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NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 8 Index Numbers (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 8 Index Numbers (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 8 Index Numbers (Hindi Medium)

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प्रश्न अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

प्र.1. मदों के सापेक्षिक महत्त्व को बढ़ाने वाले सूचकांक को

(क) भारित सूचकांक कहते हैं।
(ख) सरल समूहित सूचकांक कहते हैं।
(ग) सरल मूल्यानुपातों का औसत कहते हैं।

उत्तर (क) भारित सूचकांक कहते हैं।

प्र.2. अधिकांश भारित सूचकांकों में भार का संबंध

(क) आधार वर्ष से होता है।
(ख) वर्तमान वर्ष से होता है।
(ग) आधार एवं वर्तमान वर्ष दोनों से होता है।

उत्तर (क) आधार वर्ष से होता है।

प्र.3. ऐसी वस्तु जिसका सूचकांक में कम भार है, उसकी कीमत में परिवर्तन से सूचकांक में कैसा परिवर्तन होगा?

(क) कम
(ख) अधिक
(ग) अनिश्चित

उत्तर (क) कम

प्र.4. कोई उपभोक्ता कीमत सूचकांक किस परिवर्तन को मापता है?

(क) खुदरा कीमत
(ख) थोक कीमत
(ग) उत्पादकों की कीमत

उत्तर (ख) थोक कीमत

प्र.5. औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता कीमत सूचकांक में किस मद के लिए उच्चतम भार होता है?

(क) खाद्य-पदार्थ
(ख) आवास
(ग) कपड़े

उत्तर (क) खाद्य-पदार्थ

प्र.6. सामान्यतः मुद्रास्फीति के परिकलन में किस का प्रयोग होता है?

(क) थोक कीमत सूचकांक
(ख) उपभोक्ता कीमत सूचकांक
(ग) उत्पादक कीमत सूचकांक

उत्तर (क) थोक कीमत सूचकांक

प्र.7. हमें सूचकांक की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर
(क) उत्पादन के बारे में जानकारी – औद्योगिक तथा कृषि संबंधी उत्पादन सूचकांकों की सहायता से यह भी पता चलता है। कि देश के औद्येगिक तथा कृषि क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ रहा है या कम हो रहा है। इसी जानकारी के आधार पर औद्योगिक तथा कृषि विकास संबंधी नीतियाँ निर्धारित की जाती हैं।
(ख) सरकार के लाभ – सरकार सूचकांकों की सहायता से ही अपनी मौद्रिक तथा राजकोषीय नीति का निर्धारण करती है। और देश के आर्थिक विकास के लिए ठोस कदम उठाती है। अन्य शब्दों में, सरकार सूचकांकों की सहायता से निवेश, उत्पादन, आय, रोजगार, व्यापार, कीमत-स्तर, उपभोग आदि क्रियाओं से संबंधित उचित नीति अपनाकर इनको बढ़ाने का प्रयत्न करती है।

प्र.8. आधार अवधि के वांछित गुण क्या होते हैं?
उत्तर दो अवधियों में से जिस अवधि के साथ तुलना की जाती है, उसे आधार-अवधि के रूप में जाना जाता है। आधार-अवधि में सूचकांक का मान 100 होता है। एक आधार वर्ष के वांछित गुण इस प्रकार हैं:

(क) यह एक सामान्य वर्ष होना चाहिए अर्थात् इस वर्ष में किसी प्रकार का युद्ध, दंगे, प्राकृतिक आपदायें, आदि न हुये हों।
(ख) यह चालू वर्ष से बहुत नज़दीक या बहुत दूर नहीं होना चाहिए।
(ग) यह एक निश्चित वर्ष भी हो सकता है तथा हर वर्ष बदला भी जा सकता है।

प्र.9. भिन्न उपभोक्ताओं के लिए भिन्न उपभोक्ता कीमत सूचकांकों की अनिवार्यता क्यों होती है?
उत्तर भारत में तीन उपभोक्ता कीमत सूचकांक बनाए जाते हैं।

(क) औद्योगिक श्रमिकों के लिए CPI (आधार रूप में 1982)
(ख) शहरी गैर-शारीरिक कर्मचारियों (वर्ष 1984-1985 आधार) के लिए CPI
(ग) कृषि श्रमिकों के लिए (वर्ष 1986-87 आधार) के लिए CPI

इनका नियमित रूप से हर महीने परिकलन होता है ताकि इन तीनों उपभोक्ताओं की व्यापक श्रेणियों के जीवन निर्वाह पर, खुदरा कीमतों में आए परिवर्तनों के प्रभावों का विश्लेषण किया जा सके औद्योगिक श्रमिकों तथा कृषि श्रमिकों के लिए CPI का प्रकाशन श्रमिक केंद्र शिमला द्वारा किया जाता है। केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन शहरी गैर-शारीरिक कमचारियों के लिए CPI संख्याओं का प्रकाशन करता है। ऐसा इसलिए आवश्यक है क्योंकि उनकी विशिष्ट उपभोक्ता टोकरी की वस्तुएँ असमान होती हैं।

प्र.10. औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता कीमत सूचकांक क्या मापता है?
उत्तर औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता कीमत सूचकांक को सामान्य मुद्रा स्फीति का उपयुक्त संकेतक माना जाता है। जो जनसाधारण के जीवन निर्वाह पर कीमत वृद्धि के सबसे उपयुक्त प्रभाव को दर्शाता है। निम्नलिखित वक्तव्य पर ध्यान दीजिए की जनवरी 2005 में औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता कीमत सूचकांक (CPI) 300 (1982 = 100) है। इस कथन का अभिप्राय यह है कि यदि एक औद्योगिक श्रमिक वस्तुओं की विशेष टोकरी पर 1982 में 100 रु व्यय कर रहा था, तो उसे जनवरी 2005 में उसी प्रकार की वस्तुओं की टोकरी खरीदने के लिए 300 रु की आवश्यकता है। यह आवश्यक नहीं है कि वह टोकरी खरीदे बल्कि महत्त्वपूर्ण यह है कि उसके पास इसे खरीद पाने की क्षमता है या नहीं।

प्र.11. कीमत सूचकांक तथा मात्रा सूचकांक में क्या अंतर है?
उत्तर
कीमत सूचकांक – जब दो अवधियों में हुए कीमत में परिवर्तन को ज्ञात करना हो तो जिस सूचकांक का प्रयोग करते हैं, उसे कीमत सूचकांक कहते हैं।
मात्रा सूचकांक – जब दो अवधियों में हुए मात्रा में परिवर्तन को जानना हो तो जिस सूचकांक का प्रयोग करते हैं, उसे मात्रा सूचकांक कहते हैं।
NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 8 (Hindi Medium) 1a
सभी विधियों में p और q को अन्तः परिवर्तित करके कीमत सूचकांक की मात्रा सूचकांक में बदला जा सकता है।

प्र.12. क्या किसी भी तरह का कीमत परिवर्तन एक कीमत सूचकांक में प्रतिबिंबित होता है?
उत्तर हाँ, किसी भी तरह का कीमत परिवर्तन एक कीमत सूचकांक में प्रतिबिंबित होता है। कीमत सूचकांकों का यह सबसे बड़ा स्त्रोत है परंतु जब किसी प्राकृतिक आपदा या युद्ध से अचानक कीमतें बढ़ जाएँ तो इनका प्रयोग करते हुए सांख्यिकीविदों को सचेत रहना चाहिए।

प्र.13. क्या शहरी गैर-शारीरिक कर्मचारियों के लिए उपभोक्ता कीमत सूचकांक भारत के राष्ट्रपति के निर्वाह लागत में परिवर्तन का प्रतिनिधित्व कर सकता है?
उत्तर हाँ, क्योंकि भारत में तीन उपभोक्ता कीमत सूचकांक बनाए जाते हैं।

(क) औद्योगिक श्रमिकों के लिए CPI (आधार वर्ष 1982)
(ख) शहरी गैर-शारीरिक कमर्चारियों के लिए CPI (आधार वर्ष 1984-85)
(ग) कृषि श्रमिकों के लिए CPI (आधार वर्ष 1986-87)

इनमें से राष्ट्रपति शहरी गैर-शारीरिक कर्मचारियों के लिए उपभोक्ता कीमत सूचकांक में सम्मिलित किया जाएगा। अतः शहरी गैर-कर्मचारियों के लिए उपभोक्ता कीमत सूचकांक भारत के राष्ट्रपति की निर्वाह लागत में परिवर्तन का प्रतिनिधित्व कर सकता है।

प्र.14, नीचे एक औद्योगिक केंद्र के श्रमिकों द्वारा 1980 एवं 2005 के बीच निम्नलिखित मदों पर प्रतिव्यक्ति मासिक व्यय को दर्शाया गया है। इन मदों का भार क्रमशः 75, 10, 5, 6 तथा 4 है। 1980 को आधार मानकर 2005 के लिये जीवन निर्वाह लगत सूचकांक तैयार कीजिए।
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उत्तर जीवन निर्वाह लागत सूचकांक का निर्माण
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प्र.15. निम्नलिखित सारणी को ध्यानपूर्वक पढिए एवं अपनी टिप्पणी कीजिए।
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उत्तर सामान्य सूचकांक औद्योगिक क्षेत्र की कुल मिलाकर बढ़ोतरी को दर्शा रहा है। यह मुख्य औद्योगिक श्रेणियों के सूचकांकों को भी दर्शा रहा है। यह इसे भी दर्शा रहा है कि विनिर्माण का सामान्य सूचकांक में अधिकतम हिस्सा है।

प्र.16. अपने परिवार में उपभोग की जाने वाली महत्त्वपूर्ण मदों की सूची बनाने का प्रयास कीजिए।
उत्तर

  1. भोजन
  2. वस्त्र
  3. ईंधन
  4. शिक्षा
  5. स्वास्थ्य
  6. आवास

प्र.17. यदि एक व्यक्ति का वेतन आधार वर्ष में 4,000 रुपये प्रतिवर्ष था और उसका वर्तमान वर्ष में वेतन 6,000 रुपये है। उसके जीवन-स्तर को पहले जैसा ही बनाए रखने के लिये उसके वेतन में कितनी वृद्धि चाहिए, यदि उपभोक्ता कीमत सूचकांक 400 हो।
उत्तर
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जब आधार वर्ष का CPI 100 है और वर्तमान वर्ष का CPI 400 है तो उसका वेतन समान जीवन-स्तर बनाए रखने 4000 × 400 / 100 = 16000 के लिये के बराबर होना चाहिए। इसलिये उसे 10,000 रुपये की बढ़त मिलनी चाहिये।

प्र.18. जून 2005 में उपभोक्ता कीमत सूचकांक 125 था। खाद्य सूचकांक 120 तथा अन्य मदों का सूचकांक 135 था। खाद्य पदार्थों को दिया जाने वाला भार कुल भार का कितना प्रतिशत है?
उत्तर मान लो कुल भार = 100 और
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प्र.19. किसी शहर में एक मध्यवर्गीय पारिवारिक बजट में जाँच-पड़ताल से निम्नलिखित जानकारी प्राप्त होती है:
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1995 की तुलना में 2004 में निर्वाह सूचकांक का माना क्या होगा?

उत्तर
परिवार बजट विधि द्वारा जीवन निर्वाह लागत सूचकांक का निर्माणः
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NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 8 (Hindi Medium) 9

प्र.20. दो सप्ताह तक अपने परिवार के (प्रति इकाई) दैनिक व्यय, खरीदी गई मात्रा और दैनिक खरीददारी को अभिलेखित कीजिए। कीमत में आए परिवर्तन आपके परिवार को किस तरह से प्रभावित करते हैं?
उत्तर अपने परिवार के सदस्य की मदद से आँकड़े एकत्रित कीजिए और इनसे अपने परिवार का परिवार बजट विधि से CPI ज्ञात कीजिए।
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कीमतें बढ़ी तो आपके परिवार की क्रय शक्ति कम हुई। कीमत कम हुई हो तो आपके परिवार की क्रय शक्ति बढ़ेगी।

प्र.21. निम्नलिखित आँकड़े दिए गए हैं –
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स्रोतः आर्थिक सर्वेक्षण, भारत सरकार, 2004-05
(क) सूचकांकों के सापेक्षिक मानों पर टिप्पणी कीजिए।
(ख) क्या ये तुलना योग्य हैं?
उत्तर

(क) सूचकांकों के सापेक्षिक मान लगातार बढ़ रहे हैं।
(ख) हाँ, ये तुलना योग्य हैं परंतु इनकी तुलना बहुत समय उपभोगी कार्य है।

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NCERT Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 3

NCERT Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 3 (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 3 Latitude, Longitude and Time (Hindi Medium)

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[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)

प्र० 1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें
(i) पृथ्वी पर दो प्राकृतिक संदर्भ बिंदु कौन-से हैं?
उत्तर- पृथ्वी पर दो प्राकृतिक संदर्भ बिंदु उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव हैं।

(ii) बृहत वृत्त क्या है?
उत्तर- विषुवत वृत्त को बृहत वृत्त भी कहा जाता है। यह सबसे बड़ा वृत्त है तथा ग्लोब को दो बराबर भागों में बाँटती है। अन्य सभी सामांतर रेखाएँ विषुवते वृत्त से ध्रुवों की ओर बढ़ने से आनुपातिक रूप से आकार में छोटी होती जाती हैं।

(iii) निर्देशांक क्या है?
उत्तर- अक्षांश एवं देशांतर रेखाओं को सामान्यतः भौगोलिक निर्देशांक कहा जाता है, क्योंकि ये रेखाओं के जाल का एक तंत्र बनाती हैं, जिस पर हम धरातल के विभिन्न
लक्षणों की स्थिति को प्रदर्शित कर सकते हैं।

(iv) सूर्य पूर्व से पश्चिम जाता हुआ क्यों दिखाई देता है?
उत्तर- पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है, यही कारण है। कि सूर्य पूर्व से पश्चिम की ओर जाता दिखाई देता है।

(v) स्थानीय समय से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- किसी देश का स्थानीय समय वहाँ के प्रमुख याम्योत्तर पर होने वाला समय होता है। यानी किसी स्थान के देशांतर पर जब सूर्य ठीक ऊपर होता है तो दोपहर के 12 बजे होते हैं। यह उस स्थान का स्थानीय समय होता है।

प्र० 2. अक्षांशों एवं देशांतरों के बीच अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर- अक्षांशों एवं देशांतरों के बीच अंतर
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NCERT Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 3 (Hindi Medium) 2.1

क्रियाकलाप
प्र० 1. एटलस की सहायता से निम्नलिखित स्थानों को खोजकर उनके अक्षांश एवं देशांतर लिखें: मुंबई, वलॉदिवोस्तोंक, कैरो, न्यूयॉर्क, ओटावा, जेनेवा, जोहानसबर्ग, सिडनी।
उत्तर-
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प्र० 2. जब प्रमुख याम्योत्तर पर दिन के 10 बजे हों, त निम्नलिखित शहरों में क्या समय होगा? दिल्ली, लंदन, टोकियो, पेरिस, कैरो, मॉस्को
उत्तर-
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NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 3

NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 3 (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 3 Interior of the Earth (Hindi Medium)

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[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)

प्र० 1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
(i) निम्नलिखित में से कौन भूगर्भ की जानकारी का प्रत्यक्ष साधन है?
(क) भूकंपीय तरंगें
(ख) गुरुत्वाकर्षण बले
(ग) ज्वालामुखी
(घ) पृथ्वी का चुंबकत्व
उत्तर- (ग) ज्वालामुखी

(ii) दक्कन ट्रैप की शैल समूह किस प्रकार के ज्वालामुखी उद्गार का परिणाम है?
(क) शील्ड
(ख) मिश्र
(ग) प्रवाह
(घ) कुंड
उत्तर- (ग) प्रवाह

(iii) निम्नलिखित में से कौन-सा स्थलमंडल को वर्णित करता है?
(क) ऊपरी व निचले मैंटल
(ख) भूपटल व क्रोड
(ग) भूपटल व ऊपरी मैंटल
(घ) मैंटल व क्रोड
उत्तर- (ग) भूपटल व ऊपरी मैंटल

(iv) निम्न में कौन-सी भूकंप तरंगें चट्टानों में संकुचन व फैलाव लाती हैं?
(क) ‘P’ तरंगें
(ख) ‘S’ तरंगें
(ग) धरातलीय तरंगें
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर- (क) ‘P’ तरंग

प्र० 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए।
(i) भूगर्भीय तरंगें क्या हैं?
उत्तर- भूगर्भीय तरंगें उद्गम केंद्र से ऊर्जा मुक्त होने के दौरान पैदा होती हैं और पृथ्वी के अंदरूनी भाग से होकर सभी दिशाओं में आगे बढ़ती हैं, इसलिए इन्हें भूगर्भिक तरंगें कहा जाता है। भूगर्भीय तरंगें दो प्रकार की होती हैं। इन्हें ‘P’ तरंगें व ‘S’ तरंगें कहा जाता है।

(ii) भूगर्भ की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष साधनों के नाम बताइए।
उत्तर- भूगर्भ की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष साधनों में धरातलीय चट्टानें हैं अथवा वे चट्टाने हैं जो हम खनन क्षेत्रों से प्राप्त करते हैं। खनन के अतिरिक्त वैज्ञानिक विभिन्न परियोजनाओं के अंतर्गत पृथ्वी की आंतरिक स्थिति को जानने के लिए पर्पटी में गहराई तक छानबीन कर रहे हैं। संसार भर के वैज्ञानिक दो मुख्य परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। ज्वालामुखी उद्गार प्रत्यक्ष जानकारी का एक अन्य स्रोत हैं। जब कभी भी ज्वालामुखी उद्गार से लावा पृथ्वी के धरातल पर आता है, यह प्रयोगशाला अन्वेषण के लिए उपलब्ध होता है।

(iii) भूकंपीय तरंगें छाया क्षेत्र कैसे बनाती हैं?
उत्तर- जहाँ कोई भी भूकंपीय तरंग अभिलेखित नहीं होती। ऐसे क्षेत्र को भूकंपीय छाया क्षेत्र कहा जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि भूकंप अधिकेंद्र से 105° और 145° के बीच का क्षेत्र दोनों प्रकार की तरंगों के लिए छाया क्षेत्र है। एक भूकंप का छाया क्षेत्र दूसरे भूकंप के छाया क्षेत्र से भिन्न होता है। 105° के परे क्षेत्र में ‘S’ तरंगें नहीं पहुँचतीं। ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र ‘P’ तरंगों के छाया क्षेत्र से अधिक विस्तृत है। भूकंप अधिकेंद्र के 105° से 145° तक ‘P’ तरंगों का छाया क्षेत्र एक पट्टी के रूप में पृथ्वी के चारों तरफ प्रतीत होता है। ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र न केवल विस्तार में बड़ा है, वरन यह पृथ्वी के 40 प्रतिशत भाग से भी अधिक है।

(iv) भूकंपीय गतिविधियों के अतिरिक्त भूगर्भ की जानकारी संबंधी अप्रत्यक्ष साधनों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर- पदार्थ के गुणधर्म के विश्लेषण से पृथ्वी के आंतरिक
भाग की अप्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त होती है। खनन क्रिया से हमें पता चलता है कि पृथ्वी के धरातल में गहराई बढ़ने के साथ-साथ पदार्थ का घनत्व भी बढ़ता है। पृथ्वी की आंतरिक जानकारी का दूसरा अप्रत्यक्ष स्रोत उल्काएँ हैं जो कभी-कभी धरती तक पहुँचती हैं। उल्काएँ वैसे ही ठोस पदार्थ से बनी हैं, जिनसे हमारा ग्रह पृथ्वी बना है। अतः पृथ्वी की आंतरिक जानकारी के लिए उल्काओं का अध्ययन एक अन्य महत्त्वपूर्ण स्रोत है। अन्य अप्रत्यक्ष स्रोतों में गुरुत्वाकर्षण तथा चुंबकीय क्षेत्र शामिल हैं। पृथ्वी के केंद्र से दूरी के कारण गुरुत्वाकर्षण बल ध्रुवों पर अधिक और भूमध्यरेखा पर कम होता है।

प्र० 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए।
(i) भूकंपीय तरंगों के संचरण का उन चट्टानों पर प्रभाव बताएँ, जिनसे होकरे ये तरंगें गुजरती हैं।
उत्तर- भूकंपीय तरंगें दो प्रकार की होती हैं। इन्हें ‘P’ तरंगें व ‘S’ तरंगें कहा जाता है। ‘P’ तरंगें तीव्र गति से चलने वाली तरंगें हैं और धरातल पर सबसे पहले पहुँचती हैं। ‘P’ तरंगें गैस, तरल व ठोस तीनों प्रकार के पदार्थों से गुजर सकती हैं। ‘S’ तरंगों के विषय में एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि ये केवल ठोस पदार्थों के ही माध्यम से चलती हैं। भिन्न-भिन्न प्रकार की भूकंपीय तरंगों के संचरित होने की प्रणाली भिन्न-भिन्न होती हैं। जैसे ही ये संचरित होती हैं। वैसे ही शैलों में कंपन पैदा होता है। ‘P’ तरंगों से कंपन की दिशा तरंगों की दिशा के समानांतर ही होती हैं। यह संचरण गति की दिशा में ही पदार्थ पर दबाव डालती हैं। इसके दबाव के फलस्वरूप पदार्थ के घनत्व में भिन्नता आती है और शैलों में संकुचन व फैलाव की प्रक्रिया पैदा होती है। अन्य तीन तरह की तरंगें संचरण गति के समकोण दिशा में कंपन पैदा करती हैं। ‘S’ तरंगें ऊर्ध्वाधर तल में तरंगों की दिशा के समकोण पर कंपन पैदा करती हैं। अतः ये जिस पदार्थ से गुजरती हैं, उसमें उभार व गर्त बनाती हैं। धरातलीय तरंगें सबसे अधिक विनाशकारी समझी जाती हैं।

(ii) अंतर्वेधी आकृतियों से आप क्या समझते हैं? विभिन्न अंतर्वेधी आकृतियों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर- जब मैग्मा भूपटल के भीतर ही ठंडा हो जाता है। तो कई आकृतियाँ बनती हैं। ये आकृतियाँ अंतर्वेधी आकृतियाँ कहलाती हैं। अंतर्वेधी आकृतियों में बैथोलिथ, लैकोलिथ, लैपोलिथ, फैकोलिथ व सिल प्रमुख हैं।
(i) बैथोलिथ – ग्रेनाइट के बने मैग्मा का बड़ा पिण्ड भूपर्पटी में अधिक गहराई पर ठंडा हो जाए तो यह एक गुंबद के आकार में विकसित हो जाता है। इसे बैथोलिथ कहा जाता है।
(ii) लैकोलिथ – ये गुम्बदनुमा विशाल अंतर्वेधी चट्टानें हैं, जिनका तल समतल व एक पाइप रूपी वाहक नली से नीचे से जुड़ा होता है तथा गहराई में पाया जाता है, इन्हें लैकोलिथ कहा जाता है।
(iii) लैपोलिथ – ऊपर उठते मैग्मा का कुछ भाग क्षैतिज दिशा में पाए जाने वाले कमजोर धरातल में चला जाता है। यहाँ यह अलग-अलग आकृतियों में जम जाता है। यदि यह तश्तरी के आकार में जम जाए तो यह लैपोलिथ कहलाता
(iv) फैकोलिथ – कई बार अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों की मोड़दार अवस्था में अपनति के ऊपर व अभिनति के तल में मैग्मा का जमाव पाया जाता है। ये परतनुमा चट्टानें एक निश्चित वाहक नली से मैग्मा भंडारों से जुड़ी होती हैं। यही फैकोलिथ कहलाते हैं।
(v) सिल – अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों का क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठंडा होना सिल कहलाता है। इसके जमाव की मोटाई अधिक होती है।

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NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 9

NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 9 (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 9 Solar Radiation, Heat Balance and Temperature (Hindi Medium)

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[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)

प्र० 1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
(i) निम्न में से किस अक्षांश पर 21 जून की दोपहर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं?
(क) विषुवत वृत्त पर
(ख) 23.5° उत्तरी
(ग) 66.5° दक्षिणी
(घ) 66.5° उत्तरी
उत्तर- (ख) 23.5° उत्तरी

(ii) निम्न में से किन शहरों में दिन ज्यादा लंबा होता है?
(क) तिरुवनंतपुरम
(ख) हैदराबाद
(ग) चंडीगढ़
(घ) नागपुर
उत्तर- (क) तिरुवनंतपुरम

(iii) निम्नलिखित में से किस प्रक्रिया द्वारा वायुमंडल मुख्यतः गर्म होता है?
(क) लघु तरंगदैर्ध्व वाले सौर विकिरण से
(ख) लंबी तरंगदैर्ध्व वाले स्थलीय विकिरण से
(ग) परावर्तित सौर विकिरण से
(घ) प्रकीर्णित सौर विकिरण से।
उत्तर- (ख) लंबी तरंगदैर्ध्व वाले स्थलीय विकिरण से।

(iv) निम्न पदों को उसके उचित विवरण के साथ मिलाएँ।
1. सूर्यातप (क) सबसे कोष्ण और सबसे शीतमहीनों के माध्य तापमान का अंतर
2. एल्बिडो (ख) समान तापमान वाले स्थानों को जोड़ने वाली रेखा
3. समताप रेखा (ग) आनेवाली सौर विकिरण
4. वार्षिक तापांतर (घ) किसी वस्तु के द्वारा परावर्तित दृश्य प्रकाश का प्रतिशत
उत्तर- 1. (ग) 2. (घ) 3. (ख) 4. (क)

(v) पृथ्वी के विषुवत वृत्तीय क्षेत्रों की अपेक्षा उत्तरी गोलार्ध के उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों का तापमान अधिकतम होता है, इसका मुख्य कारण है
(क) विषुवतीय क्षेत्रों की अपेक्षा उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में कम बादल होते हैं।
(ख) उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में गर्मी के दिनों की लंबाई विषुवतीय से अपेक्षा ज्यादा होती है।
(ग) उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में ‘ग्रीन हाउस प्रभाव विषुवतीय क्षेत्रों की अपेक्षा ज्यादा होता है।
(घ) उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र विषुवतीय क्षेत्रों की | अपेक्षा महासागरीय क्षेत्र के ज्यादा करीब हैं।
उत्तर- (ख) उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में गर्मी के दिनों की लंबाई विषुवतीय क्षेत्रों से ज्यादा होती है।

प्र० 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए।
(i) पृथ्वी पर तापमान का असमान वितरण किस प्रकार जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है?
उत्तर- तापमान के असमान वितरण से मौसम और जलवायु प्रभावित होती है। जिस क्षेत्र में तापमान अधिक होता है उस क्षेत्र में हवाएँ कम तापमान वाले क्षेत्रों से चलती हैं। इसलिए विषुवतीय प्रदेशों से हवाएँ ऊपर उठ जाती हैं और हवाएँ अपने दोनों गोलार्धा (उत्तरी और दक्षिणी) में उतरती हैं जिसके कारण वहाँ का वायुदाब अधिक हो जाता है। शीतऋतु में हवाएँ स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं इसलिए ये हवाएँ प्रायः शुष्क होती हैं। ग्रीष्म ऋतु में हवाएँ समुद्र से स्थल की ओर चलती हैं इसलिए ये पवनें आर्द्र होती हैं। तापमान का असमान वितरण वायु की उत्पत्ति का मुख्य कारण है। चक्रवात की उत्पत्ति भी तापमान के असमान वितरण का कारण होती है। इस तरह तापमान के असमान वितरण से मौसम और जलवायु प्रभावित होती है।

(ii) वे कौन से कारक हैं, जो पृथ्वी पर तापमान के वितरण को प्रभावित करते हैं?
उत्तर- तापमान को प्रभावित करने वाले कारक अक्षांश, ऊँचाई, स्थल एवं जल, प्रचलित पवनें, महासागरीय धाराएँ आदि हैं-

  1. अक्षांश – अप्रैल से जून तक उत्तरी गोलार्द्ध में तथा दिसंबर से मार्च तक दक्षिणी गोलार्द्ध में सूर्यातप अधिक रहता है तथा सितंबर से मार्च महीने में विषुवत रेखा पर सूर्यातप अधिक रहती है।
  2. ऊँचाई – प्रत्येक 165 मीटर की ऊँचाई पर 1° सेंटीग्रेड तापमान घट जाता है इसलिए पर्वतीय भागों की अपेक्षा मैदानी भागों में तापमान अधिक मिलता है।
  3. स्थल व जल – जलीय भागों की अपेक्षा स्थलीय भागों में सूर्यातप अधिक देखने को मिलता है।
  4. प्रचलित पवनें – प्रचलित पवनें अपने क्षेत्रों में तापमान दशाओं को प्रभावित करती हैं। महासागरों की ओर से बहने वाली प्रचलित पवन वहाँ के मृदु तापमान का प्रभाव समीपवर्ती स्थल पर लाती है।
  5. महासागरीय धाराएँ – गर्म धाराएँ समीपवर्ती ठंडे स्थल भाग का तापमान बढ़ा देती हैं और ठंडी धाराएँ समीपवर्ती गर्म स्थल भाग का तापमान घटा देती हैं।

(iii) भारत में मई में तापमान सर्वाधिक होता है, लेकिन उत्तर अयनांत के बाद तापमान अधिकतम नहीं होता। क्यों?
उत्तर- भारत में मई में तापमान अधिकतम होने का मुख्य कारण सूर्य का उत्तरायन होना है। सूर्य उस वक्त कर्क रेखा पर लंबवत रूप से चमकता है और कर्क रेखा भारत के बीचोंबीच से होकर गुजरती है। लेकिन यह तापमान मई के अंत तक ही संपूर्ण भारत में अधिकतम रहता है। क्योंकि मई के अंत में मालाबार तट पर वर्षा की शुरुआत हो जाती है जिसके कारण दक्षिण भारत में तापमान में वृद्धि नहीं हो पाती है। भले ही उत्तर भारत में तापमान में वृद्धि 21 जून तक जारी रहती है और यहाँ पर जून के पहले सप्ताह में तापमान अधिकतम देखने को मिलता है।

(iv) साइबेरिया के मैदान में वार्षिक तापांतर सर्वाधिक होता है। क्यों?
उत्तर- साइबेरिया के मैदानी भाग समुद्र से काफी दूर हैं और समुद्र से दूर वाले क्षेत्रों में विषम जलवायु पाई जाती। है। अर्थात् साइबेरिया के मैदानी भागों में शीतऋतु में तापमान -18° से -48° सेंटीग्रेड तक रहता है, लेकिन ग्रीष्म ऋतु का तापमान – 20° सेल्सियस तक पाया जाता है। इस तरह से साइबेरिया के मैदानी भागों का वार्षिक तापांतर -68° सेंटीग्रेड तक होता है जोकि बहुत अधिक है। इसका मुख्य कारण कोष्ण महासागरीय धाराएँ गल्फ स्ट्रीम तथा उत्तरी अंधमहासागरीय ड्रिफ्ट की उपस्थिति से उत्तरी अंधमहासागर अधिक गर्म होता है तथा समताप रेखाएँ उत्तरे की तरफ मुड़ जाती हैं। यह साइबेरिया के मैदान पर स्पष्ट होता है।

प्र० 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए।
(i) अक्षांश और पृथ्वी के अक्ष का झुकाव किस प्रकार पृथ्वी की सतह पर प्राप्त होने वाली विकिरण की मात्रा को प्रभावित करते हैं?
उत्तर- सूर्य की किरणें 0° अक्षांश या विषुवत रेखा पर सालों भर लंबवत पड़ती हैं। 0° अक्षांश से 23\(\frac { 1 }{ 2 }\)° उतरी और 23\(\frac { 1 }{ 2 }\)° दक्षिणी अक्षांशों के बीच सूर्य ऊपर-नीचे होता। रहता है। 21 मार्च से 21 जून तक सूर्य उत्तरायन होता है अर्थात् कर्क रेखा पर सूर्य की किरणें लंबवत रूप से पड़ती हैं और यहाँ पर उस वक्त ग्रीष्म ऋतु होती है और मकर रेखा पर शीत ऋतु होती हैं। 23 सितंबर से 22 दिसंबर तक सूर्य दक्षिणायन होता है अर्थात् मकर रेखा पर सूर्य की किरणें लंबवत पड़ती हैं और यहाँ पर उस वक्त ग्रीष्म ऋतु होती है और कर्क रेखा पर शीत ऋतु होती है। 21 मार्च और 23 सितंबर को सूर्य की किरणें विषुवत रेखा पर लंबवत पड़ती है। कर्क रेखा के उत्तर में और मकर रेखा के दक्षिण में जैसे-जैसे हम बढ़ते जाते हैं, वहाँ का तापमान घटता जाता है। इसलिए 66° उत्तरी अक्षांश और 66° दक्षिण अक्षांश के ऊपरी भाग में शीत कटिबंध पाया जाता है। जहाँ पर वर्ष भर तापमान निम्न रहता है। इस क्षेत्र में वर्ष के अधिकांश महीनों में बर्फ जमी रहती है। इसका मुख्य कारण है कि यहाँ पर सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं। इस प्रकार अक्षांश और पृथ्वी के अक्ष का झुकाव पृथ्वी की सतह पर प्राप्त होने वाली विकिरण की मात्रा को प्रभावित करते हैं।

(ii) उन प्रक्रियाओं की व्याख्या करें, जिनके द्वारा पृथ्वी तथा इसका वायुमंडल ऊष्मा संतुलन बनाए रखते हैं।
उत्तर- पृथ्वी पर सूर्यातप का असमान वितरण है। सूर्यातप के असमान वितरण के बावजूद वायुमंडल सूर्यातप की असमानता को कम कर देता है। सूर्य पृथ्वी को गर्म करता है और पृथ्वी वायुमंडल को गर्म करती है। प्रकृति संपूर्ण पृथ्वी पर संतुलन बनाए रखने के लिए ऐसी क्रियाविधि को जन्म देती है, जिससे ऊष्मा का स्थानांतरण उष्णकटिबंध से उच्च अक्षांशों की ओर वायुमंडलीय परिसंचरण तथा महासागरीय धाराओं द्वारा संपन्न होता है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में अधिक गर्मी पड़ने के कारण वहाँ की वायु गर्म होकर ऊपर उठ जाती है और उस खाली स्थान को भरने के लिए उपोष्ण कटिबंध से हवाएँ उष्णकटिबंध की ओर चलती हैं, जिससे उष्ण कटिबंध के तापमान में ज्यादा वृद्धि नहीं हो पाती। इसी तरह से उपोष्ण कटिबंध क्षेत्र में शीतोष्ण कटिबंध से हवाएँ चलकर इन क्षेत्रों के तापमान में संतुलन बनाती हैं। इसी तरह से वायुमंडल एक क्षेत्र के तापमान को ज्यादा नहीं बढ़ने देती तथा शीत कटिबंधीय और शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में अगर गर्म महासागरीय धाराएँ चलती हैं तो ये धाराएँ इन क्षेत्रों के तापमान को बढ़ा देती है और अगर उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में ठंडी । धाराएँ चलती है तो उन क्षेत्रों के तापमान को कम कर देती है। इस तरह पृथ्वी की महासागरीय धाराएँ और वायुमंडल ताप को संतुलित करते हैं।

(iii) जनवरी में पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध के बीच तापमान के विश्वव्यापी वितरण की तुलना करें।
उत्तर- जनवरी में उत्तरी गोलार्ध में शीतऋतु और दक्षिणी गोलार्ध में ग्रीष्मऋतु होती है। इसका मुख्य कारण यह है कि जनवरी में सूर्य दक्षिणायन होता है। इसलिए सूर्य की किरणें दक्षिणी गोलार्ध में लंबवत पड़ती हैं। जबकि उत्तरी गोलार्ध में सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं। इसलिए उत्तरी गोलार्ध में तापमान कम देखने को मिलता है। विषुवत रेखा के समीपवर्ती क्षेत्रों में तापमान 27° सेंटीग्रेड तथा कर्क रेखा पर औसतन तापमान 15° सेंटीग्रेड, शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में औसत तापमान 10° सेंटीग्रेड और शीतकटिबंधीय क्षेत्रों में इससे भी कम तापमान देखने को मिलता है। इस क्षेत्र के कई क्षेत्रों का तापमान शून्य से भी काफी नीचे तक पहुँच जाता है। उदाहरणस्वरूप, साइबेरिया के बर्खायस्क में -32° सेंटीग्रेड तक तापमान पाया जाता है। दक्षिणी गोलार्ध में ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीकी देशों और दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप के अर्जेन्टाइना में जनवरी में तापमान औसतन 30° सेंटीग्रेड तक होता है। जबकि इसके और भी दक्षिणी भाग में जैसे चिली और अर्जेन्टाइना के दक्षिणी भाग में तापमान 15 से 20° सेंटीग्रेड तक होता है। इस तरह से जनवरी में उत्तरी गोलार्ध में कम तापमान और दक्षिणी गोलार्ध में अधिक तापमान देखने को मिलता है।

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NCERT Solutions for Class 11 Sociology Introducing Sociology Chapter 4 Culture and Socialisation (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Sociology Introducing Sociology Chapter 4 (Hindi Medium)

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पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न [NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED]

प्र० 1. सामाजिक विज्ञान में संस्कृति की समझ, दैनिक प्रयोग के शब्द ‘संस्कृति’ से कैसे भिन्न है?
उत्तर- संस्कृति का संदर्भ विस्तृत रूप से साझी प्रथाओं, विचारों, मूल्यों, आदर्शों, संस्थाओं और किसी समुदाय के अन्य उत्पादों से है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में सामाजिक रूप से संचार होती है। सामाजिक परिदृश्य में संस्कृति का सरोकार किसी संगठित समूह, समाज या राष्ट्र के समाजीकरण के उत्पादों से है और इसमें नियमों, प्रतिमानों और प्रथाओं का एक समुच्चय सम्मिलित है जो उस समूह के सदस्यों द्वारा स्वीकृत किया जाता है। सामान्य शब्दों में संस्कृति का संदर्भ समाज के शिष्टाचार अर्जन और ललितकला से है; जैसे-संगीत, चित्रकला, लोकगीत, लोकनृत्य इत्यादि। अतः प्रयोग किया जाने वाला मूल शब्द यह है कि लोग सभ्य हैं या असभ्य। समाजशास्त्री के लिए किसी समाज की संस्कृति इसके सदस्यों की जीवन-विधि, विचारों और व्यवहारों का संग्रह है जो वे सीखते हैं, आदान-प्रदान करते | हैं और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचार करते हैं। यह एक जटिल संचय समग्र है जिसमें समाज के सदस्य के रूप में व्यक्तियों द्वारा अर्जित ज्ञान, विश्वास, कला, चरित्र से संबंधित शिक्षा, नियम, प्रथा और अन्य योग्यताएँ तथा व्यवहार सम्मिलित हैं।

प्र० 2. हम कैसे दर्शा सकते हैं कि संस्कृति के विभिन्न आयाम मिलकर समग्र बनाते हैं?
उत्तर- संस्कृति के विभिन्न आयाम भाग और इकाई हैं, लेकिन वे अंत:संबंधित और अन्योन्याश्रित हैं। शून्य की स्थिति में उनका विकास या कार्य करना संभव नहीं है। इसके विपरीत सभी आयाम मिलकर किसी संगठन की तरह कार्य करते हैं। संस्कृति संतुलन को पोषण करती है। संस्कृति के तीन घटक हैं। जैसे कि संज्ञानात्मक (Cognitive), आदर्शात्मक (Normative) और भौतिक (Material) । संज्ञानात्मक भाग का सरोकार समझ और जानकारी से है। उदाहरण के तौर पर, किताबें और दस्तावेज। प्रथा, परम्परा और लोक-रीतियाँ आदर्शात्मक घटक हैं तथा संस्कृति के भौतिक घटक पर्यावरण मानव निर्मित भागों से संबंधित हैं; जैसे कि, बाँध, सड़क, बिजली और इलैक्ट्रॉनिक उपकरण, गाड़ी इत्यादि। उपरोक्त वर्णित सभी घटक एक-दूसरे के पूरक हैं। और समग्र रूप से कार्य करने के लिए एक-दूसरे का सहयोग करते हैं।

प्र० 3. उन दो संस्कृतियों की तुलना करें जिनसे आप परिचित हों। क्या नृजातीय नहीं बनना कठिन नहीं है?
उत्तर- हम पूर्वी विशेषतः भारतीय और पश्चिमी संस्कृतियों से पूर्ण रूप से परिचित हैं। दोनों संस्कृतियाँ एक-दूसरे से पूर्णतः भिन्न हैं। भारतीय संस्कृति कृषि आधारित है और लोग एक-दूसरे पर आश्रित हैं। यह एक जन सामूहिक समाज है और समाजीकरण पर बल दिया जाता है। सामूहिक समाजों में स्वयं और समूह के मध्य विद्यमान सीमा लचीली होती है और लोग एक-दूसरे के जीवन में प्रवेश/हस्तक्षेप कर सकते हैं। इस प्रकार के समाज में अनेक प्रकार की अवधारणाएँ होती हैं। उदाहरण के तौर पर, मानव शरीर प्राकृतिक तत्वों द्वारा निर्धारित किया जाता है और बुद्धिमान होने की कसौटी अत्यधिक विस्तृत है। इसे संज्ञानात्मक, सामाजिक, भावनात्मक और साहसी योग्यताओं की आवश्यकता पड़ती है। पश्चिमी संस्कृति तकनीकी तौर पर विकसित और व्यक्तिपरक समाज है। यह शहरीकरण, विद्यालयी शिक्षा और बच्चों के लालन-पालन, व्यवहार पर आधारित है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर बल देती है। स्वयं और समूह के मध्य विद्यमान सीमाएँ कठोर होती हैं। उनका विश्वास है कि शरीर पूर्ण रूप से कार्य करने वाला यंत्र है। उनके बुद्धिमान होने की कसौटी की माँग संज्ञानात्मक योग्यता है। नृजातिकेंद्रवाद का सरोकार दूसरे नृजातीय समूह के संबंध विचार करते समय अपने नृजातीय समूह का प्रयोग करना। हमारे अपने समूह के विचार, प्रथा और व्यवहार को सामान्य और दूसरे नृजातीय समूहों को विविध या कुपथगामी देखने की प्रवृत्ति है। इन सभी में प्रत्यक्ष पूर्वधारणा यह है कि हमारे नृजातीय समूह दूसरों से किसी-न-किसी रूप में श्रेष्ठ हैं जिसके विरुद्ध हम इसकी तुलना कर रहे हैं।
नृजातिकेंद्रवाद एक प्राकृतिक सामाजिक प्रक्रिया है। क्योंकि हम सभी का संबंध किसी बड़े समूह के साथ रहता है। इस बात की संतुष्टि के लिए कि हमारा व्यवहार सही है, व्यवहार में निरंतरता के पोषण क लिए और ऐसा विश्वास है कि बहु-संख्यक लोग हमेशा सही होते हैं, हम समूह के आदर्शों/प्रतिमानों के अनुसार चलते हैं। धीरे-धीरे हम इनके अंत:समूह में विद्यमान समूह के आदर्शों/प्रतिमानों के प्रति अभ्यस्त हो जाते हैं। हम अंत:समूह की पक्षपाती भावना विकसित करते हैं। लेकिन नृजातिकेंद्रवाद की भावना को कम करना आसान नहीं है। जैसे कि अंत:समूह के पक्षपाती विचार।
ये पक्षपाती विचारों को सीखने, नकारात्मक अभिवृत्ति को बदलने के अवसरों को कम कर सकता है। अंत:समूह पर आधारित संकीर्ण सामाजिक पहचान का तिरस्कार और स्वयं को संतुष्ट करने वाली भविष्यवाणी, सकारात्मक अभिवृत्ति, वस्तुपरक तथा समानुभूति के निरुत्साही विचारों को कम करके हम नृजातिकेंद्रवाद की भावना को कम कर सकते हैं।

प्र० 4. सांस्कृतिक परिवर्तनों का अध्ययन करने के लिए दो विभिन्न उपागमों की चर्चा करें।
उत्तर-

  • धर्म, कला, भाषा या साहित्य में परिवर्तन रुचि और विश्वास को प्रभावित करता है जिसका सामाजिक संबंधों पर प्रभाव पड़ता है।
  • सांस्कृतिक परिवर्तन नवीन खोजों, आविष्कारों और सांस्कृतिक क्रिया-कलापों में परिवर्तन के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी है।
  • सांस्कृतिक परिवर्तन का क्षेत्र विस्तृत है।
  • सांस्कृतिक परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन पर असर डालता है।
  • सांस्कृतिक परिवर्तनों को प्राकृतिक परिवर्तन और क्रांतिकारी परिवर्तन में वर्गीकृत किया जा सकता है-
    • प्राकृतिक परिवर्तन किसी समाज में संपूर्ण परिवर्तन को संभव बना सकता है; जैसे कि भूकंप, सुनामी, बाढ़, अकाल इत्यादि।
    • क्रांतिकारी परिवर्तन किसी विशिष्ट स्थान के मूल्यों और अर्थव्यवस्था में शीघ्र परिवर्तन लाता है। ये परिवर्तन राजनीतिक हस्तक्षेप के द्वारा संभव होते हैं और समाज में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन को संभव बनाते हैं। उदाहरण के लिए, हमलावरों के कारण भारतीय संस्कृति पर इस्लाम का प्रभाव या भारतीय संस्कृति पर पश्चिम का प्रभाव।

प्र० 5. क्या विश्वव्यापीकरण को आप आधुनिकता से जोड़ते हैं? नृजातीयता का प्रेक्षण करें तथा
उदाहरण दें।
उत्तर- छात्र स्वयं करें।

प्र० 6. आपके अनुसार आपकी पीढ़ी के लिए समाजीकरण का सबसे प्रभावी अभिकरण क्या है? यह पहले अलग कैसे था, आप इस बारे में क्या सोचते हैं?
उत्तर- छात्र स्वयं करें।

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NCERT Solutions for Class 11 History Chapter 2 Writing and City Life (Hindi Medium)

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अभ्यास प्रश्न (पाठ्यपुस्तक से) (NCERT Textbook Questions Solved)

संक्षेप में उत्तर दीजिए

प्र० 1. आप यह कैसे कह सकते हैं कि प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही आरंभ में शहरीकरण के कारण थे?
उत्तर  शहरीकरण तभी संभव हो सकता है जब खेती से इतनी उपजे होती हो कि वह शहर में रहने वाले लोगों का भी पेट भरने में समर्थ हो सके। शहर में लोग घनी बस्तियों में रहते हैं। अतः जहाँ शहर का विकास होता है वहाँ की जमीन | का प्राकृतिक रूप से उपजाऊ होना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। क्योंकि ऐसी जमीन ही अधिक-से-अधिक लोगों को खाद्यान्न प्रदान करने में समर्थ हो सकती है।

लेकिन केवल प्राकृतिक उर्वरता और खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही शहरीकरण के कारण कदापि नहीं हो सकते हैं। शहरीकरण के अन्य कारक भी हैं; जैसे—उद्योगों का विकास, उन्नत व्यापार, लेखन-कला का विकास, श्रम-विभाजन और कुशल परिवहन व्यवस्था आदि। इन कारकों ने भी शहरीकरण के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्राचीन काल में उद्योगों का विकास शहरीकरण की एक अति आवश्यक शर्त थी। उद्योग मात्र शहरों में रहने वाले लोगों की विभिन्न आवश्यकताओं को ही पूरा नहीं करते, अपितु विभिन्न प्रकार के मजदूरों एवं कारीगरों को आजीविका के साधन भी उपलब्ध कराते हैं। वास्तव में नगर जीवन और लोगों को एक स्थान पर बसना तभी संभव है, जब विशाल संख्या में लोग अलग-अलग गैर-खाद्यान्न उत्पादक कार्यों में लगे हों।

उन्नत व्यापार शहरीकरण का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारक है। व्यापार के द्वारा ही नगरों में बनने वाला माल ग्रामों में पहुँचता है और ग्रामों से कच्चा माल तथा खाद्यान्न शहरों में पहुँचता है। उदाहरण के लिए, मेसोपोटामिया में अच्छी लकड़ी, ताँबा, राँगा, सोना, चाँदी, विभिन्न प्रकार के पत्थर आदि तुर्की, ईरान से आयात करते थे। इसके स्थान पर मेसोपोटामिया से कपड़ा तथा कृषि संबंधी उत्पाद अन्य देशों को क्षिर्यात किए जाते थे।

शहरी विकास के लिए लेखन कला की अहम् भूमिका रही है। इसका कारण यह है कि हिसाब-किताब की व्यवस्था के बिना व्यापार की किसी प्रकार की प्रगति संभव नहीं है। नि:संदेह लेखन कला के विकास ने मेसोपोटामिया में नगरों के उदय में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। लेखन कला के साथ-साथ शहरीकरण के लिए सुव्यवस्थित प्रशासनिक व्यवस्था भी अतिआवश्यक है। व्यापार की प्रगति के लिए शांति और सुरक्षा की स्थापना कुशल प्रशासन द्वारा ही संभव है। इस संबंध में उल्लेखनीय है कि कांस्य युग में जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक वस्तुओं के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं के उत्पादक मुख्य रूप से शासक वर्ग और मंदिरों पर ही निर्भर होते थे। प्रशासक वर्ग केवल कानून और व्यवस्था का संचालन ही नहीं करते थे, अपितु श्रम-विभाजन को भी नियंत्रित करते थे।

नि:संदेह श्रम-विभाजन ने ही शहरीकरण की गति को बल दिया। नगरी जीवन और लोगों का एक स्थान पर बसना तभी संभव हो पाता है जब अनेक लोग विभिन्न गैर-खाद्यान्न उत्पादक रोजगारों, उदाहरण के लिए धातुकर्म, मुहर, नक्काशी, प्रशासन, मंदिर सेवा आदि में लगे हुए हों। ऐसी स्थिति में शहरी अर्थव्यवस्था में सामाजिक संगठन का होना नितांत आवश्यक है। इसका कारण यह है कि शहर के निर्माताओं को अपने-अपने उद्योगों के लिए विभिन्न वस्तुओं की आवश्यकता होती है जिन्हें केवल किसी एक स्थान से प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार एक ही व्यक्ति सभी प्रकार की वस्तुओं के निर्माण में कुशल नहीं हो सकता। यही कारण है कि औद्योगिक एवं व्यापारिक विकास में श्रम-विभाजन का पालन अतिआवश्यक हो जाता है। कुशल परिवहन व्यवस्था भी शहरीकरण के लिए अतिआवश्यक होती है। परिवहन व्यवस्था अच्छी होने पर ग्रामों से पर्याप्त मात्रा में अनाज शहरों में भेजा जा सकता है और शहरों में तैयार वस्तुओं को ग्रामों तक पहुँचाया जा सकता है। मेसोपोटामिया की नहरें तथा प्राकृतिक जल संसाधन छोटी-बड़ी बस्तियों के बीच परिवहन के अच्छे साधन थे। यही कारण है कि उन दिनों फ़रात नदी व्यापार के विश्व-मार्ग का कार्य करती थी।

अतः उपरोक्त विवेचना के आधार पर कहा जा सकता है कि शहरीकरण के विकास में प्राकृतिक उर्वरता और खाद्य-उत्पादन के उच्च स्तर के साथ-साथ अनेक अन्य कारण भी उत्तरदायी थे।

प्र० 2. आपके विचार से निम्नलिखित में से कौन-सी आवश्यक दशाएँ थीं जिनकी वजह से प्रारंभ में शहरीकरण हुआ था और निम्नलिखित में से कौन-कौन सी बातें शहरों के विकास के फलस्वरूप उत्पन्न हुईं?

  • (क) अत्यंत उत्पादक खेती
  • (ख) जल-परिवहन
  • (ग) धातु और पत्थर की कमी
  • (घ) श्रम-विभाजन
  • (ङ) मुद्राओं का प्रयोग
  • (च) राजाओं की सैन्य-शक्ति जिसने श्रम को अनिवार्य बना दिया।

उत्तर कांस्यकालीन सभ्यताओं के दौरान अनेक शहरों का विकास हुआ। वस्तुत: शहर विशाल जनसंख्या के निवास स्थान होते हैं और इसके अतिरिक्त अनेक महत्त्वपूर्ण आर्थिक गतिविधियों के केंद्रबिंदु भी हैं। यही कारण है कि शहर ग्रामों की अपेक्षा अधिक घने और बड़े क्षेत्र में बसे हुए होते हैं।

प्रारंभिक शहरीकरण की आवश्यक दशाएँ

(क) अत्यंत उत्पादक खेती – नि:संदेह अत्यंत उत्पादक खेती प्रारंभिक शहरीकरण की एक अत्यंत आवश्यक दशा थी। यह निर्विवाद है कि शहरीकरण तभी संभव हो सकता है जब खेती में इतनी उपज होती हो कि वह शहर में रहने वाले लोगों का पेट भरने में समर्थ हो सके। शहरों में लोग घनी बस्तियों में रहते हैं। अतः कहा जा सकता है कि जिस स्थान पर शहर का विकास होता है, उस स्थान पर ज़मीन का प्राकृतिक स्वरूप उपजाऊ होना अत्यंत आवश्यक है। उदाहरण के लिए, मेसोपोटामिया का शहर के रूप में विकास होना इसका प्रमाण है।

(ख) जल-परिवहन – जल-परिवहन भी शहरीकरण के लिए अत्यंत उत्पादक खेती से कम आवश्यक दशा नहीं थी। प्रारंभिक काल में बोझा ढोने वाले पशुओं की पीठ पर लादकर व बैलगाड़ियों में भरकर शहरों में कृषि उत्पाद को ले जाना सरल नहीं था। इन माध्यमों से परिवहन में अत्यधिक समय लगता था। इनकी अपेक्षाकृत कांस्यकालीन सभ्यताओं में जल-परिवहन, खाद्यान्न एवं अन्य सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने का एक सस्ता एवं सुरक्षित साधन था। खाद्यान्न व अन्य सामान से भरी नौकाएँ नदी की धारा के साथ चलती थीं। परिणामतः उन पर कोई अतिरिक्त व्यय नहीं करना पड़ता था। प्राचीन मेसोपोटामिया की नहरें तथा प्राकृतिक जल-धाराएँ छोटी-बड़ी बस्तियों के बीच परिवहन के अच्छे साधनों के रूप में कार्य करती थीं। यही कारण था कि जल-परिवहन मेसोपोटामिया में प्रारंभिक शहरीकरण के विकास का एक महत्त्वपूर्ण कारक सिद्ध हुआ।

(ग) धातु और पत्थर की कमी – धातु और पत्थर की कमी ने भी मेसोपोटामिया में प्रारंभिक शहरीकरण को बलदिया। नि:संदेह उन्नत व्यापार की अवस्था शहरीकरण का एक महत्त्वपूर्ण कारण है। इसके अतिरिक्त व्यापार के द्वारा ही नगरों में बनने वाला माल ग्रामों में पहुँचता है और ग्रामों से कच्चा माल तथा खाद्यान्न शहरों में आता है। मेसोपोटामिया खाद्य संसाधनों की दृष्टि से संपन्न थी, किंतु वहाँ खनिज पदार्थों की कमी थी। दक्षिणी मेसोपोटामिया के अधिकांश भागों में औज़ार, मोहरें और आभूषण आदि बनाने के लिए अच्छे पत्थरों तथा गाड़ियों के पहिए अथवा नावें बनाने के लिए अच्छी लकड़ी का अभाव था। इसी तरह औजार, बर्तन तथा आभूषण बनाने के लिए अच्छी धातु भी उपलब्ध नहीं थी। अतः ये वस्तुएँ व्यापार के द्वारा ही प्राप्त की जाती थीं। इसके साथ ही मेसोपोटामिया से कपड़ा और कृषि संबंधी उत्पादों को अन्य देशों के लिए निर्यात किए जाते थे। मेसोपोटामिया में अच्छी लकड़ी, ताँबा, राँगा, सोना, चाँदी, सीपी, विभिन्न प्रकार के पत्थर आदि तुर्की, ईरान तथा खाड़ी के अन्य देशों से आयात किए जाते थे।

शहर के विकास के फलस्वरूप उत्पन्न देशाएँ

(क) मुद्राओं का प्रयोग – शहरीकरण के विकास के कारण मुद्राओं के प्रचलन को बल मिला। नि:संदेह मुद्राओं के प्रचलन ने साहूकारों, विभिन्न व्यवसायियों, व्यापार तथा सरकार के काम को सरल बना दिया। हम जानते हैं कि प्राचीन काल में शहरों का लेन-देन अवैयक्तिक रूप से होता था। जिन लोगों से लेन-देन होता था, वे सामान्यतया एक-दूसरे से अपरिचित होते थे। अतः संदेशों, दस्तावेजों और सामान के गट्टरों को भेजते समय मुहर लगाना अनिवार्य समझा जाता था।

(ख) श्रम-विभाजन – 
नगर जीवन और लोगों का एक स्थान पर बसना तभी संभव होता है, जब अनेक लोग विभिन्न गैर–खाद्यान्न उत्पादक रोजगारों; जैसे-धातुकर्म, मुहर, नक्काशी, प्रशासन, मंदिर सेवा आदि में लगे हों। शहर के विनिर्माताओं को अपने-अपने उद्योगों के लिए ईंधन, धातु, अनेक प्रकार के पत्थर की आवश्यकता होती है। इन चीजों को केवल एक स्थान से प्राप्त करना असंभव है। इसी प्रकार कोई एक व्यक्ति सभी प्रकार की वस्तुओं के निर्माण में कुशल नहीं हो सकता है। परिणामतः औद्योगिक एवं व्यापारिक विकास में श्रम-विभाजन का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। वस्तुतः शहरीकरण की प्रक्रिया से श्रम-विभाजन को भी बल मिलता है।

(ग) राजाओं की सैन्य-शक्ति जिसने श्रम को अनिवार्य बना दिया – शहरीकरण की प्रक्रिया ने राजाओं की सैन्य-शक्ति की आधारशिला रखी। हम जानते हैं कि शहरीकरण और औद्योगीकरण तथा व्यापारिक विकास में घनिष्ठ संबंध है। व्यापार के विकास के लिए शांति और सुरक्षा अति आवश्यक है जोकि किसी शक्तिशाली केंद्र द्वारा ही प्रदान की जा सकती है। परिणामतः शहरीकरण के साथ-साथ कानून-व्यवस्था की देखभाल तथा श्रम-विभाजन पर नियंत्रण अति आवश्यक हो गया। इसके फलस्वरूप राजा की सैन्य-शक्ति में भी वृद्धि होने लगी। उदाहरण के लिए, यदि मेसोपोटामिया को शहरीकरण हुआ तो वहाँ एक कुशल और शक्तिशाली केंद्र शासक का भी उदय हुआ।

प्र० 3. यह कहना क्यों सही होगा कि खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए खतरा थे?
उत्तर मेसोपोटामिया का इतिहास इस बात का गवाह है कि इसके पश्चिमी मरुस्थल से यायावर समूहों के कई झुंड इसके उपजाऊ
एवं संपन्न मुख्य भूमि प्रदेश में आते रहते थे। ये पशुचारक गर्मी के मौसम में अपनी भेड़-बकरियों को इस उपजाऊ क्षेत्र के बोए हुए खेतों में ले जाते थे। अनेक बार ये यायावर समूह गड़रियों, फसल काटने वाले मजदूरों अथवा भाड़े के सैनिकों के रूप में इस उपजाऊ प्रदेश में आते थे और स्थायी रूप से इसे ही अपना निवास स्थान बना लेते थे। ये खानाबदोश, अक्कदी, एमोराइट, असीरियाई और आमीनियन जाति के लोग ही थे।

पशुचारक अपने पशुओं तथा उनके उत्पादों, जैसे-पनीर, चमड़ा, मांस आदि के बदले अनाज और धातु के औजार आदि लेते थे। बाड़े में रखे जाने वाले पशुओं के गोबर से बनी खाद भूमि को उपजाऊ बनाती थी, इसलिए यह खाद किसानों के लिए बहुत उपयोगी होती थी। किंतु यदा-कदा किसानों और पशुचारकों अथवा गड़रियों के बीच झगड़े भी हो जाते थे। प्रायः ऐसा होता था कि पशुचारक अपनी भेड़-बकरियों को पानी पिलाने के लिए बोए हुए खेतों के बीच से निकालकर ले जाते थे। परिणामतः किसानों की फसल को हानि पहुँचती थी। यहाँ तक कि कई बार खेतों में खड़ी फसल बरबाद हो जाती थी।

मारी के अभिलेखों से जाहिर होता है कि सिंचाई वाले क्षेत्रों में पशुचारकों के आगमन पर नज़र रखी जाती थी। नि:संदेह चरवाहे कभी उपयोगी साबित हो सकते थे तो कभी हानिकारक भी। यदि शहरी लोगों के साथ पशुचारकों का संबंध दोस्ताना नहीं होता तो वे आवागमन के प्रमुख रास्तों को भी हानि पहुँचा सकते थे। इसके अतिरिक्त, कभी-कभी खानाबदोश पशुचारक लूटमार की गतिविधियों में भी लिप्त हो जाते थे। यहाँ तक कि वे किसानों के गाँवों पर हमला कर देते थे और उनका इकट्ठा किया गया अनाज आदि लूटकर ले जाते थे।

उपलब्ध साक्ष्यों से यह भी जाहिर है कि ये यायावर पशुचारक घास के मैदानों में अथवा सड़क के किनारे तंबुओं में रहा करते थे। वे प्रायः राहजनी के कार्यों में लिप्त रहते थे। मारी राज्य में कृषक व पशुचारक दोनों निवास करते थे। फिर भी मारी नगर के राजा इन पशुचारक समूहों की गतिविधियों के प्रति अत्यधिक सावधान थे। पशुचारकों को राज्य में चलने-फिरने की तो अनुमति थी, किंतु उनकी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी जाती थी। इस प्रकार मेसोपोटामिया का समाज और वहाँ की संस्कृति भिन्न-भिन्न समुदायों के लोगों व संस्कृतियों के लिए खुली थी। नि:संदेह, विभिन्न जातियों तथा समुदायों के लोगों के आपसी मेलजोल से वहाँ की सभ्यता में जीवन-शक्ति उत्पन्न हो गई थी।

प्र० 4. आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि पुराने मंदिर बहुत कुछ घर जैसे ही होंगे?
उत्तर सुमेरियाई लोग बहु-देवतावादी थे। प्रत्येक ग्राम का और प्रत्येक शहर का अपना देवता होता था। नि:संदेह उनके
देवी-देवताओं की संख्या विशाल थी और उनमें से अधिकांशतः प्रकृति की शक्तियों के प्रतिनिधि थे। उदाहरण के लिए, इन्नाना-प्रेम और युद्ध की देवी थी, तो ‘उर’ चंद्र देवता था। ये सुमेर के लोकप्रिय देवी-देवता थे। इसके अतिरिक्त एनलिल सुमेर में पूजे जाने वाले देवताओं में सर्वप्रमुख था। इस देवता को मानवता का स्वामी और राजाओं का राजा माना जाता था। विभिन्न देवी-देवताओं के निवास के लिए बनाया गया मंदिर उनके घर होते थे।

प्रारंभ में मंदिरों का निर्माण विशेष योजना के आधार पर किया जाता था। मंदिर का केंद्रीय कक्ष देवी-देवता के प्रतिमा कक्ष से जुड़ा होता था। इसके अतिरिक्त मंदिरों के दोनों तरफ़ गलियारा होता था। परंतु बाद के काल में मंदिरों का निर्माण घर की योजनानुसार होने लगा। इसके अंतर्गत एक खुले आँगन के चारों ओर अनेक कमरे बनाए जाते थे। देवी-देवता की मूर्ति के दर्शन सीधे नहीं होते थे। वहाँ तक पहुँचने के लिए आँगनों, बाहरी कक्षों और तिरछे अक्षों से होकर गुजरना पड़ता था। इसके अतिरिक्त सभी मंदिर एक जैसे बने होते थे। अतः वे घर जैसे दिखते थे।

इसमें कोई शक नहीं है कि मंदिर मानव जीवन से जुड़ी लगभग सभी गतिविधियों के केंद्रबिंदु थे। इतिहास गवाह है कि सुमेरिया के नगर राज्यों पर ऐसे सरदारों अथवा राजाओं ने शासन किया, जो पुजारी भी थे। संदर्भित काल में राजस्व पुजारियों के कामकाज से जुड़ा हुआ था। इसका अर्थ यह है कि एक ही व्यक्ति पुजारी एवं शासक दोनों रूपों में कार्य करता था। इस प्रकार मंदिर पूजा-स्थल के साथ-साथ प्रमुख पुजारी और शासक का निवास-स्थल भी था।

इसके अतिरिक्त, मंदिर सार्वजनिक जीवन का केंद्रबिंदु भी था। सार्वजनिक जीवन से संबंधित कार्यों का मार्गदर्शन मंदिर से ही किया जाता था। मंदिर में गोदाम, कारखाने तथा कारीगरों के बड़े-बड़े निवास सम्मिलित थे। मंदिर व्यवस्थापक,व्यापारियों के नियोक्ता, आवंटन और वितरण के लिखित अभिलेखों के पालक आदि के रूप में भी कार्य करता था। इन्हीं मंदिरों में जादू-टोने से बीमारियाँ ठीक की जाती थीं। इसी स्थान पर लिखाई-पढ़ाई का कार्य संपन्न होता था। साथ-साथ ज्योतिष जानने वाले इसे प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल करते थे। इस प्रकार मंदिर धार्मिक जीवन और सामाजिक जीवन के केंद्रबिंदु होने के कारण आकार-प्रकार और क्रियाकलाप के दृष्टिकोण से घर जैसे ही होते थे।

संक्षेप में निबंध लिखिए

प्र० 5. शहरी जीवन शुरू होने के बाद कौन-कौन सी नयी संस्थाएँ अस्तित्त्व में आईं? आपके विचार से उनमें से कौन-सी संस्थाएँ राजा की पहल पर निर्भर थीं?
उत्तर मेसोपोटामिया में कालांतर में अनेक भव्य नगरों का निर्माण हुआ जिनमें उरुक, लांगाश, बेबीलोन व मारी प्रमुख नगर थे। दक्षिणी मेसोपोटामिया में लगभग 5000 ई०पू० के आस-पास आर्थिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप नयी-नयी बस्तियाँ स्थापित होने लगी थीं। इन बस्तियों में से कुछ बस्तियों ने प्राचीन शहरों का रूप धारण कर लिया था। इन शहरों की स्थिति के अनुसार निम्नलिखित विशेषताएँ भी थीं

  • मंदिर के चारों तरफ विकसित शहर
  • व्यापारिक केंद्रों के आसपास विकसित शहर
  • शाही शहर।

मेसोपोटामिया के तत्कालीन देहातों में जमीन और पानी के लिए बार-बार लड़ाइयाँ होती रहती थीं। जब किसी क्षेत्र में लंबे समय तक लड़ाई चलती थीं, जो मुखिया लड़ाई में जीत जाते थे, वे अपने साथियों एवं अनुयायियों में लूट का माल बाँटकर उन्हें खुश कर देते थे और पराजित लोगों को बंदी बनाकर अपने साथ ले जाते थे। जिन्हें वे कालांतर में अपने चौकीदार या नौकर बना लेते थे। वे इस प्रकार अपना वर्चस्व बढ़ा लेते थे।

युद्ध में विजयी होने वाला मुखिया स्थायी रूप से समुदाय के मुखिया नहीं बने रहते थे। उनका स्थान दूसरे नेता भी ले लिया करते थे। कालांतर में इस प्रक्रिया में बदलाव तब आया जब इन नेताओं ने समुदायों के कल्याण की तरफ अधिक ध्यान देना प्रारंभ किया। परिणामस्वरूप नयी-नयी संस्थाएँ वे परिपाटियाँ स्थापित हो गईं। विजेता मुखिया ने मंदिर में देवताओं की मूर्तियों पर कीमती भेटें चढ़ाना शुरू कर दिया। इससे समुदाय के मंदिरों की सुंदरता बढ़ गई। एनमर्कर से जुड़ी कविताएँ व्यक्त करती हैं कि इस व्यवस्था ने राजा को ऊँचा स्थान दिलाया तथा उसका पूर्ण नियंत्रण स्थापित किया। पारस्परिक हितों को सुदृढ़ करने वाले विकास के एक ऐसे दौर की कल्पना कर सकते हैं। जिसमें मुखिया लोगों ने ग्रामीणों को अपने पास बसने के लिए प्रोत्साहित किया जिससे वे आवश्यकता पड़ने पर तुरंत अपनी सेना इकट्ठी कर सकें। एक अनुमान के अनुसार एक मंदिर को बनाने के लिए 1500 आदमियों को पाँच साल तक प्रतिदिन 10 घंटे काम में लगे रहना पड़ता था।

उपरोक्त आधारों से पता चला है कि नगरों की सामाजिक व्यवस्था में एक उच्च या संभ्रांत वर्ग भी उत्पन्न हो। चुका था और धन-दौलत का ज्यादातर हिस्सा इसी वर्ग के हाथों में केंद्रित था। इसकी पुष्टि उस शहर में राजाओं व रानियों की कब्रों व समाधियों से खुदाई के दौरान प्राप्त बहुमूल्य चीजों; जैसे-आभूषण, सोने के पात्र, सफ़ेद सीपियाँ और लाजवर्द जड़े हुए लकड़ी के वाद्ययंत्र, सोने के सजावटी खंजरों आदि से हुई है। कानूनी दस्तावेजों (विवाह, उत्तराधिकार आदि के मामलों से संबंधित) से पता चलता है कि मेसोपोटामिया के समाज में एकल परिवार को ही आदर्श माना जाता था।

हमें विवाह आदि से संबंधित प्रक्रियाओं की भी जानकारी मिली है। विवाह करने की इच्छा की घोषणा की जाती थी। और वधू के माता-पिता विवाह के लिए अपनी अनुमति व सहमति प्रदान करते थे। वर पक्ष के लोग वधू पक्ष को कुछ उपहार देते थे। विवाह की रस्म आदि के बाद दोनों पक्ष एक-दूसरे को उपहार देते थे और बैठकर भोजन करते थे। भोजन आदि के बाद मंदिर में जाकर भेंट चढ़ाते थे। जब नववधू को उसकी सास लेने आती थी, तब वधू को उसके पिता द्वारा उत्तराधिकार के रूप में उसका हिस्सा दे दिया जाता था। पिता का घर, जानवर, खेत आदि पैतृक संपत्ति उसके पुत्रों को मिलते थे।

सुव्यवस्थित प्रशासन व्यवस्था के अभाव में राज्य का कामकाज सुचारु ढंग से चलाना कठिन हो जाता था। अतः मेसोपोटामिया के शासकों ने एक सुव्यवस्थित प्रशासन व्यवस्था की नींव रखी। ऐसी प्रबंध व्यवस्था के कारण ही उस राज्य में शांति व सुव्यवस्था बनी रही जो मेसोपोटामिया के विकास के लिए आवश्यक था।

प्र० 6. किन पुरानी कहानियों से हमें मेसोपोटामिया की सभ्यता की झलक मिलती है?
उत्तर हमें मेसोपोटामिया की सभ्यता की झलक बाइबल के प्रथम भाग ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ के कई संदर्भो में देखने को मिलती है। उदाहरण के लिए, ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ की ‘बुक ऑफ जेनेसिस’ (Book of Genesis) में ‘शिमार’ (Shimar) का उल्लेख है जिसका तात्पर्य सुमेर ईंटों से बने शहर की भूमि से है। यूरोपवासी इस भूमि को अपने पूर्वजों की भूमि मानते हैं और जब इस क्षेत्र में पुरातत्त्वीय खोज की शुरुआत हुई तो ओल्ड टेस्टामेंट को अक्षरशः सिद्ध करने का प्रयास किया गया।

सन् 1873 में ब्रिटिश समाचार-पत्र ने ब्रिटिश म्यूजियम द्वारा प्रारंभ किए गए खोज अभियान का खर्च उठाया जिसके अंतर्गत मेसोपोटामिया में एक ऐसी पट्टिका (Tablet) की खोज की जानी थी जिस पर बाइबल में उल्लिखित जलप्लावन (Flood) की कहानी अंकित थी।

बाइबल के अनुसार, यह जलप्लावन पृथ्वी पर संपूर्ण जीवन को नष्ट करने वाला था। किंतु परमेश्वर ने जलप्लावन के बाद भी जीवन को पृथ्वी पर सुरक्षित रखने के लिए नोआ (Naoh) नाम के एक मनुष्य को चुना। नोआ ने एक बहुत विशाल नाव बनाई और उसमें सभी जीव-जंतुओं का एक-एक जोड़ा रख लिया और जब जलप्लावन हुआ तो बाकी सब कुछ नष्ट हो गया, पर नाव में रखे सभी जोड़े सुरक्षित बच गए। ऐसी ही एक कहानी मेसोपोटामिया के परंपरागत साहित्य में भी मिलती है। इस कहानी के मुख्य पात्र को ‘जिउसुद्र’ (Ziusudra) या ‘उतनापिष्टिम’ (Utnapishtim) कहा जाता था।

1960 के दशक में ओल्ड टेस्टामेंट की कहानियाँ अक्षरशः सही नहीं पाई गईं, लेकिन ये इतिहास में हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों के अतीत को अपने ढंग से अभिव्यक्त करती हैं। धीरे-धीरे पुरातात्त्विक तकनीकें अधिकाधिक उन्नत और परिष्कृत होती गईं। यहाँ तक कि आम लोगों के जीवन की भी परिकल्पना की जाने लगी। बाइबल कहानियों की अक्षरशः सच्चाई को प्रमाणित करने का कार्य गौण हो गया। ऐसी ही जलप्लावन की घटना का उल्लेख छायावादी कवि ‘जयशंकर प्रसाद जी ने अपने महाकाव्य ‘कामायनी’ में वर्णित किया है। इस जलप्लावन में शेष जीवित प्राणियों में मनु-श्रद्धा व इड़ा को दिखाया गया है। उनके द्वारा सृष्टि की रचना का काम पुनः शुरू हो गया था।

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