Author name: Prasanna

NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 17 साँस-साँस में बाँस

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साँस-साँस में बाँस NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 17

Class 6 Hindi Chapter 17 साँस-साँस में बाँस Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
भारत के किन राज्यों में बाँस सबसे अधिक होता है ?
उत्तर:
भारत के उत्तरी पूर्वी राज्यों में बाँस सबसे अधिक पैदा होता है। नागालैंड के लोग तो बाँस से विभिन्न वस्तुएँ बनाने में उस्ताद हैं।

प्रश्न 2.
जादूगर चंग की चंगलनवा की कब्र के साथ क्या किस्सा जुड़ा है।
उत्तर:
एक जादूगर थे चंग की चंगलनवा। अपने जीवन में उन्होंने कई बड़े-बड़े करतब दिखलाए। जब मरने को हुए तो लोगों से बोले, “मुझे दफनाए जाने के छठे दिन मेरी कब्र खोदकर देखोगे तो कुछ नया-सा पाओगे।”

कहा जाता है कहे मुताबिक मौत के छठे दिन उनकी कब्र खोदी गई और उसमें से निकले बाँस की टोकरियों के कई सारे डिज़ाइन। लोगों ने उन्हें देखा, पहले उनकी नकल की और फिर नई डिजायनें भी बनाईं।

प्रश्न 3.
बाँस से क्या-क्या चीज़ों का निर्माण होता है ?
उत्तर:
बाँस के द्वारा डलियानुमा टोकरियाँ, चटाइयाँ, टोपियाँ, बरतन, बैलगाड़ियाँ, फर्नीचर, सजावटी सामान, जाल, मकान, पुल और भी न जाने कितनी चीजें बनाई जाती हैं।

प्रश्न 4.
बाँस की वस्तुएँ बनाने के लिए लोग जंगल से किस प्रकार के बाँस इकट्ठा करते हैं ?
उत्तर:
बाँस की वस्तुएँ बनाने के लिए लोग एक साल से तीन साल तक के बाँस को काटते हैं। इस अवधि का बाँस थोड़ा नरम होता है। अधिक उम्र के बाँस सख्त होते हैं और जल्दी टूट जाते हैं। जुलाई से अक्टूबर के बीच घमासान बारिश के समय लोग बाँस इकट्ठा करते हैं। यह समय खाली होता है।

प्रश्न 5.
बाँस की खपच्चियाँ कैसी होती हैं व किस प्रकार तैयार की जाती हैं ?
उत्तर:
बाँस की खपच्चियाँ आधा इंच तक चौड़ी होती हैं। इससे अधिक चौड़ी खपच्चियाँ किसी काम की नहीं होतीं। खपच्चियों को चीरकर उन्हें चिकना किया जाता है तभी उनसे टोकरी बनाई जाती है।

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प्रश्न 6.
खपच्चियों को किस प्रकार से रंगा जाता है ?
उत्तर:
खपच्चियों की रंगाई गुड़हल के फूलों व इमली की पत्तियों आदि के रस से रंगी जाती हैं। काले रंग के लिए खपच्चियों को आम की छाल में लपेटकर मिट्टी में दबाकर रखा जाता है।

प्रश्न 7.
बाँस की खपच्चियों से बुनाई किस प्रकार की जाती है ?
उत्तर:
बाँस की बुनाई वैसे ही होती है जैसे कोई और बुनाई। पहले खपच्चियों को आड़ा-तिरछा रखा जाता है। फिर बाने को बारी-बारी से ताने के ऊपर-नीचे किया जाता है। इससे चेक का डिज़ाइन बनता है। पलंग की निवाड़ की बुनाई की तरह। टोकरी के सिरे पर खपच्चियों को या तो चोटी की तरह गूंथ लिया जाता है या फिर कटे सिरों को नीचे की ओर मोड़कर फँसा दिया जाता है।

साँस-साँस में बाँस Summary

पाठ का परिचय

बाँस का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। जिस क्षेत्र में बाँस उत्पन्न होता है वहाँ के लोगों के लिए तो बाँस जीवन यापन का एक साधन होता है। बाँस से कितनी ही उपयोगी वस्तुएँ बनाई जाती हैं। बाँस भारत के विभिन्न हिस्सों में उत्पन्न होता है भारत के उत्तर- पूर्व के राज्यों में बाँस बहुत होता है। वहाँ बाँस की अनेक चीजें बनाने का चलन है। हर समुदाय के लिए बाँस रोजी-रोटी का साधन हैं। नागालैंड के निवासी तो बाँस के विभिन्न प्रयोग करने में बहुत चतुर हैं। जब से इंसान कलात्मक चीजें बना रहा है तभी से ही बाँस की भी चीजें बन रही हैं, जरूरत के अनुसार इसमें बदलाव आते रहे हैं। बाँस का सफर चाहे तो बया के घोंसले को देखकर हुआ हो या चंग की चंगलनवा की कब्र से परन्तु वहाँ के लोग बाँस की चीजें बनाने में बड़े माहिर हैं।

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NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 16 वन के मार्ग में

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वन के मार्ग में NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 16

Class 6 Hindi Chapter 16 वन के मार्ग में Textbook Questions and Answers

कविता से

प्रश्न 1.
प्रथम सवैया में कवि ने राम-सीता के किस प्रसंग का वर्णन किया है ?
उत्तर:
प्रथम सवैया में कवि ने श्रीराम व सीता के अयोध्या से निकलकर वन गमन का वर्णन किया है।

प्रश्न 2.
वन के मार्ग में सीता को होने वाली कठिनाइयों के बारे में लिखो।
उत्तर:
सीता वन के मार्ग पर थोड़ी दूर ही चली थीं कि उनके चेहरे पर पसीने की बूंदें छलछलाने लगीं। उनके कोमल होंठ सूख गए। अपने कोमल पैरों से सीता को चलना मुश्किल हो रहा था। उनको इतनी थकावट हो गई थी मानो बहुत लम्बा मार्ग तय कर लिया हो।

प्रश्न 3.
सीता की आतुरता देखकर राम की क्या प्रतिक्रिया होती है ?
उत्तर:
रामचंद्र जी समझ जाते हैं कि सीता थक गई है और वह सीधे न कहकर मेरी सेवा के बहाने विश्राम करना चाहती है। इसलिए राम बैठकर काफी देर तक अपने पैरों से काँटे निकालते रहते हैं।

प्रश्न 4.
राम बैठकर देर तक काँटे क्यों निकालते रहे ?
उत्तर:
राम बैठकर इसलिए काँटे निकालते रहे जिससे की सीता अधिक देर तक विश्राम कर ले क्योंकि सीता को पैदल चलने का अभ्यास नहीं था।

प्रश्न 5.
सवैया के आधार पर बताओ कि दो कदम चलने के बाद सीता का ऐसा हाल क्यों हुआ ?
उत्तर:
सीता राजमहलों में पली थी। बिना वाहन के वे कहीं भी न जाती थी। अब उनको वन के कठोर रास्ते पर चलना पड़ रहा था इसलिए चलने का अभ्यास न होने के कारण थोड़ी दूर चलकर ही सीता थक गई।

प्रश्न 6.
‘धरि धीर दए’ का आशय क्या है ?
उत्तर:
‘धरि धीए दए’ का आशय है कि सीता धैर्य धारण करके वन के मार्ग में चलने लगी क्योंकि इससे पहले वह कभी इस तरह नहीं चली थी।

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अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
अपनी कल्पना से वन मार्ग का वर्णन करो।
उत्तर:
राम और सीता अयोध्या से निकलकर वन के रास्ते जा रहे थे तो रास्ते में दोनों ओर बड़े-बड़े पेड़ थे। लक्ष्मण भी उनके साथ चल रहे थे। वन का मार्ग ऊबड़-खाबड़ व पथरीला था। आस-पास कहीं पीने का पानी भी नहीं था। ऊपर से गर्मी बहुत पड़ रही थी। चलते समय थोड़ी देर में ही शरीर पसीने से लथपथ हो गया। वन मार्ग काँटों से युक्त था। जगह-जगह काँटेदार पेड़ पौधे भी थे। इस कारण उनके पैरों में भी काँटे चुभ गए थे। रास्ते में कई छोटे-छोटे गाँव भी पड़ते थे। गाँव के लोग इन सुकुमार राजकुमारों को वन मार्ग से जाते हुए देखकर आश्चर्यचकित हो रहे थे। साथ ही उनको दुःख भी था कि किस प्रकार ये इस कठोर रास्ते से आगे जाएंगे।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
लखि – देखकर, धरि – रखकर
पोंछि – पोंछकर, जानि – जानकर
ऊपर लिखे शब्दों और उनके अर्थ को ध्यान से देखो। हिंदी में जिस उद्देश्य के लिए हम क्रिया में ‘कर’ जोड़ते हैं, उसी के लिए अवधी में क्रिया में ि (इ) को जोड़ा जाता है, जैसे अवधी में बैठ + ि = बैठि और हिंदी में बैठ + कर = बैठकर। तुम्हारी भाषा या बोली में क्या होता है ? अपनी भाषा के ऐसे छह शब्द लिखो। उन्हें ध्यान से देखो और कक्षा में बताओ।
उत्तर:
हमारी बोली में कुछ इस प्रकार के शब्द प्रयोग होते हैं :
उधर – उंघ
किधर – किंघ,
इधर – इंघ/उरअ,
जागना – जागणा,
रोना-धोना – रोणा-धोणा,
कौन-सा – कौण-सा

सवैयों की सप्रसंग व्याख्या

(1) पुर ते निकसी रघुवीर-वधु, धरि धीर दये पग में डग द्वै।
झलकी भरी भाल कनी जल की, पुट सूखि गए मधुराधर वै।।
फिर बुझती है “चलनो अब केतिक, पर्न कुटी करि हौ कित हवै?”
तिय की लखि आतुरता पिय की अंखिया अति चारू चली जलच्च।।

शब्दार्थ: पुर – नगर, ते – से, निकसीं – निकली, दए – दिये/रखे, डग – पंग, कदम, द्वै – दो, भरि भाल – मस्तक पर, कनी – बूंद, अल्प बिन्दु,, मधुरा-धर – कोमल होंठ, बूझति – पूछती हैं, केतिक – कितनी, पर्नकुटी – पर्णकुटी, पत्ते की झोंपड़ी, कित है – कहाँ पर, आतुरता – व्याकुलता, च्वै – चूने लगा, प्रवाहित होना, वधू – बहू, धरि – धारण किए, धरि – धारण किए, मग – रास्ता, धीर – धैर्य, झलक – दिखाई दी, मग – रास्ता, पुट – होंट, चारू – सुंदर

प्रसंग- प्रस्तुत ‘सवैया’ हमारी पाठ्य-पुस्तक भारती भाग-1 में संकलित ‘वन के मार्ग से’ लिया गया है। जिसके कवि तुलसीदास जी हैं।प्रस्तुत छन्द में सीता जी की वन-मार्ग में चलने से उत्पन्न व्याकुलता और परेशानी को व्यक्त किया गया है। जब रामचन्द्र जी ने अपनी प्रिया की व्याकुलता देखी तो उनके नेत्रों से भी आँसू बहने लगे।

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि रामचन्द्र जी की धर्मपत्नी सीता जी ने जैसे ही नगर (अयोध्या) से निकलकर आगे के मार्ग में धैर्य धारण करके दो कदम रखे-अर्थात् थोड़ा सा चलीं वैसे ही उनके कोमल-कोमल ओंठ-सूख गये और उनके मस्तक पर पसीने की बूंदें झलकने लगीं। भाव यह है कि सदैव महलों में रहने वाली उन जानकी को थोड़ा-सा चलने पर ही परेशानी अनुभव होने लगी। उनके ओंठ सूख गये और माथे पर श्रम-बिन्दु झलक आए, मानो वे बहुत लम्बा मार्ग तय कर चुकी हों। तुलसीदास सीता जी की व्याकुलता को प्रकट करते हुए कहते हैं कि थोड़ी-सी दूर चलने पर सीता जी अपने पति रामचन्द्र जी से पूछने लगी कि हे स्वामी! अभी आप कितना और चलना चाहते हैं तथा कहाँ जाकर पर्णकुटी (निवास-स्थान) बनाओगे अर्थात् मैं तो अब चलते-चलते थक गई हूँ और अब विश्राम करना चाहती हूँ। इसलिए आप बता दीजिये कि अब आप कितना और चलकर झोंपड़ी बनाएंगे ? जब श्री रामचन्द्र जी ने अपनी प्रिया सीता जी की इस व्याकुलता को देखा तो उनकी सुन्दर आँखें आँसुओं से भर आयीं और उनसे अश्रु बिन्दु टपकने लगे।

NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 16 वन के मार्ग में

(2) “जल को गए लक्खन है लरिका, परिखौ, पिय। छाँह घरीक हवै ठाढ़े।
पोछि पसेउ बयारि करौ, अरू पायँ पखारि हौ भुभुरि डाढ़े”॥
तुलसी रघुवीर प्रिया रुम जानि के बैठि बिलंब लौ कंटक काढ़े ॥
जानकी नाह को नेह लख्यों, पुलको तनु, बारि वलोचन बाढ़े।।

शब्दार्थ : लरिका – बालक, परिखौ – प्रतीक्षा करो, घरीक – एक घड़ी, थोड़ी देर, पसेउ – (प्रस्वेद) पसीना, बयारि करौं – हवा करूँ, पखारिहौं – धोऊँगी, भूभुरी – गर्म-धूल, जलता हुआ रेत, काढ़े – निकाले, नाह को – (नाथ का), स्वामी का, लख्यो – देखा, पुलको – पुलकित हो गया, प्रसन्न हो गया, विलोचन – आँखों में

प्रसंग- वन मार्ग में चलते हुए जब सीता जी चलते-चलते थकने लगीं तो अपनी थकान छिपाकर लक्ष्मण जी को पानी लाने और प्रिय की थकान को लेकर विश्राम करने का आग्रह करती हैं। प्रभु सीता के मन की बात जानकर देर तक अपने पैरों के काँटे निकालते रहे।

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि जानकी जी अपने प्रिय रामचन्द्र जी से कहने लगी कि हे प्रभु! जब तक बालक लक्ष्मण जल लेने गये हैं और वे आ नहीं जाते, तब तक आप उनकी प्रतीक्षा कर लो और एक घड़ी छाया में खड़े हो जाओ अर्थात् जब तक लक्ष्मण जी जल लेकर आयें तब तक आप वृक्षों की छाया में खड़े होकर उनकी बाट जोह लो। चूँकि बहुत थक चुके हो, इसीलिए मैं आपके पसीने को पौंछकर आपकी हवा कर दूंगी और आपके चरण जो गर्म धूल में चलने के कारण झुलस गए हैं उन्हें धो दूंगी।

तुलसीदास जी कहते हैं कि रामचन्द्र जी ने अपनी प्रिया की थकावट को समझ लिया और बड़ी देर तक अपने पैरों से काँटे निकालते रहे अर्थात् रामचन्द्र जी ने समझ लिया कि सीता जी थक गयीं हैं। इसी से वे सीधे न कहकर मेरी सेवा के बहाने विश्राम करना चाहती हैं। अतएव उन्होंने सीता जी को विश्राम देने की दृष्टि से काँटे निकालने का बहाना किया और देर तक चुप बैठे रहे। जब सीता जी ने अपने स्वामी का अपने प्रति इतना प्रेम देखा तो उनका शरीर पुलकित हो गया और नेत्रों से प्रेम के आँसू पिरने लगे।

वन के मार्ग में Summary

पाठ का सार

दूसरे सवैये में सीता जी चलते-चलते अपनी थकान छिपाकर लक्ष्मण जी को पानी लाने के लिए भेजती हैं और सम की थकान को लेकर विश्राम करने की सलाह देती हैं। श्री राम सीता के मन की बात समझकर देर तक अपने पैरों से काँटे निकालते रहते हैं।

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NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 15 नौकर

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नौकर NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 15

Class 6 Hindi Chapter 15 नौकर Textbook Questions and Answers

निबंध से

प्रश्न 1.
आश्रम में कॉलेज के छात्रों से गाँधी ने कौन-सा काम करवाया और क्यों ?
उत्तर:
गाँधी जी ने कॉलेज के छात्रों से गेहूँ बीनने का काम करवाया। उन छात्रों को अपने अंग्रेजी भाषा के ज्ञान पर बड़ा गर्व था। गाँधी जी उनके इस गर्व को तोड़ना चाहते थे। वे यह शिक्षा देना चाहते थे कि अधिक पढ़ लेने पर भी हमें छोटे कार्य करने में संकोच नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 2.
‘आश्रम में गाँधी जी कई ऐसे काम भी करते थे, जिन्हें आमतौर पर नौकर-चाकर करते हैं’। पाठ से तीन अलग-अलग प्रसंग अपने शब्दों में लिखो जो इस बात का प्रमाण हों।
उत्तर:

  1. वे चक्की को अपने हाथों से चलाकर गेहूँ पीसा करते थे। वे कभी-कभी
  2. वे बर्तनों की सफाई अपने हाथों से किया करते थे। वे बर्तनों को रगड़-रगड़ कर चमकीला बना दिया करते थे।
  3. वे रसोई घर में सब्जियों को धोने, छीलने, काटने का कार्य भी स्वयं करते थे। उनके लिए कोई कार्य छोटा या बड़ा नहीं था।

प्रश्न 3.
लंदन में भोज पर बुलाए जाने पर गाँधी जी ने क्या किया ?
उत्तर:
जब लंदन में गाँधी जी को वहाँ के छात्रों ने भोज पर बुलाया तो गाँधी जी समय से पहले पहुँचकर तश्तरियाँ धोने, सब्जी साफ करने और अन्य काम करने लगे, किसी ने उनकी तरफ ध्यान ही नहीं दिया कि ये कौन हैं। अंत में छात्रों के नेता के आने पर पता चला कि ये तो हमारे सम्मानित अतिथि हैं।

प्रश्न 4.
गाँधी जी ने श्रीमती पोलक के बच्चे का दूध कैसे छुड़वाया ?
उत्तर:
एक बार दक्षिण अफ्रीका में जेल से छूटने के बाद घर लौटने पर गाँधी जी ने देखा कि उनके मित्र की पत्नी श्रीमती पोलक बहुत ही दुबली और कमजोर हो गई हैं। उनका बच्चा उनका दूध पीना छोड़ता नहीं था और वह उसकी दूध छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। बच्चा उन्हें चैन नहीं लेने देता था और रो-रोकर उन्हें जगाए रखता था। गाँधी जी जिस दिन लौटे उसी रात से उन्होंने बच्चे की देखभाल का काम अपने हाथों में ले लिया। सारे दिन कड़ी मेहनत करने, सभाओं में भाषण देने के बाद, चार मील पैदल चलकर गाँधी कभी-कभी रात को एक बजे घर पहुंचते थे, और बच्चे को श्रीमती पोलक के बिस्तर से उठाकर अपने बिस्तर पर लिटा लेते थे। वह चारपाई के पास एक बर्तन में पानी भरकर रख लेते ताकि यदि बच्चे को प्यास लगे तो उसे पिला दें, लेकिन इसकी जरूरत ही नहीं पड़ती थी। बच्चा कभी नहीं रोता और उनकी चारपाई पर रात में आराम से सोता रहता था। एक पखवाड़े तक माँ से अलग सोने के बाद बच्चे ने माँ का दूध छोड़ दिया।

प्रश्न 5.
आश्रम में काम करवाने का कौन-सा तरीका गाँधी जी अपनाते थे ? इसे पाठ पढ़कर लिखो।
उत्तर:
आश्रम में काम करवाने के लिए परस्पर सहयोग पर बल दिया जाता था। सभी व्यक्तियों को कार्य करना पड़ता था। आश्रम में सभी लोग अपने खाने के बर्तन स्वयं साफ करते थे। रसोई के बड़े बर्तन सभी बारी-बारी से साफ किया करते थे।

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निबंध से आगे

प्रश्न 1.
गाँधी जी इतना पैदल क्यों चलते थे ? पैदल चलने के क्या लाभ हैं ? लिखो।
उत्तर:
गाँधी जी अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पैदल चलते थे। पैदल चलने से हमारे फेफड़ों में अंदर तक हवा पहुँचती है। हमारे शरीर पर अनावश्यक चर्बी नहीं बढ़ती। हमारा स्वास्थ्य अच्छा रहता है तथा हमें दूसरों के ऊपर आश्रित भी नहीं रहना पड़ता। पैदल चलने से लाभ ही लाभ हैं।

प्रश्न 2.
अपने घर के किन्हीं दस कामों की सूची बनाकर लिखो कि ये काम घर के कौन से सदस्य अक्सर करते हैं ? तुम अगले पृष्ठ पर बनी तालिका की सहायता ले सकते हो-
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अब यह देखो कि कौन सबसे ज़्यादा काम करता है और कौन सबसे कम। कामों का बराबर बँटवारा हो सके, इसके लिए तुम क्या कर सकते हो ? सोच कर शिक्षक को बताओ।

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अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
गाँधी जी अपने साथियों की ज़रूरत के मुताबिक हर काम कर देते थे, लेकिन उनका खुद का काम कोई और करे, यह उन्हें पसंद नहीं था क्यों ? सोचो और अपने शिक्षक को सुनाओ।
उत्तर:
गाँधी जी को किसी की सेवा लेना अच्छा नहीं लगता था। उनका मानना था कि सेवा के हकदार बीमार, बूढ़े और बच्चे होते हैं। हमें अपना कार्य स्वयं करना चाहिए तभी आत्मनिर्भरता आती है।

प्रश्न 2.
‘नौकरों को हमें वेतनभोगी मज़दूर नहीं, अपने भाई के समान मानना चाहिए। इसमें कुछ कठिनाई हो सकती है, फिर भी हमारी कोशिश सर्वथा निष्फल नहीं जाएगी। गाँधी जी की इस बात को अपने मित्रों को समझाओ।
उत्तर:
छात्र इस बात को सोचें और ऐसा ही करने का प्रयत्न करें साथ ही अपने मित्रों को भी बताएँ कि हम सभी समान हैं।

प्रश्न 3.
गाँधी जी की कही-लिखी बातें लगभग सौ से अधिक किताबों में दर्ज हैं। घर के काम, बीमारों की सेवा, मेहमानों से बातचीत आदि ढेरों काम करने के बाद गाँधी जी को लिखने का समय कब मिलता होगा ? गाँधी जी का एक दिन कैसे गुज़रता होगा, इस पर अपनी कल्पना से लिखो।
उत्तर:
गाँधी जी सुबह उठकर सबसे पहले नित्यकर्म से निवृत्त होकर ईश्वर का भजन करते होंगे। फिर वे बाहर घूमकर आते होंगे। इसके बाद वे थोड़ा बहुत खाकर लिखने पढ़ने का कार्य करते होंगे। इसके बाद वे आने वालों से मुलाकात करते होंगे। रात्रि को सोने से पहले वे दिन भर के पत्रों का जवाब देते होंगे।

प्रश्न 4.
पाठ में बताया गया है कि गाँधी जी और उनके साथी आश्रम में रहते थे। आश्रम किसे कहते हैं ? स्कूल के छात्रावास से गाँधी जी का आश्रम किस तरह अलग था ? पता करो और अपने शिक्षक को सुनाओ।
उत्तर:
आश्रम नगर व गाँव के शोरगुल से दूर वन में स्थित ऐसा स्थान होता है जहाँ रहने की व्यवस्था बिल्कुल सादे ढंग से होती है। विद्यालय पक्की ईंटों का बना होता है व शहर या गाँव में स्थित होता है। आश्रम जंगल में बना होता है वहाँ अक्सर फँस की बनी हुई झोंपड़ियाँ होती हैं।

प्रश्न 5.
ऐसे कामों की सूची बनाओ जिसे तुम हर रोज़ खुद कर सकते हो पर नहीं करते ? सामने उनका नाम लिखो जो यह काम तुम्हारे लिए करते हैं।
उत्तर:
निम्नलिखित कार्य ऐसे हैं जिन्हें हम खुद कर सकते हैं परन्तु करते नहीं-
सब्जी लाना, सब्जी काटना, रोटी बनाना, कपड़ों पर इस्त्री करना, जूते पॉलिश करना, अपने कपड़ों को धोना आदि।

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भाषा की बात

प्रश्न 1.
(क) ‘पिसाई’ संज्ञा है, जो ‘पीस’ क्रिया के अंत में ‘ई’ प्रत्यय जोड़ने से बनी है। किसी शब्द के अंत में कुछ जोड़ा जाए, तो उसे प्रत्यय कहते हैं। नीचे ऐसी कुछ और संज्ञाएँ लिखी हैं। बताओ कि ये किन क्रियाओं से बनी हैं-
बुआई …………….., बुआई ……………..
सिंचाई …………….., रोपाई ……………..
कताई …………….., रंगाई ……………..
उत्तर:
बुआई – बोना, कटाई – काटना
सिंचाई – सींचना, रोपाई – रोपना
कताई – कातना, रंगाई – रंगना

(ख) हर काम-धंधे और हर क्षेत्र की अपनी अलग भाषा और शब्द-भंडार होता है। ऊपर लिखे शब्दों का संबंध दो अलग-अलग कामों से है। पहचानो कि वे क्षेत्र कौन-से हैं।
उत्तर:
खेती और सूत तैयार करना।

प्रश्न 2.
हमारे आस-पास ऐसे कई घरेलू काम हैं, जिन्हें अब कम महत्त्व दिया जाता है। कपड़े सिलना इनमें से एक है। नीचे इस काम से जुड़े कुछ शब्द दिए गए हैं। आस-पास के बड़ों से या दर्जी से पूछो और प्रत्येक शब्द को एक-दो वाक्यों में समझाओ। इस सूची में और शब्द भी जोड़ो-
तुरपाई, कच्ची सिलाई, बखिया, चोर-सिलाई
उत्तर:
कमीज की तुरपाई अच्छी नहीं है।
दर्जी पहले कच्ची सिलाई करता है।
उसने तो उसकी बखिया उधेड़ दी।
पैसे रखने के लिए पैंट में चोर सिलाई करानी चाहिए।
नोट : बखिया उधेड़ने का अर्थ है ताना-बाना उधेड़ देना।

प्रश्न 3.
नीचे लिखे गए शब्द पाठ से लिए गए हैं। इन्हें पाठ में खोज कर बताओ कि ये स्त्रीलिंग हैं या पुल्लिंग-
कालिख, भराई, चक्की, रोशनी, जेल, सेवा, पतीला
पाठ के वाक्यों की सहायता से यह भी बताओ कि तुमने यह कैसे जाना ? इसे अपने शिक्षक को सुनाओ।
उत्तर:
कालिख, भराई, चक्की, रोशनी, जेल, सेवा स्त्रीलिंग हैं पतीला पुल्लिंग है।
स्त्रीलिंग पुल्लिंग का कोई निश्चित नियम नहीं है केवल अध्ययन एवं प्रयोग से ही स्त्रीलिंग व पुल्लिंग का पता चलता है।

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महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. आश्रम में गाँधी कई ऐसे काम भी करते थे जिन्हें आमतौर पर नौकर-चाकर करते हैं। जिस जमाने में वह बैरिस्टरी से हजारों रुपये कमाते थे, उस समय भी वह प्रतिदिन सुबह अपने हाथ से चक्की से आटा पीसा करते थे। चक्की चलाने में कस्तूरबा और उनके लड़के भी हाथ बँटाते थे। इस प्रकार घर में रोटी बनाने के लिए महीन या मोटा आटा वे खुद पीस लेते थे। साबरमती आश्रम में भी गाँधी ने पिसाई का काम जारी रखा। वह चक्की को ठीक करने में कभी-कभी घंटों मेहनत करते थे।

प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत’ में संकलित पाठ ‘नौकर’ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक ‘अनुबंधोपाध्याय’ जी हैं। उन्होंने यहाँ गाँधी जी के जीवन पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या- साबरमती आश्रम में रहते हुए गाँधी जी अपने सारे काम स्वयं करते थे। नौकर-चाकरों द्वारा करने वाले काम भी वे खुद ही कर लेते थे। गाँधी जी वकालत करके हजारों रुपये कमाते थे फिर भी वे अपने हाथ से चक्की चलाकर पीसा करते थे। वे अपने प्रत्येक कार्य के लिए समय निकाल लिया करते थे। चक्की चलाने में उनकी पत्नी कस्तूरबा एवं उनके पुत्र भी उनकी सहायता किया करते थे। उन्हें जैसे भी आटे की आवश्यकता होती थी, चाहे मोटा या बारीक वे खुद ही पीस लिया करते थे। साबरमती आश्रम में उन्होंने पिसाई का कार्य सुचारू रूप से जारी रखा। चक्की को पूरी तरह से ठीक करके ही वे आटा पीसते थे भले ही उसमें उनको घंटों लग जाएँ।

2. गाँधी दूसरों से काम लेने में बहुत सख्त थे, लेकिन अपने लिए दूसरों से काम कराना उन्हें नापसंद था। एक बार एक राजनीतिक सम्मेलन से गाँधी जब अपने डेरे पर लौटे तो रात हो गई थी। सोने से पहले वह अपने कमरे का फर्श बुहार रहे थे। उस समय रात के दस बजे थे। एक कार्यकर्ता ने दौड़कर गाँधी के हाथ से बुहारी ले ली। उनको यह पसंद नहीं था।

प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत’ में संकलित पाठ ‘नौकर’ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक ‘अनुबंधोपाध्याय’ जी हैं। लेखक ने यहाँ गाँधी जी के सामाजिक जीवन के बारे में बताया है।

व्याख्या- गाँधी जी अपना काम स्वयं करने में ही विश्वास रखते थे वे दूसरों से अपना काम करवाने के बहुत सख्त खिलाफ थे। उनको यह बिल्कुल भी पसंद नहीं था। एक बार किसी राजनैतिक सम्मेलन से अपने डेरे पर लौटते समय गाँधी जी को पहुँचने में देर हो गई। वे रात को ही अपने हाथ में झाडू लेकर सफाई का कार्य करने लगे। एक कार्यकर्ता ने उनको जब झाडू लगाते देखा तो उसने उनके हाथ से झाडू लेनी चाही परन्तु गाँधी जी को तो अपने काम आप ही करने अच्छे लगते थे।

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नौकर Summary

पाठ का सार

साबरमती आश्रम में रहते हुए भी महात्मा गाँधी अपने सभी काम खुद किया करते थे। उस समय में जब वे बैरिस्ट्ररी से हज़ारों रुपये कमाते थे, गाँधी जी नौकर के साथ भाई-बहिन का व्यवहार करते थे। उन्हें वे नौकर नहीं बल्कि घर का सदस्य ही समझते थे। वे सबके साथ स्नेह का व्यवहार करते थे, वे उदार हृदय वाले भारतीय थे।

गाँधी जी घर में रोटी बनाने के लिए चक्की से आटा स्वयं पीसते थे। आश्रम में भी वह सुबह-सुबह चक्की से आटा स्वयं पीसते थे। चक्की को चलाने में उनकी पत्नी कस्तूरबा तथा उनके लड़के उनका हाथ बँटाते थे। एक बार आश्रम में आटा कम पड़ जाने पर वे स्वयं आटा पीसने के लिए उठ खड़े हुए। गेहूँ पीसने से पहले वे उसे साफ करने पर ज्यादा जोर देते थे। कंपनी के कार्यकर्ता इस महान व्यक्ति को गेहूँ बीनते देखकर हैरत में पड़ जाते थे। बाहरी लोगों के सामने मेहनत करने में उन्हें शर्म नहीं आती थी। वे प्रत्येक कार्य को मेहनत व बड़ी लग्न से करते थे।

कुछ वर्षों तक गाँधी जी ने आश्रम में भंडार का काम संभाला। सवेरे प्रार्थना के बाद वे रसोई घर में सब्जियाँ छीलते थे। अगर वहाँ पर उन्हें कोई गंदगी नजर आती तो वे साथियों को डाँट लगाते थे। उन्हें फल, सब्जियों के पौष्टिक गुणों का काफी ज्ञान था। वे सब्जियों को बिना धोए काटने नहीं देते थे। वे आश्रमवासियों के लिए स्वयं भोजन परोसते थे। इसलिए वे उबली एवं बेस्वाद चीजों के विरुद्ध कुछ नहीं कहते थे। एक बार गाँधी जी ने एक आश्रमवासी को काले चक्ते पड़े हुए केले खाने को दिए तो उसे बुरा लगा, फिर गाँधी जी ने उसे समझाया कि तुम्हारा हाज़मा कमजोर है इसलिए ये तुम्हें दिए गए हैं ताकि जल्दी पचा सको। गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका की जेल में कैदियों को दिन में दो बार भोजन परोसने का कार्य कर चुके थे।

आश्रम का एक नियम था कि सभी खाना खाने के बाद अपने बर्तन स्वयं साफ करें। रसोई के बड़े बर्तनों को साफ करने के लिए कुछ लोग दिन बाँध लेते थे। एक दिन गाँधी जी ने आश्रम के बड़े बर्तनों को धोने का कार्य अपने ऊपर लिया। पतीलों में बड़ी कालिख लगी थी, वे रगड़-रगड़ कर उन्हें साफ करने लगे तभी उनकी पत्नी कस्तूरबा वहाँ आ गयी और बोली, यह आपका काम नहीं है इसको करने के लिए यहाँ पर और लोग हैं। गाँधी जी कस्तूरबा को बर्तन की सफाई सौंपकर चले गए। आश्रम का जब निर्माण हो रहा था तो मेहमानों को तंबुओं में सोना पड़ता था, नए मेहमान को नहीं पता था कि बिस्तर को कहाँ रखना है। उसने लपेटकर उसे रख दिया तो गाँधी जी उसका बिस्तर स्वयं उठाकर रखने के लिए चल दिए। आश्रम के लिए कुएँ से पानी लाने का काम वे रोज करते थे उन्हें यह बात पसन्द नहीं थी कि वह बूढ़ा होने के कारण शारीरिक श्रम न करें। हर प्रकार का काम करने की. उनमें अद्भुत क्षमता थी। वे थकान का नाम नहीं जानते थे वे कई मीलो तक पैदल चलते थे। दक्षिण अफ्रीका में बोकर युद्ध के दौरान उन्होंने घायलों को स्ट्रेचर पर लादकर अस्पताल पहुंचाया। एक बार तालाब की भराई में उनके साथी लगे हुए थे। जब वे शाम को काम करके लौटे तो गाँधी जी ने उनके लिए भोजन तैयार करके रखा क्योंकि वह सब लोग थके हुए लौटेंगे।

दक्षिण अफ्रीका में एक भारतीय छात्र ने उन्हें शाकाहारी भोज के लिए आमंत्रित किया इसलिए छात्रों ने भोजन स्वयं बनाया। तीसरे पहर एक दुबला-पतला आदमी आकर उनमें शामिल हो गया और बर्तन धोने का काम करने लगा। कुछ देर बाद छात्रों का नेता वहाँ आया तो देखता है कि वह बर्तन धोने वाला दुबला-पतला व्यक्ति कोई और नहीं सम्मानित अतिथि गाँधी जी थे। गाँधी जी को अपने लिए दूसरों से काम कराना पसन्द नहीं था। रात को यदि लिखते समय लालटेन का तेल खत्म हो जाता था तो वे चन्द्रमा की रोशनी में काम पूरा कर लेना पसन्द करते थे। अपने किसी कार्य के लिए वे अपने किसी सोए हुए साथी को जगाते नहीं थे।

गाँधी जी को बच्चों से बहुत प्यार था। अपने बच्चों के जन्म के बाद उन्होंने उनकी देखभाल के लिए कभी किसी धाय को नहीं रखा। उनका कहना था कि बच्चे के विकास के लिए माँ-बाप का प्यार और उनकी देखभाल जरूरी है। वे माँ की तरह बच्चों की देखभाल कर सकते थे। दक्षिण अफ्रीका में जेल से छूटने के बाद जब वे घर लौटे तो देखा कि उनके मित्र की पत्नी पोलक बहुत कमज़ोर हो गयी है। वह बहुत कोशिश कर चुकी पर उनका बच्चा दूध पीना नहीं छोड़ता था। गाँधी जी ने तभी से उस बच्चे की देखभाल का काम अपने हाथों में ले लिया। सारा दिन मेहनत के बाद वे रात को देर से घर लौटते थे और श्रीमति पोलक के बिस्तर से बच्चे को उठाकर अपने बिस्तर पर लिटा लेते थे। रात को प्यास लगने पर गाँधी जी बच्चे को स्वयं पानी पिलाते थे। एक महीने तक माँ से अलग सोने के बाद बच्चे ने दूध पीना छोड़ दिया। गाँधी जी के पास बच्चा कभी नहीं रोया।

गाँधी जी अपने से बड़ों का आदर सत्कार किया करते थे। एक बार दक्षिण अफ्रीका में गोखले गाँधी जी के साथ ठहरे हुए थे। वे उनके कपड़ों पर प्रैस करते थे, उनका बिस्तर लगाते थे और उनको भोजन परोस कर देते थे। वे उनके हाथ पैर दबाने को भी तैयार रहते थे गोखले के मना करने पर भी वे मानते नहीं थे। महात्मा कहलाने से पहले वे दक्षिण अफ्रीका से बाहर आने पर कांग्रेस के अधिवेशन में गए वहाँ उन्होंने गन्दी लैट्रिन, बाथ रूम साफ किए। बाद में एक कांग्रेसी नेता से उन्होंने पूछा, “कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ”, नेता ने कहा कि मेरे पास बहुत से पत्र इकट्ठे हो गए हैं इनका जवाब देना है। तुम यह काम करने के लिए तैयार हो। गाँधी जी ने कहा कि मैं ऐसा कोई भी काम कर सकता हूँ जो मेरी सामर्थ्य से बाहर न हो। गाँधी जी ने यह काम बहुत थोड़े समय में ही समाप्त कर दिया फिर उन्होंने नेता की कमीज के टूटे हुए बटन लगा दिए और उनकी सेवा का काम भी किया।

जब कभी आश्रम में किसी सहयोगी को रखने की आवश्यकता होती थी तो वे हरिजन को रखने का आग्रह करते थे। वे कहते थे कि नौकरों को हमें वेतन-भोगी मज़दूर नहीं मानना चाहिए बल्कि अपने परिवार का सदस्य समझना चाहिए। एक बार जब वे जेल में अपने साथियों के साथ थे तो कई कैदियों को उनकी सेवा का काम सौंपा गया, एक आदमी उनके बर्तन धोता था दूसरा उनकी लैट्रिन की सफाई करता था तो तीसरा ब्राह्मण कैदी भी उनके बर्तन धोता था। दो यूरोपियन उनकी चारपाई बाहर निकालते थे। गाँधी जी ने देखा कि इंग्लैंड के घरों में नौकर को परिवार का सदस्य माना जाता है। अंग्रेज परिवार से विदा लेते समय नौकरों का परिचय उनसे नौकरों की तरह नहीं बल्कि परिवार के सदस्य के समान कराया गया। तब उन्हें बहुत खुशी हुई और कहा कि मैं किसी को अपना नौकर नहीं समझता बल्कि अपना भाई या बहिन समझता हूँ आपने जो मेरी सेवा की उसके बदले मेरे पास आपको देने के लिए कुछ नहीं है। भगवान आपको इसका फल देंगे।

शब्दार्थ:
आश्रम – कुटिया, मठ, प्रतिदिन – रोजाना, छात्र – विद्यार्थी, मेहमान – अतिथि, कुआँ – कूप, जेल – कारागार, कालिख – कालापन, नौकर – सेवक, अनुचर, निष्फल – व्यर्थ, बेकार, कैदी – बंदी, चन्द्रमा – चाँद, निमन्त्रित – बुलाया हुआ, अनुमति – स्वीकृति, इज़ाजत, अवस्था – आयु, बैरिस्टरी – वकालत, फौरन – तुरंत, अनुमति – स्वीकृति, इज़ाजत, अवस्था – आयु, बीनना – चुनना, छाँटना, हैरत – अचंभा, आगंतुक – मेहमान, चारा – उपाय, हाजमा – पाचन शक्ति, माँजना – रगड़कर साफ करना, पखवाड़ा – पन्द्रह दिन का समय, अद्भुत – अनोखा/आश्चर्यजनक, कारकून – कारिंदा, काम करने वाला, अनुकरण – नकल, प्रतिदान – किसी ली हुई वस्तु के बदले, छरहरा – चुस्त, फुर्तीला दूसरी वस्तु देना, कौपीनधारी – धोती पहनने के एक विशेष ढंग के कारण, बुहारी – झाडू देना यह विशेषण गाँधी जी के लिए प्रयोग किया जाताथा। लंगोटी धारण करने वाला, खाखरा – एक गुजराती व्यंजन, चैन – आराम

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NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 14 लोक गीत

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लोक गीत NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 14

Class 6 Hindi Chapter 14 लोक गीत Textbook Questions and Answers

निबंध से

प्रश्न 1.
निबंध में लोक गीतों के किन-किन पक्षों की चर्चा हुई है ? बिंदुओं के रूप में उन्हें लिखो।
उत्तर:
इस निबंध में लोक गीतों के निम्नलिखित पक्षों की चर्चा हुई है-

  1. लोक गीत लोकप्रिय होते हैं।
  2. ये शास्त्रीय संगीत से भिन्न होते हैं।
  3. ये गाँव देहात की जनता के गीत हैं।
  4. इन गीतों के लिए किसी साधना की आवश्यकता नहीं पड़ती।
  5. ये गीत त्योहारों और फसल कटाई, बुवाई जैसे विशेष अवसरों पर गाए जाते हैं।
  6. इन गीतों की रचना गाँव के ही लोगों के द्वारा हुई है।
  7. ये गीत बिना किसी विशेष बाजे की मदद के भी गाए जा सकते हैं।

प्रश्न 2.
हमारे यहाँ स्त्रियों के खास गीत कौन-कौन से हैं।
उत्तर:
हमारे यहाँ त्योहारों पर नदियों में नहाते समय के, नहाने जाते हुए राह के, विवाह के, मरकोड़ ज्यौनार के, सबंधियों के लिए प्रेमयुक्त गाली के, जन्म आदि के गीत स्त्रियों के गीत हैं। इनको स्त्रियाँ ही गाती हैं। इसके अतिरिक्त कजरी, गुजरात का गरबा और ब्रज का रसिया भी स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला गीत है।

प्रश्न 3.
निबंध के आधार पर और अपने अनुभव के आधार पर (यदि तुम्हें लोक गीत सुनने के मौके मिले हैं तो) तुम लोक गीतों की कौन-सी विशेषताएँ बता सकते हो ?
उत्तर:
लोक गीत की निम्न विशेषताएँ हैं-लोक गीत गाँव के अनपढ़ पुरुष व औरतों के द्वारा रचे गए हैं। इनके लिए साधना की जरूरत नहीं होती। ये त्योहारों और विशेष अवसरों पर ही गाए जाते हैं। मार्ग या देशी के सामने इनको हेय समझा जाता था अभी तक इनकी उपेक्षा की जाती है। लेकिन साहित्य और कला के क्षेत्र में परिवर्तन होने पर प्रान्तों की सरकारों ने लोक गीत लोक-साहित्य के पुनरुद्धार में हाथ बँटाया। वास्तविक लोक गीत गाँव व देहात में हैं। स्त्रियों के लोक गीतों की रचना में विशेष रूप से भाग लिया है। लोक गीत देशी और मार्ग दोनों प्रकार के संगीत से भिन्न हैं। लोक गीत ढोलक, झांझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से गाए जाते हैं।

प्रश्न 4.
‘पर सारे देश के ….. अपने-अपने विद्यापति हैं, इस वाक्य का क्या अर्थ है ? पाठ पढ़कर मालूम करो और लिखो।
उत्तर:
इस वाक्य का अर्थ यह है कि भारत के प्रत्येक क्षेत्र में गीतों के रचनाकार एवं गायक हुए हैं जैसे की मैथिल कोकिला विद्यापति। आप जिस क्षेत्र में भी जाएँगे आपको वहाँ ऐसी प्रतिभाओं के दर्शन हो जाएँगे।

NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 14 लोक गीत

अनमान और कल्पना

प्रश्न 1.
क्या लोक गीत और नृत्य सिर्फ गाँवों या कबीलों में ही पाए जाते हैं ? शहरों के कौन से लोक गीत हो सकते हैं ? इस पर विचार करके लिखो।
उत्तर:
लोक गीत और नृत्य अधिकतर गाँवों या कबीलों में ही पाए जाते हैं। शहरों में अपने लोक गीत नहीं होते। शहरों में जो लोक गीत गाए जाते हैं वे भी किसी न किसी रूप में गाँवों से ही जुड़े हुए हैं।

प्रश्न 2.
‘जीवन जहाँ इठला-इठला कर लहराता है, वहाँ भला आनंद के स्रोतों की कमी हो सकती है ? उद्दाम जीवन के ही वहाँ के अनंत संख्यक गाने प्रतीक हैं। क्या तुम इस बात से सहमत हो? ‘बिदेसिया’ नामक लोक गीत से कोई कैसे आनंद प्राप्त कर सकता है और वे कौन लोग हो सकते हैं जो इसे गाते-सुनते हैं ? इसके बारे में जानकारी प्राप्त कर अपने शिक्षक को सुनाओ।
उत्तर:
किसी भी लोक गीत से आनंद प्राप्त किया जा सकता है यदि आप वहाँ की बोली से थोड़ा भी परिचित हों। जो लोग भोजपुरी के जानकार हैं वे ‘बिदेसिया’ लोक गीत को सुनकर पूरा आनन्द उठा सकते हैं। इन गीतों में रसिक प्रियों और प्रियाओं की बात रहती है। इनसे परदेशी प्रेमी और करुणा का रस बरसता है।

कुछ करने को

प्रश्न 1.
तुम अपने इलाके के कुछ लोक गीत इकट्ठा करो। गाए जाने वाले मौकों के अनुसार उनका वर्गीकरण करो।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
जैसे-जैसे शहर फैल रहे हैं और गाँव सिकुड़ रहे हैं, लोक गीतों पर उनका क्या असर पड़ रहा है ? अपने आस-पास के लोगों से बातचीत करके और अपने अनुभवों के आधार पर एक अनुच्छेद लिखो।
उत्तर:
धीरे-धीरे लोक गीतों का महत्त्व घटता जा रहा है। लोक कलाकार भी अपनी इस कला को छोड़ने लगे हैं इनके स्थान पर फिल्मी गीतों का जोर हो गया है। यदि किसी फिल्म में कोई लोक गीत होता है तो वह अवश्य ही लोक प्रियता पा लेता है।

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भारत के मानचित्र में

भारत के नक्शे में पाठ में चर्चित राज्यों के लोक गीत और नृत्य दिखाओ।
उत्तर:
NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 14 लोकगीत 1

भाषा की बात

प्रश्न 1.
‘लोक’ शब्द में कुछ जोड़कर जितने शब्द तुम्हें सूझें, उनकी सूची बनाओ। इन शब्दों को ध्यान से देखो और समझो कि उनमें अर्थ की दृष्टि से क्या समानता है। इन शब्दों से वाक्य भी बनाओ। जैसे-लोककला।
उत्तर:
लोक कल्याण, लोक सभा, लोकोक्ति, लोक संगीत, लोक भाषा

लोक कल्याण – साहित्य वही है जिसमें लोक-कल्याण की भावना हो।
लोक सभा – भारतीय गणतंत्र में लोक सभा के सदस्यों का चुनाव जनता करती है।
लोकोक्ति – पुराने जमाने से लोगों द्वारा कही गई ज्ञानवर्धक बातों को जो आज भी उसी तरह अपना अर्थ रचती हैं को लोकोक्ति कहते हैं।
लोक संगीत – लोक संगीत का अपना अलग ही आनंद है।
लोक भाषा – पुराने जमाने में संस्कृत भारत की लोक भाषा थी।

प्रश्न 2.
‘बारहमासा’ गीत में साल के बारह महीनों का वर्णन होता है। नीचे विभिन्न अंकों से जुड़े कुछ शब्द दिए गए हैं। इन्हें पढ़ो और अनुमान लगाओ कि इनका क्या अर्थ है और वह अर्थ क्यों है। इस सूची में तुम अपने मन से सोचकर भी कुछ शब्द जोड़ सकते हो-
इकतारा, सरपंच, चारपाई, सप्तर्षि, अठन्नी,
तिराहा, दोपहर, छमाही, नवरात्र
उत्तर:
अन्य शब्द-चौराहा, अष्टाध्यायी, पंचानन, पंचामृत, तिपाई, दशानन, चतुर्मख।

प्रश्न 3.
को, में, से आदि वाक्य में संज्ञा का दूसरे शब्दों के साथ संबंध दर्शाते हैं। पिछले पाठ (झाँसी की रानी) में तुमने का के बारे में जाना। नीचे ‘मंजरी जोशी’ की पुस्तक ‘भारतीय संगीत की परंपरा’ से भारत के एक लोकवाद्य का वर्णन दिया गया है। इसे पढ़ो और रिक्त स्थानों में उचित शब्द लिखो-
तुरही भारत के कई प्रांतों में प्रचलित है। यह दिखने में अंग्रेज़ी के एस या सी अक्षर की तरह होती है। भारत के विभिन्न प्रांतों में पीतल या काँसे से बना यह वाद्य अलग-अलग नामों से जाना जाता है। धातु की नली को घुमाकर एस का आकार इस तरह दिया जाता है कि उसका एक सिरा संकरा रहे और दूसरा सिरा घंटीनुमा चौड़ा रहे। फूंक मारने की एक छोटी नली अलग से जोड़ी जाती है। राजस्थान में इसे बगूँ कहते हैं। उत्तर प्रदेश में यह तूरी मध्य प्रदेश और गुजरात में रणसिंघा और हिमाचल प्रदेश में नरसिंघा के नाम से जानी जाती है। राजस्थान और गुजरात में इसे काकड़सिंघी भी कहते हैं।

प्रश्न 4.
तुमने देखा कि इतने सरस और जीवंत गीतों का निर्माण आदिवासी तथा ग्रामीण स्त्रियों जैसे साधारण लोगों ने किया है। यह देखकर ऐसा नहीं लगता कि सृजनशीलता कुछ गिने-चुने लोगों तक ही सीमित नहीं। इस विषय में अपने विचारों को विस्तार से लिखो।
उत्तर:
लोक गीत साधारण गाँव की जनता के द्वारा ही रचे गए हैं। इन गीतों की रचना का विषय कोरी कल्पना नहीं है। वे गीतों के विषय अपने रोजमर्रा के जीवन से लेते हैं। लोक गीतों में अधिकतर रसिक प्रिय और प्रियाओं की बात रहती हैं। परदेशी प्रेमी की और इनके करुणा और विरह का जो रस बरसता है उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। अहीरों के गीतों में एक ओर मर्द और दूसरी ओर स्त्रियाँ एक दूसरे के जवाब के रूप में दल बनाकर गाते हैं। अधिकतर संख्या अपने देश में स्त्रियों के गीतों की है इन्हें गाती भी स्त्रियाँ हैं। इन गीतों का सम्बन्ध विशेषतः स्त्रियों से है। त्योहारों के, विवाह के, ज्यौनार के, सम्बन्धियों के लिए प्रेमयुक्त गाली के, जन्म आदि सभी अवसरों के अलग-अलग गीत हैं जो स्त्रियाँ आज से नहीं बल्कि प्राचीन काल से गाती आ रही हैं। स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं। उनके गाने के साथ नाच का पुट भी होता है। इसी प्रकार होली के अवसर पर ब्रज में रसिया गाया जाता है जिसे स्त्रियाँ दल बनाकर गाती हैं। लोक गीतों के निर्माण में स्त्रियों ने काफी योगदान दिया है।

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लोक गीत व्याकरण बिन्दु

प्रश्न 1.
उसने अपने इलाके का लोक गीत गाया। उसने उस लोक गीत को गाया, जो उसके इलाके का था। ऊपर के दोनों वाक्यों पर ध्यान दो। दोनों में बिना अर्थ बदले उसके रूपों को बदला गया है। तुम इसी तरह नीचे लिखे वाक्यों के रूप बदलो।
उसने अपने हाथ की अंगुली नहीं दिखाई। तुमने अपने घर का दरवाजा नहीं खोला.। उसने अपने हिस्से की रोटी खायी।
उत्तर:

  • उसने उस अंगुली को नहीं दिखाया जो उसके हाथ में थी।
  • तुमने वह दरवाजा नहीं खोला जो तुम्हारे घर का है।
  • उसने वह रोटी नहीं खायी जो उसके हिस्से की है।

प्रश्न 2.
हम गा चुके।
मैं गाना गा चुका, तब वह आया।
मैंने गाना गाया और मेरी इच्छा पूरी हुई।
ऊपर का पहला वाक्य सरल वाक्य दूसरा मिश्र और तीसरा संयुक्त वाक्य है। तुम भी इस तरह के कुछ सरल, मिश्रित और सयुंक्त वाक्य बनाओ।
उत्तर:

  • मैं पुस्तक पढ़ने लागा। (सरल वाक्य)
  • जैसे ही वह आया मैं पुस्तक पढ़ने लगा (मिश्रित वाक्य)
  • मैं पढ़ने लगा और वह आ गया (संयुक्त वाक्य)

प्रश्न 3.
जिसमें किसी बात के न होने का आभास हो वह मिले निषेधवाचक जिसमें किसी तरह की आज्ञा का भाव हो वह आज्ञावाचक और जिसमें किसी प्रकार के प्रश्न किए जाने का बोध हो उसे प्रश्नवाचक वाक्य माना जाता है। जैसेमैंने गाना नहीं गाया। तुम गाओ।? क्या तुम गा रहे हो? अब तुम जिसमें आश्चर्य, दुःख या सुख का बोध हो, किसी बात का संदेह प्रकट हो और किसी प्रकार की इच्छा या शुभकामना का बोध हो को दर्शाने वाले कुछ वाक्य लिखो।
उत्तर:

  1. हम सब भारतवासी हैं। (विधानवाचक)
  2. हरि किशन घूस लेते हुए नहीं पकड़ा गया। (निषेधवाचक)
  3. शोर मत करो। (आशावाचक)
  4. तुम यहा खड़े क्या कर रहे हो? (प्रश्नवाचक)
  5. तुम जियो हज़ारों साल। (इच्छाबोधक)
  6. शायद आज वर्षा हो। (संदेहवाचक)
  7. अच्छी वर्षा होगी तो फसल भी अच्छी होगी। (संकेतवाचक)
  8. वाह! तुम तो बड़े खिलाड़ी निकले। (विस्मयादि बोधक)

प्रश्न 4.
कभी-कभी वाक्य में अनेक वाक्य होते हैं। उसमें एक प्रधान होता है और अन्य उपवाक्य होते हैं। जैसे- सोनू ने कहा कि मैं गाऊँगा। इसमें. ‘सोनू ने कहा’ प्रधान वाक्य है और ‘कि मैं गाऊँगा’ उपवाक्य । उपवाक्यों के शुरूआत में प्रायः कि, जिससे, ताकि, जो, जितना, ज्यों-ज्यों, चूँकि, क्योंकि, यदि, यद्यपि, जब, जहाँ आदि होते हैं। तुम कुछ वाक्यों को लिखो जिसमें उपवाक्य भी हों।
उत्तर:

  1. गाँधी जी ने कहा कि सत्य ही ईश्वर है।
  2. जिनको आप चरित्रहीन कहते थे वे आज मंत्री बनने वाले हैं।
  3. यह वह पुस्तक है जो मैंने नई सड़क से खरीदी थी।
  4. मोहन चाहता है कि सब उसकी हाँ में हाँ मिलाएँ।
  5. मैं जैसे ही पढ़ने बैठा वैसे ही बिजली चली गई।
  6. जो आपने कहा मैंने सुन लिया।
  7. जहाँ सच्चाई होगी, वहाँ सम्मान भी होगा।

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कुछ प्रमुख लोक गीत

सोहर – बच्चों के जन्म की खुशी में औरतें ढोलक बजाकर सोहर गाती हैं।
बोड़ी, बन्ना, मांडवा – विवाह की विभिन्न रस्मों पर गाए जाते हैं।
चदैंनी – यह ग्वालों का गीत है।
नटवा भक्कड़ – यह नाइयों का गीत है जो विवाह के अवसर पर गाया जाता है।
आल्हा – इसमें आल्हा-ऊदल की ऐतिहासिक लड़ाई का बखान किया जाता है।
मांड – राजाओं की प्रशंसा में कभी मांड गाए जाते थे, ये मारवाड़ के गीत हैं।
फाग – फागुन के महीने में वसंत पंचमी के दिन इसे पुरुष गाते हैं।
बारहमासी – भगवान राम और कृष्ण की लीलाओं का बखान करते हुए बारह महीनों के नाम इस गीत में लिये जाते हैं।
होली – होली के बाद चैत के महीने में चैती गाई जाती है।
वलयप्पटू, मुगवईपटू – फसल काटने और रोपने के समय दक्षिण भारत में प्रचलित लोक गीत।
वालांडनई पल्लू – दक्षिण के खानाबदोशों के गीत।
कुस्सी कोलात्म – मन बहलाव के लिए दक्षिण भारत में प्रचलित गीत।
कजली – सावन के महीने में कजली गई जाती है। बनारस और मिर्जापुर की कजली बहुत मशहूर हैं। लड़कियाँ और औरतें झूला झूलते हुए कजली गाती हैं।

महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. लोक गीत अपनी लोच, ताजगी और लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं। लोक गीत सीधे जनता के संगीत हैं। घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं ये। इनके लिये साधना की ज़रूरत नहीं होती। त्योहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं। सदा से ये गाये जाते रहे हैं और इनके रचने वाले भी अधिकतर गाँव के लोग ही हैं। स्त्रियों ने भी इनकी रचना में विशेष भाग लिया है। ये गीत बाजों की मदद के बिना ही या साधारण ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से गाये जाते हैं।

प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत’ में संकलित पाठ ‘लोक गीत’ से अवतरित है। इस पाठ के लेखक ‘भगवतशरण उपाध्याय’ जी हैं। लेखक ने यहाँ लोक गीतों के बारे में बताया है।

व्याख्या- शास्त्रीय संगीत और लोक गीत दोनों में काफी भिन्नता है। लोक गीत अपने लचीलेपन, ताज़गी और लोकप्रियता में आम-जन तक पहुँच रखता है। लोक गीत आम लोगों के गीत हैं इसलिए इनकी लोकप्रियता सीधे जनता में होती है। ये गीत घर, गाँव और नगर की आम जनता के गीत हैं। इन गीतों को गाने के लिए शास्त्रीय संगीत की तरह साधना की आवश्यकता नहीं होती। लोक गीत विभिन्न त्योहारों और विशेष अवसरों जैसे फसल की कटाई, बुवाई आदि पर गाए जाते हैं। लोक गीत सदा से ही गाए जाते रहे हैं। इनकी रचना किसी बड़े विद्धान के द्वारा नहीं हुई बल्कि आम लोगों के द्वारा ही हुई है। लोक गीतों की रचना का श्रेय महिलाओं को भी जाता है। महिलाओं ने भी इनकी रचना में अपना सहयोग दिया है। इन गीतों को गाने में किसी विशेष वाद्य यंत्र की आवश्यकता नहीं पड़ती। ये गीत साधारण साज जैसे ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से भी गाए जा सकते हैं।

2. वास्तविक लोक गीत देश के गाँवों और देहात में हैं। इनका सम्बन्ध देहात की जनता से है। बड़ी जान होती है इनमें। चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मिर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेश के पूरबी और बिहार के पश्चिमी जिलों में गाये जाते हैं। बाउल और भतियाली बंगाल के लोकगीत हैं। पंजाब में माहिया आदि इसी प्रकार के हैं। हीर-राँझा, सोहनी-महीवाल सम्बन्धी गीत पंजाबी में और ढोला-मारू आदि के गीत राजस्थानी में बड़े चाव से गाये जाते हैं।

प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत भाग-1′ में संकलित पाठ ‘लोक गीत’ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक ‘भगवतशरण उपाध्याय’ जी हैं। इस पाठ में लेखक ने लोक गीतों के महत्त्व के बारे में बताया है।

व्याख्या- लेखक का कहना है कि लोक गीतों का सबसे अधिक प्रभाव देश के गाँवों और देहातों में है। लोक गीत का संबंध सीधे तौर पर देहात की जनता से माना जाता है। लोक गीत बहुत ही प्रभावशाली होते हैं। चैता, कंजरी, बारहमासा, सावन आदि अनेक लोक गीत हैं। ये लोक गीत मिर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेश के और बिहार के अनेक जिलों में गाए जाते हैं। बाउल और भतियाली बंगाल में गाए जाने वाले लोक गीत हैं। पंजाब में भी अनेक लोक गीत प्रचलित हैं जिनमें माहिया, हीर-रांझा, सोहनी-महीवाल आदि हैं। राजस्थान के लोक गीतों में ढोला मारू बहुत प्रसिद्ध है वह बड़े-चाव से राजस्थान के देहातों में गाया जाता है।

3. अनन्त संख्या अपने देश में स्त्रियों के गीतों की है। हैं तो ये गीत भी लोक गीत ही पर अधिकतर इन्हें औरतें ही गाती हैं इन्हें सिरजती भी अधिकतर वही हैं। वैसे मर्द रचने वालों या गाने वालों की भी कमी नहीं है पर इन गीतों. का सम्बन्ध विशेषतः स्त्रियों से है। इस दृष्टि से भारत इस दिशा में सभी देशों से भिन्न है क्योंकि संसार के अन्य देशों में स्त्रियों के अपने गीत मर्दो या जनगीतों से अलग और भिन्न नहीं हैं, मिले-जुले ही हैं।

प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत’ में संकलित पाठ ‘संसार एक पुस्तक है’ पाठ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक ‘भगवतशरण उपाध्याय’ जी हैं। लेखक ने यहाँ पर बताया है कि हमारे देश में अधिकतर गीत औरतों के हैं जिनकी रचनाकार भी वे स्वयं ही हैं।

व्याख्या- लेखक का कहना है कि हमारे देश में अधिकतर गीत औरतों को आधार बनाकर लिखे गए हैं। इन लोक गीतों की रचना भी महिलाओं के द्वारा ही हुई है। पुरुषों द्वारा रचित गीत भी कम नहीं हैं परन्तु महिलाओं के गीत इनसे अधिक हैं। पुरुषों द्वारा रचित गीतों का संबंध भी स्त्रियों से ही होता है। इस दृष्टि से देखा जाए तो भारत इस दिशा में अन्य सभी देशों से अलग है क्योंकि दूसरे देशों में स्त्रियों और पुरुषों के गीत अलग-अलग न होकर एक ही होते हैं।

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लोक गीत Summary

पाठ का सार

लोक गीत अपनी ताज़गी और लोकप्रियता के कारण मार्ग और देशी दोनों प्रकार के संगीत से भिन्न हैं। लोक गीत गाँव, नगर की जनता के गीत हैं इनके लिये साधना की जरूरत नहीं होती। त्योहारों और विशेष अवसरों पर ही ये गाये जाते हैं। इन गीतों की रचना करने वाले अधिकतर गाँव के अनपढ़ लोग ही हैं। स्त्रियों ने भी इनकी रचना में भाग लिया। ये गीत साधारण ढोलक, झांझ, करताल, बाँसुरी आदि की सहायता से ही गाए जाते हैं। मार्ग या देशी गीतों के सामने इनको पिछड़ा समझा जाता था अभी तक इनकी काफी उपेक्षा की जाती थी। साधारण जनता की और राजनीतिक कारणों से लोगों की नजर फिरने से साहित्य और कला के क्षेत्र में काफी परिवर्तन हुआ है। अनेक लोगों ने अनेक बोलियों के लोक साहित्य और लोक गीतों के संग्रह पर कमर कसी। इस प्रकार के अनेक संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। सरकार ने भी लोक साहित्य के पुनरुद्धार के लिए अनेकों प्रयत्न किए और सार्वजनिक अधिवेशनों, पुरस्कार, प्रचार आदि के द्वारा वृद्धि शुरू कर दी।

लोक गीतों के अनेक प्रकार हैं। मध्य प्रदेश, दकन, छोटा नागपुर में गोंड खाँड, ओराव मुंडा, भील, संथाल आदि जातियाँ फैली हुई हैं। इनके गीत और नाच अधिकतर साथ-साथ बड़े-बड़े दलों में गाए या नाचे जाते हैं। एक दूसरे के जवाब में बीस-बीस तीस-तीस आदमियों और औरतों के दल गाते हैं। दिशाएं गूंज उठती हैं।

पहाड़ियों के अपने अलग गीत एवं भिन्न रूप होते हुए भी अशास्त्रीय होने के कारण उनमें समानता है। गढवाल, कन्नौर, कांगड़ा आदि के अपने-अपने गीत और उन्हें गाने की अपनी अलग-अलग शैलियाँ हैं। उनका अलग नाम पहाड़ी है।

लोक गीत वास्तव में गाँव और देहात के हैं। इनका सम्बन्ध भी देहात की जनता से है। चैता, कजरी, सावन, बारहमासा आदि गीत मिर्जापुर, बनारस, उत्तर प्रदेश के पूर्वी और बिहार के पश्चिमी जिलों में गाये जाते हैं। भतियाली और ब्राउल बंगाल के लोक गीत हैं। माहिया आदि पंजाब के गीत हैं। हीर-रांझा, सोहनी-महिवाल के गीत पंजाब में और ढोला-मारू राजस्थान आदि में गाये जाते हैं। देहाती गीतों की रचना का विषय रोजमर्रा की ज़िन्दगी से होता है जिससे वे सीधे हृदय को छू लेते हैं। पील, सारंग, सोरठ, सावन आदि उनके राग हैं। अधिकतर लोक गीत गाँव और क्षेत्रों की बोलियों में गाये जाते हैं। राग इन गीतों के आकर्षण होते हैं। इनकी समझी जाने वाली भाषा ही इनकी सफलता का कारण है।

जातियों के अतिरिक्त सभ्य गाँव के दल गीतों में बिरहा आदि गाए जाते हैं। ये लोग दल बनाकर एक दूसरे के जवाब के रूप में गीत गाते हैं। एक दूसरे प्रकार के बड़े लोकप्रिय गाने अल्हा के हैं जो बुन्देलखण्डी में गाये जाते हैं। इनका प्रारम्भ चन्देल राजाओं के राजकवि जगनिक से माना जाता है। जिसने आल्हा ऊदल की वीरता का वर्णन अपने महाकाव्य में किया है। इनको गाने वाले गाँव-गाँव ढोलक लिये गाते फिरते हैं। जिनमें नट रस्सियों पर खेल करते हुए गाते हैं। लोक गीत हमारे गाँव में आज भी बहुत प्रेम से गाए जाते हैं। अपने देश में ज्यादा संख्या स्त्रियों के गीतों की है वे ही इन्हें गाती हैं। पुरुष भी इनकी रचना करके इनको गा सकते हैं। लेकिन इन गीतों का सम्बन्ध स्त्रियों से है। इस दृष्टि से भारत इस दिशा में सभी देशों से भिन्न है। विवाह के, त्योहार के, नदियों में नहाते समय के, प्रेम युक्त गाली के, मलकोड़ ज्यौनार के, जन्म आदि सभी अवसरों के अलग-अलग गीत हैं। एक विशेष बात यह है कि स्त्रियों के गाने दल बाँधकर ही गाये जाते हैं अकेले नहीं। अनेक कंठ एक साथ फूटने के कारण उनमें मेल नहीं होता फिर भी त्योहारों और अवसरों पर वे अच्छे लगते हैं। गाँव और नगरों में इन गीतों को गाने वाली स्त्रियाँ भी होती हैं जो विशेष अवसरों पर गाने के लिए बुला ली जाती हैं। सभी ऋतुओं में स्त्रियाँ दल बाँधकर गाती हैं। लेकिन होली, बरसात की कज़री उनकी अपनी चीज है, जो सुनते ही हृदय को छू लेती है। स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं। गुजरात का एक प्रकार का गायन गरबा है इसमें स्त्रियाँ घेरे में घूम-घूमकर गाती हैं। साथ ही लकड़ियाँ भी बजाती हैं जो बाजे का काम करती हैं। इसमें नाचना, गाना साथ-साथ चलते हैं। वास्तव में यह नाच ही है। यह सभी प्रान्तों में लोकप्रिय हो गया है। होली के अवसर पर ब्रज में रसिया के गीत स्त्रियों के दल बनाकर माए जाते हैं।

गाँव के गीत वास्तव में अनेक प्रकार के हैं। जहाँ जीवन लहराता है और वहाँ आनन्द के स्रोतों की कमी नहीं हो सकती।

शब्दार्थ :
लोक गीत – जन समुदाय में प्रचलित परंपरागत गीत, आनंद – उल्लास, खुशी, लोकप्रिय – जन साधारण को पसंद आने वाला, भिन्न – अलग, करताल – एक प्रकार का वाद्य यंत्र, हेय – हीन, लोच – लचीलापन, उपेक्षा – उदासीनता, तिरस्कार, प्रकाशित – जो छापा गया हो, प्रकाशवान, सरकार – हुकूमत, शासन, गवर्नमेंट, संगीत – मधुर ध्वनि, प्राचीनकाल – पुराने समय का, गरबा – राजस्थान का नृत्य, ओजस्वी – ओज-भरी, झाँझ – काँसे की दो तस्तरियों से बना वाद्य यंत्र, सिरजही – सृजन करती/ बनाती, अबूझ – जो समझने योग्य न हो, आह्लादकर – आनंददायक, बखान – वर्णन/बड़ाई, उल्लसित – खुश, उद्दाम – बंधन रहित, कृत्रिम – बनावटी

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NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 13 मैं सबसे छोटी होऊँ

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मैं सबसे छोटी होऊँ NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 13

Class 6 Hindi Chapter 13 मैं सबसे छोटी होऊँ Textbook Questions and Answers

कविता से

प्रश्न 1.
कविता में सबसे छोटी होने की कल्पना क्यों की गई है ?
उत्तर:
छोटी होने का लाभ ही लाभ है। मम्मी का प्यार-दुलार सबसे अधिक मिलता है। खेलने के लिए खिलौने मिलते हैं। माता के साथ घूमना मिलता है। माता ही नहलाती धुलाती है।

प्रश्न 2.
कविता में ‘ऐसी बड़ी न होऊँ मैं’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर:
ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि बड़ी बनकर वह अपनी माता का प्यार नहीं खोना चाहती। ऐसे बड़े बनने से क्या लाभ जिसमें माता अपने हाथों न खिलाए न नहला कर तैयार करे।

प्रश्न 3.
कविता में किसके आँचल की छाया में छिपे रहने की बात कही गई है और क्यों ?
उत्तर:
कविता में माता के आँचल में छिपे रहने की बात कही गई है। माता का आँचल बच्चे के लिए स्वर्ग के समान होता है। उतना प्यार जीवन में कहीं नहीं मिलता।

प्रश्न 4.
आशय स्पष्ट कीजिए-
हाथ पकड़ फिर सदा हमारे
साथ नहीं फिरती दिन-रात!
उत्तर:
आशय : जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो माता उनका हाथ पकड़कर नहीं चलती क्योंकि बच्चा स्वयं सब कुछ समझने लगता

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कविता से आगे

प्रश्न 1.
कविता से पता करके लिखो कि माँ बच्चों के लिए क्या-क्या काम करती है ?
तुम स्वयं सोचकर यह भी लिखो कि बच्चों को माँ के लिए क्या-क्या करना चाहिए ?
उत्तर:
माँ बच्चे को गोदी में खिलाती है। अँगुली पकड़कर घुमाती है। वह उसको अपने हाथों से खिलाती एवं नहला धुलाकर तैयार करती है, खिलौने देती है एवं परियों की कहानियाँ सुनाती है।

बच्चों को माता-पिता का कहना मानना चाहिए। उनकी सेवा करनी चाहिए। माता-पिता जब बूढ़े हो जाएं तो उनकी बातों को ध्यान से सुनना चाहिए व उनकी सभी जरूरतों को पूरा करना चाहिए। हमें उनको घुमाना-फिराना चाहिए।

प्रश्न 2.
बच्चों को प्रायः सभी क्षेत्रों में बड़ा होने के लिए कहा जाता है। इस कविता में बालिका सबसे छोटी बनी रहना क्यों चाहती है ?
उत्तर:
बड़ी बनकर वह माता के दुलार से वंचित नहीं होना चाहती इसलिए वह छोटी ही बने रहना चाहती है।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
इस कविता के अंत में कवि माँ से चंद्रोदय दिखा देने की बात क्यों कर रहा है ? अनुमान लगाओ और अपने शिक्षक को सुनाओ।
उत्तर:
कवि माँ को किसी न किसी बहाने से घर के बाहर ले जाना चाहता है। वह चाहता है कि माँ बच्चे के साथ बाहर निकले जिससे बच्चा घूमकर आ सकें और माँ को यह भी पता चल जाए कि बच्चा अभी बड़ा नहीं हुआ है।

प्रश्न 2.
इस कविता को पढ़कर इसमें आए तथ्यों और अपनी कल्पना से एक कहानी लिखकर दोस्तों को दिखाओ।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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भाषा की बात

प्रश्न 1.
‘पकड़-पकड़कर’ की तरह नीचे लिखे शब्दों को पूरा करो और उनसे वाक्य भी बनाओ
छोड़ – , बना – ,
फिर – , खिला – ,
पोंछ – , थमा – ,
सुना – , कह – ,
दिखा – , छिपा –
उत्तर:
छोड़-छोड़कर, फिर-फिरकर, पोंछ-पोंछकर, सुना-सुनाकर, दिखा-दिखाकर,
बना-बनाकर खिला-खिलाकर, थमा-थमाकर, कह-कहकर छिपा-छिपाकर

वाक्य प्रयोग:
छोड़-छोड़कर – भूकंप आने पर लोग अपने घरों को छोड़-छोड़कर भाग निकले।
फिर-फिरकर – वह पीछे फिर-फिरकर अपने पिता को देख रहा था।
पोंछ-पोंछकर – फर्श को कपड़े से पोंछ-पोंछकर सुखा दीजिए।
सुना-सुनाकर – अमन की मम्मी पड़ोसियों को सुना-सुनाकर कहने लगी।
दिखा-दिखाकर – छोटे-बच्चे दूसरे बच्चों को दिखा-दिखाकर खाते हैं।
बना-बनाकर – वह रोज-रोज चावल बना-बनाकर खाता है।
खिला-खिलाकर – गीत की मम्मी ने गीत को खिला-खिलाकर मोटा बना दिया।
थमा-थमाकर – सभी के हाथों में दो-दो लड्डू थमा-थमाकर चलता करो।
कह-कहकर – मोहन की मम्मी मोहन को पढ़ने के लिए कह-कहकर थक गई।
छिपा-छिपाकर – मोनू की मम्मी मोनू को औरों से छिपा-छिपाकर खाने की चीजें देती है।

प्रश्न 2.
इन शब्दों के समान अर्थ वाले दो-दो शब्द लिखो-
हाथ –
सदा –
मुख –
माता –
स्नेह –
उत्तर:
हाथ – हस्त, कर
सदा – सदैव, हमेशा
मुख – मुँह, आनन
माता – अम्मा, माँ
स्नेह – प्यार, प्रेम

प्रश्न 3.
कविता में ‘दिन-रात’ शब्द आया है। तुम भी ऐसे पाँच शब्द सोचकर लिखो। जिनमें किसी शब्द का विलोम शब्द भी शामिल हो और उनके वाक्य बनाओ।
उत्तर:
भला-बुरा, ऊपर-नीचे, लाभ-हानि, जीवन-मरण, अपना-पराया,

भला-बुरा – हमें भला-बुरा देखकर ही कार्य करना चाहिए।
ऊपर-नीचे – यहाँ ऊपर-नीचे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा।
लाभ-हानि – व्यापारी किसी भी कार्य को करने से पहले लाभ-हानि का हिसाब लगाता है।
जीवन-मरण – जीवन-मरण ईश्वर के अधीन है।
अपना-पराया – यहाँ अपना पराया कोई नहीं सब बराबर हैं।

प्रश्न 4.
‘निर्भय’ शब्द में ‘निर्’ उपसर्ग लगाकर शब्द बनाया गया है। तुम भी ‘निर्’ उपसर्ग से पाँच शब्द बनाओ।
उत्तर:
निर्दयी, निर्गुण, निर्मम, निर्बल, निर्गम।

प्रश्न 5.
कविता की किन्हीं चार पंक्तियों को गद्य में लिखो।
उत्तर:
मैं सबसे छोटी बनकर तुम्हारी गोद में सोना चाहती हूँ और तेरा आँचल पकड़कर तेरे साथ घूमना चाहती हूँ।

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कविता की सप्रसंग व्याख्या

1. मैं सबसे छोटी होऊँ,
तेरी गोदी में सोऊँ,
तेरा अंचल पकड़-पकड़कर
फिरूँ सदा माँ! तेरे साथ,
कभी न छोडूं तेरा हाथ!
बड़ा बनाकर पहले हमको
तू पीछे छलती है मात!
हाथ पकड़ फिर सदा हमारे
साथ नहीं फिरती दिन-रात!

शब्दार्थ:
अंचल – वस्त्र का छोर/पल्ला ओढ़नी आदि का वह छोर जो छाती और पेट पर रहता है।
छलना – भुलावे में देना

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत’ में संकलित कविता ‘मैं सबसे छोटी होऊँ’ से अवतरित है। इस कविता के रचयिता सुमित्रानंदन पंत जी हैं। इस कविता में कवि ने बाल मन में उठने वाली शिकायतों का बड़े ही भावात्मक तरीके से वर्णन किया है।

व्याख्या- कवि एक छोटी-सी बच्ची के मन में उठने वालों भावों को दर्शाते हुए कहता है कि एक बच्ची अपनी माता से उनकी ही
शिकायत कर रही है कि आपने हमें बड़ा बना दिया परन्तु मैं तो अभी बहुत छोटी हूँ। मैं तो आपकी गोदी में ही सोती हूँ। हे माता! मैं तो तुम्हारे आँचल से अलग नहीं होना चाहती हूँ। मैं सदा तुम्हारे आँचल की छाया में तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ। मैं तुम्हारा हाथ कभी नहीं छोड़ना चाहती। मैं नहीं चाहती कि मैं बड़ी बनूँ। आप हमें यह कहकर कि तुम तो अब बड़ी हो गई हो हमें तुम अपना पूरा प्यार भी नहीं दे रही हो। तुम मेरे साथ यह धोखा कर रही हो। हे माता! तू मेरा हाथ पकड़कर सदा मेरे साथ घूम। तुमने तो दिन हो या रात हमारे साथ घूमना ही बंद कर दिया है।

2. अपने कर से खिला, धुला मुख,
धूल पोंछ, सज्जित कर गात,
थमा खिलौने, नहीं सुनाती
हमें सुखद परियों की बात!
ऐसी बड़ी न होऊँ मैं
तेरा स्नेह न खोऊँ मैं,
तेरे अंचल की छाया में
छिपी रहूँ निस्पृह, निर्भय,
कहूँ-दिखा दे चंद्रोदय

शब्दार्थ:
कर – हाथ
सज्जित – संजाना, सँवारना
गात – शरीर
थमा – पकड़ाकर, देकर
सुखद – सुख देने वाली
निस्पृह – बिना किसी चाह के
निर्भय – निडर

प्रसंग- प्रसंग प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत’ में संकलित कविता ‘मैं सबसे छोटी होऊँ’ से ली गई है। इस कविता के कवि सुमित्रानंदन पंत जी हैं। कवि ने यहाँ बाल सुलभ बातों का बड़े ही भावनात्मक तरीके से वर्णन किया है।

व्याख्या- छोटी-सी बालिका अपनी माता से शिकायत भरे लहजे में कहती है कि हे माता! तुम मुझे अपने हाथों से खाना खिलाया करो। मेरा मुख भी तुम ही धोया करो। मेरे शरीर से धूल पोंछकर मुझे सुंदर-सुंदर कपड़े पहनाकर अच्छी तरह से तैयार किया करो। अब तुम हमें खिलौने देकर परियों की कहानियाँ भी नहीं सुनाती हो। तुम मुझे कहती हो कि तुम अब बड़ी हो गई हो। मैं अभी बड़ी नहीं हुई, मैं तो अभी छोटी ही हूँ। मैं तुम्हारा प्यार नहीं खोना चाहती मैं तो चाहती हूँ कि मैं सदा तुम्हारे आँचल की छाया में ही रहूँ, कभी-भी तुमसे अलग न होऊँ। हे माता! मैं तो बिना किसी इच्छा के निर्भय होकर तुम्हारे आँचल में छिपी रहना चाहती हूँ और यह कहना चाहती हूँ कि मुझे चाँद दिखा दे कि चाँद कहाँ से और किस प्रकार निकल रहा है।

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मैं सबसे छोटी होऊँ Summary

कविता का सार

समित्रानंदन पंत की इस कविता ‘मैं सबसे छोटी होऊँ’ में एक बालिका अपनी माँ से शिकायत करती है कि आप मुझे बड़ा बताकर मेरे सारे अधिकार छीन रही हो। वह कहती है कि मैं छोटी हूँ और सदा तुम्हारा आँचल पकड़कर तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ। अब तुम हमें न तो अपने हाथों से खिलाती हो न नहलाती-धुलाती ही हो। अब आपने हमको खिलौने पकड़ा दिए और परियों की कहानी भी नहीं सुनाती हो। मैं तुम्हारा प्यार नहीं खोना चाहती। मैं सदा तुम्हारे आँचल की छाया में ही रहना चाहती हूँ।

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NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 12 संसार पुस्तक है

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संसार पुस्तक है NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 12

Class 6 Hindi Chapter 12 संसार पुस्तक है Textbook Questions and Answers

पत्र से

प्रश्न 1.
लेखक ने ‘प्रकृति के अक्षर’ किन्हें कहा है ?
उत्तर:
लेखक ने पेड़-पौधों, पत्थरों, हड्डियों आदि प्राकृतिक चीजों को प्रकृति के अक्षर कहा है।

प्रश्न 2.
लाखों करोड़ों वर्ष पहले हमारी धरती कैसी थी ?
उत्तर:
लाखों करोड़ों वर्ष पूर्व हमारी धरती बहुत गर्म थी। इस पर कोई जीव नहीं था। बहुत बाद में आकर जब पृथ्वी ठंडी हो गई तब जाकर इस पर वनस्पतियाँ और जीव उत्पन्न होने लगे। मनुष्य बहुत बाद में पृथ्वी पर आया।

प्रश्न 3.
दुनिया का पुराना हाल किन चीज़ों से जाना जाता है ? उनके कुछ नाम लिखो।
उत्तर:
दुनिया का पुराना हाल पत्थर, हड्डियों, जीवाष्म, आरती की मिट्टी की परत आदि से जाना जा सकता है।

प्रश्न 4.
गोल चमकीला रोड़ा अपनी क्या कहानी बताता है ?
उत्तर:
गोल और चमकीला दिखाई देने वाला रोड़ा पहले ऐसा नहीं था। पहले वह चट्टान का एक टुकड़ा था। वह भी किसी पहाड़ के नीचे की जमीन में पड़ा होगा। पानी के साथ बहकर वह नीचे आ गया। पानी के साथ निरंतर ढकेले जाने के कारण उसके कोण घिस गए। दरिया उसे और आगे बहाकर ले गई इस प्रकार की निरंतर प्रक्रिया के साथ वह गोल और चिकना हो गया।

प्रश्न 5.
गोल चमकीले रोड़े को यदि दरिया और आगे ले जाता तो क्या होता ? विस्तार से उत्तर लिखो।
उत्तर:
अगर दरिया उसे और आगे ले जाता तो वह छोटा होते-होते अन्त में बालू का एक ज़र्रा हो जाता और समुद्र के किनारे अपने भाइयों से जा मिलता, जहाँ एक सुन्दर बालू का किनारा बन जाता, जिस पर छोटे-छोटे बच्चे खेलते और बालू के घरौंदे बनाते। लोग उस रेत को विभिन्न कामों में प्रयोग करते। हवा चलने पर वह रेत उड़कर दूर-दूर पहुँच जाता।

प्रश्न 6.
नेहरू जी ने इस बात का हल्का-सा संकेत दिया है कि दुनिया कैसे शुरू हुई होगी। उन्होंने क्या बताया है ? पाठ के आधार पर लिखो।
उत्तर:
नेहरू जी ने बताया है कि पृथ्वी पहले बहुत गर्म थी। धीरे-धीरे यह ठंड़ी हुई तो इस पर वनस्पतियाँ पैदा होने लगीं। इसके बाद जीव अस्तित्व में आया। फिर काफी बाद में इस धरती पर मनुष्य आया। मनुष्य के आ जाने पर यह दुनिया विकसित होने लगी। इस प्रकार इस पर अनेक सभ्यताओं का जन्म हुआ।

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पत्र से आगे

प्रश्न 1.
लगभग हर जगह दुनिया की शुरूआत को समझाती हुई कहानियाँ प्रचलित हैं। तुम्हारे यहाँ कौन सी कहानी प्रचलित है ?
उत्तर:
यह धरती पहले सूर्य का ही अंग थी। अंतरिक्ष में आए किसी परिवर्तन के कारण यह सूर्य से अलग हो गई यह भी सूर्य की तरह आग का गोला ही थी। करोड़ों वर्षों में जाकर यह ठंडी हुई फिर धीरे-धीरे इस पर वनस्पतियाँ पैदा होने लगीं। इसके बाद ही जीव अस्तित्व में आया।

प्रश्न 2.
तुम्हारी पसंदीदा किताब कौन-सी है और क्यों ?
उत्तर:
मेरी पसंदीदा किताब ‘गीता’ है क्योंकि गीता में कर्म करने पर बल दिया है। गीता में जीवन का सीधा एवं सुलभ रास्ता सुझाया है। इस पुस्तक में किसी प्रकार का पाखंड नहीं है। मृत्यु के रहस्यों को भी इस पुस्तक में बड़े वैज्ञानिक तरीकों से समझाया है।

प्रश्न 3.
मसूरी और इलाहाबाद शहर भारत के कौन से प्रदेश/प्रदेशों में हैं ?
उत्तर:
पहले ये दोनों शहर उत्तर प्रदेश में ही थे। उत्तरांचल बनने के बाद मसूरी उत्तरांचल में चला गया और इलाहाबाद अब भी उत्तर प्रदेश में ही है।

प्रश्न 4.
तुम जानते हो कि दो पत्थरों को रगड़कर आदि मानव ने आग की खोज की थी। उस युग में पत्थरों का और क्या-क्या उपयोग होता था ?
उत्तर:
उस युग में पत्थरों को हथियारों के रूप में प्रयोग किया जाता था। बाद में वे उनसे अपने घर भी बनाने लगे थे।

प्रश्न 5.
यदि प्रकृति का एक अक्षर किसी पेड़ को मानें, तो क्या उसे पढ़ने के लिए सिर्फ आँखों का इस्तेमाल करना होगा ?
उत्तर:
नहीं ऐसा नहीं हम उसको छूकर भी उसके बारे में जान सकते हैं।

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अनुमान और कल्पना

मान लो कि डिब्बे में रखा अचार हो। उसका मूल रूप क्या था ? यानी अचार किस चीज़ का है ? यह कैसे बना होगा? बनाने वाले हाथ बुजुर्ग औरत के होंगे या नौजवान आदमी के ? फैक्ट्री में बनाया गया होगा, या घर में ? घर में डाला गया होगा तो किन-किन चीज़ों को ध्यान में रखा गया होगा ? अगर किसी मशहूर दुकान का अचार है, तो उस दुकान से कितना पुराना रिश्ता होगा ? किन-किन मौकों पर वह डिब्बा उतारा जाता होगा ?
इसी प्रकार कुछ और चीज़ों के बारे में अनुमान लगाओ और बताओ-
ताला
कुरसी
रज़ाई
उत्तर:
ताला : ताला लोहे से बना होता है उसको लोहार बनाता है, अब तो ताले फैक्ट्रियों में बनाए जाते हैं। जब हम घर से बाहर जाते हैं तो ताले का इस्तेमाल करते हैं।

कुरसीः कुरसी का मूल रूप लकड़ी भी है लोहा भी है। मिस्त्री कुरसी बनाता है फिर वह उसको सुंदर बनाता है। कुरसी बैठने के काम आती है। जब कोई अतिथि आता है तो उसे कुरसी पर बिठाया जाता है।

रजाई : रजाई का मूल रूप कपास है। एक प्रकार की चरखी में कपास से बिनौले अलग करके रूई निकाली जाती है। रूई को धुनकर उसी रूई के धागों से बने कपड़े में उसको भर दिया जाता है। जब सरदी आती है तो हम रजाई ओढ़ते हैं।

कुछ करने को

प्रश्न 1.
अपने आसपास के किसी पेड़ से कोई हरी पत्ती उठाओ और उसे खिड़की की मुँडेर पर रख दो और देखो कि वह कब-कब, कितने समय बदलती है ? उसकी बनावट में हर दिन क्या फ़र्क आ रहा है ? धूप और छाँव में उसका क्या रंग होता है? पत्ती बनने से लेकर सूखने तक के सफर में उसके आकार, रंग, नाड़ियों आदि में क्या बदलाव आया ? तालिका बनाकर उसमें यह बदलाव दर्ज करो।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
पास के शहर में कोई संग्रहालय हो तो वहाँ जाकर पुरानी चीजें देखो। अपनी कक्षा में उस पर चर्चा करो।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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भाषा की बात

प्रश्न 1.
‘इस बीच वह दरिया में लुढ़कता रहा।’ नीचे लिखी क्रियाएँ पढ़ो। क्या इनमें और ‘लुढ़कना’ में तुम्हें कोई समानता नज़र आती है ?
ढकेलना सरकना खिसकना
इन चारों क्रियाओं का अंतर समझाने के लिए इनसे वाक्य बनाओ।
उत्तर:
ढकेलना : पहाड़ी रास्तों से चट्टानों को ढकेलना पड़ता है तभी रास्ता साफ होता है।
सरकना : मोहन आगे सरकना ही नहीं चाहता कई सालों से वह उसी कक्षा में पड़ा है।
खिसकना : धरती के अंदर चट्टानों के खिसकने से भूकंप आता है।

प्रश्न 2.
चमकीला रोड़ा-यहाँ रेखांकित विशेषण ‘चमक’ संज्ञा में ‘ईला’ प्रत्यय जोड़ने पर बना है। निम्नलिखित शब्दों में यही प्रत्यय जोड़कर विशेषण बनाओ और इनके साथ उपयुक्त संज्ञाएँ लिखो-
पत्थर …………………… काँटा …………
रस …………………… जहर ………..
उत्तर:
पथरीला, कँटीला, रसीला, ज़हरीला।

प्रश्न 3.
‘जब तुम मेरे साथ रहती हो, तो अक्सर मुझसे बहुत-सी बातें पूछा करती हो।’ यह वाक्य दो वाक्यों को मिलाकर बना है। इन दोनों वाक्यों को जोड़ने का काम जब-तो (तब) कर रहे हैं, इसलिए इन्हें योजक कहते हैं। योजक के रूप में कभी कोई बदलाव नहीं आता, इसलिए ये अव्यय का एक प्रकार होते हैं। नीचे वाक्यों को जोड़ने वाले कुछ और अव्यय दिए गए हैं। उन्हें रिक्त स्थानों में लिखो। इन शब्दों से तुम भी एक-एक वाक्य बनाओ-
(क) कृष्णन फ़िल्म देखना चाहता है ………….. मैं मेले में जाना चाहती हूँ।
(ख) मुनिया ने सपना देखा…………… वह चंद्रमा पर बैठी है।
(ग) छुट्टियों में हम सब दुर्गापुर जाएँगे ………….. जालंधर।
(घ) सब्जी कटवा कर रखना ………….. घर आते ही मैं खाना बना लूँ।
(ङ) …………. मुझे पता होता कि शमीम बुरा मान जाएगा ………….. मैं यह बात न कहता।
(च) मालती ने तुम्हारी शिकायत नहीं ………….. तारीफ़ ही की थी।
(छ) इस वर्ष फसल अच्छी नहीं हुई है ………….. अनाज महँगा है।
(ज) विमल जमन सीख रहा है ………….. फ्रेंच।
बल्कि / इसलिए / परंतु / कि । यदि / तो / न कि / या / ताकि
उत्तर:
(क) कृष्णन फ़िल्म देखना चाहता है.परन्तु मैं मेले में जाना चाहती हूँ।
(ख) मुनिया ने सपना देखा कि वह चंद्रमा पर बैठी है।
(ग) छुट्टियों में हम सब दुर्गापुर जाएँगे न कि जालंधर।
(घ) सब्जी कटवा कर रखना ताकि घर आते ही मैं खाना बना लूँ।
(ङ) यदि मुझे पता होता कि शमीम बुरा मान जाएगा तो मैं यह बात न कहता।
(च) मालती ने तुम्हारी शिकायत नहीं बल्कि तारीफ़ की थी।
(छ) इस वर्ष फसल अच्छी नहीं हुई इसलिए अनाज महँगा है।
(ज) विमल जर्मन सीख रहा है या फ्रेंच।

सुनना और देखना

1. एन.सी.ई.आर.टी. की श्रव्य श्रृंखला ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’।
2. एन.सी.ई.आर.टी. का श्रव्य कार्यक्रम ‘पत्थर और पानी की कहानी’।

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महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. यह तो तुम जानती ही हो कि यह धरती लाखों करोड़ों वर्ष पुरानी है, और बहुत दिनों तक इस पर कोई आदमी न था। आदमियों से पहले सिर्फ जानवर थे, और जानवरों से पहले एक ऐसा समय था जब इस धरती पर कोई जानदार चीज न थी, आज जब यह दुनिया हर तरह के जानवरों और आदमियों से भरी हुई है, उस जमाने का ख्याल करना भी मुश्किल है जब यहाँ कुछ था। लेकिन विज्ञान जानने वालों और विद्वानों ने, जिन्होंने इस विषय को खूब सोचा और पढ़ा है, लिखा है कि एक समय ऐसा था जब यह धरती बेहद गर्म थी और इस पर कोई जानदार चीज़ नहीं रह सकती थी और अगर हम उनकी किताबें पढ़ें और पहाड़ों और जानवरों की पुरानी हड्डियों को गौर से देखें तो हमें खुद मालूम होगा कि ऐसा समय जरूर रहा होगा।

प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत’ में संकलित पाठ ‘संसार एक पुस्तक है’ पाठ से लिया गया है। इस पाठ के मूल लेखक पं० जवाहरलाल नेहरू जी हैं। इसका अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद ‘प्रेमचंद’ जी ने किया है। यहाँ लेखक ने धरती के बारे में बताया है।

व्याख्या- लेखक अपनी पुत्री इन्दिरा को इस पत्र में कहते हैं कि यह धरती लाखों करोड़ों वर्ष पुरानी है। धरती पर पहले कोई आदमी नहीं था। धरती पर जीवों में सबसे पहले जानवर अस्तित्व में आए। प्रारंभ के दिनों में धरती पर कोई जीव पैदा ही नहीं होता था। आज इस धरती पर आदमियों और जानवरों की भरमार हो रही है। विद्वानों और वैज्ञानिकों ने धरती के बारे में बहुत खोज की है। उन्होंने अपने अध्ययन, अनुभवों एवं प्रयोगों से यह जाना कि यह धरती पहले बहुत गर्म थी। इस धरती का मौसम ऐसा नहीं था कि कोई जानवर या चीज इस पर रह सके। यदि हम उन विद्वानों और वैज्ञानिकों की किताबों का अध्ययन करें और पहाड़ों के पुराने टुकड़ों और जानवरों की पुरानी हड्डियों को ध्यानपूर्वक देखें तो हमें यकीन आ जाएगा कि ऐसा समय भी कभी अवश्य रहा होगा।

2. ये पहाड़, समुद्र, सितारे, नदियाँ, जंगल, जानवरों की पुरानी हड्डियाँ और इसी तरह की और भी कितनी ही चीजें हैं जिनसे हमें दुनिया का पुराना हाल मालूम हो सकता है। मगर हाल जानने का असली तरीका यह नहीं है कि हम केवल दूसरों की लिखी हुई किताबें पढ़ लें, बल्कि खुद संसार-रूपी पुस्तक को पढ़ें। मुझे आशा है कि पत्थरों और पहाड़ों को पढ़ कर तुम थोड़े ही दिनों में उनका हाल जानना सीख जाओगी। सोचो, कितनी मजे की बात है। एक छोटा-सा रोड़ा जिसे तुम सड़क पर या पहाड़ के नीचे पड़ा हुआ देखती हो, शायद संसार की पुस्तक का छोटा-सा पृष्ठ हो, शायद उससे तुम्हें कोई नई बात मालूम हो जाए। शर्त यही है कि तुम्हें उसे पढ़ना आता हो।

प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत’ में संकलित पाठ ‘संसार एक पुस्तक है’ पाठ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक ‘पं० जवाहरलाल नेहरू जी’ हैं। इसका अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद ‘प्रेमचंद’ जी ने किया है। लेखक ने इन पंक्तियों में दुनिया के बारे में जानकारी देने वाली वस्तुओं के बारे में बताया है।

व्याख्या- लेखक का कहना है कि इस दुनिया के बारे में जानकारी हमें पहाड़, समुद्र, तारे, नदियों, जंगल एवं जानवरों की पुरानी हड्डियों से भी मिलती है। यह संसार एक पुस्तक है। इस पुस्तक को पढ़ना आना चाहिए। इन चीजों के अतिरिक्त और भी कितनी ही ऐसी चीजें हैं जो हमें दुनिया का हाल बता सकती हैं। केवल पुस्तकें पढ़कर ही इस दुनिया के बारे में नहीं जाना जा सकता बल्कि हमें स्वयं संसार रूपी इस पुस्तक को पढ़ना चाहिए। जो व्यक्ति पुस्तक लिखता है वह भी उस जानकारी को संसार रूपी पुस्तक को पढ़कर ही लिखता है। लेखक ‘इंदिरा’ से कहते हैं यदि तुम भी प्रकृति की इन चीजों को गौर से देखोगी तो थोड़े दिनों में ही उनका हाल जानना अच्छी प्रकार आ जाएगा। एक छोटा-सा रोड़ा जिसे तुम सड़क या पहाड़ पर पड़े देखते हो यह भी इस दुनिया के बारे में बहुत-सी जानकारी देता है। जरूरत इस बात की है कि तुम उसको पढ़ना जानती हो या नहीं।

NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 12 संसार पुस्तक है

संसार पुस्तक है Summary

पाठ का सार

पिता जवाहर लाल नेहरू के द्वारा अपनी पुत्री को लिखे गए पत्रों का वर्णन है। वे कहते हैं कि जब तुम मेरे साथ रहा करती थीं तो अक्सर मुझसे बहुत सी बातें पूछा करती थीं और मैं उनका जवाब देने की कोशिश करता था लेकिन अब तुम मेरे साथ नहीं हो। मैं इलाहाबाद में हूँ और तुम मसूरी में हो तो हम दोनों पहले की तरह बातें नहीं कर सकते। इसलिए मैंने सोचा है कि कभी-कभी इस दुनिया की और इस दुनिया में जो छोटे बड़े देश बसे हुए हैं उनकी छोटी-छोटी कथाएँ तुम्हें लिखा करूँ। तुमने इतिहास में इंग्लैंड और हिन्दुस्तान के बारे में तो कुछ पढ़ा है। लेकिन इंग्लैंड एक छोटा सा टापू है और हिन्दुस्तान एक बहुत बड़ा देश है। हिन्दुस्तान फिर भी दुनिया का एक छोटा सा हिस्सा है। अगर तुम्हें इस दुनिया के बारे में कुछ जानना है कि दुनिया में क्या-क्या हो रहा है और कैसे हो रहा है तो तुम्हें सब देशों का तथा उसमें बसी अनेकों जातियों तथा धर्मों का भी ध्यान रखना पड़ेगा। केवल उसी छोटे से देश का नहीं जहाँ पर तुमने केवल जन्म लिया है।

मुझे ज्ञात है कि इन छोटे-छोटे पत्रों में मैं तुम्हें केवल थोड़ी सी बातें ही लिख पाऊँगा। लेकिन मुझे उम्मीद है कि तुम इन थोड़ी सी बातों को भी बड़े शौक से पढ़ोगी और समझोगी कि यह दुनिया एक है और दूसरे सभी लोग जो इस दुनिया में रहते हैं वे किसी भी धर्म से सम्बन्ध रखते हों वे सब हमारे भाई-बहिन हैं। हमें आपस में किसी से द्वेष नहीं करना चाहिए।

जब तुम बड़ी हो जाओगी तो दुनिया के बारे में और उसमें रहने वाले लोगों का हाल जानने के लिए तुम्हें बड़ी-बड़ी अनेकों किताबों का अध्ययन करना होगा क्योंकि दुनिया बहुत बड़ी है। इसमें विभिन्न धर्मों व जातियों के लोग रहते हैं। सभी की भाषा, रहन-सहन अलग-अलग हैं। इन मोटी पुस्तकों को पढ़ने में तुम्हें जो आनन्द मिलेगा वह कभी किसी कहानी या उपन्यास के पढ़ने में न मिला होगा।

यह तुम्हें ज्ञात है कि यह धरती लाखों करोड़ों वर्ष पुरानी है। काफी समय तक इस पर कोई मानव या जीव नहीं था केवल जानवर थे। जानवरों से पहले एक ऐसा समय भी था जब इस धरती पर कोई जानदार चीज न थी लेकिन आज यह दुनिया मानवों तथा सभी प्रकार के जीव-जन्तु व जानवरों से परिपूर्ण है। उस समय की कल्पना करना भी बड़ा मुश्किल है। वैज्ञानिकों का कहना है कि एक समय ऐसा था जब यह धरती काफी गरम थी। यह एक गैस के गोले की तरह थी इस पर कोई जानदार चीज नहीं रह सकती थी। वैज्ञानिकों ने इस विषय को खूब सोचकर पढ़ा और लिखा। अगर हम भी उनकी किताबों को पढ़ें, पहाड़ों और जानवरों की हड्डियों को देखें तो हमें मालूम होगा कि ऐसा समय जरूर रहा होगा।

इतिहास को तुम किताबों में पढ़ सकते हो लेकिन पुराने जमाने में जब आदमी पैदा ही नहीं हुआ तो किताबें किसने लिखी होंगी। तब हमें उस जमाने के बारे में जानकारी कहाँ से हासिल होगी। यह तो हो नहीं सकता कि हमें घर बैठे हर चीज की जानकारी मिल जाए। मजे कि बात यह है कि हम अपने मन में जो चाहते हैं सोच लेते हैं अनेकों कहानियाँ गढ़ लेते हैं लेकिन वह ठीक कैसे हो सकती है। लेकिन खुशी की बात यह भी है कि पुराने जमाने की किताबें न होने से कुछ ऐसी चीजें हैं जिनसे हमें उतनी ही जानकारी हासिल हो सकती है जितनी किताबों से! जैसे, पहाड़, नदियाँ, झरने, जानवरों की हड्डियाँ । खुदाई में प्राप्त चीजों के द्वारा हमें पुरानी दुनिया का हाल मालूम हो सकता है। हमें दूसरों की लिखी हुई किताबों को नहीं बल्कि स्वयं संसार रूपी पुस्तक को पढ़ना होगा। मुझे आशा है कि पत्थरों और पहाड़ों को पढ़कर तुम थोड़े ही समय में उनका हाल जान जाओगी।

किसी भी भाषा उर्दू, अंग्रेजी, फारसी, हिन्दी, पंजाबी आदि सीखने के लिए उसके अक्षर सीखने होते हैं। इसी तरह तुम्हें प्रकृति के अक्षर रूपी पत्थर पढ़ने होंगे तभी तुम उसकी कहानी पत्थरों और चट्टानों की किताब से पढ़ सकोगी। जब तुम कोई छोटा सा गोल पत्थर (रोड़ा) देखती हो तो वह तुम्हें कुछ नहीं बतलाता कि वह कैसे गोल, चिकना, चमकीला हो गया। यदि तुम किसी चट्टान को तोड़कर टुकड़ों में विभाजित कर दो तो प्रत्येक टुकड़ा खुरदरा व नुकीला होगा। यह गोल चिकने पत्थर की तरह बिल्कुल नहीं होगा। फिर किस तरह यह पत्थर इतना चिकना, चमकीला गोल हो गया। अगर तुम्हारी आँखें देख सकतीं और कान सुन सकते तो तुम उसी की जबान से उसकी कहानी सुन सकतीं। वह कहेगा कि एक समय वह भी एक चट्टान का टुकड़ा था जिसके किनारे खुरदरे, नुकीले थे जिसे तुम बड़ी चट्टान से तोड़ती हो। जब पानी आया और उसे बहाकर घाटी तक ले गया फिर पहाड़ी नाले के द्वारा छोटे दरिया में पहुँचा दिया। इसी बीच वह दरिया की तली में लुढ़कता रहा और लुढ़कने से उसके किनारे घिस गए वह गोल, चिकना और चमकदार हो गया। किसी वजह से दरिया ने उसे छोड़ दिया और तुमने उसे पा लिया। अगर दरिया उसे आगे बहाकर ले जाता तो वह बालू का एक कण बन जाता। समुद्र के किनारे की बालू से जा मिलता और एक सुन्दर बालू का किनारा बन जाता जहाँ पर बच्चे खेलते और बालू से घर बनाते। .

एक छोटे से रोड़े, पत्थर के द्वारा हमें इतनी बातें मालूम हुईं तो पहाड़, नदियों, झरनों आदि दूसरी चीजों से जो हमारे चारों तरफ हैं हमें अनेकों बातें मालूम हो सकती हैं।

शब्दार्थ : अक्सर – प्रायः, दामन – पहाड़ के नीचे की जमीन, दुनिया – संसार, आनंद – उल्लास, खुशी, टापू – जमीन का वह भाग जो चारों ओर, उपन्यास – कल्पित और लम्बी कहानी जल से घिरा हो (द्वीप), खत – पत्र, चिट्ठी, धरती – पृथ्वी, भूमि, किताब – पुस्तक, पोथी, आबाद – बसा हुआ, जानवर – पशु, प्राणी, पहाड़ – पर्वत, गिरि, समुद्र – समंदर, नदी – झील, चमकीला– चमकदार, आँख – चक्षु, नेत्र, बालू – रेत, खुरदरा – जिसकी सतह चिकनी न हो, गढ़ना – निर्माण करना, दरिया – नदी, शर्त – किसी बात पर अटल होने का भाव, ऐसा निश्चय जिस पर कायम रहना होता है

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