NCERT Solutions for Class 11 History Chapter 7 Changing Cultural Traditions (Hindi Medium)
These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 11 History in Hindi Medium. Here we have given NCERT Solutions for Class 11 History Chapter 7 Changing Cultural Traditions.
अभ्यास प्रश्न (पाठ्यपुस्तक से) (NCERT Textbook Questions Solved)
संक्षेप में उत्तर दीजिए
प्र० 1. चौदहवीं और पंद्रहवीं शताब्दियों में यूनानी और रोमन संस्कृति के किन तत्वों को पुनर्जीवित किया गया?
उत्तर चौदहवीं और पंद्रहवीं शताब्दियों में यूनानी और रोमन संस्कृतियों व सभ्यताओं को पुनः जीवित करने का प्रयत्न किया गया। यूरोप में हुए परिवर्तनों का प्रभाव यूनान व रोमन संस्कृतियों पर भी पड़ा। 14वीं और 15वीं शताब्दी में आम जनता के मन में यूनानी व रोमन संस्कृतियों के अध्ययन के प्रति अनेक जिज्ञासाएँ उत्पन्न हुईं। कारण यह था कि अब तक शिक्षा व वाणिज्य में काफी प्रगति हो चुकी थी। यूनानी और रोमन संस्कृति व सभ्यता से प्रभावित होकर मानव को ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचना माना गया और अनेक चित्रकारों ने मानव से संबंधित विषयों पर अपनी रचनाएँ व चित्रकारियाँ कीं। इसके अतिरिक्त दार्शनिक व तर्कवाद की प्रवृत्ति से प्रभावित होकर अनेक वैज्ञानिकों ने आविष्कार किए और लोगों को मध्यकाल के अंधकार से बाहर निकालने का प्रयास किया। कई रूढ़ियों व अंधविश्वासों का पर्दाफाश यूनानी व रोमन तर्कवाद के माध्यम से किया गया। आत्मा और परमात्मा को छोड़कर लेखकों व चित्रकारों का प्रतिपाद्य मानव बन गया। उसके भौतिक जीवन की समस्याओं व उससे छुटकारा पाने की ओर अनेक विद्वानों ने अपने-अपने सिद्धांत प्रतिपादित किए। इसके साथ-साथ अनेक व्यापारिक मार्गों की खोज के फलस्वरूप यूरोप व अन्य देशों की संस्कृतियों का पता चला और सभ्यताओं के सभी आवश्यक सांस्कृतिक तत्व पुनर्जीवित हुए।
प्र० 2. इस काल की इटली की वास्तुकला और इस्लामी वास्तुकला की विशिष्टताओं की तुलना कीजिए।
उत्तर पंद्रहवीं शताब्दी में रोम नगर को अत्यंत भव्य रूप से बनाया गया। यहाँ अनेक भव्य भवनों व इमारतों का निर्माण किया गया। इटली की वास्तुकला के प्रारूप हमें गिरजाघरों, राजमहलों और किलों के रूप में दिखाई देते हैं। इटली की वास्तुकला की शैली को शास्त्रीय शैली कहा जाता था। शास्त्रीय वास्तुकारों ने इमारतों को चित्रों, मूर्तियों और विभिन्न प्रकार की आकृतियों से सुसज्जित किया। जबकि इस्लामी वास्तुकला ने इमारतों, भवनों व मस्जिदों की सजावट के लिए ज्यामितीय नक्शों और पत्थर में पच्चीकारी के काम का सहारा लिया। इटली की वास्तुकला की विशिष्टता के रूप में हमें भव्य गोलाकार गुंबद, भवनों की भीतरी सजावट, गोल मेहराबदार दरवाजे आदि दिखाई देते हैं। हालाँकि इस्लामी वास्तुकला इस काल में अपनी चरम सीमा पर थी। विशाल भवनों में बल्ब के आकार जैसे गुंबद, छोटी मीनारें, घोड़े के खुरों के आकार के मेहराब और मरोड़दार (घुमावदार) खंभे आश्चर्यचकित कर देने वाले हैं। ऊँची मीनारों और खुले आँगनों का प्रयोग हमें इस्लामी वास्तुकला के भवनों में नज़र आता है। उपरोक्त तुलना के आधार पर हम कह सकते हैं कि इटली की वास्तुकला और इस्लामी वास्तुकला में हमें कुछ अंतर व कुछ समानताएँ नज़र आती हैं।
प्र० 3. मानवतावादी विचारों का अनुभव सबसे पहले इतालवी शहरों में क्यों हुआ?
उत्तर इटली के अनेक नगरों से सामंतवाद की समाप्ति और स्वंतत्र नगरों की स्थापना होने से मानवतावादी विचारधारा को विकसित होने के लिए अनुकूल अवसर मिला। चौदहवीं शताब्दी में विद्वानों द्वारा प्लेटो एवं अरस्तू के सिद्धांतों एवं ग्रंथों के अनुवादों का अध्ययन किया गया। इसके अतिरिक्त मध्यकाल में कुस्तुनतुनिया पर तुर्को द्वारा आधिपत्य कायम कर लेने से अनेक विद्वानों एवं दार्शनिकों ने इटली में शरण ली और वे अपने साथ विपुल मात्रा में साहित्य ले गए। अरबवासियों की कृपादृष्टि से इटलीवासियों को अनेक साहित्यिक रचनाओं के अनुवाद भी प्राप्त हुए। प्राकृतिक विज्ञान, खगोल विज्ञान, गणित, औषधि विज्ञान आदि विषयों की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ। इसके अतिरिक्त इटली के अनेक विश्वविद्यालयों में मानवतावादी विषयों पर अध्यापन एवं अध्ययन शुरू होने लगा। इटली के पादुआ विश्वविद्यालय में मानवतावाद की शिक्षा दी जाती थी। इसकी स्थापना 1300 ई० में हुई थी। इटलीवासियों ने मानवतावादी विचारधारा के महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों को ग्रहण किया। इटली के मानवतावादी विद्वानों ने मानव को ईश्वर की सर्वोत्तम रचना माना और उसके भौतिक जीवन की समस्याओं व उससे मुक्ति पाने के विषय पर चिंतन-मनन किया। परिणामतः मानवतावादी विचारों का अनुभव सर्वप्रथम इतालवी शहरों को प्राप्त हुआ।
प्र० 4. वेनिस और समकालीन फ्रांस में ‘अच्छी सरकार’ के विचारों की तुलना कीजिए।
उत्तर वेनिस -इटली का एक महत्त्वपूर्ण नगर राज्य था। वहाँ पर गणतंत्रीय शासन-प्रणाली पंद्रहवीं सदी में आरंभ हो चुकी थी।
वेनिस के अतिरिक्त फ़्लोरेंस और रोम विशेष रूप से उल्लेखनीय स्वतंत्र नगर राज्य थे। ये गणराज्य राजकुमारी द्वारा शासित किए जाते थे। यहाँ के धनी व्यापारी एवं महाजन नगर की शासन-प्रणाली में सक्रिय रूप से भूमिका निभाते थे। नगर का संपूर्ण अधिकार एक ऐसी परिषद् के हाथों में था जिसके सारे सदस्य सभ्रांत वर्ग के और 35 वर्ष से अधिक आयु वाले थे। वेनिस में शासन की बागडोर नागरिकों के हाथों में थी। वेनिस निवासियों में नागरिकता की भावना अत्यधिक व्याप्त थी।
दूसरी तरफ फ्रांस की शासन-प्रणाली वेनिस के एकदम विपरीत थी। फ्रांस में नगर राज्यों का संचालन निरंकुश शासक वर्ग के हाथों में था। चार्ल्स प्रथम, लुई बारहवाँ, लुई तेरहवाँ और लुई चौदहवाँ ऐसे ही निरंकुश शासक थे। धर्माधिकारी एवं सामंत राजनीतिक दृष्टि से ज्यादा शक्तिसंपन्म थे। नागरिकों का शोषण करना यहाँ पर सामान्य बात थी। नि:संदेह, वेनिस नगर में किसी प्रकार की क्रांति नहीं हुई किंतु फ्रांस के नगर राज्यों में अनेक क्रांतियों का जन्म हुआ और इसका असर वहाँ की सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था पर व्यापक रूप से पड़ा। इस प्रकार वेनिस और समकालीन फ्रांस की सरकारों में व्यापक स्तर पर भिन्नता थी।
संक्षेप में निबंध लिखिए
प्र० 5. मानवतावादी विचारों के क्या अभिलक्षण थे?
उत्तर यूरोप में तेरहवीं व चौदहवीं शताब्दी में शिक्षा के अनेक कार्यक्रमों का संचालन किया गया। विद्वानों का मत था कि केवल
धार्मिक शिक्षा विकास की दृष्टि से पर्याप्त नहीं है। इसी नयी संस्कृति को उन्नीसवीं सदी के इतिहासकारों ने मानवतावाद’ की संज्ञा दी। पंद्रहवीं शताब्दी के शुरुआत में मानवतावादी शब्द उन अध्यापकों के लिए प्रयुक्त किया जाता था जो व्याकरण, अलंकारशास्त्र, कविता, इतिहास तथा नीतिदर्शन में अध्ययन कार्य करते थे। यह शब्द लैटिन शब्द हयूमेनिटीस शब्द से बना है। सदियों पूर्व रोम के वकीलों तथा निबंधकारों में सिसरो (106-43 ई०पू०) ने जो कि जूलियस सीजर का समकालीन था, “संस्कृति” के अर्थ में ग्रहण किया। मानवतावादी विचारों के मुख्य अभिलक्षण इस प्रकार थे
- मानवतावाद विचारधारा के अंर्तगत मानव के जीवन सुख और समृद्धि पर बल दिया जाता था।
- मानवतावाद के माध्यम से यह तथ्य स्पष्ट हो गया कि मानव, धर्म और ईश्वर के लिए ही न होकर हमारे अपने लिए भी है।
- मानव का अपना एक अलग विशेष महत्त्व है।
- मानव जीवन को सुधारने व उसके भौतिक जीवन की समस्याओं का समाधान करने पर बल देना चाहिए, मानव का सम्मान करना चाहिए। इसका कारण यह है कि मानव ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचनाओं में से एक है।
- पुनर्जागरण काल में महान कलाकारों की कृतियों और मूर्तियों में जीसस क्राइस्ट को मानव शिशु के रूप में और मेरी को वात्सल्यमयी माँ के रूप में चित्रित किया गया है। नि:संदेह मानवतावादी रचनाओं में धार्मिक भावनाओं का ह्रास पाया जाता है।
- पुनर्जागरण काल में महान साहित्यकारों ने अपनी कृतियों में प्रतिपाद्य मानव की भावनाओं, दुर्बलताओं और शक्तियों का विश्लेषण किया है। उन्होंने अपनी कृतियों के केंद्र के रूप में धर्म व ईश्वर के स्थान पर मानव को रखा। इस युग की प्रमुख साहित्यिक कृतियों में डिवाइन कमेडी, यूटोपिया, हैमलेट आदि प्रसिद्ध हैं।
प्र० 6. सत्रहवीं शताब्दी के यूरोपीयों को विश्व किस प्रकार भिन्न लगा? उसका एक सुनिश्चित विवरण दीजिए।
उत्तर सत्रहवीं शताब्दी में आए सांस्कृतिक परिवर्तन में रोमन और यूनानी शास्त्रीय सभ्यता का ही केवल योगदान नहीं था। पुनर्जागरण ने प्रत्येक तथ्य को तर्क की कसौटी पर कसने की जिस अवधारणा को उत्पन्न किया उसके परिणामस्वरूप विज्ञान के क्षेत्र में विशेष रूप से प्रगति हुई। इसके अतिरिक्त रोमन संस्कृति के पुरातात्विक और साहित्यिक पुनरुद्धार के द्वारा भी इस सभ्यता के प्रति बहुत अधिक प्रशंसा के भाव व्यक्त किए गए। मध्ययुग का एक सिद्धांत था कि पृथ्वी विश्व की धुरी है। यह धारणा आलोचना का प्रतिपाद्य बन गई। कोपरनिकस, गैलिलियो और कैप्लर आदि वैज्ञानिकों ने * यह सिद्ध किया कि पृथ्वी एक बहुत बड़ा ग्रह है और यह चौबीस घंटे सूर्य के चारों ओर पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर घूमती है। हार्वे ने रुधिर संचार सिद्धांत का प्रतिपादन किया। नौसंचालन एवं चुंबकीय कंपास (Compass) के कारण लोगों ने अनेक समुद्री यात्राएँ शुरू कीं और अनेक नये-नये समुद्री मार्गों, द्वीपों एवं देशों की खोज इन नाविकों द्वारा की गई। कोलंबस ने सन् 1492 में अमेरिका का अन्वेषण किया तो 1498 में वास्कोडिगामा समुद्री मार्ग से भारत आया। यहाँ तक कि स्पेनी नाविक 1606 में ताहिती द्वीप पर पहुँच गए। इस्लाम के विस्तार और मंगोलों की जीत से एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका का संबंध यूरोप के अनेक देशों के साथ वाणिज्यिक आधार पर स्थापित हुआ। परिणामतः उन द्वीपों व देशों की सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्तर पर जानकारियाँ प्राप्त हुईं।
दूसरी तरफ यूरोपवासियों ने केवल यूनानी व रोमन लोगों से ही नहीं सीखा बल्कि अरब, ईरान, मध्य एशिया और चीन जैसे देशों से ज्ञान की प्राप्ति की। इतिहासकारों ने पर्याप्त सबूतों के अभाव में यूरोप को केन्द्रित-दृष्टिकोण में रखा। शंका प्रेक्षण और प्रयोग के नए-नए तरीके, जो पुनर्जागरण की बड़ी देन हैं। मानव ने अपने ज्ञान क्षेत्र में काफी हद तक विस्तार किया। वैसेलियस ने शल्य चिकित्सा के आधार पर मानव शरीर से संबंधित तथ्यों की जानकारी प्रदान की। इस प्रकार सत्रहवीं शताब्दी के यूरोपवासियों के लिए विश्व की अवधारणा पूर्णत: अलग थी।
Hope given NCERT Solutions for Class 11 History Chapter 7 are helpful to complete your homework.