ा आकार वाला भाग दिया जाना चाहिए। इसे स्वैच्छिक अथवा अनिवार्य किसी भी रूप में कार्यान्वित किया जाना चाहिए। इससे किसानों की कार्यक्षमता में काफी वृद्धि होगी।

प्र० 3. कृषि मजदूरों की स्थिति तथा उनकी सामाजिक-आर्थिक उर्ध्वगामी गतिशीलता के अभाव के बीच एक सीधा संबंध है। इनमें से कुछ के नाम बताइए।
उत्तर-

  • भारतीय ग्रामीण समाज पूरी तरह से कृषि पर आश्रित है। यह उनकी आजीविका का एकमात्र साधन है। दुर्भाग्यवश भूमि का वितरण समान तथा संगठित रूप से ग्रामीण समाज के भूमिहीनों के बीच नहीं किया गया। • भारतीय ग्रामीण समाज में नाते-रिश्तेदारी की प्रथा प्रचलित है। कानून के मुताबिक महिलाओं को परिवार की संपत्ति पर समान रूप से अधिकार है। लेकिन व्यावहारिक रूप से कागजों पर ही सीमित है। पुरुषों के प्रभुत्व के कारण उन्हें इस अधिकार से वंचित कर दिया गया है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकांश लोग भूमिहीन हैं तथा वे अपनी आजीविका के लिए कृषि श्रमिक बन जाते हैं। उन्हें निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी मिलती है। उनका रोजगार सुरक्षित नहीं होता। उन्हें नियमित रूप से काम भी नहीं मिलते। अधिकांश कृषि श्रमिक दैनिक मजदूरी पर काम करते हैं।
  • पट्टेदारों को भी अधिक आमदनी नहीं होती क्योंकि उन्हें अपने उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा भू-स्वामी को देना पड़ता है।
  • भूमि का स्वामित्व ही किसानों की सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता का निर्धारक है। अतएव ग्रामीण समाज को एक वर्ग संरचना के रूप में जाति व्यवस्था के आधार पर देखा जा सकता है।
  • यद्यपि यह हमेशा सत्य नहीं होता। उदाहरण के तौर पर, ग्रामीण समाज में ब्राह्मण एक प्रभुत्वसंपन्न जाति है, किंतु यह प्रभुत्व भू-स्वामी नहीं है। इसलिए यह ग्रामीण समाज का अंग तो है, किंतु कृषि संरचना
    से बाहर है।

प्र० 4. वे कौन से कारक हैं, जिन्होंने कुछ समूहों को नव धनाढ्य, उद्यमी तथा प्रबल वर्ग के रूप में परिवर्तन को संभव किया है? क्या आप अपने राज्य में इस परिवर्तन के उदाहरण के बारे में सोच सकते हैं?
उत्तर- निम्नलिखित कारकों ने कुछ समूहों को नवधनाढ्य, उद्यमी तथा प्रबल वर्ग के रूप में परिवर्तन को संभव किया
(i) नयी तकनीक
(ii) यातायात के साधन
(iii) नए-नए क्षेत्रों में निवेश की सुविधा।
(iv) शिक्षा
(v) विकसित क्षेत्रों की तरफ पलायन
(vi) राजनीतिक गतिशीलता
(vi) बाह्य अर्थव्यवस्था से जुड़ाव
(vii) मिश्रित अर्थव्यवस्था।
हाँ, मैं अपने राज्य में इस प्रकार के परिवर्तन के बारे में सोच सकता हूँ। उपरोक्त कारकों के साथ किसी भी राज्य या कोई भी समूह उद्यमी तथा प्रबल वर्ग में परिवर्तित हो सकता है।

प्र० 5. हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्में अकसर ग्रामीण परिवेश में होती हैं। ग्रामीण भारत पर आधारित किसी फिल्म के बारे में सोचिए तथा उसमें दर्शाए गए कृषक समाज और संस्कृति का वर्णन कीजिए। उसमें दिखाए गए संस्कृति वास्त. चिक कितने हैं? क्या आपने हाल में ग्रामीण क्षेत्र पर आधारित फिल्म देखी है? यदि नहीं तो आप इसकी व्याख्या किस प्रकार से करेंगे?
उत्तर- स्वयं करें।

प्र० 6. अपने पड़ोस में किसी निर्माण स्थल, ईंट के भट्टे या किसी अन्य स्थान पर जाएँ जहाँ आपको प्रवासी मजदूरों के मिलने की संभावना हो, पता लगाइए कि वे मजदूर कहाँ से आए हैं? उनके गाँव से उनकी भर्ती किस प्रकार की गई, उनका मुकादम कौन है? अगर वे ग्रामीण क्षेत्र से हैं तो गाँवों में उनके जीवन के बारे में पता लगाइए तथा उन्हें काम ढूँढ़ने के लिए प्रवासन करके बाहर क्यों जाना पड़ा?
उत्तर- स्वयं करें।

प्र० 7. अपने स्थानीय फल विक्रेता के पास जाएँ और उससे पूछे कि वे फल जो वह बेचता है कहाँ से आते हैं, और उनका मूल्य क्या है। पता लगाइए कि भारत के बाहर से फलों के आयात (जैसे कि आस्ट्रेलिया से सेब) के बाद स्थानीय उत्पाद के मूल्यों का क्या हुआ। क्या कोई ऐसा आयातित फल है जो भारतीय फलों से सस्ता है?
उत्तर- स्वयं करें।

प्र० 8. ग्रामीण भारत में पर्यावरण स्थिति के विषय में जानकारी एकत्र कर एक रिपोर्ट लिखें। उदाहरण के लिए विषय, कीटनाशक, घटता जल स्तर, तटीय क्षेत्रों में झींगें की खेती का प्रभाव, भूमि का लवणीकरण तथा नहर सिंचित क्षेत्रों में पानी को जमाव, जैविक विविधता का ह्रास।
उत्तर- स्वयं करें।

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NCERT Solutions for Class 12 Sociology Indian Society Chapter 2 The Demographic Structure of the Indian Society (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 12 Sociology Indian Society Chapter 2 The Demographic Structure of the Indian Society (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 12 Sociology Indian Society Chapter 2 The Demographic Structure of the Indian Society (Hindi Medium)

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[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)

प्र० 1. जनसांख्यिकीय संक्रमण के सिद्धांत के बुनियादी तर्क को स्पष्ट कीजिए। संक्रमण अवधि
‘जनसंख्या विस्फोट’ के साथ क्यों जुड़ी है?
उत्तर- जनसांख्यिकीय संक्रमण का सिद्धांत यह बताता है कि जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास के सभी स्तरों से जुड़ी होती है तथा प्रत्येक समाज विकास से संबंधित जनसंख्या वृद्धि के एक निश्चित स्वरूप का अनुसरण करता है।
जनसंख्या वृद्धि की तीन आधारभूत अवस्थाएँ होती हैं
प्रथम अवस्था प्राथमिक अवस्था (अल्प-विकसित देश)-

  • चूँकि ये देश अल्प-विकसित तथा तकनीकी रूप से पिछड़े होते हैं, अतः समाज में जनसंख्या की वृद्धि कम होती है।
  • इस तरह के समाजों में, जैसे कि अफ्रीका-जन्म-दर उच्च होती है, क्योंकि लोग छोटे परिवार से होने वाले लाभों से अनभिज्ञ होते हैं। वे शिक्षित नहीं होते।
  • मृत्यु-दर भी उच्च होती है, क्योंकि स्वास्थ्य तथा चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होतीं। अतएव, जनसंख्या कम होती है।

द्वितीयक अवस्था (विकासशील देश) – जन्म-दर तथा मृत्यु-दर दोनों का ही स्तर बहुत ऊँचा होता है। विशुद्ध संवृद्धि दर भी निम्न होती है। जन्म-दर ऊँची होती है, क्योंकि इन देशों का समाज पुरुष प्रमुख वाला होता है तथा पुरुष ही यह निर्णय करते हैं कि कितने बच्चे को जन्म दिया जाए। वे बालकों को प्राथमिकता देते हैं। लोग अज्ञानी तथा अशिक्षित होते हैं। मृत्यु-दर भी उच्च होती है, क्योंकि स्वास्थ्य तथा चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होतीं।
तृतीयक अवस्था (विकसित देश) – जन्म-दर कम होती है क्योंकि लोग शिक्षित और जागरूक होते हैं। तथा गर्भ निरोधी उपायों का प्रयोग करते हैं। स्वास्थ्य तथा चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता के कारण मृत्यु-दर भी कम होती है। अतः जनसंख्या कम होती है।
संक्रमण की अवस्था (पिछड़ापन तथा निपुण जनसंख्या के बीच की अवस्था) – इस अवस्था में जनसंख्या वृद्धि की दर काफी ऊँची होती है, जबकि बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं, पोषण तथा आधुनिक चिकित्सा तकनीक के कारण मृत्यु-दर में कमी आती है। इसी कारण से संक्रमण काल जनसंख्या विस्फोट से जुड़ा होता है।

प्र० 2. माल्थस का यह विश्वास क्यों था कि अकाल और महामारी जैसी विनाशकारी घटनाएँ, जो बड़े पैमाने पर मृत्यु का कारण बनती हैं, अपरिहार्य हैं?
उत्तर- अंग्रेज़ राजनीतिक अर्थशास्त्री थामस रॉबर्ट माल्थस का मानना था कि जीवन-निर्वाह के साधनों (जैसे-भूमि, कृषि) की तुलना में मानवीय जनसंख्या की वृद्धि की दर तेज़ होती है। उनका कहना था कि जनसंख्या में वृद्धि ज्यामितीय गति से होती है, जबकि कृषि का उत्पादन अंकगणितीय गति से होता है। माल्थस का ऐसा विश्वास था कि जनसंख्या पर नियंत्रण का प्राकृतिक निरोध, जैसे-अकाल, बीमारियाँ इत्यादि अवश्यंभावी हैं। यह खाद्य आपूर्ति तथा जनसंख्या वृद्धि के बीच संतुलन स्थापित करने का प्राकृतिक तरीका है। उनके अनुसार, इस तरह के प्राकृतिक निरोध काफी कष्टकारी तथा कठिन होते हैं। यद्यपि यह जनसंख्या तथा आजीविका के बीच संतुलन का काम मृत्यु-दर में बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप करता है।

प्र० 3. मृत्यु दर और जन्म दर का क्या अर्थ है? कारण स्पष्ट कीजिए कि जन्म दर में गिरावट अपेक्षाकृत धीमी गति से क्यों आती है जबकि मृत्यु-दर बहुत तेजी से गिरती है।
उत्तर- जनसांख्यिकीय में जन्म-दर तथा मृत्यु-दर आधारभूत अवधारणाएँ हैं। जन्म-दर-जन्म-दर से तात्पर्य एक विशेष क्षेत्र में जो एक पूरा देश, राज्य अथवा कोई प्रादेशिक इकाई हो सकता है, एक निर्धारित अवधि के दौरान जन्म लेने वाले बच्चों की कुल संख्या से है।

  • बच्चे के जन्म-दर को निम्नलिखित विधि से व्यक्त किया जाता है।
    \(\frac { B }{ P }\) x 100
    B = जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या
    P= संपूर्ण जनसंख्या
  • यह एक कच्चा जन्म-दर है, क्योंकि इसमें आयु को व्यक्त करने वाले अनुपात को शामिल नहीं किया गया है।
  • जन्म-दर को एक वर्ष में प्रति एक हजार व्यक्तियों के पीछे जन्म लेने वालों की संख्या के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
  • जन्म-दर पर उल्लेखनीय रूप से विवाह की आयु, प्रजनन क्षमता, वातावरण की स्थितियों, सामाजिक स्थितियों, धार्मिक विश्वासों तथा शिक्षा का प्रभाव पड़ता है।
    मृत्यु-दर-मृत्यु-दर से तात्पर्य एक विशेष क्षेत्र में, जो एक पूरा देश, राज्य अथवा कोई प्रादेशिक इकाई हो सकता है, प्रति एक हजार व्यक्तियों के पीछे मरने वालों की संख्या से है।
    धीमी जन्म-दर का कारण-जन्म-दर सापेक्ष रूप से धीमी होती है, जबकि मृत्यु-दर को तेजी से कम किया जा सकता है। इसके निम्नलिखित कारण हैं
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य के विभिन्न उपाय तथा चिकित्सकीय प्रगति मृत्यु-दर को तत्काल नियंत्रित कर सकती है। हर कोई अच्छा स्वास्थ्य तथा दीर्घ जीवने चाहता है। जीवन से लगाव होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति उच्च श्रेणी की बेहतर चिकित्सा तथा तकनीकी सेवाओं का सहारा लेता है।
  • जन्म-दर का संबंध चूंकि लोगों की मनोवृत्ति, विश्वास तथा मूल्य से है, इसलिए यह उच्च बना रहता है। जन्म-दर का संबंध धार्मिक विश्वास से भी है तथा कुल मिलाकर यह एक सामाजिक-सांस्कृतिक परिघटना है, जिसमें काफी धीमी गति से परिवर्तन होता है।

प्र० 4. भारत के कौन-कौन से राज्य जनसंख्या संवृद्धि के प्रतिस्थापन स्तरों’ को प्राप्त कर चुके हैं अथवा प्राप्ति के बहुत नज़दीक हैं? कौन-से राज्यों में अब भी जनसंख्या संवृद्धि की दरें बहुत ऊँची हैं? आपकी राय में इन क्षेत्रीय अंतरों के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर- प्रतिस्थापन स्तर से तात्पर्य उस संवृद्धि की दर से है, जो पुरानी पीढ़ी के लोगों के मरने के उपरांत उस स्थान की पूर्ति के लिए नई पीढ़ी के लिए आवश्यक होती है। प्रतिस्थापन स्तर से आराम यह भी है कि दो बच्चों के जन्म के साथ ही प्रतिस्थापन स्तर पूरा हो जाता है।
जनसंख्या वृद्धि के प्रतिस्थापन स्तर को प्राप्त करने वाले राज्य- तमिलनाडु, केरल, गोआ, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, जम्मू और कश्मीर तथा पंजाब हैं।
जनसंख्या वृद्धि के निकटतम प्रतिस्थापन स्तर को प्राप्त करने वाले राज्य- उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम तथा पश्चिम बंगाल हैं।
तीव्र जनसंख्या वृद्धि वाले राज्य- उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश हैं।
क्षेत्र तथा क्षेत्रीय विभिन्नताएँ
विभिन्न प्रदेशों में साक्षरता प्रतिशत में विभिन्नता

  • विभिन्न प्रदेशों की सामाजिक परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न हैं। आतंकवाद, युद्ध जैसी स्थिति तथा उपद्रव की स्थिति जम्मू एवं कश्मीर तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों में विद्यमान है।
  • विभिन्न राज्यों में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों में विभिन्नता है।
    (i) गरीबी रेखा से नीचे (BPL) रहने वाले लोगों की संख्या सबसे अधिक उत्तर प्रदेश, बिहार तथा उड़ीसा में है।
    (ii) सामाजिक-सांस्कृतिक संस्कार- लोगों का ऐसा धार्मिक विश्वास है कि अधिक बच्चों का मतलब आपके उपार्जन के लिए अधिक हाथ है।

प्र० 5. जनसंख्या की आयु संरचना’ का क्या अर्थ है? आर्थिक और संवृद्धि के लिए उसकी क्या प्रासंगिकता है?
उत्तर- भारत एक युवा जनसंख्या वाला देश है। भारत के लोगों की आयु का औसत अधिकांश देशों से कम है। भारत की जनसंख्या की अधिकांश आबादी 15 से 64 वर्ष की आयु वाले लोगों की है।

  • जनसंख्या की आयु संरचना यह दर्शाती है कि कुल जनसंख्या के सापेक्ष विभिन्न आयु वर्ग वाले लोगों का अनुपात क्या है।
  • 15 वर्ष से कम आयु वर्ग के लोगों का प्रतिशत जो 1971 में 42% था, घटकर 2011 में 31% हो गया। इस अवधि में 15-64 वर्ष की आयु वाले लोगों का प्रतिशत 53% से बढ़कर 63.7% हो गया।
  • दयनीय चिकित्सा सुविधाओं का विकास, विभिन्न प्रकार के रोगों पर काबू पाने के बाद जीवन प्रत्याशा में वृद्धि इत्यादि ने देश की आयु संरचना को परिवर्तित किया है।
  • जनसंख्या की आयु संरचना को निम्नलिखित समूहों में रखा जा सकता है।
    0 – 14 वर्ष (बच्चे)
    15 – 59 वर्ष (कार्यशील जनसंख्या)
    60 + वर्ष (वृद्ध व्यक्ति)

निम्नलिखित सारणी से भारतीय जनसंख्या की आयु संरचना को समझा जा सकता है।
NCERT Solutions for Class 12 Sociology Chapter 2 (Hindi Medium) 5
स्रोत-राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग के जनसंख्या प्रेक्षक विषय तकनीकी समूह के आँकड़ों (1996 और 2006) पर आधारित।
यह सारणी प्रदर्शित करती है कि कुल जनसंख्या में 15 वर्ष से कम आयु वर्ग के लोगों का प्रतिशत जो 1971 में उच्चतम 42% था, 2011 में घटकर 29% हो गया। 2026 तक इसको 23% हो जाने का अनुमान है। इसका अर्थ यह है कि भारत में जन्म-दर में क्रमशः गिरावट आ रही है।
आर्थिक विकास तथा संवृद्धि की प्रासंगिकता

  • चिकित्सा विज्ञान की प्रगति, सार्वजनिक स्वास्थ्य के विभिन्न उपायों तथा पोषण के कारण जीवन की प्रत्याशा बढ़ी है। यह आर्थिक विकास तथा संवृद्धि के कारण ही संभव हुआ है।
  • परिवार नियोजन की आवश्यकता को अब समझा जाने लगा है। 0 – 14 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों के प्रतिशत में गिरावट यह प्रदर्शित करती है कि राष्ट्रीय जनसंख्या नीति का उपयुक्त ढंग से कार्यान्वयन हुआ है। • भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन तथा आर्थिक संवृद्धि के कारण जनसंख्या की आयु संरचना एक सकारात्मक युवा भारत की तरफ उन्मुख हो रही है।
  • पराश्रितता अनुपात घट रहा है तथा कार्यशील जनसंख्या में वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था में सकारात्मक संवृद्धि का संकेत दे रही है।
  • आर्थिक विकास तथा जीवन की गुणवत्ता में सुधार ने जीवन प्रत्याशा में वृद्धि की है तथा जनसंख्या की संरचना में परिवर्तन किया है।
  • उच्च शिशु मृत्यु-दर तथा मातृ मृत्यु-दर, जिसका कारण | निम्न आर्थिक संवृद्धि रहा है, ने जनसंख्या की आयु संरचना को बुरी तरह से प्रभावित किया है।

प्र० 6. “स्त्री-पुरुष अनुपात’ का क्या अर्थ है? एक गिरते हुए स्त्री-पुरुष अनुपात के क्या निहितार्थ हैं? क्या आप यह महसूस करते हैं कि माता-पिता आज भी बेटियों के बजाय बेटों को अधिक पसंद करते हैं? आपकी इस राय में पसंद के क्या-क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर- स्त्री-पुरुष अनुपात (लिंगानुपात) किसी क्षेत्र विशेष में एक निश्चित अवधि के दौरान प्रति 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या को दर्शाता है।

  • यह अनुपात जनसंख्या में लैंगिक संतुलन का एक महत्त्वपूर्ण सूचक है।
  • ऐतिहासिक रूप से, विश्व के अधिकांश देशों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या अधिक है।
    इसके दो कारण हैं:
    (i) बालिको शिशुओं में बाल शिशुओं की अपेक्षा रोग प्रतिरोधक क्षमता तथा बीमारियों से प्रतिरोध करने की क्षमता अधिक होती है।
    (ii) अधिकांश समाजों में स्त्रियाँ पुरुषों की अपेक्षा दीर्घजीवी होती हैं।
  • बालिका शिशु तथा बालक शिशु के बीच अनुपात मोटे तौर पर प्रति 1000 पुरुषों पर 1050 स्त्रियों का है।
  • भारत में एक शताब्दी से भी अधिक वर्षों से स्त्री-पुरुष अनुपात में बड़े पैमाने पर लगातार कमी आ रही है। जहाँ बीसवीं शताब्दी में प्रति 1000 पुरुषों पर 972 महिलाएँ थीं, वहीं इक्कीसवीं सदी में प्रति 1000 हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या घटकर घटकर 933 हो गई।
    • राज्य-स्तर पर बाल लिंगानुपात भी चिंताजनक है। कम-से-कम 6 राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में बाल लिंगानुपात 793 से भी कम है। सर्वाधिक बाल लिंगानुपात सिक्किम (986) में है।
  • भारत, चीन तथा दक्षिण कोरिया में स्त्री-पुरुष अनुपात में गिरावट की प्रवृत्ति देखने में आ रही है। भारत में अभी भी माता-पिता बालकों को प्राथमिकता देते हैं। ऐसा मूलतः सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारणों से होता है। कृषिगत समाज होने के कारण ग्रामीण जनसंख्या कृषि की देखभाल के लिए बालकों को अधिमान्यता देते हैं। किंतु बाल शिशु को अधिमान्यता देने का संबंध निश्चित रूप से आर्थिक कारणों से नहीं है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, चंडीगढ़ तथा महाराष्ट्र भारत के समृद्ध राज्य हैं तथा वहाँ बाल लिंगानुपात सर्वाधिक होना चाहिए था, किंतु स्थिति इसके विपरीत है।
    2001 की जनगणना से यह प्रदर्शित होता है कि इन राज्यों में लिंगानुपात सबसे कम-प्रति 1000 बालक शिशु पर 350 बालिका शिशु हैं। यह आँकड़ा प्रमाणित करता है कि इन राज्यों में बालिकाओं की भ्रूण हत्या गरीबी, अज्ञानता अथवा संसाधनों के अभाव के कारण नहीं होती। बच्चियों के प्रति पूर्वाग्रह की मानसिकता ही भारत में निम्न स्त्री-पुरुष अनुपात का कारण है।
  • धार्मिक तथा सांस्कृतिक विश्वास- ऐसा माना जाता है कि केवल बेटा ही अपने माता-पिता की अंत्येष्टि तथा उनसे संबद्ध रीति-रिवाजों को करने का हकदार है। केवल बेटा ही परिवार का वारिश होता है। माना जाता है कि बेटा के बिना वंश नहीं चल सकता।
  • आर्थिक कारण- भारतीय समाज का प्रमुख पेशा कृषि है। ग्रामीणों का ऐसा मानना है कृषिगत संपत्ति लड़कियों को नहीं दी जा सकती, क्योंकि ‘ शादी के बाद वे दूसरे गाँव, शहर या नगर में चली जाएँगी। न तो लड़कियाँ उनके घर का बोझ ढो सकती है और न ही वे कृषि की देखभाल ही कर सकती हैं।
  • जागरूकता का अभाव- अज्ञानता तथा संकुचित प्रवृत्ति के कारण भारतीय समाज में लोग स्त्री को समान दर्जा नहीं देते। वे सोचते हैं कि बुढ़ापे में उनका बेटा ही सहारा होगा। केवल बेटा ही उनके खाने-पीने, आवास, परंपराओं तथा अन्य जिम्मेदारियों को निभा सकता है।
  • शिशु लिंगानुपात को प्रभाव- यदि निम्न शिशु लिंगानुपात जारी रहा, तो यह हमारी सामाजिक संरचना पर बहुत ही बुरा प्रभाव छोड़ेगा, विशेष तौर से विवाह जैसी संस्थाओं पर। इससे महिलाओं से संबंधित कानून व्यवस्था की स्थिति पर भी बुरा असर पड़ेगा।

प्र० 7. किसी अन्य देश की तुलना में भारत में अधिक मातृ मृत्यु के कौन-से कारण जिम्मेदार हैं? इस समस्या पर काबू पाने हेतु भारत सरकार ने कौन-कौन से कदम उठाए हैं?
उत्तर- विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारत में अधिक मातृ मृत्यु के लिए निम्नलिखित कारण जिम्मेदार हैं:
(अ) पिछड़ापन तथा गरीबी
(ब) चिकित्सा सुविधाओं का अभाव, शिक्षा तथा जागरूकता की कमी
इस समस्या पर काबू पाने हेतु भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं-
(अ) स्वास्थ्य मंत्रालय ने उन 264 जिलों में प्रभावकारी कदम उठाने की घोषणा की है, जहाँ लगभग 70 प्रतिशत मातृ तथा शिशु मृत्यु होती है।
(ब) भारत सरकार गंभीरतापूर्वक एक ‘मातृ तथा शिशु खोज पद्धति’ का क्रियान्वयन कर रही है, जिसके अंतर्गत गर्भ धारण करने वाली प्रत्येक महिला की सूची बनाई जाएगी, ताकि उनका प्रसव पूर्ण देखभाल, संस्थागत प्रसव, प्रसवोत्तर देखभाल तथा नवजात बच्चे का प्रतिरक्षण किया जा सके।
भारत सरकार मातृत्व स्वास्थ्य तथा परिवार नियोजन हेतु प्रतिबद्ध है तथा इसने विशेष तौर पर महिला तथा बाल स्वास्थ्य तथा स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हेतु $3.5 बिलियन खर्च करने की घोषणा की है।

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NCERT Solutions for Class 12 Sociology Indian Society Chapter 1 Introducing Indian Society (Hindi Medium)

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[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)

प्र०1. भारत के राष्ट्रीय एकीकरण की मुख्य समस्याएँ क्या हैं?
उत्तर- भारत की मुख्य समस्याएँ हैं-भाषागत पहचान, क्षेत्रीयतावाद, पृथक राज्य की माँग तथा आंतकवाद। ये सभी भारत के एकीकरण में बाधा उत्पन्न करते हैं। इन समस्याओं के कारण अकसर हड्तालें, दंगे तथा परस्पर झगड़े होते रहते हैं। इन्हीं कारणों के चलते भारतीय एकता और अखंडता पर खतरा उत्पन्न होता है।

प्र० 2. अन्य विषयों की तुलना में समाजशास्त्र एक भिन्न विषय क्यों है?
उत्तर- समाजशास्त्र एक ऐसा विषय है, जिसके द्वारा कोई समाज के बारे में कुछ जानता है। अन्य विषयों की शिक्षा हमें घर, विद्यालय या अन्य स्थानों पर निर्देशों के द्वारा प्राप्त होती है, किंतु समाज के बारे में हमारा अधिकतर ज्ञान बिना किसी सुस्पष्ट शिक्षा के अर्जित होता है। समय के साथ बढ़ने वाला यह एक अभिन्न अंग की तरह है, जो स्वाभाविक तथा स्वतः स्फूर्त तरीके से प्राप्त होता है।

प्र० 3. समाज के आधारभूत कार्य क्या हैं?
उत्तर- समाजशास्त्रियों तथा सामाजिक मानवविज्ञानियों ने शब्द ‘Function’ (कार्य) को जीवविज्ञान से लिया है, जहाँ इसका प्रयोग कुछ निश्चित जैविक प्रक्रियाओं के लिए शारीरिक रचना के रख-रखाव हेतु किया जाता था। किसी भी समाज की निरंतरता तथा अस्तित्व को बनाए रखने के लिए निम्नलिखित कार्य आवश्यक हैं
(i) सदस्यों की नियुक्ति
(ii) विशेषज्ञता
(iii) सेवाओं का उत्पादन तथा वितरण एवं
(iv) आदेश का पालन

प्र० 4. सामाजिक संरचना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- एक समाज में शामिल होते हैं
(i) महिला तथा पुरुष, वयस्क तथा बच्चे, विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक तथा धार्मिक समूह इत्यादि।
(ii) माता-पिता, बच्चों तथा विभिन्न समूहों के बीच अंतर्सबंध।
(iii) अंत में, समाज के सभी अंग मिलते हैं तथा व्यवस्था अंतर्सबंधित तथा पूरक अवधारणा बन जाती है।

प्र० 5. भ्रमित करने वाले सामाजीकरण के द्वारा हमें बचपन में सामाजिक मानचित्र क्यों उपलब्ध कराया जाता है?
उत्तर- सामाजिक मानचित्र हमें अपने माता-पिता, भाई-बहन, सगे-संबंधी तथा पड़ोसियों के द्वारा प्रदान किया जाता है। यह विशिष्ट अथवा आंशिक हो सकता है। इसके द्वारा हमें आसपास की दुनिया को समझना तथा तौर-तरीके सिखाए जाते हैं। यह वास्तविक हो भी सकता है और नहीं भी। दूसरे प्रकार के मानचित्रों का निर्माण करते समय उसके समुचित प्रयोग तथा प्रभाव का ध्यान रखा जाना चाहिए। एक समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य आपको विभिन्न प्रकार के सामाजिक मानचित्र बनाना सिखाता है।

प्र० 6. सामुदायिक पहचान क्या है? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर- समुदाय हमें भाषागत तथा सांस्कृतिक मूल्य सिखाता है, जिसके द्वारा हम विश्व को समझते हैं। यह जन्म तथा संबंधों पर आधारित होता है, न कि अर्जित योग्यता अथवा निपुणता पर। जन्म-आधारित पहचान को आरोपित कहा जाता है क्योंकि इसमें व्यक्ति विशेष की पसंदों का कोई महत्त्व नहीं होता। यह वस्तुतः निरर्थक तथा विभेदात्मक है। आरोपित पहचान से पीछा छुड़ाना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि बिना विचार किए उन्हें त्यागने पर अन्य संबंधियों की पहचान के आधार पर हमें चिह्नित किया जाएगा। इस प्रकार की आरोपित पहचान आत्म-निरीक्षण के लिए बहुत ही हतोत्साहित करने वाली है। समुदाय के विस्तारित तथा अतिव्यापी समूहों के संबंध; जैसे–परिवार, रिश्तेदारी, जाति, नस्ल, भाषा क्षेत्र अपना धर्म विश्व को अपनी पहचान बताता है तथा स्वयं की पहचान की चेतना पैदा करता है कि हम क्या हैं।

प्र० 7. आत्मवाचक क्या है?
उत्तर- समाजशास्त्र हमें यह दिखा सकता है कि दूसरे हमें किस तरह से देखते हैं। यह आपको सिखा सकता है कि आप स्वयं को बाहर से कैसे देख सकते हैं। इसे ‘स्ववाचक’ या कभी-कभी ‘आत्मवाचक’ भी कहा जाता है।

प्र० 8. समाजशास्त्र व्यक्तिगत परेशानियों तथा ‘सामाजिक मुद्दों के बीच कड़ी तथा संबंधों का खाका खींचने में हमारी मदद कर सकता है। चर्चा कीजिए।
उत्तर- प्रसिद्ध अमेरिकन समाजशास्त्री सी. राईट मिल्स ने लिखा है-“समाजशास्त्र व्यक्तिगत परेशानियों एवं ‘सामाजिक मुद्दों के बीच की कड़ियों एवं संबंधों को उजागर करने में मदद कर सकता है।” व्यक्तिगत परेशानियों से मिल्स का तात्पर्य है कि वे विभिन्न प्रकार की व्यक्तिगत चिंताएँ, समस्याएँ या सरोकार जो सबके जीवन में होते हैं।

प्र० 9. किस प्रकार से औपनिवेशिक शासन ने भारतीय चेतना को जन्म दिया? चर्चा कीजिए।
उत्तर-

  1. औपनिवेशिक शासन ने पहली बार राजनीतिक तथा प्रशासनिक रूप से सभी भारतीयों को एक किया।
  2. औपनिवेशिक शासन ने पूँजीवादी आर्थिक परिवर्तन एवं आधुनिकीकरण की ताकतवर प्रक्रियाओं से भारत का परिचय कराया।
  3. यद्यपि इस प्रकार की भारत की आर्थिक, राजनीतिक एवं प्रशासनिक एकीकरण की उपलब्धि भारी कीमत चुका कर प्राप्त हुई।
  4. औपनिवेशिक शासन के शोषण तथा प्रभुत्व ने भारतीय समाज को कई प्रकार से भयभीत किया।
  5. औपनिवेशिक काल ने अपने शत्रु राष्ट्रवाद को भी जन्म दिया। आधुनिक भारतीय राष्ट्रवाद की अवधारणा का सूत्रपात ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में ही हुआ।
  6. तेजी से बढ़ते शोषण तथा औपनिवेशिक प्रभुत्व के साझे अनुभवों ने भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों में एकता तथा बल प्रदान किया। इसने नए वर्गों तथा समुदायों का भी गठन किया। शहरी मध्यम वर्ग राष्ट्रवाद का प्रमुख वाहक था।

प्र० 10. औपनिवेशिक शासन द्वारा अपनी शासन-व्यवस्था को सुचारु बनाने के लिए कौन-कौन से कदम उठाए गए?
उत्तर- अपनी शासन-व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए औपनिवेशिक शासन द्वारा निम्नलिखित कदम उठाए गएः
(i) उत्पादन में नई यांत्रिक तकनीक का इस्तेमाल।
(ii) व्यापार में नई बाजार व्यवस्था का आरंभ।
(iii) परिवहन तथा संचार के साधनों का विकास।
(iv) अखिल भारतीय स्तर पर लोक सेवा आधारित नौकरशाही का गठन।
(v) लिखित तथा औपचारिक कानून का गठन।

प्र० 11. किन समाज सुधारकों ने भारत में ब्रिटिश उपनिवेशकाल के दौरान समाज सुधार आंदोलन चलाए?
उत्तर- भारत में ब्रिटिश उपनिवेशकाल के दौरान समाज सुधार आंदोलन के प्रमुख नेता थे- राजा राम मोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गाँधी इत्यादि।

प्र० 12. उन प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए जो ब्रिटिश उपनिवेशकाल के दौरान प्रारंभ की गईं।
उत्तर- यह वह समय था, जब भारत में आधुनिक काल का प्रारंभ हो चुका था तथा आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण, औद्योगीकरण की शक्तियाँ भारत में प्रवेश कर चुकी थीं।

प्र० 13. समाजशास्त्र तथा अन्य विषयों के बीच मुख्य अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

  1. समाजशास्त्र एक ऐसा विषय है, जिसमें कोई भी शून्य से प्रारंभ नहीं होता, क्योंकि हर किसी को समाज के बारे में जानकारी होती है। जबकि अन्य विषय विद्यालयों, घरों तथा अन्य जगहों पर पढ़ाए जाते हैं।
  2. चूँकि जीवन के बढ़ते हुए क्रम में यह एक अभिन्न हिस्सा होता है, इसलिए समाज के बारे में किसी को जानकारी स्वतःस्फूर्त तथा स्वाभाविक रूप से प्राप्त हो जाती है। दूसरे विषयों के संबंध में छात्रों से इस प्रकार के पूर्व ज्ञान की अपेक्षा नहीं होती।
  3. इसका अर्थ यह हुआ कि हम उस समाज के विषय में बहुत कुछ जानते हैं, जिसमें हम रहते तथा अंतक्रिया करते हैं। जहाँ तक दूसरे विषयों का संबंध है, इसमें छात्रों को पूर्व जानकारी नगण्य होती है।
  4. यद्यपि इस प्रकार की पूर्व जानकारी अथवा समाज के साथ प्रगाढ़ता का समाजशास्त्र में लाभ तथा हानि दोनों ही हैं। पूर्व जानकारी के अभाव में दूसरे विषयों के संबंध में लाभ अथवा हानि का प्रश्न ही नहीं उठता।

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NCERT Solutions for Class 12 Sociology Indian Society Chapter 4 The Market as a Social Institution (Hindi Medium)

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[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)

प्र०1. ‘अदृश्य हाथ’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- एडम स्मिथ के अनुसार, “प्रत्येक व्यक्ति अपने लाभ को बढ़ाने की सोचता है और ऐसा करते हुए वह जो भी करता है, स्वतः ही समाज के या सभी के हित में होता है। इस प्रकार, ऐसा प्रतीत होता है कि कोई एक अदृश्य बल यहाँ काम करता है, जो इन व्यक्तियों के लाभ की प्रवृत्ति को समाज के लाभ में बदल देता है।” इस अदृश्य शक्ति को एडम स्मिथ ने ‘अदृश्य हाथ’ का नाम दिया।

प्र० 2. बाजार पर समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण, आर्थिक दृष्टिकोण से किस तरह अलग है?
उत्तर- एडम स्मिथ तथा अन्य चिंतकों ने आधुनिक अर्थशास्त्र की विचारधारा को विकसित किया। यह विचार इस बात पर आधारित है कि अर्थव्यवस्था को एक पृथक् हिस्से के रूप में पढ़ा जा सकता है, जो बड़े सामाजिक एवं राजनीतिक संदर्भ से अलग | है, जिसमें बाज़ार अपने स्वयं के नियमों के अनुसार कार्य करता है।
दूसरी तरफ, समाजशास्त्रियों ने बड़े सामाजिक ढाँचे । के अंदर आर्थिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं को समझने के लिए एक वैकल्पिक तरीके का विकास करने का प्रयास किया है। समाजशास्त्रियों का मानना है कि बाज़ार सामाजिक संस्थाएँ हैं, जो विशेष सांस्कृतिक तरीकों द्वारा निर्मित हैं। इनका मानना है। कि अर्थशास्त्र समाजशास्त्र में रच-बस गया है।

प्र० 3. किस तरह से एक बाज़ार जैसे कि एक साप्ताहिक ग्रामीण बाज़ार, एक सामाजिक संस्था है?
उत्तर- यद्यपि बाजार आर्थिक अंत:क्रिया का स्थल है तथापि ये सामाजिक संदर्भ और सामाजिक वातावरण पर आधारित है। इसे हम एक ऐसा सामाजिक संगठन भी कह सकते हैं, जहाँ कि विशेष प्रकार की सामाजिक अंत:क्रियाएँ संपन्न होती हैं।
अनियतकालीन बाजार (या साप्ताहिक बाज़ार) सामाजिक तथा आर्थिक संगठन की प्रमुख विशेषता है। यह आसपास के गाँवों को अवसर प्रदान करता है कि जो अपनी वस्तुओं की खरीद-बिक्री के साथ-साथ एक-दूसरे के साथ अंत:क्रिया करें। गाँवों में, जनजातीय क्षेत्रों में नियमित बाजारों के अलावा विशेष बाजारों का भी आयोजन किया जाता है। यहाँ विशेष प्रकार के उत्पादों की बिक्री की जाती है। उदाहरणस्वरूप, राजस्थान में पुस्कर। यहाँ बाहर के व्यापारी, साहूकार, प्रदर्शक, ज्योतिषी इत्यादि अपनी सेवाओं तथा उत्पादों के विक्रय के लिए आते हैं।
अतएव, इस प्रकार के अनियतकालीन बाजार केवल स्थानीय लोगों की आवश्यकताओं की ही पूर्ति नहीं करते वरन् वे गाँवों को क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था एवं राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से भी जोड़ते हैं। इस प्रकार | से, जनजातीय क्षेत्रों में लोग एक-दूसरे से जुड़ते हैं, जिससे इस प्रकार के बाजार एक सामाजिक संस्था के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं।

प्र० 4. व्यापार की सफलता में जाति एवं नातेदारी संपर्क कैसे योगदान कर सकते हैं?
उत्तर- पूर्व उपनिवेशकाल तथा उसके बाद, भारत के न केवल भारत बल्कि विश्व के अन्य देशों के साथ भी विस्तृत व्यापारिक संबंध थे। इस तरह के व्यापारिक संबंध उन व्यापारिक समूहों के द्वारा बनाए गए, जिन्होंने आंतरिक तथा बाह्य व्यापार किए। इस तरह के व्यापार समुदाय आधारित रिश्तेदारों तथा जातियों के द्वारा किए जाते थे। इनमें परस्पर विश्वास, वफादारी तथा आपसी समझ की भावना होती थी। विस्तृत संयुक्त परिवार की संरचना तथा नातेदारी व जाति के माध्यम से व्यवसाय के निर्माण का उदाहरण हम तमिलनाडु के चेट्टीयारों के बैंकिंग तथा व्यापारिक क्रियाकलाप के रूप में ले सकते हैं। वे उन्नीसवीं शताब्दी में बैंकिंग और व्यापार का नियंत्रण पूरी पूर्वी एशिया तथा सीलोन (नए। श्रीलंका) में करते थे तथा संयुक्त परिवार के व्यवसाय का संचालन करते थे। यह एक विशेष प्रकार की पितृप्रधान संयुक्त परिवार की संरचना है, लेकिन वे अपने संबंधों में विश्वास, मातृभाव तथा रिश्तेदारी बनाए रखते हैं।
इसका तात्पर्य यह हुआ कि भारत में एक देशी पूँजीवादी व्यवस्था थी। जब व्यापार तथा उससे लाभ अर्जित किया जाता था, तब इसके केंद्र में जाति तथा नातेदारी होती थी।

प्र० 5. उपनिवेशवाद के आने के पश्चात् भारतीय अर्थव्यवस्था किन अर्थों में बदली?
उत्तर- उपनिवेशवाद के आगमन के साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था में गहरे बदलाव आए। उत्पादन, व्यापार और कृषि का विघटन हुआ। ब्रिटेन के बने सस्ते कपड़ों ने भारतीय हथकरघा उद्योग को समाप्त कर दिया तथा बुनकर बेकार हो गए।
उपनिवेशकाल में भारत विश्व की पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से और अधिक जुड़ गया। अंग्रेजों के द्वारा उपनिवेश बनाए जाने के पूर्व भारत बने-बनाए सामानों के निर्यात का एक प्रमुख केंद्र था। उपनिवेशवाद के बाद भारत कच्चे माल और कृषक उत्पादों का स्रोत और उत्पादिक सामानों का उपभोक्ता बना दिया गया। यह दोनों कार्य ब्रिटेन के उद्योगों को लाभ पहुँचाने के लिए किए गए। पंरतु पहले से विद्यमान आर्थिक संस्थाओं को पूरी तरह से नष्ट करने के बजाय भारत में बाजार अर्थव्यवस्था के विस्तार में कुछ व्यापारिक समुदायों के लिए नए अवसर प्रदान किए गए, जिन्होंने बदली हुई आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको पुनर्गठित किया और अपनी स्थिति को सुधारा। कुछ मामलों में, उपनिवेश द्वारा प्रदान किए गए आर्थिक सुअवसरों का लाभ उठाने के लिए नए समुदायों का जन्म हुआ।
इस प्रकार का सबसे अच्छा उदाहरण मारवाड़ी हैं, जो संभवतः भारत के हर हिस्से में हैं तथा जाना-माना व्यापारिक समुदाय हैं।

प्र० 6. उदाहरणों की सहायता से ‘पण्यीकरण’ के अर्थ की विवेचना कीजिए।
उत्तर- पण्यीकरण तब होता है जब कोई वस्तु बाजार में पूर्व में खरीदी-बेची नहीं जा सकती हो, किंतु बाद में इसके योग्य हो।
(i) श्रम और कौशल अब ऐसी चीजें हैं, जो खरीदी और बेची जा सकती हैं।
(ii) मानव अंगों की बिक्री। उदाहरण के तौर पर, पैसे के लिए गरीब लोगों द्वारा अमीर लोगों को अपनी किडनी को बेचना।
(iii) पारंपरिक रूप से पहले विवाह परिवार के लोगों के द्वारा तय किए जाते थे, पर अब सामाजिक विवाह ब्यूरो की भरमार है, जो वेबसाइट या किसी अन्य माध्यम से लोगों का विवाह तय करते हैं। पूर्व में पारंपरिक रीति-रिवाज घर के बड़ों के द्वारा किए जाते थे, पर अब यह ठेकेदारों के माध्यम से कराए जाते हैं।
(iv) पहले कोई यह सोच भी नहीं सकता था कि पीने के पानी के भी पैसे लगेंगे। लेकिन इसे हम आज सामान्य वस्तु की तरह बोतलों में खरीद रहे हैं। अर्थात् वस्तुओं को हम खरीद और बेच सकते हैं।

प्र० 7.‘प्रतिष्ठा का प्रतीक’ क्या है?
उत्तर- मैक्स वेबर ने ‘प्रतिष्ठा का प्रतीक’ शब्द का प्रतिपादन किया। यह लोगों की सामाजिक अवस्था के अनुसार खरीदी जाने वाली वस्तुओं के बीच के संबंध को दर्शाता है अर्थात् वे वस्तुएँ जिन्हें वे खरीदते तथा प्रयोग में लाते हैं। वे उनकी सामाजिक अवस्था से निकटतम संबंध रखती हैं। उदाहरण के तौर पर, मोबाइल फोन के ब्रांड अथवा कारों के मॉडल सामाजिक-आर्थिक अवस्था के महत्त्वपूर्ण चिह्न हैं।

प्र० 8. ‘भूमंडलीकरण’ के तहत कौन-कौन सी प्रक्रियाएँ सम्मिलित हैं?
उत्तर- भूमंडलीकरण के युग में विश्व के अंतर्संबंध का तेज़ी से विस्तार हुआ है। यह अंतर्संबंध केवल आर्थिक ही नहीं है बल्कि सांस्कृतिक तथा राजनीतिक भी है। भूमंडलीकरण के कई रुझान होते हैं, विशेष तौर पर, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वस्तुओं, पूँजी, समाचार, लोगों एवं तकनीक का विकास। भूमंडलीकरण की एक केंद्रीय विशेषता दुनिया के चारों कोनों में बाजारों का विस्तार और एकीकरण को बढ़ाना है। इस एकीकरण का अर्थ है कि दुनिया के किसी एक कोने में किसी बाज़ार में परिवर्तन होता है, तो दूसरे कोने में उसका अनुकूल-प्रतिकूल असर हो सकता है। उदाहरण के तौर पर, यदि अमेरिकी बाजार में गिरावट आती है, तो भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग में भी गिरावट आएगी, जैसा कि हमने न्यूयार्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 9/11 के हमले के समय देखा था। इससे लोगों के व्यापार तथा रोजगार को क्षति पहुँची थी।

प्र० 9. ‘उदारीकरण’ से क्यो तात्पर्य है?
उत्तर- उदारीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जहाँ आर्थिक गतिविधियों पर सरकारी नियंत्रण को कम कर दिया जाता है तथा बाजार की शक्तियों को इसका निर्धारण करने के लिए छोड़ दिया जाता है। सामान्य अर्थों में यह एक प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत सरकारी नियमों तथा कानूनों को पूँजी, श्रम तथा व्यापार में शिथिल कर देना, सरकारी उपक्रमों का निजीकरण (सार्वजनिक कंपनियों के निजी कंपनियों के हाथों बेच देना), आयात शुल्क में कमी करना, ताकि विदेशी वस्तुएँ सुगमतापूर्वक आयात की जा सके, शामिल होती हैं।

  • इसमें सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण शामिल होता है।
  • इससे विदेशी कंपनियों को भारत आने में सुविधा होती है।
  • इसे बाजारीकरण अर्थात् बाजार आधारित प्रक्रिया की सहायता से आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याओं का समाधान भी कहा जाता है।

प्र० 10. आपकी राय में, क्या उदारीकरण के दूरगामी लाभ उसकी लागत की तुलना में अधिक हो जाएँगे? कारण सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर- उदारवाद के कार्यक्रम के तहत जो परिवर्तन हुए, उन्होंने आर्थिक संवृद्धि को बढ़ाया और इसके साथ ही भारतीय बाजारों को विदेशी कंपनियों के लिए खोला। माना जाता है कि विदेशी पूँजी के निवेश से आर्थिक विकास होता है और रोजगार बढ़ते हैं। सरकारी कंपनियों के निजीकरण से कुशलता बढ़ती है और सरकार पर दबाव कम होता है। हालाँकि उदारीकरण का असर मिश्रित रहा है, कई लोगों का यह भी मत है कि उदारीकरण का भारतीय परिवेश पर प्रतिकूल असर ही हुआ है और आगे के दिनों में भी ऐसा ही होगा। जहाँ तक मेरा मानना है, लागत और हानि, लाभ से कहीं अधिक ही होगी। सॉफ्टवेयर या सूचना तकनीक अथवा कृषि, जैसे मछली या फल उत्पादन के क्षेत्र में शायद विश्व बाज़ार में लाभ हो सकता है, लेकिन अन्य क्षेत्र; जैसे-ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, तैलीय अनाज आदि विदेशी कंपनियों के उत्पादों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएँगे।

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