CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi A Set 4

CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi A Set 4

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निर्धारित समय : 3 घण्टे
अधिकतम अंक : 80

सामान्य निर्देश

* इस प्रश्न-पत्र में चार खण्ड हैं
खण्ड (क) : अपठित अंश -15 अंक
खण्ड (ख) : व्यावहारिक व्याकरण -15 अंक
खण्ड (ग) : पाठ्य पुस्तक एवं पूरक पाठ्य पुस्तक -30 अंक
खण्ड (घ) : लेखन -20 अंक
* चारों खण्डों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
* यथासंभव प्रत्येक खण्ड के प्रश्नों के उत्तर क्रमश: दीजिए।

खण्ड (क) : अपठित अंश

प्र. 1. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए
सुबुद्ध वक्ता अपार जनसमूह का मन मोह लेता है, मित्रों के बीच सम्मान और प्रेम का केन्द्रबिन्दु बन जाता है। बोलने का विवेक, बोलने की कला और पटुता व्यक्ति की शोभा है, उसका आकर्षण है। जो लोग अपनी बात को राई का पहाड़ बनाकर उपस्थित करते हैं, वे एक ओर जहाँ सुनने वाले के धैर्य की परीक्षा लिया करते हैं, वहीं अपना और दूसरे का समय भी अकारण नष्ट किया करते हैं। विषय से हटकर बोलने वालों से, अपनी बात को अकारण खींचते चले जाने वालों से तथा ऐसे मुहावरों और कहावतों का प्रयोग करने वालों से जो उस प्रसंग में ठीक ही न बैठ रहे हों, लोग ऊब जाते हैं। वाणी का अनुशासन, वाणी का संयम और संतुलन तथा वाणी की मिठास ऐसी शक्ति है जो हर कठिन स्थिति में हमारे अनुकूल ही रहती है, जो मरने के पश्चात भी लोगों की स्मृतियों में हमें अमर बनाए रहती है। हाँ, बहुत कम बोलना या सदैव चुप लगाकर बैठे रहना भी बुरा है। यह हमारी प्रतिभा और तेज को कुंद कर देता है। अतएव कम बोलो, सार्थक और हितकर बोलो। यही वाणी का तप है।।
(i) व्यक्ति की शोभा और आकर्षण किसे बताया गया है?
(ii) कैसे व्यक्तियों से लोग ऊब जाते हैं?
(iii) वाणी का तप किसे कहा गया है?
(iv) बहुत कम बोलना भी अच्छा क्यों नहीं है?
(v) ‘राई का पहाड़ बनाना’ मुहावरे का अर्थ लिखिए।

प्र. 2. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए

क्या रोकेंगे प्रलय मेघ ये, क्या विद्युत-घन के नर्तन,

मुझे न साथी रोक सकेंगे, सागर के गर्जन-तर्जन।।

मैं अविराम पथिक अलबेला रुके न मेरे कभी चरण,
शूलों के बदले फूलों का किया न मैंने मित्र चयन ।
मैं विपदाओं में मुसकाता नव आशी के दीप लिए,
फिर मुझको क्या रोक सकेंगे जीवन के उत्थान पतन ।

मैं अटका कब, कब विचलित मैं, सतत डगर मेरी संबल,
रोक सकी पगले कब मुझको यह युग की प्राचीर निबल ।
आंधी हो, ओले वर्षा हों, राह सुपरिचित है मेरी,
फिर मुझको क्या डरा सकेंगे ये जंग के खंडन-मंडन।

मुझे डरी पाए कब अंधड़, ज्वालामुखियों के कंपन,
मुझे पथिक कब रोक सके हैं, अग्निशिखाओं के नर्तन।
मैं बढ़ता अविराम निरंतर तन मन में उन्माद लिए, ।
फिर मुझको क्या डरा सकेंगे, ये बादल-विद्युत नर्तन।
(i) कविता में आए मेघ, सागर की गर्जना और ज्वालामुखी किनके प्रतीक हैं? कवि ने उनका संयोजन यहाँ क्यों किया है?
(ii) ‘शूलों के बदले फूलों का किया न मैंने चयन’–पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
(iii) ‘युग की प्राचीर’ से क्या तात्पर्य है?
(iv) उपर्युक्त काव्यांश के आधार पर कवि के स्वभाव की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(v) उत्थान-पतन’ शब्द में समास बताइए।

खण्ड (ख) : व्यावहारिक व्याकरण

प्र. 3. निर्देशानुसार उत्तर लिखिए
(क) अध्यापिका ने छात्रा की प्रशंसा की तथा उसका उत्साह बढ़ाया। (मिश्र वाक्य में बदलिए)
(ख) जो ईमानदार है वही सम्मान का सच्चा अधिकारी है। (सरल वाक्य में बदलिए)
(ग) ज्यों ही घंटी बजी छात्र अंदर चले गए। (रचना के आधार पर वाक्य भेद लिखिए)

प्र. 4. निम्नलिखित वाक्यों में वाच्य परिवर्तन कीजिए
(क) हम रात भर कैसे जागेंगे? (भाववाच्य में बदलिए)
(ख) तानसेन को संगीत सम्राट कहते हैं। (कर्तृवाच्य में बदलिए)
(ग) उनके द्वारा कैप्टन की देशभक्ति का सम्मान किया गया। (कर्तृवाच्य में बदलिए)
(घ) माँ ने अवनि को पढ़ाया। (कर्मवाच्य में बदलिए)

प्र. 5. रेखांकित पदों का पद परिचय लिखिए
(क) आज समाज में विभीषणों की कमी नहीं है।
(ख) रात में देर तक बारिश होती रही।
(ग) हर्षिता निबंध लिख रही है।
(घ) इस पुस्तक में अनेक चित्र हैं।

प्र. 6. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए
(क) श्रृंगार रस के भेदों के नाम लिखिए।
(ख) करुण रस का मूल स्थायी भाव लिखिए।
(ग) अद्भुत रस का अनुभाव लिखिए।
(घ) हास्य रस से संबंधित काव्य पंक्तियाँ लिखिए।

खण्ड (ग) : पाठ्य पुस्तक एवं पूरक पाठ्य पुस्तक

प्र. 7. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए
पढ़ने-लिखने में स्वयं कोई बात ऐसी नहीं जिससे अनर्थ हो सके। अनर्थ का बीज उसमें हरगिज नहीं। अनर्थ पुरुषों से भी होते हैं। अपढ़ों और पढ़े-लिखों, दोनों से अनर्थ, दुराचार और पापाचार के कारण और ही होते हैं और वे व्यक्ति विशेष का चाल-चलन देखकर जाने भी जा सकते हैं। अतएव स्त्रियों को अवश्य पढ़ाना चाहिए।

जो लोग यह कहते हैं कि पुराने जमाने में यहाँ स्त्रियाँ न पढ़ती थीं अथवा उन्हें पढ़ने की मुमानियत थी वे या तो इतिहास से अभिज्ञता नहीं रखते या जानबूझकर लोगों को धोखा देते हैं। समाज की दृष्टि में ऐसे लोग दंडनीय हैं क्योंकि स्त्रियों को निरक्षर रखने का उपदेश देना समाज का अपकार और अपराध करना है-समाज की उन्नति में बाधा डालना है।
(क) कुछ लोग स्त्री शिक्षा के विरोध में क्या तर्क देते हैं और क्यों ?
(ख) अनर्थ का मूल स्रोत कहाँ होता है?
(ग) स्त्री शिक्षा के विरोधी दंडनीय क्यों हैं?

प्र. 8. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए
(क) देवदार की छाया और फादर कामिल बुल्के के व्यक्तित्व में क्या समानता थी?
(ख) शिष्या ने डरते हुए बिस्मिल्ला खाँ से क्या कहा? खाँ साहब ने उसे कैसे समझाया?
(ग) बालगोबिन भगत की पुत्रवधू की ऐसी कौन सी इच्छा थी जिसे वे पूरा न कर सके? कारण स्पष्ट कीजिए।
(घ) “एक कहानी यह भी’ नामक पाठ की लेखिका मन्नू भंडारी का साहित्य की अच्छी पुस्तकों से परिचय कैसे हुआ?

प्र. 9. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए
बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूकि पहारू।।
इहाँ कुम्हड़बतिआ कोउ नाहीं । जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।
देखि कुठारु सरासन बाना । मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी ।।
सुर महिसुर हरिजन अरू गाई । हमरे कुल इन्ह पर न सुराई ।।
बधे पापु अपकीरति हारें । मारतहू पा परिअ तुम्हारें ।।
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
(क) रघुकुल की परंपरा की क्या विशेषताएँ बताई गई हैं?
(ख) “इहाँ कुम्हड़बतिआ कोउ नाहीं । जे तरजनी देखि मरि जाहीं।” कहकर लक्ष्मण ने अपनी कौन सी विशेषता बताई है?
(ग) प्रस्तुत काव्यांश में ‘कुम्हड़बतिया’ शब्द किसके लिए प्रयोग किया गया है?

प्र. 10. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए
(क) ‘आत्मकथ्य’ कविता में जीवन के किस पक्ष का वर्णन किया गया है।
(ख) श्री सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित कविता ‘उत्साह के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
(ग) ‘कन्यादान’ कविता में वस्त्र और आभूषणों को शाब्दिक भ्रम क्यों कहा गया है?
(घ) मुख्य गायक एवं संगतकार के मध्य जुड़ी कड़ी अगर टूट जाए तो उसके क्या परिणाम हो सकते हैं? स्पष्ट कीजिए।

प्र. 11. ‘साना-साना हाथ जोडि’ पाठ में कहा गया है कि कटाओ पर किसी दुकान का न होना वरदान है। ऐसा क्यों ? भारत के अन्य प्राकृतिक स्थानों को वरदान बनाने में नवयुवकों की क्या भूमिका हो सकती है? स्पष्ट कीजिए।

अथवा

‘माता का अंचल’ पाठ में वर्णित तत्कालीन विद्यालयों के अनुशासन से वर्तमान युग के विद्यालयों के अनुशासन की तुलना करते हुए बताइए कि आप किस अनुशासन व्यवस्था को अच्छा मानते हैं और क्यों ?

खण्ड (घ) : लेखन

प्र. 12. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत बिन्दुओं के आधार पर लगभग 200 से 250 शब्दों में निबंध लिखिए
(क) स्वच्छ भारत : एक कदम स्वच्छता की ओर

  • प्रस्तावना
  • स्वच्छता का महत्व
  • वर्तमान समय में स्वच्छता को लेकर भारत की स्थिति
  • स्वच्छ भारत अभियान का आरम्भ एवं लक्ष्य
  • उपसंहार

(ख) ऊर्जा की बढ़ती माँग : समस्या और समाधान

  • प्रस्तावना
  • ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों का समाप्त होना
  • नवीन स्रोतों की आवश्यकता
  • हमारी ऊर्जा पर निर्भरता
  • उपसंहार

(ग) सामाजिक संजाल (सोशल नेटवर्किंग)-वरदान या अभिशाप

  • प्रस्तावना
  • सोशल नेटवर्किंग के लाभ
  • सोशल नेटवर्किंग से हानियाँ
  • उचित प्रयोग के लिए सुझाव
  • उपसंहार

प्र. 13. आपकी कक्षा के कुछ छात्र छोटी कक्षाओं के विद्यार्थियों को सताते हैं। इस समस्या के बारे में प्राचार्य जी को पत्र लिखकर बताएँ और कोई उपाय भी सुझाइए।

अथवा

आज दिन-प्रतिदिन सूचना और संचार माध्यम लोगों के बीच लोकप्रिय होते जा रहे हैं। ऐसे में पत्र लेखन पीछे छूटता जा रहा है। पत्र लेखन का महत्व बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए।

प्र. 14. आपके शहर में विश्व पुस्तक मेले का आयोजन होने जा रहा है। इसके लिए 25 से 50 शब्दों में विज्ञापन तैयार कीजिए।

अथवा

आपकी बड़ी बहन ने एक संगीत सिखाने की संस्था खोली है। इसके लिए 25 से 50 शब्दों में विज्ञापन तैयार कीजिए।

उत्तरमाला
खण्ड (क)

उत्तर 1. (i) बोलने का विवेक और कला-पटुता को व्यक्ति की शोभा और आकर्षण कहा गया है। इसी के कारण वह मित्रों के बीच सम्मान और प्रेम का केन्द्रबिन्दु बन जाता है।
(ii) विषय से हटकर बोलने वालों से, अपनी बात को अकारण खींचते चले जाने वालों से और ऐसे मुहावरों, कहावतों का प्रयोग करने वालों से जो उस प्रसंग में ठीक ही न बैठ रहे हों, ऐसे व्यक्तियों से लोग ऊब जाते हैं।
(ii) अनुशासित, संयमित, संतुलित, सार्थक और हितकर बोलना वाणी का तप कहा गया है।
(iv) बहुत कम बोलना भी अच्छा नहीं है क्योंकि यह हमारी प्रतिभा और तेज को कुंद कर देती है।
(v) ‘राई का पहाड़ बनाना’-बढ़ा-चढ़ाकर बात करना।

उत्तर 2. (i) कविता में आए मेघ, सागर की गर्जना और ज्वालामुखी भीषण बाधाओं और संकटों के प्रतीक हैं। कवि ने इनका संयोजन संघर्षशीलता और हिम्मत को दिखाने के लिए किया है।
(ii) कवि ने अपने जीवन में हमेशा संघर्षों और चुनौतियों का कठिन मार्ग चुना। उन्होंने कभी फूलों का अर्थात् सुख-सुविधाओं युक्त मार्ग नहीं चुना।
(iii) युग की प्राचीर’ का आशय है-संसार की बाधाएँ।
(iv) कवि का स्वभाव साहसी और संघर्षशील है।
(v) उत्थान और पतन में द्वंद्व समास है।

खण्ड (ख)

उत्तर 3. (क) जब अध्यापिका ने छात्रा की प्रशंसा की तो उसका उत्साह बढ़ गया।
(ख) ईमानदार ही सम्मान का सच्चा अधिकारी है।
(ग) मिश्र वाक्य।

उत्तर 4, (क) हमसे रात भर कैसे जागा जाएगा।
(ख) तानसेन को संगीत सम्राट कहा जाता है।
(ग) : उन्होंने कैप्टन की देशभक्ति का सम्मान किया।
(घ) माँ द्वारा अवनि को पढ़ाया गया।

उत्तर 5. (क) विभीषणों-जातिवाचक संज्ञा, बहुवचन, पुल्लिंग, संबंधकारक।
(ख) देर तक-कालवाचक क्रिया-विशेषण, ‘होती रही क्रिया की विशेषता बता रहा है।
(ग) लिख रही है-सकर्मक क्रिया, स्त्रीलिंग, एकवचन, वर्तमान काल, कर्तृवाच्य।
(घ) अनेक-अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण, पुल्लिंग, बहुवचन, ‘चित्र’ विशेष्य का विशेषण ।

उत्तर 6. (क) श्रृंगार रस के भेद-संयोग श्रृंगार रस, वियोग श्रृंगार।
(ख) करुण रस का स्थायी भाव शोक है।
(ग) अद्भुत रस का अनुभाव-रोमांच, आँखें फाड़कर देखना, काँपना, गद्गद् होना।
(घ) हाथी जैसी देह है, गैंडे जैसी खाल।
तरबूजे सी खोपड़ी, खरबूजे से गाल।।

खण्ड (ग)

उत्तर 7. (क) लोग स्त्री शिक्षा के विरोध में यह तर्क देते हैं कि पुराने जमाने में यहाँ स्त्रियाँ पढ़ती न थीं और उनके पढ़ने पर रोक थी। ऐसा वे इसलिए कहते हैं क्योंकि वे इतिहास से अनभिज्ञ हैं।
(ख) अनर्थ का मूल स्रोत किसी व्यक्ति के चरित्र में होता है। कुसंस्कार, कुसंगति, कुत्सित विचार जो उसे अनर्थ करने के लिए प्रेरित करते हैं।
(ग) स्त्री शिक्षा के विरोधी दंडनीय हैं क्योंकि ऐसे लोग स्त्रियों को निरक्षर रखकर समाज का अपकार करते हैं तथा सामाजिक उन्नति में बाधा डालते हैं।

उत्तर 8. (क) देवदार की छाया शीतल और मन को शांत करने वाली होती है। फादर, लेखक और उसके साथियों के साथ हँसी-मजाक में निर्लिप्त शामिल रहते, गोष्ठियों में गंभीर बहस करते तथा उनकी रचनाओं पर बेबाक राय देते। घरेलू उत्सवों और संस्कार में बड़े भाई और पुरोहित जैसे खड़े होकर आशीषों से भर देते। इसी कारण लेखक को फादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी लगती थी।
(ख) शिष्या ने बिस्मिल्ला खाँ को फटी लुंगी पहने हुए देखकर डरते हुए कहा कि आपकी इतनी प्रतिष्ठा है, अब तो भारत रत्न भी मिल चुका है और आप फटी लुंगी पहने रहते हैं। शिष्या के ऐसा कहने पर उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ साहब ने उसे समझाते हुए कहा कि ठीक है आगे से नहीं पहनेंगे, किन्तु बनाव सिंगार में लगे रहते तो शहनाई कैसे होती।
(ग) बालगोबिन भगत की पुत्रवधू की इच्छा थी कि वह अपने पति की मृत्यु के बाद बालगोबिन भगत के पास ही रहे क्योंकि वह बुढ़ापे में अपने ससुर की सेवा करना चाहती थी, किन्तु भगत अपनी पुत्रवधू का पुनर्विवाह कराने के पक्ष में थे।
(घ) हिन्दी की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल के संपर्क में आने के बाद मन्नू भंडारी का साहित्य की अच्छी पुस्तकों से परिचय हुआ। शीला अग्रवाल ने मात्र पढ़ने को, चुनाव करके पढ़ने में बदला।

उत्तर 9. (क) रघुकुल की परंपरा की विशेषताएँ बताई गई हैं कि देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गाय इन सभी पर रघुकुल के व्यक्ति अपनी वीरता का प्रदर्शन नहीं करते हैं।
(ख) लक्ष्मण ने कहा कि हमें कुम्हड़े के पौधे की तरह मत समझिए, जो तर्जनी उंगली के दिखाने से मुरझा जाते हैं। इस प्रकार लक्ष्मण ने अपनी निर्भीकता और वीरता को प्रदर्शित किया।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश में यह शब्द बहुत कमजोर और निर्बल व्यक्तियों के लिए प्रयोग किया गया है।

उत्तर 10. (क) ‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि ने जीवन के यथार्थ और अभाव पक्ष का वर्णन किया है। उनका मन खाली गागर के समान है।
(ख) कविता का शीर्षकउत्साह’ इसलिए रखा गया है क्योंकि बादल वर्षा करके पीड़ित प्यासे जन की आकांक्षा को पूरा करके उनके जीवन में आशा, उत्साह और नई चेतना का संचार करते हैं। (ग) शब्दों के भ्रम की तरह नारी जीवन भर वस्त्र और आभूषणे के मोहपाश में बंधी रहती हैं। इसलिए कवि ने वस्त्राभूषणों को ‘शाब्दिक भ्रम’ कहकर उन्हें नारी जीवन का बंधन माना है।
(घ) मुख्य गायक एवं संगतकार के मध्य जुड़ी कड़ी यदि टूट जाए तो मुख्य गायक का गायन सफलतापूर्वक पूर्ण नहीं हो पाएगा। जब मुख्य गायक अपने सुरों से भटकने लगेगा तो कोई स्थायी को संभालने वाला नहीं होगा।

उत्तर 11. ‘कटाओ’ को अपनी स्वच्छता और नैसर्गिक सौंदर्य के कारण हिन्दुस्तान का स्विट्जरलैंड कहा जाता है। यह सुंदरता आज इसलिए विद्यमान है क्योंकि यहाँ कोई दुकान आदि नहीं है, इस स्थान का व्यवसायीकरण नहीं हुआ है। कटाओ’ अभी तक पर्यटक स्थल नहीं बना है। प्रकृति अपने पूर्ण वैभव के साथ यहाँ दिखाई देती है।

आज के नवयुवक विशेष अभियान चलाकर प्राकृतिक स्थानों को गंदगी-मुक्त करके अपना योगदान दे सकते हैं। वे पर्यटकों तथा अन्य लोगों को प्राकृतिक वातावरण की सुरक्षा के प्रति जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

अथवा

‘माता का अंचल’ पाठ में जिस विद्यालय का वर्णन है वहाँ अध्यापक बच्चों की पिटाई करके, उन्हें शारीरिक दंड देकर अनुशासन में रखते थे। आज के विद्यालयों में शारीरिक दंड देना वर्जित है। आजकल विद्यार्थियों को समझा-बुझाकर अनुशासन में रखा जाता है। विद्यालय में परामर्शदाता की नियुक्ति की जाती है। परामर्शदाता शैक्षिक मार्गदर्शन देकर छात्रों को आत्म-समायोजन तथा सामाजिकसमायोजन में सहायता प्राप्त करते हैं।

आज के विद्यालयों में जो अनुशासन व्यवस्था है वह पुराने तरीके से अधिक अच्छी है।

खण्ड (घ)

उत्तर 12.(क) स्वच्छ भारत एक कदम स्वच्छता की ओर
प्रस्तावना–प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू की गई यह पहल एक स्वच्छता अभियान है जिसे एक स्वच्छ भारत की कल्पना की दृष्टि से लागू किया गया। इसे महात्मा गाँधी की जयंती पर भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया। उनका सपना था भारत को एक स्वच्छ राष्ट्र बनाना।

स्वच्छता का महत्व-स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छता का विशेष महत्व है। स्वच्छता को अपनाने से हम सब रोग मुक्त रह सकेंगे और एक स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण कर सकेंगे। हर व्यक्ति को जीवन में स्वच्छता अपनानी चाहिए और अन्य लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए। गंदगी के कारण कई प्रकार की बीमारियाँ फैलती हैं जिससे हम सब ग्रसित हो सकते हैं। ऐसी बीमारियों से बचे रहने के लिए स्वच्छता बहुत जरूरी है।

वर्तमान समय में स्वच्छता को लेकर भारत की स्थिति-केन्द्र सरकार के स्वच्छ भारत अभियान ने देश के प्रत्येक व्यक्ति को स्वच्छता की ओर उन्मुख किया है और स्वच्छता को अपने जीवन का हिस्सा बनाने के लिए प्रेरित किया है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नवीन आँकड़ों पर दृष्टिपात करें तो हम पायेंगे कि देश के छोटे शहरों से ज्यादा बड़े शहरों में गन्दगी का फैलाव बहुत बड़े पैमाने पर है। आज भी हमारे देश में 6 करोड़ टन कचरा हर वर्ष पैदा होता है और यह दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है। कई टन कचरा केवल दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई जैसे बड़े शहरों में पैदा हो रहा है। आज भी भारत में कई लोग खुले में शौच के लिए जाते हैं। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत में स्वच्छता के प्रति कितनी लापरवाही और अरुचि है।

स्वच्छता भारत अभियान का आरंभ एवं लक्ष्य-स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत 2 अक्टूबर के दिन गाँधी जी की समाधि राजघाट पर जाकर नरेन्द्र मोदी जी ने श्रद्धांजलि अर्पित करके की। इसका लक्ष्य है संपूर्ण भारत को स्वच्छ बनाना और सफाई के प्रति लोगों को जागरूक करना । स्वच्छ भारत अभियान को पूरा करने के लिये पाँच वर्ष (2 अक्टूबर, 2019) तक की अवधि निश्चित की गयी है। इस अभियान पर लगभग दो लाख करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। इसके अन्तर्गत 4,041 शहरों को सम्मिलित किया जायेगा। इस अभियान की सफलता के लिये, पेयजल व स्वच्छता मन्त्रालय 1 लाख 34 हजार करोड़ और केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय 62 करोड़ की सहायता प्रदान करेंगे।

उपसंहार-वर्तमान समय में स्वच्छता हमारे लिए एक बड़ी आवश्यकता है। यह समय भारतवर्ष के लिए बदलाव का समय है। बदलाव के इस दौर में यदि हम स्वच्छता के क्षेत्र में पीछे रह गए तो आर्थिक उन्नति का कोई महत्व नहीं रहेगा। हमारे लिए प्रदूषण एक बड़ी चुनौती है, हमें अपने दैनिक जीवन में सफाई को एक दिनचर्या की तरह शामिल करने की जरूरत है साथ ही हमें इसे एक बड़े स्तर पर देखना जरूरी है।

(ख) ऊर्जा की बढ़ती माँग : समस्या और समाधान
प्रस्तावना-भू-तापीय ऊर्जा जिसे जियोथर्मल पॉवर कहते हैं, जिसका अर्थ है पृथ्वी और ताप। यह वह ऊर्जा है जिसे पृथ्वी में संगृहीत ताप से निकाला जाता है। यह भू-तापीय ऊर्जा, ग्रह के मूल गठन से, खनिजे के रेडियोधर्मी क्षय से और सतह पर अवशोषित सौर ऊर्जा से उत्पन्न होती है।

ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों का समाप्त होना-आधुनिक युग से पूर्व मनुष्य का जीवन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर आधारित था, परन्तु आज का मनुष्य जीवाश्म स्रोतों (पेट्रोल, डीजल, गैस और कोयला) पर पूरी तरह से निर्भर हो चुका है। ऊर्जा के जीवाश्म स्रोत एक बार ही उपयोग में लाये जाते हैं। दूसरा इनका भण्डार सीमित है और इससे बड़े पैमाने पर प्रदूषण उत्पन्न होता है। यह चिंता का विषय है कि अगर ऊर्जा के जीवाश्म स्रोत खत्म हो गए तो क्या होगा?

यह सच है कि ऊर्जा के बिना जीवन संभव नहीं है। इसलिए ऊर्जा के उन स्रोतों को अपनाना होगा जो कभी खत्म नहीं होंगे।

नवीन स्रोतों की आवश्यकता-हम सभी जानते हैं कि वर्तमान में ऊर्जा के प्राथमिक स्रोत का सीमित भंडार है। वर्तमान ऊर्जा स्रोत जीवाश्म पर आधारित है। कभी न कभी आने वाले समय में पृथ्वी के तेल भंडार खत्म हो जायेंगे और उस समय हमें ऊर्जा के वैकल्पिक संसाधनों पर पूर्णत: निर्भर होना होगा। बहुत से देशों ने पारंपरिक सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा तथा जल ऊर्जा को अपना लिया है। हमें भी इन वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर होना सीखना होगा।

हमारी ऊर्जा पर निर्भरता-हमारी ऊर्जा पर निर्भरता इतनी बढ़ गई है कि उसके बिना हमारा कोई भी कार्य संभव नहीं हो सकता। जैसे कि बिना बिजली के हम गर्मियों में ठंडा पानी, पंखे, ए.सी. आदि का उपयोग नहीं कर पायेंगे, बिना पानी के हमारी प्यास और साफ सफाई का कार्य संभव नहीं, बिना ईंधन के खाना पकाना संभव नहीं। हम हर प्रकार से ऊर्जा पर निर्भर करते हैं इसके बिना जीवन असंभव सा प्रतीत होता है।

उपसंहार-हम सभी जानते हैं कि एक न एक दिन ऊर्जा के स्रोत खत्म हो जायेंगे क्योंकि ऊर्जा के सीमित स्रोत है और भविष्य के लिए भी कम ही होगा। इसलिए हमें ऊर्जा के नए स्रोत खोजने होंगे और उन्हें अपने उपयोग में लाना होगा, जिससे हमारी सारी जरूरतों की पूर्ति होती रहे।

(ग) सामाजिक संजाल (सोशल नेटवर्किंग) : वरदान या अभिशाप
प्रस्तावना-सोशल मीडिया एक अपरंपरागत मीडिया है। इसे वर्चुअल वर्ल्ड भी कहते हैं जिसे इंटरनेट के माध्यम से देखा जा सकता है। सोशल मीडिया एक विशाल नेटवर्क है जिससे सारी दुनिया एक दूसरे से जुड़ी हुई है। यह दूरसंचार का सबसे अच्छा माध्यम है। यह हर प्रकार की सूचना को एक जगह से दूसरी जगह तक कम समय में पहुँचाता है। यह सबसे आसान जरिया है एक दूसरे से जुड़े रहने के लिए।

सोशल नेटवर्किंग के लाभ-सोशल नेटवर्किंग के लाभ हैं कि ये कम समय में किसी से भी हमारी बात या उस दूसरे व्यक्ति तक हमारी बात पहुँचा सकता है। सोशल नेटवर्किंग के जरिये हम अपने अकेलेपन से दूर हो सकते हैं। अपने दूर के दोस्तों और रिश्तेदारों से जुड़े सकते हैं। दुनिया में क्या चल रहा है इसकी सारी जानकारी एक जगह पर आसानी से प्राप्त की जा सकती है।

सोशल नेटवर्किंग से हानियाँ-सोशल नेटवर्क के लाभ के साथ हानियाँ भी जुड़ी हुई हैं। सोशल नेटवर्क एक प्रकार से लत है जो अगर एक बार लग जाती है तो उससे पीछा छुड़ाना आसान नहीं होता। इससे लोगों को भावनात्मक और मानसिक तनाव होना शुरू हो जाता है। यह हमारे जीवन का एक अंग बन जाता है, अगर एक बार भी दिन में सोशल साईट पर जाकर नहीं बैठते तो इससे पूरे दिन में कुछ कमी भी महसूस होने लगती है। इसके कारण हमें अपने परिवार, दोस्त, सगे संबंधी से भी दूर होते चले जाते हैं।

दूसरा नुकसान यह है कि आपकी निजी जानकारी चोरी होने का डर रहता है। नेटवर्क हेक कर इन पर कुछ आपत्तिजनक चीजें भी आती हैं जोकि बच्चों के लिए अच्छी नहीं होती। फोटो का गलत इस्तेमाल कर बहुत ही खराब चीजें नेटवर्किंग साइट पर डाल दी जाती हैं। जिससे बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए सोशल नेटवर्किंग कहीं न कहीं हम सबके लिए हानिकारक भी है। सोशल साइट का ज्यादा लम्बे समय तक प्रयोग न करें। कई बार लोग पूरा दिन इन साइट पर ही बिता देते हैं।

अपनी निजी जानकारी सोशल साइट पर अपलोड न करें और निजी तस्वीरें भी नहीं अपलोड करनी चाहिए। बच्चों को अपनी निगरानी में सोशल साइट पर जाने दें। अपनी सही जानकारी कभी भी अपलोड नहीं करनी चाहिए।

उपसंहार-सोशल साइट हमारे लिए वरदान है तो साथ ही अभिशाप भी है। लोग इसका सही उपयोग कम और गलत तरीके से उपयोग ज्यादा करते हैं। जिसके कारण इसका नुकसान सिर्फ हमें भुगतना पड़ता है। हमें सोशल साइट पर जाना चाहिए पर सही कार्य के लिए और इसके अभ्यस्त (आदी) भी नहीं होना चाहिए।

उत्तर 13. सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय,
पब्लिक स्कूल,
कमलानगर,
लखनऊ
दिनांक : 10 मई 20xx
विषय-कुछ छात्रों द्वारा छोटी कक्षा के छात्रों को सताने हेतु।
आदरणीय महोदय,
मैं आपके विद्यालय में कक्षा दसव(अ) की छात्रा हूँ। मेरी कक्षा के कुछ छात्र मध्याह्न भोजन के समय छोटी कक्षाओं के विद्यार्थियों को सताते हैं और उनका भोजन भी छीन लेते हैं। इसके कारण छोटी कक्षा के बच्चे बहुत परेशान हैं। डर के कारण उनकी शिकायत अध्यापकों से नहीं करते हैं क्योंकि मेरी कक्षा के बच्चे उन्हें शिकायत करने पर सबक सिखाने की धमकी देते हैं।

इस समस्या से छोटी कक्षा के छात्रों को बचाने के लिए मध्याह्न भोजन के समय हर कक्षा में एक अध्यापक और प्रांगण में आप खुद एक बार देखने जाया करें। इससे आपको ज्ञात हो जाएगा कि वे कौन-से छात्र हैं जो छोटी कक्षा के छात्रों को परेशान करते हैं।
सधन्यवाद।
आपकी आज्ञाकारी छात्रा
क.ख.ग.
कक्षा-दसर्वी(अ)

अथवा

अजय तिवारी
महावीर सदन
गली नं. 10, राम नगर
उज्जैन
दिनांक : 8 मई 20xx
प्रिय विवेकनी,
प्रेम!
आशा है, तुम प्रसन्न होगी। कई दिन हो गए, तुम्हें पत्र लिखे।
प्रिय माला! मैं जब भी तुम्हें टेलीफोन करता हूँ तो अच्छा लगता है। परन्तु ऐसा लगता है कि मैं तुम्हें पत्र द्वारा जो कह सकता हूँ, वह टेलीफोन पर नहीं कह सकता। पता नहीं, कौन-सा संकोच अपने मन की सारी बात कहने से मुझे रोकता है। शायद कहने वाला कुछ गहरी बात कहना चाहता है। वह सामने वाले की प्रतिक्रिया न तो चाहता है और न ही उससे अपनी भावधारा भंग करना चाहता है, परन्तु टेलीफोन पर यह संभव नहीं होता कि सामने से तुरंत प्रतिक्रिया न आए। यह तुरंत प्रतिक्रिया बात को और कहीं मोड़कर वाँछित संदेश नहीं पहुँचने देती। मुझे लगता है कि पत्र-लेखन सबसे गहरे संवाद का माध्यम है। इसमें एक निर्बाध वक्ता होने का सुख है। अपने मन की गहरी से गहरी और सूक्ष्म से सूक्ष्म बात कहने का सशक्त माध्यम है। यह माध्यम बना रहना चाहिए। जैसे फास्ट फूड भोजन का विकल्प नहीं हो सकता, उसी प्रकार संचार माध्यम भी पत्र-लेखन के विकल्प नहीं हो सकते। अपने पत्र में मेरे इन विचारों पर अपनी टिप्पणी देना। तुम्हारा मित्र
अजय तिवारी

उत्तर 14.

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अथवा

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