NCERT Solutions for Class 10 Social Science History in Hindi Medium Chapter 4

NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 4 The Making of Global World (भूमंडलीकृत विश्व का बनना)

NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 4 The Making of Global World (Hindi Medium)

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Social Science in Hindi Medium. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 4 The Making of Global World.

प्रश्न अभ्यास
पाठ्यपुस्तक से

संक्षेप में लिखें

प्रश्न 1. सत्रहवीं सदी से पहले होने वाले आदान-प्रदान के दो उदाहरण दीजिए। एक उदाहरण एशिया से और एक उदाहरण अमेरिकी महाद्वीपों के बारे में चुनें।
उत्तर
चीन – 15वीं शताब्दी तक बहुत सारे ‘सिल्क मार्ग’ अस्तित्व में आ चुके थे। इसी रास्ते से चीनी पॉटरी जाती थी और इसी रास्ते से भारत व दक्षिण-पूर्व एशिया के कपड़े व मसाले दुनिया के दूसरे भागों में पहुँचते थे। वापसी में सोने-चाँदी जैसी कीमती धातुएँ यूरोप से एशिया पहुँचती थीं।
अमेरिका – सोलहवीं सदी में जब यूरोपीय जहाजियों ने एशिया तक का समुद्री रास्ता खोज लिया और वे अमेरिका तक जा पहुँचे तो अमेरिका की विशाल भूमि और बेहिसाब फसलें और खनिज पदार्थ हर दिशा में जीवन का रंग-रूप बदलने लगे। आज के पेरू और मैक्सिको में मौजूद खानों से निकलने वाली कीमती धातुओं, खासतौर से चाँदी, ने भी यूरोप की संपदा को बढ़ाया और पश्चिम एशिया के साथ होने वाले उसके व्यापार को गति प्रदान की।

प्रश्न 2. बताएँ कि पूर्व-आधुनिक विश्व में बीमारियों के वैश्विक प्रसार ने अमेरिकी भू-भागों के उपनिवेशीकरण में किस प्रकार मदद की?
उत्तर

  1. 16वीं सदी के मध्य तक पुर्तगाली और स्पेनिश सेनाओं की विजय का सिलसिला शुरू हो गया था। उन्होंने अमेरिका को उपनिवेश बनाना शुरू कर दिया था।
  2. यूरोपीय सेनाएँ केवल अपनी सैनिक ताकत के दम पर नहीं जीतती थीं। स्पेनिश विजेताओं के पास तो कोई परंपरागत किस्म का सैनिक हथियार नहीं था। यह हथियार तो चेचक जैसे कीटाणु थे जो स्पेनिश सैनिकों और अफसरों के साथ वहाँ जा पहुँचे थे।
  3. लाखों साल से दुनिया से अलग-थलग रहने के कारण अमेरिका के लोगों के शरीर में यूरोप से आने वाली इन बीमारियों से बचने की रोग-प्रतिरोधी क्षमता नहीं थी।
  4. इस नए स्थान पर चेचक बहुत मारक साबित हुई । एक बार संक्रमण शुरू होने के बाद तो यह बीमारी पूरे महाद्वीप में फैल गई।
  5. जहाँ यूरोपीय लोग नहीं पहुँचे थे, वहाँ के लोग भी इसकी चपेट में आने लगे। इसने सभी समुदायों को खत्म कर डाला।
  6. इस तरह घुसपैठियों की जीत का रास्ता आसान होता चला गया।
  7. इस तरह से बिना किसी चुनौती के बड़े साम्राज्यों को जीतकर अमेरिका में उपनिवेशों की स्थापना हुई।

बंदूकों को तो खरीदकर या छीनकर हमलावरों के खिलाफ भी इस्तेमाल किया जा सकता था। पर चेचक जैसी बीमारियों के मामले में तो ऐसा नहीं किया जा सकता था क्योंकि हमलावरों के पास उससे बचाव का तरीका भी था और उनके शरीर में रोग-प्रतिरोधी क्षमता भी विकसित हो चुकी थी।

प्रश्न 3. निम्नलिखित के प्रभावों की व्याख्या करते हुए संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखें

(क) कार्न लॉ के समाप्त करने के बारे में ब्रिटिश सरकार का फैसला
(ख) अफ्रीका में रिंडरपेस्ट का आना।
(ग) विश्वयुद्ध के कारण यूरोप में कामकाजी उम्र के पुरुषों की मौत।
(घ) भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामंदी का प्रभाव ।
(ङ) बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अपने उत्पादन को एशियाई देशों में स्थानांतरित करने का फैसला।

उत्तर (क) ब्रिटेन की सरकार ने बड़े भू-स्वामियों के दबाव में मक्का के आयात पर पाबंदी लगा दी थी। जिन कानूनों के सहारे सरकार ने यह पाबंदी लागू की थी, उन्हें ‘कार्न लॉ’ कहा जाता था। खाद्य पदार्थों की ऊँची कीमतों से परेशान उद्योगपतियों और शहरी बाशिंदों ने सरकार को मजबूर कर दिया कि वे कार्न लॉ को फौरन निरस्त कर दें। कार्न लों के समाप्त हो जाने के बाद बहुत कम कीमत पर खाद्य पदार्थों का आयात किया जाने लगा। आयातित खाद्य पदार्थों की लागत ब्रिटेन में पैदा होने वाले खाद्य पदार्थों से भी कम थी। फलस्वरूप, ब्रिटिश किसानों की हालत बिगड़ने लगी क्योंकि वे आयातित कार्न लॉ की कीमत का मुकाबला नहीं कर सकते थे। विशाल भू-भागों पर खेती बंद हो गई। हजारों लोग बेरोज़गार हो गए। गाँवों से उजड़कर वे या तो शहरों में या दूसरे देशों में जाने लगे।
(ख)

  1. अफ्रीका में 1890 के दशक में रिंडरपेस्ट नामक बीमारी बहुत तेजी से फैल गई।
  2. मवेशियों में प्लेग की तरह फैलने वाली इस बीमारी से लोगों की आजीविका और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर गहरी असर पड़ा।
  3. उस समय पूर्वी अफ्रीका में एरिट्रिया पर हमला कर रहे इतालवी सैनिकों का पेट भरने के लिए एशियाई देशों से जानवर लाए जाते थे।
  4. यह बीमारी ब्रिटिश आधिपत्य वाले एशियाई देशों से आए जानवरों के जरिए यहाँ पहुँची थी।
  5. अफ्रीका के पूर्वी हिस्से से महाद्वीप में दाखिल होने वाली यह बीमारी जंगल की आग की तरह पश्चिमी अफ्रीका की तरफ बढ़ने लगी।
  6. 1892 में यह अफ्रीका के अटलांटिक तट तक जा पहुँची।
  7. रिंडरपेस्ट ने अपने रास्ते में आने वाले 90 प्रतिशत मवेशियों को मौत की नींद सुला दिया। पशुओं के खत्म हो जाने से अफ्रीकियों के रोजी-रोटी के साधन समाप्त हो गए।

(ग)

  1. प्रथम विश्व युद्ध 1914 में शुरू हुआ था और 1919 में समाप्त हुआ।
  2. इस युद्ध में मशीनगनों, टैंकों, हवाई जहाजों और रासायनिक हथियारों को बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया।
  3. इस युद्ध में 90 लाख से अधिक लोग मारे गए तथा 2 करोड़ लोग घायल हुए।
  4. मृतकों और घायलों में ज्यादातर कामकाजी उम्र के लोग थे।
  5. इस महाविनाश के कारण यूरोप में कामकाज के लायक लोगों की संख्या बहुत कम रह गई।
  6. परिवार के सदस्य घट जाने से युद्ध के बाद परिवारों की आय भी गिर गई।

(घ) महामंदी का प्रभाव जहाँ पश्चिमी देशों पर बडे भयंकर तौर पर पड़ा वहीं उपनिवेशों पर भी इसका प्रभाव पड़ा। भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी इसका प्रभाव पड़ा जो इस प्रकार था
1. व्यापारिक क्षेत्र – 20 वीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में भारत से कृषि वस्तुओं का निर्यात और निर्मित सामान का आयात बड़े पैमाने पर होने लगा था। महामंदी के कारण इस प्रक्रिया पर भी बुरा असर पड़ा। 1928-34 के बीच आयात का प्रतिशत आधा रह गया था क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कीमतें बढ़ गई थीं।
2. कृषि उत्पादों पर प्रभाव – इस मंदी के कारण उन कृषि उत्पादों और उनसे निर्मित सामानों पर भारी असर पड़ा जिनकी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांग थी। यानि जूट और पटसन की उपज और बनने वाली वस्तुएं । इस समय टाट का निर्यात बंद हो गया था जिस कारण कच्चे पटसन की कीमतें 60 प्रतिशत से भी अधिक गिर गईं। अत: जिन कृषकों ने पटसन उगाने के लिए कर्जे लिए थे उनकी स्थिति पर इसका बुरा प्रभाव पड़ा और वे और अधिक कर्जदार हो गए।
3. शहरी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रभाव – शहरी अर्थव्यवस्था पर महामंदी का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा स्योंकि यहाँ पर ज्यादातर वेतन भोगी वर्ग रहता था या फिर बड़े जमींदार वर्ग के लोग रहते थे जिन्हें ज़मीन का लगान मिलता था। राष्ट्रीय आंदोलन के प्रभाव के कारण ब्रिटिश सरकार ने उद्योगों की रक्षा के लिए सीमा शुल्क बढ़ा दिया था, जिससे उद्योगों को भी लाभ हुआ।
इसके विपरीत ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर इसका बहुत बुरा असर पड़ा। सरकार द्वारा लगान कम न करने के कारण कृषकों की स्थिति अत्यधिक दयनीय हो गयी। एक ओर उन्हें अपने उत्पादों की सही कीमत नहीं मिल
रही थी वहीं दूसरी ओर उनपर लगान और कर्जा का भारी बोझ पड़ रहा था। अत: ग्रामीण क्षेत्र में भारी असंतोष का वातावरण था।
4. वैश्वीकरण की प्रक्रिया पुनः प्रारंभ – इस मंदी के समय भारत की कीमती धातुओं विशेषकर सोने का निर्यात पुन: प्रारंभ हो गया था। इससे वैश्वीकरण की प्रक्रिया पुन: प्रारंभ हो गई थी। ।
(ङ)

  1. 1920 के दशक में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की स्थापना की गई। 70 के दशक के मध्य में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में कई परिवर्तन आए। अब विकासशील देश अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों से कर्जे और विकास संबंधी सहायता ले सकते थे।
  2. पचास और साठ के दशकों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का विश्वव्यापी प्रसार हुआ। चूँकि अधिकतर सरकारें बाहर से आने वाली चीजों पर भारी आयात शुल्क वसूल करने लगी थीं अत: बड़ी कंपनियों ने अपने संयंत्रों को उन्ही देशों में लगाने प्रारंभ कर दिए जहां वे अपने उत्पाद बेचना चाहते थे और उन्हें घरेलू उत्पादकों के रूप में काम करना पड़ता था।
  3. 70 के दशक में एशियाई देशों में बेरोजगारी बढ़ने लगी थी। अत: इन कंपनियों ने एशिया के ऐसे देशो में उत्पादन केन्द्रित किए जहां वेतन कम देना पड़ता था। चीन में अन्य एशियाई देशों के मुकाबले सबसे कम वेतन देना पड़ता था। अत: इन कंपनियों ने यहाँ पर अत्यधिक निवेश किया। इससे अर्थव्यवस्था में भारी परिवर्तन आए। जिसने विश्व के आर्थिक भूगोल को बदल दिया।

प्रश्न 4. खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव को दर्शाने के लिए इतिहास से दो उदाहरण दें।
उत्तर 1890 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था सामने आ चुकी थी। इससे तकनीक में भी बदलाव आ चुके थे। खाद्य उपलब्धता पर भी तकनीक का प्रभाव पड़ने लगा जो इस प्रकार था।

  1. रेलवे का विकास-अब भोजन किसी आस-पास के गाँव या कस्बे से नहीं बल्कि हजारों मील दूर से आने लगा था। खाद्य-पदार्थों को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने के लिए रेलवे का इस्तेमाल किया जाता था। पानी के जहाजों से इसे दूसरे देशों में पहुँचाया जाता था।
  2. नहरों का विकास-खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव का बहुत अच्छा उदाहरण हम पंजाब में देखते हैं। यहाँ ब्रिटिश भारतीय सरकार ने अर्द्ध-रेगिस्तानी परती जमीनों को उपजाऊ बनाने के लिए नहरों का जाल बिछा दिया ताकि निर्यात के लिए गेहूं की खेती की जा सके। इससे पंजाब में गेहूं का उत्पादन कई गुना बढ़ गया और गेहूँ को बाहर बेचा। जाने लगा।
  3. रेफ्रिजरेशन तकनीक का विकास-1870 के दशक तक अमेरिका से यूरोप को मांस का निर्यात नहीं किया जाता था। उस समय जिंदा जानवर ही भेजे जाते थे, जिन्हें यूरोप ले जाकर काटा जाता था। लेकिन जिंदा जानवर बहुत ज्यादा जगह घेरते थे। बहुत सारे लंबे सफर में मर जाते थे। बहुतों का वजन गिर जाता था या वे खाने लायक नहीं रहते थे। इसलिए मांस खाना एक महँगा सौदा था। नई तकनीक के आने पर यह स्थिति बदल गई। पानी के जहाजों में रेफ्रिजरेशन की तकनीक स्थापित कर दी गई, जिससे जल्दी खराब होने वाली चीजों को भी लंबी यात्राओं पर ले जाया । जा सकता था। अब अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड सब जगह से जानवरों की बजाए उनका मांस ही यूरोप भेजा जाने लगा। इससे न केवल समुद्री यात्रा में आने वाला खर्चा कम हो गया बल्कि यूरोप में मांस के दाम भी गिर गए। अब बहुत सारे लोगों के भोजन में मांसाहार शामिल हो गया।

प्रश्न 5. ब्रेटन वुड्स समझौते का क्या अर्थ है?
उत्तर युद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य यह था कि औद्योगिक विश्व में आर्थिक स्थिरता एवं पूर्ण रोजगार बनाए रखा जाए। इस फ्रेमवर्क पर जुलाई 1944 में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति बनी थी। इसी को ब्रेटन वुड्स समझौते के नाम से जाना जाता है।

सदस्य देशों के विदेश व्यापार में लाभ और घाटे से निपटने के लिए ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना की गई। युद्धोत्तर पुनर्निर्माण के लिए पैसे का इंतजाम करने के वास्ते अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक का गठन किया गया। इसी वजह से विश्व बैंक और आई०एम०एफ० को ब्रेटन वुड्स संस्थान या ब्रिटेन वुड्स ट्विन भी कहा जाता है। इसी आधार पर युद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था को अक्सर ब्रेटन वुड्स व्यवस्था भी कहा जाता है।

चर्चा करें

प्रश्न 1. कल्पना कीजिए की आप कैरीबियाई क्षेत्र में काम करने वाले गिरमिटिया मजदूर हैं। इस अध्याय में दिए गए विवरणों के आधार पर अपने हालात और अपनी भावनाओं का वर्णन करते हुए अपने परिवार के नाम एक पत्र लिखें।
उत्तर मैं मतादीन भारत से जाने वाला एक गिरमिटिया मजदूर था। मुझे 20वीं सदी के प्रारंभ में गुयाना में 10 साल के अनुबंध के तहत काम के लिए जाना पड़ा। वहाँ से मैंने अपने माता-पिता को एक पत्र लिखा

आदरणीय माताजी-पिताजी,
चरण स्पर्श,

मैं यहाँ पर ठीक हूँ। आशा करता हूँ कि आप सब भी सकुशल होंगे। वैसे तो यहाँ पर रोजगार मिला हुआ है परंतु जिस एजेंट ने मुझे यहाँ भेजा था उसने यहाँ के विषय में पूर्ण जानकारी नहीं दी थी जिससे कि मुझे लम्बी समुद्री यात्रा करनी पड़ेगी, यहाँ काम करने के हालात अच्छे नहीं हैं। उसने मुझे कहा था कि मैं बीच में कुछ दिनों के लिए आपसे मिलने भी आ सकेंगा पर अब वह अपने वादे से मुकर रहा है। अतः मैं आपसे मिलने नहीं आ सकता।

मैं यहाँ पर एक बागान में काम करता हूँ। यहाँ मेरे साथ कुलियों जैसा बर्ताव होता है। यदि कोई यहाँ से भागने की कोशिश करता है और पकड़ा जाता है तो उसके साथ बुरा बर्ताव होता है जिसमें कोई-कोई तो मर भी जाता है। अतः हम लोग यहाँ से भागने का प्रयास नहीं करते।

अब तो बस इसी इंतजार में समय कट रहा है कि हमारे नेता इस घिनौनी अनुबंधित दास प्रथा के खिलाफ आवाज उठाएं।
और हमें आजाद करवाएं। मैं वापस घर आना चाहता हूँ। फिलहाल मैं आपको कुछ पैसे भेज रहा हूं। ये पैसे कम हैं क्योंकि पिछले कुछ दिन बीमार होने के कारण काम नहीं कर सका जिससे मेरे पैसे कट गए और मुझे कम वेतन मिला। पत्र का
जवाब शीघ्र देना।
आपका पुत्र
मतादीन

प्रश्न 2. अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन तरह की गतियों या प्रवाहों की व्याख्या करें। तीनों प्रकार की गतियों के भारत और भारतीयों से संबंधित एक-एक उदाहरण दें और उनके बारे में संक्षेप में लिखें।
उत्तर अर्थशास्त्रियों ने अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय में तीन तरह की गतियों या प्रवाहों का उल्लेख किया है

  1. व्यापार का प्रवाह-पहला प्रवाह व्यापार का होता है जो 19वीं सदी में मुख्य रूप से वस्तुओं जैसे कपड़ा या गेहूँ आदि के व्यापार तक ही सीमित था।
  2. श्रम का प्रवाह-दूसरा प्रवाह श्रम का होता है। इसमें लोग काम या रोजगार की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं।
  3. पूँजी का प्रवाह-तीसरा प्रवाह पूँजी का होता है जिसे अल्प या दीर्घ अवधि के लिए दूर-दराज के इलाकों में निवेश कर दिया जाता है।

ये तीनों प्रवाह एक-दूसरे से जुड़े थे और लोगों के जीवन को प्रभावित करते थे।

भारत से तीन प्रवाहों के उदाहरण – भारत में प्राचीन काल से ही तीनों प्रकार के प्रवाह देखने को मिलते हैं

  1. प्राचीन काल से ही भारतीयों ने अपने पड़ोसी देशों के साथ व्यापारिक संबंध बना रखे थे। भारतीय व्यापारी भारत से मसाले, कपास आदि लेकर विदेशों में जाते थे तथा वहाँ से जरूरी चीजें लेकर आते थे।
  2. बहुत से भारतीय कारीगर और इंजीनियर विदेशों में बागानों, खानों, सड़क निर्माण और रेल निर्माण का काम करने के लिए गए।
  3. भारत में प्राचीन काल में बहुत से देशों ने पूँजी का निवेश किया। पुर्तगालियों, फ्रांसीसियों तथा अंग्रेजों ने यहाँ व्यापारिक कंपनियाँ खोली तथा चाय के बागान आदि स्थापित किए।

प्रश्न 3. महामंदी के कारणों की व्याख्या करें।
उत्तर 1929 में आर्थिक महामंदी की शुरूआत हुई। इस मंदी के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

  1. औद्योगिक क्रांति के कारण अमेरिका तथा ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर उत्पादन कार्य होने लगा था। 1930 तक तैयार माल का इतना बड़ा भण्डार एकत्र हो गया कि उनका कोई खरीददार न रहा।
  2. कृषि क्षेत्र में अति उत्पादन के कारण कृषि उत्पादों की कीमतें गिरने लगी। किसानों ने अपनी घटती आय को बढ़ाने के लिए अधिक उत्पादन करना शुरू कर दिया किंतु इससे कीमतें और गिरने लगी। खरीददारों के अभाव में कृषि उपज पड़ी-पड़ी सड़ने लगी।
  3. संकट से पूर्व बहुत से देश अमेरिका से कर्ज लेकर अपनी अर्थव्यवस्था चलाते थे। 1928 के कुछ समय पहले विदेशों में अमेरिका का कर्ज एक अरब डालर था। साल भर के भीतर यह कर्ज घटकर केवल चौथाई रह गया था। जो देश अमेरिकी कर्ज पर सबसे ज्यादा निर्भर थे उनके सामने गहरा संकट खड़ा हो गया।
  4. यूरोप में कई बड़े बैंक धराशायी हो गये। कई देशों की मुद्रा की कीमत बुरी तरह गिर गई। अमेरिकी सरकार इस महामंदी से अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए आयातित पदार्थों पर दो गुना सीमा शुल्क वसूल करने लगी।
  5. अमेरिका के शेयर बाजार में शेयरों की कीमत में गिरावट आ गई। इसकी वजह से वहाँ लाखों व्यापारियों का दीवाला निकल गया।

प्रश्न 4. जी-77 देशों से आप क्या समझते हैं? जी-77 को किस आधार पर ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ संतानों की प्रतिक्रिया कहा जा सकता है? व्याख्या करें।
उत्तर वे विकासशील देश जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्र हुए थे किंतु 50 व 60 के दशक में पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं की तेज प्रगति से उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ। इस समस्या को देखते हुए उन्होंने एक नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली के लिए आवाज उठाई और अपना एक संगठन बनाया जिसे समूह-77 या जी-77 के नाम से जाना जाता है।

ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक का जन्म हुआ था जिन्हें ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ संतान कहा जाता है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक पर केवल कुछ शक्तिशाली विकसित देशों का ही प्रभुत्व था इसलिए उनसे विकासशील देशों को कोई लाभ नहीं हुआ। इसलिए ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ संतानों विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रतिक्रिया स्वरूप विकासशील देशों ने जी-77 नामक संगठन बनाकर नई आर्थिक प्रणाली की माँग की ताकि उनके आर्थिक उद्देश्य पूरे हो सकें। उनके प्रमुख आर्थिक उद्देश्य थे-अपने संसाधनों पर उनका पूरा नियंत्रण हो, कच्चे माल के सही दाम मिलें और अपने तैयार मालों को विकसित देशों के बाजारों में बेचने के लिए बेहतर पहुँच मिले।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1. उन्नीसवीं सदी के दौरान दक्षिण अफ्रीका में स्वर्ण हीरा खनन के बारे में और जानकारियाँ इकट्ठी करें। सोना और हीरा कंपनियों पर किसका नियंत्रण था? खनिक कौन लोग थे और उनका जीवन कैसा था?
उत्तर 19वीं शताब्दी में दक्षिण अफ्रीका में हीरा और स्वर्ण धातुओं के खनन का कार्य बड़ी तेजी से किया जाने लगा। इसके लिए ब्रिटेन, फ्रांस जैसे बड़े यूरोपीय देशों ने अपने-अपने खोजी दलों का गठन किया जिन्होंने अफ्रीकी महाद्वीप के भयंकर परिस्थितियों का सामना करते हुए इसके विभिन्न क्षेत्रों के नक्शे बनाए और यहाँ तक पहुँचने के रास्ते खोजे । बाद में इन्होंने अफ्रीका का बँटवारा किया जिसे अफ्रीका का कागजी बँटवारे के नाम से जाना जाता है।

अफ्रीका की इन खानों पर ज्यादातर ब्रिटेन व फ्रांस की कंपनियों का नियंत्रण था। इन खादानों में कार्य करने वाले ज्यादातर अफ्रीकी होते थे। इनकी स्थिति बड़ी दयनीय होती थी। उनसे अत्यधिक कार्य लिया जाता था। इनकी सुरक्षा का ध्यान नहीं रखा जाता था। इनको बाड़ो में बंद कर दिया जाता था तथा इनको खुलेआम घूमने-फिरने नहीं दिया जाता था। यदि कोई मजदूर भागने का प्रयास करता तो उसे पकड़ लिया जाता था तथा कठोर दंड दिया जाता था, कभी-कभी तो जान से भी मार दिया जाता था।

Hope given NCERT Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 4 are helpful to complete your homework.

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