NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 9 आत्मत्राण

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 9 आत्मत्राण

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 9 आत्मत्राण

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 9 आत्मत्राण.

प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?
उत्तर
कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि वे विपत्ति का सामना करने के लिए शक्ति प्रदान करें। निर्भयता का वरदान दें ताकि वह संघर्षों से विचलित न हो। वह अपने लिए सहायक नहीं आत्मबल और पुरुषार्थ चाहता है। सांत्वना-दिलासा नहीं बहादुरी चाहता है। वंचना, निराशा और दुखों के बीच प्रभु की कृपा शक्ति और सत्ता में आत्म-विश्वास का भाव चाहता है।

प्रश्न 2.
‘विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं-कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है?
उत्तर
‘विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं’- के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि हे ईश्वर ! मेरे जीवन में जो भी दुख और कष्ट आने वाले हैं आप उनसे मुझे मत बचाओ। मैं आपसे इसको सहने के लिए साहस और शक्ति माँगता हूँ ताकि इन दुखों से घबराकर हार न मान बैठें। मैं साहसपूर्वक इनसे संघर्ष करना चाहता हूँ।

प्रश्न 3.
कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?
उत्तर
कवि जीवन संघर्ष में सहायक न मिलने पर ईश्वर को कोई दोष नहीं दे रहा है, बल्कि प्रभु से प्रार्थना कर रहा है कि विपत्ति में उसका बल और पौरुष न हिले यदि समस्त संसार भी उसके साथ धोखा करे तो भी उसका आत्मबल और विश्वास न डिगे। वह साहस और दृढ़ता से आपदाओं को कुचल दे।।

प्रश्न 4.
अंत में कवि क्या अननुय करता है?
उत्तर
अंत में कवि ईश्वर से यही प्रार्थना करता है कि सुख के पलों में भी वह ईश्वर को न भूले तथा इस समय में उसे प्रभु का चेहरा बार-बार नज़र आए। वह यह भी याद रखना चाहता है कि ये सुख भी उसके प्रभु की ही देन है। वह दुख के समय में प्रभु पर आस्था और विश्वास बनाए रखना चाहता है। वह किसी भी स्थिति में न अपने प्रभु पर विश्वास कम होने देना चाहता है और न उनकी शक्तियों के प्रति शंकाग्रस्त होना चाहता है।

प्रश्न 5.
“आत्मत्राण’ शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
“आत्मत्राण’ कविता के संदर्भ में यह शीर्षक पूर्णरूप से सार्थक है। आत्मत्राण का अर्थ है-अपने भाव से निवारण या बचाव। कवि अपने मन के भय से छुटकारा पाना चाहता है और ईश्वर से इसी छुटकारे के लिए शक्ति प्राप्त करना चाहता है। वह जीवन की हर परिस्थिति का निर्भय होकर सामना करना चाहती है। वह समस्त विपदा, भय, ताप-दुख, हानि-लाभ और
वंचना स्वयं झेलने को तैयार है। केवल आत्मबल, पौरुष व आस्था का सहारा लेकर आत्मत्राण की कामना करता है।

प्रश्न 6.
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त क्या-क्या प्रयास करते हैं?
उत्तर
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए मैं ईश्वर से प्रार्थना के अतिरिक्त निम्नलिखित प्रयास करता हूँ-

  1. इच्छाओं की पूर्ति के लिए उपाय सोचता हूँ।
  2. इसके लिए योजनाबद्ध कदम उठाता हूँ।
  3. इसे पूरा करने के लिए कठोर परिश्रम करता हूँ।
  4. यदि एक प्रयास में इच्छापूर्ति नहीं होती है तो निराश नहीं होता हूँ।
  5. भाग्य के सहारे बैठने के बजाय पुनः उत्साहपूर्वक प्रयास करता हूँ।
  6. साहस एवं मनोबल बनाए रखने के लिए प्रभु से प्रार्थना करता हूँ।

प्रश्न 7.
क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है? यदि हाँ, तो कैसे?
उत्तर
कवि की यह प्रार्थना अन्य प्रार्थनाओं से भिन्न है। अधिकतर प्रार्थनाएँ सुख-सुविधाओं से भरा जीवन, धन-वैभव की लालसा आदि लिए रहती हैं और दुख से बचने के लिए प्रयत्नशील होती हैं। जबकि इस प्रार्थना में कवि हर काम में ईश्वर की सहायता नहीं चाहता। अन्य प्रार्थना गीतों में दास्यभाव व आत्मसमर्पण की भावना अधिक होती है। प्रायः मनुष्य ईश्वर से प्रार्थना करता है। कि उसे दुखों का सामना न करना पड़े किंतु इस गीत में कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि ईश्वर उसे दुखों को सहन करने की शक्ति दे। वह मुसीबत में भयग्रस्त नहीं होना चाहता है और सुख के दिनों में भी प्रभु का स्मरण बनाए रखना चाहता है।

(ख) निम्नलिखित अंशों का भाव स्पष्ट कीजिए

प्रश्न 1.
नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानँ छिन-छिन में।
उत्तर
भाव-कवि चाहता है कि हमें ईश्वर को हर क्षण याद रखना चाहिए। प्रायः मनुष्य दुख में तो ईश्वर को याद करते हैं परंतु सुख में भूल जाते हैं। हमें सुख के प्रत्येक पल में परमात्मा का अहसास करना चाहिए। उन्हें स्मरण रखना चाहिए। प्रायः लोग सुख में परमात्मा को भूल जाते हैं। वे अपनी शक्ति पर घमंड करने लगते हैं। कवि की कामना है कि वह ऐसे घमंड से बची रहे।

प्रश्न 2.
हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचनी रही
तो भी मन में न मार्ने क्षय। |
उत्तर
भाव यह है कि कवि को अपने जीवन में भले ही बार-बार हानि उठानी पड़े और लोगों के छल-कपट का शिकार होना पड़ा हो, तब भी कवि इसके लिए प्रभु का दोष न मानते हुए अपने मन में निराशा और दुख नहीं आने देना चाहता है। वह चाहता है कि दुख की दशा में भी प्रभु से उसकी आस्था, विश्वास में कमी न आने पाए।

प्रश्न 3.
तेरने की हो शक्ति अनमय
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
उत्तर
भाव-कवि कामना करता है कि विपरीत परिस्थितियों से घिरा होने पर दुख में भी यदि प्रभु उसे सांत्वना न दे, न सही। सांत्वना के अभाव में उसके जीवन का दुख भार कम न हो तो न सही, परंतु ईश्वर उसे दुखों को सहने की अदम्य शक्ति प्रदान करे ताकि उस शक्ति व आत्मबल से वह दुःखों पर काबू पा सके। कवि किसी प्रकार की सांत्वना का इच्छुक नहीं है; वह तो निर्भय होकर हर दुख का सामना करना चाहता है।

Hope given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 9 are helpful to complete your homework.

Leave a Comment

error: Content is protected !!