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NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 7 Employment Growth, Informalisation and Other Issues (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 7 Employment: Growth, Informalisation and Other Issues (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 7 Employment: Growth, Informalisation and Other Issues (Hindi Medium)

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प्रश्न अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

प्र.1. श्रमिक किसे कहते हैं?
उत्तर : सकल घरेलू उत्पाद में योगदान देने वाले क्रियाकलापों को आर्थिक क्रियाकलाप कहा जाता है। आर्थिक क्रियाओं में संलग्न सभी व्यक्ति श्रमिक कहलाते हैं, चाहे वे उच्च या निम्न किसी भी स्तर पर कार्य कर रहे हैं। बीमारी, चोट, शारीरिक विकलांगता, खराब मौसम, त्योहार या सामाजिक-धार्मिक उत्सवों के कारण अस्थायी रूप से काम पर न आने वाले भी श्रमिकों में शामिल हैं। इन कार्यों में लगे मुख्य श्रमिकों की सहायता करने वालों को भी हम श्रमिक ही मानते हैं।

प्र.2, श्रमिक-जनसंख्या अनुपात की परिभाषा दें।
उत्तर : यदि हम भारत में कार्य कर रहे सभी श्रमिकों की संख्या को देश की जनसंख्या से भाग कर उसे 100 से गुणा कर दें तो हमें श्रमिक-जनसंख्या अनुपात प्राप्त हो जाएगा।

प्र.3. क्या ये भी श्रमिक हैं एक भिखारी चोर, एक तस्कर, एक जुआरी? क्यों?
उत्तर : उपयुक्त में से कोई भी श्रमिक नहीं है क्योंकि किसी का भी अर्थव्यवस्था के वास्तविक उत्पादन में कोई योगदान नहीं है। वे धन कमा नहीं रहे बल्कि धन प्राप्त कर रहे हैं। धन कमाना उसे कहा जाता है जब धन प्राप्ति के बदले में वस्तुओं या सेवाओं का उत्पादन किया जाए।

प्र.4, इस समूह में कौन असंगत प्रतीत होता है?
(क) नाई की दुकान का मालिक
(ख) एक मोची
(ग) मदर डेयरी का कोषपाल
(घ) ट्यूशन पढ़ाने वाला
शिक्षक
(ङ) परिवहन कंपनी संचालक
(च) निर्माण मज़दूर।

उत्तर : मदर डेयरी का कोषपाल असंगत प्रतीत होता है क्योंकि केवल वह औपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है (मदर डेयरी एक बड़े पैमाने का उपक्रम है जिसमें 10 से अधिक लोग कार्यरत हैं।) शेष सभी अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं।

प्र.5. नये उभरते रोजगार मुख्यत ::::: क्षेत्रक में ही मिल रहे हैं। (सेवा/विनिर्माण)
उत्तर : सेवा।

प्र.6. चार व्यक्तियों को मज़दूरी पर काम देने वाले प्रतिष्ठान को ::::::” क्षेत्रक कहा जाता है। (औपचारिक/अनौपचारिक)
उत्तर : अनौपचारिक |

प्र.7. राज स्कूल जाता है। पर जब वह स्कूल में नहीं होता, तो प्रायः अपने खेत में काम करता दिखाई देता है। क्या आप उसे श्रमिक मानेंगे? क्यों?
उत्तर : हाँ, हम राज को श्रमिक मानेंगे क्योंकि वे सभी जो सकल राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान देते हैं, उन्हें श्रमिक कहा जाता है, तब भी जब वे उन कार्यकलापों में संलग्न मुख्य श्रमिकों की सहायता करते हैं।

प्र.8. शहरी महिलाओं की अपेक्षा अधिक ग्रामीण महिलाएँ काम करती दिखाई देती हैं। क्यों?
उत्तर : शहरी महिलाओं की तुलना में अधिक ग्रामीण महिलाएँ काम करती दिखाई देती हैं क्योंकि

(क) ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक गरीबी- 
ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता स्त्रियों को श्रमबल में शामिल होने के लिए मजबूर करती हैं अन्यथा वे अपने परिवार की आधारभूत आवश्यकताएँ जुटाने में भी सक्षम नहीं हो पाते।

(ख) ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू कार्यों की उपलब्धता- 
ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत-सी घरेलू नौकरियाँ जैसे-खेतीबाड़ी, पशुपालन आदि उपलब्ध हैं। अत: घर से बाहर जाने और उससे उत्पन्न सुरक्षा मुद्दों का प्रश्न ही नहीं उठता।

(ग) शहरी क्षेत्रों में अधिक स्तर चेतना- 
शहरों में पुरुष उच्च आय कमा रहे हैं और उनमें स्तर के प्रति अधिक चेतना है। जिसमें वे स्त्रियों के आय अर्जन के लिए कार्य करने को बुरा मानते हैं।

(घ) शहरी क्षेत्रों में अधिक अपराधदर- 
शहरी क्षेत्र के लोगों को स्त्रियों का काम करना असुरक्षित लगता है क्योंकि स्त्री के विरुद्ध अपराध दर बहुत उच्च है।

प्र.9. मीना एक गृहिणी है। घर के कामों के साथ-साथ वह अपने पति की कपड़े की दुकान के काम में भी हाथ बँटाती है। क्या उसे एक श्रमिक माना जा सकता है? क्यों?
उत्तर : हाँ, वह एक श्रमिक है क्योंकि वे सभी जो सकल राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान देते हैं, उन्हें श्रमिक कहा जाता है। वे भी श्रमिक ही कहलाते हैं जो मुख्य श्रमिकों को आर्थिक क्रियाओं में मदद करते हैं। यह महत्त्वपूर्ण नहीं है कि वेतन का भुगतान किया गया या नहीं बल्कि महत्त्वपूर्ण यह है कि सकल राष्ट्रीय उत्पाद में उनका योगदान है या नहीं।

प्र.10. यहाँ किसे असंगत माना जाएगाः
(क) किसी अन्य के अधीन रिक्शा चलाने वाला,
(ख) राजमिस्त्री
(ग) किसी मेकेनिक की दुकान पर काम करने वाला श्रमिक
(घ) जूते पालिश करने वाला लड़का।
उत्तर : (घ) जूते पालिश करने वाला लड़का क्योंकि वह स्वनियोजित है। अन्य सभी मजदूरी श्रमिक हैं। वे किसी ओर के अधीन निश्चित वेतन पर कार्यरत हैं।

प्र.11. निम्न सारणी में 1972-73 में भारत के श्रमबल का वितरण दिखाया गया है। इसे ध्यान से पढ़कर श्रमबल के वितरण के स्वरूप के कारण बताइए। ध्यान रहे कि ये आँकड़े 30 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं।
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उत्तर : दरअसल, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रहने वाली कुल जनसंख्या में अंतराल है। इसलिए पूर्ण आँकड़ों पर कुछ भी कहना गलत होगा। बेहतर होगा यदि हम इसे प्रतिशत में तुलना करें। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि:

(क)
1972-73 में भारत की कुल श्रमशक्ति 19.5 करोड़ थी जिसमें से 12.5 करोड़ अर्थात् 83% ग्रामीण क्षेत्रों में रह रही थी। दूसरी ओर शहरी क्षेत्रों में कर्मचारियों की संख्या केवल 17% थी। ऐसा इसीलिए है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों के लोग प्राथमिक गतिविधियों में नौकरी ढूंढते हैं जो मुख्यतः श्रम गहन तकनीकों का प्रयोग करती हैं जबकि शहरी क्षेत्रों के लोग औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र में नौकरी ढूंढते हैं जो पूँजी गहन होती है।

(ख)
यह भी तालिका से स्पष्ट है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएँ अधिक कार्यरत हैं। ऐसा लिंग आधारित सामाजिक श्रम विभाजन के कारण है। ऐसा माना जाता है कि पुरुष का काम आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना है जबकि महिलाओं का काम घरेलू कामकाज करना है। बहुत से घरेलू काम जो स्त्रियाँ करती हैं श्रम/आर्थिक कार्य में नहीं आते। कुशलता की आवश्यकता भी इसका एक कारण है।

(ग)
अन्य तथ्य यह सामने आ रहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक महिलाएँ कार्यरत हैं। इसका कारण यह कि ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता अधिक है जो स्त्रियों को कार्य करने पर मजबूर करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू कार्य जैसे-खेतीबाड़ी, पशुपालन आदि उपलब्ध हैं। शहरों में लोग अपने सामाजिक स्तर के प्रति अधिक सचेत हैं, उन्हें स्त्रियों का काम करना बेइज्जती जैसा लगता है। शहरों में स्त्रियों के लिए कार्यस्थल असुरक्षित भी हैं।

प्र.12. इस सारणी में 1999-2000 में भारत की जनसंख्या और श्रमिक जनानुपात दिखाया गया है। क्या आप भारत के (शहरी और सकल) श्रमबल का अनुमान लगा सकते हैं?
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उत्तर :
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प्र.13. शहरी क्षेत्रों में नियमित वेतनभोगी कर्मचारी ग्रामीण क्षेत्र से अधिक क्यों होते हैं?
उत्तर : शहरी क्षेत्रों में नियमित वेतनभोगी कर्मचारी ग्रामीण क्षेत्र से निम्नलिखित कारणों से अधिक होते हैं
(क) सेवा क्षेत्र का प्रभुत्व-शहरी क्षेत्रों में सेवा क्षेत्र का प्रभुत्व है और सेवा क्षेत्र में नियमित वेतन श्रमिक अधिक हैं।
(ख) शहरी क्षेत्रों में शिक्षा का उच्च स्तर-नियमित वेतन नौकरियों के लिए उच्च शिक्षा स्तर की आवश्यकता होती है जो शहरी क्षेत्रों में अधिक होता है।
(ग) शहरी क्षेत्रों में कार्यस्थल के प्रति प्रतिबद्धता का उच्च स्तर-शहरी क्षेत्रों के लोग अपने कार्य के प्रति अधिक प्रतिबद्ध होते हैं। वे अपनी नौकरी को अधिक महत्त्व देते हैं तथा लंबी छुट्टियों पर नहीं जाते जबकि ग्रामीण लोगों की पहली प्राथमिकता उनके सामाजिक दायित्व होते हैं।

प्र.14, नियमित वेतनभोगी कर्मचारियों में महिलाएँ कम क्यों हैं?
उत्तर : नियमित वेतनभोगी में महिलाएँ कम पाई जाती हैं। इसके मुख्य कारण इस प्रकार हैं:

  • पुरुषों में शैक्षिक योग्यता का उच्च स्तर-नियमित वेतन नौकरियों के लिए उच्च शिक्षा स्तर की आवश्यकता होती है। जो पुरुषों में अधिक पाई जाती है।
  • पुरुषों में कार्य जीवन के प्रति अधिक प्रतिबद्धता–पुरुषों में कार्य जीवन के लिए प्रतिबद्धता का स्तर अधिक होता है। स्त्रियों की दोहरी जिम्मेदारी हैं।
  • सामाजिक पूर्वाग्रह-सामाजिक पूर्वाग्रह भी इसमें अपनी भूमिका निभा रहे हैं। यह माना जाता है कि कई नौकरियाँ स्त्रियाँ नहीं कर सकती तथा पुरुष कर्मचारी उन्हें एक उच्चाधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं करते।
  • महिलाओं के कैरियर में ठहराव-विवाह के समय स्त्रियों को अपना घर बदलना पड़ता है। संतान के जन्म के समय भी उन्हें एक समयाविधि के लिए नौकरी से छुट्टी लेनी पड़ती है। बहुत-सी महिलाएँ संतान के लालन-पालन के लिए श्रम बाज़ार से बाहर चली जाती हैं।

प्र.15. भारत में श्रमबल के क्षेत्रकवार वितरण की हाल की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करें।
उत्तर : नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, हम निम्नलिखित निष्कर्ष प्राप्त कर सकते हैं

  • प्रत्येक 100 में से 40 व्यक्ति कार्यशील हैं।
  • इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक 4 व्यक्ति 10 व्यक्तियों के लिए कमा रहे हैं। माना औसतन रूप से 1 व्यक्ति 2.5 व्यक्ति का लालन-पालन कर रहा है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में 76.6% लोग प्राथमिक क्षेत्रक में, 10.8% द्वितीयक क्षेत्रक तथा 12.5% सेवा क्षेत्रक में कार्यरत हैं।
  • शहरी क्षेत्रों में 9.6% लोग प्राथमिक क्षेत्रक 31.3 % द्वितीयक क्षेत्रक तथा 59.1% सेवा क्षेत्रक में संलग्न हैं।
  • महिलाएँ 75.1% प्राथमिक क्षेत्रक, 11.8% द्वितीयक क्षेत्रक तथा 13.1% सेवा क्षेत्र में संलग्न हैं जबकि पुरुष 53.8% प्राथमिक क्षेत्रक, 17.6% द्वितीयक क्षेत्रक तथा 28.6% सेवा क्षेत्रक में संलग्न हैं।

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प्र.16. 1970 से अब तक विभिन्न उद्योगों में श्रमबल के वितरण में शायद ही कोई परिवर्तन आया है। टिप्पणी करें।
उत्तर : 1970 के बाद से विभिन्न उद्योगों में श्रमबल के वितरण में शायद ही कोई परिवर्तन आया है। यह नीचे दी गई तालिका से स्पष्ट है
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प्र.17. क्या आपको लगता है पिछले 50 वर्षों में भारत में राज़गार के सृजन में भी सकल घरेलू उत्पाद के अनुरूप वृद्धि हुई है? कैसे?
उत्तर : नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता कि पिछले 50 वर्षों में भारत में रोजगार के सृजन में भी सकल घरेलू उत्पाद के अनुरूप वृद्धि हुई है। हम सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर को रोजगार सृजन की दर से तुलना करके यह सिद्ध कर सकते हैं। स्वतंत्रता के समय से सकल घरेलू उत्पाद औसतन 4.5% प्रतिवर्ष की दर से बढ़ा है। जबकि रोज़गार का सृजन केवल 1.5% प्रति वर्ष हुआ है। इससे यह सिद्ध होता है कि भारत में रोज़गारहीन संवृद्धि हुई है।

प्र.18. क्या औपचारिक क्षेत्रक में रोजगार का सृजन आवश्यक है? अनौपचारिक में नहीं? कारण बताइए।
उत्तर : हाँ, यह आवश्यक है कि हम औपचारिक क्षेत्रक में रोजगार सृजन करें क्योंकि

1. औपचारिक क्षेत्रक कर्मचारियों के अधिकार सुनिश्चित करता है।
2. यह काम की सुरक्षा और रोज़गार की नियमितता सुनिश्चित करता है।
3. यह एक बेहतर गुणवत्ता का कार्य जीवन सुनिश्चित करता है।
4. औपचारिक क्षेत्रक पर सरकार नियंत्रण रख सकती है।
5. यह अर्थव्यवस्था में अनुशासन और नियम लाता है।

प्र.19. विक्टर को दिन में केवल दो घंटे काम मिल पाता है। बाकी सारे समय वह काम की तलाश में रहता है। क्या वह बेरोजगार है? क्यों? विक्टर जैसे लोग क्या काम करते होंगे?
उत्तर : हाँ, वर्तमान दैनिक स्थिति (CDS) के अनुसार वह कार्यरत है क्योंकि वर्तमान दैनिक स्थिति (Current Daily Status) के अनुसार, कोई व्यक्ति जो आधे दिन में 1 घंटे का काम प्राप्त करने में सक्षम है वह नियोजित है। विक्टर जैसे लोग रिक्शा चालक, मोची, बिजली, पलंबर, मेसन या छोटे-मोटे रिपेयर जैसे काम करते हैं।

प्र.20. क्या आप गाँव में रह रहे हैं? यदि आपको ग्राम-पंचायत को सलाह देने के लिए कहा जाए तो आप गाँव की उन्नति के लिए किस प्रकार के क्रियाकलाप का सुझाव देंगे, जिससे रोजगार सृजन भी हो।
उत्तर : मैं निम्नलिखित क्रियाकलापों का सुझाव दूंगा/देंगी
(क) नहरों और नलकूपों का निर्माण ताकि सिंचाई सुविधाओं में सुधार हो
(ख) स्कूल और अस्पतालों का निर्माण
(ग) सड़कों, भंडारण गृहों आदि का निर्माण
(घ) कृषि आधारित उद्योगों को विकसित करना
(ङ) छोटे पैमाने के उद्योग जैसे-टोकरी, बुनाई, अचार बनाना, कढ़ाई आदि विकसित करना।

प्र.21. अनियत दिहाड़ी मज़दूर कौन होते हैं?
उत्तर : ऐसे कार्यकर्ता जिन्हें अनुबंध या दैनिक आधार पर भुगतान किया जाता है तथा जिनके काम की कोई नियमितता नहीं है, उन्हें अनियत दिहाड़ी मज़दूर कहा जाता है। उदाहरण-निर्माण मजदूर।

प्र.22. आपको यह कैसे पता चलेगा कि कोई व्यक्ति अनौपचारिक क्षेत्रक में काम कर रहा है?
उत्तर : यह जानने के लिए कि कोई व्यक्ति अनौपचारिक क्षेत्रक में काम कर रहा है, हमें निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान देना होगा–

(क)
जिस प्रतिष्ठान में व्यक्ति कार्यरत है वहाँ कुल कर्मचारियों की संख्या-यदि कुल कर्मचारियों की संख्या 10 या उससे अधिक है तो व्यक्ति औपचारिक क्षेत्रक में नियोजित है।

(ख)
लिखित अनुबंध-यदि एक व्यक्ति को अपने नियोक्ता के साथ लिखित अनुबंध है तो वह औपचारिक क्षेत्रक में कार्यरत है अन्यथा वह अनौपचारिक क्षेत्रक में कार्यरत है।

(ग)
उसे अतिरिक्त लाभ मिल रहे हैं या नहीं-यदि एक व्यक्ति को तनढव्वाह के अतिरिक्त अन्य लाभ पेंशन, बोनस, पी.एफ., सवेतन छुट्टी, भविष्य निधि, मातृत्व लाभ आदि मिल रहे हैं तो वह औपचारिक क्षेत्रक में कार्यरत है।

Hope given Indian Economic Developments Class 11 Solutions Chapter 7 are helpful to complete your homework.

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NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 5 Indian Sociologists (Hindi Medium)

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पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न [NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED]

प्र० 1. अनंतकृष्ण अय्यर और शरतचंद्र रॉय ने सामाजिक मानव विज्ञान के अध्ययन का अभ्यास कैसे किया?
उत्तर- अनंतकृष्ण अय्यर (1861-1931) भारत में समाजशास्त्र के अग्रदूत थे।

  • अनंतकृष्ण अय्यर को कोचीन के दीवान द्वारा राज्य के नृजातीय सर्वेक्षण में मदद के लिए कहा गया।
  • महाप्रान्त क्षेत्र के अतिरिक्त ब्रिटिश सरकार इसी प्रकार का सर्वेक्षण सभी रजवाड़ों में करवाना चाहती थी। ये क्षेत्र विशेषतः उनके नियंत्रण में आते थे।
  • अनंतकृष्ण अय्यर ने इस कार्य को पूर्ण रूप से एक स्वयंसेवी के रूप में किया। अनंतकृष्ण अय्यर संभवतः पहले स्वयं शिक्षित मानवविज्ञानी थे जिन्होंने एक विद्धान और शिक्षाविद् के रूप में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की ख्याति प्राप्त की।
    शरतचंद्र रॉय के द्वारा समाजशास्त्र का प्रयोगः
  • शरतचंद्र रॉय जनजातीय समाज में अत्यधिक रुचि रखते थे। यह उनकी नौकरी की आवश्यकता भी थी। कारण यह था कि उन्हें अदालत में जानकारियों की परंपरा और कानून को दुभाषित करना था।
  • ओराव, मुंडा और खरिया जनजातियों पर किया गया सर्वप्रसिद्ध प्रबन्ध लेखन कार्य के अतिरिक्त रॉय ने सौ से अधिक लेख राष्ट्रीय और ब्रिटिश शैक्षिक जर्नल में प्रकाशित किये।
  • सन् 1922 ई० में उन्होंने मैन इन इंडिया नामक जर्नल की स्थापना की। भारत में यह अपने समय का पहला जर्नल था।

प्र० 2. जनजातीय समुदायों को कैसे जोड़ा जाए’-इस विवाद के दोनों पक्षों के क्या तर्क थे?
उत्तर-

  • अनेक ब्रिटिश प्रशासक ऐसे भी थे जो मानवविज्ञानी थे। वे भारतीय जनजातियों में रुचि रखते थे। उनका विश्वास था कि ये आदिम लोग थे और उनकी अपनी विशिष्ट संस्कृति थी। साथ ही ये भारतीय जनजातियाँ हिंदू मुख्यधारा से काफ़ी अलग थीं।
  • उनका मत था कि समाज में इन सीधे-सादे जनजातीय लोगों का न केवल शोषण होगा बल्कि उनकी संस्कृति का पतन भी होगा।
  • उन्होंने महसूस किया कि राज्य का यह कर्तव्य है कि वे इन जनजातियों को संरक्षण दे ताकि वे अपनी जीवन विधि और संस्कृति को कायम रख सके। इसका कारण भी था, यह कि उन पर लगातार दबाव बन रहा था कि वे हिंदू संस्कृति की मुख्यधारा में अपना समायोजन करें।
  • उनका मानना था कि जनजातीय संस्कृति को बचाने का कार्य गुमराह करने की कोशिश की और इसको परिणाम जनजातियों का पिछड़ापन है।
  • घूर्ये राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने इस तथ्य पर बल दिया कि भारतीय जनजातियों को एक भिन्न सांस्कृतिक समूह की तुलना में पिछड़े हिंदू समाज’ की तरह पहचाना जाना चाहिए।
    अंतर के मुख्य बिंदु (Main Points of Difference)
  • मतभेद यह था कि मुख्यधारा की संस्कृति के प्रभाव का किस प्रकार मूल्याकंन किया जाए। संरक्षणवादियों का विश्वास था कि समायोजन को परिणाम जनजातियों के शोषण और उनकी सांस्कृतिक विलुप्तता का रूप सामने आएगा।
  • घूयें और राष्ट्रवादियों का तर्क था कि ये दुष्परिणाम केवल जनजातीय संस्कृति तक ही सीमित नहीं हैं। बल्कि भारतीय समाज के सभी पिछड़े और दलित वर्गों में समान रूप से देखे जा सकते हैं।

प्र० 3. भारत में प्रजाति तथा जाति के संबंधों पर हरबर्ट रिजले तथा जी०एस०घूर्य की स्थिति की रूपरेखा दें।
उत्तर-

  • रिजले का मानना था कि मनुष्य को उसकी शारीरिक विशिष्टताओं के आधार पर अलग भिन्न जनजातियों में वगीकृत किया जा सकता है; जैसे-खोपड़ी की चौड़ाई, नाक की लंबाई या कपाल का भार अथवा खोपड़ी का वह भाग जहाँ मस्तिष्क स्थित है।
  • रिज़ले को विश्वास था कि विभिन्न प्रजातियों के उविकास के अध्ययन के संदर्भ में भारत एक विशिष्ट प्रयोगशाला’ है। इसका कारण यह है कि जाति एक लंबे समय से विभिन्न समूहों के बीच अंतनिर्वाह को निषिद्ध करती है।
  • उच्च जातियों ने भारतीय-आर्य प्रजाति की विशिष्टताओं को ग्रहण किया जबकि निम्न जातियों में अनार्य जनजातियों, मंगोल या अन्य प्रजातियों के गुण पाये जाते हैं।
  • रिजले और अन्य विद्धानों ने सुझाव दिया कि निम्न जातियाँ ही भारत की मूल निवासी हैं। आर्यों ने उनका शोषण किया जो कहीं बाहर से आकर भारत में फले-फूले थे।
  • रिजले के तर्को से घूर्ये असहमत नहीं थे। परंतु उन्होंने इसे केवल अंशतः सत्य माना। उन्होंने इस समस्या की ओर ध्यान दिया। वस्तुतः यह समस्या, केवल औसत के आधार पर बिना परिवर्तन सोच-विचार किए किसी समुदाय पर विशिष्ट मापदंड लागू कर देने से उत्पन्न होती है। जोकि विस्तृत एवं सुव्यवस्थित नहीं था।
  • प्रजातीय शुद्धता केवल उत्तर भारत में शेष रह गई थी। इसका कारण यह था कि वहाँ अंतर्विवाह निषिद्ध था।

प्र० 4. जाति की सामाजिक मानवशास्त्रीय परिभाषा को सारांश में बताएँ।
उत्तर- जाति की सामाजिक मानवविज्ञान संबंधी परिभाषा

  • जाति खंडीय विभाजन पर आधारित है – जाति एक संस्था है। और यह खंडीय विभाजन पर आधारित है। इसका तात्पर्य यह है कि जातीय समाज कई बंद और पारस्परिक खंडों एवं उपखंडों में विभाजित है।
  • जाति सोपानिक विभाजन पर आधारित हैं – जातिगत समाज का आधार सोपानिक विभाजन है। दूसरी जाति की तुलना में प्रत्येक जाति असमान होती है।
  • जाति सामाजिक अंतक्रिया पर प्रतिबंध लगाती है – संस्था के रूप में जाति सामाजिक अंत:क्रिया पर प्रतिबंध लगाती है विशेषकर साथ बैठकर भोजन करने के संदर्भ में।
  • अस्पृश्यता की संस्था के रूप में – अस्पृश्यता की संस्था के रूप में यहाँ तक किसी जाति विशेष के व्यक्ति द्वारा छू जाने मात्र से मनुष्य अपवित्र महसूस करता है।
  • विभिन्न जातियों के लिए भिन्न-भिन्न अधि कार और कर्तव्य – सोपानिक और प्रतिबंधित सामाजिक अंत:क्रिया के सिद्धांतों का अनुसरण करते हुए जाति विभिन्न जातियों के लिए भिन्न-भिन्न अधिकार और कर्तव्य भी निर्धारित करती है।
  • व्यवसाय के चुनाव पर प्रतिबंध जाति व्यवसाय के चुनाव को भी सीमित कर देती है – जाति के समान व्यवसाय भी जन्म पर आधारित और वंशानुगत होता है।
  • जाति विवाह पर कठोर प्रतिबंध लगाती है – जाति विवाह पर कठोर प्रतिबंध लगाती है। जाति में अंतर्विवाह या जाति में ही विवाह के अतिरिक्त ‘बहिर्विवाह’ के नियम भी जुड़े रहते हैं, या किसकी शादी किससे नहीं हो सकती है।

प्र० 5. जीवंत परंपरा से डी०पी० मुकर्जी का क्या तात्पर्य है? भारतीय समाजशास्त्रियों ने अपनी परंपरा से जुड़े रहने पर बल क्यों दिया?
उत्तर-

  • डी०पी० मुकर्जी के अनुसार, वह एक परंपरा है। जो भूतकाल से कुछ प्राप्त कर उससे अपने संबंध बनाए रखती है। इसके अतिरिक्त यह नयी चीजों को भी ग्रहण करती है।
  • इस प्रकार जीवंत परंपरा में पुराने और नए तत्वों का मिश्रण है।
  • डी०पी० मुकर्जी ने जिस तथ्य पर बल दिया वह यह है कि भारतीय समाजशास्त्रीयों को जीवंत परंपरा में रुचि रखनी चाहिए ताकि इसका उचित और सार भाव प्राप्त हो सके।
  • भारतीय समाजशास्त्री निम्नलिखित विषयों को अधिक सुलभता से जान सकते है
    • आपके उम्र के बच्चों द्वारा खेला जाने वाला खेल। (लड़का/लड़की)।
    • किसी लोकप्रिय त्योहार को मनाने के तरीके।
  • भातीय समाजशास्त्रीयों का प्रथम कर्तव्य भारत की सामाजिक परंपराओं का अध्ययन करना और जानना है। डी०पी० मुकर्जी के लिए, परंपरा का अध्ययन केवल भूतकाल तक ही सीमित नहीं था। इसके विपरीत वे परिवर्तन की संवेदनशीलता से भी जुड़े थे। डी०पी० मुकर्जी ने जो भी लिखा है, वह भारतीय समाजशास्त्रीयों के लिए पर्याप्त नहीं है। सर्वप्रथम उन्हें भारतीय होना अनिवार्य है। उदाहरण के लिए उन्हें रीति-रिवाजों, रूढ़ियों, प्रथाओं और परंपराओं की जानकारी देनी है। इसका उद्देश्य है संदर्भित सामाजिक व्यवस्था को समझना एवं इसके अंदर तथा बाहर के तथ्यों की जानकारी हासिल करना।
  • डी०पी० मुकर्जी ने तर्क किया कि पाश्चात्य संदर्भ में भारतीय संस्कृति और समाज व्यक्तिवादी नहीं हैं।
  • स्वैच्छिक व्यक्तिगत कार्यों की तुलना में भारतीय सामाजिक व्यवस्था मुख्य रूप से समूह, समुदाय अथवा जाति संबंधी कार्यों के प्रति अभिमुख है।

प्र० 6. भारतीय संस्कृति तथा समाज की क्या विशष्टिताएँ हैं तथा ये बदलाव के ढाँचे को कैसे प्रभावित करते हैं?
उत्तर-

  • डी०पी० मुकर्जी ने महसूस किया कि भारत का निर्णायक और विशष्ट लक्षण इसकी सामाजिक व्यवस्था है।
  • उनके अनुसार भारत में इतिहास, राजनीति और अर्थशास्त्र पश्चिम के मुकाबले और आयाम के दृष्टिकोण से कम विकसित थे।
  • पाश्चात्य अर्थ में भारतीय संस्कृति और समाज व्यक्तिवादी नहीं है लेकिन इनमें सामूहिक व्यवहार के प्रतिमान निहित हैं।
  • डी०पी० मुकर्जी का मत है कि भारतीय समाज और संस्कृति का संबंध केवल भूतकाल तक ही सीमित नहीं है। इसे अनुकूलन की प्रक्रिया में भी विश्वास है।
  • डी०पी० मुकर्जी का मत है कि भारतीय संदर्भ में वर्ग संघर्ष जातीय परंपराओं से प्रभावित होता है एवं उसे अपने में सम्मिलित कर लेता है, जहाँ नवीन वर्ग संघर्ष अभी स्पष्ट रूप से उभर कर सामने नहीं
    आया है।
  • डी०पी० मुकर्जी को भारतीय परंपरा जैसे श्रुति, स्मृति और अनुभव में विश्वास था। इन सब में आखिरी अनुभव या व्यक्तिगत अनुभव क्रांतिकारी सिद्धांत है।
  • सामान्यीकृत अनुभव या समूहों का सामूहिक अनुभव भारतीय समाज में परिवर्तन का सर्वप्रमुख सिद्धांत था।
  • उच्च परंपराएँ स्मृति और श्रुति में केंद्रित थी, लेकिन समय-समय पर उन्हें समूहों और संप्रदायों के सामूहिक अनुभवों द्वारा चुनौती दी जा रही है। उदाहरण के लिए, भक्ति आंदोलन। । डी०पी० मुकर्जी के अनुसार, भारतीय संदर्भ में बुद्धि-विचार परिवर्तन के लिए प्रभावशाली शक्ति नहीं है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अनुभव एवं प्रेम परिवर्तन के उत्कृष्ट कारक हैं।
  • भारतीय परिप्रेक्ष्य में संघर्ष और विद्रोह सामूहिक अनुभवों के आधार पर कार्य करते हैं।

प्र० 7. कल्याणकारी राज्य क्या है? ए०आर० देसाई कुछ देशों द्वारा किए गए दावों की आलोचना क्यों करते हैं?
उत्तर-

  • एक कल्याणकारी राज्य वह राज्य है जो विभिन्न परिप्रेक्ष्यों से संबंधित व्यक्तियों के कल्याण का कार्य करता है; जैसे-व्यक्तियों का राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, विकासात्मक आदि। ए०आर० देसाई की रुचि आधुनिक पूँजीवादी राज्य के महत्वपूर्ण विषय में था। देसाई ने कल्याणकारी राज्य की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं
  • कल्याणकारी राज्य एक सकारात्मक राज्य होता है। इसका अर्थ है कि उदारवादी राजनीति के शास्त्रीय सिद्धांत की ‘Laissez Faire’ नीति के विपरीत, कानून और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कल्याणकारी राज्य केवल न्यूनतम कार्य ही नहीं करता है।
  • कल्याणकारी राज्य की अर्थव्यवस्था मिश्रित होती है। मिश्रित अर्थव्यवस्था का अर्थ है-ऐसी अर्थव्यवस्था जहाँ निजी पूँजीवादी कंपनियाँ और राज्य या सामूहिक कंपनियाँ दोनों साथ मिलकर कार्य करती हों।
  • एक कल्याणकारी राज्य न तो पूँजीवादी बाज़ार को ही समाप्त करना चाहता है एवं न ही यह उद्योगों और दूसरे क्षेत्रों में जनता को निवेश करने से वंचित रखता है। कुल मिलाकर सरकारी क्षेत्र जरूरत की वस्तुओं तथा सामाजिक अधिसंरचना पर ध्यान देता है। इसकी तरफ निजी उद्योगों का वर्चस्व उपभोक्ता वस्तुओं पर कायम रहता है।
  • देसाई कुछ ऐसे तरीकों का सुझाव देते हैं जिनके आधार पर कल्याणकारी राज्य द्वारा उठाये गए कदमों का परीक्षण किया जा सकता है। ये हैं।
    (i) गरीबी, भेदभाव से मुक्ति एवं सभी नागरिकों की सुरक्षा – कल्याणकारी राज्य गरीबी, सामाजिक भेदभाव से मुक्त और अपने सभी नागरिकों की सुरक्षा की व्यवस्था करता है।
    (ii) आय की समानता – कल्याणकारी राज्य आय संबंधी असमानता को दूर करने का प्रयास करता है। इसके लिए यह अमीरों की आय गरीबों में पुनः बाँटता है, धन के संग्रह को रोकता है।
    (iii) समुदाय की वास्तविक जरूरतों की प्राथमिकता – कल्याणकारी राज्य अर्थव्यवस्था को इस प्रकार परिवर्तित करता है जहाँ समाज की वास्तविक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए पूँजीवादियों को अधिक लाभ कमाने की मनोवृत्ति पर रोक लग जाय।
    (iv) स्थायी विकास – कल्याणकारी राज्य स्थायी विकास के लिए आर्थिक मंदी और तेजी से मुक्त व्यवस्था सुनिश्चित करता है।
    (v) रोजगार – यह सबके लिए रोजगार उपलब्ध कराता है।

प्र० 8. समाजशास्त्रीय शोध के लिए ‘गाँव’ को एक विषय के रूप में लेने पर एम०एन० श्रीनिवास तथा लुई डयूमों ने इसके पक्ष तथा विपक्ष में क्या तर्क दिए हैं?
उत्तर-

  • एम०एन० श्रीनिवास ने भारतीय गाँवों को समाजशास्त्रीय शोध/अनुसंधान के विषय के रूप में चुनाव किया। इसका कारण यह था कि उनकी रुचि ग्रामीण समाज से जीवनभर बनी रही।
  • उनके लेख दो प्रकार के हैं-गाँवों में किए गए क्षेत्रीय कार्यों का नृजातीय ब्यौरा तथा इन ब्यौरों पर परिचर्चा।
  • दूसरे प्रकार के लेख में सामाजिक विश्लेषण की एक इकाई के रूप में भारतीय गाँव पर ऐतिहासिक और अवधारणात्मक परिचर्चाएँ शामिल हैं।
  • श्रीनिवास का मत था कि गाँव एक आवश्यक सामाजिक पहचान है। इतिहास साक्षी है कि गाँवों ने अपनी एक एकीकृत पहचान बना रखी है। ग्रामीण समाज में ग्रामीण एकता का अत्यधिक महत्व है।
  • श्रीनिवास ने ब्रिटिश प्रशासक मानव वैज्ञानिकों की आलोचना की। इसका कारण यह था कि उन्होंने भारतीय गाँव को स्थिर, आत्मनिर्भर, छोटे गणतंत्र के रूप में चित्रित किया था।
  • गाँव कभी भी आत्मनिर्भर नहीं थे। वस्तुतः वे विभिन्न प्रकार के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक संबंधों से जुड़े हुए थे।

प्र० 9. भारतीय समाजशास्त्र के इतिहास में ग्रामीण अध्ययन का क्या महत्व है? ग्रामीण अध्ययन को आगे बढ़ाने में एम०एन० श्रीनिवास की क्या भूमिका रही?
उत्तर-

  • भारत गाँवों का देश है।
  • 65 प्रतिशत से अधिक लोग भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं।
  • यदि हम पाश्चात्य सामाजशास्त्रीयों के अपूर्ण और मिथ्या, तथ्यात्मक एवं शिक्षा संबंधी-जानकारियों को चुनौती देना चाहते हैं, तो गाँवों का अध्ययन आवश्यक है। ब्रिटिश सरकार के औपनिवेशिक हित, विचारधारा और नीतियों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपना शोध कार्य सम्पन्न किया था।
  • एम०एन० श्रीनिवास ने भारतीय समाज और भारत के ग्रामीण जीवन से संबंधित कुछ विचारों पर महत्वपूर्ण लेख लिखे हैं।
  • एम०एन० श्रीनिवास की रुचि भारतीय गाँव और भारतीय समाज में जीवनभर बनी रही।
  • 1950 – 1960 के दौरान श्रीनिवास ने ग्रामीण समाज से संबंधित विस्तृत नृजातीय व्यौरों का लेखा-जोखा को तैयार करने में सामूहिक परिश्रम को प्रोत्साहित तथा समन्वित किया।

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NCERT Solutions for Class 11 History Chapter 6 The Three Orders (Hindi Medium)

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अभ्यास प्रश्न (पाठ्यपुस्तक से) (NCERT Textbook Questions Solved)

संक्षेप में उत्तर दीजिए

प्र० 1. फ्रांस के प्रारंभिक सामंती सामाज के दो लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर फ्रांस के प्रारंभिक सामंती समाज के दो लक्षण निम्नलिखित हैं

  • फ्रांसीसी समाज मुख्य रूप से तीन वर्गों में विभाजित था-(i) पादरी, (ii) अभिजात वर्ग, (ii) कृषक वर्ग। पश्चिमी चर्च के अध्यक्ष पोप होते थे और कैथोलिक चर्च से संबंध रखते थे। चर्को तथा पादरियों पर राजा का निंयत्रण नहीं रहता था। अभिजात वर्ग राजा पर निर्भर रहता था, किंतु तृतीय वर्ग की स्थिति अत्यंत दयनीय थी।
  • संसार में सर्वप्रथम सामंतवाद का उदय फ्रांस में हुआ। किसान अपने खेतों पर काम के रूप में सेवा प्रदान करते थे और जरूरत पड़ने पर वे उन्हें सैनिक सुरक्षा प्रदान करते थे।

प्र० 2. जनसंख्या के स्तर में होने वाली लंबी अवधि के परिवर्तनों ने किस प्रकार यूरोप की अर्थव्यवस्था और समाज को प्रभावित किया?
उत्तर कृषि में विस्तार के साथ ही उससे संबद्ध तीन क्षेत्रों-जनसंख्या, व्यापार और नगरों का विस्तार हुआ। यूरोप की
तत्कालीन जनसंख्या जो 1000 ई० में लगभग 420 लाख थी, 1200 ई० में बढ़कर 620 लाख और 1300 ई० में बढ़कर 730 लाख हो गई। बेहतर आहार के कारण लोगों की जीवन की अवधि बढ़ गई। तेरहवीं सदी तक एक औसत यूरोपीय आठवीं सदी की अपेक्षा दस वर्ष ज्यादा जीवन जी सकता था। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों और बालिकाओं की जीवन अवधि लघु होती थी क्योंकि पुरुषों को बेहतर भोजन मिलता था।

ग्यारहवीं शताब्दी में जब कृषि का विस्तार हुआ और वह अधिक जनसंख्या का भार सहने में सक्षम हुई तो नगरों की तादाद में पुनः बढ़ोतरी होने लगी। नगरों में लोग, सेवा के बजाय लार्डो को, जिनकी भूमि पर वे बसे थे, उन्हें कर देने लगे। नगरों ने कृषक परिवारों के जवान (युवा) सदस्यों को वैतनिक कार्य और लार्ड के नियंत्रण से मुक्ति की अधिक संभावनाएँ प्रदान कीं। तेरहवीं शताब्दी के अंत तक पिछले तीन सौ वर्षों में उत्तरी यूरोप में तेज ग्रीष्म ऋतु का स्थान तीव्र ठंडी ऋतु ने ले लिया। परिणामतः पैदावार की अवधि कम हो गयी और ऊँची भूमि पर फसल उगाना कठिन हो गया। ऑस्ट्रिया व सर्बिया की चाँदी की खानों के उत्पादन में कमी के कारण धातु में कमी आई और इससे व्यापार प्रभावित हुआ। इसके अतिरिक्त, 1347 और 1350 के मध्य लोग प्लेग जैसी महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए। आधुनिक आकलन के आधार पर यूरोप की आबादी का करीब 20% भाग इस दौरान काल-कवलित हो गया जबकि कुछ स्थानों पर मरने वालों की संख्या वहाँ की जनसंख्या के 40% तक थी। इस प्रकार जनसंख्या में परिवर्तनों के फलस्वरूप यूरोप की अर्थव्यवस्था और समकालीन समाज प्रभावित हुआ।

प्र० 3. नाइट एक अलग वर्ग क्यों बने और उनका पतन कब हुआ?
उत्तर यूरोप में नौवीं सदी के दौरान युद्ध अधिकतर होते रहते थे। शौकिया कृषक सैनिक इस युद्ध के लिए पर्याप्त नहीं थे और कुशल अश्वसेना की आवश्यकता थी। इसने एक नए वर्ग को उत्पन्न किया जिसे नाइट कहा जाता था। वे लार्ड से उस प्रकार संबद्ध थे जैसे लार्ड राजा से संबद्ध था। लार्ड नाइट को जमीन देता था तथा उसकी सुरक्षा का वचन देता था। उसके बदले में नाइट अपने लार्ड को एक निश्चित धनराशि देता था और युद्ध में उसकी तरफ से लड़ने का वचन देता था। बारहवीं सदी के शुरुआती वर्षों में नाइट समूह का पतन हो गया।

प्र० 4. मध्यकालीन मठों के प्रमुख कार्य कौन-कौन से थे?
उत्तर मध्यकाल में चर्च के अतिरिक्त धार्मिक गतिविधियों के केंद्र मठ भी थे। मठों को निर्माण आबादी से दूर किया जाता था। मठों में भिक्षु निवास करते थे। वे प्रार्थना करने के अतिरिक्त, अध्ययन-अध्यापन तथा कृषि भी करते थे। मठों का प्रमुख काम एक स्थान से दूसरे स्थान तक धर्म का प्रचार-प्रसार करना था। मठों में अध्ययन के अतिरिक्त अन्य कलाएँ भी सीखी जाती थीं। आबेस हिल्डेगार्ड प्रतिभासंपन्न संगीतज्ञ था। उसने चर्च की प्रार्थनाओं में सामुदायिक गायन की परंपरा के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया। तेरहवीं सदी से भिक्षुओं के कुछेक समूह, जिन्हें फ्रायर कहते थे, मठों में रहने का फैसला किया।

चौदहवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों तक मठवाद के महत्त्व, उद्देश्यों के बारे में कुछ शंकाएँ व्यक्त की जाने लगीं। मठों के भिक्षुओं का मुख्य कार्य ईश्वर की आराधना करना तथा जनसाधारण को चर्च के सिद्धांतों के विषय में समझाना था। वे जनसामान्य के नैतिक जीवन को ऊँचा उठाने का कार्य करते थे। उन्हें शिक्षित करने तथा रोगियों की सेवा करने का प्रयास करते थे।

संक्षेप में निबंध लिखिए

प्र० 5. मध्यकालीन फ्रांस के नगर में एक शिल्पकार के एक दिन के जीवन की कल्पना कीजिए और इसका वर्णन | कीजिए।
उत्तर विद्यार्थी अपने अध्यापक की सहायता से स्वयं करने का प्रयत्न करें।

प्र० 6. फ्रांस के सर्फ और रोम के दास के जीवन की दशा की तुलना कीजिए।
उत्तर फ्रांस के सर्फ़ ओर रोम के दास के जीवन में शोषण की प्रमुखता थी, किंतु उन दोनों के जीवन-शैली में कुछ अंतर भी मौजूद थे।

रोमन समाज के तीन प्रमुख वर्गों में से सबसे निचला दर्जा दास वर्ग का था, जिसे पूर्णरूप से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रता के अधिकारों से अलग रखा गया था। उसे सामाजिक न्याय की प्राप्ति नहीं थी। रोमन दासों के साथ पशुओं जैसा व्यवहार किया जाता था। उन्हें जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से भी वंचित रखा गया था, परंतु कालांतर में उच्च वर्ग द्वारा उनके प्रति कुछ सहानुभूति दिखलाई गई। इसके साथ ही, दास-प्रथा का सबसे बुरा प्रभाव वहाँ के समाज पर पड़ा। दासों को लेकर रोमन समाज में प्रायः संघर्ष होते रहते थे। कई बार मनोरंजन के लिए उन्हें जंगली पशुओं के सामने डाल दिया जाता था। दासों की तत्कालीन दशा बद-से-बदतर थी।

फ्रांस में सर्फ़ दास किसान थे और यह किसानों का निम्नतम वर्ग था। इनकी समाज में काफी संख्या थी। उन पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगे हुए थे। उदाहरण के लिए, उन्हें अपने मालिकों से खेती के लिए भूमि उपज का एक निश्चित भाग उन्हें देना पड़ता था। सर्कों को अपने भूस्वामियों के खेतों पर बिना पैसे के काम यानी बेगार करना पड़ता था। और मज़दूरी दिए बिना ही उनसे मकान बनवाये जाते थे, लकड़ी कटवाई-चिराई की जाती थी, पानी भराने जैसे घरेलू काम भी करवाये जाते थे। यदि वे आजाद या मुक्त होने का प्रयत्न करते थे तो उन्हें पकड़कर कठोर सजा दी जाती थी। इस प्रकार रोमन दासों वे फ्रांस के सफ़ की जीवन-शैली में कोई विशेष अंतर नहीं था। हम कह सकते हैं कि दोनों का जीवन पशु जैसा ही था।

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NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 3 Liberalisation, Privatisation and Globalisation An Appraisal (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 3 Liberalisation, Privatisation and Globalisation: An Appraisal (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 3 Liberalisation, Privatisation and Globalisation: An Appraisal (Hindi Medium)

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प्रश्न अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

प्र.1. भारत में आर्थिक सुधार क्यों आरंभ किए गए?
उत्तर : आर्थिक सुधार निम्न कारणों से आरंभ किए गए
(क) 1991 में भारत एक आर्थिक संकट का सामना कर रहा था।
(ख) सरकारी राजस्व से अधिक सरकारी व्यय ने भारी उधारी को जन्म दिया। 1991 में राष्ट्रीय ऋण सकल राष्ट्रीय उत्पाद का 60% था। सरकार ब्याज तक देने में असमर्थ थी। इसका मुख्य कारण विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र में संसाधन प्रबंधन की अक्षमता थी।
(ग) विदेशी मुद्रा भंडार जिन्हें हम आयातों के भुगतान के लिए रखते हैं, इतने कम हो गए की वे केवल तीन सप्ताह के लिए पर्याप्त थे।
(घ) खाड़ी युद्ध के कारण कीमतों के बढ़ने की दर दोहरे अंक में पहुँच गई, जिसने संकट को और बढ़ा दिया। मुद्रास्फीति की दर 12% प्रति वर्ष था।
(ङ) घटिया प्रबंधन के कारण बहुत से सार्वजनिक क्षेत्र के उपकर्म घाटे में चल रहे थे। इस संकट का जवाब सरकार ने 1991 की नई आर्थिक नीति की उद्घोषणा करके दिया।

प्र.2. विश्व व्यापार संगठन का सदस्य होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर : आई.एम.एफ. और विश्व बैंक से ऋण प्राप्ति के लिए और अन्य देशों के साथ मुफ्त व्यापार करने के लिए विश्व व्यापार संगठन का सदस्य होना आवश्यक है। विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बने बिना एक देश वैश्वीकृत होते विश्व व्यापार का लाभ नहीं उठा सकता।

प्र.3. भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय क्षेत्र में नियंत्रक की भूमिका से स्वयं को सुविधाप्रदाता की भूमिका अदा करने में क्यों परिवर्तित किया?
उत्तर : भारतीय रिज़र्व बैंक नियंत्रक की भूमिका से स्वयं को सुविधाप्रदाता की भूमिका अदा करने का बड़ा परिवर्तन किया। पहले एक नियंत्रक के रूप में, आर.बी.आई. खुद ब्याज तय करता था तथा प्रबंधकीय निर्णयों को प्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित करता था। परंतु उदारीकरण के उपरांत इसने सुविधाप्रदाता की भूमिका निभाई जिसके अंतर्गत ब्याज दरों को बाज़ार बलों द्वारा निर्धारित होने के लिए स्वतंत्र कर दिया गया तथा प्रत्येक वाणिज्यिक बैंक को प्रबंधन निर्णयों की स्वतंत्रता दे दी गई। उन्हें बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाना आवश्यक था। उदारीकरण के साथ बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ गई। अतः बाज़ार से उत्तम प्राप्ति के लिए बैंकों को प्रबंधन निर्णय लेने की स्वतंत्रता देना आवश्यक हो गया।

प्र.4, रिज़र्व बैंक व्यावसायिक बैंकों पर किस प्रकार नियंत्रण रखता है?
उत्तर : रिज़र्व बैंक व्यावसायिक बैंकों पर निम्न प्रकार से नियंत्रण रखता है

(क)
यह उस न्यूनतम रोकड़ की राशि/अनुपात निर्धारित करता है जो हर व्यावसायिक बैंक को रिज़र्व बैंक के पास रखनी पड़ती है। इसे नकद आरक्षित अनुपात कहा जाता है।

(ख)
यह उस न्यूनतम अनुपात का निर्धारण करता है जो नकद था तरल परिसंपत्तियों के रूप में एक बैंक को अपने पास रखना होता है। इसे वैधानिक तरलता अनुपात कहते हैं।

(ग)
रिज़र्व बैंक वह ब्याज दर निर्धारित करता है जिस पर रिज़र्व बैंक व्यावसायिक बैंकों के विनिमय बिलों को छूट देगा। इसे बैंक दर कहते हैं।

प्र.5. रुपयों के अवमूल्यन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर : नियंत्रण प्राधिकारी के निर्णय से जब विनिमय दर में गिरावट आती है जिससे एक मुद्रा का मूल्य अन्य मुद्रा की तुलना में कम हो जाता है तो उसे अवमूल्यन कहते हैं। इसके परिणामस्वरूप, आयात महँगे और निर्यात सस्ते हो जाते हैं। अतः निर्यात बढ़ जाते हैं। और आयात कम हो जाते हैं। इस तरह व्यापार का संतुलन ठीक हो जाता है।

प्र.6. इनमें भेद करें:
(क) युक्तियुक्त और अल्पांश विक्रय
(ख) द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार
(ग) प्रशुल्क एवं अप्रशुल्क अवरोधक
उत्तर :
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प्र.7. प्रशुल्क क्यों लगाए जाते हैं?
उत्तर : प्रशुल्क घरेलू वस्तुओं की तुलना में आयातित वस्तुओं को महँगा बनाने के लिए लगाए जाते हैं। इससे घरेलू वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है तथा विदेशी वस्तुओं की माँग कम हो जाती है। यह घरेलू उद्योग की रक्षा के दृष्टिकोण से लगाए जाते हैं।

प्र.8. परिमाणात्मक प्रतिबंधों का क्या अर्थ होता है?
उत्तर : यह भुगतान संतुलन (बी.ओ.पी.) के घाटे को कम करने और घरेलू उद्योग की रक्षा के लिए आयात पर लगाई गई कुल मात्रा या कोटे के रूप में प्रतिबंध को दर्शाता है।

प्र.9. ‘लाभ कमा रहे सार्वजनिक उपक्रमों को निजीकरण कर देना चाहिए। क्या आप इस बात से सहमत हैं? क्यों?
उत्तर : नहीं, इसका विपरीत है, हमें घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण कर देना चाहिए। यदि हम लाभ कमा रहे सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण करेंगे तो यह सरकारी राजस्व के लिए नुकसान होगा जो देश के विकास के लिए प्रयोग किया जा सकता था। सार्वजनिक उपक्रमों को प्रतिस्पर्धी, आधुनिकीकृत और दक्ष होने के लिए लाभ की ज़रूरत है।

प्र.10. क्या आपके विचार से बाह्य प्रापण भारत के लिए अच्छा है? विकसित देशों में इसका विरोध क्यों हो रहा है?
उत्तर : बाह्य प्रापण भारत के लिए अच्छा है क्योंकि
(क) यह कई भारतीयों को रोजगार प्रदान कर रहा है।
(ख) यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों के माध्यम से देश में विदेशी मुद्रा ला रहा है। विकसित देश इसका विरोध कर रहे हैं क्योंकि
(क) इससे विकसित और विकासशील देशों के बीच आय की असमानता कम हो जाएगी।
(ख) यह उनके अपने देश में रोजगार के अवसर कम कर रहा है।

प्र.11. भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ विशेष अनुकूल परिस्थितियाँ हैं जिनके कारण यह विश्व का बाह्य प्रापण केंद्र बन रहा है। अनुकूल परिस्थितियाँ क्या हैं?
उत्तर : भारत एक विश्व बाह्य प्रापण केंद्र बन रहा है क्योंकि
(क) भारत में सस्ते दरों पर पर्याप्त कुशल जनशक्ति उपलब्ध है।
(ख) भारत में ऐसी सरकारी नीतियाँ हैं जो बाह्य प्रापण के पक्ष में हैं।
(ग) भारत विकसित देशों से दुनिया के एक अन्य भाग में स्थित है जिससे समय का अंतराल है।

प्र.12. क्या भारत सरकार की नवरत्न नीति सार्वजनिक उपक्रमों के निष्पादन को सुधारने में सहायक रही है? कैसे?
उत्तर :
सरकार ने कुछ लाभ कमा रही सार्वजनिक उपक्रमों को विशेष स्वायत्ता देने का निर्णय किया। 1996 में ‘नवरत्न नीजी’ अपनाई गई जिसके अंतर्गत 9 सर्वाधिक लाभ कमा रही सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को नवरत्न का दर्जा दिया गया तथा अन्य 97 लाभ कमाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को ‘लघुरत्न’ कहा गया।

‘नवरत्न’ और ‘लघुरत्न’ नाम के अलंकरण के बाद इन कंपनियों के निष्पादन में अवश्य ही सुधार आया है। उन्हें अधिक प्रचालन और प्रबंधकीय स्वायत्ती दी गई जिससे उनकी दक्षता और उसके द्वारा मुनाफे में वृद्धि हुई है।

प्र.13. सेवा क्षेत्रक के विकास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारक कौन-से रहे हैं?
उत्तर : सेवा क्षेत्रक के विकास के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी रहे हैं
भारत का एक मज़बूत औद्योगिक आधार नहीं है। अतः सुधार अवधि में द्वितीयक क्षेत्रक ने अधिक विकास नहीं किया। विदेशी निवेशक कृषि की भारतीय प्रकृति और जोखिम शामिल होने के कारण, उन्हें कृषि में और निवेश में कोई रुचि नहीं थी। उन्हें भारत अनुबंधित सेवाओं के लिए सर्वाधिक उपयुक्त लगता था।

प्र.14. सुधार प्रक्रिया से कृषि क्षेत्रक दुष्प्रभावित हुआ लगता है। क्यों?
उत्तर : यह बिल्कुल सही कहा गया है कि सुधार प्रक्रिया से कृषि क्षेत्रक दुष्प्रभावित हुआ है।

(क)
सुधार अवधि के दौरान कृषि में सार्वजनिक निवेश विशेष रूप से सिंचाई, बिजली, सड़क, बाजार, लिकेज, अनुसंधान और विस्तार के क्षेत्र में कम हुआ है।

(ख)
उर्वरक सहायिकी हटाने से उत्पादन की लागत बढ़ गई है जिसने छोटे और सीमांत किसानों को दुष्प्रभावित किया है।

(ग)
इस क्षेत्र में बहुत जल्दी जल्दी निति परिवर्तन हुए हैं जिसमें भारतीय किसानों को दुष्प्रभावित किया है क्योंकि अब उन्हें अधिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है।

(घ)
कृषि में निर्यात उन्मुख रणनीति के कारण उत्पादन घरेलू बाजार के बजाय निर्यात बाजार के लिए हो रहा है। इससे खाद्यान्न फसलों के उत्पादन के बदले नकदी फसलों पर ध्यान केंद्रित करवाया। इससे खाद्यान्नों की कीमतों पर दबाव बढ़ गया।

प्र.15, सुधार काल में औद्योगिक क्षेत्रक के निराशाजनक निष्पादन के क्या कारण रहे हैं?
उत्तर : औद्योगिक क्षेत्रक का सुधार अवधि में निराशाजनक निष्पादन रहा है क्योंकि

(क)
सस्ते आयात- यह इस तथ्य के कारण है कि विदेशों से आने वाले सस्ते आयातों ने भारतीय बाजार पर कब्जा कर लिया और घरेलू उत्पादकों को अधिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा।

(ख)
बुनियादी ढाँचे की कमी- निवेश में कमी के कारण आधारभूत सुविधाएँ, जैसे-बिजली आपूर्ति अपर्याप्त बनी रही।

(ग)
विकासशील देशों में रोजगार के प्रतिकूल हालात– वैश्वीकरण ने रोजगार की स्थिति के संदर्भ में घरेलू अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है परंतु रोज़गार के हालात प्रतिकूल हैं।

(घ)
अनुचित वैश्वीकरण- भारत जैसे विकासशील देशों की अब भी उच्च अप्रशुल्क अवरोधकों के कारण विकसित देशों के बाजार तक पहुँच नहीं है।

प्र.16. सामाजिक न्याय और जन-कल्याण के परिपेक्ष्य में भारत के आर्थिक सुधारों पर चर्चा करें।
उत्तर : जब हम आर्थिक सुधारों को सामाजिक न्याय और जन-कल्याण के परिप्रेक्ष्य में चर्चा करते हैं तो आर्थिक सुधारों को हानिकारक पाते हैं। अपने दृष्टिकोण के लिए हम निम्नलिखित कारण दे सकते हैं

(क)
हालाँकि सुधार अवधि में विकास दरों में वृद्धि हुई है परंतु यह एक व्यवसाय रहित वृद्धि रही है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ इस बात को अनदेखा करते हुए कि भारत श्रम प्रधान देश है, पूँजी प्रधान तकनीकों का प्रयोग करती हैं।

(ख)
सुधारों ने निवेश की कमी के कारण कृषि को दुष्प्रभावित किया है तथा इस क्षेत्रक के वृद्धि दरों में सुधार अवधि में कमी आई है।

(ग)
सुधारों ने दुर्लभ संसाधनों का गलत आबंटन किया है। एक भारत जैसा देश जहाँ एक व्यक्ति पाँचवाँ हिस्सा अपनी न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं है, वह माल, कुत्ते के भोजन, चॉकलेट और आइसक्रीम पर निवेश कर रहा है।

(घ)
भारत के छोटे उत्पादक विशाल अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा बनाए रखने में असफल रहे हैं। अतः उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा।

(ङ)
जिन सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों का निजीकरण ले गया उसके कर्मचारियों के लिए रोजगार स्थितियाँ बदतर हो गई।

(च)
सुधारों ने एक दोहरी अर्थव्यवस्था को जन्म दिया है जिसके अंतर्गत हम विश्व स्तर के अस्पताल और असहनीय सरकारी अस्पताल, विश्व स्तर के स्कूल और तम्बू में चलाए जा रहे स्कूल एक साथ देखे जा सकते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने महत्त्वपूर्ण क्षेत्र, जैसे-शिक्षा, स्वास्थ्य आदि में कोई निवेश नहीं किया और यदि किया भी तो ऐसा जो केवल भारत के अमीर वर्ग के लिए है।

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NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 Measures of Central Tendency (Hindi Medium)

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प्रश्न अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

प्र.1. निम्नलिखित स्थितियों में कौन सा औसत उपयुक्त होगा?

(क) तैयार वस्त्रों के औसत आकार।
(ख) एक कक्षा के छात्रों की औसत बौद्धिक प्रतिभा।
(ग) एक कारखाने में प्रति पाली औसत उत्पादन।
(घ) एक कारखाने में औसत मजदूरी।
(ङ) जब औसत से निरपेक्ष विचलनों का योग न्यूनतम हों।
(च) जब चरों की मात्रा अनुपात में हो।
(छ) मुक्तांत बारबारता बंटने के मामले में

उत्तर

(क) भूयिष्ठक।
(ख) भूयिष्ठक
(ग) माध्य
(घ) माध्य
(ङ) मध्यिका
(च) माध्य
(छ) मध्यिका

प्र.2. प्रत्येक प्रश्न के सामने दिये गये बहुविकल्पों में से सर्वाधिक उचित विकल्प को चिह्नित करें:

(i) गुणात्मक मापन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त औसत है:

(क) समांतर माध्य।
(ख) मध्यिका
(ग) बहुलक
(घ) ज्यामितीय माध्ये
(ङ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

उत्तर (ख) मध्यिका

(ii) चरम मदों की उपस्थिति से कौन सा औसत सर्वाधिक प्रभावित होता है?

(क) मध्यिका
(ख) बहुलक
(ग) समांतर माध्य
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं

उत्तर (ग) समांतर माध्य

(iii) समांतर माध्य से मूल्यों के किसी समुच्चय के विचलन का बीजगणितीय योग है

(क)
(ख) 0
(ग) 1
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

उत्तर (ग) 1

प्र.3. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही है या गलत–

(क) मध्यिका से मदों के विचलनों का योग शून्य होता है।
(ख) श्रृंखलाओं की तुलना के लिए मात्र औसत ही पर्याप्त नहीं है।
(ग) समांतर माध्य एक स्थैतिक मूल्य है।
(घ) उच्च चतुर्थक शीर्ष 25 प्रतिशत मदों का निम्नतम मान है।
(ङ) मध्यिका चरम प्रेक्षणों द्वारा अनुचित रूप से प्रभावित होती है।

उत्तर

(क) गलत
(ख) सही
(ग) गलत
(घ) सही
(ङ) गलत।

प्र.4. नीचे दिए गए आँकड़ों का समांतर माध्य 28 है, तो (क) लुप्त आवृत्ति का पता करें, और (ख) श्रृंखला की मध्यिका ज्ञात करें।

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उत्तर लुप्त आवृत्ति का पता करना

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NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 3

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प्र.5. निम्नलिखित सारणी में एक कारखाने 10 मजदूरों की दैनिक आय दी गयी है। इसका समांतर माध्य ज्ञात कीजिए।
NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 5
उत्तर
NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 6

प्र.6. निम्नलिखित सूचना 150 परिवारों की दैनिक आय से संबद्ध है। इससे समांतर माध्य का परिकलन कीजिए।
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उत्तर
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प्र.7. नीचे एक गाँव के 380 परिवारों की जोतों का आकार दिया गया है। जोत का मध्यिका आकार ज्ञात कीजिए।
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उत्तर
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प्र.8. निम्नलिखितश्रृंखला किसी कंपनी में नियोजित मजदूरों की दैनिक आय से संबद्ध है। अभिकलन कीजिए:

(क) निम्नतम 50% मजदूरों की उच्चतम आय
(ख) शेष 25% मजदूरों द्वारा अर्जित न्यूनतम आय और
(ग) निम्नतम 25% मजदूरों द्वारा अर्जित अधिकतम आय

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सकेतः माध्य, निम्न चतुर्थक तथा उच्च चतुर्थक को अभिकलन कीजिए।
उत्तर

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प्र.9. निम्न सारणी में किसी गाँव के 150 खेतों में गेहूं की प्रति हेक्टेयर पैदावार दी गयी है। समांतर माध्य मध्यिका तथा बहुलक के मान की गणना कीजिए।
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उत्तर
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NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 4 Introducing Western Sociologists (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 4 Introducing Western Sociologists (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 4 Introducing Western Sociologists (Hindi Medium)

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पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न [NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED]

प्र० 1. बौद्धिक ज्ञानोदय किस प्रकार समाजशास्त्र के विकास के लिए आवश्यक है?
उत्तर-
(i) 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध और 18वी शताब्दी में पश्चिमी यूरोप में संसार के विषय में सोचने-विचारने के मौलिक दृष्टिकोण का जन्म हुआ। यह ज्ञानोदय अथवा प्रबोधन के नाम से जाना जाता है।
(ii) विवेकपूर्ण और आलोचनात्मक ढंग से सोचने की प्रवृत्ति ने मनुष्य को सभी प्रकार के ज्ञान का उत्पादन और उपभोक्ता दोनों में बदल दिया। मानव व्यक्ति को ज्ञान का पात्र’ की उपाधि दी गई।
(iii) जो व्यक्ति विवेकपूर्ण ढंग से सोच-विचार कर सकते थे, केवल उसी व्यक्ति को पूर्ण रूप से मनुष्य माना गया।
(iv) तर्कसंगत को मानव जगत की पारिभाषिक विशिष्टता का स्थान देने के लिए प्रकृति, धर्म-संप्रदाय तथा देवी-देवताओं के वर्चस्व को कम करना अनिवार्य था। इसका कारण यह था कि पहले मानव जगत को जानने-समझने के लिए इन्हीं विचारों का सहारा लेना पड़ता था। ।

प्र० 2. औद्योगिक क्रांति किस प्रकार समाजशास्त्र के जन्म के लिए उत्तरदायी है?
उत्तर-
(i) उत्पादन घर से बाहर निकल कर फैक्ट्रियों के हवाले चला गया। नवीन स्थापित उद्योगों में काम की तलाश में लोगों ने ग्रामीण क्षेत्रों को छोड़ दिया और शहरी क्षेत्रों में चले गए।
(ii) अमीर लोग बड़े-बड़े भवनों में रहने लगे और मजदूर वर्ग ने गंदी बस्तियों में रहना प्रारंभ कर दिया।
(iii) आधुनिक प्रशासनिक व्यवस्था के कारण राजतंत्र को लोक संबंधी विषयों और कल्याणकारी कार्यों की जवाबदेही उठाने के लिए बाध्य किया गया।

प्र० 3. उत्पादन के तरीकों के विभिन्न घटक कौन-कौन से हैं?
उत्तर- उत्पादन के तरीकों के निम्नलिखित घटक हैं

  • प्रथम, उत्पादन के साधन हैं जिसका अर्थ है मजदूर वर्ग जो उत्पादन करते हैं।
  • द्वितीय, पूँजीपति वर्ग है जिसका उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण रहता है।
  • उपभोग की वस्तुओं की तरह श्रम बाजार में बेचा जाता है।
  • अपने उत्पादन को मज़दूरों द्वारा निष्पादन के लिए पूँजीपति वर्ग के पास अर्थ और साधन हैं।
  • पूँजीपति वर्ग मजदूरों के दम पर अधिक अमीर बन गए।

प्र० 4. मार्क्स के अनुसार विभिन्न वर्गों में संघर्ष क्यों होते हैं?
उत्तर- मार्क्स ने दोनों वर्गों का अध्ययन किया है। प्रत्येक समाज में दो विरोधी समूह पाये जाते हैं। प्रारंभ से ही इन दो वर्गों के बीच संघर्ष सामान्यतया बढ़ता जा रहा है।

  • पूँजीपति वर्ग का उत्पादन के सभी साधनों पर नियंत्रण रहता है और यह वर्ग उत्पादन के अपने साधनों की सहायता से अन्य वर्गों का दमन करता है।
  • द्वितीय वर्ग मजदूर वर्ग है जिन्हें श्रमजीवी वर्ग की। संज्ञा दी गई है। शोषक और शोषित वर्ग के बीच संघर्ष सामान्यतया बढ़ता रहता है। इसका कारण यह है कि पूँजीपति वर्ग मजदूरों को शायद ही कुछ देने की इच्छा रखते हैं। मार्क्स के अनुसार, “आर्थिक प्रक्रियाएँ सामान्यतया वर्ग संघर्ष को जन्म देती हैं यद्यपि यह भी राजनीतिक और सामाजिक स्थितियों पर निर्भर करता है।”

प्र० 5. “सामाजिक तथ्य’ क्या हैं? हम उन्हें कैसे पहचानते हैं?
उत्तर-

  • ‘सामाजिक तथ्य’ सामूहिक प्रतिनिधित्व हैं जिनका उद्भव व्यक्तियों के संगठन से होता है।
  • वे किसी व्यक्ति के लिए विशिष्ट नहीं होते हैं, परंतु सामान्य प्रकृति के होते हैं और व्यक्तियों से स्वतंत्र होते हैं।
  • दुर्खाइम ने इसे ‘रगामी-स्तर’ कहा जोकि जटिल सामूहिकता का जीवन स्तर है जहाँ सामाजिक प्रघटनाओं का उद्भव हो सकता है।
  • दुर्खाइम की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि उनका प्रदर्शन है कि समाजशास्त्र एक ऐसा शास्त्र है जो अपूर्व तत्वों, जैसे सामाजिक तथ्यों का विज्ञान हो सकता है। परंतु एक ऐसा विज्ञान जो अवलोकन, आनुभविक इंद्रियानुभवी सत्यापनीय साक्ष्यों पर आधारित हो।
  • आत्महत्या पर दुर्खाइम के द्वारा किया गया अध्ययन नवीन आनुभविक आँकड़ों पर आधारित एक सर्वाधिक चर्चित उदाहरण है।
  • आत्महत्या के प्रत्येक अध्ययन का विशिष्ट रूप से व्यक्ति तथा उसकी परिस्थितियों से सरोकार है।

प्र० 6. ‘यांत्रिक’ और ‘सावयवी’ एकता में क्या अंतर है?
उत्तर- दुर्खाइम का मत है कि प्रत्येक समाज में कुछ मूल्य, विचार, विश्वास, व्यवहार के ढंग, संस्था और कानून विद्यमान होते हैं, जो समाज को संबंधों के बंधन से बाँध कर रखते हैं। इन तत्वों की उपस्थिति के कारण समाज में संबंधों और एकता का अस्तित्व कायम रहता है। उन्होंने सामाजिक एकता की प्रकृति के आधार पर समाज को वर्गीकृत किया जिसका समाज में अस्तित्व कायम है और जो निम्नलिखित हैं-
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प्र० 7. उदाहरण सहित बताएँ कि नैतिक संहिताएँ सामाजिक एकता को कैसे दर्शाती हैं?
उत्तर-

  • सामाजिकता को आचरण की संहिताओं में ढूंढा जा सकता था, जो व्यक्तियों पर सामूहिक समझौते के अंतर्गत थोपा गया था।
  • अन्य तथ्यों की तरह नैतिक तथ्य भी सामाजिक परिघटनाएँ हैं। उनका निर्माण क्रिया के नियमों से । हुआ है जो विशेष गुणों के द्वारा पहचाने जाते हैं। उनका अवलोकन, वर्णन और वर्गीकरण संभव है। और विशिष्ट कानूनों के द्वारा समझाया भी जा सकता है।
  • दुर्खाइम के मतानुसार, सामाज एक सामाजिक तथ्य है। इसका अस्तित्व नैतिक समुदाय के रूप में व्यक्ति से ऊपर था।
  • सामाजिक एकता समूह के प्रतिमानों और उम्मीदों के अनुरूप व्यवहार करने के लिए व्यक्तियों पर दबाव डालती है।
  • नैतिक संहिताएँ विशिष्ट सामाजिक परिस्थितियों का प्रदर्शन हैं।
  • एक समाज की उपयुक्त नैतिक संहिता दूसरे समाज के लिए अनुपयुक्त होती है।
  • वर्तमान सामाजिक परिस्थतियों का परिणाम नैतिक संहिताओं से निकाला जा सकता है। इसने समाजशास्त्र को प्राकृतिक विज्ञान के समान बना दिया है और इसका बृहत उद्देश्य समाजशास्त्र को एक कष्टदायी वैज्ञानिक संकाय के रूप में स्थापित करने के अत्यधिक निकट है।
  • व्यवहार के प्रतिमानों का अवलोकन कर उन प्रतिमानों, संहिताओं और सामाजिक एकताओं को पहचानना संभव है, जो उन्हें नियंत्रित करते हैं। व्यक्तियों के सामाजिक व्यवहारों के प्रतिमानों का अध्ययन कर अन्य रूप से अदृश्य वस्तुओं का अस्तित्व; जैसे- विचार, प्रतिमान, मूल्य और इसी प्रकार अन्य को आनुभविक रूप से सत्यापित किया जा सकता है।

प्र० 8. नौकरशाही की बुनियादी विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर-

  • नौकरशाहों के निश्चित कार्यालयी क्षेत्राधिकार होते हैं। इसका संचालन नियम, कानून तथा प्रशासनिक विधानों द्वारा होता है।
  • कार्यान्वयन के लिए उच्च अधिकारी द्वारा अधीनस्थ वर्गों को आदेश स्थायी रूप में दिए जाते हैं, परंतु जिम्मेदारियों को परिसीमित कर उसका जिम्मा अधिकारियों को सौंप दिया जाता है।
  • नौकरशाही में पदों की स्थितियाँ स्वतंत्र होती है।
  • अधिकारी और कार्यालय श्रेणीगत सोपान पर आधारित होते हैं। इस व्यवस्था के अंतर्गत उच्च अधिकारी निम्न अधिकारियों का निर्देशन करते हैं।
  • नौकरशाही व्यवस्थाओं का प्रबंधन लिखित दस्तावेजों के आधार पर चलाया जाता है। इन लिखित दस्तावेजों को फाइलें भी कहते है। इन फ़ाइलों को रिकॉर्ड के रूप में सँभाल कर रखा जाता है।
  • कार्यालय में अपने असीमित कार्यालय समय के विपरीत कर्मचारियों से समग्र एकाग्रता की अपेक्षा की जाती है। इस प्रकार कार्यालय में एक कर्मचारी का आचरण बृहत नियमों और कानूनों द्वारा नियंत्रित होता है।

प्र० 9. सामाजिक विज्ञान में किस प्रकार विशिष्ट तथा भिन्न प्रकार की वस्तुनिष्ठता की आवश्यकता होती है?
उत्तर- स्वयं करें।

प्र० 10. क्या आप ऐसे किसी विचार अथवा सिद्धांत के बारे में जानते हैं जिसने आधुनिक भारत में किसी सामाजिक आंदोलन को जन्म दिया हो?
उत्तर- स्वयं करें।

प्र० 11. मार्क्स तथा वैबर ने भारत के विषय में क्या लिखा है-पता करने की कोशिश कीजिए।
उत्तर-

  • मार्क्स ने तर्क दिया कि अर्थव्यवस्था लोगों के विचारों और विश्वासों का स्रोत है। वे इसी अर्थव्यवस्था के भाग हैं।
  • मार्क्स ने आर्थिक संरचना और प्रक्रियाओं पर अत्यधिक बल दिया। उनका विश्वास था कि वे प्रत्येक सामाजिक व्यवस्था के आधार हैं और मानव का इतिहास इसका साक्षी है।
  • मार्क्स का विश्वास था कि सामाजिक परिवर्तन के लिए वर्ग संघर्ष अत्यधिक महत्वपूर्ण ताकत है।
  • वैबर ने तर्क किया कि सामाजिक विज्ञान का समग्र उद्देश्य सामाजिक क्रियाओं की समझ के लिए व्याख्यात्मक पद्धति का विकास करना है।
  • सामाजिक विज्ञानों का केंद्रीय सरोकार सामाजिक कार्यों से है और कारण यह है कि मानव के कार्यों में व्यक्तिनिष्ठ अर्थ शामिल है, इसलिए सामाजिक विज्ञान से संबंधित जाँच की पद्धति को प्राकृतिक विज्ञान की पद्धति से भिन्न होना अनिवार्य है।
  • सामाजिक दुनिया, मूल्य, भावना, पूर्वाग्रह, विचार और इसी प्रकार अन्य जैसे व्यक्तिनिष्ठ मानव के गुणों पर आधारित है।
  • सामाजिक वैज्ञानिकों को समानुभूति समझ’ का निरंतर अभ्यास करना है। परंतु यह जाँच वस्तुनिष्ठ तरीके से किया जाना अनिवार्य है।
  • समाजशास्त्रीयों से आशा की जाती है कि वे दूसरों की विषयगत भावनाओं को परखने के बजाय केवल वर्णन करें।

प्र० 12. क्या आप कारण बता सकते हैं कि हमें उन चिंतकों के कार्यों का अध्ययन क्यों करना चाहिए जिनकी मृत्यु हो चुकी है? इनके कार्यों का अध्ययन न करने के कुछ कारण क्या हो सकते हैं?
उत्तर- स्वयं करें।

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